Saturday, March 2, 2013

यह कट अच्छा है

स्पेशल

हेयर स्टाइल से गुडलुकिंग


गुड लुकिंग के लिए आपकी हेयर स्टाइल चेहरे के अनुरूप होनी चाहिए। इससे आप हसीन तो दिखती ही हैं, साथ ही पफैशनेबल भी लगती हैं। आज की ब्यूटी यही है और यह सभी को आपका दीवाना बनाती है। पेश हैं कुछ नायाब हेयर स्टाइल आपकी खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए।

रेजर कट
द रेजर कट आगे के बालों में किया जाता है। इसमें ऊंचाई से नीचे की तरपफ जिक जैक आता है।
द बाल घुंघराले होने पर पीछे के बालों में स्टेप्स दिया जाता है। बाल सीध्े होने पर डीप यू शेप दिया जा सकता है।

वेज कट
द वेज कट पीछे से छोटा और आगे से बड़ा होता है। इसमें पूरे बाल स्टेप्स में आते हैं।
द वेज कट लम्बे चेहरों पर अच्छा लगता है। आप का चेहरा लम्बा हो तो वेज कट कटवा सकती हैं।
द बाल अध्कि घने हैं और बालों में थिनिंग चाहती हैं तो वेज कट आपके लिए सही है।

मशरूम कट
द ओवल और गोल चेहरा है तो मशरूम कट अच्छा लगेगा। मशरूम की तरह यह गोल आकार में होता है।
द यह कट गर्दन के बाल छोटे करके गर्दन से चार अंगुल छोड़कर ऊपरी हिस्से से शुरू होता है।
द मशरूम कट कटवाने पर बालों में बाउसिंग लगती है।

न्यू शेपकट
द आपके बाल लम्बे हैं तो आप यू शेपकट कटवा सकती हैं। डीप यू शेप तथा स्टाइटली यू शेप यह दो तरह का होता है।
द यू शेप कट सभी तरह के चेहरों पर खिलता है। इसमें बाल ट्रिम भी हो जाते हैं।

मशरूम के साथ वेजकट
द इस कट में पीछे का हिस्सा गोल तथा आगे का हिस्सा स्टेप में कटता है। आपका माथा छोटा है तो आपके लिए यह कट अच्छा है।
द इसमें आगे के बाल गोल दिखते हैं लेकिन स्टेप के कारण बाल माथे पर नहीं आते हैं। यह कट हर चेहरे पर जंचता है।

ब्लंड कट
द ब्लंड कट गोल तथा लंबे चेहरे पर पफबता है। आपका चेहरा लंबा होने पर जॉ लाइन तक बाल कटते हैं और चेहरा गोल होने पर कान तक बाल लंबे कटते हैं।
द जॉ लाइन तक बाल कटने से लंबा चेहरा किनारों से ढका रहता है और कान से कान तक बाल कटने से गोल चेहरा अधिक गोल नहीं लगता है। स्टेªप, राउंड तथा वी शेप ब्लंड कट के ये तीन आकार हैं।

बालों की कटिंग से पहले
द हेयर डेªसर को बताएं कि आप बाल कितने लंबे, छोटे तथा किस आकार में कटवाना चाहती हैं।
द बालों की कटिंग अपना चेहरा, कद, रंग, पर्सनैलिटी एवं अवसर देखकर करवाएं। हेयर डेªसर पर न छोड़ें कि जो मन में आए वह शेप दे दो।
द चेहरे का लुक बदलने के लिए कुछ अलग स्टाइल में भी कटिंग करवाएं। अध्कि समय के बाद कटिंग करवा रही हैं तो बालों को नये शेप में कटवाएं। क्योंकि बालों की प्रकृति और टेक्सचर बदलता रहता है।
द किसी के कहने या जोर देने पर किसी भी स्टाइल में बाल न कटवाएं। वही हेयर स्टाइल अपनाएं जो आपके व्यक्तित्व एवं चेहरे के अनुकूल हो।

जूडे़ से बदलता है लुक
द आपका कद नाटा, शरीर मोटा, चेहरा गोल और बाल लम्बे हैं तो ऊंचा जुड़ा आप पर खिलेगा।
द आप छरहरी और लंबी हैं तो जूड़ा लंबा, पतला और बीच में रखें।
द आपका चेहरा गोल हैतो न अध्कि ऊंचा और न ही अध्कि पफैला हुआ जूड़ा बनाएं।
द आपका चेहरा ओवल शेप में है तो आप पर सभी तरह के जूड़े खिलेंगे।
द बिना मांग निकाले जूड़ा बांध्ने पर बालों को नया लुक मिलता है और अच्छा भी लगता है।

सेटिंग से निखारें बाल
द बालों की सेटिंग हेयर जेल तथा हेयरमूज से की जाती है। इससे बाल आकर्षक दिखने लगते हैं।
द बालों को हल्का गीला करके वाटर बेस्ड जेल लगाएं। इसके बाद बालों को रोलिंग से सेट करवा लें।
द अल्कोहल बेस्ड जेल का स्प्रे करके भी बालों को सेट कर सकती हैं और इससे बाल कापफी देर तक व्यवस्थित रहते हैं।
द आपके बाल आयली हों तो उन्हें हेयर मूज से सेट करें। बाल ड्राई लुक देने लगते हैं।
द स्ट्रट बालों को हल्का गीला करने के बाद मूज लगाएं। पिफर हेयर ड्रायर और ब्रश की मदद से बालों को सीध ड्राई कर सकती हैं।
द रेजर कट बाल हों तो हल्का गीला करके उन पर मूज लगाएं। पिफर बालों को बांध्ें। सूखने के बाद बालों को खोल दें और सिर को आगे की तरपफ करके ब्रश करें।
द घुंघराले बालों को गीला करके वाटर बेस्ड जेल लगाएं और नेट बांध्कर उन्हें स्वाभाविक रूप से सूखने दें। बाल सूख जाएं तो नेट खोलकर बड़े दांतों वाले कंघे से कंघी करें।

स्टाइलिश लुक
द बालों की सेटिंग न होने की दशा में उदास न हों। बालों को साधरण प्रफंेच ट्रिवस्ट बनाएं। पोनीटेल की तरह बालों को पीछे ले जाएं। पिफर चोटी बनाएं तथा बॉबी पिंस से बंद कर दें।
द स्टाइलिश लुक देने के लिए रिबन, मोती, क्लासिक या बो आदि का प्रयोग कर सकती हैं।
द बाल कमजोर हों और उनमें चमक न हो तो उन्हें घुंघराला बनाकर पर्म लुक दे सकती हैं।
द बालों को थोड़े समय के लिए स्टाइल देने के लिए बालों में 6 वेल्प्रफो रोलर्स लगाया जा सकता है।

रूप को नहीं समर्पण को देखिए

रूप को नहीं समर्पण को देखिए



‘हया, आज मैंने एक रेस्टोरेंट में ऐसी महिला देखी, जो थी तो 30 की लेकिन लगती थी 18 की....’ रंजन जैकेट उतारते हुए बोला तो हया खीझ गई- ‘आते ही शुरू हो गए....? 30 की औरत 18 की दिख ही नहीं सकती कितना भी कुछ कर ले। मैं तो 28 की हूं लेकिन क्या 18 की लगती हूं?’
‘तुममें वह बात कहां है... वह अपील कहां है कि तुम 18 की लगोगी...’ कहकर रंजन चुप हो गया।
हया का अच्छा-खासा मूड ऑपफ हो गया। वह मन ही मन बुदबुदाई- ‘इस आदमी का दिमाग खराब हो गया है.... बाहर की औरतें कितनी भी उम्र की क्यों न हों, इसे कमसिन और युवा ही लगती हैं.... मेरी खूबसूरती तो इसे दिखती ही नहीं..’
तभी रंजन ने टोक दिया- ‘अब किन ख्यालों में डूब गई? जाकर खाना तो ले आओ।’
‘तारीपफ करो दूसरों की बीवियों की और तुम्हारी तिमारदारी मैं करूं.....?’
‘क्या कहा तुमने...? तुम्हें सारी सुख-सुविधएं मैंने मुहैया करा रखी हैं... किस बात की कमी रखी है कि तुम मेरा कहना नहीं मानोगी?’ रंजन के माथे पर यह कहते-कहते बल पड़ गए।
‘पिफर मुझमें क्या कमी है कि तुम पराई औरतों में खूबसूरती तलाशते पिफरते हो....? तुम्हारी बातें मेरा अच्छा खासा मूड खराब कर देती हैं....’ हया की आंखों में आंसू आ गए।
‘कोई औरत मुझे अच्छी लग गई तो आकर तुमको बता दिया तो कौन-सा गुनाह कर दिया? इसमें बुरा मानने की क्या बात है?’ रंजन ने यह कहते हुए हया के कंध्े पर हाथ रख दिया।
‘कंघे से हटाओ हाथ.... झूठा प्यार दिखाने की जरूरत नहीं....’ हया ने यह कहकर अपना कंध खींच लिया।
‘तुम्हें मेरा प्यार झूठा लग रहा है?’
‘और नहीं तो क्या.... बाहर की खूबसूरती देखने का ही तो यह नतीजा है कि घर आते-जाते तुम्हें मुझसे अरुचि सी हो जाती है या पिफर मैं तुम्हें ओल्ड दिखने लगती हूं...। बिस्तर पर गलती से भी तुममें गर्माहट नाम की चीज कभी नजर आई है... ठंडे आदमी....’
‘मैं ठंडा आदमी हूं....?’ कहते-कहते रंजन के होंठ सूख गए। आंखों में गुस्सा भर गया।
ईश्वर ने सब कुछ दिया है। हया की सर्विस अच्छी है। रंजन का जॉब अच्छा है। घर में आध्ुनिक सुख-सुविधएं हैं। दोनों के पास गाड़ी है। अपना मकान है। ऐसी बात भी नहीं कि हया बदसूरत है। लेकिन पिफर भी रंजन और हया के बीच प्यार की गर्माहट नहीं है। आज अध्किांश दंपतियों का यही हाल है। सारी सुख-सुविधएं हैं, लेकिन आपस में कोई तालमेल नहीं है। ‘अपनी-अपनी डपफली अपना-अपना राग’ वाली कहावत उनके जीवन पर लागू है।
जीवन को जितना ही आसान और सुगम बनाया जा सकता है उतना ही बनाने की कोशिश होनी चाहिए, नहीं तो दांपत्य जीवन उलझ कर रह जाता है, जो बाद में सुलझाने पर भी सुलझ नहीं पाता।
पुरुष में एक अवगुण होता है। उसे हर हाल में परायी स्त्राी अच्छी लगती है। भले ही वह उसकी पत्नी से बदसूरत ही क्यों न हो। जो पुरुष चतुर और समझदार होते हैं, वे पत्नी को अपने इस अवगुण से अवगत नहीं होने देते हैं और यह कभी नहीं बताते कि पफलां औरत उन्हें अच्छी लगी या लगती है। रंजन पढ़ा-लिखा तो है पर एक समझदार पुरुष नहीं है। उसे युग-बोध् नहीं है। कहां क्या बात कहनी चाहिए, इसका ज्ञान व्यक्ति को अवश्य ही होना चाहिए। इसका बोध् न होने पर व्यक्ति का जीवन बोझ बन जाता है।
रंजन का जीवन उसके लिए बोझ ही तो बन गया है, साथ ही उसने हया के जीवन को भी नरक बना दिया है। हया ऑपिफस से आने के बाद उसके लिए किचन में जाकर खाना बनाती है। उसके लिए सजती-संवरती है। रातें हसीन होने के सपने देखती है और रंजन जब घर आता है तो उसके सारे सपने टूट जाते हैं। यह एक दिन की नहीं, बल्कि रोज की ही बात है। घर में घुसते ही रंजन शुरू हो जाता है- ‘आज मैंने एक ऐसी औरत देखी कि मेरे होश उड़ गए। बला की खूबसूरत थी। उसमें गजब की सेक्स अपील थी....’
इस तरह की बातें रंजन को इतना उत्तेजित कर देती हैं कि हया को देखकर उसमें उत्तेजना उत्पन्न ही नहीं होती और सेक्स में सारा खेल उत्तेजना का ही तो है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जो पुरुष दिनभर दूसरी औरतों को घूर-घूर कर देखते हैं.... मन ही मन उनके साथ सहवास करते हैं या आंखों से देख-देखकर उनके साथ रातें हसीन करने की कल्पना करते हैं, वे रियल लाइपफ में पत्नी को देखकर जल्दी या आसानी से उत्तेजित नहीं हो पाते हैं। उनमें यौन-ठंडापन आ जाता है और ऐसा होना स्वाभाविक है। यह सच भी है, व्यक्ति जब दिन भर में कई औरतों को ध्यान से निहारता है तब उसके मनो-मस्तिष्क में अपनी पत्नी को लेकर एक सवाल खड़ा हो जाता है कि उसकी पत्नी में इन तमाम औरतों के गुण और सौंदर्य क्यों नहीं हैं? यानी वह अपनी पत्नी में अनेक औरतों के गुण-सौंदर्य को एक साथ देखना चाहता है और जब घर पहुंचकर उसे पत्नी में ऐसा कुछ नजर नहीं आता है तो उसे पत्नी बेकार सी लगने लगती है। अनेक औरतों के गुण-सौंदर्य को किसी एक औरत में पिरोना कुदरत के हाथ में जब नहीं है तो पिफर ऐसी कल्पना व्यक्ति क्यों करता है?
यही बात तो समझने वाली है। आज अध्किांश पुरुष या पिफर स्त्रिायां भी इस मनोरोग से पीड़ित हैं। ज्यादातर घरों में यह कहते सुना जा सकता है कि मेरी तो किस्मत ही पफूट गई थी कि तुम जैसे गए गुजरे व्यक्ति से शादी हो गई। तुमसे अच्छा तो मेरी सहेली का पति है या पफलां पड़ोसन का पति है।
ऐसे शब्द दांपत्य को दीमक की तरह चाट जाते हैं। सेक्स तो दूर की बात है, दंपतियों में बातचीत भी नहीं हो पाती है। आज गुप्त रोग से पीड़ित अध्किांश स्त्राी-पुरुष इस कारण से भी हैं, जो शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार रहते हैं। उन्हें दवा की नहीं, ज्ञान की जरूरत है। वे पहले तो अपने आप को पहचानें, पिफर विवाह को समझें, इसके बाद विवाह क्यों हुआ है इस रहस्य को जानें। विवाह स्त्राी-पुरुष का होता है यौनानंद के लिए और जब तक स्त्राी-पुरुष खुशी-खुशी एक-दूसरे के करीब नहीं आते तब तक विवाह का मकसद पूरा नहीं हो पाता है। अपने विवाह को सपफल बनाने के लिए आवश्यक है कि पुरुष एक पति होने का र्ध्म निभाते हुए अपनी पत्नी को ही सर्वाध्कि अच्छा इंसान मानें। एक कर्तव्यनिष्ठ पति का ही सेक्स जीवन सुखद एवं आरोग्य होता है। पत्नी कितनी सुन्दर है इसका बोध् तब होता है जब पति का रवैया उसके प्रति याराना होता है।पत्नी कोई चीज नहीं कि घर आकर रंजन की तरह उसकी तुलना बाहर की औरतों से की जाए। वह पति का ध्यान रखती है, खाने पर उसका इंतजार करती है, बच्चों की देखभाल करती है, उसके लिए सजती-संवरती है तो क्या आप को कहीं से भी ऐसा लगता है कि एक पत्नी से अध्कि खूबसूरत कोई दूसरी औरत हो सकती है? हरगिज नहीं। चमड़ी पर मत जाइए, भावनाओं और समर्पण पर जाइए। समर्पित पत्नी से अध्कि सुन्दर कोई दूसरी औरत हो ही नहीं सकती और पत्नी ऐसी हरकतों से पति के प्रति कभी भी समर्पित नहीं हो पाती। उसे आपकी तारीपफ की नहीं प्यार और समर्पण की जरूरत होती है और यही चीजें आपको उसे हर पल देनी है।
µराजेन्द्र पाण्डेय

मोती महल: उसके दिल में अजीब तरह की हलचल हो रही थी, जैसे तूफान के आने से पहले मासूम परिन्दे की हालत होती है।

मोती महल


रजिया बेगम ने नवाब वजीहत अली से शादी कर उनका कीमती महल बतौर मुंह दिखाई हासिल किया था। फिर अकस्मात नवाब की मृत्यु के बाद रजिया ने महल का एक हिस्सा बुरहानउद्दीन को बेच दिया। फिर उससे शादी कर ली। उसने उसे महल का वह हिस्सा मुंह दिखाई में दिया और फिर साल बाद बुरहानउद्दीन की मृत्यु हो गई। मगर वे दोनों मौतों का रहस्य मोती महल की दीवारों में ही दफन होकर रह गया...।


उन्नीसवीं सदी का लखनऊ। उन दिनों लखनऊ के सीने में दो दिल हुआ करते थे। एक तो अवध की अमीरजादी रजिया बीबी और दूसरा नवाब वजाहत अली का मोती महल।
उस रोज रजिया बीबी की मां बेगम नादिर ने एक खास जश्न का इंजताम किया था। शाम ढल चुकी थी और उनका दीवानखाना कार्बाइड के लैम्पों की रोशनी से जगमगा रहा था। अंदर हॉल मंे दीवार से दीवार तक बिछा कालीन और मखमल के गिलाफ चढे़ मसनद सब तरफ पसरे हुए थे। रेशमी परदों के साये हुए रंग रोशनी की किरणों से जगमगा रहे थे और कदावर गुलदानों के फूल हैरतजदा बच्चों की तरह बेगम नादिर को देख रहे थे।
बेगम नादिर ने इत्मीनान से दीवानखाना का जायजा लिया और फिर घड़ी की तरफ देखा। किसी भी लम्हे मेहमान आने शुरू हो जाएंगे। बेगम ने आबनूस के नेमत-खाना से एक मुर्दा परवाने को उंगली के टहोक से नीचे गिरा दिया, एक खाली जाम पर टपक पड़ा था। नेमत-खाना पर करीने से अंग्रेजी शराब की बोतलें और कीमती विलायती जाम चुने हुए थे।
बेगम नादिर ने सोचना शुरू किया। मेहमानों को किस तरतीब से बिठाया जाएगा। किसकी बीबी सिके शौहर के साथ और कौन सी कमसिन कली किस कुवारे के साथ...? क्योंकि उनके ख्याल के मुताबिक मियां-बीबी का ज्यादा साथ रहना दोनों के लिए बवाले-जान बन जाता है। इसलिए जरूरी है कि वक्त-वक्त पर एक दूसरे से जुदा कर दिए जाएं। यूं भी उन दोनों के मुर्दा गोश्त ताजा जिस्मों की कुरबत से जी उठते हैं। फिर उस वक्त तो मुर्दा गोश्त जिन्दा से ज्यादा महंगा और शराब खून से ज्यादा सस्ती थी। ऐसे वक्त में इतनी बड़ी दावत का इंतजाम आसान काम न था।
यह जश्न जरूरी भी था। बेगम नादिर की बड़ी बेटी रजिया बीवी ने मां-बाप की खुशी की खातिर पहले शौहर से तलाक लेकर दूसरा ब्याह रचाया था। समाज में इस अहम बात का ऐलान जरूरी था। इसके अलावा डॉक्टर नादिर ने यह जान लिया था कि उनकी बिना ब्याही बेटियां लखनऊ की नई सड़कों पर दिन दहाड़े अपना जोबन छिड़का करती हैं और उनकी हर अदा कहती है कि अब हमारी निगहेबानी किसी जवान मर्द से सुपुर्द होनी चाहिए। चुनांचे डॉक्टर नादिर ने अपनी बीवी को उन शरीफजादे के नाम बता दिए थे, जिनकी नजरंे-इनायत साहबजादियों पर है।
एक-एक करके मेहमान आने लगे और जरा-सी देर में दीवान-खाना की यह हालत हो गई कि गोया गुलशन में भंवरों और तितलियों की भीड़ लग गई हो। मेजबानों ने बातों-बातों में मेहमान मर्दों और औरतों को इस तरह से बांट दिया कि हर एक ने एक नए फूल की महक और एक नई आरजू की खनक महसूस की।
उसी वक्त गलियारे का दरवाजा खुला और अपने नए शौहर नवाब वजाहत अली के हाथ में हाथ लिए दुल्हन दीवान-खाना में दाखिल हुई। इनकी इज्जत-अफजाई के लिए सब उठ खड़े हुए। फिर हर तरफ से मुबारक-सलामत की आवाजें बुलंद हुई। धड़कते दिलों के साथ मर्दों की नजरें नई-नवेली दुल्हन रजिया पर जम गई, जिसका बेपनाह हुस्न उन पर कयामत बन कर टूटा था।
रजिया बहुत खूबसूरत थी। उसका रंग इतना साफा कि सीने से गले तक और माथे से गालों तक अंगारे दहक रहे थे। उनकी हिरणी जैसी बड़ी-बड़ी काली आंखों के ऊपर-नीचे बड़ी-बड़ी पलकों की झालरें पहरा दे रही थीं। कमर इतनी पतली थी कि दोनों हाथों में आ जाए। चेहरे की बनावट ऐसी दिलकश कि ना हंसे, मगर मुस्कराहट का शक हो। पतली-पतली लंबी उंगलियां, दरम्याना कद और जिस्मानी सुडौल देखकर लोग दंग रह गए।
जवानी उसके अंग-अंग से फूट पड़ रही थी, लेकिन रजिया की मिसाल उस भरी हटनी की थी, जिसे पाला मार गया हो। उस वक्त भी जब उसने अपनी जिंदगी के दूसरे अध्याय का एक नया शीर्षक कायम किया था। वह अपने पहले चाहने वाले को ना भूल सकी थी, जिसने पढ़ाई-लिखाई के जमाने में मोहब्बत में फंस गई और उसने बिना सोचे-समझे जमील से शादी कर ली, लेकिन जमील आजादी का परवाना था। वैसे भी यह शादी खानदान की रिवायतों के खिलाफ थी। उस घराने ने दो पुश्तों में तीन खान साहिबों और आधा दर्जन मनसबदारों को जन्म दिया था। यह पहला मौका था कि उनकी खानदानी रिवायतों में बदलाव आया हो।
चुनांचे उन्होंने इस बगावत को हरगिज माफ नहीं किया, मगर पहली मोहब्बत में इतनी कशिश होती है कि रजिया ने खानदान और समाज का विरोध सहन कर लिया। उसे शिकस्त तब हुई, जब जंग शुरू होते ही मलिक मोजअम की हुकूमत ने जमील को हिरासत में ले लिया। बेगम नादिर रजिया को घर ले आई। तीन साल बीत गए। जमील को जेल दमा हो गया, लेकिन वह समाजी अमन के लिए ऐसा खतरा बन चुका था कि उसे अब तक रिहाई ना मिल सकी थी, रफ्ता-रफ्ता मोहब्बत की गर्मी सर्द होने लगी। फिर खानदान ने हर तरह का दबाव डालकर रजिया को मजबूर कर दिया कि वह जमील से तलाक लेकर नवाज वजाहत अली से शादी कर ले। वह हार गई, उसने नवाब वजाहत अली से शादी कर ली।
वह मसनद पर निढाल पड़ी हुई, फीकी मुस्कराहट और झूठे दिल से मेहमानों की मुबारकबाद का शुक्रिया अदा कर रही थी। खादिम जामों से लबरेज शराब मेहमानों को पेश कर रहे थे। जिसमें मर्दों के कहकहे और औरतों की चीखें घुली-मिली थीं। उनके लिबासों की खुशबू फिजा का महका रही थी। मय-नोश का पहला दौर अपना काम कर चुका था। सबकी जुबानों और टांगों के बंधन खुल गए थे। बड़ी उम्र की औरतें एक तरफ सिर जोड़ कर बैठ गई और ठंडी आहंे भरते हुए अपनी बीती हुई जवानी की मस्त यादों में गुम हो गईं। जवान औरतों को घेरकर मर्द खड़े हो गए। उन औरतों के सुर्ख गालों और भीगे हांेठों पर उनकी नजरें गड़ी हुई थीं और औरतों कमसिन लड़कियों की तरह खिलखिला रही थीं।
गुफ्तुगू कई तरह की हो रही थीं, लेकिन घूम-फिर कर सबकी तान मोटापे पर टूटती थी। महसूस होता था कि मोटापा कोई बला है, जो समाज में तेजी से फैल रहा है और इसका कोई इलाज नहीं है।
बेगम नादिर ने अफसोस भरे लहजे में कहा, ‘‘मैं तो वर्जिश भी करती हूं। खाने में हर तरह की एहतियात रखती हूं, लेकिन मुआ जिस्म है कि हर साल फैलता ही जा रहा है।’’
मिसेज नोट वाला, जो किसी तरह भी भैंस से कम नहीं थी, शिकायती लहजे में बोली, ‘‘बहन, आपकी शिकायत बेजां है। हमारे मुकाबले में तो आपका जिस्म फूल है।’’
बेगम नादिर ने यूं ही हंसते हुए कहा, ‘‘आप मजाक कर रही हैं, नहीं तो मुझे बना रही हैं। नीचे से देखिये...चौड़ी पड़ गई हूं या नहीं?’’
बेगम नादिर ने यह बात इतने अपनेपन से और इतनी आहिस्ता से कही थी कि कोई मर्द इसे न सुने। लेकिन इत्तफाक से उसकी भनक सर दाऊद बख्श के कानों तक पहुंच गई। उन्होंने अपने गंजे सिर को झुकाकर बांकपन से कहा, ‘‘बेगम साहिब! मुझे यह कहने की इजाजत दें कि मैंने आप जैसी हसीन नहीं देखी।’’
सर दाऊद बख्श की उम्र पचास साल से लगभग होगी। उन डील-डौल इतना भारी-भरकम था कि अगर चारों हाथ-पांव से चलने लगते, तो यकीनन उस सांड का गुमान होता, जिस पर तस्वीरों में महादेव जी बैठे हुए होते हैं। चेहरे और सिर पर एक बाल न था...और उन पर घनी-घनी काली भवों ने यह कैफियत पैदा कर दी थी, गोया सुनसान और वीरान रेगिस्तान में काले कौए ने पंख फैला दिए हों।
बेगम नादिर को अचानक अखबारों की यह खबर याद आई कि सर दाऊद बख्श वायसराय की कौंसिल के मेम्बर हो सकते हैं। अब भी अगर वह चाहें, तो नई बस्ती की जमीन पर बहुत बड़ा हिस्सा उन्हें कोड़ियों के दामों में दिलवा सकते हैं। इन सब बातों का हिसाब लगाकर बेगम नादिर ने चालीस सावन से भरी अंगड़ाई ली और उनकी आंखों में ऐसी मस्ती आ गई, जो सचमुच काबिले-गौर थी।
बेगम नादिर ने मेहमान का बाजू थामकर कहा, ‘‘क्यों ना हो? आपकी दरियादिली तो मशहूर है।’’
बेगम नादिर उन्हें लिए हुए खाने के कमरे में चली गई, जहां सब लोग मेज के आसपास बैठ चुके थे। खाने के दौरान में सर दाऊद बख्श का पैर, जो किसी जाट के लठ से कम न था, बेगम नादिर के पैर से चिपक रहा। मर्दों की राज भरी सरगोशियों के जवाब में औरतें ‘उई, नोज’ कहती रहीं और निवालों एक साथ चलने से ‘चपड़-चपड़’ की आवाजें आती रहीं। मुर्ग, मछली और क्रीम के विभिन्न पकवानों को उन सबने डटकर खाया, जो अभी-अभी मोटापे का रोना रो रहे थे। उनके जिस्मों में चर्बी की नई तहें चढ़ गईं।
इस दौरान में किसी दूर-अंदेश ने बंगाल के अकाल का किस्सा छेड़ दिया था। इस किस्से में भूख से तड़पते हुए इंसानों के गिद्ध नोच-नोच कर खा रहे थे। लेकिन यह गुफ्तुगू अकाल के हालात से हमदर्दी नहीं कर रही थी, बल्कि गांधी बैंक के डायरेक्टर सेठ बालक राम से सम्बंधित थी कि किस तरह उन्होंने एक लाख मन चावल खरीद कर अपने गोदाम में बंद कर दिया और बाद में उसे चौगुनी कीमत पर बेच दिया। इस तरह उसने लाखों रुपये का मुनाफा कमाया।
‘‘कुछ वक्त और इंतजार करता तो ज्यादा दाम मिलते, मगर भूखों की पुकार सुनी न गई।’’ नजमा ने मुंह बना कर कहा, ‘‘कलकत्ता में यह क्रिसमस इतना बुरा गुजरा, जिधर देखो, भिखारी, भूखे और बीमार...। मुझे तो हर कदम पर उबकाई आ रही थी।’’
शराब के चार पैग पीकर नवाब वजाहत अली का सिर चकरा गया और उसने जानबूझकर या अंजाने में दुल्हन के बजाय उसकी छोटी बहन नजमा की कमर में हाथ डाल दिया था। नजमा दिल ही दिल मंे मुस्कराते हुए कनखियों से मिस्टर सईद आई.सी.एस. का अवलोकन कर रही थी, जो उसे काफी वक्त से चाहते थे, मगर शादी के नाम से कतराते थे। अपनी मां को सलाह पर नजमा ने अपने सारे दांव इस्तेमाल करने का फैसला कर लिया था। उसे देखकर यूं गुमान होता था कि उसकी जवानी नर्मदा नदी है, जो संगेमरमर की चट्टानों में उछल-कूद कर रही है।
नजमा की छोटी बहन का कोना अवध के नौजवान ताल्लुकदार अमजद शाह संभाले हुए थे। कांटे-छुरी का इस्तेमाल उनके लिए बरछी-भाले से कम मुश्किल न था और अभी उनके एक वार से मुर्ग की टांग को डाल कर मिस्टर नोट वाला की लंबी नाक तक पहुंचा दिया था। इस दावत में उनकी मौजूदगी की असल वजह यह थी कि वह दस लाख की जायदाद के इकलौते मालिक थे। बेगम नादिर ने यह सोचकर सलमा के पहलू में जगह दी थी कि दस लाख रुपये का वजन जहालत से कहीं ज्यादा है। अगर चूल बैठ गई तो खानदान के मुनीम का फर्ज बखूबी अंजाम दे सकेंगे।
अमजद शाह मिस्टर नोट वाला गजबनाक आंखों से नजरें चुराने लगे। वह अपनी हसीन हमसाया को उर्दू के किसी पुराने शायर का एक शेर सुनाने लगे। अमजद शाह को सैकड़ों शेर याद थे, जिनको वह अक्सर हसीनाओं को सुनाया करते। उनके मशहूर होने का दूसरा सबब यह था कि वह हसीनाओं को शक्कर की बोरियों और घी के टिनों के पार्सल भेजा करता था और औरतें इतनी हकीकत पसंद होती थीं कि उनको ऐसे तोहफे आशिकों के खून-ए-जिगर से ज्यादा भाते थे।
रजिया की आंखें यह सब देखती रहीं और उसे कोई हैरत न हुई। वह जानती थी कि उनकी रूहें सोने की सलाख से दाग दी गई हैं, लेकिन उसे अपनी रूह की खुदकशी पर रोना आया, जो एक बार जाग कर खानदान की कब्र में सो गई थी। उसने उस लम्हे अपने शौहर को कहते सुना, ‘‘मुझे डोरथी लामोर बेइंतहा पसंद है।’’
और वह समझ गई कि अगर पुराने जमाने की बीवी की हैसियत लौंडी की थी, तो इस जमाने की बीवी की हैसियत एक रखैल की है, जिसके शौहर की मोहब्बत का मरकज उसके बदन की थिरकन है।
नजमा कह रही थी, ‘‘डोरथी लामोर तो मुझे भी पसंद है।’’ और रजिया भांप गई कि नवाब वजाहत और नजमा के दरम्यान डोरथी लामोर की कल्पना कुटनी का काम कर रही है।
फिर उसने अपनी मां को देखा, जो बासी छार की तरह सर दाऊद बख्श से जबरदस्ती चिपकी हुई थी और उसकी ढीली रंगों में तनाव पैदा हो गया था। घृणा के कारण रजिया का मन विचलित होने लगा। जमील की दमा की बीमारी में भी कितनी शराफत थी, कितना प्यार था। उसकी रूह इतनी पाक थी कि खुद अपने उजाले से झुलस गई और अचानक जमील का यह जुमला उसके कानों में गूंजा।
‘‘रजिया! दुनिया इतने अर्से अंधेरे में रही है कि अब उसमें चमगादड़ की आदतें पैदा हो गई हैं। सूरज से उसे डर लगने लगा है और उजाला फैलाने वालों से उसे नफरत होती है’’, ‘‘लेकिन जिसके दिल में मोहब्बत की शमा जल रही हो क्या करें?’’
‘‘जमील! तुम सच कहते थे, लेकिन तुम अपनी रोशनी में खुद जल गए और तुझमें इतनी हिम्मत नहीं कि अंधेरे में तन्हा मशाल जला सकंू।’’ वह सोच रही थी।
अचानक वह सवाल उसके दिमाग में बिजली की तरह दौड़ गया कि जमील को दमा कैसे हुआ? वह खुद पर झुंझलाने लगी कि यह सवाल पहले क्यों न पूछा। ज्योत एक जुर्म बनकर किसी के फेफड़े में बैठ जाती है और किसी की गिरफ्त में नहीं आती। कैदखानों का दमा से सीधा ताल्लुक नहीं होता। कोई जरूरी नहीं कि हर कैदी दमा का मरीज बन जाए। मगर हर कैदी जमील भी नहीं होता, हर सीने में शमा नहीं जला करती।
खाना खत्म हो चुका था। शराब और कबाब का वजन उठाए हुए कुछ लोग दीवान-खाना में, कुछ चमन की सैर को और कुछ उस हाल की तरफ चले गए, जो वाच घर में बदल चुका था।
ग्रामोफोन ने टंेग्गो नाच का मधुर संगीत छेड़ा और एकाएक अमजद शाह ने शराब का जाम हवा में हिला कर उसी धुन पर तराना छोड़ाµ
‘‘दिल में जिगर...तन से बदन।’’ और कमरा तालियों से गूंजने लगा। नाचने वालों के बदन धीरे-धीरे मटकने लगे।
दीवान-खाना के एक गोशे में कुछ मर्द खड़े होकर सर दाऊद बख्श की जुबानी, वह किस्से सुन रह थे, जो ऐसी महफिलों में हाजमे के चूरन का काम करते हैं और जिन्हें औरतें दूर बैठ कर सुना करती हैं। चुनांचे व अलग बैठी जाहिरी तौर पर कपड़ों, गहनों और गैर-हाजिर औरतों का जिक्र कर रही थीं, लेकिन दरअसल उनके कान उन कहकहों की तरफ लगे हुए थे। फिर जब किस्सा खत्म होता, तो वे घोड़ियों की तरह कनपटियां तान कर अर्थपूर्ण अंदाज से मुस्कराने लगती थीं।
डॉक्टर नादिर रजिया को लेकर बाग में चले गए थे और उसके कान में कह रहे थे, ‘‘बेटी! अब तुम्हें अपनी तबीयत को नई जिंदगी के मुताबिक ढालना होगा।’’
रजिया ने चांदनी में से शख्स के अंदर झांकने की कोशिश की, जो उसका बाप था। मआजून की गोलियों में ज्यादा इस्तेमाल की वजह से उसका चेहरा फूल गया था और सांस में उसके अंदर का गरूर बसा हुआ था। बातें करते हुए वह बेताबी से उस कुंजी की तरफ देख रहा था, जहां मिसेज नोट वाला तन्हा बैठी हुई कुछ गुनगुना रही थी।
रजिया को महसूस हुआ कि वह अपने तबके के दूसरे लोगों की तह खुद भी एक मर्ज की गिरफ्त में है। वह मर्ज बेनाम है, लेकिन इसके खतरनाक होने में कोई शक नहीं। इसके बीमार यह भी नहीं जानते कि वे क्या जिन्दा हैं? और वक्त काटने के लिए नए-नए तरीके ढूंढ़ते हैं, वरना वक्त उन्हें काटने लगता है। जिस तरह निठल्ले बंदर एक-दूसरे की जुएं मारा करते हैं, इसी तरह वे दूसरों की हमदर्दी हासिल करने के लिए ख्याली बीमारियों का बखान करते हैं।
रजिया की इस बेनाम मर्ज की शिकार होने लगी थी, लेकिन किसी दूसरे तरीके से यह बीमारी जाहिर हुई थी। इस माहौल ने गोया उसे बर्फ के तले दबा दिया था। उसके दिल में हमेशा बर्फानी हवाएं चला करती थी और उसके हर रोम पर एक नामालूम बोझ था। उसके दिमाग में अतीत के निशान थे, जो उसे उठते-बैठते, सोेते-जागते याद दिलाते रहते थे कि तेरी जिंदगी व्यर्थ नष्ट हो रही है।
महकती हुई हवा कह रही थी कि बहार आ गई है और इसमें वे सरगोशियां समाई हुई थी, जो रात में गुनाहों पर शोक व्यक्त करती है। नाच घर में हंगामों, दीवान-खाना के कहकहों और चमन की सरगोशियों का एक ही मतलब था कि तमाम जानवर एक ही हालात की गिरफ्त में हैं।
पुलिस लाइन से आधी रात का घंटा बजा। स्टेशन से आखिरी रेल एक गहरा सांस भर कर कहीं चली गई। औरतें जम्भाई लेेने लगी। मुलजिमों ने बिखरी हुई चीजों को संभालना शुरू किया और आम के पेड़ से किसी परिन्दे ने एक नारा लगाया। इन सबका एक ही मतलब था कि महफिल बरखास्त हो जाए।
एक-एक कर सब उठने लगे और रजिया मेहमानों का शुक्रिया अदा करने के लिए अपने नए शौहर नवाब वजाहत अली के पास आकर खड़ी हो गई। उसके दिल में अजीब तरह की हलचल हो रही थी, जैसे तूफान के आने से पहले मासूम परिन्दे की हालत होती है।
सबके रूखसत होेने के बाद नवाब साहब की बग्घी आई और नवाब वजाहत अली रजिया जैसी परी को विदा कराके अपने आलीशान मोती महल में ले आए। नवाब साहब को रजिया इतनी भाई थी कि उन्होंने अपनी नई नवेली दुल्हन की मुंह दिखाई में मोती महल रजिया के नाम कर दिया था।
दरवाजा खटखटाते हुए शफ्फन मिर्जा को यकीन नहीं आ रहा था कि गोमती के किनारे स्थित यह आलीशान महल भी बेचा जा सकता है। मोती महल का शुमार लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में होता था, जिसने बड़े-बड़े इंकलाब देखे थे और उन नवाबों को अपनी चारदीवारी में पनाह दी थी किस्मत जिनका साथ छोड़ चुकी थी।
शफ्फन मिर्जा स्टेट एजेंट थे। उसे यह कारोबार विरासत में मिला था। अपनी अक्ल और ईमानदारी की बदौलत उसने बाप के छोड़े हुए इस छोटे कारोबार को इतना फैला दिया था कि कई मुलाजिम होने के बावजूद सिर खुजाने की फुरसत नहीं थी। इमारत और जायदाद के खरीद के सिलसिले में उसका नाम विश्वास की जमानत समझा जाता था। वे बड़े-बड़े रईस ऐसे मामलात में उससे मिला करते थे। छोटे-मोटे का उसके मुलाजिम ही अंजाम देते, लेकिन अमीर व रईस के मामले वह खुद निपटता था।
कल शाम की उसे मुलाजिम ने इत्तिला दी थी कि मोती महल की ऐतिहासिक इमारत का कुछ हिस्सा रजिया बेगम बेचना चाहती हैं। मोती महल के हवाले में उसने कई बार नवाब वजाहत अली का नाम सुना था। लगभग छः माह पहले एक दावत में उनसे मुलाकात भी हुई थी फिर यही मुलाकात आखिरी मुलाकात साबित हुई। क्योंकि उसके दूसरे रोज ही नवाब वजाहत अली जहरीले सांप के काटने से मर गए थे।
इसके बाद मोती महल के साथ रजिया बेगम का नाम सुना जाने लगा। मगर शफ्फन मिर्जा को रजिया बेगम से मिलने का गौरव प्राप्त नहीं हुआ था। उसका ख्याल था कि वह भी नवाब वजाहत अली की तरह पचपन-साठ साल के लपेटे में जरूर होगी। पिछले रोज जब उसे इत्तिला मिली कि रजिया चाहती है, तो उसके जेहन में एक धान-पादन की गवीली बूढ़ी महिला का खाका उभर आया और इस वक्त भी वह रजिया के बारे में ऐसी ही कल्पना किए हुए थे।
पहले तो मोती महल के बेचने की खबर सुनकर उसे हैरत हुई थी, मगर बाद में उसने इस ख्याल को जेहन से झटक दिया था। वह बहुत से अमीर व रईस को जानता था, जिनकी जाहिरी आन-बान और रख-रखाव तो कायम था, मगर अंदर से वे खोखले हो चुके थे। उनका बाल-बाल कर्ज में जकड़ा हुआ था। बहुत से नवाब कर्जा चुकाने के लिए अपनी पुश्तैनी जायदाद फरोख्त कर चुके थे। उसका ख्याल था कि नवाब वजाहत अली भी विरासत में मोती महल के साथ लाखों का कर्जा छोड़कर मरे होंगे और रजिया बेगम हवेली का कुछ हिस्सा बेचकर कर्जा चुकाना चाहती हैं।
शफ्फन मिर्जा को कछ वक्त इंतजार करना पड़ा, तब कहीं दरवाजा खुला और एक बूढ़े मुलाजिम का चेहरा दिखाई दिया।
‘‘आप जरूर शफ्फन मिर्जा हैं और बेगम साहिबा से मिलने आए हैं?’’ वह उसका ऊपर से नीचे तक जायजा लेते हुए बोला।
‘‘ठीक समझे। क्या इस वक्त बेगम साहिबा से मुलाकात हो सकती है?’’ शफ्फन मिर्जा बोले।
‘‘वह तो आप ही का इंतजार कर रही हैं।
तशरीफ लाइए।’’ मुलाजिम रास्ते से हट गया, ‘‘वह मोती महल का एक हिस्सा फरोख्त करना चाहती हैं। उनका ख्याल है कि यह लंबी-चौड़ी इमारत उनकी जरूरत से ज्यादा है। मगर मैं खूब समझता हूं कि वह महल का एक हिस्सा बेचकर नवाज साहब के कर्जे चुकाना चाहती हैं, लेकिन मैं आपको एक बात बता दूं। ज्यादा कमीशन की उम्मीद न रखिये। नवाब साहब के इंतकाल के बाद रजिया बेगम रुपये-पैसे के मामले में होशियार हो गई हैं।’’
‘‘बुढ़ापे में अक्सर लोग ऐसे मामलात में जरूरत से ज्यादा होशियार हो जाते हैं।’’ शफ्फन मिर्जा उसकी बातें से लुत्फ-अंदाज होते हुए बोले। वह बड़े लोगों के बारे में ज्यादातर मालूमात उनके मुलाजिम से हासिल किया करता था और रजिया बेगम का यह मुलाजिम कुछ ज्यादा ही बातूनी था।
‘‘बुढ़ापा?’’ मुलाजिम ने उसे घूरा, ‘‘आपके ख्याल में क्या उम्र होगी रजिया बेगम की?’’
‘‘जब नवाब वजाहत अली का इंतकाल हुआ, तो उनकी उम्र साठ साल के आसपास थी। इस हिसाब से रजिया बेगम पचास पचपन के दरम्यान होंगी।’’
शफ्फन मिर्जा ने जवाब दिया।
‘‘पचास-पचपन?’’ मुलाजिम ने हल्का सा कहकह लगाया, ‘‘अजी हजरत! उनकी उम्र पच्चीस से ज्यादा नहीं है। नवाब साहब चार साल पहले ही तो उन्हें कहीं से ब्याह कर लाए थे। मुंह दिखाई में यह हवेली दी थी। ऐसा सूरत पाई हैं रजिया बेगम ने कि नजरें चेहरे से चिपक कर रह जाएं। बला की मासूमियत है उसके रूख पर। चेहरे से उन्हें फरिश्ता कहा जा सकता है, लेकिन जहीन और चालाक इतनी कि बड़े-बड़े सियानों के कान कतरती हैं। मैं तो यह कहूंगा हुजूर कि बच कर रहियेगा।’’
‘‘मुझे रजिया बेगम के हुस्न व शबाब से क्या सरोकार?’’ शफ्फन मिर्जा ने उसे घूरा, ‘‘मै स्टेट एजेंट हूं। उन्होंने मुझे जायदाद की फरोख्त के लिए बुलाया है। सौदा तय कराकर अपनी कमीशन वसूल करूंगा और फिर मेरा ताल्लुक खत्म।’’
वे लंबा-चौड़ा गलियारा तय करके बरामदे में पहुंच गए। मुलाजिम ने उसे बिठाया और खुद अंदरूनी कमरे में गायब हो गया। शफ्फन मिर्जा को पहली बार मोती महल आने का इत्तेफाक हुआ था। वह लम्बे चौड़े कमरे का जायजा लेेने लगे। फर्श पर ईरानी कालीन बिछा हुआ था और उस पर कीमती फर्नीचर सजा हुआ था। कमरे की छत औंधे प्याले की तरह और बेहद बुलंद थी। दीवारों और छत पर पच्चीकारी का काम नजर आ रहा था। फानूस की रोशनी में छत पर लगे हुए शीशे के रंग-बिरंगे टुकड़े जरूर जगमगा उठते होंगे। एक दीवार पर नवाब वजाहत अली की बहुत बड़ी तस्वीर टंगी हुई थी। शफ्फन मिर्जा करीब पहुंचकर तस्वीर का जायजा लेने लगे। उसे बेशक किसी माहिर फनकार का अजीम शाहकार करार दिया जा सकता था।
लगभग आधे घंटे बाद मुलाजिम दोबारा कमरे में दाखिल हुआ, ‘‘आईये जनाब! रजिया बेगम अपने कमरे में आपका इंतजार कर रही हैं।’’
उसने अंदरूनी दरवाजे की तरफ इशारा किया। शफ्फन मिर्जा उठा और मुलाजिम के साथ चल दिया। वे विभिन्न कमरों और राहदारियों से होते हुए ऊपर की मंजिल पर पहुंच गए। एक कमरे में दरवाजे में दाखिल होते हुए शफ्फन मिर्जा जरा हिचकिचाया। फिर अंदर कदम रखते ही वह एक तरह रुक गया, जैसे जमीन ने पैर पकड़ लिए हों।
रजिया बेगम सामने की एक शाहाना कुर्सी पर अपने हुस्न के जलवे से जगमगा रही थी। मुलाजिम ने उसके बारे में जो कुछ कहा था, वह गलत नहीं था। उसे देखकर शफ्फन मिर्जा का लम्हे के लिए तो पलक झपकाना ही भूल गया था। हसीन व जमील चेहरा, चमकती हुई आंखें, मोटी-मोटी और रोशन-रोशन। जिन पर लंबी काली पलकें साया किए हुए थी। सुतवां नाक, गुलाबी होंठ, काली रेशमी जुल्फें, गुलाब से ज्यादा गुलाबी गाल और मरमर्री से हाथ। एक हाथ की लंबी उंगलियों में अंगूठियों के हीरे जगमगा रहे थे। उसने नजरें उठाकर देखा तो शफ्फन मिर्जा को सीने में अपना सांस रुकता हुआ महसूस होने लगा। उसको देखकर सचमुच किसी मासूम फरिश्ते का गुमान होता था।
उसे नवाब वजाहत अली की किस्मत पर बहुत अफसोस होने लगा, जो सिर्फ चार साल बाद ही उसे छोड़कर दूसरे जहां को सिधार गए थे।
‘‘आओ शफ्फन! तुम रुक क्यों गए?’’
कानों में अमृत-रस टपकती हुई आवाज सुनकर शफ्फन मिर्जा को होश आया। रजिया बेगम को होंठों की हरकत से उसे यूं महसूस हुआ था। जैसे गुलाब खिल उठे हैं। वह सम्मोहित-सा चलता हुआ एक कुर्सी पर बैठ गया। कुछ लम्हे बाद ही वह अपनी हालत पर काबू पा सका था। उसे याद आ गया था कि वह स्टेट एजेंट है और यह हुस्न के जलवों में खोने नहीं, बल्कि कारोबार के सिलसिले में आया है। रजिया बेगम उसे मोती महल के बारे में विस्तार से बता रही थी और उस हिस्से के बारे में खासतौर से बता रही थी, जिसे वह बेचना चाहती थी। इस दौरान में मुलाजिम ने उनके सामने अंग्रेजी लिपटन चाय रख दी। शफ्फन मिर्जा चाय की चुस्कियों के साथ हूं, हां, में रजिया बेगम की बातों का जवाब दे रहा था।
‘‘मेरा ख्याल है। अब मैं तुम्हें महल का वह हिस्सा दिखा दूं, जिसे मैं बेचना चाहती हूं।’’ रजिया बेगम ने उठते हुए कहा।
‘‘जी हां, जरूर।’’ शफ्फन मिर्जा ने चाय छोड़ दी।
वे कमरे से निकलकर राहदारी में आ गए और फिर ऊपर की ही मंजिल पर विभिन्न राहदारियों और कमरों में घूमते हुए बरामदे के उस हिस्से में आ गए, जो इमारत के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से मिलाता था। अगर इस बरामदे में दीवार उठा दी जाए तो दोनों हिस्से बिल्कुल अलग हो सकते थे। इमारत के इस दूसरे हिस्से में ऊपर आने-जाने के लिए एक अलग जीना मौजूद था। रजिया बेगम आगे-आगे चलती हुई उसे विभिन्न कमरों के बारे में बता रही थी, मगर शफ्फन मिर्जा का जेहन कुछ और ही सोच रहा था।
उसकी नजर रजिया बेगम के हुस्न पर गड़ी हुई थी।
रजिया बेगम एक कमरे में रुक गई। फर्श के टाइलें कहीं कहीं से उखड़ चुकी थीं। दीवारों का रंग-रौगन भी पुराना हो चुका था। इस कमरे की छत भी गुंबदनुमा थी, जिस पर पच्चीकारी नजर आ रही थी। कमरे का एक दरवाजा बॉलकनी में खुलता था, जहां से शाह बगफ, सिकंदर आग और कदम रसूल के इलाके नजर आ रहे थे।
वे दूसरे कमरे में आ गए। उसकी छत नीची थी। शफ्फन मिर्जा रजिया बेगम के साथ चलता हुआ छोटी-सी बॉलकनी में आ गया, जहां से गोमती नदी, किश्तियों का घाट और आयरन बुर्ज के दिलफरेब मंजर दिखाई दे रहे थे। रजिया बेगम मोती महल के इस हिस्से की तारीफ में जमीन-आसमान एक कर रही थी और शफ्फन मिर्जा को सिर्फ उसके हिलते हुए गुलाबी होंठ नजर आ रहे थे। रजिया बेगम निचले हिस्से में आ गई। वह एक-एक चीज के बारे में विस्तार से बता रही थी। आखिर में वे जीना तय करते हुए फिर ऊपर वाले कमरे में आ गए।
‘‘इमारत तुमने देख ली। क्या तुम अंदाजा लगा सकते हो कि हमें इसकी कितनी कीमत मिल जाएगी?’’ रजिया बेगम ने पूछा, मगर शफ्फन मिर्जा तो कहीं और ही खोया हुआ था। उसने रजिया बेगम की बात सुनी ही नहीं थी। उसकी नजरें निरंतर उसके चेहरे पर गड़ी हुई थीं।
‘‘हमने कीमत के बारे में पूछा था मिर्जा।’’ इस पर रजिया बेगम ने बेहद बुलंद आवाज में कहा। उसे यह समझते हुए देर नहीं लगी थी कि शफ्फन मिर्जा का जेहन इस वक्त किस उलझन में गिरफ्तार है। उसके होंठों पर दिलकश मुस्कराहट छा गई।
‘‘अनमोल।’’ शफ्फन मिर्जा बड़बड़ाया, ‘‘हुस्न की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती।’’
‘‘क्या मतलब, क्या कहना चाहते हो?’’ रजिया बेगम ने उसे घूरा।
‘‘मोती महल।’’ शफ्फन मिर्जा घबरा गया, ‘मैं माती महल के हुस्न की बात कर रहा हूं बेगम साहिबा।’’
रजिया बेगम के होंठों पर फिर वही मुस्कुराहट छा गई, ‘‘हां तो फिर तुम्हारे ख्याल में इसकी क्या कीमत लग सकती है?’’
‘‘देेखिये बेगम साहिबा।’’ शफ्फन मिर्जा अपने हवास पर काबू पाते हुए संभलकर बोला, ‘‘मैं इस वक्त यही सोच रहा था कि किस ग्राहक से इसकी क्या कीमत वसूल की जा सकती है। इमारत का यह हिस्सा बहुत खस्ता हालत में है। इसे मरम्मत करने में मोटी रकम खर्च हो जाएगी। लेकिन मेरा ख्याल है कि इस हाल में भी हमें दस लाख मिल सकते हैं।’’
‘‘दस लाख?’’ रजिया बेगम ने उसे घूरा, ‘‘यह तो बहुत कम हैं। मैं इसके कम से कम बीस लाख चाहती हूं।’’
‘‘इतनी बड़ी रकम में तो शायद कोई भी इसे खरीदने के लिए तैयार न हो। आप मोती महल का जो हिस्सा फरोख्त करना चाहती हैं। उसकी ...।’’
‘‘बात हालत की नहीं, इस इमारत के ऐतिहासिक महत्व की है।’’ रजिया बेगम ने उसे टोक दिया, ‘‘मोती महल के इतिहास से कौन परिचित नहीं है। इसके लिए तो बड़ी से बड़ी कीमत लगाई जा सकती है।’’
‘‘ठीक कहा आपने।’’ शफ्फन मिर्जा ने उसकी तरफ बगैर देखते हुए कहा, ‘‘लोग मोती महल को अंदर से देखने के लिए ख्वाब देखते हैं, लेकिन मेरा ख्याल है कि इस ख्याब की ताबीर बहुत महंगी है। कोई आम आदमी तो इसे खरीदने की कल्पना तक नहीं कर सकता। अमीरों और नवाबों की हालत से आप जरूर वाकिफ होंगी। इस शख्स किसी न किसी तरह अपनी साख कायम रखे हुए है। इतनी बड़ी रकम खर्च करने के लिए तो कोई शायद तैयार न हो।’’
कीमत को लेकर दोनों में बहस शुरू हो गई। आखिरी अंजाम पन्द्रह लाख पर बात तय हो गई। शफ्फन मिर्जा का ख्याल था कि अंग्रेजी टैक्स और ऊपर के खर्चे मिलाकर खरीदने वाले को मोती महल का यह हिस्सा लगभग अट्ठारह लाख में पडे़गा। उसके ख्याल में यह सौदा महंगा नहीं था। इस सौदे में उसे भी तकरीबन डेढ़ लाख कमीशन मिलने की संभावना थी।
दूसरे ही रोज शफ्फन मिर्जा ने अपने खास कारिन्दों के जरिये अमीरों व नवाबों के इलाके में मोती महल के एक हिस्से की फरोख्त की चर्चा शुरू कर दी। लगभग एक हफ्ते बाद उसे एक शख्स मिल गया, जो इमारत खरीदने के लिए तैयार नजर आता था। वह अधेड़ उम्र का साहूकार था। गंजा सिर, पेट आगे की तरफ निकला हुआ। शफ्फन मिर्जा उसे लेकर उसी रोज मोती महल पहुंच गया।
रजिया बेगम ने उसे देखकर नाक-भौं चढ़ाई, मगर महल का वह हिस्सा दिखाने में कोई एतराज नहीं किया। इमारत देखने के बाद जब सौदे की बात की तो ममाला बारह लाख पर आकर रुक गया, मगर शफ्फन मिर्जा ने उसे किसी न किसी तरह पन्द्रह लाख पर राजी कर लिया।
दूसरे रोज शफ्फन मिर्जा अभी सो रहा था कि बीवी ने उसे झंझोड़ कर जगा दिया। उसने आंखें मलते हुए कहा, ‘‘क्या बात है? क्यों इस तरह बदहवास हो रही हो?’’
‘‘वह कोई रजिया बेगम का मुलाजिम है। कह रहा है कि रजिया बेगम ने बुलाया है। वह तुमसे कुछ बात करना चाहती है।’’ बीवी ने उसे घूरते हुए रुक-रुक कर कहा।
शफ्फन मिर्जा की नींद अचानक गायब हो गई। वह लपक कर तैयार हुआ और दौड़ता हुआ मोती महल पहुंच गया। रजिया बेगम से मुलाकात हुई तो रजिया बेगम की आवाज कानों के जरिये दिल की गहराइयों से उतरती महसूस हो रही थी। वह अपने आपको हवा में उड़ता हुआ महसूस करने लगा, लेकिन फिर एकदम जैसे होश में आ गया।
‘‘क्या कहा...? बीस लाख...।’’ वह बदहवास-सा होकर बोला, ‘‘यह कैसे हो सकता है? हम तो उसने पन्द्रह लाख में सौदा तय कर चुके हैं।’’
‘‘देखो शफ्फन! यह कारोबार है, जिसमें उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। कल मोती महल की कीमत पन्द्रह लाख थी, लेकिन आज बीस लाख से कम बात नहीं होगी। यह आखिरी कीमत है।‘‘ रजिया की आवाज गूंजी।
‘‘लेकिन वह सौदे को खत्म कर देगा।’’ शफ्फन मिर्जा ने जवाब दिया।
‘‘कोई बात नहीं। कोई और ग्राहक तलाश कर लो।’’
‘‘बहुत मुश्किल है। इतनी कीमत पर शायद कोई भी राजी न हो।’’
‘‘तुम निरे गाउदी हो।’’ रजिया बेगम ने हल्का-सा कहकहा लगाया, ‘‘कोशिश करो। तुम नाकामी नहीं होगी।’’
अगर कोई और उसे ‘गाउदी’ कहा तो शफ्फन मिर्जा मरने-मारने पर तुला जाता। मगर वह लफ्ज रजिया बेगम के मुंह से निकला था, जो उसे बड़ा प्यारा लगा था। वह गहरी सांस लेते हुए बोला, ‘‘मैं कोशिश करूंगा, मगर इसके लिए कुछ रोज इंतजार करना पड़ेगा।’’
‘‘कोई बात नहीं। मैं इंतजार कर लूंगी।’’ रजिया बेगम ने कहा।
शफ्फन मिर्जा मरे-मरे कदमों से मोती महल से बाहर निकला और सीधा उसी साहूकार के पास पहुंच गया और उसे रजिया बेगम की नई मांग से आगाह किया। मगर वह तयशुदा कीमत से एक पाई ज्यादा अदा न करने के लिए तैयार नहीं था। इस तरह वह मामला यही खत्म हो गया।
शफ्फन मिर्जा ने एक बार फिर ग्राहक की तलाश शुरू कर दी। पन्द्रह-बीस रोज गुजर गए। वह जिस ग्राहक को भी ले जाता, रजिया बेगम उसे लौटा देती। कभी बात कीमत पर अटक जाती और कभी आने वाले की शख्सियत को नापसंद करके मामला टाल दिया जाता। शफ्फन मिर्जा को भागदौड़ तो खूब करनी पड़ रही थी, लेकिन इसका इतना फायदा जरूर हुआ कि उसे रजिया बेगम के करीब होने का मौका मिला गया। अब वे बेतकल्लुफी से एक-दूसरे को मुखातिब करते।
शफ्फन मिर्जा आंखों के रास्ते उसे दिल में उताने की कोशिश कर रहे थे। वह रजिया बेगम से कुछ हद तक जज्बाती लगाव महसूस करने लगा था। उस पर खुद-फरमोशी की सी कैफियत छाने लगी थी। बीवी उसकी इस हालत से परेशान हो गई। घर पर जब रजिया बेगम का खादिम आता और उसे पैगाम देकर चला जाता, तब कुछ ही देर में मियां-बीवी का झगड़ा शुरू हो जाता। एक-दो बार तो बीवी ने मायके चले जाने की धमकी भी दे डाली थी, मगर शफ्फन मिर्जा को भला ऐसी धमकियों की परवाह कब थी। उसके दिलो-दिमाग में तो रजिया बेगम छाई हुई थी। वह बीवी को रोता छोड़ घर से निकल जाता और अक्सर सोचता-काश! उसके पास बीस लाख रुपये होते, तो वह ग्राहकों के पीछे मारा-मारा फिरने के लिए बजाए मोती महल का वह हिस्सा खुद खरीद लेता। इस तरह रजिया बेगम की परेशानी खत्म हो जाती और रजिया बेगम के ज्यादा करीब होने का मौका मिल जाता।
लगभग एक माह बाद एक दावत में शफ्फन मिर्जा मिर्जा की मुलाकात कानपुर के एक ऐसे रईस से हो गई, जो लखनऊ में कोई ऐतिहासिक इमारत खरीदना चाहता था। वह तीस-बत्तीस साल का एक सेहतमंद नौजवान था। उसका कारोबार पूरे हिन्दोस्तां में फैला हुआ था। शफ्फन मिर्जा को तो ऐसे ही आदमी की तलाश थी। उसने फौरन ही मोती महल का जिक्र छेड़ दिया।
दूसरे रोज सुबह ही वह बुरहानउद्दीन नामी उस शख्स को मोती महल दिखाने के लिए ले गया। रजिया बेगम ने उस खूबसूरत जवान का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया और महल दिखाने के लिए खुद उसके साथ चल पड़ी। निचली मंजिल से होते हुए वे ऊपर की मंजिल पर पहुंच गए। विभिन्न कमरो में घूमते हुए वह उस कमरे में रुक गया, जिसकी बॉलकनी गोमती नदी की तरफ थी।
शफ्फन मिर्जा भी कमरे में रुक गया और रजिया बेगम बुरहानउद्दीन को बाहरी मंजर दिखाने के लिए बॉलकनी पर ले गई। वह उसे बता रही थी कि शाम के वक्त सूरज डूबने से जरा पहले दरिया का मंजर किस कदर हसीन और दिलफरेब होता है। शफ्फन मिर्जा कमरे में खड़ा उनकी बातों की आवाजें सुन रहा था। फिर उसने बॉलकनी की तरफ जाने के लिए जैसे ही कदम उठाया, वैसे ही उस तरह रुक गया। जैसे जिस्म बेजान होकर रह गया हो। उसकी नजरें बॉलकनी की रेलिंग पर थीं, जहां रजिया बेगम और बुरहानउद्दीन ने हाथ टिका रखे थे।
बुरहानउद्दीन का हाथ आहिस्ता-आहिस्ता बाएं तरफ सरक रहा था। फिर देखते ही देखते रजिया बेगम का नाजुक-सा हाथ उसके भारी-भरकम हाथ के नीचे छुप गया। बुरहानउद्दीन की उंगली में अंगूठी का हीरा चमका और शफ्फन मिर्जा को यूं महसूस हुआ कि जैसे आंखों की रोशनी चली गई हो। उसे यह देखकर बेहद दुख हुआ था कि रजिया बेगम ने बुरहानउद्दीन का हाथ हटाने की कोशिश नहीं की थी।
कुछ देर बाद वे दोनों भी कमरे में आ गए और फिर इमारत के उस हिस्से से निकलकर दीवान-खाना में आ गए। चाय के दौरान सौदे की बात होने लगी। बुरहानउद्दीन ने पंद्रह लाख की पेशकश की, जिसे मामूली-सी हिचकिचाहट के बाद रजिया बेगम ने कबूल कर लिया। शफ्फन मिर्जा को इस पर हैरत भी हुई थी। रजिया बेगम ने पंद्रह लाख वाले कई ग्राहक लौटा दिये थे। जब वह बुरहानउद्दीन के साथ मोती महल से निकला तो उसका दिल बुझा-बुझा सा था।
दूसरे रोज सुबह सवेरे ही रजिया बेगम का मुलाजिम आ गया। उसने शफ्फन मिर्जा को मोती महल बुलाया था। वह आदत के मुताबिक बीवी को बकता-झिकता छोड़कर नाश्ता किए बगैर घर से निकल गया। जब वह मोती महल पहुंचा, तो रजिया बेगम अपने कमरे में उसका इंतजार कर रही थी। शफ्फन मिर्जा की आंखों में आज वह चमक नहीं थी, जो रजिया बेगम को देखकर पैदा हो जाती थी। कुछ रस्मी जुमलों के तबादले के बाद वह फौरन असल बात पर आ गया।
‘‘बुरहानउद्दीन कुछ देर बाद यहां आने वाले हैं। मैं सोच रहा हूं कि आज ही कागजात तैयार कराकर इस सौदे को आखिरी रूप दे दिया जाए।’’ शफ्फन मिर्जा बोला।
‘‘अभी नहीं।’’ रजिया बेगम के होंठों पर फिर वही दिलफरेब मुस्कुराहट छा गई, ‘‘मुझे पंद्रह लाख कम लग रहे हैं। मेरा ख्याल है, हमें बीस लाख में सौदा करना चाहिये।’’
‘‘क्या?’’ शफ्फन मिर्जा बुरी तरह चौंक गया, ‘‘लेकिन पंद्रह लाख में सौदा तय हो चुका है। अगर हम ज्यादा रकम की बात करेंगे, तो वह इंकार कर देगा।’’
‘‘तुम सचमुच गाउदी हो।’’ रजिया बेगम ने दिलफरेब मुस्कराहट के साथ कहा, ‘‘लोहे पर चोट उस वक्त मारनी चाहिए, जब वह खूब गरम हो।’’
आज शफ्फन मिर्जा को रजिया बेगम के मुंह से निकलने वाला यह लफ्ज ‘गाउदी’ बहुत बुरा लगा, लेकिन वह बर्दाश्त कर गया। उसके जेहन में कल शाम वाला मंजर घूम गया। जब बॉलकनी में खड़े हुए बुरहानउद्दीन ने रजिया बेगम के हाथ पर हाथ रखा था और रजिया बेगम ने कोई एतराज नहीं किया था। यह अमल अगरचे कुछ लम्हों से ज्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन शफ्फन मिर्जा को यह समझने में देर नहीं लगी कि रजिया बेगम उन लम्हों की पूरी-पूरी कीमत वसूल करना चाहती थी और उसे यकीन था कि बुरहानउद्दीन उसका नया सौदा ठुकरा नहीं सकेगा। उसके लिए बीस लाख की कोई हैसियत नहीं थी।
शफ्फन मिर्जा का दिमाग सुलग उठा। ईर्ष्या व प्रतिद्वन्द्विता की भावना ने उसके सीने में आग लगा दी। उसका चीखने का दिल कर रहा था, मगर वह बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त किए बैठा रहा। लगभग एक घंटे बाद बुरहानउद्दीन भी पहुंच गया। शफ्फन मिर्जा का यह ख्याल ठीक निकला। रजिया बेगम ने पंद्रह लाख की जगह बीस लाख की बात की, तो वह सिर्फ मुस्कुराने लगा और फिर उस रोज मोती महल के उस हिस्से का सौदा बीस लाख में तय हो गया।
इस बात को लगभग एक साल बीत गया। इस दौरान में शफ्फन मिर्जा ने यह खबर बड़े अफसोस के साथ सुनी थी कि रजिया बेगम ने बुरहानउद्दीन से शादी कर ली। वह दिल ही दिल में ताव खाकर रह गया।
एक रोज शफ्फन मिर्जा अपने दफ्तर में बैठा था कि रजिया बेगम का वही बूढ़ा मुलाजिम पहुंच गया।
‘‘अरे खैरियत! तुम कैस आए?’’ शफ्फन मिर्जा ने पूछा।
‘‘आपको बेगम साहिबा ने याद फरमाया है। आज ही मिल लीजिये।’’ वह बोला।
‘‘और वह बुरहानउद्दीन?’’ शफ्फन मिर्जा के मुंह से बेइख्तियार निकल गया।
‘‘आपको शायद मालूम नहीं। शादी के फौरन बाद ही बुरहानउद्दीन ने मोती महल का खरीदा हुआ वह हिस्सा रजिया बेगम को मुंह दिखाई में दे दिया था। कुछ माह पहले की बात है बुरहानउद्दीन अचानक महल की ऊपरी मंजिल से नीचे गिर पड़े। यह हादसा उनकी मौत का सबब बन गया। बेचारी रजिया बेगम का दुख देखा नहीं जाता। अब इतने बड़े महल में वह तन्हा नहीं रह सकती। इसलिए रजिया बेगम महल का वह हिस्सा दोबारा फरोख्त करना चाहती है। आपको इसीलिए बुलाया है। कोई अच्छा-सा ग्राहक तलाश करने के लिए।’’
शफ्फन मिर्जा का दिमाग भक से उड़ गया। वह भयभीत नजरों से रजिया बेगम के बूढ़े मुलाजिम की तरफ देखने लगा, जिसके होंठों पर अर्थपूर्ण मुस्कुराहट थी।


इच्छाधारी नागिन

इच्छाधारी नागिन


खानदान का सबसे लम्बा दौर था। वह युग पूरी उन्नति पर था, जो अकबर से आलमगीर तक फैला हुआ था। शाहजहां के शासन काल को इस दृष्टि से अधिक महत्व प्राप्त है, क्योंकि सबसे अधिक शानदार तथा यादगार निर्माण उसी दौर में हुए थे। उसके शासन काल में देश में प्रायः शान्ति थी। जनता खुशहाल थी तथ उसके बुद्धिमान व योग्य गर्वनर देश के सारे प्रदेशों में पूरी योग्यता के कथा प्रबंध संभाले हुए थे।
उसी शासन काल में कश्मीर प्रदेश का गवर्नर शाहजहां के दरबार का प्रसिद्ध अली मरदान खान था। वह बड़ी योग्यता व क्षमता का मालिक तथा बहुत अनुभवी व्यक्ति था। उसकी बुद्धिमानी का लोहा मुगल दरबार के सभी लोग मानते थे। उसने कश्मीर के गवर्नर का पदभार संभालते हुए प्रदेश को उन्नति के शिखर पर पहंुचा दिया था कि एक दिन देश का वह भाग स्वर्ग प्रतीत होने लगा। कश्मीर अब तक मुगल सम्राट की सैर व तफरीह का मुख्य केंद्र बन चुका था। देश के हर प्रांत से सम्मानित लोग यहां खिंचे चाले आते थे। गवर्नर अली मरदान का सबसे बड़ा शौक शिकार करने का था। उसे जब भी व्यस्तता से मुक्ति मिलती, तो वह अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर शिकार के उद्देश्य से जंगल की ओर निकल पड़ता और कुछ रोज सैर व तफरीह में गुजारने के बाद लौट आता।
इसी तरह वह एक दिन शिकार की खोज में अपने साथियों के संग आगे बढ़ा जा रहा था कि उसे एक हिरन नजर आया। उसने अपने साथियों को पीछे छोड़ा तथा अपना घोड़ा उस हिरन के पीछे दौड़ा दिया।
अली मरदान खान उस हिरन के पीछे ही बढ़ता चला गया। उसने हर संभव कोशिश की, परंतु शिकार किसी भी तरह उसके निशाने पर नहीं आ रहा था। कुछ दूर पीछा करने के पश्चात सहसा हिरन उसकी दृष्टि से ओझल हो गया। अली मरदान खान ने उसे बहुत खोजा, किंतु हिरन तो इस तरह से गायब हो गया था कि जैसे जमीन ने निगल लिया हो। अली मरदान खान को बड़ी मायूसी का सामना करना पड़ा। अब उसके पास वापसी के अतिरिक्त अन्य विकल्प नहीं बचा था।
वापसी पर वह अभी कुछ दूर ही चला होगा कि उसे करीब से ही कोई आहट सुनाई दी। उसने रुककर ध्यानमग्न होकर सुना तो लगा कि कोई युवती दर्दनाक स्वर में रो रही है। वह अचरज में पड़ गया कि इस घने जंगल में कौन अपने भाग्य को रो रहा है। उसने आवाज की ओर घोड़ा मोड़ दिया। वह अभी कुछ दूर ही गया था कि सामने की ओर देखकर आश्चर्यचकित रह गया।
एक अत्यंत खूबसूरत नौजवान लड़की, जिसने शहजादियों जैसा कीमती लिबास पहना हुआ था तथा बहुमूल्य आभूषण धारण किये हुए थे, एक वृक्ष तले बैठी रोए जा रही थी। अली मरदान खान ने एक नजर में ही अनुमान लगा लिया था कि वह सुन्दरी कश्मीरी नहीं है, बल्कि किसी अन्य देश की रहने वाली है। वह लड़की इतनी खूबसूरत थी कि अली मरदान खान की आंखें चकाचौंध होकर रह गईं। उसने पहले कभी इतनी सुन्दर नवयौवना नहीं देखी थी, किन्तु उसे आश्चर्य इस बात पर था कि वह हसीना जंगल में कैसे पहंुची और यहां बैठी क्यों रो रही है। आखिर वह घोड़े से उतरा और पूछने लगा, ‘‘तुम कौन हो और क्यों रो रही हो?’’
‘‘क्या बताऊं? मेरी मुसीबत का किसी के पास इलाज नहीं हैं आपको बता भी दूं तो आप क्या करेंगें?’’ लड़की निरंतर रोते हुए बोली।
‘‘ऐसे रोने से मुसीबत टल तो नहीं जाएगी।’’ अली मरदान खान ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘मुझे अपने बारे में बताओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगा। मैं इस कश्मीर प्रदेश का गवर्नर हंू।’’
‘‘ओह।’’ लड़की के मुख से निकला। फिर उसने अपनी दास्तान सुनानी शुरू की, ‘‘मैं चीन के इलाका संकियांग के बादशाह की बेटी हंू। उनके बाद मुझे ही शासन चलाना था, लेकिन भाग्य का लिखा कौन मिटा सकता है। अभी पिछले दिनों पड़ोसी देश के क्रूर शासक ने हमारे देश पर हमला कर दिया। उसके साथ घमासान लड़ाई हुई और उस लड़ाई में बादशाह मारा गया और हमें हार का सामना करना पड़ा। मैं किसी तरह जान बचाने में सफल हो गई। फिर पनाह की तलाश में छुपती-छुपाती हुई इधर आ निकली।’’
‘‘अब तुम दुश्मनों की पहंुच से बाहर हो। तुम्हे घबराने की बिल्कुल ही जरूरत नहीं है।’’ अली मरदान खान ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘अब तुम चीन की सीमा से निकलकर हिंदुस्तान पहंुच गई हो। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हंू कि यहां तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहंुचा सकता। मैं यहां का गवर्नर हंू।’’
‘‘मगर...मगर।’’ लड़की ने निरंतर रोते हुए कहा, ‘‘मेरे मां-बाप अब इस दुनिया में नहीं रहे। मेरा सब कुछ लुट गया, मैं अकेली जिंदा रहकर क्या करूंगी?’’
‘‘मेरे साथ चलकर मेरे महल में रहो, वहां तुम हर प्रकार से सुरक्षित रहोगी। तुम्हें हर तरह का आराम उपलब्ध हो जाएगा।’’
‘‘आप बहुत रहमदिल इंसान हैं। आपकी हमदर्दी की मैं बहुत एहसानमंद हंू।’’ लड़की ने सिर झुकाते हुए कहा, ‘‘मगर महल मंे मेरी हैसियत क्या होगी?’’
अली मरदान खान सोच में पड़ गया। उसने कुछ क्षण बाद झिझकते हुए कहा, ‘‘अगर बुरा नहीं मानो तो मेरे दिल की बात सुन लो। मुझे तुम्हें अपनी मलिका बनाने की तमन्ना है। इस तरह तुम्हारी हैसियत बुलंद हो जाएगी।’’
‘‘आपकी हमदर्दी को देखकर मैं इंकार भी नहीं कर सकती।’’ लड़की ने शर्माते हुए गर्दन झुका ली।
उसकी सहमति देखकर अली मरदान खान ने लड़की को अपने साथ घोड़े पर पीछे बिठाया और वापसी में उसने अपने मित्रों को लड़की की दर्दनाक दास्तान सुनाई तथा उसने उस लड़की से विवाह करने के निणर्य से अवगत भी कराया। सभी ने उसके फैसले पर मुबारकबाद दी।
शादी की खुशी और मौज-मस्ती के जश्न के हंगामों के खत्म होने के कुछ दिन पश्चात एक रोज अली मरदान खान की पत्नी ने उससे कहा, ‘‘मेरे सरताज! आपको पाकर मेरा दिल खुशियों से भर पड़ा है, लेकिन एक तमन्ना अभी बाकी है, अगर उसे पूरा करने का वादा करें तो कहंू?’’
‘‘अब तो मेरी जिंदगी का मकसद है कि मैं सारी उम्र तुम्हारे दामन को दुनिया भर की खुशियों से भरता रहंू। तुम मेरी दिलनशाीं महबूबा हो। एक बार कहकर तो देखो।’’ उसने जोश में कहा।
‘‘मुझे यह डल झील बहुत अच्छी लगती है। मेरा दिल करता है कि मैं इसमें अपना अक्स देखती रहंू।’’ वह चहकती हुई बोली, ‘‘मेरी तमन्ना है कि इसके किनारे मेरे लिए एक महल बनवा दें, ताकि मैं उस महल के झरोखे में बैठकर झील के पानी में अपना अक्स देखा करूं।’’
वह खुश होकर उससे बोला, ‘‘बोला, ‘‘सचमुच तुम जितनी खूबसूरत हो, उतनी ही समझदार भी हो। चलो अब खुश हो जाओ। यह तमन्ना बहुत कम वक्त में पूरी हो जाएगी।’’
वह खुश होकर उससे लिपट गई।
अगले दिन ही अली मरदान खान ने अपने कुशल निर्माणाधिकारियों से परामर्श किया तथा उन्हें आलीशान महल बनाने का आदेश दे दिया। आदेश मिलते ही तुरंत निर्माण कार्य आरम्भ हो गया।
कुछ ही समय पश्चात कठिन मेहनत व कार्यकुशलता के कारण एक बहुत ही खूबसूरत महल तैयार हो गया। सफेद पत्थरों के महल के तीन और बड़े-बड़े बगीचे लगाए गए और चौथी तरफ डल झील में उस महल का प्रतिबिम्ब दिखाई देता था, जो किसी को भी मोहित कर देने के लिए काफी था।
हर प्रकार के प्रबंध के बाद अली मरदान खान अपनी चहेती बीवी को लेकर उस महल में रहने लगा। उसकी पत्नी ने अपने शयनकक्ष के लिए वही कमरे चुने, जो झरोखों से सटे हुए थे। अली मरदान खान की मोहब्बत उसके प्रति निरंतर बढ़ रही थी। वह उसकी हर तमन्ना पूरी करता था।
वे दोनों खुश थे, किंतु यह खुशी अधिक दिन टिक नहीं सकी। अचानक ही अली मरदान खान एक विचित्र रोग का शिकार हो गया। वह एक दिन प्रातः उठा तो उसने महसूस किया कि उसकी तबीयत बोझिल है। शरीर टूट रहा है और पेट में दर्द है। उसने इस रोग पर ध्यान नहीं दिया, मगर समय गुजरने के साथ-साथ रोग बढ़ता गया। शाम को शाही हकीम बुलाया गया। शाही हकीम ने कुछ दवाएं दीं, जिनका उपयोग तुरंत आरम्भ हो गया, परन्तु पेट की पीड़ा में कोई कमी नहीं आई। अगले दिन अन्य हकीमों तथा वैद्य को बुलाया गया। उन्होंने भी अपनी-अपनी समझ के अनुसार दवाएं दीं, मगर यह विचित्र प्रकार का रोग था कि कोई भी दवा उस पर प्रभाव नहीं कर रही थी। सबने मिलकर इलाज किया, किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। रोग अपनी जगह रहा। इस रोग के कारण अब स्थिति यह हो गई कि अली मरदान खान अपने कमरे में कैद हो गया।
वह इतना कमजोर हो गया था कि वह चलने फिरने की शक्ति भी नहीं जुटा पाता था। उसकी बीवी निरंतर हर समय उसके समीप रहती थी तथा हर प्रकार से उसकी देखभाल करती थी। अली मरदान खान बिस्तर पर लेटे-लेटे तथा कमरे में बंद रहने से तंग आ गया था।
एक दिन उसने अपने महल के बगीचे में कुछ देर सैर करने की इच्छा प्रकट की। कुछ दरबारियों ने उसे सहारा दिया और उसे उठाकर सैर कराने के लिए ले गए। वह दरबारियों के सहारे धीरे-धीरे चल रहा था कि सहसा एक पेड़ के नीचे लेटे व्यक्ति पर उसकी दृष्टि पड़ी। दरबारी उस अजनबी को इस प्रकार सोया देखकर आवेश से भर उठे, लेकिन अली मरदान बहुत रहमदिल इंसान था। विशेषकर वह साधु तथा पीर फकीरों की बहुत इज्जत करता था। भले ही वह किसी धर्म का हो।
सो उसने दरबारियों से कहा, ‘‘इसे कुछ मत कहना, वह साधु मालूम पड़ता है, बल्कि इसके लिए एक पलंग लाओ, जिस पर आरामदेह बिस्तर बिछाकर बहुत धीरे से इस साधु को उस पर लिटा दो, ताकि इसको आराम की नींद आ जाए।’’
गवर्नर के आदेश का तुरंत पालन हुआ। उसको पलंग पर लिटा दिया गया। दो घंटे पश्चात जब साधु की निंद्रा टूटी तो स्वयं को नरम बिस्तर पर देखकर अचरज में पड़ गया। अभी वह समझने की कोशिश कर रहा था कि शाही नौकर ने उसके करीब आकर कहा, ‘‘आप परेशान न हों। इस समय आप कश्मीर प्रदेश के गवर्नर अली मरदान खान के खास मेहमान हैं। वह आप से मिलने के इच्छुक हैं।’’
साधु ने इधर-उधर देखकर कुछ चिंतित होते हुए कहा, ‘‘किंतु मेरा पानी का घड़ा भी सुरक्षित है?’’
‘‘आप चिंता मत करें, आपका घड़ा सुरक्षित है।’’
‘‘अच्छा, फिर ठीक है।’’ साधु को संतोष हुआ तथा वह पलंग से उतरते हुए बोला, ‘‘क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप कौन हैं और यह जगह किसकी है?’’
‘‘मैं गवर्नर साहब का खादिम प्रताप हंू और यह महल गवर्नर साहब का है।’’
कुछ देर में वह साधु अली मरदान के सामने था।
‘‘आप कौन हैं और कहां रहते हैं?’’ गवर्नर अली ने पूछा।
‘‘मैं उस गुरुदेव का साधारण शिष्य हंू, जो यहां से कुछ दूर पूर्व दिशा की पहाड़ियों में रहते हैं। वह बहुत ज्ञानी-ध्यानी व्यक्ति हैं। उनके आदेश के अनुसार मेरा कर्तव्य है कि मैं एक पवित्र तालाब से अपने गुरुदेव के लिए जल का प्रबंध करूं। वह केवल उसी स्रोत का जल पीते हैं। वह पानी लाने के लिए मैं कभी-कभी वहां से गुजरता हंू।’’
‘‘ओह ! तो इस घड़े में वही पानी है, जो आपके साथ था?’’
‘‘हां जी, पिछली बार मैं यहां से गुजरा तो यह महल नहीं था। आज इधर आया तो इसे देखकर अचरज में पड़ गया। कुछ समय सुस्ताने के लिए मैं उस वृक्ष के नीचे लेटा गया था कि मुझे नींद आ गई।’’
‘‘क्या यह मुमकिन नहीं है कि कुछ वक्त के लिए आप यहां ठहर जाएं?’’ अली मरदान खान ने प्रार्थना की।
‘‘इसके लिए मैं विवश हंू, क्योंकि सो जाने के कारण पहले ही देर हो गई है। सांझ ढलने से पहले मैं वापस नहीं पहंुचा तो गुरुदेव चिंतित होंगे।’’
‘‘आप फिर कभी इधर से गुजरें तो दर्शन अवश्य दीजिएगा, मैं आपका आभारी रहंूगा।’’
‘‘ठीक है, अगर गुरुदेव से आज्ञा मिली तो अवश्य उपस्थित हो जाऊंगा।’’
‘‘अब मुझे आज्ञा दें। मैं आपकी मेहरबानी तथा कृपया का आभारी हंू।’’
अभी साधु कमरे से बाहर निकल ही रहा था कि सहसा मरदान अली खान के पेट में पीड़ा होने लगी। उसे दौरा पड़ा और वह तड़पने लगा। साधु ने रुककर उसको मुसीबत की हालत में देखा। उसके पूछने पर उसे पता चला कि गवर्नर किसी लाइलाज रोग से पीड़ित हैं, जिसके इलाज से सारे हकीम, वैद्य परेशान हो चुके हैं। इतना मालूम करके वह सोचता हुआ वहां से चल दिया।
अपने गुरुदेव के पास पहंुचकर साधु ने गवर्नर के महल, बगीचे, अली मरदान खान की मेहरबानी तथा मुलाकात का विवरण गुरुदेव को सुनाया। अली मरदान खान की मेहरबानी तथा कृपालु दृष्टि का मुख्यतः विवरण दिया तो गुरुदेव बहुत खुश हए, मगर जब उसने गवर्नर की लाइलाज बीमारी के बारे में बताया तो गुरुदेव ने कहा, ‘‘मुझे यह सुनकर अफसोस व दुख हुआ कि इतने अच्छे व्यक्ति को ऐसे भयंकर रोग ने जकड़ लिया है। कल ही तुम मुझे उसके पास ले चलो, ताकि देखें कि हम उसके लिए क्या कर सकते हैं।’’
अगले दिन ही गुरु शिष्य गवर्नर के महल में जा पहंुचे। अली मरदान खान अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था। साधु ने उससे अपने गुरुदेव का परिचय कराया तथा उनके आने का उद्देश्य बताया। इस पर उसने खुश होकर कहा, ‘‘यह मेरी खुशकिस्मती है कि गुरुदेव के दर्शन हो गए, अगर आप बुजुर्गों के आशीर्वाद से मुझे इस बीमारी से छुटकारा मिल जाए तो उम्र भर आप लोगों का एहसानमंद रहंूगा।’’
गुरुदेव ने बिना कोई क्षण गंवाए कहा, ‘‘मुझे अपना शरीर दिखाओ।’’ गवर्नर ने अपने तन के कपड़े उतारे ही थे कि गुरुदेव की दृष्टि उसके रोगग्रस्त शरीर पर पड़ी। फिर कुछ सोचकर पूछा, ‘‘क्या आपकी शादी अभी हुई है?’’
‘‘जी हां।’’ अली मरदान खान ने कहा। इसके बाद उसने चीनी शहजादी से हुई मुलाकात और उसकी मोहब्बत में गिरफ्तार होने का हाल सुना दिया।
‘‘मुझे आपकी पत्नी पर संदेह है।’’ गुरुदेव ने कहा, ‘‘इस संदेह की पुष्टि के लिए आपको एक काम करना होगा। आप ऐसा करें कि आज रात के खाने के लिए केवल खिचड़ी पकवाएं और उसके अधिक मात्रा में नमक डलवाकर अपनी पत्नी को खिलाएं। सोने से पहले अपने शयनकक्ष से सारा पानी हटवा दें और सारे खिड़की दरवाजों को बाहर से बंद करवा दें।’’
‘‘इससे क्या होगा?’’ मरदान खान ने पूछा।
‘‘यह आपको आज ही रात पता चला जाएगा।’’ गुरुदेव ने कहा, ‘‘लेकिन ध्यान रहे कि आपकी पत्नी को शक न होने पाए कि आप जाग रहे हैं। आप केवल उसकी गतिविधियों पर नजर रखें।’’
गुरुदेव के निर्देशानुसार अली मरदान खान ने रात के खाने के लिए खिचड़ी पकवाई और उसमें अधिक मात्रा में नमक डलवाया। इसके बाद उसने अपने हाथों से खिचड़ी को बड़े चाव से पत्नी को खिलाया। शयनकक्ष में सोने से पहले उसने सारा पानी बाहर फैंक दिया था और गुप्त रूप से नौकरों को निर्देश दे दिया था कि उनके सोने के पश्चात सारे खिड़की दरवाजे बाहर से बंद कर दिए जाएं। वह सो गए तो नौकरों ने चुपके से सारे खिड़की दरवाजे बाहर से बंद कर दिए।
अली मरदान खान जाग रहा था और धड़कते दिल से आने वाले समय की प्रतीक्षा कर रहा था। मध्य रात्रि के समय गवर्नर की बीवी की आंख खुल गई। उसे तेज प्यास लग रही थी, गला चटख रहा था, क्योंकि उसने बहुत अधिक नमक की खिचड़ी खाई थी। उसने शयनकक्ष में इधर-उधर पानी खोजा, किंतु वहां जल नहीं था। उसने शयनकक्ष का दरवाजा खोलने का प्रयत्न किया तो उसमें भी असफल रही। दरवाजा बाहर से बंद था। अब तो वह बहुत झंुझलाई, कुछ देर के लिए उसने कुछ सोचा तथा इस बीच अपने पति की ओर देखती रही।
फिर उसने उसे छूकर देखा, क्या उसका पति सचमुच सोया हुआ है। हर प्रकार से संतुष्ट होकर उसने धीरे-धीरे नागिन का रूप धारण कर लिया तथा खिड़की के मार्ग से नीचे झील में अपनी प्यास बुझाने चली गई। कुछ समय के पश्चात वह वापस आई और उसने मलिका का रूप धारण कर लिया तथा धीरे से अपने पति के करीब बिस्तर पर लेट गई।
अली मरदान खान गुरुदेव के निर्देशानुसार जाग रहा था तथा आंखों के झरोखों से अपनी बीवी की सारी गतिविधियां देख रहा था। फिर वे सारे दृश्य देखकर इतना भयभीत हुआ कि सारी रात सो नहीं सका। उसको सीने पर भारी बोझ-सा महसूस हुआ था कि जिसको उसने महबूबा की तरह चाहा था, वह एक नागिन थी, जो उसकी मलिका का रूप धारण करके उसके पास ही लेटी हुई थी। उसका मन कर रहा था कि तुरंत उससे अलग होकर बीवी को शक नहीं हो, इसलिए उसने चुपचाप रात गुजार दी।
अगली सुबह अली मरदान खान ने गुरुदेव को वह सब सुना दिया, जो कुछ उसकी नजरों के सामने से गुजरा था। पूरी बात सुनने के बाद गुरुदेव ने कहा, ‘‘श्रीमान जी, मैंने यह सब अपना संदेह प्रमाणित करने के लिए कराया था। अब तो आपको विश्वास हो गया होगा कि आपकी पत्नी स्त्री नहीं है, बल्कि लामिया अर्थात नागिन है।’’
‘‘लामिया नागिन...?’’
‘‘हां।’’ गुरुदेव ने स्पष्ट करते हुए कहा।
सांपों में यह क्रिया तब शुरू होती है, जब किसी सांप पर पूरे सौ वर्ष तक किसी मनुष्य की दृष्टि नहीं पड़े तो उसके सिर पर ताज निकल आता है। वह सांपों का सम्राट बन जाता है। फिर सौ साल इसी तरह गुजर जाएं कि उस पर किसी मनुष्य की दृष्टि नहीं पड़े तो उसके सीने व कमर में पांव निकल आते हैं। उसके मंुह से आग निकलने लगती है तथा वह अपनी इच्छा का स्वामी बन जाता है।
‘‘इस स्थिति के सौ वर्ष पश्चात किसी मानव की दृष्टि उस पर नहीं पड़े तो वह सांप लामिया बन जाता है। लामिया बन जाने के बाद सांप की असीम शक्ति व प्रभुता प्राप्त हो जाती है। यहां तक कि वह अपनी इच्छा के अनुसार रूप भी बदल सकता है। यह मात्र संयोग है कि वह असीम शक्ति प्राप्त करके सुन्दर युवती का रूप धारण करना अधिक पसंद करते हैं।
‘‘उस दिन आपकी चीनी शहजादी से मुलाकात हुई थी, तो उसने हिरन का रूप धारण करके आपको अपनी ओर आकर्षित किया था तथा आपको आपके साथियों से अलग कर दिया था। इसके पश्चात चीनी शहजादी का रूप धारण करके आपको अपनी ओर आकर्षित किया तथा प्रेमिका बनकर आपकी पत्नी बन बैठी। वास्तव में यह लामिया है, एक इच्छाधारी नागिन।’’
‘‘ओह।’’ अली मरदान खान ने कहा, ‘‘मेरे साथ कितना खौफनाक हादसा हुआ है। क्या इस भयानक बला से छुटकारा हासिल करने के लिए कोई तकरीब नहीं हो सकती?’’
‘‘तरकीब है, मगर आवश्यकता इस बात की है कि योजनाबद्ध तरीके से काम लिया जाए। उसे थोड़ा भी सन्देह नहीं होना चाहिए, अगर उसे जरा भी भनक लगी तो अनर्थ होने में समय नहीं लगेगा, वह सब कुछ तबाह कर सकती है।’’
‘‘ओह! तो उसके खिलाफ कुछ भी करना तबाही को दावत देना है।’’
‘‘सम्भव तो है, परन्तु योजना के अनुसार काम किया जाए तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस बला से छुटकारा प्राप्त हो जाएगा।’’
फिर गुरुदेव ने अपनी योजना विस्तार से गवर्नर अली मरदान खान को समझाई और इसके बाद अली मरदान खान के आदेश पर योजना को गुप्त रूप से कार्यरत किया गया, जिसमें ज्वलन नहीं लगाई थी। ईंटें भी लाख की बनाई गई थीं। उस मकान मंे एक रसोई भी थी, रसोई में एक तंदूर भी बनाया गया था, जो मिट्टी से बनाया गया था तथ उसका ढकना ठोस भारी लोहे का बनाया गया था।
जब वह मकान तैयार हो गया तो दरबारी शाही हकीम ने अली मरदान खान को उसकी बीवी की उपस्थिति में परामर्श दिया कि वह स्वास्थ्य लाभ के लिए उस मकान में जाकर चालीस दिन तक रहे। उस समय उसके साथ मलिका के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं रहेगा। शाही हकीम की यह सलाह सुनकर मलिका बहुत खुश हुई। उसके लिए इससे बड़ी अन्य क्या बात हो सकती थी कि कुछ समय के लिए उसके पति एकांत में उसका बनकर रह जाएगा। वास्तव में बात यही थी कि वह चाहती ही नहीं थी कि अली मरदान खान उसके अतिरिक्त किसी अन्य से बात भी करे। अतः उसके मुख मंडल पर प्रसन्नता की आभा चमक उठी और वह खुशी-खुशी उसके साथ नये मकान में आ गई। वह बहुत खुश थी तथा बड़ी लगन से अपने पति की सेवा करती रही।
एक दिन अली मरदान खान ने उससे कहा, ‘‘मुझे शाही हकीम ने जौ के आटे की रोटी खाने को कहा है और वह रोटी तुम ही पका सकती हो।’’
‘‘मुझे खाना पकाने व तंदूर इत्यादि से सख्त नफरत है।’’ उसकी बीवी ने तुरंत कहा।
‘‘तुम देख रही हो कि मेरी बीमारी किसी के वश मंे नहीं आ रही है। इसी वजह से मेरी जान को खतरा हो गया है। तुम मेरे लिए इतना काम भी नहीं कर सकतीं? क्या तुम्हंे मुझसे मोहब्बत नहीं है?’’
‘‘आप मुझे पसंद हैं, मैंने आप से मोहब्बत की है।’’ वह प्रेम भरे स्वर में बोली।
अली मरदान खान की बीवी ने अपनी जान बचाने की कोशिश तो बहुत की थी, मगर प्यार-मोहब्बत के कसमें-वादे बीच में आ पड़े तो उसके लिए कोई चारा नहीं था।
वह रोटी पकाने के लिए रसोई में गई तो अली मरदान खान भी उसके पीछे पीछे चला आया। उसने कहा, ‘‘तुम रोटी पकाओ, मैं तुम्हारे पास ही बैठूंगा। मैं देखना चाहता हंू कि रोटी पकाते वक्त तुम कितनी खूबसूरत लगती हो।’’
अली मरदान खान की बात सुनकर उसकी बीवी की हिम्मत बढ़ गई और वह रोटी पकाने की तैयारी करने लगी। सबसे पहले उसने तंदूर में आग जलाई। कुछ ही समय में तंदूर में आग के शोले भड़कने लगे। फिर कुछ ही क्षण पश्चात वे शोले कम हुए तो कोयले लाल अंगारे बनकर दहकने लगे। अली मरदान खान को उसी पल का इंतजार था। उसने मौके का लाभ उठाया। फिर अगले ही
लम्हंे...।
सहसा उसने पूरी शक्ति के साथ उसे तंदूर में गिरा दिया तथा लोहे का भारी व मजबूत ढकना सरका कर तंदूर का मंुह बंद कर दिया, ताकि उस इच्छाधारी नागिन के बच निकलने की कोई संभावना न रहे। इस कार्य से निपट कर गुरु के निर्देशानुसार वह तत्काल बाहर की ओर लपका तथा बाहर आकर उस मकान में आग लगा दी। लाख का बना होने के कारण पूरा मकान देखते ही देखते आग में भस्म हो गया।
आग के भड़कते हुए शोलों को देखते ही गुरुदेव ने वहां पहुंचने में देर नहीं लगाई। फिर वह अली मरदान खान को बधाई देते हुए बोला, ‘‘आपने बिल्कुल ठीक किया है। मेरे निर्देश का पूरा पालन हुआ है। अब आप जाएं तथा पूरा आराम करें। कुछ दिन पश्चात मुलाकात होगी तो मैं आपको एक चीज दिखाऊंगा।’’
कुछ दिन गुजरने के बाद अली मरदान खान की गुरु से मुलाकात हुई तो वह उसे लेकर उस जगह पर गया, जहां लाख का मकान बना हुआ था तथा अब वहां सिर्फ राख का ढेर था।
गुरुदेव ने कहा, ‘‘इस राख के ढेर में आपको मणि मिलेगी।’’
अली मरदान खान ने कुछ ही देर बाद उसे राख के ढेर में चमकदार नागमणि खोज निकाली। वह हर्ष व उल्लास के कारण चिल्लाने लगा।
‘‘अरे! यह कितनी खूबसूरत और चमकीली मणि है।’’
‘‘अगर आपको यही मणि इनती पसंद आ गई है तो इसे आप ही रख लें। मैं केवल यह राख ही ले जाऊंगा।’’
इसके बाद गुरुदेव ने अपने चेले की मदद से वह राख एक गठरी में बांधी और वहां से चल दिये। कई वर्षों तक उसे मणि में छुपे भेद का पता नहीं चला तथा गुरु चेले ने उस राख का क्या किया? यह भी मालूम नहीं हो सका।
एक दिन अली मरदान खान बड़े चाव से उस नागमणि को रगड़-रगड़ कर साफ कर रहा था कि सहसा वह मणि हाथ से छिटककर पीतल के गिलास से जा टकराई। फिर अगले ही क्षण वह पीतल का गिलास, सोने के गिलास में बदल गया। अली मरदान इस चमत्कार से अचरज से भर उठा। उसने अनेक धातु की वस्तुओं पर उसका प्रयोग करके देखा तो पाया कि उसी मणि के छूते ही धातु सोना बन जाती है।
अली मरदान खान जब तक जिंदा रहा, वह मणि उसके पास ही रही। उसने अपनी विचित्र दास्तान अपने रोजनामचे में लिखी थी, जो आज भी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक ‘मासिर आलमगीरी’ में दर्ज है। औरंगजेब का दौर आरंभ हुआ तो अली मरदान खान मर चुका था। उसके महल से कई मन सोना बरामद हुआ था, मगर वह मणि नहीं मिल सकी थी, जिसका जिक्र उसने अपने रोजनामचे में किया था।

तुम ऐसे तो न थे

तुम ऐसे तो न थे



भगवान ने रूप प्रदान करने में यद्यपि बहुत कंजूसी दिखलाई थी नीता के प्रति, पर जहां तक यौवन का प्रश्न है, जी भर कर उन्होंने यौवन प्रदान किया था उसे। अठारह वर्षीया नीता को जिस दिन ब्याह कर लाया था शंकर, अंधेरी में अवस्थित अपनी छोटी सी खोली में, उस दिन उसने अपने आप को संसार का एक बहुत ही भाग्यशाली व्यक्ति समझा था।
बात यह थी-शंकर एक यतीम खाने में पला हुआ व्यक्ति था। कहा जाता है कि जब वह छोटा सा था, तभी उसके माता-पिता एक दिन मृत्यु के देवता से मिलने चले गये, ‘प्लेग’ के शिकार होकर सदा के लिये। उसके बाद उसने परवरिश पाई बम्बई के ही एक अनाथ आश्रम में। थोड़ी सी पढ़ाई के बाद ही उसे बुनाई का कार्य सीखने के लिये नियुक्त कर दिया गया, आश्रम के ही बुनाई विभाग में। बुनाई शिक्षा समाप्त करके वह बम्बई की ही एक मिल में बहाल हो गया। अब वह अपने पैरों पर खड़ा साधारण मनुष्य था। उसमें असाधारण कुछ नहीं था, सिवाय गठीले बदन और लम्बे कद के। रंग सांवला था और देखने में अच्छा नहीं, तो बुरा भी नहीं था वह।
अब उसे आवश्यकता थी एक गृहिणी की। शाम को मिल से लौटकर वह अपनी खोली में बैठकर बहुत ही एकाकीपन का अनुभव करता। दिन भर के परिश्रम के बाद उसका शरीर कदापि पसंद नहीं करता, दो घंटे चूल्हा बर्तन से उलझने को। फिर मिल में दिन भर कार्य करके लौटने पर उसे न तो कोई घर पर स्वागत करती मिलती और न ही कोई एक गिलास पानी उसकी ओर बढ़ाता। मिल में साथियों के मुंह से जब वह उनके बच्चों और घरवालियों के बारे में सुनता, तब उसकी आत्मा सिसक उठती। उसे न तो मिल में ही चैन मिलता, न ही घर आकर शान्ति मिलती और अपनी इसी कमी को दूर करने के लिये वह व्यग्र हो गया, ब्याह करने के लिये। और मिल के जब उसके एक साथी गंगा ने शंकर से अपनी छोटी साली के लिये बात की तो शंकर को ऐसा अनुभव हुआ जैसे सारे संसार की सम्पदा ही उसे मिलने वाली हो।
शीघ्र ही ब्याह से पूर्व की रस्में पूरी की गईं और फिर एक दिन नीता को उसकी विधवा मां ने पांच आदमियों के सम्मुख हिन्दू रिवाज के अनुसार सौंप दिया शंकर के हाथों। शंकर को अपने हाथों में मानो ‘कोहनूर’ मिल गया। ब्याह के नाम पर ही बचाये गये पैसों से सोने का एक हार व दो कर्णफूल तथा कुछ चांदी के जेवर खरीद कर और उन्हीं से अपनी दुल्हन को सजा कर, अपनी खोली पर ले आया।
अठारह वर्षीया नीता, सांवली व मध्यम कद की कन्या थी। मुख श्री में एक प्रकार का आकर्षण था जो कदाचित इस उम्र की लड़कियों में साधारणतः हुआ ही करता है। उसका गदराया हुआ बदन व सुडौल अंग प्रत्यंग देखने वाले को आकर्षित करने के लिये काफी थे। घर के काम काज में भी एक साधारण गरीब कन्या की तरह ही वह निपुण प्रमाणित हुई।
ब्याह कर आते ही उसने शंकर और उसके घर को अच्छी तरह संभाल लिया। बदले में शंकर ने अपने हृदय का सारा प्यार उस पर उंडेल दिया। शंकर सर्वदा ख्याल रखता कि उसे किसी प्रकार का कष्ट न हो। मिल से लौटते वक्त अपनी जेब के पैसों के मुताबिक वह कुछ न कुछ अपनी प्यारी नीता के लिये जरूर लाता। शादी के बाद कुछ दिन तक तो शंकर मिल से छुटते ही घर भागा करता और आते ही कुछ भी करती हुई नीता को अपनी बांहों में लेकर अपने प्यासे हृदय से लगाकर उसकी प्यास बुझाया करता। साधारणतः वह भी संध्या को उसकी दरवाजे पर खड़ी प्रतीक्षा करती होती।
परन्तु शीघ्र ही प्यार का यह दौर समाप्त हो गया। अपनी प्यारी पत्नी को सुख में रखने के लिये शंकर को अब फिक्र लगी अधिक से अधिक पैसा कमाने की। उसने निश्चय कर लिया कि अब वह भी दूसरों की तरह ओवर टाईम करेगा। उसकी राय से अवगत होते ही नीता ने प्रतिवाद किया, ‘‘नहीं, नहीं। तुम इस ओवर टाईम फोवर टाईम के पचड़े में मत पड़ो जी। हमको वैसे ही दिन भर अच्छा नहीं लगता अकेले अकेले। उस पर अब तुम शाम को भी काम में रहोगे। हम इसी कमाई में किसी प्रकार गुजारा कर लेंगे।’’
उसे समझाते हुए अपने सीने से लगाकर शंकर ने कहा, ‘‘पगली हो तुम। अरे सभी करते हैं ओवर टाईम। और हम भी तो चाहते हैं कि तुम सुखी रहो। तुम्हारे बदन पर दो एक गहने रहें। कल को हमारा कोई बच्चा होगा तो उसको भी आराम मिले।’’ और किसी प्रकार राजी कर ही लिया उसने नीता को।
अब शंकर एक प्रकार से घर से बाहर ही रहने लगा। घर पर तीन चार घंटे अधिक काम करके लौटता वह। अपनी पत्नी को सुखी रखने के लिए अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिये व्यग्र था वह।
इधर नीता और भी उदास रहने लगी। उसे अब कुछ भी नहीं भाता। घर के काम काज से छुट्टी पाने के बाद समय उससे काटे नहीं कटता। उसकी उदासीनता अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाया करती, जब रात को भी शंकर केवल खाने के लिये आकर कह जाया करता कि मैं आज रात को नहीं आ सकूंगा। रात को ओवर टाईम कर रहा है।
पहले नीता बन संवर कर रहा करती थी, परन्तु अब वह शृंगार से उदासीन रहने लगी। उसका मन सदैव पति प्यार को तरसने लगा। शंकर का अधिक से अधिक समय मिल की चारदीवारी में व्यतीत होने लगा।
वह जानता था कि इस दुनिया में अभावग्रस्त व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं है। वह जानता था कि गरीब की बीवी सबकी भाभी हुआ करती है और अपनी इसी कमजोरी को दूर करने के लिए शंकर सचेष्ट था। न चाहते हुए भी अपने हृदय पर शिला रखकर वह अपनी प्यारी पत्नी से दूर रहा करता।
आजकल नीता फिर संवर कर रहने लगी। शंकर हालांकि अब भी पहले की तरह मिल के कामों में अधिक उलझा रहा करता, पर नीता को अब उसकी पहले की भांति चिन्ता नहीं थी। वह भी खुश रहना चाहती थी और खुश रहने के लिये ही उसने उपाय ढूंढ़ना शुरू कर दिया। उपाय मिलते उसे देर भी न लगी। पड़ोस के एक बंगाली बाबू शांति रंजन सरकार में उसे आशा की किरण दिखलाई पड़ गई।
शांति बाबू स्थानीय किसी बैंक के क्लर्क थे। उन्हें शुरू से ही नीता बहुत अच्छी लगती थी। वे शंकर के पड़ोस में पिछले चार वर्षों से रहते आ रहे थे। मुम्बई में किराये पर घर मिलना बहुत ही कठिन होता है, इसीलिये शांति बाबू जब एक बार मजदूर और छोटे-मोटे कर्मचारियों की इस बस्ती में आकर बस गये तो फिर न जा सके और सच पूछा जाये तो बाद में उन्होंने जाने के विचार को सदा के लिये स्थगित ही कर दिया, क्योंकि बस्ती में उन्हें सभी सम्मान की दृष्टि से देखा करते। एक प्रकार से शांति बाबू सर्वेसर्वा बन गये थे मोहल्ले के। गरीबों व उनके बच्चों को सवेरे शाम होम्योपैथिक की दवाईयां मुफ्त में बांट बांट कर उन्होंने अपने लिये काफी यश भी कमा लिया था।
शांति बाबू अकेले ही रहा करते थे वहां पर। कहते हैं कि एक बहन के अलावा, जिसका ब्याह वह कलकत्ते में कर चुके थे, उनका अपना कहने को और कोई नहीं था। वह मोहल्ले में सभी से मिल जुल कर रहा करते। शंकर के ब्याह के पूर्व से ही शंकर से उनकी खूब पटा करती। शंकर अपना खाली समय अक्सर अपने पड़ोसी बाबू के ही साथ बिताया करता। चूंकि वह कुछ लिखा-पढ़ा था, इसलिये विश्व की ओर विशेषतः देश की प्रमुख घटनाओं की थोड़ी बहुत जानकारी सप्ताह में दो एक बार दैनिक पत्र खरीद कर जानने का प्रयास करता और अपनी जानकारी की पुष्टि वह शांति बाबू से जिनका घर सदा विभिन्न प्रकार की पत्रिकाओं से भरा होता, करवा लेता।
शांति बाबू से वह इतना प्रभावित हुआ था कि शादी करके नीता को अपने घर लाने के पश्चात जब शांति बाबू ने उसके घर आना जाना छोड़ दिया और चूंकि खुद भी वह अपनी नई दुल्हन में उलझा रहा करता और इसलिये शांति बाबू से नहीं मिल पाता, स्वयं उसने उनसे कहा था, ‘‘अकेले घर पर शाम को क्या करते हो बाबू? क्यों नहीं मेरे घर आ जाया करते। बैठकर इकट्ठे चाय पियेंगे, बातें करेंगे।’’
और जब शांति बाबू ने आना कानी की थी तब उसने जोर देकर कहा था, ‘‘नहीं, नहीं बाबू। मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगा। अरे तुम क्या मेरे लिये कोई गैर हो? और फिर मैं क्या इतने दिनों के मिलाप के बाद भी तुम्हें नहीं पहचान पाया?’’ और उसके बाद ही प्रायः शांति बाबू शंकर के घर जाया करते। शुरू-शुरू में तो नीता बेहद पर्दा करती पर बाद में अपने पति के कहने पर उसने भी धीरे-धीरे पर्दा करना छोड़ दिया और फिर कभी-कभी तो एक बात भी करने लग गई उनसे।
इधर जब से शंकर ने घर पर रहना कुछ कम कर दिया, तब से शांति बाबू पुनः अपने घर में सीमित हो गये। लेकिन एक दिन की घटना ने फिर से उन्हें शंकर की अनुपस्थिति में भी उसके घर जब तब जाने की इजाजत दिलवा दी।
एक बार नीता अस्वस्थ हो गई। कई दिनों से बुखार आने लगा था। इस अवस्था में पत्नी की देखभाल करने के लिए शंकर को छुट्टी लेनी आवश्यक जान पड़ी। लेकिन चूंकि ‘ओवर टाईम’ में काम करने के एक मास के खातिर उसने अपना नाम विशेष सूची में लिखवा लिया था और फिर कुछ ही दिन पूर्व उसने अपनी समूची प्राप्य छुट्टी ब्याह के अवसर पर खत्म कर दी थी, इसलिये उसे छुट्टी नहीं मिल सकी, हालांकि उसने अर्जी दी भी थी। और फिर जब उसने देखा कि यह तो केवल साधारण बुखार मात्र है और शांति बाबू की ओर से भी जब उसे ‘‘घबराने की बात नहीं, कुछ नहीं होगा’’ का अमर वरदान प्राप्त हो गया, तब वह कुछ निश्चिंत हुआ। लेकिन उसने अपने अनुरोध से शांति बाबू को भी बाध्य किया कि वे उसकी अनुपस्थिति में भी, विशेष करके उन दिनों, जाकर उसकी पत्नी को देखभाल लिया करें।
शुरू में शांति बाबू ने एक आदर्श व्यक्ति बनकर ही नीता के निकट जाना आरम्भ किया। दवा वगैरह पीने के बारे में निर्देश देने और देखभाल के नाम पर कुछ-कुछ पूछने, हालांकि नीता में कुछ ऐसा आकर्षण अवश्य था, जिससे वे शुरू से ही नीता में दिलचस्पी लेने लगे थे। वास्तव में शंकर ने अब उनसे अपनी अनुपस्थिति में नीता की देखभाल के लिये अनुरोध किया था, तब बरबस उनके हृदय ने अपार हर्ष का अनुभव किया था। बाद में इसका कारण विश्लेषण करके शांति बाबू के शिक्षित मस्तिष्क ने थोड़ा सा लज्जा का अनुभव भी किया था। लेकिन इससे कुछ न हुआ।
एक दिन एक ऐसी घटना घट गई कि शांति बाबू की शिक्षा और संस्कृति एक ओर धरी की धरी रह गई और उनके अपने ही हाथों उनमें अपार विश्वास रखने वाले शंकर की अरमानों की दुनिया उठ गई। एक सन्ध्या समय जब शांति बाबू शंकर के घर गये, तब उन्होंने नीता को लेटे हुए पाया।
वैसे एक दिन पहले ही नीता का बुखार उतर चुका था, यह शांति बाबू जानते थे। उन्होंने शाम के समय इस तरह उसे लेटे हुए देखा तो कुछ परेशान हो उठे। उन्होंने यह भी देखा कि कमरा प्रकाश से भी वंचित है। वे व्यग्र होकर लेटी हुई नीता के करीब गये और पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी, क्या फिर तबियत खराब हो गई?’’ स्पष्ट था कि इधर आपसी बातचीत में वे काफी खुल चुके थे।
‘‘नहीं बाबू! वैसे ठीक ही हूं। खाली सिर दुख रहा है, जैसे फट ही जायेगा यह।’’ नीता ने धीमे स्वर में कहा।
‘‘ओह! ठहरो, मैं इसके लिए एक दवा लेकर आता हूं। तुम रुको तो जरा रोशनी कर लूं घर में।’’ शांति बाबू ने कहा।
‘‘नहीं नहीं, दवा-ववा की जरूरत नहीं है मुझे। हो सके तो मेरे तकिये के नीचे से माचिस लेकर जरा बत्ती जला दो बाबू। और अगर बुरा न मानो तो जरा धीरे-धीरे सिर दबा दो मेरा, जिससे मैं थोड़ा सो सकूं।’’ नीता ने कहा।
जहां तक बत्ती जलाने का सवाल था, शांति बाबू ने किसी प्रकार की परेशानी का अनुभव नहीं किया। पर सिर दबाने के विषय में वे किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गये। बत्ती जलाकर क्या करूं, क्या न करूं, वे इसी कशमकश में पड़े हुए थे कि एक बार फिर दुखते हुए स्वर में नीता ने कहा, ‘‘जरा दबा दो न बाबू।’’
इस अनुरोध के बाद शांति बाबू स्थिर न रह सके। वैसे भी किसी पुरुष के लिये संध्याकाल में किसी युवती के सिर दबाने का आमंत्रण कम महत्व नहीं रखता।
शांति बाबू नीता के सिरहाने बैठकर धीरे-धीरे उसके सिर पर हथेली फेरने लगे। नीता आंखें बंद किये पड़ी रही। शांति बाबू की हथेली सिर के बालों से हटकर नीता के मस्तक पर अपना कर्त्तव्य पूर्ण करने लगी।
नीता उसी तरह आंखें बन्द किये पड़ी रही। शांति बाबू उसके सौन्दर्य का अवलोकन करने लगे, नीता के पुष्ट अंग प्रत्यंग शांति बाबू को काफी आकर्षक लगे। अब मस्तक दबाते हुए उनकी हथेली का चाप हल्का होने लगा और उनकी आंखों के सम्मुख एक प्रकार का अंधेरा छाने लगा और फिर हाथ पांव एक दम से ढीले पड़ गये उनके।
उसके बाद दीन दुनिया की बातें ताक पर रख और इन्सानियत को नमस्ते कर कूद पड़े शांति बाबू हैवानियत के समुद्र में समुद्र की मदमस्त लहरों ने उन्हें उठाकर नहीं फेंका, बल्कि स्वागत किया उनका और समा लिया उन्हें अपने में। बेचारे शंकर की दुनिया लुट गई।
शंकर को पहले तो इन बातों के बारे में कुछ भी पता न चला और जब पता चला तो वह लाचार था।
शांति बाबू आजकल महीने भर की छुट्टी पर थे। शंकर ने इन दिनों फिर से समयानुसार घर पर लौटना शुरू कर दिया था, क्योंकि अब मिल में काम अधिक नहीं था।
आज नीता ने शंकर से लौटते समय दादर स्थित अपने जीजा जी के यहां हो आने को कहा था, क्योंकि शंकर ने ही बताया था कि उसकी बहन की तबीयत खराब है। लौटने में शंकर को करीब आठ बज गये। घर आकर उसने देखा कि दरवाजे खुले पड़े हैं और घरवाली गायब है। नीता का गायब होना शीघ्र ही इसलिये स्पष्ट हो गया, क्योंकि कमरे के एक कोने में रखा हुआ ट्रक खुला पड़ा था और उसमें रखे जेवर कपड़े गायब थे। शंकर ठगा-सा रह गया। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि नीता ने उसके साथ विश्वासघात किया है। शंकर शांति बाबू के घर पहुंचा, पर शांति बाबू भी घर से गायब थे। उनका सामान भी नदारद था।
दूसरे दिन शांति बाबू के दफ्तर से शंकर को पता चला कि उन्होंने अर्जी देकर अपने बदली कलकत्ता करवा ली थी। शंकर को यह दूसरा आघात लगा, क्योंकि वह शांति बाबू को देवता समझे बैठा था। कलकत्ता में वह शांति बाबू को पा सकता था पर क्या फायदा कुछ नहीं। वह बस यही सोच रहा था, ‘औरत कितनी बेवफा होती है, पर मर्द?’ और शांति बाबू का चेहरा उभर आया उसकी दृष्टि में। पर वह तो पराया था, औरत तो अपनी थी। और उसे औरत के नाम से ही नफरत होने लगी-औरत बेवफा।
परन्तु क्या सचमुच नारी समाज की एक सदस्या नीता की वर्णित कृति ‘बेवफाई’ प्रमाण है?
- प्रस्तुति: रमेश गुप्त
कल और आज का संगम

परम्परा व आध्निकता का संगम-आज की नारी

‘दुनिया में सबसे अच्छी और खूबसूरत चीजों को देखकर या स्पर्श करके नहीं बल्कि हृदय से महसूस किया जाना चाहिए।

नारी के विषय में भी यह बात सच सि( होती है। नारी को सिपर्फ सुन्दरता की मूरत के रुप मेंही देखा जाता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से नारी की पहचान बदल गई है। आज की नारी या बीते कल की नारी की स्थिति का अवलोकन करें तो अन्तर खुद ही पता चल जाता है। लेकिन कुछ मुद्दों पर स्थिति आज भी बदली सी नहीं लगती है। पहले भी जब औरत कुछ नया करना चाहती थी वह अकेली पड़ जाती थी और आज भी स्थिति यही है। नया करने की सोचते ही समाज या परिवार शुरु में तो विरोध् प्रकट करते ही हैं। लगता है कि बस इतना ही है आज भी स्त्राी का सच। लेकिन आज की स्त्राी परंपरा व आध्ुनिकता का संगम है। उसका विस्तार बहुत परे तक है। आज की नारी अपनी महत्वकांशाओं व अपने सपनों को पंख पसार के उन्हें नया आकाश देने की ताकत रखती है।
इतना सब होते हुए भी नारी के आस्तिव पर संकट की बात आज भी सामने खड़ी है। सोच अब भी देह की पवित्राता पर ही आकर अटक जाती है। लेकिन असुरक्षित होते हुए भी साहस व सपना में कहीं कोई नहीं आने दी आज की नारी ने। रूप जरूर बदल गया है। माथे पर बड़ी-बड़ी गोल बिदियां, गहरे सिन्दूरी रंग से सजी मांग, लजीले नेत काला काजल लगाये, गुलाबी मखाते हल्कासा मुस्कुराते होंठ, दोनों हाथों में एक दूसरे से बांध्े हाथ सुन्दर सलीकेदार मुस्कुराती नारी की तस्वीर या कहें नारी की ‘गरिमापूर्ण’ छवि में ही समाज आज भी खोया है। तथा आज भी उसे ही ढुंढ़ता है। परन्तु आज की नारी वक्त की रफ्रतार से कदम से कदम मिलाती, दौड़ती, या अपनी कार या स्कूटर दौड़ाती। लम्बी जुल्पफों के स्थान पर कटे केशों को झटकते या काले चश्में के सहारे संभालते हुए, अपनी सुविधनुसार पोशाक में ;कुर्ता व जींसद्ध में ही हर तरफ जमी से आसमां तक नजर आ रही है। गालों पर शर्म की कोई लालिमा नहीं है। इतना समय ही नहीं है आप की नारी के पास वह तो कहीं जल्दी-जल्दी घर के काम निपटा कर बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती नजर आती है। तो कहीं दफ्रतर के लिए दौड़ती भागती तैयार होती नजर आती है। घर, बाहर, बच्चे, दफ्रतर सभी कुछ एक साथ संभाल रही है। पिफट नारी के पहले रुप को संजोकर रखने का समय ही किसके पास है। कहीं अपने पुरुष मित्रों से बहस करती नजर आती है। तो कहीं अपनी कार तेज रफ्रतार से दौडाते हुए जमाने को पीछे छोड़ आ रही है। हाथ में चमचे बेलन के साथ ही कार की स्टपनी भी आ गयी है। रसोई में पसीने से तर बतर होने के साथ-साथ गाड़ी के टायर बदलने में भी पसीने से लथपथ नजर आ रही है। आज की नारी। जमाना उसके इस अंदाज को आंखे पफाडे देख रहा है।
दूसरे शब्दों में कहें तो समाज में नारी अपने बलबूते पर चाहे कितनी ही आगे क्यूं ना बढ़ जाऐं, चाहे वह सानिया मिर्जा बने या सुनीता विलियम्स, समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी स्त्राी की शक्ति, योग्यता, साहस व बु(िमत्ता को अपने ही बनाये सांचे में पिफट करना चाहता है। स्त्राी का आस्तित्व आज भी समाज के माथे पर बल डाल देता है।
बदली नारी की दुनिया
आज की नारी ने अपने बलबूते पर अपनी दुनिया को ही सतरंगा बनाया है। यह सब किया है उसने शिक्षा व अपनी हिम्मत के बल पर। नारी ने यह समझ लिया है कि जब तक वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होगी तब तक वह अपनी तस्वीर नहीं बदल सकती। आज शिक्षा के बल पर ही वह सारा आकाश अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश में जुटी है तथा वे माएं भी जो खुद नहीं कुछ कर सकी हैं वे अपनी बेटियों के लिए सबकुछ जुटा देना चाहती हैं तथा बेटियों के कंध्े से कंध मिलाकर हर कदम पर उनका साथ दे रही हैं। आज की स्त्राी ने संतुलित व्यवहार कर यह दर्शा दिया है कि वह आजादी चाहती हैं लेकिन आजादी का अर्थ घर-परिवास से दूर हो जाना या अपनी संस्कृति व सभ्यता को भूलना नहीं है बल्कि आजादी का मतलब सिपर्फ इतना है कि वह अपने लिए इस पुरुष प्रधन समाज में सम्मान पाना चाहती है। आध्ुनिक स्त्री ने अंध्विश्वासों व रुढ़ियों को दरकिनार किया है। ना कि आस्था व संस्कारों को।
कमजोर कभी भी ना थी स्त्राी
पुरुष प्रधन समाज में पुरुष का एकाध्किार सदियों तक इसलिए कायम हो पाया है क्योंकि हर सपफल पुरुष के पीछे किसी ना किसी नारी का हाथ होता है। स्त्राी ने हमेशा पुरुष को समर्थ बनाने में ही सहयोग दिया। अपना सब कुछ उसने पुरुष को साम्यर्थशाली बनाने में लगा दिया लेकिन पुरुष ने हमेशा ही स्त्राी को महत्वहीन समझा वह हमेशा ही उसे ‘सुन्दर वस्तु’ के रुप दिखी तथा घर की एक अनुपयोगी बस्तु ही लगी। पुरुष कभी भी यह समझ नहीं सका कि यदि वह शक्तिशाली हो पाया तो इसका बहुत बड़ा कारण स्त्राी है क्योंकि स्त्राी ने अपनी सारी शक्ति पुरुष को ही समर्थ बनाने में उडेल दी है। कभी बेटी के रुप में कभी पत्नी के रुप में कभी मां के रुप में। आज की स्त्राी ने विद्रोही स्वर डठा दिये है। तो सिपर्फ इसलिए कि पुरुष जो उसे महत्व देना दूर की बात है उसके अस्तित्व को ही नकारा है। तभी सदियों की दबी चिंगारी लावा बनकर पफूट पड़ी है। कमजोर तो स्त्राी कभी भी नहीं थी। जब वह पुरुष को शक्तिशाली बना सकती है तो वह कैसे कमजोर हो सकती है। मां के रुप में पन्नाधय को याद करें तो अपने कर्त्तव्य के लिए उन्होंने अपने ही पुत्रा की बलि चढ़ा दी। स्त्राी के रूप में लक्ष्मीबाई को याद करें तो पुत्रा को कमर से बांध् कर ही यु( के मैदान में कूद पड़ी। अर्थात स्त्राी तो हमेशा से ही शक्ति का प्रतिबिम्ब रही है। साथ ही यह बात भी सही है कि पहले के मुकाबले आज की स्त्राी स्मिता को अध्कि खतरा है। आर्थिक, सामाजिक तथा शिक्षागत रुप से तो स्त्राी की स्थिति पहले से अधिक बेहतर है लेकिन अगर शहरी चकाचौंध से दूर गांवों में स्त्राी की स्थिति में आज का अंतर पहले से अध्कि नहीं है। गांवों में स्त्राी पूरी तरह से शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाती है। अपने संस्कारों व जडो में वह आज भी जकड़ी हुई है। चाहे स्त्राी शहरी हो या ग्रामीण निर्भय तो वह आज कहीं भी नहीं है। आए दिन अपराधें तथा बलात्कारों को देखें तो स्त्राी अभी भी अपनी देह से मुक्त नहीं हो पायी है। पुरुष आज भी अययाशी के बावजूद अपने को अपवित्रा नहीं मानता लेकिन अपनी कोई भी गलती ना होने के बावजूद स्त्राी अपने को हीन व अपवित्रा समझती है। यह बात आज हर स्त्राी हर मां को समझनी होगी कि इतनी समर्थ होने के बावजूद भी वह अपनी अस्मिता की रक्षा क्यांे नहीं कर पाती। आपने अंदर शारीरिक ताकत और अध्कि जुटाने की आवश्कता है।
स्त्राी को अपने शरीर के अलावा अपने मस्तिष्क को भी मनवाना व पहचानना होगा ताथ वह अपना भविष्य में अपना रुप गढ पाएंगा
मुश्किलोंमें संभली है हमेशा
अगर पुरुष के सामने मुश्किलें आती है। तो वह सहारा तलाशता है। लेकिन अगर स्त्राी के सामने आतीं हैं तो वह हमेशा लड़खड़ाकर खड़ी हो गई है। नारि अत्याचार व जुल्म सहकर भी खड़ी रही है। हर मोड पर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज भी स्त्राी को पिफर भी कदम-कदम बढ़ाकर अपनी मंजिल तक पहुंची है आज की नारी के तेवर कापफी हद तक बदल गये हैं। आज अपने पफैसले खुद लेने में वह सक्षम है। सही हो या गलत लेकिन खुद अपना भविष्य तराश रही है। कड़ी चुनौतियों का सामना करके इस स्थिति तक पहुची हैं स्त्राी रातोरात यहां तक नहीं पहुंची है। बहुत समय लगा है। इस पुरुष प्रधन समाज में अपनी जगह बनाने में। हम क्यों चाहते हैं कि स्त्राी का हर पफैसला सही है, वह लड़खड़ाये नहीं हर समस्या का समाधन ढूंढे, वह भी तो इंसान है, गलतियां तो उससे भी होगीं ही लेकिन उसकी गलतियों को नजरअंदाज क्यों नहीं किया जाता हैं जब पुरुष बंदिशों में जकड़ा नहीं रह सकता पिफर स्त्राी के ऊपर इतनी बंदिशें क्यों। अगर हम स्त्राी की शिक्षा व विकास में कोई बाध ना डालें तो यह परिवर्तन सिपर्फ स्त्राी को ही नहीं होगा वरन् उसका परिवर्तन हर दिशा में दिखेगा। स्त्राी के लिए अवसर तलाशना कोई आसान काम नहीं है लेकिन उसे जब भी ये मौका मिले हैं उसने अपने आपको साबित ही किया है। ध्ीरे-ध्ीरे ही सही वह अपने विकास के रास्ते खुद ही खोलती जा रही है। अब वह इंतजार करने के अवसर नहीं तलाश रही वरन उसे छीनने की ताकत रखने लगी है।
आज की पीढी मिश्रित रूप
आज की पीढी में एक मिश्रित रूप देखने को मिल रहा है। जहां आज की युवा पीढ़ी अध्कि आजाद ख्याल वाली, शिक्षित, आत्मविश्वासी व साहसी है। और विपरीत परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करने की भी हिम्मत रखती है। आवश्यकता है तो जितनी आजादी वे पा रहे हैं या अपने लिए मांग कर रहे हैं। उतनी आजादी का वे अपने व अपने समाज के विकास के लिए लाभ भी उठा पा रहे हैं। मार्डन होने का सही व व्यापक अर्थ उन्हें समझना होगा। आज भी नारी अध्किांशतः नारी की उन्नति नहीं चाहती है। अगर ऐसा होता तो ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी नारी की दशा दयनीय नहीं होती। वहां पर नारी की दशा में पिछले कई दशकों में अध्कि अंतर देखने को नहीं मिला है। वहां पर स्त्राी बहुत हिम्मती तथा मेहनती तो है परन्तु आत्मविश्वास का अभाव सर्वत्रा है शायद यह अशिक्षा के कारण है। यदि शिक्षा सही दिशा में मिले तो शुरू से ही आत्मविश्वास से परिपूर्ण संस्कार स्त्राी को मिलेगे तथा वह अपना भविष्य अपने हाथों से ही निर्मित करने की ताकत रखेगी। महिला शिक्षा संस्कार में योग, वेदांत व पारम्परिक मूल्यों का समावेश होना बहुत अध्कि आवश्यक है। अन्यथा भविष्य की नारी कमजोर होगी आजादी का सही अर्थ अपने पारम्परिक मुल्यों की अनदेखी करना नहीं है। स्त्राी का सच्चा स्वरुप उसे बेहद शक्तिशाली बनाता है। न कि कमजोर। पुरातन मूल्यों व संस्कारों के पुराने होने का अर्थ पिछड़ा होना नहीं है। जरूरत है तो सही दिशा में अपनाने की
परम्परा व आध्ुनिकता का संतुलित जीवन
आज की नारी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह परम्परा व आध्ुनिकता के मिले जुले रुप के साथ एक संतुलित जीवन को जीने की कोशिश कर रही है। नकारात्मक सोचों से जूझकर वह अगर आज अपनी उपस्थिति दर्ज करना पा रही है तो यह बिल्कुल उसके सशक्त रुप को दर्शाता है। जीवन में अपना भविष्य कैसे सुनिश्चित करनाह ै यह उसका पफैसला है तथा इसके निर्णय का अध्किार भी उसी को होना चाहिए। आध्ुनिकता व परम्परा दोनों का मिश्रण है आज की नारी इसलिए अगर कोई साड़ी पहनता है तो वह जीन्स या वेस्टर्न डेªस पहनने वाले से अध्कि संस्कारी है। यह सोच हमें अपनी बदलनी होगी। भारतीय संस्कार इतने कच्चे नहीं हैं कि अपना मूल्य हम अपनी पोशाकों के आधर पर तय करें।
भारतीय नारी की सही परिभाषा समझने के लिए संस्कार व गरिमा जैसे व्यापक अर्थ वाले शब्दों को समझने के लिए सोच भी बड़ी रखने की आवश्यकता है। आज की स्त्राी में परम्परा का मिला जुला स्वरूप ही देखने को मिला है। अपने अन्दर आत्मविश्वास के साथ हमें आगे बढ़ना है। तथा साथ ही पिछडी ग्रामीण महिलाओं को हीन दृष्टि से ना देखकर उन्हें भी शिक्षा द्वारा भविष्य की राह दिखानी है।

कतनी सुरक्षित हैं महिलाएं

चार भाई बहनों में सबसे छोटी मनीषा जिसकी सौम्यता व सुन्दरता की मिसाल आस पड़ोस के लोग ही नहीं बल्कि जिस कॉलेज में वह पढ़ती थी वहां के स्टुडेंट और टीचिंग स्टॉपफ सभी देते थे। ब्रेन विद ब्यूटी का आलम यह था कि उसने अपने कालेज की सबसे सूबसूरत व इंटेलिजेंट लड़की का खिताब भी जीता। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली मनीषा कॉलेज की शान मानी जाती थी। लेकिन आज वही हर दिल अजीज, खूबसूरती की मिसाल मनीषा अस्पताल के बैड पर लेटी बुरी तरह कराह रही है। उसे देखकर दोस्तों व रिश्तेदारों के आंसू हैं जो थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। जो कोई भी अस्पताल पहुंचा उसे देखकर भय से कांप उठा, चेहरा पूरा पट्टियों से ढका है हाथ और पांव बुरी तरह झुलसे हुए हैं। इस मासून ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इसे अपनी छेड़खानी का विरोध् करने की इतनी भयानक सजा मिलेगी। इस मासूम पर दौलत के नशे में अंध्े कुछ रईसजादों ने उसके ऊपर तेजाब डालकर इसे बुरी तरह झुलसा दिया... आखिर क्यों आध््रमिकता की ओर अग्रसर समाज इतना असंवेदनशील होता जा रहा है। जो महिला के अस्मत और जीवन के साथ खिलवाड़ करने में भी समाज के हैवानों के हाथ नहीं कांपते हैं-
देश के महिलाओं संबंध्ति बहुचर्चित मामले जैसे नैना साहनी हत्याकांड, जेसिका लाल मर्डर केस, आरुषि हत्याकांड, अरुणिमा केस, निठारी कांड, सौम्या रंगनाथन, शिवानी भटनागर, प्रियदर्शिनी भट्टू, रुचिका हत्याकांड, आदि महिलाओं
सरसरी दृस्टि-
घर में बच्ची का जन्म होते ही मां बाप को सबसे बड़ा डर उसकी सुरक्षा को लेकर ही होता है। इसके अतिरिक्त मां-बाप यही सोचते हैं कि बेटियां कितनी भी पढ़ लिख जाएं लेकिन आखिर बाद में तो उन्हें संभालनी घर की चूल्हा चौकी है। कुछ मां बाप सोचते हैं कि बाद में बेटी को ससुराल विदा करने के साथ-साथ अच्छा खासा दहेज भी साथ में देना पड़ेगा। शायद यही वजह है कि देश में आज भी बड़े स्तर पर कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं। समाज की ऐसी सोच बेटियों के लिए खतरनाक साबित होती है। घर में पहला लड़का होने पर खुशियों का माहौल छा जाता है। जबकि अगर पहली बेटी हो जाए तो घरवालों को उतनी खुशी नहीं होती। क्या बेटी होना गुनाह है? पहले बेटे के बाद बेटी हो तो ठीक लेकिन पहली बेटी के बाद दूसरा बेटा ही होना चाहिए।
पिफर थोड़ा बड़े होने पर जब वह स्कूल जाने लगती है तो उसकी सुरक्षा की चिन्ता की कहीं उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाए यह डर मां बाप को चैन की नींद सोने नहीं देता, स्कूल या कॉलेज जाने पर कहीं उसका किसी के साथ अपफेयर न चल जाए कहीं वह अपनी पसंद से कसी गैर जाति या र्ध्म के लड़के से विवाह करके समाज में हमारा उठना बैठना ना बंद करवा दें... समाज की ऐसी सोच ऑनर किलिंग जैसी घटनाओं को भी बढ़ा रही हैं। जहां पर बेटियों की इज्जत के नाम पर निर्मम तरीके से हत्या कर दी जाती है।
बलात्कार और यौनशोषण की घटनाएं तो महिलाओं के जीवन को तार-तार कर देती हैं। ऐसी घटना की शिकार महिला के साथ समाज ऐसा घृणित व्यवहार करता है कि मानसिक तनाव में आकर वह आत्महत्या तक कर लेती है। हॉल ही में एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे में दिल्ली के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की कई छात्राओं ने यह अपना नाम छुपाते हुए यह खुलासा किया कि परिवार के कई सदस्यों द्वारा बचपन में उनके साथ भी यौन उत्पीडन से संबंध्ति घटनाएं हो चुकी हैं। मनोवैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकारते हैं कि बचपन में बच्चों के साथ ऐसी घटनांए सारी उम्र उन्हें मानसिक रुप से परेशावन करती हैं। जिसका असर उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है, क्योंकि ऐसे मामलों में भय या शर्म से बच्चे ऐसी बातों का खुलासा नहीं कर पाते।
समय बदलने के साथ-साथ भले ही समाज में और देश में महिला सशक्तिकरण की बातें होती रहें लेकिन यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच में आज भी बदलाव नहीं आया है। यही कारण है कि ऑपिफसों में कार्यरत महिलाओं व सड़कों पर चलती महिलाओं के अलावा आज अपने ही घर में अपने रिश्तेदारों से महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।
बनना होगा मजबूत और संघर्षशील
आए दिन सड़कों पर चैन स्नैचिंग की घटनाएं हो रही है। जिनमें से सबसे अध्कि ये घटनाएं महिलाओं के साथ हो रही है। इस बात पर सर्वोदय विद्यालय में हिन्दी टीचर मध्ु का कहना है कि हमारे घरों में बचपन से ही बेटियों की मानसिकता को ऐसा बनाया जाना चाहिए कि वो अबला नहीं सबला हैं। मतलब कि मौका आने पर दुर्गा या काली बनने से भी पीछे न रहो। हमारे साथ छेड़खानी या चैन स्नेचिंग जैसी घटनाएं आसानी से इसलिए हो जाती हैं कि हम डटकर इसके लिए विरोध् व संघर्ष नहीं करते अगर बस या सड़क पर किसी महिला के साथ छेड़खानी होती है तो वहां खड़ीं अन्य महिलाओं को मिलकर इस बात का विरोध् करना चाहिए। इसके अतिरिक्त महिलाओं को अपनी सेल्पफ डिपफेंस के लिए जूडो कराटे आदि भी सीखने चाहिए ताकि उनका पर्स चोरी करने या चैन स्नेचिंग करने पर चोरी करने वाले को ऐसा करारा जवाब दिया जाए कि वह भी अगली बार किसी महिला के साथ ऐसा करने पर दस बार सोचे।
नाईट शिफ्रत करने वाली महिलाओं की सुरक्षा
देश में रात की पॉली में कार्य करने वाली महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी कई सवाल उठ खड़े हुए हैं क्योंकि पिछले वर्ष दिल्ली में रात की पॉली में काम करने वाली महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की खबरें अखबारों में छपी, इन घटनाओं के बाद दिल्ली सरकार नींद से जागी और पिफर बीपीओ कंपनियों व कैब मालिकों को सख्त दिशा निर्देश दिए गये जिसके अन्तर्गत ऐसी महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने कम्पनियों को कहा कि रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं को सुरक्षित घर छोड़ने की जिम्मेदारी कम्पनी की होगी। साथ ही रात की पाली में काम करने वाली इन महिला कर्मचारियों को घर के दरवाजे तक छोड़ना होगा आदि। पर यह बिडम्बना ही है कि जब कोई घटना घटित होती है तो तभी प्रशासन की नींद खुलती है कुछ दिन दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन होता है पिफर वही पुराने ढर्रे पर कार्य होने लगते हैं। यही कारण है कि रात में महिलाएं कभी सुरक्षित महपफूज नहीं करतीं।
देश की राजधनी दिल्ली में बढ़ती असुरक्षा
देश की राजधनी दिल्ली और दिल्ली वालों का दिल द द दिल्ली आज महिलाओं के लिए पूरी तरह असुरक्षित हो गयी है। दिल्ली में हर वर्ष लाखों की संख्या में रोजगार की तलाश में देश के अविकसित क्षेत्रों, ग्रामीण व दूर दराज के इलाकों से लोग आ रहे हैं। हाल ही में घटी कुछ घटनाओं में महिलाओं के खिलापफ बढ़ते क्राईम ग्रापफ को देखकर तो दिल्ली सरकार ने भी हाथ खड़े कर लिए हैं। आज दिल्ली की हालत यह है कि यहां महिलाएं ही नहीं मासून बच्चे जिनमें लड़के व लड़कियां दोनों शामिल हैं इनके अलावा बुजुर्ग महिलाएं भी असुरक्षा के साए में जी रही हैं। यह बात दिल्ली में घटी दो घटनाओं जिनमें एक में बच्चों को स्कूल ले जाने वाली कैब ड्राइवर ने ही एक विध्वा महिला के तीन बच्चों जिनमें दो लड़के व एक लड़की भी शामिल थे नशीला पदार्थ खिलाकर कई बार उनके साथ दुष्कर्म किया। उसने बच्चों के मन में इतना खौपफ भर दिया कि इतने समय से बच्चे मां से भी कभी कुछ न बोल पाए। मगर जब बात का खुलासा हुआ तो बहुत देर हो चुकी थी। इसके अलावा दूसरी घटना में दिल्ली के रोहिणी इलाके में 77 वर्षीय बुजुर्ग महिला के साथ एक रिक्शेवाले ने बलात्कार किया। आखिर क्यांे समाज नैतिक पतन की दलदल में ध्ंसता जा रहा है। दिल्ली की एक अन्य घटनायें एक कॉलेज की छात्रा को राह चलते कुछ लड़के कार में उठाकर ले गए और छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।
नेशनल क्राइम रिकॉड ब्यूरा की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली महिलाओं के साथ केवल बलात्कार व छेड़छाड ही नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर हत्या के केस भी दर्ज हुए हैं। दिल्ली में होने वाली हत्याओं में से एक चौथाई संख्या महिलाओं की हैं। वर्ष 2010 के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि दिल्ली में बलात्कार के 489 केस दर्ज हुए जो वाकई में एक गंभीर बात है। जिसके निदान के लिए सख्त से सख्त कदम उठाए जाने चाहिएं।
आखिर क्यों अपराध्ी ऐसा करने से खौपफ नहीं खाते हैं? अपराध्यिों के मन में पुलिस व कानून का खौपफ खत्म होता जा रहा है। और इसका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है। अपराध्ी अगर पकड़ा भी जाता है तो बड़ी आसानी से पुलिस को मोटा पैसा खिलाकर छुट जाता है। यही कारण है कि दूसरा अपराध करने के लिए उनके हौंसले बुलंद हो जातें हैं। तभी तो महिलाओं के प्रति क्राइम ग्रापफ घटने की बजाए दिन पर दिन बढता ही जा रहा है। जबकि बलात्कारी आराम से ध्ूमता पिफरता है। यही वजह है कि लोकलाज के चलते कई मामले उजागर भी नहीं हो पाते। महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने वाले अपराध्यिों को कानून द्वारा सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए।
कुछ मामलों में महिलाएं स्वयं भी दोषी
बहुत बार ऐसे भी मामले सामने आते हैं जिनमें महिलाएं अपने साथ होने वाले यौनशोषण के लिए स्वयं भी जिम्मेदार होती है। क्योंकि पश्चिमीकरण और आध्ुनिकता की दौड़ में अंध्ी कुछ युवतियों व महिलाएं अपनी स्वतंत्राता का नाजायज पफायदा उठाती है। जिसमें सबसे बड़ा दोष उनके पहनावे व आध्ुनिक सोच को गलत दिशा की ओर मोड़ने का होता है ऐसी खुलेआम ऐसी पौशाकें पहनकर घुमना जिसमें अंगप्रदर्शन बढ़चढ़ कर दिखावा हो। कुछ युवतियां तो जानबूझ कर अपनी भाव भंगिमाओं द्वारा युवकों को उनका पीछा करने के लिए उकसाती हैं। तो ऐसे मामलों में पुरुषों को ही दोष देना सही नहीं है। बल्कि परिवार के लोगों को ही लड़कियों की सुरक्षा को घ्यान में रखते हुए उनपर विश्वास तो करना चाहिए लेकिन उस विश्वास को अंध्विश्वास में परिवर्तित कर लड़कियों को संस्कारों को तिलोनलि देकर मनमानी करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए।
माना कि आज जमाना महिला सशक्तिकरण का है वह घर परिवार और ऑपिफस को संभालने की दोहरी भूमिका निभा रही है। आज ऐसा कोई भी क्षेत्रा नहीं बचा है जहां वे न पहुंच पाई है। वह हर क्षेत्र में पुरुषों को कड़ी टक्कर दे रही है। लेकिन कहीं न कहीं वे असुरक्षा के वातावरण में जी ही रही है। इसके लिए केन्द्र राज्य सरकारों को मिलकर जितना हो सके उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए साथ ही लोगों को महिलाओं के प्रति अपने नजरियों में बदलाव लाने होंगे तब स्थिति कापफी हद तक बदलेगी।