Sunday, August 12, 2018

कत्ल की पहेली
शहर के मशहूर बिजनेसमैन साहिल भगत पर इल्जाम था कि उसने अपनी बेवफा बीवी को मौत के घाट उतार दिया था। कत्ल के बाद पुलिस ने उसे मौकायेवरदात से रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। सारे सबूत सारे गवाह उसके खिलाफ थे। कहीं से उसके बच पाने की कोई उम्मीद नहीं थी। पहेली सुलझने की बजाय निरंतर उलझती ही जा रही थी। रंगे हाथों कातिल को गिरफ्तार कर चुकने के बावजूद पुलिस उसे जेल भेजने में कामयाब नहीं हो पाई। कातिल इतना शातिर था कि कत्ल के बाद शक की सूई जबरन किसी और की तरफ मोड़ देता था। वो खेल रहा था, कभी पुलिस के साथ तो कभी विक्रांत गोखले के साथ। उसने कई मासूम लोगों के लिए दुश्वारियां खड़ी कीं, कईयों को उसकी वजह से पुलिस की शख्त पूछताछ का शिकार होना पड़ा। जल्दी ही ये बात सामने आ गई कि वो कोई वन मैन शो नहीं था। कातिल भले ही कोई एक जना था, मगर उसके पीछे कई मास्टरमाईंड काम कर रहे थे, जो योजनायें बनाते थे, कातिल के लिए कत्ल का वक्त और सहूलियत के साथ-साथ उसके बचाव के लिए भूमिका तैयार करते थे। उनके पास टैक्नोलाॅजी थी, हैकर था और हत्यारा था। सबकी सम्मलित टीम गुनाह को अंजाम देती थी। सब के सब सात पर्दों के पीछे छिपे हुए थे, कत्ल के बाद जंजीर की सबसे कमजोर कड़ी को तोड़ दिया गया था, लिहाजा पुलिस और गुनहगारों के बीच का फासला निरंतर बढ़ता ही जा रहा था।

Tuesday, July 10, 2018

                                                              चंगेज खान की मुहब्बत

उस रात बड़ी अजीब बात हुई।
रात के 12 बजे थे। चारों ओर सन्नाटा था। अपनी मेज पर मैं कहानी लिखने के लिए झुका ही था कि एक लंबे-चैड़े आदमी ने कमरे में प्रवेश किया। उसने बड़े ही अजीबो-गरीब किस्म के लबादेनुमा कपड़े पहन रखे थे। वह खरामा-खरामा चलता हुआ मेरी किताबों की अलमारी के पास बिछे सोफे पर जाकर बैठ गया और बड़ी ही बेतकल्लुफी के साथ बोला, ‘‘हैरान मत हो बरखुरदार, मैं चंगेज खान हूं। मंगोलों का सरदार चंगेज खान।’’
मैं उसे देखकर मुस्कुराया, ‘‘जरूर होंगे, मगर मेरे आका, आप अचानक कैसे तशरीफ ले आए? वह भी मुझ जैसे गरीब के गरीब-खाने पर। आपकी तलवार कहां है? फौज-फर्राटा-घोड़े वगैरह भी कहीं नजर नहीं आ रहे? क्या आप 800 साल से कब्र में लेटे-लेटे बोर हो गए थे?’’
‘‘नहीं।’’ उसने अपनी ठोढ़ी पर पूंछ जैसी लटकती अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर कर आंखें मिचमिचा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पास एक खास मकसद से आया हूं। मुझे पता चला है कि तुमने अभी-अभी एक ‘स्टोरी’ छपवाई है, जिसमें तुमने बड़ी ही बेतकल्लुफी और गैर जिम्मेदाराना तरीके से यह लिख दिया हे कि बामियान में जो मूर्तियां तोड़ी गईं, वह बिल्कुल ‘चंगेजी हरकत’ थी?’’
मैंने सकपका कर कहा, ‘‘माई-बाप! कहानियां लिखना मेरा पेशा है। रोजी-रोटी है। अगर उस लफ्ज से आपको तकलीफ पहुंची हो, तो मुझे माफ कर दें।’’
‘‘हूं।’’ चंगेज खान ने अपनी आंखें, जो उसके भारी भरकम, मगर चीमड़ चेहरे पर नन्ही-नन्ही इलायचियों सरीखी लग रही थीं, मेरे चेहरे पर गड़ाकर मुझे घूरकर हुंकार भरी। फिर बोला, ‘‘नहीं, मुझे उस लफ्ज पर उज्र नहीं। उज्र (आपत्ति) तो इस बात पर है कि दुनिया में जहां भी कहीं आफत, मुसीबत, बर्बादी या तहलका होता है, तुम जैसे लोग उसमें मेरा नाम डाल देते हो। यह अब मेरे लिए नाकाबिले बर्दाश्त होता जा रहा है। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी कहानी लिखो।’’
‘‘माई बाप।’’ मैंने थोड़ा संजीदा होकर कहा, ‘‘बेशक कहानियां लिखना मेरा पेशा है। मगर कहानियां तो उनकी लिखी जाती हैं, जिनकी जिन्दगी में थोड़ा-बहुत प्यार-मुहब्बत हो। इश्क वगैरह का किस्सा हो। आपकी लाइफ में तो सिवाय कहर और कयामत के कुछ नहीं है। मैं लिख भी दूं, तो उसे छापेगा कौन? और अगर आपकी दहशत से वह छप भी जाए, तो उसे पढ़ेंगे कौन?’’
‘‘खामोश।’’ अचानक चंगेज गरज उठा। 800 साल बाद भी चंगेज की बूढ़ी आवाज में बादलों जैसी गर्जन थी। उसने दांत किट-किट कर कहा, ‘‘हमारी कहानी लिखी भी जाएगी और पढ़ी भी जाएगी। आखिर यह क्या बकवास है कि दुनिया में जब भी जुल्म और सितम की चर्चा होती है, लोग उसमें मेरा जिक्र कर देते हैं। मैं कहता हूं कि 800 साल में यह दुनिया बिल्कुल नहीं बदली। बल्कि जो कुछ मैंने किया, आज की यह दुनिया उससे भी ज्यादा जुल्मो-सितम करती है।
मैं सिर झुकाए चुपचाप उसकी बात सुन रहा था। मेरी खामोशी से चंगेज थोड़ा नरम हुआ। बोला, ‘‘मैंने जो कुछ किया, पिछले 800 साल से कब्र में पड़े-पड़े मैं उसका प्रायश्चित कर रहा हूं। मगर इस धरती पर 800 साल में क्या नहीं हुआ?
‘‘ 2-2 विश्वयुद्ध, आणविक हथियार, रासायनिक हथियार, ये हिटलर, ये मुसोलिनी, ये स्टालिन, ये ओ डायर!’’
‘‘जो हुक्म!’’ मैंने कहा, ‘‘आप कहानी सुनाएं। मैं उसे टेप कर लेता हूं। बाद में इसे सिलसिलेवार लिख दूंगा।’’
‘‘ठीक है।’’ चंगेज ने कहा, ‘‘सुनो मेरी कहानी और दुनिया को बताओ कि चंगेज सिर्फ वहशी दर्रिदा ही नहीं, एक हंसान भी था और आज दुनिया में हजारों ऐसे इंसान हैं, जिनके भीतर दरिन्दे बसे हुए हैं।’’
‘‘जी।’’ मैंने कहा, और टेपरिकार्डर का बटन दबा दिया।
25 वर्षीय चंगेज खान ने जिस वक्त अपनी प्रेयसी और पत्नी बोर्ताई के तंबू में लगा ऊंट के चमड़े का परदा हटाया, वह बिल्कुल अकेला था। उसकी दाहिनी भुजा की अंगुलियों में फंसी तलवार से खून की बंूदें अभी तक टपक रही थी। जैसे ही बोर्ताई से चंगेज की नजरें मिलीं, उसके सारे जिस्म में वैसी ही सिहरन दौड़ गई, जैसी सिहरन बोर्ताई से पहली मुलाकात के वक्त उसके जिस्म में दौड़ी थी।
बोर्ताई तब भी वैसी थी, जैसी 4 साल पहले थी। वही रेगिस्तानी धूप में तपा चेहरा! छोटी-छोटी चमकदार आंखें! कसकर बांधा गया जूड़ा और पेड़ों की ऊन से बना लंबा-चैड़ा लबादा! गले और हाथों में पहले ढेर सारे चांदी के आभूषणों से फिसलती हुई चंगेज की आंखें बोर्ताई के नाक में पहने उस ‘नकबेसर’ पर जाकर अटक गईं, जो सोने का बना हुआ था और बोर्ताई के जिस्म का एक मात्र सोने का आभूषण था! नकबेसर हमेशा की तरह उसकी नाक के दोनों नथूनों के बीच की उपास्थि में फंसा हुआ था और उसके होंठों को ढंकता हुआ उसकी खूबसूरत ठोढ़ी तक लटक रहा था।
यूं तो सभी मंगोल स्त्रियां इस आभूषण को पहनती थीं, खुद चंगेज की मां ओएबून भी इसे पहनती थी। मगर इस आभूषण को पहनने का जो रहस्य उसे बोर्ताई ने बताया था, वह बड़ा ही अनूठा था। वह कहती थी, ‘‘यह नकबेसर होंठों का पहरेदार है। ताकि बगैर मर्जी के कोई होंठ न चूम सके।’’ फिर वह बड़ी अदा से, अपनी पतली-पतली अंगुलियों से पकड़कर, उस नकबेसर को उलटकर अपने होंठ उसकी तरफ बढ़ा देती जिसे चंगेज प्यार से चूम लेता, वह उससे अलग हो जाती और नकबेसर फिर से उसके होंठों पर ‘बैरियर’ की तरह लटकने लगता।
चंगेज रोमांचित हो उठा। उसने मुस्कुराकर बोर्ताई की ओर देखा। उसने गला खंखार कर जोर से कहा, ‘‘बोर्ताई! मैंने दुश्मनों को खत्म कर दिया है! मैं तुम्हें लेने आया हूं।’’ उसने बाएं हाथ से बोर्ताई को इशारा भी किया कि वह उसके करीब आए। लेकिन बोर्ताई उसकी ओर खामोशी से देखती रही।
चंगेज से रहा नहीं गया। वह धीरे-धीरे उसके करीब जा पहुंचा। उसने बोर्ताई की ओर मुस्कुराकर उसकी आंखों में झांका। वहां सुनापन था। चंगेज ने तलवार एक ओर फेंक दी। उसने जैसे ही बोर्ताई के नकबेसर को हाथ लगाया, उसकी आंखों से आंसुओं का दरिया बह चला। बोर्ताई ने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया और सुबकने लगी।
तभी तंबू में और लोगों के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।
‘‘तेंमुची!’’ यह चंगेज के पिता समान तुगरिल चाचा की आवाज थी, ‘‘दुल्हन को बताओ कि उंगीरा कबीले के उन सभी दुश्मनों को खत्म कर दिया गया है, जो येसूगाई के बेटे की दुल्हन को छीनकर यहां ले आए थे।’’
‘‘हां भाभी!’’ यह चंगेज खान यानी कि तेंमुची के बाल सखा जमूखा की आवाज थी, ‘‘आप बेखौफ हमारे साथ चलें। हमने आपकी राह के सबसे बड़े कांटे सिल्चर को भी मौत दे दी है।’’
सिल्चर का नाम सुनते ही बोर्ताई का सुबकना रुदन में बदल गया। वह विलाप करने लगी। कुछ भी सही, सिल्चर उसका पति था। उसके बेटे जूजी का पिता। उसने रूंधे हुए कंठ से कहा, ‘‘यह आपने क्या किया चाचा जान! मेरे बेटे के बाप को कत्ल कर दिया।’’
‘‘हां दुल्हन!’’ तुगरिल बोला, ‘‘हमारे दादा कबीले का यही उसूल है। जूजी अब तुम्हारा बेटा नहीं, उंगीरा कबीले का बेटा है। हमने अपने कबीले के उसूल के मुताबिक सिल्चर का कत्ल किया है और अब जूजी को भी कत्ल कर दिया जाएगा।’’ बोर्ताई ने तेंमुची की ओर आंसू भरी निगाहों से देखा। तेंमुची के सारे शरीर में रोमांच दौड़ गया। उसे पता नहीं था कि इन चार वर्षों में बोर्ताई एक बच्चे की मां भी बन चुकी है। एक ऐसे बच्चे की, जिसका पिता कोई और है। तेेंमुची ने सिर झुका लिया। बोला, ‘‘चाचा, मुझे थोड़ा सोचने दो। क्या जूजी को भी बेटे की तरह कबूल करना गलत है। अगर मुझे पता होता कि बोर्ताई सिल्चर के बेटे की मां बन चुकी है, तो शायद मैं इस कबीले पर हमला न करता। क्या सिर्फ बोर्ताई को ही अपने उलूस (कबीले) तक ले जाना गलत न होगा। आखिर जूजी को भी कबूल करना चाहिए।’’
तेंमुची के बाल सखा जमूखा को क्रोध आ गया। खून से सराबोर अपनी तलवार को ऊंचा उठाकर उसने कहा, ‘‘यह क्या कह रहे हो तेंमुची! दादा कबीले की आन और शान के खिलाफ बोले जा रहे हो तुम। कबीले का उसूल है कि औरत को हासिल करने के लिए उसके खाबिंद का कत्ल किया जाता है। तुम्हारे अब्बा हुजूर येसूगाई ने गलती की थी, मकीत कबीले के येके चिरादू को छोड़कर। मगर शुक्र है आसमान में बैठे ईलतेंगीरी का, जो उसने येके चिरादू को दोबारा दादा कबीले के लोगों की आंखों के सामने फटकने न दिया। जूजी हमारे दुश्मन का खून है। क्या तुम नहीं जानते कि बच्चे को कबूल करने के लिए ‘कुरिल्तई’ को बुलाना पडे़गा।’’
‘‘मैं येके चिरादू की बात नहीं कर रहा हूं।’’ सहसा तेंमुची की आंखों में खून उतर आया, ‘‘मुझे पता है कि उस नामुराद इंसान का मेरे बाप ने सात पहाड़ियों तक पीछा किया था। मगर मेरी मां ने भी किसी मकीत के बच्चे को जन्म नहीं दिया था। अगर हमने सिल्चर का कत्ल किया है, तो वह कबीले के उसूल के मुताबिक जायज है। क्योंकि सिल्चर बोर्ताई का खाबिन्द था। यह इसलिए भी जायज है, क्योंकि बोर्ताई से पहले हमारी शादी हुई थी। सिल्चर ने भी उसूलन हमें कत्ल करना चाहा था, जो उससे मुनासिब न हुआ। मगर सवाल जूजी का है। उस मासूम का क्या गुनाह है? फिर हमारे कबीले का उसूल भी है कि औरत के नाबालिग बच्चे को बेटे की तरह कबूल करना चाहिए। बेशक कुरिल्तई को बुलाना पडे़।’’
तंबू में धीरे-धीरे दादा कबीले के लोगों का हुजूम बढ़ने लगा। सबके हाथों में नंगी तलवारें थीं, जो खून से रंगी हुई थीं। लगता था जैसे उंगीरा कबीले के इस पूरे गांव को ही कत्ल कर दिया गया हो।
‘‘ठीक है, इसका फैसला कल के ‘कुरिल्तई’ (मंगोलों की पंचायत) में कर लिया जाएगा। इसी वक्त बोर्ताई को हमारे साथ हमारे उलूस (कबीले) तक चलना होगा, अपने बच्चे को छोड़कर।’’ चाचा तुगरिल ने व्यवस्था दे दी।
‘‘रहम चाचा, रहम।’’ सहसा बोर्ताई बिलख कर बोली, ‘‘आसमान में बैठे ईलेतेंगीरी के नाम पर मुझ पर तथा मेरे बेटे पर रहम करें। बेशक मैं उलूस में जाने को तैयार हूं, मगर अपने बेटे के साथ। जूजी अभी मासूम है। दो बरस का मासूम बगैर मां के कैसे रहेगा चाचा?’’ बोर्ताई सहसा अपनी जगह से चलकर चाचा तुगरिल के पास आ गई और उसने तुगरिल के पांवों के पास घुटनों के बल बैठकर अपने लबादे की झोली पसार दी।
तुगरिल का दिल पसीज गया। उसने दो पल सोचा। क्रमशः बोर्ताई और तेंमुची की आंखों में देखा। अपने पीछे खड़े दादा कबीले के लोगों पर गहरी निगाह डाली। फिर दाहिनी भुजा में पकड़ी तलवार उठाकर उसने व्यवस्था दी, ‘‘आसमान में बैठे ईलतेंगीरी के नाम पर एक दिन के लिए बोर्ताई के बेटे को जिन्दगी दी जाती है। कल के कुरिल्तई में जूजी की किस्मत का फैसला हो जाएगा। तब तक जूजी को अपनी मां के साथ रहने की इजाजत दी जाती है। लेकिन बोर्ताई को इसी वक्त दादा उलूस में चलना होगा।’’
बोर्ताई की आंखों से खुशी के आंसू बरस पडे़। ‘‘आमीन।’’ पीछे खड़े दादा कबीले के लोगों ने तलवारें लहराकर नारा लगाया और फिर सभी वापिस दादा कबीले की ओर चल पड़े। इस भीड़ में उंगीला कबीले के वे सभी बच्चे और औरतें थीं, जिनके पति और दूसरे परिवारीजन कत्ल कर दिए गए थे। गांव में आग लगा दी गई थी। उनके झोंपड़े गिरा दिए गए थे। ऊंटो के चमड़े से बने तंबू लूट लिए गए थे। घोड़े, भेड़-बकरियों को खोल लिया गया था। गांव का पूरा माल-असबाब लूट लिया गया था।
जिस समय चंगेज खान की बोर्ताई से शादी हुई थी, उसकी उम्र 9 साल थी और बोर्ताई की 6 साल। चंगेज का नाम उस वक्त तेंमुची था और उसकी पहचान सिर्फ यह थी कि वह दादा कबीले के शासक येसूगाई बहादुर का बेटा था।
येसूगाई बहादुर के बाप का नाम बरतन बहादुर था। बरतन बहादुर के पिता कुबर्लीखान दादा कबीले के शासक थे। यह कबीला आज के तुर्किस्तान और चीन के बीच फैले जेक्सार्टीज नदी के पूर्व से उत्तर तक के विशाल क्षेत्र में था। यह पूरा इलाका शुरू से ही पथरीली पहाड़ियों और पथरीले पर्वतों का विस्तार है। इसी क्षेत्र में गोबी का विशाल मरुस्थल है, जहां चंगेज खान के पूर्वज रहते थे। मंगोलों के ये कबीले दर्जनों ‘उलूसों’ अर्थात् जातीय कबीलों में विभक्त थे।
800 वर्ष पहले इनकी मुख्य जीविका मवेशी पालन, घोड़ों की नस्ल सुधारना और शिकार करना था। ये लोग खेती करना नहीं जानते थे। प्रायः ये लोग पशुओं की खालों से बने तंबुओं में रहते थे। ये तंबू गोल आकर के होते थे और इनमें ऊपर की ओर एक बड़ा-सा छेद होता था, जिसमें से धुआं निकालने का रास्ता था। ये लोग भेड़ की ऊन तथा चमड़े से बने कपड़े पहनते थे और निरंतर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करते रहते थे। एक ‘उलूस’ दूसरे ‘उलूस’ पर हमला करके पशु, मांस, शिकार तथा स्त्रियां छीन लेता था। भूख लगने पर, कई बार अन्य कोई साधन न होने पर ये अपने पशु की किसी एक ऐसी नाड़ी को काटकर वहां मंुह लगाकर खून पी लेते थे, जिसे बाद में जोड़ दिया जाता था।
निरंतर भ्रमणशील रहने तथा धूप, गर्मी में भटकते रहने के कारण इनके चेहरे चीमड़ (झुर्रियों भरे) रहते थे और स्नान न करने के कारण ये निरंतर अपनी त्वचा को खुजलाते रहते थे। विवाह के संबंध में इनकी मान्यता थी कि जब तक कोई अपना निजी ‘तबू’ न जुटा ले, उसे विवाह नहीं करना चाहिए। विवाह में ‘बहुविवाह’ मान्य था और एक पुरुष कई-कई विवाह कर सकता था। अनेक पत्नियां एक साथ रहती थीं।
किसी की पत्नी पसंद आने पर उसके पति की हत्या किए बिना उसे अपने साथ नहीं रखा जा सकता था। अस्थाई रूप से बसे गांव को ‘उर्त’ कहा जाता था और आपसी मसलेे ‘कुरिल्तई’ अर्थात् पंचायती फैसलों से निबटाए जाते थे। ‘कुरिल्तई’ को बाद में ‘मंगोल राजकुमारों की सभा’ के रूप में भी जाना गया।
मंगोल कबीलों का धार्मिक विश्वास किसी एक ‘ईश्वर’ की सत्ता में था, जिसे वह ‘ईलतेंगीरी’ कहते थे। लेकिन धर्म का कोई कर्मकांड नहीं था। उनके पास न कोई मूर्ति थी, न धार्मिक ग्रंथ। न देवालय, न पुरोहित। उनके पास कोई पौराणिक कथा नहीं थी। लिपी का ज्ञान न होने के कारण वे पढ़े-लिखे भी न थे। उनमें सामूहिक रूप से प्रार्थना करने, ईश्वर आराधना करने, भोजन करने, यहां तक कि नृत्य और गायन करने की भी संस्कृति न थी। उनकी सारी नैतिकता के नियम ‘कुरिल्तई’ द्वारा तय होते थे, जो समय≤ पर बदलते रहते थे। भेड़ की हड्डियों को जलते हुए अंगारों पर रखकर, उसमें बने निशानों को देखकर कबीले का सरदार कहीं चलने या रुकने का ‘मुहूर्त’ निकालता था।
भोजन में वे सभी प्रकार के पशु मांस, जिनमें गिलहरियां, नेवले, जंगली चूहे, सांप तक शामिल होते थे, खाते थे। अन्य खाद्य पदार्थों में पेड़ों की जड़, पत्ते, फल, छाल आदि रहते थे। मंगोल स्त्रियां इन्हें बड़े चाव से एकत्र करती थीं और मांस को भून कर खाने की प्रथा थी। मंगोल स्त्रियों का मुख्य कार्य शिकार को भूनना, फलों, जड़ों, पत्तियों को एकत्र करना, पशु का दूध दुहना, तंबुओं को गाड़ना तथा समेटना तथा प्रजनन करना था। हर तंबू में आग को निरंतर जलाए रखा जाता था, जिसे तंबू उखाड़ने के बाद एक मशाल के तौर पर साथ ले जाया जाता था।
साधारण मंगोल पुरुष एवं स्त्रियां इस प्रकार के अपर्याप्त भोजन एवं अनियमित दिनचर्या के कारण प्रायः बेडौल रहते थे। इनकी पतली बांहें, पतले पेट और कमजोर तथा चीमड़ शरीर रहते थे।
इसके बावजूद मंगोल ‘आदिम’ समाज के प्राणी न थे। उनमें जबरदस्त सैन्यकला थी। वे घुड़सवारी, तीर, तलवार, भाले चलाने में दक्ष थे। भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी सहने की उनमें अद्वितीय क्षमता थी। वे पांवों के निशान देखकर शत्रुओं का पीछा करते थे। आकाश के नक्षत्रों को देखकर दिशा का ज्ञान कर लेते थे।
दु्रतगति से पीछा करने और घात लगाकर आक्रमण करने में उनका सानी नहीं था। साधारण सी हैसियत के बावजूद वे इतने साहसी थे कि दीवारों से घिरे किलों, नगरों को उन्होंने ध्वस्त किया। अपने शत्रुओं से ही उन्होंने पत्थर के गोले फेंकने वाली तोपों को लूटा और फिर उन्हीं से उन पर आक्रमण किया।
मंगोलों का चूंकि अपना कोई निजी ‘धर्म’ या धार्मिक संगठन, पुरोहित या देवालय नहीं था, इसलिए वे तत्कालीन सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे और यह उम्मीद करते थे कि अन्य पुरोहित उनकी ‘विजय’ के लिए प्रार्थना करेंगे।
वे अन्तर्जातीय विवाह में विश्वास रखते थे। अपनी पुत्रियों को भी दूसरों को देने में उन्हें कोई ‘गुरेज’ न था।
चंगेज खान का वंश स्वयं को ‘दादा’ कबीला कहता था। जो उनके विश्वास के मुताबिक स्वर्ग में पैदा हुए ‘सलेटी भेड़िया और सफेद हिरणी’ के संयोग से पैदा ह ुए। ये पूर्वज बुर्खान पर्वत की तराई में बस गए थे। इन्हीं में से ‘बातची खां’ उनका आदि पूर्वज था, जिसकी ग्यारहवीं संतान हुआ दुआन मिगनि नाम का व्यक्ति था। मिगनि की पत्नी का नाम ‘एलन गोआ’ था, जिसके 2 पुत्र थे। मिगनी की मृत्यु के बाद उसके 3 पुत्र और हुए। दोनों वैध पुत्रों ने जब अपनी मां पर एक नौकर के साथ व्यभिचार का आरोप लगाया, तो एलन गोआ ने कहा, ‘‘तुम्हें यह मालूम नहीं है, क्योंकि प्रत्येक रात को सुनहरे रंग का एक इंसान मेरे तंबू की चमकती हुई खिड़की से आकर मेरे वक्षस्थल के संपर्क में आता था। मेरे वक्षस्थल में उसका सारा प्रकाश समा जाता था। वास्तव में मेरे तीनों पुत्र स्वर्ग के पुत्र है।’’
इसी एलन गोआ के पुत्रों में से ही चंगेज खान का प्रपितामह कुबलई खाकान था जो समस्त दादा जाति का प्रथम शासक था। कुबलई का उत्तराधिकारी ‘अन्हबई’ एक युद्ध में तातारियों के हाथों बंदी बनाकर ‘किन’ नामक सम्राट को सौंप दिया गया। ‘अन्हबई’ खाकान के 7 पुत्रों में से न था। ‘अन्हबई’ ने तातारियों से 13 बार युद्ध किया। इन्हीं युद्धों के दौरान चंगेज खान का जन्म हुआ। कहते हैं, जब चंगेज का जन्म हुआ था, वह अपने हाथों में रक्त का एक लोथड़ा पकड़े हुए था। उसके पिता येगुसाई बहादुर ने एक बंदी तातार के नाम पर चंगेज का नाम, बचपन में तेंमुची रखा था।
तेंमुची का पिता येसूगाई बहादुर, कुबलई खाकान के द्वितीय पुत्र बरतन बहादुर का पुत्र था। उसने अपने 2 भाइयों की सहायता से एक मकीत जाति के ‘येकेचिरादु’ नामक व्यक्ति की पत्नी ‘ओएलून’ का अपहरण करके विवाह कर लिया। येगूसाई ‘येके चिरादू’ की हत्या नहीं कर सका। वह भाग गया था। ओएलून के 4 पुत्र हुए-तेंमुची, खसर, खाचिऊन और तेमूलून। येगूसाई ने एक और विवाह किया था, जिससे उसें 2 पुत्र बेक्तोर और बेल्गूताई हुए। जब तंेमुची 9 वर्ष का हुआ, तो येसूगाई ने उंगीरा नामक कबीले के ‘दाई सेचेन’ नामक व्यक्ति की पुत्री ‘बोर्ताई’ से उसकी सगाई कर दी। तेंमुची को उसके भावी ससुर के घर छोड़कर जब येसूगाई वापिस आ रहा था, तो तातारियों ने येसूगाई को भोजन में विष दे दिया और वह मर गया।
चमड़े के तंबुओ से वहां जैसे पूरा नगर ही बसा हुआ था। गोलाकार तंबुओं, जिनके ऊपर एक बड़ा-सा छेद था, की संख्या हजारों में थी। एक तरफ भारी संख्या में घोड़े, भेड़, बकरियां और ऊंट बंधे हुए थे। उनके पास ही हजारों की संख्या में गाड़ियां खड़ी थीं। गाड़ियों में भारी मात्रा में पशुओं का चारा, ऊन तथा शिकार करने के सामान-औजार भरे हुए थे।
इन्हीं गोलाकार तंबुओं के बीचों बीच चमड़े का एक विशाल फर्श बिछाया गया था। यह ‘कुरिल्तई’ का दृश्य था। फर्श पर सैकड़ों की संख्या में मंगोल सरदार बैठे हुए थे, जिनके सिर मुंड़े हुए थे और जो ऊन के लबादे पहने हुए थे। सैकड़ों की संख्या में मंगोल चारों तरफ खड़े भी हुए थे। एक तरफ उनकी स्त्रियां अपने-अपने बच्चों को गोद में लिए खड़ी थीं। एक तरफ तेंमुची की मां अपनी बेटी तेमूलून के साथ स्त्रियों की भीड़ में खामोश खड़ी थी।
शाम के समय 60 वर्षीय तुगरिल जिसे ‘दादा’ कबीले के सभी लोग ‘तुगरिल चाचा’ कहते थे, उठ खड़ा हुआ। उसके आदेश से एक युवा मंगोल गड़रिए ने मिट्टी के एक बर्तन में दहकते हुए कोयले लाकर बीचोंबीच रख दिए। थोड़ी देर बाद वही गड़रिया भेड़ के कंधे की 3-4 हड्डियां वहां लेकर आया, जिसे तुगरिल ने हाथ में लेकर आकाश की ओर देखा और कुछ मंत्र बुदबुदाए। इसके बाद उसने ‘ईलतेंगीरी’ का नाम लेकर वह हड्डियां उन दहकते कोयलों के ऊपर रख दीं।
दहकते कोयलों पर हड्डियां ‘चट-चट’ की आवाज के साथ जलने लगीं। तुगरिल अपनी ठोढ़ी पर उगी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए उन्हें चटकते देखता रहा। मंगोल भीड़ शांत भाव से यह दृश्य देख रही थी। थोड़ी देर में ही, जब हड्डियां जलकर कोयला बन गईं, तो तुगरिल घुटनों के बल झुककर उन पर बने निशान देखने लगा। काफी देर तक उन निशानों का अध्ययन करने के बाद वह उठ खड़ा हुआ। भीड़ की ओर मुखातिब होकर उसने कहा, ‘‘तेंमुची वल्द येसूगाई वल्द बरतन बहादुर ‘ईलतेंगीरी’ के इस पवित्र स्थान पर हाजिर हो।’’
फर्श पर बैठा तेंमुची उठकर खड़ा हो गया और धीरे-धीरे चलकर तुगरिल की बगल में जाकर खड़ा हो गया।
तुगरिल ने दोनों हाथ आकाश में उठाकर फिर कुछ मंत्र बुदबुदाए। फिर हुक्म दिया, ‘‘ईल-तेंगीरी के हुक्म से मैं हुक्म देता हूं कि उंगीरा कबीले के दाई सेचेन की दुख्तर और भकीत कबीले के सिल्चर की बेवा बोर्ताई इस पाक ‘कुरिल्तई’ में हाजिर हो।’’
भीड़ की निगाहें बोर्ताई की ओर घूम गईं। बोर्ताई, जो मंगोल कबीले की स्त्रियों के बीच ऊन का मोटा झबला लपेटे, अपनी गोद में बच्चे को लिए खड़ी थी, सिर झुकाए धीरे-धीरे चलती हुई वहां आई और तुगरिल के दाहिनी और थोड़ा हटकर सिर झुकाकर खड़ी हो गई। उसकी गोद में अभी भी बच्चा था, जो भीड़ को देखकर रो रहा था। बच्चे के रोने की आवाज उस भारी भीड़ के सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी।
थोड़ी देर की खामोशी के बाद तुगरिल ने कहना शुरू किया, ‘ईलतेंगीरी के हुक्म से और ‘दादा’ उलूस के कायदों के मुताबिक कल दादा उलूस के बहादुर जवानों ने भकीतों के खिलाफ कूच किया। इस कूच में 20000 किरातों और दादा कबीले के बहादूरों ने हिस्सा लिया। इस पाक युद्ध में भकीतों के 300 गुनहगारों को कत्ल की सजा दी गई और उनके कब्जे से दादा उलूस की इज्जत ‘बोर्ताई’ को बाइज्जत वापिस लाया गया।’’
तुगरिल सांस लेने के लिए थोड़ी देर रूका। उसने शांत खड़े और बैठे मंगोलों पर एक निगाह डाली और फिर कहना शुरू किया, ‘‘दादा उलूस के बहादुर नौजवान तेंमुची, हमारे बचपन के दोस्त और दादा कबीले के पहले सम्राट कुबलई खाकान के वंशज येसूगाई बहादुर के बेटे हैं। येसूगाई ने आज से 16 साल पहले उंगीरा कबीले के दाई सेंचेन नामक व्यक्ति की बेटी बोर्ताई से अपने बेटे तेंमुची की शादी की थी। चूंकि येसूगाई ने भकीत कबीले की ओएलून से शादी की थी और उसके खाबिंद को जिंदा छोड़ दिया था, इसलिए भकीत इस बात से नाराज थे कि दादा कबीले के लोग भकीत कबीले के सगोत्री उंगीरा कबीले की किसी बेटी से रिश्ता करें। इसलिए उन्होंने तातारियों से कहकर पहले ही येसूगाई को खाने में जहर देकर मरवा डाला।’’
‘‘मगर येसूगाई ने ओएलून से शादी के वक्त यह क्यों नहीं देखा कि उसका खाबिंद येकेचिरादू जिन्दा है। कबीले के कानून के मुताबिक येसूगाई को या तो येकेचिरादू की मौत का इंतजार करना चाहिए था, या उसे कत्ल करना चाहिए था।’’ अचानक दादा कबीले में से ही एक बुजुर्ग मंगोल उठकर खड़ा हो गया। उसकी जोरदार तर्कपुर्ण बात सुनकर पहले से ही सन्नाटे में डूबी सभा में सन्नाटा और गहरा हो गया।
‘‘मेरे बुजुर्ग दोस्त ने बजा फरमाया।’’ तुगरिल ने उस बुजुर्ग की बात का इस्तकबाल करते हुए कहना शुरू किया, ‘‘यह सच है कि दादा उलूस के कानून के मुताबिक येसूगाई को येकेचिरादू की मौत से पहले ओएलून से शादी नहीं करनी चाहिए थी। मगर येसूगाई का दोस्त होने के नाते, मैं इस बात की गवाही देता हूं और तस्दीक करता हूं कि येसूगाई ने येकेचिरादू का सात पहाड़ियों तक पीछा किया था। मैं उसके साथ खुद था। मगर येकेचिरादू भाग गया। ऐसी हालत में ओएलून से येसूगाई की शादी जायज थी। खुद ओएलून ने इस शादी को कबूल किया था।’’
भीड़ की निगाहें ओएलून की ओर घूमीं। ओएलून ने सिर झुकाकर अपनी मौन स्वीकृति दी और वह अपनी बेटी तेमूलून के सिर पर हाथ फेरने लगी।
तुगरिल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहना शुरू किया, ‘‘लेकिन इस पुरानी रंजिश की बिना पर भकीतों ने एक और कबीले ‘ताईचू’ की मदद से येसूगाई की औलादों को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। येसूगाई की मौत के बाद ओएलून ने जड़ें खोदकर, पत्ते खाकर और खुद शिकार करके अपने 4 बेटों को पाला। मगर भकीत तेंमुची को मारने की फिराक में लगे रहे। भकीतों के डर से तेंमुची महीनों जंगल में रहा और इधर-उधर छिपता रहा। आखिरकार जब उसने अपना खुद का तंबू बना लिया और नौ घोड़े इकट्ठे कर लिए तो उसने बोर्ताई से शादी की। फिर भकीतों को क्या हक था कि वे उसके घर पर हमला करें। उसके तंबू में आग लगा दें। उसके घोड़ों, भेड़ों और ऊंटों को छीन लें और उसकी बीवी बोर्ताई को छीनकर उसकी शादी भकीत कबीले के एक दूसरे इंसान सिल्चर से कर दें?’’
सभा में बैठे सभी मंगोलों में जोश आ गया। वे चिल्लाने लगे, ‘‘सभी भकीतों को इसकी सजा मिलनी चाहिए। उनका कत्ल-ए-आम होना चाहिए।’’
‘बेशक।’’ तुगरिल ने मुट्ठियां भींच लीं, मगर फिर आकाश की ओर हाथ उठाकर उसने कुछ मंत्र बुदबुदाए और फिर खामोशी से कहना शुरू किया, ‘‘मगर ईलतेंगीरी ने मुझे हुक्म दिया कि इसमें सभी भकीतों को सजा नहीं देनी चाहिए। सजा सिर्फ गुनहगारों को मिलनी चाहिए। इसलिए मैंने और मेरे भाई जमूखा ने, जो खुशकिस्मती से तेंमुची का दोस्त है और उसे प्यार से ‘अंदास’ (सगा भाई) कहता है, ने आप लोगों की मदद से, भकीतों के खिलाफ कूच किया और बोर्ताई को उनके कब्जे से आजाद किया। ‘ईलतेंगीरी’ के हुक्म से और दादा कबीले के उसूलों के तहत बोर्ताई से दूसरी शादी करने वाले सिल्चर को कत्ल करके सजा दी गई। खिलाफत करने वाले 300 भकीतों को भी कत्ल करके सजा दी गई।’’
भीड़ में सन्नाटा अभी तक छाया हुआ था। ‘‘लेकिन अब मसला दूसरा है।’’ तुगरिल सहसा रूका, उसने खामोशी से निकट सिर झुकाए खड़ी बोर्ताई पर एक गंभीर निगाह डालकर कहना शुरू किया, ‘‘अब मसला यह है कि बोर्ताई की गोद में भकीत सिल्चर का दो साल का बच्चा है। इस बच्चे का क्या किया जाना चाहिए?’’
वही बुजुर्ग फिर से खड़ा हो गया। बोला, ‘‘बेशक, पहले इसी कबीले का उसूल था कि दुश्मन के बच्चे को भी कत्ल कर देना चाहिए। मगर हमारे ही खाकान ने इस कबीले में यह हिदायत रखी थी कि छोटे बच्चे का कोई कसूर नहीं होता। उस बच्चे को तेंमुची ही अपने बड़े बेटे की तरह पालने का वायदा इस ‘कुरिल्तई’ में करे। उसे अपना हक दने का भी वायदा करे।’’
बुजुर्ग इतना कहकर बैठ गया। कुरिल्तई में बैठे मंगोलों की निगाहें वापिस तेंमुची की ओर उठ गईं। तेंमुची के होंठ भिंचे हुए थे। क्रोध की चिंगारियां निकल रही थीं। उसने अपनी दाहिनी हथेली को मुट्ठी बनाकर बायीं हथेली पर मारा। फिर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘इतनी बड़ी ‘कुरिल्तई’ में इतनी बड़ी बेइज्जती मैंने कभी नहीं सही। आखिर मैं इस बोझ को अपने सीने में रखकर कब तक जीऊंगा कि मैं जिसे अपना ‘बेटा’ कह रहा हूं, वह मेरा नहीं, मेरे दुश्मन का बेटा है?’’
अब तक खामोश खड़ी बोर्ताई ने चैंककर तेंमुची की तरफ देखा। उसकी सूनी आंखों से सहसा आंसुओं का दरिया फूट चला। वह फिर से सुबकने लगी।
‘‘मगर’’, तेंमुची कह रहा था, ‘‘इस पूरे ‘करिल्तई’ में, आप सब लोगों की मौजूदगी में, मैं ‘ईलतंेगीरी’ की ओर दोनों हाथ उठाकर आपसे वायदा करता हूं कि मैं बोर्ताई को बेहद प्यार करता हूं। बोर्ताई सिर्फ मेरा प्यार ही नहीं, दादा उलूस की, मेरे खानदान की इज्जत भी है। मैं यह भी वायदा करता हूं कि उसके बेटे जूजी को, मैं अपने सबसे बड़े बेटे की तरह पालूंगा। उसे बड़े बेटे की इज्जत और हक दूंगा।’’
इतना कहकर तेंमुची का गला भर्रा गया। इससे ज्यादा वह बोल नहीं सका और वहां से एक तरफ धीरे-धीरे चला गया। भीड़ अवाक् होकर उसे जाता देखती रही।
‘बोर्ताई!’’ तुगरिल ने भावुक स्वर में कहा, ‘‘बोर्ताई, क्या तुम्हें भी अपने हक में कुछ कहना है? अगर तुम चाहो तो अपने बेटे को उसके बाप के रिश्तेदारों को दे सकती हो। यह ‘कुरिल्तई’ वादा करता है कि अगर तुम चाहो तो तुम्हारे बेटे को भकीतों के पास वापिस पहुंचा दिया जाएगा।’’
‘‘बोर्ताई ने आंसुओं से भीगा अपना चेहरा ऊपर उठाया। गोद में खामोश बैठे अपने अबोध शिशु को उसने चूमा, फिर उसे ‘कुरिल्तई’ के बीच में बिछे चमड़े के फर्श पर लिटा दिया। बच्चा मां की गोद छिनते ही रोने लगा। उसका रूदन पूरे ‘कुरिल्तई’ में एक हाहाकार की तरह गूंज रहा था। बच्चे के रोने की परवाह न करते हुए बोर्ताई ने अपना दुपट्टा अपने सिर पर रखा। ‘कुरिल्तई’ को दोनों हाथ जमीन से लगाकर प्रणाम किया। फिर आकाश की ओर मुंह करके दोनों हाथ उठाकर उसने कहा, ‘‘मैं बेबस बोर्ताई ‘ईलतेंगीरी’ की खिदमत में इस कुरिल्ताई के जरिए अपनी अर्ज रखना चाहती हूं कि वह मुझे मेरा कसूर बताएं कि आखिर मेरे बेटे को मुझसे जुदा क्यों किया जा रहा है?’’
कुरिल्तई में सन्नाटा छा गया। लोग अवाक् होकर देखते रह गए। बोर्ताई भीड़ में होकर जाने कहां जा रही थी।
मैं खामोश और रोमांचित होकर चंगेज खान के मुंह से उसकी कहानी सून रहा था। मैं हत्प्रभ था। मैंने अब तक सिर्फ यही सुना और पढ़ा था कि चंगेज खान जैसा दुर्दान्त और क्रूर व्यक्ति आज तक पैदा नहीं हुआ। इतिहास उसे आज तक का सबसे बड़ा ‘संहारक’ बताता आया है। चंगेज के जिम्मे अब तक  40 लाख के आसपास लोगों के कत्ल किए जाने का आरोप है।
जब मुझे मालूम पड़ा कि बोर्ताई अपने बेटे जूजी को भरे ‘कुरिल्तई’ में एकाएक छोड़कर न जाने कहां चली गई है, तो मेरे हृदय में हाहाकार मच गया था। चंगेज खान खामोशी से अपनी कहानी मुझे सुनाए जा रहा था। मेरे लिए यह किसी सदमे से कम न था। मैं नहीं समझ पाया कि अचानक ऐसा कैसे और क्यों हुआ? मैं तो भरी सभा में उसके बेटे को अपनाने, उसे सबसे बड़ा ‘बेटा’ मानने और वैसी ही इज्जत बख्शने का वायदा करके आया था। फिर वह अचानक चली क्यों गई? और फिर अपने बेटे को छोड़ क्यों गई?
मैं उस समय अपने तंबू में बैठा आंसू बहा रहा था, जब जमूखा मेरे पास यह खबर लेकर आया कि बोर्ताई जूजी को ‘कुरिल्तई’ में छोड़कर चली गई। जमूखा मेरे चाचा तुगरिल का भाई था। तुगरिल भी मेरा खास सगा ‘चाचा’ न था। मेरे पिता येसूगाई पर जब मेरे चाचा गोरखान ने हमला किया था तो तुगरिल ने मेरे पिता की मदद की थी। तभी से मैं तुगरिल को अपने पिता तुल्य ही मानता था। जमूखा बचपन में मेरे साथ खेला था, इसलिए वह मेरा दोस्त था और मैं उसे अंदास (सगा भाई) कहता था।
‘‘वह कहां गई होगी?’’ मैंने जमूखा से पूछा, तो जमूखा ने कहा, ‘‘कह नहीं सकता। शायद वह वापिस भकीतों के पास चली गई हो। मगर जिस तरह वह अकेली चल दी है, उससे मुझे शक होता है कि कहीं यह कोई चाल न हो।’’
जमूखा की बात सही भी हो सकती थी। ‘कुरिल्तई’ खत्म हो चुका था। तुगरिल ने ही जमूखा को मेरे पास भेजा था कि मैं जाकर किसी तरह बोर्ताई का पता लगाऊं, क्योंकि तुगरिल ने शुरू में यही समझा था कि बोर्ताई अपने दुख की वजह से औरतों वाले किसी तंबू में अपने बच्चे को छोड़कर चली गई होगी।
‘‘जूजी कहां है?’’ मैंने दोबारा जमूखा से पूछा, तो जमूखा ने धीरे से कहा, ‘‘उसे चाची ओएलून ने अपने पास रख लिया है। लेकिन वह लगातार रोए जा रहा है।’’
मैंने ज्यादा सोच विचार करना उचित नहीं समझा। मैं तंबू से बाहर आया। जमूखा मेरे साथ था। मैंने एक घोड़े को खोला और उस पर चढ़कर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने जमूखा से कहा, ‘‘तुम जाकर अपनी चाची ओएलून से कहो कि वह बच्चे को संभाले। मैं बोर्ताई को लेकर अभी आता हूं।’’
मैं जंगल में दौड़ पड़ा। मेरा घोड़ा जिस ‘काले जंगल’ की तरफ भाग रहा था, वह हमारे ही सगोत्री किरातों का इलाका था। पास के ही जंगलों में ताईचू रहते थे, जिनसे हमारी दुश्मनी थी। मुझे रास्ते में सिर्फ एक व्यक्ति मिला था, जिसने बोर्ताई को काले जंगल की ओर आंसू बहाते हुए जाते देखा था। मेरे लिए यह बड़े ताज्जुब की बात थी कि जिस बोर्ताई को हासिल करने के लिए मेरे कबीले के लोगों ने 300 भकीतों का कत्ल किया था, उसे यूं इस तरह रोते-बिलखते जाने दिया गया।
अभी मैंने आधा मुकाम भी पार न किया था कि मैंने एक छाया को तेजी से ओनान नदी की ओर जाते देखा। वह छाया बोर्ताई की ही थी। मैंने घोड़े को तेजी से ऐड़ लगाई। घोड़ा सरपट भाग चला। मैं रूंआसा हो उठा। यह वही नदी थी, जहां मैं एक बार भकीतों के भय से छिपकर सिर्फ सांस लेने की एक बांस की नलकी के सहारे सुबह से शाम तक पड़ा रहा था। भकीतों ने तब यही समझा था कि मैं ओनान में डूब कर मर गया था और वे चले गए थे। और आज इसी नदी में बोर्ताई अपनी जान देने जा रही थी।
मगर मैं ठीक समय पर पहुंच गया। मैंने उसके ठीक सामने अपना घोड़ा अड़ा दिया। बोर्ताई का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था। उसकी नाक में पड़ा नकबेसर उसके फड़फड़ाते होंठों पर झूल रहा था। उसने डबडबाई आंखों से मेरी तरफ देखा, फिर बोली, ‘‘मुझे मौत को गले लगाने दो खाकान! औरत की जिन्दगी में यही लिखा रहता है कि वह या तो अपने महबूब के बच्चे की मां बने, या फिर अपनी जान दे दे।’’
‘‘बेवकूफ औरत!’’ मैंने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘जिस जूजी की वजह से तुम मरना चाहती हो, उसे तुम किसके सहारे छोड़ कर जा रही हो? जुजी को उसका बाप तो नहीं मिला। मां का हक भी तुमने छीन लिया। अगर उसे मारना ही था, तो उस वक्त उसे मारने से क्यों रोका, जब तुगरिक के साथ गए लोग उसे कत्ल कर देना चाहते थे?’’
मैं घोड़े से उतर आया। बोर्ताई की आंखों में आंसू थे या नहीं, यह मैं देख नहीं सका, क्योंकि सूरज बस छिपना ही चाहता था। मगर उसकी सिसकारियों से मैंने यह अंदाजा जरूर लगाया कि वह रो रही थी। मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर मुझसे गलती कहां हुई? और बोर्ताई इस तरह जूजी को बेसहारा छोड़कर मरना क्यों चाहती थी?
‘‘आओ लौट चलो।’’ मैंने बोर्ताई का मुलायम हाथ पकड़ा, ‘‘मैंने कुरिल्तई में हजारों लोगों के सामने वायदा किया है कि मैं जूजी को अपने बड़े बेटे का हक और इज्जत दूंगा। उस दिन तुम्हारे घर भी यही बात कही थी। और आज यहां, सूरज की तरफ हाथ उठाकर ‘ईलतेंगीरी’ की गवाही में तुम्हें यही वादा देता हूं।’’
बोर्ताई की सिसकियां और तेज हो गईं।
मैंने खामोशी से उसका आंसुओं भरा चेहरा ऊपर उठाया। उसकी आंखें गीली थीं। होंठों पर झूलता नकबेसर भी आंसुओं की बूंदों से भीगा हुआ था। मैंने उसके नकबेसर को अपनी अंगुलियों से उलटकर उसके गालों पर पलट दिया। बोर्ताई ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। सूरज की बहुत क्षीण, मद्धिम रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। मैंने हौले से कहा, ‘‘बोर्ताई, आखिर तुम मरना क्यों चाहती हो?’’
‘‘तेंमुची!’’ बरसों बाद पहली बार बोर्ताई ने अपनी जुबान से मेरा नाम लिया। भर्राए गले से बोली, ‘‘मेरे खाकान, तुम नहीं जानते कि औरत का दर्द क्या होता है? तुमसे मेरी शादी हुई, तो भकीत कबीलों के लोगों ने मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहने दिया। जबकि मैं बचपन से ही तुमसे मुहब्बत करती थी। भकीतों ने जबरदस्ती मुझे तुमसे छीन लिया और सिल्चर से मेरी शादी कर दी। मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि मैं इस वाकये के बाद कितना छटपटाई। मगर मैंने इसे ‘ईलतेंगीरी’ का हुक्म समझकर बर्दाश्त किया। तुम्हें भुलाने की बहुत कोशिश की, मगर भुला न सकी। मेरी जिन्दगी खत्म हो गई थी। मगर सिल्चर ने मुझे एक मासूम बच्चे जूजी की मां बना दिया। मेरी बेबसी की कोई इन्तहा नहीं थी। उस मासूम के जरिये मैंने जीने का बहाना ढूंढा। मैंने किसी तरह खुद को इसके लिए तैयार ही किया था कि यह हादसा हुआ। तुम दोबारा से मेरी जिन्दगी में आ गए। आए भी तो इतने बड़े खून खराबे के बाद। मेरे बेटे के बाप की जिन्दगी छीनने के बाद। खाकान! जरा ठंडे दिल से सोचो, मेरी जैसी औरत इस हालत में यकायक तुम्हें कैसे अपनाती? मगर मैंने बर्दाश्त किया। एक बार फिर से इन हालातो को ‘ईलतेंगीरी’ की मरजी माना। मगर ये ‘कुरिल्तई’, सारी दुनिया के बीच अपनी इज्जत और मुहब्बत का तमाशा, यह मुझसे बर्दाश्त नहीं होता खाकान! बर्दाश्त नहीं होता!’’ इतना कहते-कहते बोर्ताई भरभरा कर रो पड़ी और रोते-रोते मेरी बांहों में ही झूल गई।
मैं तड़प कर रह गया। मैंने बेहोश बोर्ताई को होश में लाने की कोशिश करते हुए जल्दी से कहा, ‘‘होश में आओ बोर्ताई! होश में आओ। बताओ, मैं तुम्हारे लिए और क्या कर सकता हूं?’’
‘‘तुम चाहो, तो भी कुछ नहीं कर सकते खाकान!’’ बोर्ताई उसी तरह मंद स्वर में कहती जा रही थी, ‘‘कल मुझे तुमसे भकीतों ने छीना। आज तुम मुझे भकीतों से छीन लाए। कल फिर भकीत मुझे तुमसे छीनेंगे। यह सिलसिला चलता रहेगा। मैं छिनती रहूंगी। जूजी जैसे बच्चे इसी तरह मिट्टी के ढेर में दम तोड़ते रहेंगे। इससे तो बेहतर है, मैं ही जान दे दूं, ताकि कल कोई दूसरा जूजी पैदा न हो।’’
इतना कहकर बोर्ताई ने आंखें बंद कर लीं। उसकी गर्दन एक ओर मेरी बांहों में लुढ़क गई।
इसके बाद तेंमुची उर्फ चंगेज खान ने वही किया, जो वह कर सकता था। सिर्फ वही! तेंमुची यानी चंगेज खान।
सन् 1220!
यद्यपि समरकंद निकट था, किन्तु चंगेज ने पहले जनकि और नूर के मार्ग से बुखारा के विरूद्ध कूच करने का निर्णय लिया। वह एक लम्बा, तगड़ा, स्वस्थ तथा सुडौल शरीर वाला व्यक्ति था। उसकी आंखें बिल्लियों जैसी थीं और उसकी छितरी दाढ़ी के बाल जल्दी ही सफेद हो गए थे। ऊंट के चमड़े की बनी जैकेट वह हमेशा पहनता था और एक बड़ी तलवार हर वक्त उसके हाथ में रहती थी। बुखारा नगर कोक खान नामक मंगोल के अधीन था। यह व्यक्ति चंगेज खां के पास से भाग आया था और उसने सुल्तान के यहां शरण ले ली थी। कोक चंगेज की बेरहम मानसिकता से वाकिफ था। अतः उसने युद्ध करने का ही संकल्प किया, क्योंकि बगैर युद्ध के भी चंगेज उसे जीवित नहीं छोड़ने वाला था। लेकिन नागरिकों ने चंगेज के पास अपना एक धार्मिक व्यक्ति संदेश लेकर भेजा कि वह नगर में प्रवेश करे।
चंगेज जामा मस्जिद के मंच पर प्रकट हुआ। उसने खुलेआम मांग की, ‘‘मैं ईश्वर का दंड हूं। यदि तुमने भयंकर पाप न किए होते, तो ईश्वर ने मेरे समान दंड तुम्हारे विरूद्ध न भेजा होता। इस भूमि के ऊपर तुम्हारे पास जो संपत्ति है, उसे बताने की आवश्यकता नहीं है। जो कुछ भूमि के नीचे है, वह मुझे बता दो। तुम्हारा यह मुल्क निहायत बेहूदा है। प्रदेश में रातिब (चारा) तक नहीं है। हमारे घोड़ों के पेट भरने का इंतजाम करो।’’
जिस समय चंगेज खान यह कह रहा था, उस समय तक बुखारा के बड़े-बड़े नेता मंगोलों के घोड़ों की देखभाल कर रहे थे। वे संदूकें, जिनमें कुरान रखी जाया करती थीं, घोड़ों को चारा खिलाने की नांद बनाने के लिए एकत्र कर ली गई थीं। चंगेज खान ने बुखारा के 280 धनी व्यक्तियों को अपने शिविर में बुलाकर बंधवा दिया और प्रत्येक पर एक-एक मंगोल सैनिक की ड्यूटी लगा दी कि वह प्रत्येक से जितना संभव हो सके, धन वसूल करें।
किन्तु समस्या फिर भी बनी ही रही। नगर की रक्षक सेना कोक खां अपने प्राणों की आहूति देेने को कटिबद्ध थे। वे दिन-रात मंगोल सेेनाओं का सामना कर रहे थे। उन दिनों बुखारा में जामा मस्जिद और राज महल के सिवाय सभी नागरिकों के मकान लकड़ी के बने हुए थे। ईंट-पत्थरों से मकान बनाना हर किसी के बूते न था। जब चंगेज ने सुना कि कोक खां बाज नहीं आ रहा है, तो उसने नगर के मकानों को जला डालने का हुक्म दे दिया।
सारा नगर आग की लपटों से घिर कर भस्मसात् हो गया। अंत में नगर पर पूर्ण अधिकार कर लिया गया और कोक के सारे सैनिकों को मार डाला गया। गिरफ्तार किए गए युवाओं में, जो भी बालक कोड़े के दस्तों की ऊंचाई से लंबा था, मार डाला गया। तीस हजार शवों की गणना की गई। सैकड़ों बच्चों तथा स्त्रियों को दास बना लिया गया। बाकी, बुखारा के समस्त नागरिकों को मुसल्ला नामक मैदान में गणना के लिए लाया गया। युवक तथा अधेड़ आयु के लोग, जो अगले कूच, जो समरकंद की ओर था, जो सैनिक सेवा के लायक थे, चुन लिए गये। चंगेज जब वहां से चला, तो बुखारा, जो कभी एक जीता-जागता नगर था, एक धुआं देता कब्रिस्तान बन चुका था।
चंगेज ने बुखारा के बाद समरकंद का दुर्भाग्य निश्चित किया। सुल्तान ने समरकंद की हिफाजत के लिए 60000 तुर्क तथा 50000 ताजिक सैनिक नियुक्त किए थे। मगर चंगेज ने नगर को घेरने के 2 दिनों तक कोई युद्ध नहीं किया। तीसरे-चैथे दिन कुछ झड़पें हुईं। पांचवें दिन नगरवासियों ने अपना काजी और शेख-उल-इस्लाम आत्मसमर्पण के लिए भेजा। लेकिन चंगेज ‘देरी’ की वजह से नाराज था। नगर की दीवारें गिरा दी गईं और दूसरे दिन, दूसरी नमाज के वक्त तक उसने पूरे नगर पर कब्जा कर लिया। सुल्तान के 20 वरिष्ठ मंत्रियों सहित 300 सैनिकों का कत्ल कर डाला गया। 1221 की बसंत ऋतु चंगेज ने ऐसे ही गुजारी और फिर वह नकशब के हरे-भरे मैदान में चला आया।
सन् 1221!
चंगेज ने अपने सबसे छोटे पुत्र तुलुई को सदा अपने साथ रखा था। तुलुई अपना जीवन एक अभिशप्त शराबी की तरह बिताता था, लेकिन जब चंगेज ने उसे खुरासान पर हमले के लिए भेजा, तो उसने साबित कर दिया कि वह वाकई चंगेज का बेटा है। खुरासान में ऐसे लोगों की संख्या लाखों में थी, जो आत्मसमर्पण करना चाहते थे। काफी लोग भागकर मर्व नामक घाटी में भी चले गए थे। इन भागने वालों में 70000 तुर्क थे। तुलुई ने अपने पिता का अनुसरण करते हुए सभी तुर्कों की हत्या करवा दी। मर्व की घाटी में छिपे सभी निवासी स्त्रियों, पुरुषों को गणना के लिए नगर के बाहर एक मैदान में 4 दिनों तक भूखा-प्यासा रखकर उनकी गणना करने के बाद ‘कत्ल-ए-आम’ का हुक्म दे दिया गया।
प्रत्येक मंगोल सैनिक को इस आदेश का पालन लाजमी था। अतः प्रत्येक मंगोल सैनिक ने तीन सौ से चार सौ व्यक्तियों की हत्या की। सैयद नसीब ईजुद्दीन नामक एक व्यक्ति इस नरसंहार से किसी तरह भाग निकला था। उसने बाद में शवों की गणना की। फरवरी, 1221 में 13 दिनों में वह सिर्फ 13 लाख शवों की ही गणना कर पाया था। मर्व की घाटी उपजाऊ है, इसलिए यह संख्या अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है।
खुरासान का विनाश, जिसे मंगोल साहित्य में  ‘महान् विजय’ कहा जाता है, के बाद नैशापुर नामक एक अन्य नगर के विनाश का निश्चय किया गया। बहाना ढूंढना कठिन नहीं था। जिस समय तुलुई ने मर्व पर आक्रमण किया था, उसी समय चंगेज का एक दामाद, जिसका नाम तोगाचार कुर्गेन था, अपने 10000 सैनिकों के साथ नैशापुर में आया था। उसे अचानक एक वाण लगा और वह मारा गया। तुलुई का बहनोई और चंगेज का दामाद मारा जाए और नगर का सर्वनाश न हो? तोगाचार की सेना तुलुई के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। दुर्भाग्य तो तय हो गया था, केवल उसके विनाश के ‘प्रकार’ के निर्णय की प्रतीक्षा थी।
सब्जवार, जिसे बैहाक भी कहते हैं, पर तीन दिन के भीषण युद्ध के बाद, विजय प्राप्त कर ली गई। स्पष्ट कत्ले आम का आदेश दिया गया और 70000 लाशें गिनी गईं। तोगाचार सेना तुलुई के आने में बेकरार थी। इसी बेकरारी में उसने नुकान तथा कार नामक 2 नगर ध्वस्त कर डाले। 7 अप्रैल, 1221 को तुलुई नैशापुर पहुंच गया। उसने नैशापुर के सुल्तान के आत्मसमर्पण का प्रस्ताव निर्ममता से ठुकरा दिया। बुध से शनि यानी महज 4 दिनों में पूरा नगर मंगोलों ने लाशों से पाट दिया।
खूंखार चंगेज की बेटी हृदयहीन तुलुई की बहन और रक्त पिपासु तोगाचार की पत्नी तामुची ने नगर में प्रवेश किया, जहां उसके पति का वध किया गया था। नगर में चारों और जले हुए मकानों का धुंआ और लाशें थीं। तोगाचार की पत्नी के लिए बदला लेने को वहां कुछ न था। शेष नागरिकों का भी वध कर दिया गया। यहां तक कि कुत्तों और बिल्लियों को भी मार डाला गया।
नैशापुर में जीवित बचे कुल 40 कारीगरों को तुर्किस्तान ले जाया गया। सात दिन और सात रात नहर के जरिए नगर में पानी बहाया गया, ताकि वहां जौ बोया जा सके। शवों की 12 दिनों तक गणना में बच्चों तथा स्त्रियों को छोड़कर 10 लाख चालीस हजार शव वहां पाए गए। यहां पर कुछ रेत के टीले अब भी नजर आते हैं। कहा जाता है, उन्हें शवों के ढेर की वजह से वैसा बनाना पड़ा, वरना वहां ‘खेती’ नहीं हो पाती।
भेड़ों की जली हुई हड्डियों के कोयले से बने चिन्हों के आधार पर चंगेज अपने कूच का निर्णय किया करता था। इन्हीं चिन्हों ने चंगेज को भारत वर्ष होकर चीन जाने का मुहूर्त नहीं निकलने दिया। वरना उसके हाथों भारत के उत्तरी प्रांतों पंजाब तथा सिंध का तो विनाश निश्चिय था। तब भी नहीं जब जलालुद्दीन ख्वारज्म शाह ने अपना राज्य 1222 के आसपास अपने बेटे सुल्तान जलालुद्दीन मंगबरनी को सौंपा था। जलालुद्दीन ने बामियान में मंगोलों को पराजित किया था। बाद में जब चंगेज ने स्वयं कूच का ऐलान किया, तो जलालुद्दीन ने युद्ध लड़ते हुए अपना घोड़ा, मंगोलों से घिर जाने के बाद सिंध नदी में डाल दिया, ताकि भारत में शरण ले सके।
शाही छत्र अपने हाथों में लिए-लिए ही मंगबरनी ने सिंध नदी पार की। किनारे पहुंचकर उसने अपना छत्र जमीन पर गाड़ा और अकेला ही छांव में बैठा। दूसरी पार खड़े चंगेज ने यह दृश्य देखकर अपने सैनिकों से उस पर बाण नहीं चलाने का आदेश दिया और खुश होकर कहा था, ‘‘किसी भी पिता का पुत्र ऐसा ही तेजस्वी होना चाहिए।’’ बाद में मंगबरनी कुछ कुर्द लोगों द्वारा मार डाला गया था, लेकिन चंगेज ने इसके बाद भी सिंध नदी कभी पार नहीं की। यद्यपि चंगेज ने लाहौर को लूटा।
इसी समय चंगेज को बामियान के युद्ध में अपने बेटे चुगताई के बेटे के मारे जाने का समाचार मिला था। चंगेज ने प्रतिकार में अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे शीघ्रातिशीघ्र उस दुर्ग पर विजय प्राप्त कर लें और किसी भी प्राणी को, यहां तक कि कुत्ते और बिल्लियों को भी न छोड़ें। उसकी आज्ञा का पालन हुआ। गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़ डाले गए। बच्चों के सिर काट डाले गए। परकोटे, राज प्रासाद तथा सरकारी-गैर सरकारी भवन मिट्टी में मिला दिए गए।
जब चंगेज को खबर मिली कि उसके प्रदेश के शासक वंश किन का रवैया फिर से शत्रुतापूर्ण हो गया है, तो उसने अपने देश की यात्रा शुरू की। पहली बार लौटते समय समरकंद के दुर्ग में उसने दो मुस्लिम विद्वानों से वार्तालाप किया और इस्लाम धर्म में अल्लाह पर विश्वास और ‘हज’ के अलावा उसके चारांे अन्य कर्म-कांडों में अपनी सहमति दी। उसने  इमामों और काजियों पर लगे ‘कर’ हटा दिए।
चंगेज खान 1224 में स्वदेश पहुंचा। अपने अंतिम वर्ष उसने तंगूत में बिताए। तंगूत विजय से पूर्व ही रमजान, 624 हिजरी यानी अगस्त, 1227 में वह मर गया। मंगोलों की युगीन परंपरानुसार उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
चंगेज की समाधि के लिए भूमि या भवन के नीचे एक विशेष कोठरी जिसे ‘सुफ्फा’ कहा जाता है, बनाई गई। वहां सिंहासन, कालीन, बर्तन और प्रचुर मात्रा में दूसरी वस्तुएं रखी गईं। उसके हथियार तथा उसकी अन्य प्रिय वस्तुएं भी वहां रखी गईं। उसकी कुछ प्रिय पत्नियों, दासियों तथा कुछ व्यक्तियों को भी उसी कोठरी में रखा गया। इसके बाद उस स्थान को मिट्टी से भर दिया गया। इसके बाद वहां पेड़-पौधे रोप दिए गए, ताकि उस जगह का किसी को भी पता नहीं चल सके। मंगोलों की यह परंपरागत प्रणाली थी। यही कारण है कि चंगेज की समाधि का आज तक पता नहीं है। यहां तक कि उसकी मौत को भी 3 मास तक गुप्त रखा गया, ताकि उसके सैनिक तंगूत पर विजय प्राप्त कर सकें।
वह व्यक्ति जिसने इतिहास में अब तक के सबसे बड़े नरसंहार करके अपनी कीर्ति पर गर्व किया था, जो अपने शत्रुओं के सड़ते शव देखकर खुश होता था, तथा उनके कपालों से मद्यपान के प्याले बनाता था, समय आने पर कीड़े-मकोड़ों का ग्रास बना।
चंगेज खान के पुत्र-पौत्रों की संख्या 10000 से भी अधिक थी। प्रत्येक के पास पद (मुकाम), प्रदेश और सेना संपत्ति थी। स्थानीय दलों के समस्त नेता चंगेज ने मौत के घाट उतार दिए थे, उसका उत्तराधिकारी तैमूर था, जिसे इतिहास तैमूरलंग के नाम से जानता है।
सफलता की भांति कुछ भी सफल नहीं होता। समस्त स्वतंत्र और विरोधी नेताओं के सम्पूर्ण विनाश ने यह निश्चित कर दिया था कि अजम के सभी गृह युद्ध चंगेज के वंशजों और उनके अधिकारियों के बीच होंगे और उन्हीं उपायों द्वारा वे एक-दूसरे का विनाश करेंगे, जिनकी शिक्षा उन्हें चंगेज से मिली थी।
इतिहास साक्षी है, वैसा ही हुआ। आज चंगेज के वंशज कहां है? कोई नहीं जानता।
उसके बाद तेंमुची उर्फ चंगेज खान ने वही किया था, जो वह कर सकता था।
बोर्ताई को तो वह वापिस घोड़े पर बिठाकर ले आया था। कुछ दिनों बाद वह ठीक भी हो गई। मगर तेंमुची शांत नहीं बैठा। उसे बोर्ताई का कहा एक-एक शब्द याद था, ‘‘कल भकीतों ने मुझे तुमसे छीन लिया था, आज तुम भकीतों से मुझे छीन लाए। कल फिर भकीत मुझे तुमसे छीन लेंगे। तब यह सिलसिला यू हीं चलता रहेगा। तेंमुची ने बोर्ताई से और खुद से वादा किया कि वह कभी ऐसी नौबत नहीं आने देगा कि भकीत दोबारा बोर्ताई को उससे छीन सकें। उसने भकीतों को कुचलना शुरू किया। एक के बाद एक युद्ध उसने लड़े। गांव के गांव, उलूस के उलूस उसने बर्बाद किए। वह बर्बाद करता चला गया। वह उस प्रवृत्ति को खत्म कर देना चाहता था, जो बोर्ताई को वापस छीनने को उकसाती है। और इसी कोशिश में वह इस धरती का अब तक का सबसे बड़ा संहारक बन गया।
वह कहां गलत था? उसने बोर्ताई को बचाया था। जूजी को अपने सबसे बड़े बेटे होने का हक और दर्जा दिया था। बोर्ताई से उसे 4 बेटे और हुए थे। चुगताई, ओगताई, हलाकू और ओलिचिरीन। उसने बदला लेने की प्रवृत्ति का सर्वनाश करने के लिए इतिहास का सबसे बड़ा और क्रूर नरसंहार किया।
वह पिछले 800 वर्षों से आज भी अपनी अज्ञात कब्र में लेटा ‘ईलतेंगीरी’ से अपने गुनाहों के प्रायश्चित की दुआ मांग रहा है। मगर बदला लेने की प्रवृत्ति अभी तक खत्म नहीं हुई। शायद कभी होगी भी नहीं। इसीलिए चंगेज पैदा होते रहेंगे। कभी हिटलर की शक्ल में, कभी किसी और की शक्ल में। जमाने ने अपनी सूरत बदल ली है, मगर उसकी सीरत आज भी वैसी ही है।
कुछ ऐसी ही बातें कहकर चंगेज खान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापिस चला गया। मैं हैरान सा सोचता रह गया कि इस विषय पर कहानी कैसे लिखूं?

Monday, May 21, 2018

शक की चिंगारी


जिसने भी सुना, हैरान रह गया। बात ही ऐसी थी। एक दोस्त ने दूसरे का कत्ल कर दिया था। दोस्ती के लिए तिकोन का तीसरा कोण मैं था...और मैं अपने फर्ज की अदायगी के लिए पाबंद था। सो उस कत्ल की एफ.आई.आर. भी मेरी हिदायत पर दर्ज की गई और कातिल  की गिरफ्तारी भी मेरे कहने पर हुई। ....



यह खबर साइमा तक भी मेरे माध्यम से टेलीफोन के जरिये पहुंची। वह मेरी बात सुनकर दंग रह गई। हैरत और सदमे से शायद वह कुछ बोल नहीं पा रही थी। कुछ लम्हे बाद वह इस झटके से उबरी और बोली, ‘‘मैं आ रही हूं।’’ कहकर उसने फोन बंद कर दिया। 
आधे घंटे बाद ही साइमा मेरे दफ्तर में आ पहुंची। जाब्ते की सारी कार्यवाही में वह मेरे साथ ही रही। सदमें से उसका बुरा हाल था। वह बार-बार कह रही थी, ‘‘तारीक ऐसा नहीं कर सकता। मैं मान ही नहीं सकती।’’ वह जैसे खुद को यकीन दिला रही थी।
‘‘तुम्हारे ना मानने से हकीकत तो नहीं बदल जाएगी। जो हो चुका, उसे बदला तो नहीं जा सकता।’’ मैंने धीरे से कहा, तो साइमा ने चैंक कर मुझे देखा।
‘‘तो क्या तुम्हारे ख्याल से तारिक ऐसा कर सकता है...वह किसी को कत्ल कर सकता है...और वह भी अपने दोस्त को...? क्या तुम उसे नहीं जानते?’’ गोया उसे मेरी बात से सदमा था।
‘‘तुम जज्बाती होकर सोच रही हो। इस वक्त तुम किसी वकीत की तरह नहीं, बल्कि एक आम औरत की तरह सोच रही हो। हमें होशो-हवास को बहाल रखकर हर बात को अकल की कसौटी पर परखना है। ताकि हम तारिक की कोई मदद कर सकेें।’’ मैंने नरम लहजे में कहा।
‘‘तारिक जैसा नरम मिजाज इंसान किसी को कत्ल नहीं कर सकता।’’ वह अपनी बात पर डटी रही।
‘‘खुदा करे कि ऐसा ही हो। वह किसी बुरे अंजाम से महफूज रहे।’’ मैंने बात खत्म करते हुए कहा।
यह अजीब सूरतेहाल थी। कत्ल का मुल्जिम तारिक मेरी बीवी का कजिन था। सबा फुफेरा भाई, जबकि मकतूल मेरा और तारिक का राझा दोस्त नेमान था। कुछ अर्सा पहले इन दिनों ने एक साथ मिलकर कारोबार शुरू किया था, जो वह वादे के मुजाबिक अदा नहीं कर पा रहा था। काफी अर्से से यह झगड़ा चल रहा था और अब...यह हादसा हो गया था। 
अकल इसे दो और दो चार की तरह सीधा मान रही थी, जबकि साइमा के जज्बात तारिक को बेगुनाह साबित करने पर तुले थे। तारिक की बीवी नसरीन ने साइमा को ही तारिक का वकील नियुक्त किया था। साइमा खुद भी यह केस लड़ना चाहती थी, अपनी तमाम कोशिशों के साथ। 
मैं ए.एस.पी. की पोस्ट पर कार्यरत था। अपनी और डिपार्टमेंट की हद तक मैं तारिक की जितनी कर सकता था, मैंने की। पुलिस ने रिमांड के दौरान तारिक पर कोई हिंसा नहीं की। वैसे भी हिंसा की जरूरत न थी। 
क्योंकि तारिक ने अपने बयान में यह स्वीकार कर लिया था कि नेमान उसी की गाड़ी से टकरा कर फुटपाथ पर गिरा था, जहां बहुत सारे पत्थर पड़े हुए थे और उन्हीं में से एक नोकदार पत्थर नेमान के दिमाग में घुस गया था, जिसने नेमान की जिन्दगी का चिराग गुल कर दिया था। अलबत्ता तारिक सख्ती से इस बात पर कायम था कि यह कत्ल नहीं, सिर्फ हादसा है। 
केस अदालत में चला गया। साइमा ने इस केस के लिए अपनी रातों की नींद और दिन का चैन बर्बाद कर लिया था। लेकिन मैं नहीं जानता था कि नतीजे उसकी ख्वाहिश के प्रतिकूल होंगे। दूसरी तरफ, नेमान की बीवी सायरा ने बहुत तगड़ा वकील कर रखा था। उनका केस बहुत मजबूत था। 
एक रोज साइमा घर लौटी, तो पहली बार नाउम्मीदी और मायूसी के साए उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे।
‘‘क्या नहीं।’’ उसने ठंडी सांस ली, ‘‘तारिक का केस हर पेशी पर और कमजोर हो जाता है। इन लोगों के पास गवाह बहुत मजबूत है। ‘‘वह उदासी में, बोली, हर पेशी पर नए गवाह और शहादतें ले आते हैं। जबकि हमारे पास तारिक को बचाने के लिए तारिक के बयान के सिवा कुछ भी नहीं है।’’
‘‘हां।’’ मैंने सिर हिलाया, ‘‘कौन से गवाह ला रहे हैं वह?’’
‘‘तारिक और नेमान ने मिलकर एक कारोबार शुरू किया था, जो चल ना सका। तारिक के सात-आठ लाख नेमान की तरफ निकलते थे। यह सब कागजात रिकार्ड में मौजूद हैं। नेमान ने यह रकम किश्तों में देने का वादा किया था, लेकिन उसने तीन साल में सिर्फ दो लाख रुपये अदा किये। अभी भी उसकी तरफ पांच-छह लाख निकलते थे।’’ साइमा बोलते-बोलते सांस लेने को रुकी, फिर बोली, ‘‘शायद नेमान के पास पैसे नहीं थे या कुछ और वजह थी। बहरहाल वह रकम देने में आनाकानी कर रहा था। इसी बात पर तारिक उत्तेजित हो जाता था।
‘‘एक तो दोस्त होकर नेमान ने उसे धोखा दिया था, फिर वादे के मुताबिक अदायगी नहीं कर रहा था। सो तारिक अक्सर नेमान के दफ्तर जाता और दोनों में खूब तकरार होती। नेमान के आॅफिस के बहुत से लोग इन झगड़ों के गवाह हैं। फिर सायरा ने यह भी बताया कि तारिक कई बार झगड़ा करके गया है।’’ साइमा उदासी से मुस्कराई, ‘‘सायरा की तो अब पूरी कोशिश यही है कि आज ही तारिक को फांसी पर लटकवा दे।’’
‘‘हूं।’’ मैंने अफसोस से सिर हिलाया, ‘‘लेकिन यह गवाह पक्षधर हैं। इन सबकी गवाही इतनी फायदेमंद नहीं है कि अदालत के फैसले को प्रभावित कर सके।’’ मैंने नुक्ता पेश किया। 
‘‘तुम ठीक कहते हो। लेकिन जब बुरा वक्त आता है, तो इंसान हर तरफ से गिरफ्त में आ जाता है। एक सबूत ऐसा है, जो इन तमाम गवाहों पर भारी है और तारिक के लिए खासा नुकसानदेह भी।’’ साइमा सोचकर बोली।
‘‘वह क्या है?’’
‘‘तारिक ने पिछले हफ्ते आॅफीशली भी एक खत नेमान को लिखा था और अदायगी ना करने के हालत में उसे बुरे अंजाम के लिए तैयार रहने की वार्निंग दी गईथी। चूंकि यह खत उसने आॅफिशली भेजा था, इसलिए उसकी एक कापी तारिक की फाइलों में भी मिल गई। नेमान के सेक्रेटरी के पास तो खैर थी ही।’’
‘‘कमाल है...आॅफिशली धमकी...’’ मैंने गर्दन हिलाई, ‘‘मैं तारिक को इतना बेवकूफ नहीं समझता था।’’
‘‘बस जब बुरी घड़ी आती है, तो इंसान ऐसी हरकतें कर गुजरता है।’’ साइमा बहुत उदास थी।
‘‘और तारिक क्या कहता है?’’
‘‘वहीं जो पहले दिन से कह रहा है कि यह सिर्फ हादसा है। अलबत्ता एक बहुत अहम बात उसे याद आई है, अब...।’’ साइमा अचानक पुरजोश हो गई थी। उसकी आंखें दमकने लगी थीं।
‘‘कौन-सी बात?’’ मुझे भी उत्सुकता हुई।
‘‘तारिक का कहना है कि इस सारे वाकिये का एक चश्मदीद गवाह मौजूद है।’’
‘‘चश्मदीद गवाह...वह कौन?’’
‘‘यह उसे याद नहीं आ रहा था।’’ साइमा मायूसी से बोली।
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘तारिक को तो यह याद है कि जिस वक्त नेमान उसकी गाड़ी से टकरा कर फुटपाथ पर गिरा, तो वहीं इर्द-गिर्द कोई मौजूद था। तारिक उस वक्त बहुत परेशान था। उसका सारा ध्यान नेमान पर था, यानी अब चेतन रूप में उसे यह एहसास तो रहा कि वहां कोई तीसरा भी मौजूद है, मगर वह तीसरा कौन है, यह उसके दिमाग में सुरक्षित ना रह सका।’’
‘‘दरअसल, उस हादसे ने उसे दिमागी तौर पर जड़वत् कर दिया था। अब देखो ना, इतनी अहम बात आज उसे याद आई है, हालांकि यह उसके बचाव का एक अहम प्वाइंट है। हमें उस शख्स को ढूंढ़ना होगा।’’
‘‘मुमकिन है, वह कोई अजनबी हो, रास्ते से गुजरने वाला, जो हादसा देखकर कुछ लम्हों के लिए रुका हो और फिर वहां से गायब हो गया हो, ताकि पुलिस या कोई और उसे इस केस में जोड़़ ना सके। अगर ऐसा है, तो उस शख्स का मिलना बहुत मुश्किल होगा। वह भला क्यों खुद को थाने-कचहरी के झंझट में फंसाएगा।’’
‘‘हां, यह भी मुमकिन है।’’ साइमा मेरी बात से सहमत थी। अब वह उठ कर टहलने लगी थी। व्यग्रता और परेशानी उसके हर अंदाज से स्पष्ट थी। मैं निरंतर उसको गौर से देख रहा था। बहुत-सी बातें जो अनकही और अनसुनी थीं, और जिन्हें मैं चाहने के बावजूद साइमा से पूछ न सका था, आज पूछे बगैर मेरी समझ में आ रही थी। अफवाहों की पुष्टि हो रही थी और अंदाजों की तसदीक।
‘‘मेरा ख्याल है कि हमें उस शख्स की तलाश के लिए अखबार में इश्तहार दे देना चाहिए। उसने हम स्पष्ट करेंगे कि उसे कोई पेरशानी नहीं उठानी पड़ेगी। सिर्फ दो-तीन बार उसे गवाह के तौर पर पेश होना पड़ेगा। उसकी पूरी हिफाजत की जाएगी और अगर वह चाहे, तो उसे इस बात का मुआवजा भी दिया जाएगा। क्या ख्याल है?’’ वह इस बार दूर की कौड़ी लाई थी।
‘‘आइडिया तो अच्छा है। हो सकता है कि इस तरह वह शख्स लालच के तहत ही गवाही देने को तैयार हो जाए।’’
‘‘खुदा करे कि ऐसा ही हो।’’ साइमा ने सच्चे दिल से कहा। 
‘‘खैर, सब ठीक हो जाएगा। चलो...तुम खाना निकालो।’’ मैंने उसका हाथ थामकर डाइनिंग रूम की तरफ ले जाना चाहा। 
‘‘नहीं खावर, प्लीज...। आप खा लें। मुझे भूख नहीं है। वैसे भी मुझे स्टडी करनी है।’’ वह हाथ छुड़ाकर तेजी से स्टडीरूम की तरफ बढ़ गई। मैं खामोश खड़ा उसे जाता देखता रहा। 
चार वर्षीया जिन्दगी मेें भला यह कब हुआ था कि रात का खाना मैंने अकेले खाया हो। दिनभर तो दोनों व्यस्त रहते थे। लिहाजा खाने का समय भी अलग था। लेकिन रात के खाने पर हम दोनों एक-दूसरे का इंतजार जरूर करते...मैं भी तभी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद रात के खाने के वक्त जरूर पहुंच जाता।
‘‘अम्मा...अम्मा...।’’ मैंने जोर से आवाज दी।
‘‘जी, साहब जी।’’ अम्मा मेरी आवाज पर दौड़ती हुई आईं, ‘‘खाना लगा दिया है जी मैंने...आप लोग चलकर खा लें, वरना ठंडा हो जाएगा...।’’
‘‘खाना उठा लें...हम दोनों को भूूख नहीं है।’’ फिर मैं अम्मा को हैरान-परेशान छोड़कर बेडरूम में आ गया। 
बिस्तर पर अधलेटा होकर मैंने अपने बराबर में खाली जगह पर नजर डाली। आज पहली बार नहीं, बल्कि इस दौरान में न जाने कितनी रातों से मैं बेडरूम में अकेला ही सोता था। वह रात-रात भर जागकर कानून की किताबों में सिर खपाती। फिर जल्दी से जल्दी सुबह आॅफिस चली जाती। फिर उसकी वापसी रात गए ही होती। 
उसे अब तो यह भी याद नहीं था कि वह एक बीवी है और उसका एक शौहर भी है, जो अकेला बेडरूम में पड़ा करवटें बदलता रहता है। मैंने सोचा। मुझे यूं लग रहा था, जैसे दिन-प्रतिदिन हम दोनों एक-दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं। कोई है जो साइमा को मुझसे दूर कर रहा है। वह मुझसे बिछड़ने वाली है। वह खूबसूरत लम्हा मेरी नजरों में जुगनू बनकर चमका, जब मैंने साइमा को पहली बार देखा था।
तारिक, मैं और नेमान...दोस्ती का यह त्रिकोण बहुत जानदार था। हम गहरे दोस्त थे। स्कूल और काॅलेज की सतह तक तो हम साथ ही रहे। फिर आगे बढ़े, तो जिन्दगी की राहें अलग-अलग हो गईं। तारिक एम.बी.ए. कर रहा था, तो नेमान ने अपने लिए एकाउंटिंग का डिपार्टमेंट चुन लिया।
मैं अपने मां-बाप की आंखों में बसे ख्वाब को असली शक्ल देने के लिए सिविल सर्विस में आ गया। मुकाबले के इम्तिहान में अच्छी पोजीशन लेकर पुलिस का विभाग ज्वाइन कर लिया। कुछ साल दूसरे शहरों में गुजारे।
फिर मेरी पोस्टिंग अपने शहर में हो गई। मेरे शहर से दूर रहने के दौरान ही नेमान और तारिक ने मिलजुल कर बिजनेस किया। फिर अलग हो गए। यह बातें मुझे तारिक ने मेरे वापस आने के बाद बताईं।
मेरे घरवाले मेरी शादी के लिए बेचैन थे और हर अच्छी लड़की को मेरी बीवी के रूप में देखने लग जाते थे, लेकिन शादी के लिए मेरा नजरिया कुछ और था। मैं अपनी पसंद की लड़की से शादी करना चाहता था। 
ऐसी लड़की, जो मेरे दिल को छू जाए, जिसे देखकर मुझे यूं लगे कि अब उसके बिना गुजारा नहीं हो सकता। लेकिन ऐसी लड़की अब तक मुझे नहीं मिल सकी थी। 
फिर एक बेकरारी-सी हो रही थी कि वह कौन है? अता-पता क्या होगा? ऐसा न हो कि जमाने की भीड़ में उसे खो बैठूं। मैं बेचैन-सा हो गया, किससे पूछूं और कैसे पूछूं?
मसला यह था कि लड़कियों के मामले में मैं बेहद शर्मीला था कि एक अजनबी लड़की से परिचय प्राप्त कर लेता। हालांकि यह कोई मुश्किल काम नहीं था।
मेरे ओहदे और विभाग को देखकर मुश्किल से ही कोई मेरे मिजाज के बारे में यकीन करता, लेकिन यह हकीकत थी। मैं ऐसा ही था। लड़कियों से दूर भागने वाला। शायद इसलिए मेरी जिन्दगी में कोई लड़की नहीं आई थी।
और यह मेरी ख्वाहिश भी थी कि जो मेरी बीवी बने, उसकी जिन्दगी पर भी किसी और की परछाई तक न पड़ी हो।
मैं इन सोचों में उलझ रहा था कि तारिक मेरे करीब आ गया।
‘‘अकेले ही खड़े हो?’’
‘‘तो और क्या करू? बहुत बोरियत हो रही है। नेमान भी आ जाता, तो अच्छा होता...कुछ गपशप ही रहती।’’ मैंने कहा। 
‘‘नेमान आएगा? और वह भी मेरे घर के फंक्शन में।’’ तारिक व्यंग्यात्मक अंदाज में बोला। 
‘‘क्यों? तुमने इंवाइट तो किया था?’’ 
‘‘हां...लेकिन वह मेरे सामने आने की हिम्मत कहां से लाएगा।’’ तारिक उत्तेजित हो गया।
‘‘कम आॅन यार, गुस्सा थूक दो...आखिर हम एक-दूसरे के दोस्त हैं। भूल जाओ, जो कुछ हुआ...।’’ मैंने समझाया। 
‘‘चलो छोड़ो इन बातों को।’’ तारिक ने सिर झटका, ‘‘आओ, मैं तुम्हें कुछ और लोगों से मिलवाता हूं, ताकि तुम बोर ना हो।’’ वह मुझे लेकर आगे बढ़ा। 
मेरा दिल धड़क उठा। वह उसी तरफ जा रहा था, जिधर ‘वह’ अपने जलवे बिखेर रही थी। काश! तारिक उसी के पास जाए...मैंने दुआ की, जो फौरन ही कबूल हो गई। तारिक उसी के पास जाकर रूका। 
‘‘इनसे मिलो, यह मेरी कजिन है साइमा...और यह हैं शुजाअत...यह दोनों साथ ही काम करते हैं।’’ फिर उसने मेरा परिचय करवाया, ‘‘यह मेरे दोस्त ए.सी.पी. खावर जमाल...कई साल बाद यह वापस अपने शहर लौटे है। आजकल इनकी पोस्टिंग यहीं है।’’
‘‘बहुत खुशी हुई है आप सबसे मिलकर...।’’ मैंने मुस्कराते हुए कहा। 
अब भी मेरी नजरों का केन्द्र साइमा ही थी। वह भी मेरी नजरों की बेकरारी महसूस कर चुकी थी, इसलिए उसके चेहरे का रंग बदल रहा था। 
‘‘हमें भी...।’’ शुजाअत ने गर्मजोशी से हाथ लिया। 
‘‘अच्छा भई, आप लोग गपशप करें। मैं जरा कुछ और महमानों को देख लूं। और हां, आप लोगों की जिम्मेदारी है, यह बोर ना हो पाए।’’ तारिक ने कहा। 
‘‘आप फिक्र ना करें। अब खावर साहब हमारी जिम्मेदारी हैं।’’ शुजाअत बोला। 
शुजाअत बेतकल्लुफ इंसान था। दुनिया जहां की बातें ही ले बैठा। फिल्म पत्रकारी, सियासत, वकालत, हर विषय घसीट लेता और अपनी बातों से खुद ही खुश होता। उसकी किसी हास्यपूर्ण बात पर अगर हम मुस्करा रहे होते, तो वह ऊंचा कहकहा लगा रहा होता। 
साइमा के होंठों पर दिलकश मुस्कराहट होती। साइमा को जब मैं दूर से देख रहा था, तो वह बहुत हंस-बोल रही थी, लेकिन अब मेरी मौजूदगी से खामोश थी। 
‘‘मिस साइमा।’’ मैंने उसे मुखातिब किया, ‘‘आप यूं ही खामोश रहती हैं या मेरी वजह से कुछ तकल्लुफ हो रहा है?’’
‘‘साइमा और खामोशी।’’ शुजाअत हंसा, ‘‘दो परस्पर विरोधी बातें हैं। इस वक्त तो यह आपको देखकर पोज कर रही है।’’
‘‘वैसे यह ठीक कह रहे हैं।’’ मिसेज शुजाअत बोलीं, ‘‘साइमा को कम बोलने वाली समझने की गलती मत कीजिएगा। इसे ऐसी समझने वाला हमेशा पछताता है। इसकी जुबान की तेजी देखनी हो, तो अदालत में देखें। कैंची की मिसाल भी पीछे रह जाएगी।’’ वह भी अपने मियां से कम नहीं थी। 
साइमा ने गुस्सैली नजरों से दोनों को घूरा, ‘‘अगर आप लोग इसी तरह मुझे गुफ्तगू का विषय बनाए रखेंगे, तो मैं जा रही हूं यहां से...।’’ उसने धमकी दी। 
‘‘अरे नहीं प्लीज...।’’ मैं बेअख्तियार बोल उठा और फिर अपने अंदाज पर खुद ही शर्मिंदा हो गया। मिसेज शुजाअत ने अर्थपूर्ण नजरों से शैहर को देखा और दोनों मुस्करा दिये। यह गनीमत थी कि दोनों कुछ बोले नहीं।
साइमा से यह मुलाकात मंजिल की राह का मील का पत्थर साबित हुई। उसने पहली ही मुलाकात में मुझे जीत लिया था और निहायत शान से मेरे दिल में विराजमान हो चुकी थी। फिर एक रोज सोच-समझ कर मैंने झिझकते हुए तारिक से जिक्र कर ही दिया। 
तारिक जैसे खिल ही उठा, ‘‘यार, तू यकीन कर। कई बार मैं तुझसे यह कहते-कहते रूक गया कि तेरे लिए लड़़की मैं ढूंढ़ता हूं। दरअसल यार, आजकल अच्छे लड़कों का अकाल पड़ा हुआ है। खानदान में ढेरों लड़कियां पढ़ लिख कर अच्छे रिश्तों के इंतजार में उम्र गंवा रही है और फिर तुझ जैसा हीरा इंसान अगर मेरा रिश्तेदार बन जाए, तो दोस्ती का रिश्ता और भी मजबूत हो जाएगा।’’
फिर वह चैंका, ‘‘उस रोज फंक्शन में तो मेरे खानदान की बेशुमार लड़कियां मौजूद थीं। तू किस लड़की की बात कर रहा है?’’
‘‘उन सबको भला मैं कैसे जानूंगा। मैं तो उस लड़की की बात कर रहा हूं, जिससे तूने खुद ही मिलवाया था, साइमा।’’
‘‘ओह, तो तुम साइमा की बात कर रहे हो।’’ वह मायूसी से बोला, ‘‘यह जरा अलग ही केस हैै।’’
‘‘क्या मतलब?’’ मेरा दिल डूब-सा गया, ‘‘क्या वह कहीं एंगेज है?’’ मैंने डरते-डरते पूछा। 
‘‘अरे नहीं।’’ तारिक हंस दिया, ‘‘ऐसी बात नहीं है। वह कहीं एंगेज तो नहीं है, लेकिन उसे राजी करना बहुत बड़ा मसला है। वह एक सिरफिरी लड़की है। अगर तुम पसंद आ गए, तो बात दूसरी है, वरना उसे जबरदस्ती किसी बात के लिए मजबमर नहीं किया जाएगा।’’
‘‘क्यों...अब ऐसी भी क्या बात है?’’
‘‘भई उसे कैसे राजी किया जाए?’’ तारिक बेबसी से बोला, ‘‘उसके पास हर दलील का तर्क होता है। वह खुद अपनी दलीलों से अच्छे-अच्छों के कल-पुर्जे बिखेर देती है।’’
‘‘लेकिन, तुम उससे बात तो करो। हो सकता है कि उसे कोई एतराज नहीं हो।’’ मैंने उम्मीद की डोर बांधे रखी। 
‘‘नहीं बाबा, मैं उससे बात करने का खतरा मोल नहीं ले सकता। यह काम तुम खुद करो।’’
‘‘मैं...वह कैसे?’’ मैं घबरा गया, ‘‘देख, एक ही मुलाकात के बाद यह सब कहना मुनासिब तो नहीं लगता था।’’ मैंने जान छुड़ाई। मैं उस मुंहफट के मुंह लगने के ख्याल से बौखला गया था। ‘‘यार, बात यह है कि मैंने कभी किसी लड़की से इस तरह बात नहीं की है। फिर वह इतनी बोल्ड है, डर रहता है कि कहीं बेइज्जत ना कर दे।’’
‘‘कमाल है यार...इतना डरता है, तो फिर साइमा जैसी लड़की के साथ गुजारा कैसे करेगा। मर्द बन मर्द।’’ तारिक ने मुझे डांटा। फिर कुछ सोचकर वह बोला, ‘‘ऐसा करते हैं कि मैं उसे किसी बहाने तेरे आॅफिस ले आता हूं। शायद तेरे ठाट-बांट देखकर ही जरा रौब आ जाए। फिर मैं यहां लाकर किसी काम के बहाने एकाध घंटे के लिए गायब हो जाऊंगा। मौका देखकर तुम उससे बात कर लेना। क्या ख्याल है।’’ तारिक ने पूरा मंसूबा बना लिया। 
‘‘ठीक है।’’ मैं भी राजी हो गया। रातभर मैं लफ्जों को तरतीब देता रहा कि किन उल्फाज में अपना मतलब बयान करूंगा। पहले एक जुमला सोचता, फिर उसे खुद ही रद्द कर देता। कोई शब्द मुझे उसकी शान में मुनासिब नहीं लगता। हर ख्याल उसकी शख्सियत के आगे छोटा था। मैं पूरी रात सोचता रहा और रद्द करता रहा। इसी तरतीब और बेतरतीबी में रात बीत गई। 
सुबह तैयार होकर मैंने आईने में खुद को हर कोण से देखा और आश्वस्त होकर आॅफिस पहुंच गया। साफ-सुथरे आॅफिस की और सफाई करवाई और एकाग्रचित होकर नजरें दरवाजे पर जमाए बैठा रहा। 
करीब ग्यारह बजे मेरे पी.ए. ने बताया कि मेरे गेस्ट आए हैं। मैंने फौरन अंदर भेजने को कहा और फाइलों पर झुक गया। आखिर व्यस्तता भी तो जाहिर करनी थी। 
कुछ लम्हों बाद दरवाजा खुला और तारिक अंदर आया। मैंने उसके पीछे खोजी नजरों से देखा, मगर वहां कोई नहीं था। मैंने सवालिया नजरों से तारिक को देखा। 
‘‘अब क्या बैठने के लिए भी नहीं कहोगे।’’ तारिक खुद ही बैठ गया। 
‘‘हां...हां, क्यों नहीं, लेकिन...।’’ मैंने जुमला अधूरा छोड़ दिया। तारिक के चेहरे पर छाई संजीदगी ने मुझे परेशान कर दिया था। शायद मैं ही साइमा के एकतरफा प्यार में गिरफ्तार हो चुका था और शायद उस मंजिल में दाखिल हो गया था, जहां महबूब से जुदाई नाकाबिले-बर्दाश्त हो जाती है। 
‘‘क्या हुआ?’’ मैंने तारिक से पूछा। तारिक ने खामोश नजरों से मुझे देखा, लेकिन कुछ बोला नहीं।
‘‘क्या हुआ आखिर, तुम बोलते क्यों नहीं हो...और साइमा कहां है?’’
‘‘वह नहीं आई।’’ वह धीरे से बोला।
‘‘क्यों...क्यों नहीं आई...और क्या तुमने उसे बता दिया था कि तुम उसे यहां ला रहे, मुझसे मिलवाने?
‘‘हां खावर, मैं उसे यहां क्यों ला रहा हूं। मैंने तुम्हारी ख्वाहिशों से उसे आगाह कर दिया था।’’
‘‘फिर?’’ मैं बेचैनी से बोला, ‘‘क्या कहा उसने?’’
‘‘उसने इंकार कर दिया।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘यह मत पूछो।’’ तारिक ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया।
मैं समझ गया कि वह नाकाम हो चुका है, साइमा को राजी करने में। और अब मुझसे शर्मिंदा है।
‘‘तारिक, प्लीज। मुझे तफसील से बताओ। मैं सब कुछ सुन लूंगा। मुझसे कुछ मत छुपाओ। बड़ा हौसला है मुझमें।’’ मैं जज्बाती हो गया। 
‘‘तो फिर सुनो।’’ वह बोला, ‘‘साइमा का कहना है कि...।’’ तारिक रूक-सा गया। वह विराम क्षण मुझे मुक्ति दिवस के इंतजार से ज्यादा दीर्घ महसूस हुआ। 
‘‘साइमा का कहना है कि वह यहां आकर क्या करेगी। उसूली तौर पर तुम्हें उसके घर जाना चाहिए सेहरा बांधकर।’’
‘‘क्या बकता है बे?’’ तारिक के आखिरी शब्दों ने मुझे उछलने पर मजबूर कर दिया, ‘‘क्या कह रहे हो तुम?’’
‘‘मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं।’’ अब तारिक मुस्करा रहा हूं।’’ अब तारिक मुस्करा रहा था, ‘‘खुदा जाने तू कैसा पुलिसवाला है। पूरी बात सुने बगैर ही थोबड़ा लटका कर बैठ गया। तेरी जगह कोई और होता, तो कहता कि अच्छा, इंकार कर दिया है, कोई बात नहीं। मैं पूरी फैमिली को उठवा लूंगा।’’ तारिक ने मेरी नकल उतारी, ‘‘लेकिन तू तो बहुत फिसड्डी है, बुजदिल कहीं का।’’
‘‘यार कहीं तू झूठ तो नहीं बोल रहा है।’’ मैंने तारिक के व्यंग्य को नजरअंदाज कर दिया। वह मुझे जोश दिलाने की पूरी कोशिश कर रहा था, जबकि किसी भी किस्म की सूरतेहाल में होश का दामन थामे रखना हमारी ट्रेनिंग का हिस्सा है।
‘‘नहीं यार, मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं।’’ तारिक संजीदा हो गया, ‘‘मैंने उसे तुम्हारी ख्वाहिश से आगाह किया, तो वह शरमा गई। इतनी बोल्ड और चर्ब जुबान लड़की को शरमाते देखना भी अजीब तजुर्बा है। बहरहाल, यह इस बात का सबूत है कि तुमने बोल्ड और चर्ब जुबान लड़की को शरमाते देखना भी अजीब तजुर्बा है। बहरहाल, यह इस बात का सबूत है कि तुमने एक ही मुलाकात में उसे बेहद प्रभावित कर दिया था। 
तो मेरे दोस्त, बहुत-बहुत मुबारक। साइमा मुझे बहुत अजीज है...और तुम भी...तुम दोनों को साथ देखना और खुश देखना मेरी आरजू है। अच्छा, अब जल्दी से चाय मंगवाओ।’’
‘‘चाय भी आ जाएगी। पहले मैं तुमसे तो निपट लूं। इतनी संजीदगी से ड्रामा कर रहे थे।’’ मैंने पेपरवेट उठाकर उसे मारा, जिसे हंसते हुए उसने कैच कर लिया। 
बाद के सारे पड़ाव तारिक की वजह से आसान हो गए। साइमा के घरवालों के नजदीक यही बहुत था कि मैं तारिक का दोस्त था और उसका वोट मेरे साथ था। 
दूसरी तरफ मेरे घरवालों को भी कोई एतराज नहीं था। वह पहले ही कह चुके थे कि चाहे अपनी पसंद से करो, मगर शादी करो जरूर और वैसे भी साइमा उनको बहुत पसंद आई थी।
सभी की दुआओं से यह काम मुकम्मल हुआ और वह सलोनी शाम भी मेरी जिन्दगी में आई, जब साइमा मेरी बनकर मेरे पहलू में आ बैठी।
निकाह के बाद मुझे स्टेज पर साइमा के साथ बैठा दिया गया। औरतों और लड़कियों का हुजूम था। कैमरों की फ्लैश लाइट्स की चकाचैंध हो रही थी। मूवी अलग बन रही थी और खुदा जाने कौन-कौन-सी अहमकाना रस्में अदा की जा रही थीं। मैं निहायत उकताहट और बेजारी के आलम में बैठा था। 
अचानक एक सरगोशी मेरे कानों से टकराई। मैं एकाग्रचित हो गया। मेरे पीछे ‘खड़ी कुछ औरतें सरगोशियों में तबसरे कर रही थीं। विषय साइमा ही थी। 
‘‘सुनो, यह साइमा का तारिक से ही रिश्ता हुआ था ना बचपन में। याद है ना तुम्हें?’’
‘‘क्या नहीं...तारिक की अम्मी ने तो निहायत धूमधाम से मांगनी की रस्म अदा की थी। भतीजी पर तो जान देती थीं वह...।’’
अब मैं पूरी तरह उनकी बातों पर कान लगाए हुए था। साइमा, उसकी दोस्त, शोर, हंगामा, सब कुछ पीछे रह गया था। मेरी संज्ञाएं कानों में ढल रही थीं।
‘‘तो फिर साइमा की शादी तारिक से क्यों नहीं हुई। यह रिश्ता क्यों खत्म हो गया।’’
‘‘खुदा जाने असली वजह क्या है। लेकिन मैंने साइमा की अम्मी से पूछा था। वह तो कुछ और ही बताती हैं।’’
‘‘अच्छा, वह क्या कहती है?’’
‘‘बस, गोलमोल-सा जवाब दिया। कहने लगीं कि बहन जमाना बदल गया है। अब बच्चों की मर्जी पर चलना पड़ता है, लेकिन मुझे लगता है कि वह कुछ छुपा रही थीं। दाल में कुछ काला जरूर है। खैर हमें क्या?’’
‘‘और क्या...हमें क्या मतलब? वह तो साइमा को देखकर याद आ गया कि मरहूमा (स्वर्गीय) ने बड़ी मुहब्बत से साइमा को मांगा था। वैसे सुना तो यह है कि यह रिश्ता तारिक ने ही तय करवाया था, आखिर दोस्त है उसका।’’
‘‘कुर्बानी का बकरा दोस्त को ही बनाया जा सकता है और कौन बनेगा इस जमाने में।’’ दोनों ने दबे-दबे अंदाज में कहकहा लगाया और वहां से चल दीं।
वह दोनों तो वहां से चल दीं या शायद उनकी पिटारी में बातें खत्म हो गई थीं, लेकिन मेरी जिन्दगी की पुरसकून सतह पर शक और बदगुमानी के भारी-भरकम पत्थर आ गिरे। मैं सकते की हालत में रह गया। साइमा का तारिक से रिश्ता हुआ था। 
तारिक ने तो कभी जिक्र तक नहीं किया और अगर ऐसा था, तो शादी क्यों नहीं हो सकी। वह दोनों फस्र्ट कजिन थे। उनके रास्ते में कोई रुकावट नहीं थी, फिर...?
तारिक का हर अंदाज गवाह था कि उस रिश्ते पर वह बेहद खुश था और...। साइमा भी हंसी-खुशी मुझसे शादी करने के लिए तैयार हो गई थी, तो फिर...? मुझे उस औरत का अगला जुमला याद आया, ‘‘कुर्बानी का बकरा...।’’ मेरी रगों में खून तेजी से गर्दिश करने लगा। 
‘‘क्या मतलब है इस बात का?’’ मैं खुद से उलझता रहा।
‘‘भाईजान, कहां खो गए हैं आप?’’ मेरी छोटी बहन ने मुझे चैंका दिया।
‘‘आं...क्या...?’’ मैंने उसे देखा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘चले, रूखसती का वक्त हो गया है।’’
साइमा की सहेलियों ने उसे वहां से उठा लिया और फिर मैं भी उसके साथ धीरे-धीरे कदम उठाने लगा। मेरी बहनें मेरे दोनों तरफ चल रही थीं। कैमरे और मूवी के लाइटों से आंखें चुंधिया रही थीं।
मैं उन औरतों की गुफ्तगू से ध्यान हटाने की  कोशिश कर रहा था, लेकिन वह अल्फाज जहरीले बिच्छुओं की तरह मेरे दिमाग से चिपक गए। मेरे दिलो-दिमाग तनावग्रस्त थे। 
खुद पर काबू पाने और सब कुछ दिमाग से झटक देने में मुझे बहुत देर लगी। मेरी ट्रेनिंग मेरे बहुत काम आई। 
साइमा के रवैये ने भी मेरे दिमाग में से शक की गर्द को साफ करने में मदद की, लेकिन इसके बावजूद उन महकते लम्हों में एक कसक-सी मेरे साथ रही। साइमा को दिलकश वजूद और मासूम चेहरे पर किसी जुर्म या गुनाह के निशान तक नहीं थे। उसका अंदाज इस बात का गवाह था। उसका वजूद खुद में गवाही था कि उसकी जिन्दगी में मुझसे पहले कोई नहीं आया था, लेकिन फिर भी वह सब क्या था। वह औरतें क्या कह रही थीं। यहां आकर मेरा जेहन अटक जाता था। 
साइमा की और मेरी पारिवारिक जिन्दगी बहुत से लोगों के लिए काबिले-रश्क थी। साइमा भी बहुत खुश और संतुष्ट थी, लेकिन मेरे अंदर बेचैनी और व्यग्रता करवटें बदल रही थीं। 
शादी की रात को शक का बीज बोया गया था, वह मेरे न चाहने के बावजूद सिर उठा रहा था। अपनी जड़ें मजबूत कर रहा था। मैं सब कुछ भुला देना चाहता था और भूल जाना चाहता था, लेकिन फिर कोई न कोई बात ऐसी हो जाती थी जो फिर से सब कुछ ताजा कर देती। 
साइमा की कोई एक बात या तो काई ऐसी हरकत मुझे तीव्र यातना में ग्रस्त कर देती। मैं खुद को नजरअंदाज होता महसूस करता। 
मुझे ऐसा महसूस होता, जैसे साइमा के लिए मुझसे ज्यादा तारिक की अहमियत थी। वह दोनों एक-दूसरे का इतना ख्याल रखते कि मैं हैरान रह जाता। हमारी शादी के साल भर बाद तारिक की शादी हो गई। लेकिन इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। साइमा अब भी तारिक के लिए अहम थी, उसकी बीवी से ज्यादा तारिक साइमा के लिए पहली जरूरत था। मैं तो शायद बस यूं ही बीच में आ गया था। 
दिन-प्रतिदिन मुझे तारिक से नफरत होती चली गई। हैरत की बात यह थी कि मुझे साइमा से मुहब्बत थी। मैं उसे किसी कीमत पर खोना भी नहीं चाहता था। उसकी सारी बेवफाई और धोखेवाजी के बावजूद। अजीब प्रतिकूल जिन्दगी गुजार रहा था मैं।
तारिक से दिली नफरत के बावजूद मुझे दुनियादारी के तकाजे निभाने पड़ते। वह आता तो उसकी खिले माथे से अवभगत भी करनी पड़ती। दुनिया वालों की नजर में दुश्मन से भी बदतर। कई बार तीव्र क्रोध मुझे अपनी लपेट में ले लेता कि वह दोनों मिलकर किस तरह मुझे बेवकूफ बना रहे हैं।
एक रोज अपने मां-बाप की इकलौती औलाद साइमा मायके से जब लौटी, तो उसके हाथ में बहुत सारे पुराने एलबम थे। यह उसकी शादी से पहले की तस्वीरें थीं। वह बड़े उत्साह से मुझे एक-एक तस्वीर  दिखाने लगी। लहू की गर्दिश मेरी रगों में तेज होने लगी। ज्यादातर तस्वीरों में तारिक और साइमा साथ-साथ थे। साइमा मेरे एहसासें से बेखबर होकर हर तस्वीर के बारे में मुझे बता रही थी और मैं अंदर से घुल रहा था।
बस, इन्हीं दिनों नेमान के कत्ल के जुर्म में तारिक जेल चला गया। साइमा को पूरा यकीन था कि तारिक किसी का कत्ल नहीं कर सकता, इसलिए वह खुलकर अदालत में उसकी वकालत कर रही थी। जबकि वह अच्छी तरह जानती थी कि वह तारिक को बचा नहीं पाएगी, क्योंकि तारिक का इकबालिया बयान ही उसे फांसी के फंदे तक पहुंचा रहा था। इस केस में कोई पेचीदगी, कोई उलझाव नहीं था, जिसका फायदा बचाव वकील यानी साइमा उठा सके।
यह सीधा-सादा दो जमा दो चार वाला केस था। तारिक का इकबाली बयान मौजूद था। गवाह और कत्ल का सबब भी मौजूद था। सिर्फ और सिर्फ एक गवाह ऐसा था या कम से कम अदालत में तारिक को शक का फायदा दे सकता था, लेकिन वह अब तक सामने नहीं आया था। 
फिर एक रोज साइमा घर लौटी, तो बहुत दुःखी थी। वजह साफ थी कि दुःखी होने का सबब सिर्फ और सिर्फ तारिक था। मैं फट पड़ा, ‘‘मैं तुम्हारे दुःख को समझ रहा हूं। तारिक तुम्हारा फुफेरा भाई ही नहीं, वरन का मंगेतर भी है। तुम्हारा रिश्ता बहुत गहरा है।’’ वह फटी-फटी नजरों से मुझे देख रही थी। मैंने अपनी बात जारी रखी, ‘‘और वह तारिक...उस फ्राॅडी ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया। अपनी मंगेतर के साथ पहले खूब गुलछर्रे उड़ाए, फिर जब दिल भर गया तो अपनी बला मेरे सिर मढ़ दी।’’ मैं बोलता ही चला गया, ‘‘मैं भी हैरान था कि मेरे प्रपोज करते ही सब क्यों तैयार हो गए। झटपट क्यों सारा मामला निपटा दिया गया। 
‘‘तुम नहीं जानतीं इन गुजरे चार सालों में मैं बर्दाश्त की किन-किन मंजिलों से गुजरा हूं। यह मैं ही जानता हूं। मैं अपने घर में और यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकता। तुम...तुम खुद को मेरी तरफ से आजाद समझो...तारिक के लिए। अब अगर वह मर जाए, तो उसकी कब्र पर तुम मुजाविर बन जाना, जिन्दगी भर के लिए...। किसी एक से तो वफा कर लो...अहदनिभा लो।’’
मैंने निर्दयता से कहा और फिर उसके चेहरे को गौर से देखा। उसका चेहरा पसीने से सराबोर हो गया था। उसके चेहरे पर बिखरी जर्दी साफ नजर आ रही थी। वह रोते-रोते उसी वक्त अपनी मां के घर चली गई। 
दूसरी सुबह मैं अपने स्वाभिमान, खुद्दारी और सारे लड़ाई-झगड़े को पीठ पीछे डालकर साइमा के घर चल दिया। मैंने सोच लिया था कि अगर साइमा के अब्बू-अम्मी ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप किया, तो मैं भी कोई लगी-लिपटी नहीं रखूंगा। सब कुछ साफ-साफ बता दूंगा।
मगर वहां मामला ही दूसरा था। सब तारिक के सदमे से निढाल थे। साइमा कोर्ट चली गई थी, आज तारिक की किस्मत का फैसला होना था। साइमा की अम्मी ने मुझे अपने पास बैठा लिया। मैंने चुभते लहजे में कहा, ‘‘लगता है कि आप सभी को तारिक से बेहद प्यार है?’’
‘‘क्यों नहीं होगा, आखिर वह मेरा बेटा ही तो है। साइमा का भाई...।’’ साइमा की मां ने बेहद गमगीन लहजे में कहा, ‘‘क्या तुम्हें साइमा ने कुछ नहीं बताया?’’
मेरी गर्दन नहीं में हिल गई। ‘‘साइमा ने शायद तुम्हें बताया नहीं। साइमा जब पैदा हुई थी, तो उसकी फूफी यानी तारिक की अम्मी ने उसे तारिक के लिए मांग लिया था। वह अपने भाई को बहुत चाहती थीं। साइमा उनकी इकलौती भतीजी थी, सो उस पर भी वह हजार जान फिदा थीं। मैंने और साइमा के अब्बू ने उन्हें बहुत मना किया था कि अभी बच्चे छोटे हें। मंगनी वगैरा रहने दो, मगर उस दीवानी को सब्र कहा था। उसने बड़ी धूमधाम से मंगनी की रस्म अदा की थी।’’ वह बोलते-बोलते रूक गईं। कुछ लम्हों के बाद फिर बोली, ‘‘लेकिन खुदा के कामों में किसी का दखल नहीं है। वह जो चाहता है, वही होता है। साइमा जब साल भर की हो गई, तो मैं शदीद बीमार हो गई। मेरी बीमारी के दौरान साइमा की देखभाल ठीक तरह से नहीं हुई, लिहाजा वह भी बीमार पड़ गई। उसकी जान के लाले पड़ गए। ऊपर का दूध उसे और बीमार कर रहा था। साइमा की फूफी यानी तारिक की मां ने साइमा की जान बचाने के लिए अपना दूध पिला दिया। उन दिनों तारिक की छोटी बहन नोशी पैदा हुई थी। बहरहाल, साइमा की जिन्दगी तो बच गई, मगर वह मंगनी अपने-आप खत्म हो गई और एक गहरा और अनमिट रिश्ता वजूद में आ गया।’’
‘‘ओह मेरे खुदाया...।’’ मुझे लगा कि जैसे मैं आंधियों की जद में आ गया हूं। यह कैसा रहस्योद्घाटन था। मैं कांप उठा। 
‘‘हमने लोगों ने शर्मिंदगी से बचने के लिए खामोशी ओढ़ ली। बच्चे जब बड़े हुए, तो हमने कह दिया कि बच्चों की मर्जी नहीं है। साथ ही हमने दोनों को बता दिया कि उनके बीच कौन-सा रिश्ता है। वह दोनों एक-दूसरे को सगे भाई-बहन से बढ़कर चाहते हैं।’’ वह फफककर रो दीं।
मैं उनको रोता छोड़कर तेजी से बाहर दौड़ा। कुछ लम्हों बाद मेरी गाड़ी तेजी से दौड़ रही थी। मुझे देर तो हो गई थी, लेकिन खुदा का शुक्र है कि बहुत देर नहीं हुई थी। अभी केस की जारी थी।
मैंने फिल्मी स्टाइल में सही टाइम में कोर्ट में कदम रखा और उस कहानी का रूख बदल दिया।
मैंने गवाही के लिए कटहरे में आकर हलफ उठाया। इससे पहले मैं अपने महकमे के शिनाख्ती कागजात दिखा चुका था। 
‘‘योअर आॅनर। मैं खुदा को हाजिर-नाजिर जानकर कहता हूं कि यह कत्ल नहीं, बल्कि एक हादसा है और मैं इस हादसे का चश्मदीद गवाह हूं।’’ मेरे इस बयान से अदालत में हलचल मच गई। साइमा ने चैंक कर मुझे देखा। तारिक की धुंधलाई हुई नजरों में चमक आ गई। उसका चेहरा कमजोर और जर्द हो रहा था। 
‘‘योअर आॅनर, इस हादसे का चश्मदीद गवाह मैं हूं।’’ फिर मैंने तफ्सील बताई, ‘‘यह सब आपको पता ही है कि नेमान और तारिक के दरम्यान कारोबारी रंजिश थी। नेमान तारिक का छहः सात लाख रुपये का कर्जदार था। तारिक ने अब उसे धमकियां देनी शुरू की थीं, लेकिन इन धमकियों से उसकी मुराद कानूनी चाराजोई थी। नेमान इस कर्ज की अदायगी के लिए बहुत-सा वक्त चाहता था, लेकिन तारिक उसकी वादा-खिलाफियों से तंग आकर और वक्त देने को तैयार ना था। उस रोज नेमान ने खासतौर पर मुझे बुलाया था, ताकि मैं दोनों के दरम्यान सुलह करवा दूं। तारिक को मेरे आने के बारे में कुछ पता नहीं था। 
‘‘नेमान का घर गली के आखिरी सिरे पर था। नेमान से मिलकर मुझे कहीं और भी जाना था, लिहाजा हम वहीं बाहर टहलकर तारिक का इंतजार करने लगे। बातें करते हुए हम सड़क पर आ गए थे। तारिक हमारी उम्मीद के खिलाफ विरोधी दिशा से आ गया। उसकी गाड़ी की आवाज और हाॅर्न पर हम चैंक कर मुड़े। तारिक ने भी अचानक हमें सामने देखकर हाॅर्न दिया और ब्रेक लगाया, लेकिन ब्रेक लगते-लगते भी नेमान गाड़ी की जद में आ चुका था। वह टकराया और उछलकर दूर जा गिरा। फुटपाथ के किनारे पर बेशुमार पत्थर पड़े थे। एक नोकीला पत्थर उसके सिर में धंस गया और यूं उसने मौके पर दम तोड़ दिया। 
‘‘तारिक यह देखकर बौखला गया। उसकी नजर शायद मुझ पर नहीं पड़ी थी या शायद घबराहट में मुझे ना देख सका था। वह गाड़ी से उतरा। नेमान को हिलाया-डुलाया। सिर से बहते खून ने उसके होशो-हवास उड़ा दिए थे। होश तो मेरे भी गुम हो चूके थे। 
‘‘वह खौफ और घबराहट के आलम में गाड़ी में बैठा। इससे पहले कि मैं उसे रोकता, वह गाड़ी स्टार्ट करके तेजी से चला गया। मैं दौड़ा और नेमान के करीब आया, मगर वह मर चुका था। मैंने उसे अपनी गाड़ी में डाला और अस्पताल ले गया, जबकि रास्ते ही में मैंने वायरलेस कर संबंधित थाने को हिदायत कर दी थी कि वह तारिक को गिरफ्तार कर लें।’’
मेरा बयान कोई शक-सुबहा नहीं छोड़ता था। यह तारीक के बयान की तसदीक थी। मेरे बयान के बाद जज साहब ने कहा, ‘‘लेकिन ए.सी.पी. खावर जमाल, इतने अर्से तक सच्चाई को छुपाकर आपने जो कोताही और कानूनी शिकनी की है, उसका अहसास है आपको। अपकी इस लापरवाही से एक बेगुनाह मौत का कसूर वार माना जाता।’’
‘‘इसके लिए मैं शर्मिंदा हूं जनाब।’’ मैंने सिर झुका कर कहा। 
‘‘यह आपकी इस तरह की पहली गलती थी। आपके ओहदे और बेदाग कैरियर को मद्देनजर रखते हुए यह अदालत आपको इस वार्निंग के साथ छोड़ रही है कि इस तरह की गलती और कोताही आईंदा ना होने पाए।’’
फिर जज साहब बचाव वकील साइमा से सम्बोधित हुए, ‘‘चूंकि यह अदालत मान चुकी है कि यह कत्ल नहीं, इत्तेफाकी हादसा था, इसलिए यह अदालत तारिक को बाइज्जत बरी करती है।’’


फिर यह केस खत्म हो गया। तारिक रिहा हो गया। इस तरह का बेगुनाह इंसान अपने नाकरदा जुर्म की सजा पाने से बच गया। यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी, मगर इससे बढ़कर एक और बात थी।  मेरी मुहब्बत मुझे वापस मिल गई थी, वरना मैं तो अपने ही शको-शुब्हा की चिंगारी से अपने घर को आग लगा चुका था और अपनी मुहब्बत को तो दफना ही चुका था। ऐन वक्त पर खुदा ने मुझे सही राह दिखाई और मैं तबाही और बर्बादी से बच गया।
         काॅलगर्ल का आत्मसम्मान

रजनी अप्सराओं जैसी खूबसूरत थी, कसावदार सेक्सी बदन, रसभरे होंठ और बड़ी-बड़ी आंखें किसी को भी सहज ही उसका दीवाना बना देती थीं। वह खुद भी तो यही चाहती थी मर्दों की निगाहों में आना! यही तो उसकी कमाई का जरिया था।
रात के दस बजने को हैं, इसका अहसास रजनी को, अभी-अभी घड़ी देखने के पश्चात ही हुआ था। वक्त का अहसास होते ही जाने क्यों एक अंजाना-सा भय धीरे से उसके दिल में उतर आया और धमनियों में बहते लहू के साथ जा मिला। दस बजना कोई नई बात नहीं है, अक्सर ऐसा हो जाया करता है, फिर भी आज वह फिक्रमंद हो उठी है। उसने धीरे-धीरे गर्दन घुमाकर अपने आस-पास का जायजा लिया। बस-स्टाॅप तकरीबन खाली हो चुका था, जो बचे हुए लोग दिखाई दिये, उन्हें वह अपनी उंगलियों पर गिन सकती थी।
जैसे कि...मूंगफली वाला, जलेबी वाला, पान वाला और उसके आजू-बाजू खड़े दो मर्द। कुल पांच लोग मौजूद हैं, वहां जिनके होने का उसके लिए कोई महत्व नहीं था। उन सबके बीच रहकर भी वह नितांत अकेली ही है। ऊपर से जानबूझकर सबसे अलग-थलग बने रहने की मुसीबत लड़की जो ठहरी।
ऐसे वक्त में स्वयं का लड़की होना उसे किसी भयंकर अपराध से कम नही महसूस होता। फुरसत के क्षणों में वह अक्सर सोचती है, ईश्वर ने उसे लड़की क्यों बनाया, लड़का क्यों नहीं? तब कम से कम हर वक्त उसके भीतर यह असुरक्षा की भावना तो नहीं बनी रहती। बात अगर सिर्फ इतनी होती तो गनीमत थी, किन्तु यहां तो हर तरफ एक के बाद एक मर्द, सर्प की तरह फन उठाये, दंश मारने को एकदम से तैयार मिलते हैं। क्या-क्या नहीं बर्दाश्त करना पड़ता है उसे, कहीं अपनी गर्दन पर महसूसती उनकी गर्म सांसों की फुंफकार, तो कहीं शरीर पर चुभती उनकी तेज धारदार निगाहें, कपड़ों के भीतर तक एक्सरे करती हुई सी...भला इनसे भी बचा जा सकता है?
अब इन्हीं दो हरामजादों को देखो, आजू-बाजू यूं तन कर खड़े हैं, जैसे दोनों उसकेबाॅडीगार्डहों। ऊपर से धीरे-धीरे अपनी तरफ फिसलती उनकी टांगों का अहसास! वह बेखबर नहीं है, सब कुछ समझ रही है वह, रग-रग से वाकिफ है वह इन पुरुषों की, जो मन ही मन उसे हजम कर जाना चाहते हैं...या फिर कर भी चुके और जता यूं रहे हैं जैसे कोई मतलब ही नहीं हांे उससे। मानो सब-कुछ अनजाने में ही होता चला जा रहा है। ये लोग मांस खाना तो चाहते हैं, किन्तु हड्डियों को गले में लटकाकर घूमने की कुव्वत उनमें नहीं है। वे नहीं चाहते की कोई उन्हें मांसाहारी समझे, रजनी उन दोनों से ही दूर हो जाना चाहती है, किन्तु क्या करें, एकांत का सामना करने की हिम्मत उसमें नहीं है बस, कभी-कभार जब उन दोनों का सामीप्य बर्दाश्त से बाहर होने लगता है, तो आगे-पीछे सरक कर स्वयं को उनसे दूर रखने की कोशिश भर कर लेती है।
किन्तु सब व्यर्थ साबित हो रहा है, अगले ही पल दोनों ने पुनः अपने स्थान से सरकना शुरू कर दिया और उसके एकदम करीब पहुंच गये। रजनी ने निगाहों से ऐतराज जताने की कोशिश की। बारी-बारी से उन दोनों को घूरकर देखा। एक पल को दोनों उधर से अपनी निगाहें फेरकर तनिक सिमट से गये, किंतु उसकी निगाह हटते ही फनः पुराना सिलसिला चल निकला। गुजरते वक्त के साथ रजनी की परेशानी बढ़ने लगी, वह कुछ अधिक नर्वस हो उठी। घड़ी देखने पर ज्ञात हुआ कि साढ़े दस बज चुके हैं। वह अपनी जगह से हटकर तनिक आगे बढ़ी दूर-दूर तक सड़क पर निगाह दौड़ाकर देखने की कोशिश की, निराशा ही हाथ लगी, बस का कहीं पता नहीं था। पिछले एक घंटे से यहां खड़ी वह अपनी बस का इंतजार कर रही है, आॅटो से भी जा सकती है, किन्तु बस के साथ-साथ मानो आॅटो वालों  ने भी हड़ताल कर दिया हो, वह कर भी क्या सकती है? बस इंतजार किये जा रही है।
ऐसे वक्त में अचानक बज उठे मोबाइल फोन की घंटी सुनकर उसे तनिक राहत-सी महसूस हुई, बैग में हाथ डालकर उसने फोन बाहर निकाला और बातें करने लगी। ‘‘हाॅय’’ उधर से कहा गया, ‘‘कहां हो जानेमन, क्या इस दीवाने को मार डालने का इरादा है, जल्दी आओ ना सारा नशा उतरा जा रहा है। मैं बेकरार हूं तुम्हारी तनी हुई पुष्ट छातियों को सहलाने के लिए, तुम्हारे भारी कूल्हों को थपथपाने के लिए...’’ फोनकर्ता इससे पहले की शराब के नशे में कुछ और कहता रजनी नेबस आधा घंटा औरकहकर काल डिस्कनैक्ट कर दिया। रजनी ने फोन पुनः बैग में रख लिया और इंतजार करने लगी।
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दरियागंज के बस स्टाॅप पर रुकने के बाद बस, अभी-अभी आगे बढ़ी थी। अनायास ही रजनी की निगाह खिड़की से बाहर झांकती हुई, अगले दरवाजे तक पहुंच गई। एक नवयुवक बड़ी ही तेज गति से बस के साथ-साथ दौड़ रहा था, मानो यह उसके जीवन की आखिरी बस हो। वह बार-बार बस के भीतर दाखिल होने की कोशिश कर रहा था, एक पल को लगा बस उसके हाथ से छूट चुकी है। किन्तु वह हार मानने को तैयार नहीं था। दौड़ता रहा, दौड़ता रहा और अंततः वह मानो हवा में उड़ता हुआ-सा बस के भीतर दाखिल हो गया।
अबे , बहन चो....मरेगा क्या?’
यह खूबसूरत-सा वाक्य निश्चय ही ड्राइवर के मुख से निकला था। मालूम नहीं, वह किस बात पर क्रोधित है, युवक द्वारा बस की स्पीड को धता बताने पर या फिर वह सचमुच उसके लिए फिक्रमंद था। गाली देने के पश्चात वह पुनः अपनी ड्राइविंग में खो गया, मुड़कर अपने शब्दबाण का असर तक देखने की कोशिश नहीं की। युवक ने भी जवाब में कुछ नहीं कहा, वह बस की छत में लगे लोहे के डण्डे को पकड़कर झूलता हुआ आगे बढ़ा और रजनी के बगल में धम्म से बैठ गया। इस प्रक्रिया में उसकी कोहनियां रजनी की छातियों को सहला गई, हाथ, उसकी जांघों पर दबाव बना गए। रजनी को तनिक असुविधा-सी महसूस हुई। किन्तु वह मुंह से कुछ नहीं बोली...आदत-सी पड़ गई है उसे इस तरह धक्के खाने की, फिर सोचती है, अब बचा ही क्या है उसके पास सहेज कर रखने के लिए, वक्त से बहुत पहले ही तो गंवा चुकी है वह अपना सब कुछ...अब तो आत्मसम्मान, सतीत्व इत्यादि के विषय में सोचना भी भारी मजाक का विषय जान पड़ता है। वह यकीन पूर्वक कह सकती है कि उसके बगल में बैठा युवक जान-बूझकर हड़बड़ी जताता हुआ वहां बैठा था, वह सिर्फ उसे स्पर्श करना चाहता था, कर चुका था।
ऊंह, हरामजादा...स्साला।
युवक ने हड़बड़ाकर उसकी तरफ देखा, वह अचम्भित है, यकीन नहीं कर पा रहा है कि उसके बगल में मौजूद इस खूबसूरत रमणी ने उसे गाली दी है।
आपने मुझसे कुछ कहा?‘ वह स्वयं को प्रश्न करने से नहीं रोक पाया।
जी नहीं।कहकर रजनी ने मुंह फेर लिया और खिड़की से बाहर फैंसी रंग-बिरंगी रोशनियों में स्वयं को उलझाने का प्रयत्न करने लगी, मगर इस दौरान उसका पूरा ध्यान युवक के इर्द-गिर्द ही मंडराता रहां वह चाहकर भी उसके ख्यालों को दिमाग से खुरच नहीं पा रही थी। उसे बार-बार महसूस हो रहा था जैसे वह युवक  उस पर हंस रहा हो और उसकी खामोश निगाहें रजनी के शरीर को टटोलने का प्रयत्न कर रही हो। क्या सचमुच ऐसा ही था, या फिर यह एक नया भ्रम है। जिसने उसके भीतर का दरवाजा खोज लिया है और अब उस बंद दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश कर रहा है। वह परेशान हो उठी।
अचानक उसे लगा बगल में बैठा युवक उसके खुले गले से झांकते उरोजों को घूर रहा है, वह एकदम से युवक की ओर पलट गई मगर वह दूसरी ओर देख रहा था। अचानक ही उसे अपने चारों तरफ, माहौल कुछ बदला-बदला-सा प्रतीत होने लगा। भीतर कहीं एक अनजाना-सा अहसास रह-रहकर करवटें बदलने लगा। जाने यह सब क्या है, क्यों हो रहा है? वह जानने की कोशिश करने लगी ढूंढने लगी, उस नयेपन के अहसास को, रास्ते में छिटकी पड़ी चांदनी और लैम्प पोस्ट की रोशनी में। हर जगह, हर तरफ, किन्तु जो भी दिखाई दिया वह सामान्य ही लगा, बिल्कुल पहले जैसा। उसका दिल इसे स्वीकारने को तैयार नहीं था, कुछ तो होना ही चाहिए...वह जो अब अपना स्वरूप त्याग चुका है, जिसके होने का अहसास उसे अपने चारों तरफ फैला हुआ महसूस हो रहा है। रजनी की परेशानी बढ़ने लगी। उसने आगे-पीछे, बस के अन्दर, बस के बाहर हर तरफ तलाश करके देख लिया...सबकुछ सामान्य ही दिखाई दिया। फिर क्यों उसका दिल यूं बार-बार किसी असामान्यता के घेरे में कसता चला जा रहा है?
रजनी इस बारे में जितना अधिक सोच रही है, उतना ही उलझती जा रही थी। उसने एक के बाद दूसरी, तीसरी...कई कोशिशें कर डालीं, खुद को उस असामान्यता के घेरे से बाहर निकालने की, किन्तु सफल नहीं हो सकी। हार मानकर वह शांत बैठ गई, उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। किन्तु मन ज्यों का त्यों भटकता रहा। निगाहों को साथ लिए वह जाने कहां-कहां फिरता रहा। यूं भटकती उसकी निगाह जब अपने सहयात्राी पर पड़ी, तो वह चैंक उठी...उसके बगल में बैठा युवक सीट की दूसरे किनारे की हदों को पार करता हुआ अपने आप में सिमट-सा गया था। मानो रजनी कोई छूत की बीमारी हो, जिसके स्पर्श से वह बचना चाहता है। मानो, वह कोई आम लड़की हो, जिस पर ध्यान देना उसने गैरजरूरी समझा था। आज से पहले उसके साथ कभी ऐसा नहीं हुआ था। क्या बच्चे, क्या जवान और क्या बूढ़े सभी उसका सामीप्य पाने को आकुल दिखाई देते थे, दूर खड़े लोग एक-दूसरे को धकियाते हुए उसके करीब पहुंचने की चेष्टा करते थे और अगर उसके बगल में कोई नवयुवक बैठा हो, फिर तो हर मोड़ पर रजनी को उसके शरीर का भार झेलना पड़ता था। कभी-कभी तो पीछे मर्द के उत्तेजक अंग की कठोरता वह कपड़ों के ऊपर से ही अपने नितम्बों पर महसूस करती थी मानो यूं खड़े-खड़े पीछे से ही मुफ्त में मजा मार लेना चाहता हो। अब उसे यह सब बुरा नहीं लगता था...वह भीतर तक आनंदित हो उठती थी, श्रेष्ठता के अभिमान में उसका चेहरा जगमगा उठता था, मानो, उसने कोई मैडल जीत लिया हो।
वह थी ही खूबसूरती की हदों को पार करती हुई सी, एक बार जो उसे देख लेता बस...कभी-कभी तो उसे स्वयं भी रश्क हो आता, अनजान नहीं थी वह खुद से। किन्तु आज सब कुछ बदल-सा गया है, उसके बगल में बैठा यह अनजान युवक उसमें तनिक भी दिलचस्पी नहीं ले रहा। रजनी को लगा सारी असामान्यता यहीं है, जो कि बेवजह उसके भीतर कसमसाहट उत्पन्न कर रही थी। उसने चोर निगाहों से युवक की तरफ देखा, सूरत से वह निहायती शरीफ नजर आया, पढ़ा-लिखा भी मालूम हुआ, फिर इतनी बेरुखी? रजनी सोच में पड़ गई। क्या सचमुच ऐसा हो सकता है कि वह उससे जरा-भी प्रभावित नहीं हुआ हो। सोचते वक्त अनजाने में ही उसकी निगाह सामने के शीशे पर जा पड़ी और वहीं थमकर रह गई। शीशे में अपना अक्स देखकर वह पहले की भांति प्रफुल्लित नहीं हो सकी, कुछ बुझ-सी गईं उसे लगा यह चेहरा तो उसका है ही नहीं, यह तो कोई अजनबी सूरत है, जो ठीक से पहचानी भी नहीं जाती। देखते ही देखते उसके केश बिखर से गये, गालों पर झुर्रियां उभर आईं और उसकी खूबसूरत बड़ी-बड़ी आंखें अंदर को धंस गई प्रतीत होने लगी, वह भयभीत हो उठी, उसका दिल कर रहा है कि वह चीख-चीखकर सबको बता दे कि यह वो नहीं है, यह चेहरा जो दिखाई दे रहा है, यह उसका नहीं है।
चिल्लाने की कोशिश में वह पसीने से तर हो गई, भयभीत होकर उसने अपनी निगाहें फेर लीं और धीरे-धीरे पुनः अपना ध्यान युवक पर केन्द्रित करने लगी, किन्तु यहां भी उसको सकून नहीं मिल रहा, युवक का बर्ताव बार-बार उसके भीतर चुभन-सी पैदा कर रहा है। रजनी को यह सरासर अपनी तौहीन दिखाई दे रही है, उसका अहम इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा कि वह युवक उसकी तरफ से उदासीन बना बैठा रहे, प्रति पल उसके भीतर की कसमसाहट बढ़ती जा रही है, युवक को झुकाने की कोशिश में वह स्वयं झुकती चली गई। वो युवक से बातें करने को उतावली हो उठी, किसी अजनबी से बात करने में तनिक झिझक तो अवश्य महसूस हुई, किन्तु वह खामोश नहीं रह सकी।
एक्सक्यूज मी!‘ उसने हौले से कहा, आवाज गले में फंसती हुई महसूस हुई।
आवाज सुनकर वह रजनी की दिशा में घूम-सा गया, ‘यस प्लीज।
जी...जी, वो...दरअसल।वह हड़बड़ा-सी गई, क्या कहे, क्या पूछे? अचानक कुछ खास सूझ सका तो टाईम ही पूछ लिया।
पौने ग्यारह!‘ जवाब देकर वह पुनः पहले वाली स्थिति में पहुंच गया। रजनी लाचार हो उठी। धीरे से पहलू बदलकर उसने अपना मुख खिड़की की तरफ घुमा लिया और पुनः कोशिश करने लगी, उसी युवक को अपने ख्वाबों से खुरच देने की। किन्तु यह कोशिश हार के करीब पहुंचने पर उत्पन्न हुई, जीत की प्रबल आकांक्षा के समान थी। धीरे-धीरे उसकी कल्पनाशीलता बढ़ने लगी। उसने युवक को अपने भीतर बिठाकर तमाम खिड़की-दरवाजों को मजबूती से बंद कर लिया। फिर शुरू किया सपने बुनने का एक लम्बा सिलसिला! जिसमें तरह-तरह के सुखद स्वप्न उसके सामने उपस्थित थे, जिन्हें वह मनमाने ढंग से बना-बिगाड़ सकती थी, यहां वह अपनी मर्जी की मालिक है। सपने में वह युवक उसके होंठों को चूम रहा था और वह उसे बार-बार पीछे धकेल देती थी। युवक गिड़गिड़ा रहा था उसके जिस्म को पाने के लिए मिन्नतें कर रहा था और वह उसे दुत्कार रही थी। आखिर युवक ने उसके आगे हाथ जोड़ दिए और गिड़गिड़ाता और बोला, ‘‘ हुस्नपरी मुझे अपने इस खूबसूरत जिस्म का स्वाद चख लेने दे। मुझे अपना गुलाम समझ और अपने हुस्न की सेवा करने का मौका दो।’’
‘‘ठीक है’’ वह किसी महारानी की तरह गर्वांवित स्वर में बोली, ‘‘अगर तू मेरी गुलामी करने को तैयार है तो पहले मेरे खूबसूरत पैरों को अपनी जीभ से चाट फिर टांगों को चाटता हुआ जांघो तक पहुंच और यूं मेरे अंग प्रत्यंग भीतरी और बाहरी दुनिया को अपनी जुबान से तर-बतर कर और फिर मेरे जिस्म की गहराइयों में उतर जा।’’
रजनी अपने ख्वाब को लगातार मनमाना रूप दिए जा रही थी, उसका ख्वाब जारी था, युवक उसका हुक्म बजा रहा था। अपने बदन पर फिरती उसकी जीभ के स्पर्श से रजनी जल्दी ही कामुक सीत्कारें भरने लगी। मारे उत्तेजना के उसने युवक को कसकर अपनी बांहों में भीच लिया...
तभी बस ने तेज झटका खाया। रजनी का सिर आगे वाली सीट के पुश्त से टकराया और उसका हसीन ख्वाब छिन्न-भिन्न हो गया।
 ख्वाबों के घेरे से बाहर निकलकर वह विनम्र हो उठी...युवक के बारे में उसकी राय तब्दील होने लगी। कुछ समय पूर्व जो निष्ठुरता उसके अहम पर चोट कर रही थी। अब अचानक ही वह भली लगने लगी...रजनी मजबूर हो उठी, फिर एक नये सिरे से उसके बारे में सोचने लगी, ‘ओह कितना शरीफ है, बेचारा! आजकल भला इतने सीधे-सादे लोग मिलते ही कहां हैं, खासतौर से हम लड़कियों के मामले में, सभी की फितरत एक होती है। उनका दृष्टिकोण एक होता है, सोचने-समझने का नजरिया एक होता है और उन सबकी हरकतें भी एक जैसी होती हैं, किन्तु यह...यह तो सबसे अलग है, जैसे फुरसत ही नहीं है किसी और के बारे में सोचने की।
रजनी जाने कब मुग्ध हो उठी, उसके इस भोलेपन पर।
पहली बार उसके दिल के किसी कोने में झनकार उठी है, पहली बार उसने अपनी संकीर्ण मानसिकता के घेरे से बाहर निकलकर कुछ अलग सोचा है। महसूस किया है उन कोमल अनुभूतियों को जिनसे आज तक वह अनजान ही रही थी। उसका मन युवक की तरफ खिंचा-सा जा रहा है। वह उससे ढेरों बातें करना चाहती है, घनिष्ठता बढ़ाना चाहती है। यह मानव मन की एक दुर्बलता ही है...जो चीज हमसे जितना अधिक दूर होती है, उतनी ही आकर्षक दिखाई देती है और हम उसके उतने ही ज्यादा करीब पहुंचने की कोशिश करते हैं।
युवक की उदासीनता भी रजनी को बार-बार अपनी तरफ खींच रही है और वह सम्मोहित-सी खिंचती चली जा रही है। वह बार-बार युवक से बातें करने की कोशिश कर रही है और हर बार कुछ कह पाने से पूर्व ही खामोश हो जाती है, किन्तु वह हार मानने को कदापि तैयार नहीं है। एक के बाद एक...ऐसी कई कोशिशों के बाद आखिर वह बोल ही पड़ी।
सुनिये।
युवक तकाल उसकी दिशा में पलट गया, ‘आपने मुझसे कहा।
जी हां, दरअसल...मैं, एकच्युली में...आप?‘ वह हड़बड़ाकर चुप हो गई, जो कहना चाहती थी वह बात जुबान पर नहीं सकी। स्त्राीओचित लज्जा ने कुछ बोल पाने से पूर्व ही उसे खामोश कर दिया, युवक असमंजस में पड़ गया, किन्तु बोला कुछ नहीं, बस! पहले की भांति ही मुंह फेरकर बैठ गया।
रजनी पुनः तलाशने लगी, कुछ नये किन्तु ऐसे प्रश्न जिनके जरिये वह उस युवक से बातें कर सके, उसके बारे में जान सके, अंदाजा लगा सके, अपनी सोचों के अनुरूप और अभिव्यक्ति कर सके अपने विचारों की, क्या वह युवक से उसका नाम पूछे? ...यह उचित होगा, अगर वह बुरा मान गया तो...शायद नहीं, फिर इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है?
एक्सक्यूज मी!‘
आं...हां...कहिए।वह मानो नींद से जागा हो।
क्या, मैं आपको नाम जान सकती हूं?‘
जी...आशीष...आशीष कुमार।वह बेहिचक बोला। रजनी की प्रसन्नता का अनुमान रहा। वह इतरा उठी अपनी विजय पर...इतना ज्यादा कि एक के बाद दूसरा प्रश्न करने में संकोच का अनुभव हुआ।
आप जाॅब करते हैं...शायद।
जी हां, यहीं एक प्राइवेट फर्म में एकाउंट मैनेजर हूं, माफ कीजिए, किन्तु आपने अपने बारे में कुछ नहीं बताया।
मैं!‘ वो इठला उठी, ‘रजनी श्रीवास्तव।
स्टूडेंट हैं आप...
जी नहीं।
तो फिर जाॅब करती होंगी...
अब तो शायद वो भी नहीं करती, कुछ देर पूर्व ही जाने क्यों सब कुछ बदल-सा गया! कल तक जो कुछ भी मेरा अपना था, मेरे जीवन का अवलम्ब था, आज अचानक ही महत्वहीन हो उठा है, यूं महसूस हो रहा है, जैसे मैंने जिन्दगी को पहचानने में बड़ी भूल की है, अब तक तो मैं सिर्फ खोती ही चली आई हूं, पाया कुछ भी नहीं। बस, समझते की कोशिश में लगी हूं कि इतना सब कुछ यूं पलक झपकते ही केसे घटित हो गया?‘
कुछ समझ में आया?‘
नहीं, बस! उलझ-सी गई हूं।
सूरत से तो ऐसी नहीं दिखती आप।
माफ कीजिए आशीष मैं आपका मंतव्य नहीं सझ सकी।
दरअसल आपको देखकर लगता है, बस इतना ही पर्याप्त है आपके बारे में सब कुछ जान लेने के लिए। किन्तु मेरा अंदाजा गलत था, आप तो बेहद गहरी हैं...कई परतों से मिलकर बनी हैं और हर परत अपने-आप में सम्पूर्णता का अहसास कराती है। आपके पहलू में बैठते वक्त लगा था, आप महज एक खूबसूरत लड़की हैं। आपने बोलना शुरू किया, तो लगा काॅफी वाचाल हैं आपकी बातें सुनकर लगा, आप बेहद दुःखी हैं और अब मैं सोचने को विवश हो गया हूं कि आप कोई लेखिका या शायरा तो नहीं हैं।
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रात के बारह बजने को हैं, किन्तु नींद रजनी की आंखों से कोसों दूर है। वह आशीष के साथ बिताये गये एक-एक क्षण, एक-एक बात को, कई-कई बार मन ही मन दोहरा चुकी है और अब उनका विश्लेषण करके अपनी सोचों के अनुरूप नये-नये अर्थ तलाशने की कोशिश कर रही है। ऐसी हर कोशिश उसे आशीष की तरफ खींचती चली जा रही है। उसे महसूस हो रहा है कि वह आशीष से मोहब्बत कर बैठी है।मोहब्बतएक नई अनुभूति थी उसके लिए। अब तक वह सिर्फ सेक्स को ही प्रेम समझती आई है, किन्तु आज ऐसा नहीं है...आज प्रेम का एक नया अर्थ, नया रूप उभर कर उसके सामने रहा है।
मन के विचार बार-बार करवट बदल रहे हैं, उसी अनुपात में उसके अंतर्मन की उलझन गहराती जा रही है। किसी एक रास्ते को वह पूर्ण नहीं मान पा रही है...लग रहा है कोई भी राह अपने आपमें पूर्ण नहीं हेाती, कहीं कहीं उसे दूसरे किसी रास्ते में समाहित होना ही पड़ता है, फिर वे दोनों एकाकार होकर किसी तीसरे रास्ते से जा मिलते हैं। बस, इसी तरह रास्ते बनते चले जाते हैं। वह इनसे अलग हटकर चलना चाहती है, किन्तु किसी नये राह के निर्माण की क्षमता उसमें नहीं है, फिर! कितना आसान होता है किसी बने-बनाये रास्ते पर नाक की सीध में आगे बढ़ते चले जाना और कितना मुश्किल होता है नई राह का निर्माण...हर कदम पर फिसल जाने का खतरा, कहीं चट्टानों से टकराने का भय, तो कहीं किसी गहरे अंधड़ में गिर पड़ने की आशंका।
वह जाने क्या-क्या सोचती रही, अंततः अपनी ही भयावह सोचों से भयभीत हो, वह चिल्ला कर उठ बैठी, मानो अभी-अभी नींद से जागी हो, उसे अपना समूचा अस्तित्व सागर की अन्नत गहराइयों में विलीन होता-सा प्रतीत हो रहा है।
ओह! जाने क्या-क्या सोचती रहती वह...पहले भी तो उसने ऐसे ही किसी नये रास्ते के निर्माण की कोशिश की थी, नतीजा क्या हुआ एक बार जो पांव फिसला तो जीवनभर फिसलती ही चली गई। लीक से अलग हटकर चलने की कोशिश मे वह परत दर परत के गर्त में समाती चली गई और आज वह महज एक काॅलगर्ल बनकर रह गई है। अपनी स्वेच्छा से ही तो चुना था, उसने यहधंधा कि किसी ने मजबूर किया था, जैसा कि इस दो़ करोड़ की आबादी वाले महानगर में अक्सर होता ही रहता है।
वह करती भी क्या? आठ हजार रुपये की माहवारी पगार में पेट तो शायद भर जाता, किन्तु उसकी ऊंची महत्वाकांक्षाएं, जिनके लिए वह सत्रह साल की उम्र की उम्र में भागकर दिल्ली चली आई थी...उनका क्या होता? बस, लोगों को अपने ऊपर आशिक करवाना उसका शगल बन गया और शरीर बेचना रोजगार।
उसे याद है अपना पहला ग्राहक जो उसी फर्म में मैनेजर था जहां उसने क्लर्क की नौकरी पकड़ी थी। इस काम का कोई तजुर्बा नहीं था मगर जब उसे अप्वाइंट कर लिया गया तो वह हैरान रह गयी। उसे नौकरी क्यों मिली इसका पता उसे तीसरे रोज चला था जब छुट्टी के समय मैनेजर ने उसे अपने कमरे में बुलाया। सारा स्टाफ जा चुका था। मैनेजर ने उठकर उसका स्वागत किया और स्पष्ट लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें ये नौकरी इसलिए मिली क्योंकि तुम बहुत हसीन हो। तुम्हारी पगार आठ हजार है पर तुम अगर मुझे खुश कर दो तो पांच हजार का बोनस अभी मैं तुम्हें दूंगा।’’ कहकर मैनेजर ने 500 के दस नोट सामने रख दिए, ‘‘फैसला तुम्हारा है, तुम सिर्फ नौकरी करना चाहती हो या बोनस भी पाना चाहती हो।’’
रजनी की बोलती बंद हो गई। मगर वह ज्यादा देर तक असमंजस की स्थिति में नहीं रही, उसने सामने पड़़े नोट अपने पर्श में रखे और उठकर स्वयं ही कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर दिया।
मैनेजर की बांछें खिल गई। वह 40 के पेटे में पहुंचा दो बच्चों का बाप था। मगर रजनी पर यूं झपका मानों पहली बार किसी जवान खूबसूरत लड़की को देखा हो उसने कुछ ही पलों में रजनी की सलवार कमीज उतार फेंकी, फिर उसके ब्रा को नोचकर उसके जिस्म से अलग किया और उसके नग्न बदन को जी भरकर चूमने-चाटने और मसलने के बाद मैनेजर ने अपने अरमानों की तपती सलाख उसकी गहराइयों में उतार दी। रजनी के हलक से चीख निकलते-निकलते बची। वह दांत पर दांत जमाए दर्द बर्दाश्त करती रही और वह उसके कौर्माय को खंडित करता चला गया। कुछ पल बाद मैनेजर कुत्ते की तरह हांफ रहा था और वह दर्द से तड़प रही थी। मगर मैनेजर अपने पैसों की पूरी वसूली चाहता था। थोड़ी देर बाद उसने अपनी मेज की दराज से निकालकर कोई कामवर्धक कैप्शूल खाया और कुछ ही मिनटों में उसका घोड़ा रेस में दौड़ने को एकदम तैयार था।
रजनी ने जब दोबारा उसे तैयार होते देखा तो सहम सी गई मगर उस वक्त तो वह बिदक ही गई जब मैनेजर ने उसे पीठ के बल लिटाकर सवारी करनी चाही। उसने साफ इंकार कर दिया मगर अब तक मैनेजर की कामनाओं का घोड़ा हवा से बातें कर रहा था। उसने रजनी को दो तीन तमाचे जड़े और जबरन उल्टा लिटाकर सवारी करने लगा। रजनी के हलक से एक मर्मातक चीख निकली मगर कमरा साउंड प्रूफ था। उसकी चीख कमरे में ही गूंजती रही और मैनेजर ने अपनी मनमानी कर डाली। इससे पूर्व की मैनेजर को वह भला बुरा कहती, मैनेजर ने चुपचाप दो हजार रुपये और उसे पकड़ा दिया।
दो घंटो में सात हजार की कमाई। रजनी सारा दर्द भूल गई। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज क्या नहीं है उसके पास, सब कुछ तो पा लिया था उसने।
कल तक वह सम्पूर्ण थी, संतुष्ट थी, किन्तु आज अचानक ही सब कुछ खाली-खाली-सा महसूस होने लगा है, आज पहली बार उसे अपनी अंतरआत्मा की आवाज सुनाई पड़ी है, जो उसे बार-बार धिक्कार रही है, उसके चरित्र पर लानत भेज रही है। गुजरा हुआ वक्त किसी भयानक ख्वाब की तरह उसे बार-बार उसकी तुच्छता का अहसास करा रहा है। ऊफ! क्या-क्या करती रही है, वह अब तक, हर रात एक नया मर्द, नई गंध, नया तर्जुबा। वह इतना ज्यादा गिर गई और आज से पहले अहसास तक नहीं हुआ, उसका जी मिचलाने लगा, उठकर बाथरूम की तरफ दौड़ी। खाया-पिया सब बाहर, किन्तु तसल्ली नहीं हुई....मंुह में उंगली डालकर जबरन और उल्टियां की, फिर निर्वस्त्र होकरशावरके नीचे खड़ी हो गई, कोशिश करने लगी, रगड़-रगड़कर स्वयं को साफ करने की, इस कोशिश में उसने अपने हर उस अंग को रगड़-रगड़कर घोया जहां से अंजान, अय्याश मर्दों की गंदगी से उठती बू उसे महसूस हो रही थी। मगर जो गंदगी भीतर तक गहरी पैठ बना चुकी थी, वह भला यूं कैसे धुल जाती।
हे भगवान...मुझे क्षमा करना।वह हिचक-हिचक कर रोने लगी, जितना रोई, रोने की भावना उतना ही प्रबल होती गई।
इस वक्त उसकी दशा उस जुआरी की भांति हो रही है, जो जुए में अपना सर्वस्व हार चुकने के बाद स्वयं को जी भरकर कोसना शुरू कर देता है। वह भी जाने कब तक खुद को कोसती रही, गालियां देती रही, मन का उद्वेग फिर  भी शांत नहीं हुआ...बेडरूम में पहुंचकर भीगे बदन ही बिस्तर पर पसर गई। आंखों के समक्ष पुनः आशीष का चेहरा नाच उठा, उससे पुनः मिलने की चाह हर पल बढ़ती जा रही है। इस गहरे अंतद्र्वंद में रात कब बीत गई, कब सवेरा हो गया? यह रजनी नहीं जान सकी।
....................

बस स्टाॅप पर खड़े-खड़े तकरीबन एक घंटा गुजर चुका था, अभी जाने कितना लम्बा खिंचना था यह इंतजार का सिलसिला, किन्तु आज वह मायूस नहीं हो रही, बल्कि उत्सुक है, आशीष से मिलने को। सारी बातें पहले से तय कर चुकी है। एक-एक वाक्य बहुत सोच-समझकर चुना है उसने, बस एक बार वह दिखाई दे जाये...उसकी उत्सुकता हर पल बढ़ती जा रही है, पिछले पांच मिनट में वह दस बार घड़ी देख चुकी है, किन्तु वक्त था कि बीतने का नाम ही नहीं ले रहा। सेकेण्ड की सुई मानो घंटे के हिसाब से चलने लगी हो, एक-एक पल एक-एक युग के समान महसूस हो रहा है।
अगर वह नहीं आया तो?‘ सोचने मात्र से वह भीतर तक हिल उठी, लगा कोई प्राण खींचे ले जा रहा हो।
आयेगा क्यों नहीं?‘ खुद को तसल्ली देने लगी,  ‘बस, तो पकड़नी ही है उसे..अभी तो कल वाला वक्त भी नहीं गुजरा, मैं तो बस...खामखाह परेशान हो रही हूं?‘
यूं ही सिलसिला चलता रहा।
इंतजार करते-करते वह थक-सी गई, कल वाला वक्त भी पीछे छूट गया। मगर वह नहीं आया। गुजरते लम्हों के साथ उसकी उदासी बढ़ने लगी, आशा का स्थान निराशा ने ले लिया। अपने दिल के भीतर बार-बार उसे कुछ चटकता-सा प्रतीत होने लगा, एक-एक करके सारे स्वप्न महल धराशाही होने लगे। फिर भी अवाक-सी खड़ी वह टकटकी लगाये उसके आने की राह देख रही थी। किन्तु वह नहीं आया। जो कभी उसका था ही नहीं, उसे खोने के गम में रजनी की आंखें छलक आईं...वहीं खड़े-खड़े वह रो पड़ी, जाने कब तक रोती रही।
ध्यान उस वक्त भंग हुआ, जब अचानक ही उसका मोबाइल फोन बज उठा। घंटी की आवाज सुनकर उसके आंसू थम से गये, कुछ क्षण इंतजार करती रही...किन्तु जब घंटी बजनी बंद नहीं हुई तो उसनेकाल अटैण्डकर ली और बिना कुछ कहे दूसरी तरफ से आती आवाज को सुनती रही। इस दौरान उसके चेहरे का तनाव बढ़ने
लगा...आंखें सुलग उठी। कोई कह रहा था, ‘‘अरे रानी कितनी देर लगाओगी, मेरा मन बेकरार हो रहा है।’’
साॅरी मैं नहीं सकती।वो खुद को जब्त करके बोली।
‘............................................‘
बकवास मत करो।वह चीख-सी पड़ी, ‘मैं तुम्हारी रखैल नहीं हूं, जो तुम्हारे इशारों पर नाचती फिरूं।
‘..............................................‘
अगर तुम पैसा देते हो तो बदले में जानवरों की तरह रात भर रौंदते हो मुझे।
‘...............................................‘
शटअप! आइंदा मुझे फोन मत करना।
कहकर उसनेकाॅल डिस्कनैक्टकर दी। उसका यह फोन भी अद्भुत चीज है...उसका हमसफर...उसके हर गुनाह में शरीक कोई नहीं जानता वह कहां रहती है। बस, यह फोन ही था जो दूसरों को उससे जोड़ता था।
फोनकर्ता उसकारेग्यूलर कस्टमरथा, जो कि गैर-सरकारी बैंक में उच्च अधिकारी था, किन्तु अब उसे किसी की परवाह नहीं है, आज रजनी अपने अतीत से नाता तोड़ आई थी...उधर मुड़कर देखने मात्र से उसे दहशत होने लगी है। वह अपने अतीत को भुला देना चाहती थी, जिसके प्रथम प्रयास स्वरूप उसने मोबाइल फोन का बैटरी वाला  हिस्सा खोलकरसिम कार्डबाहर निकाला और तोड़कर एक तरफ पड़े कूड़े के ढेर में उछाल दिया।
रहेगा बांस बजेगी बांसुरी।
उसने हाथ देकर एक आॅटो रुकवाया और उसमें सवार हो गई।


!! समाप्त !!