पहला प्यार
मैंने उसे माफ कर दिया
जिन्दगी कभी कभार कितनी हसीन हो उठती है खासतौर पर तब जब कोई मनचाहा हमसपफर आपके साथ हो, वे लोग बहुत खुसनसीब होते हैं जिन्हें मोहब्बत में मंजिल हासिल हो जाती है वरना अध्कितर तो प्यार में जां तक लुटा देने के बाद भी परिवार, समाज की हमदर्दी, स्नेह हासिल नहीं कर पाते। हमारा नाम भी ऐसे ही प्रेमी युगल में शुमार होता है। मोहब्बत भी अजीब शै होती है, ना उम्र देखती है, ना हैसियत और ना ही जात पात देखती है, वह तो बस हो ही जाती है। मुझे भी हो गई थी।एक लड़का, जिसका नाम महेश था, मेरे पास ट्यूशन पढ़ने आता था। वह मेरे पास कक्षा नौ से लेकर बारहवीं तक ट्यूशन पढ़ा व अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण भी हुआ।
महेश का मकान मेरे घर के पास ही था, अतः उसका हमारे यहां कापफी आना-जाना रहता था। इसी दौरान मम्मी इतनी अधिक बीमार हुई कि चलने-पिफरने से भी लाचार हो गयीं। डॉक्टरों ने उन्हें गठिया की बीमारी बतायी थी। एक तो उसका हमारे यहां आना जाना बहुत था उफपर से मेरा शिष्य, लिहाजा वह किसी भी काम से मना नहीं करता था।
इस उम्र तक महेश भी कापफी जवान हो चुका था। वह धीरे-धीरे मेरे साथ इतना घुल-मिल चुका था कि कई बार हम दोनों पढ़ते-पढ़ते एक ही तख्त पर लेट जाते ओर गहरी नींद में सो जाते।
हालांकि तख्त किसी डबल बैड से कम न था तथा हमारे पास रजाईयां भी दो थीं, लेकिन कब हमारे दिल गुस्ताखी करने पर उतर आए, कुछ नहीं कहा जा सकता। मैं कैसे उसके बिस्तर तक जा पहुंची, कैसे उससे निकटता बढ़ाई व कैसे उसे वह सब करने को तैयार किया जो कि मैं पाटेकर सर से उम्मीद रखती थी। यह सब हमारे गुस्ताख दिलों के ही कारनामे थे। हां इतना मैं जरूर कहना चाहूंगी कि हमें एक-दूसरे के बीच की शारीरिक व मानसिक दूरी को तय करने में घंटों लगे थे।
महेश को यह सब करने को प्रेरित करने की मुख्य भूमिका मैंने ही निभाई थी। उस रात कापफी देर तक न तो हमने एक-दूसरे के प्रति प्रेम-भाव दर्शाया था न ही प्यार के दो शब्द कहे थे, बस आलिंगनब( हुए, सर्दी के प्रकोप को मिटाते हुए, जिस्मानी गर्मी समेटते रहे थे।
कमरे में घुप्प अंधेरा था, इससे हमारे हौसले और भी बुलन्द हो चुके थे। हालांकि हम धीरे-धीरे एक दूसरे के कामांगों को सहला रहे थे। जैसे-तैसे हमारे यौन-संबंध भी बने। लेकिन मुझे वह आनन्द प्राप्त न हो सका जिसकी मैं अपेक्षा करती थी।
महेश के साथ यौन-संबंध स्थापित करने में मुझे मन-ही-मन कापफी शर्मिन्दगी उठानी पड़ी थी। मेरी आत्मा मुझे बार-बार धिक्कार रही थी, क्योंकि एक तो वह उम्र में मुझसे कापफी छोटा था, दूसरे कई वर्षों से वह मेरा शिष्य भी था। लेकिन जिस्मानी भूख ने मुझे उस मार्ग पर चलने को बाध्य कर दिया था जो कि पूर्णतः अवैध व अनैतिक था।
इसके बाद भी हमने कई बार लुका-छिपी के साथ अपनी जिस्मानी भूख को शान्त किया। कुछ महीनों के बाद हमारा मिलना-जुलना बिल्कुल बंद हो गया। क्योंकि उसके घरवालों ने यह सोचकर कि उनका लड़का अब पूरी तरह जवान हो चुका है तथा उसका किसी जवान लड़की से वक्त-बेवक्त मिलना ठीक नहीं है, उसका मेरे यहां आना-जाना पूरी तरह बंद करा दिया।
लेकिन मैं उसे चाहकर भी भुला नहीं पा रही थी। मेरा उसके प्रति लगाव बढ़ता जा रहा था। मुझे उससे तहे दिल से प्यार था मैं उससे शादी के सपने संजो रही थी और वह निरंतर मुझसे दूर होत जा रहा था। गलती मेरी ही थी। जिसकी सजा मैं भुगत रही थी।
एक रोज वह मुझसे मिलने आया, हम दोनों कमरे में जा घुसे, उसने पुराना खेल दोहराना चाहा तो मैंने उसे रोककर पूछा, फ्हमारे इन संबंधों की मंजिल क्या है, क्या मैं तुम्हारे लिए महज एक जिस्म हूं?य्
फ्ऐसा क्यों सोचती हो?य् वह बोला, फ्मैं तुमसे प्यार करता हूं, हम शादी करके अपनी अलग दुनिया बसाएंगे।य्
कहने का तो वह कह गया, मगर उसकी आवाज की लड़खड़ाहट और खोखलापन मैंने ही नहीं उसने भी महसूस किया और श²मदगी से उसका सिर झुक गया।
कुछ क्षण सन्नाटा छाया रहा, पिफर वह बोला, फ्मुझे मापफ कर देना, मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं अपने घरवालों से बगावत कर सकूं, मगर यह सच है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं।य्
उसकी आंखों के कोरों से आंसू छलक आये, वह उठकर चला गया, पिफर कभी मुझे दिखाई नहीं दिया। इस बार उसने सच कहा था। मैंने उसे मापफ कर दिया। आखिर वह मेरा पहला प्यार था, पिफर मैं महसूस करती हूं कि उसकी इसमें कोई गलती नहीं थी।
µरीतिका