Thursday, April 11, 2013

वह ममेरी बहन की शादी में शामिल होने के लिए घर से निकली और जा पफंसी एक अजीबो गरीब परिस्थिति में जिसने उसकी जिन्दगी को ना सिपर्फ बदल डाला बल्कि बर्बाद कर डाला।

गहरी साजिश

-जयप्रकाश

वह ममेरी बहन की शादी में शामिल होने के लिए घर से निकली और जा पफंसी एक अजीबो गरीब परिस्थिति में जिसने उसकी जिन्दगी को ना सिपर्फ बदल डाला बल्कि बर्बाद कर डाला।


संध्या उस छोटे शहर के छोटे से स्टेशन पर उतरी। तब सुबह के पांच बजे थे। जाड़े के दिन थे और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। वातावरण में हल्का कोहरा भी छाया हुआ था।
ठंड से बचने के लिए संध्या ने अपने कोट के कॉलर खड़े किए और उसके अगल-बगल के जेबों में अपने दोनों हाथ डालकर स्टेशन से बाहर आई।
संध्या लगभग बीस वर्षीय, गौर वर्ण की एक खूबसूरत युवती थी। लम्बा कद, कजरारी आंखें और कसा हुआ सुगठित बदन। स्वभाव से वह मिलनसार और चंचल थी। कानपुर शहर में रहने के कारण वह खुले स्वभाव की थी और जल्द ही किसी से घुल मिल जाती थी। उसने अभी-अभी ग्रुेजुएशन किया था और किसी अच्छी नौकरी की तलाश में थी। संध्या के मां-बाप पढ़े-लिखे और खुले विचार के लोग थे और उन्होंने अपनी संतानों को अपना मनपसंद जीवन जीने की आजादी दी थी।
संध्या के पापा-सतीश श्री वास्तव एक सरकारी बैंक में मैनेजर थे। संध्या अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी थी, सो वह अपने मां-बाप और भाइयों की लाडली थी।
इस छोटे से शहर में उसके मामा का घर था और आज से पांचवें दिन उनकी बेटी की शादी थी। संध्या इसी शादी में शरीक होने यहां आई थी। वह तो अपने मां-बाप के साथ ही यहां आने वाली थी परंतु बैंक में एक आवश्यक काम निकल आने के कारण उसके पापा नहीं आ पाए थे। वो तीन दिन बाद उसकी मां के साथ आने वाले थे सो संध्या यहां अकेली ही चली आई थी ।
स्टेशन से निकलकर संध्या ने किसी सवारी की तलाश में अपनी निगाहें चारों ओर दौड़ाई पर उसे कोई सवारी नजर न आई। सवारी की तलाश में कुछ आगे बढ़ी। सड़क के किनारे एक मोड़ पर उसे एक रिक्शा दिखाई पड़ा। संध्या रिक्शा के करीब आई तब उसे रिक्शा के सीट पर चादर लपेटे सिमटकर बैठा रिक्शा वाला नजर आया। उसने अपने पूरे बदन यहां तक कि चेहरे के अधिकांश भाग पर भी चादर लपेट रखा था जिससे उसके चेहरे का अध्किांश भाग छिप गया था।
‘‘ओ रिक्शा वाले। गांध्ी नगर चलोगे?’’ संध्या ने उसके करीब पहुंचकर पूछा। रिक्शा वाले ने नजर उठाकर उसकी ओर देखा पिफर बोला, ‘‘जी।’’ कहने के बाद वह सवारी सीट से उतरकर चालक सीट पर जा बैठा।
संध्या रिक्शे पर बैठी। उसके बैठते ही रिक्शे वाले ने रिक्शा आगे बढ़ा दिया।
ठंड से बचने के लिए संध्या अपने आप में सिमटी नजरें झुकाए रिक्शे में बैठी थी।
लगभग पन्द्रह मिनट के बाद उसने अपनी नजरें उठाई तो उसके दिमाग को झटका लगा। पलभर तो वह अपने आस-पास के वातावरण का अवलोकन करती रही पिफर बोली, ‘‘ओ रिक्शा वाले। यह तुम मुझे कहां ले जा रहे हो, यह रास्ता तो गांध्ी नगर को नहीं जाता।’’
‘‘मैडम। आप देख रही हैं कितनी कड़ाके की ठंड है, सो मैंने मंजिल पर पहुंचने के लिए शार्टकट रास्ता अपनाया है।’’
‘‘ओह...!’’ संध्या के मुंह से निकाला पिफर सड़क की ओर देखने लगी।
परंतु जब आध घंटा बीत गया और वह अपनी मंजिल पर नहीं पहुंची तो उसके चेहरे पर बल पड़ गए। किसी अनिष्ट की अशंका से उसका दिल लरजा और वह कठोर स्वर में बोली, ‘‘रिक्शा रोको...।’’
परंतु रिक्शा वाले ने रिक्शा नहीं रोका, ऐसा लगा जैसे उसने संध्या की आवाज सुनी ही नहीं। ‘‘तुमने सुना नहीं, मैंने क्या कहा?’’ संध्या चिल्लाई, ‘‘रिक्शा रोको।’’
बदले में रिक्शा वाले ने पलटकर उसे देखा पिफर उसके मुंह से भेड़िए सी आवाज उभरी, ‘‘ऐ लड़की। अगर अपनी सलामती चाहती हो तो चुपचाप बैठी रहो वर्ना तेरी गर्दन काटकर यही किसी गटर में डाल दूंगा।’’ कहते हुए उसने अपने कपड़ों में से निकालकर लम्बे पफल का चाकू संध्या के सम्पूर्ण बदन में भय और आतंक की एक तेज लहर दौड़ गई। सुनसान सड़क, एक अकेली लड़की और ऊपर से चाकू धरी रिक्शा चालक जिसने उसकी गर्दन काटने की ध्मकी दी थी। संध्या की हिम्मत न हुई कि वह एक भी शब्द आगे बोले। वह भयभीत सी रिक्शे पर बैठी रही।
रिक्शा लगभग चालीस मिनट तक विभिन्न सड़कों पर दौड़ता रहा पिफर एक दो मंजिली इमारत के सामने आकर रूका। रिक्शा वाला रिक्शा से उतरा पिफर उसी भेड़िए सी आवाज में बोला, ‘‘नीचे उतरो।’’
संध्या चुपचाप रिक्शे से उतर गई।
थोड़ी देर बाद संध्या उस दो मंजिली इमारत के एक बड़े से कमरे में पड़ी कुर्सी पर बैठी थी। उसने चोर निगाहों से कमरे का निरीक्षण किया तो वह उसे किसी डॉक्टर के चैम्बर जैसा लगा। एक ओर ऊंचे पुश्त की एक कुर्सी पड़ी थी और उसके सामने पड़ी मेज पर डॉक्टरी उपयोग में आने वाले कुछ उपकरण रखे हुए थे। एक ओर एक वैसा बेंच पड़ा हुआ था जिस पर लिटाकर डॉक्टर रोगी का चेकअप करते हैं। अभी संध्या कमरे का निरीक्षण कर ही रही थी कि कमरे में बना दूसरा दरवाजा खुला और उसमें से एक प्रभावशाली व्यक्त्वि का लगभग पचपन वर्षीय एक व्यक्ति कमरे में दाखिल हुआ। एक नजर देखकर ही कोई भी कह सकता था कि वह डॉक्टर है।
नपे-तुले कदमों से आगे बढ़कर वह ऊंची पुश्तवाली कुर्सी पर बैठा पिफर संध्या पर एक नजर डालने के बाद उस तथा कथित रिक्शे वाले को देखा। बदले में वह बोला, ‘‘आपका नया पेशेंट।’’
‘‘ठीक है।’’ डॉक्टर के प्रभावकारी व्यक्तित्व के अनुरूप उसकी आवाज भी भारी और रोबदार थी, ‘‘अब तुम जा सकते हो।’’
बदले में वह तथा कथित रिक्शा वाला कमरे से निकल गया। डॉक्टर पलभर तक उसे जाते हुए देखता रहा पिफर, संध्या के चेहरे पर अपनी नजरें गड़ा दी। संध्या को ऐसा लगा मानो उसकी नजरें उसके चेहरे पर घूूम रही हैं। वह असमंजस पूर्ण नजरों से डॉक्टर को देखती रही पिफर बोली, ‘‘यह क्या गोरख ध्ंध है। मुझे इस तरह जबर्दस्ती यहां क्यों लाया गया है?’’
‘‘तुम बीमार हो इसलिए।’’
‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ संध्या हौले से चीखी, ‘‘मैं बीमार नहीं हूं।’’
‘‘तुम बीमार हो और अब मैं तुम्हारा इलाज करूंगा।’’ डॉक्टर बपर्फ के समान सर्द स्वर में बोला पिफर अपनी कुर्सी से उठने का उपक्रम करने लगा।
संध्या को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह इस अजीबो गरीब स्थिति से बुरी तरह घबरा उठी थी। जब तक वह अपनी बौखलाहट पर काबू पाए, डॉक्टर उसके सामने आ खड़ा हुआ था। उसके बिल्कुल सामने आकर उसने अपनी आंखें संध्या की आंखों में डाल दी। थोड़ी देर के बाद संध्या को ऐसा लग रहा था जैसे वह उसकी ओर सम्मोहित होती जा रही है। उसने अपनी आंखें नीचे करनी चाही पर कर न सकी। तभी उसे अपनी बांह में किसी चीज के चूभने का अहसास हुआ। अगले ही पल उसकी पलकें बोझिल होने लगी। पांच मिनट के बाद वह अपनी कुर्सी पर बेहोश पड़ी थी।
संध्या को जब होश आया तो उसने अपने-आपको एक सुसज्जित कमरे में गद्देदार बिद्दावन पर लेटे हुए पाया। इस समय उसका सर भारी-भारी था और बदन में बेहद कमजोरी महसूस हो रही थी। उसने अपने दिमाग पर जोर दिया और जानना चाहा कि वह यहां कैसे आई। परंतु उसके दिमाग में ध्ुंध्ली स्मृतियों के सिवा और कुछ न उभरा। उस ध्ूंधली स्मृति में एक रिक्शा, एक प्रभावशाली व्यक्ति और एक सुईसा चूभने का अहसास उभरा पिफर सब कुछ अंध्ेरे में डूबता चला गया।
‘‘गुडमा²नग मैम...।’’ तभी उसके कानों से एक नारी स्वर टकराया। उसने पलटकर देखा तो उसके सामने लगभग चालीस वर्षीय एक औरत हाथ में चाय का प्याला लिए खड़ी दिखलाई पड़ी।
‘‘मारिया मैम, चाय।’’ उसने प्याला उसकी ओर बढ़ाया। पर उसने प्याला थामने का कोई उपक्रम नहीं किया।
‘‘मारिया कौन?’’ उसने उलझी-उलझी नजरों से उस औरत को देखा।
‘‘आप।’’ उसने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।
‘‘मैं...?’’ संध्या के मंुह से आश्चर्य चकित स्वर उभरा।
‘‘पर यह नाम तो मेरे लिए बिल्कुल नया है। मैंने यह नाम इसके पहले कभी नहीं सुना। मेरा नाम तो...?’’ कहते-कहते संध्या रूकी। उसने अपने दिमाग पर जोर दिया परंतु उसे उसका नाम याद नहीं आया।
‘‘मैम! यही तो बीमारी है आपको।’’ वह औरत सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोली, ‘‘डॉक्टरों का कहना है कि आपको विस्मृति की बीमारी है और आप अपने को ही भूलने लगी हैं। सच तो यह है कि आपको आए दिन बेहोशी के दौरे पड़ते है और इसी कारण आपकी स्मरण शक्ति कमजोर पड़ गई है। अबकि बार तो आप पूरे पांच दिन बाद होश में आई हैं।’’
‘‘पांच दिन बाद...?’’
‘‘हां, पांच दिन बाद।’’
‘‘मैं कौन हूं।’’ कुछ देर सोच मग्न रहने के बाद संध्या ने पूछा।
‘‘मारिया-एक शातिर अपराध्ी।’’
‘‘क्या कह रही हो तुम...।’’
‘‘मैं बिल्कुल ठीक कह रही हूं। यकीन नहीं तो यह देखिए।’’ उसने बिछावन से थोड़ी दूर रखे आलमारी से एक अखबार उठाकर उसके सामने रखा। मारिया बिछावन पर उठ बैठी पिफर उसने अपने सामने पड़ा अखबार उठाकर देखा। अखबार पुराना था जिसमें उसकी तस्वीर के साथ एक खबर छपी थी जिसके अनुसार उसने अपने तीन साथियों के साथ मिलकर एक बैंक को लूटा था। इस खबर ने संध्या को उद्विग्न कर दिया। उसके दिमाग में ऐसी कोई बात नहीं उभर रही थी जिससे यह मालूम हो कि उसने कोई ऐसा काम किया है पर यह औरत...।’’
‘‘तुम कौन हो?’’ संध्या ने अपने सामने खड़ी औरत से पूछा।
‘‘आपकी काम वाली बाई-सोना।’’
‘‘यह घर?’’
‘‘आपका ही है।’’
‘‘हे ईश्वर...!’’ संध्या ने अपना सर थाम लिया, ‘‘पिफर मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा है?’’
‘‘मैंने कहा न, आपको विस्मृति की बीमारी है।’’ वह औरत कोमल स्वर में बोली, ‘‘पर आप प्रिफक न करें, आप जल्द ही ठीक हो जायेंगी।’’
संध्या खामोश उस औरत को देखती रही।
‘‘मैम! आपकी चाय तो ठंडी हो गई। मैं पिफर से गर्म करके लाती हूं।’’ कहने के बाद वह औरत कमरे से निकल गई।
‘‘डॉक्टर! आप कहां तक अपने काम में कामयाब हुए?’’ उस दोहरे बदन के सूट-बूटधरी व्यक्ति ने अपने सामने बैठे डॉक्टर से पूछा।
‘‘मैं अपने मंजिल के करीब पहुंचने वाला हूं।’’ डॉक्टर बोला, ‘‘वह लड़की अपना बीता कल बहुत हद तक भूल चुकी है। मेेरी दवाइयों के प्रभावतले उसका ब्रेनवाश हो चुका है और अब वह अपने आपको शातिर अपराध्ी-मारिया समझने लगी है।’’
‘गुड।’ वह व्यक्ति बोला, ‘‘आप जल्द से जल्द अपना काम पूरा कीजिए क्योंकि आपकी कामयाबी पर ही हमारी योजना की कामयाबी निर्भर है।’’
‘‘मैं समझ रहा हूं।’’ डॉक्टर बोला, ‘‘बस समझ लीजिए कि हम मंजिल के बिल्कुल करीब है।’’
इध्र संध्या के मां-बाप जब उसके मामा के घर पहुंचे और उन्हें मालूम हुआ कि संध्या अब तक वहां नहीं पहुंची तो वह बेचैन हो उठे। उनसे यह जानकर कि संध्या उनसे तीन दिन पहले ही घर से यहां के लिए निकल चुकी है, उसके मामा-मामी भी प्रिफक मंद हो उठे। उन्होंने हर संभावित जगह संध्या की तालाश की और थकहार कर उसकी रिपोर्ट पुलिस में लिखवा दी।
छः महिने बीत चुके थे। इस बीच संध्या पूरी तरह मारिया के रूप में बदल चुकी थी। उसके दिमाग में यह बात कुट-कुटकर भर दी गई थी कि वह मारिया है-एक शातिर अपराध्ी।
वह एक वर्गाकार कमरा था जिसके बीचोबीच एक गोलाकार मेज पड़ी हुई थी। इस गोलाकार मेज के चारों ओर चार कुखसयां पड़ी थीं जिनमें एक पर मदन खुराना, दूसरे पर संध्या और अन्य दो पर दो और व्यक्ति बैठे थे। इनमें से एक ठिगने कद का, जिसका नाम-सचदेव था, तथा दूसरों पर एक लम्बे कद का जिसका नाम-बलदेव था-विराजमान थे। ये दोनों मदन खुराना के आदमी थे। इस समय मेज पर एक बड़ा सा मैप पफैला हुआ था जिस पर एक कोठी का नक्श बना हुआ था।
‘‘यह वह कोठी है जिसमें तुम्हारा शिकार रहता है।’’ मदन खुराना ने संध्या को समझाना शुरू किया, ‘‘मारिया तुम्हारा शिकार जिसका नाम आकाश वर्मा है, कानपुर के एक मशहूर बिजनेसमैन-बलराज वर्मा का इकलौता और लाडला बेटा है। इस बलराज वर्मा के पास करोड़ों की दौलत है और इकलौता बेटा होने के कारण आकाश वर्मा की इस दौलत तक सहज ही पहुंच है। तुम्हें इसी आकाश वर्मा के करीब पहुंचना है, इतना करीब कि वह तुम पर अंध्विश्वास करने लगे। मारिया तुम खूबसूरत हो, जवान हो और तुम्हारे पास सांचे में ढ़ला उत्तेजक बदन है जो सहज ही किसी मर्द को दीवाना बना सकता है। आकाश वर्मा को अपने रूप जाल में पफांसो, उसके माध्यम से उसके करोड़ों की दौलत के पास पहुंचों और मौका मिलते ही इस दौलत को लेकर पफूूर्र हो जाओ। मारिया! तुम ऐसा काम पहले भी कर चुकी हो और मुझे आशा है कि तुम इस काम को भी सपफलता पूर्वक कर सकती हो।’’
संध्या के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे। उसे याद नहीं आ रहा था कि उसने ऐसा कोई काम कब किया है।’’
‘‘क्या बात है, तुम खामोश क्यों हो।’’ संध्या को उलझन में पफंसा देखकर मदन खुराना बोला।
‘‘बौस! मुझे यह याद नहीं आ रहा है कि मैंने कब यह किया है।’’
‘‘छः माह पहले ही।’’ मदन-खुराना विश्वास भरे स्वर में बोला, ‘‘यह बात और है कि अपनी बीमारी के कारण तुम्हें पिछली कई बातें याद नहीं रही। खैर तुम्हें इस बारे में अध्कि टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। मैं जैसा कह रहा हूं, तुम बस वैसा ही करती जाओ। वैसे हमेशा की तरह बलदेव और सचदेव तुम्हारे साथ रहेंगे जो सदा तुम्हारी हर सहायता को तैयार रहेंगें।’’
संध्या ने बारी-बारी से उनको देखा तो उनके होंठों पर मित्रातापूर्ण मुस्कान नाच उठी।
संध्या को कानपुर में रहते पन्द्रह दिन बीत गए थे। इस बीच उसने आकाश वर्मा और उसकी कोठी को कई बार देखा-भाला था। अपने तथा बलदेव और सचदेव के प्रयासों के द्वारा संध्या को आकाश वर्मा के बारे में जो जानकारी मिली थी, उसके अनुसार आकाश वर्मा स्वस्थ कद काठी और दिल पफेक किस्म का एक मस्तमौला नौजवान था। वह बी.ए. का छात्रा था परंतु कॉलेज उसके लिए पढ़ाई का केन्द्र नहीं अपितु मौज-मेले का स्थान था जहां वह अपने दोस्तों और खूबसूरत लड़कियों के साथ मौज-मस्ती करता था। अपने दोस्तों और खूबसूरत लड़कियों पर वह दिल खोलकर पैसे खर्च करता था। इस शाहखर्ची के कारण लड़के तो लड़के लड़कियां भी उसकी ओर सहज ही खीची चली आती थीं।
उसकी इन विशेषताओं के आलोक में संध्या को विश्वास हो गया कि वह सहज ही उसे अपने रूप जाल में पफांस लेगी। उसका यह विश्वास आगे चलकर बिल्कुल सच साबित हुआ। एक गिफ्रट कार्नर में वह ड्रामाई अंदाज में उससे टकराई और उसकी चकाचौंध् कर देने वाली खूबसूरती और जवानी आकाश वर्मा के दिल पर बिजली बनकर गिरी। उसने उसकी ओर तुरंत दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया। संध्या तो यही चाहती थी। उसने बड़ी गर्मजोशी से उसकी दोस्ती कबूल कर ली। पिफर क्या था, आकाश वर्मा किसी परवाने की तरह उसके इर्द-गिर्द मंडराने लगा। ऐसे में जब एक शाम वह अपनी कोठी में अकेला था तो संध्या उसके बुलावे पर उसके पास पहुंच गई। उसे देखते ही आकाश वर्मा ने बांहों में भर लिया पिफर उसे चुमता-सहलाता चला गया।
‘‘बड़े बेसब्रे हो रहे हो।’’ संध्या उसे कातिल निगाहों से देखती हुई बोली।
‘‘तुम्हारे हुस्नो शबाव ने मुझे पागल कर दिया है।’’ आकाश उसके जवान जिस्म को बांहों में समेटे हुए बोला।
‘‘मैं भी कम बेकरार नहीं हूं।’’ संध्या बोली, उसकी इस बात ने आकाश का रहा-सहा सब्र भी तोड़ डाला। वह उसे बांहों में समेटे कमरे में आया। पिफर उसके हाथ उसके कपड़ों पर पिफसलने लगे। थोड़ी देर बाद उसने संध्या को पूरी तरह कपड़ों से मुक्त कर दिया। ऐसे में जब उसका शोला बदन प्राकृतिक रूप से उसके सामने आया तो वह बेकाबू हो उठा। वह खुद कपड़ो से मुक्त हुआ पिफर संध्या को गोद में उठाकर बिछावन पर डाल दिया। अगले ही पल उसने संध्या के नग्न जिस्म को अपने कठोर जिस्म से पूरी तरह ढाप लिया था। दो जवान जिस्म जब एक दूसरे से टकराए तो कामनाओं की चिन्गारियां छिटकने लगीं। कमरे का तापमान अचानक बढ़ चला और उनके तेज सांसों के शोर से कमरा गूंजने लगा। जब यह शोर थमा तो दोनों एक-दूसरे की बांहों में निढ़ाल पड़े थे।
थोड़ी देर बाद संध्या उसे नशीली आंखों से देखती हुई बोली, ‘‘आकाश! तुम मुझे कितना प्यार करते हो?’’
‘‘उतना, जितना किसी ने किसी को न किया होगा।’’ आकाश दीवानों की तरह बोला।
‘‘सच...!’’
‘‘बिल्कुल।’’
‘‘पिफर मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’
‘‘मैं तुम पर अपनी सारी दौलत लुटा सकता हूं।’’
‘‘दौलत तो तुम्हारे बाप की है।’’
‘‘मेरे बाप की दौलत मेरी ही दौलत है क्योंकि मैं उनका अकेला वारिस हूं।’’
‘‘पर दौलत अभी तुम्हारे पास तो नहीं?’’
‘‘मेरे पास ही है।’’ संध्या केे जवान जिस्म के आकर्षक में आनंद डुबे आकाश ने कहा पिफर कमरे में रखे गोदरेज की आलमारी की ओर देखा।
‘‘उस आलमारी को देख रही हो, उसमें करोड़ों की दौलत बंद है और उसकी चाभी यह रही।’’ कहने के साथ ही आकाश ने बिद्दावन पर पड़ा गद्दा उठाया और अंदर से चाभी निकालकर संध्या को दिखलायी। चाभी देख संध्या की आंखों में एक तीव्र चमक जागी और उसने मदहोश नजरों से आकाश को देखते हुए कहा, ‘‘आकाश! मेरे लिए तो तुम सबसे बड़ी दौलत हो। अभी थोड़ी देर पहले तुमने मुझे जो अलौकिक सुख दिया है, उसने मुझे तुम्हारा कायल बना दिया है। ‘‘कहते हुए मारिया ने उत्तेजक ढ़ग से अपने रसीले होंठों पर जबान पफेरी। बदले में आकाश ने चाभी को यथा स्थान रखा और संध्या को दोबारा बांहों में समेट लिया। एक बार पिफर कमरे में उनकी तेज सांसों का स्वर गूंजने लगा।
जब यह शोर थमा तो आकाश बेसुध् सा बिछावन पर पड़ा था। थोड़ी देर बाद वह गहरी नींद में सो रहा था।
उसके सोते ही संध्या उठी। उसने अपने कपड़े पहने पिफर उसमें बने एक विशेष स्थान को थपथपाया। इसके बाद वह कमरे में रखी चमड़े की थैली उठा लाई पिफर ध्ीरे से बिछावन के करीब आकर गद्दा ध्ीरे से उठाया और वहां से चाभी निकाल ली। चाभी लेकर वह आलमारी की ओर बढ़ी। इस समय वह शिकार पर निकले किसी चीते सी चौकन्नी थी। उसने बड़ी सावधनी से आलमारी खोली और उसके पल्ले खीचे। ऐसा होते ही एक हल्की आवाज हुई और संध्या की आंखें आश्चर्य से पफटती चली गई। आलमारी के खाने हजार और पांच सौ के नोटों से की गड्डियों से भरे हुए थे। संध्या पलभर तक आश्चर्य चकित उन गड्डियों को देखती रही पिफर उन्हें चमड़े के थैले में भरने लगी। थैला, आलमारी में रखे नोटों से ठसाठस भर गया। बड़ी मुश्किल से संध्या ने उसका चेन बंद किया और पिफर उसे कंध्े पर लद कर पलटी। ऐसा करते ही उसकी आंखें आश्चर्य से पफटती चली गई। जिस आकाश को वह गहरी नींद में सोया समझ रही थी, वह दरवाजे के पास चाक-चौबंद खड़ा था। वह कई पल तक संध्या को घूरता रहा पिफर नपफरत पूर्ण स्वर में बोला, ‘‘तो यह है तेरा असली रूप। मुझे शक तो तभी हुआ था जब तुमने दौलत की बात की। अब सच्चाई पूरी नग्न होकर मेरी आंखों के सामने आ गई। अगर अपनी खैर चाहती हो तो थैला नीचे रखो और कमरे से निकल जाओ। कोई और होता तो मैं उसे तत्काल पुलिस के हवाले कर देता लेकिन कुछ दिनों के लिए ही सही, मैंने तुम्हें अपनी दिल की गहराइयों से प्यार किया था, इसलिए तुम्हें छोड़ रहा हूं। काश! मैं जानता होता कि इतने खूबसूरत चेहरे के पीछे इतना घिनौना वजूद छुपा हुआ है।’’
‘‘आकाश, मेरा रास्ता छोड़ो वर्ना...।’’ संध्या कठोर स्वर में बोली।
‘‘वर्ना क्या करोगी तुम...?’’
‘‘मैं तुम्हें गोली मार दूंगी।’’ कहते हुए संध्या ने अपने कपड़ों से पिस्तौल निकाल ली। उसके हाथ में पिस्तौल देखकर आकाश पलभर को चौंका पिफर बोला, ‘‘तुम्हारी हिम्मत नहीं होगी, मुझे गोली मारने की।’’
और जवाब में संध्या ने उसे गोली मार दी। गोली आकाश के सीने में लगी और उसकी मर्मांतक चीखों से कमरा दहल उठा। वह अपना सीना थामे झुका पिफर झुकता चला गया। थोड़ी देर के बाद उसका जिस्म निष्क्रीय पफर्श पर पड़ा और उसके सीने से निकलने वाले खून से पफर्श रंगता जा रहा था। मारिया पलभर तक दरवाजे के पास पड़े आकाश के निर्जीव शरीर को देखती रही पिफर आगे बढ़ उसके निर्जीव शरीर को लौथती हुई दरवाजा खोल कमरे से बाहर निकल गई। परंतु वह जैसे ही कोठी के मेन गेट से बाहर निकली कई व्यक्ति...उसकी ओर दौड़े और इसके पहले कि संध्या कुछ समझ सके, उन्होंने उसे दबोच लिया। संध्या के हाथ में थमी पिस्तौल उसके कंध्े से लटका बैग और कमरे में पड़ी आकाश की लाश सारी कहानी आप ही कह रही थी। लोगों ने तत्काल पुलिस को इसकी सूचना दी तो पुलिस ने आकर पिस्तौल, रुपयों से भरी थैली और लाश के साथ मारिया को भी अपने कब्जे में कर लिया।
दूसरे दिन शहर के प्रायः सभी अखबार इस लोमहर्षक हत्याकांड की खबरो से भरे पड़े थे। सभी अखबारों में छपी खबरों का आशय यह था कि मारिया नामक एक सुन्दरी ने नगर के करोड़पति बिजनेस मैन के इकलौते बेटे को अपने रूप जाल में पफांसा और उसकी सारी दौलत लेकर पफरार होने लगी। ऐसे में जब बिजनेसमैन के बेटे ने उसका विरोध् किया तो उसने उसे गोली मार दी। परंतु भागते वक्त वह लोगों के हाथों पकड़ी गई जिन्होंने उसे पुलिस के हवाले कर दिया। अब पुलिस उससे गहराई से पूछताछ कर रही है।
परंतु इस हादसे का सबसे दुखद और हाहाकारी क्षण तब आया। जब संध्या के घरवालों ने अखबार में छपी उसकी तस्वीर और उससे संबंध्ति खबर पढ़ी। कई पल तक उन्हें इस खबर पर यकीन ही नहीं हुआ और जब विश्वास हुआ तो उस थाने की ओर भागे जिसमें संख्या कैद थी। वहां जब उन्होंने तथा कथित मारिया को देखा तो यह देख उनके छक्के छुट गए कि वह सचमुच उनकी संध्या ही है। उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उनकी वह मासूम और भोली-भाली संध्या, कभी यूं एक लुटेरी और हत्यारी के रूप में उनके सामने आयेगी। जब इन सारी तथ्यों का पता उस थाने के थानाध्यक्ष को लगा तो वह भी हतभ्रम रह गया। हत्यारी अपना नाम मारिया बतला रही थी परंतु शहर का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति जो यहां के एक बैंक में शाखा प्रबंध्क था, उसका नाम संध्या बतला रही थी और उसे अपनी बेटी कह रहा था।’’
‘‘क्या बात कर रहे हैं आप?’’ बैंक प्रबंधक जिसे थानाध्यक्ष पहचानता था, आश्चर्य चकित स्वर में बोला, ‘‘आप कह रहे है कि वह आपकी बेटी है जबकि वह अपना नाम मारिया बतला रही है।’’
‘‘जी नहीं इंस्पेक्टर! वह शत-प्रतिशत मेरी बेटी-संध्या है जो छः महीने पहले लापता हो गई थी। उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट उस शहर के कोतवाली में लिखवाई गई थी जहां से वह लापता हुई थी। जहां तक उसका हमारी बेटी संध्या होने का सवाल है तो हम इस संबंध् में आपके सामने अकाट्य सबूत पेश कर सकते हैं।’’
‘‘कैसे सबूत?’’
‘‘उसका पफोटो एलबम और उसके स्कूल और कॉलेज के सर्टीपिफकेटस।’’
‘‘ठीक है पेश कीजिए।’’
थोड़ी देर बाद ये सारे सबूत इंस्पेक्टर के सामने मेज पर पड़े थे और इन्हें देखने के बाद उसे मानना पड़ा था कि तथा कथित मारिया वास्तव में संध्या ही है।
‘‘पर श्रीवास्तव साहब! आपकी बेटी इतनी शातिर अपराध्ी कैसे बनी।’’
‘‘इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता। जो कुछ हुआ है उन छः महीनों में हुआ है जिसमें वह गायब थी।’’
‘‘क्या आपकी बेटी ¯हसक स्वभाव की लड़की थी?’’
‘‘बिल्कुल नहीं, वह तो बड़ी मासूम और भोली-भाली लड़की थी।’’
‘‘तो पिफर...?’’ कहते-कहते अचानक इंस्पेक्टर चौंका। यह बात उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंध्ी कि इतने बड़े हादसे को अंजाम देने के बाद भी युवती के चेहरे पर कोई भय, कोई खौपफ के चिह्न नहीं थे। वह पुलिस के हर सवाल का जवाब यूं दे रही थी मानो उसका वजूद किसी के प्रभाव में हो। उसने तत्काल मारिया का सामना उसके परिवार वालों से कराया परंतु उसकी आंखों में पहचान का कोई भाव न उभरा। श्रीवास्तव और उसकी पत्नी के द्वारा बार-बार बेटी कहे जाने के बावजूद उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव न उभरा जैसे वह उन्हें जानती हो।
‘‘अजीब गोरख ध्ंध है।’’ इंस्पेक्टर अपना माथा मलता हुआ बोला, ‘‘लगता है मारिया की जांच किसी मनोचिकित्सक से करवानी होगी ताकि उसकी मानसिक स्थिति का सही-सही पता चल सके।’’ कहने के बाद उसने मारिया को हवालात में भेज दिया।
मनोचिकित्सकों के एक टीम ने मारिया की जांच करने के बाद बतलाया कि वह कुछ ऐसी दवाओं के प्रभाव में है जिसके तहत इन्सान अपना अतीत भूल जाता है और ऐसे में एक तरह से उसका ब्रेनवाश हो जाता था। इस परिस्थिति में इन्सान वही करता है जिसके लिए उसे नए ढंग से तैयार किया जाता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण वे पिफदाईन हैं, जो अपनी जान देकर भी अपने आका के हुक्म का पालन करते हैं। डॉॅक्टरों का कहना था कि मारिया इस स्थिति से बाहर आ सकती है बशर्त्ते उसका इलाज किया जाये। डॉक्टरों की सलाह पर मारिया को पुलिस सुरक्षा में अस्पताल में भर्ती किया गया।
‘‘हैलो।’’
‘‘कौन?’’
‘‘मैं बलदेव।’’
‘‘हां, बलदेव बोलो।’’
‘बॉस! सब गड़बड़ हो गया।’’
‘‘क्या?’’ उध्र से मदन खुराना का आश्चर्य चकित स्वर उभरा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मारिया पकड़ी गई।’’
‘‘पकड़ी गई पर कैसे?’’
‘‘वह आकाश वर्मा के घर से करोड़ों की दौलत लूट कर पफरार होने ही वाली थी कि आकाश दीवार बनकर उसके रास्ते में आ गया। मारिया ने उसे गोली मार दी और उसकी कोठी से बाहर भागी। परंतु गोली की आवाज सुन कोठी की ओर दौड़ने वाले लोगों ने उसे पकड़ लिया और उसे पुलिस के हवाले कर दिया।
‘‘ओह...!’’ उध्र से मदन खुराना का अपफसोस जनक स्वर उभरा, ‘‘अब वह कहां है?’’
‘‘अस्पताल।’’
‘‘क्या बक रहे हो। वह अस्पताल कैसे पहुंच गई जबकि लोगों ने उसे पुलिस के हवाले किया था।’’
‘‘बॉस! न जाने कैसे अखबार में छपे समाचार को पढ़कर कानपुर के ही रहने वाले उसके मां-बाप थाने पहुंच गए और उन्होंने पर्याप्त सबूतों के साथ यह दावा किया कि मारिया वास्तव में उसकी बेटी-संध्या है और उसके इस दावे के आलोक में पुलिस ने मारिया की डॉक्टरी जांच करवाई तो यह सच्चाई सामने आ गई कि किसी दवा के प्रभाव में मारिया विस्मृति की अवस्था में है सो पुलिस ने उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया।’’
‘‘यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई। अगर मारिया विस्मृति की अवस्था से बाहर आ गई तो वह सारी हकीकत पुलिस को बतला देगी जो हम सबके लिए खतरानाक साबित होगी।’’
‘‘हमारे लिए क्या आदेश है बॉस?’’
‘‘इसके पहले कि मारिया विस्मृति की स्थिति से बाहर आए, उसे सदा के लिए मौत की नींद सुला दो।’’
‘‘पर वह पुलिस की सुरक्षा में है?’’
‘‘तो हमारे सोर्सेज भी कम नहीं। आखिर हम इतना खतरनाक गैंग यूं ही नहीं चलाते हैं। मैं पफोन कर दूंगा, तुम्हें इस संबंध् आवश्यक सहायता मिल जायेगी।’’
‘‘यह बॉस।’’ और दूसरे दिन मारिया अपने बेड पर मृत गई। पैसांे के भूखे भेड़ियों ने एक मासूम को न सिपर्फ हत्यारी बनाया बल्कि उसे मौत की गोद में भी सुला दिया। अब सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस के हाथ इन पैसों के भूखे भेड़ियों की गर्दन तक पहुंच पायेंगे?

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