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मौत की दस्तकशनाया मेहता एक ऐसी हाईप्रोफाइल काॅलगर्ल थी जिसके कद्रदानों की कोई कमी नहीं थी। उसके चाहने वालों में बड़े वकील से लेकर बिजनेसमैन और एमपी तक के नाम शुमार थे। ऐसी लड़की जब एक रोज अपने फ्लैट में जलकर मर गयी तो हंगामा तो बरपना ही था। लिहाजा जब आशीष गौतम ने उसकी मौत की असली वजह जानने की कोशिश की तो देखते ही दे कोशिश की तो देखते ही देखते लाशों का ढेर लगता चला गया।
खतरनाक साजिश
सब-इंस्पेक्टर नरेश चैहान पर इल्जाम था कि उसने दो महिलाओं की बड़े ही बर्बरता पूर्ण ढंग से, गला घोंटकर, ना सिर्फ हत्या की थी, बल्कि हत्या से पहले उन्हें जमकर नोंचा-खसोटा भी था। उसे सबसे ज्यादा डैमेज करने वाली बात ये थी कि गिरफ्तारी के वक्त वो एक ऐसी यूनीफाॅर्म पहने था जो मरने वाली दोनों महिलाओं के खून से रंगी हुई थी। पुलिस का दावा था कि उनके पास मुलजिम के खिलाफ सिक्केबंद सबूत थे, लिहाजा उसका जेल जाना महज वक्त की बात थी। मगर प्राइवेट डिटेक्टिव विक्रांत गोखले को पुलिस की राय से इत्तेफाक नहीं था।
आखिरी शिकार
नीलेश तिवारी एक लेखक था! ऐसा लेखक जो अपने लेखन से मिलने वाली वाहवाही का लुत्फ नहीं उठा सका। उसकी पहली रचना ‘आवारा लेखक‘ प्रकाशित क्या हुई मानो उसकी जिंदगी को ग्रहण लग गया। अगले ही रोज वो अपने फ्लैट के बाथरूम में मरा हुआ पाया गया। फिर एक के बाद एक हत्याओं का जो सिलसिला शुरू हुआ वो तो जैसे रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था। पुलिस हैरान थी, परेशान थी! कातिल को पकड़ना तो दूर रहा, पुलिस हत्यारे का मकसद तक नहीं तलाश कर पा रही थी....!
अनदेखा खतरा
जूही मानसिंह को लगता था, कोई है जो उसकी जान लेना चाहता है। वो हर वक्त खुद को एक अनजाने अनदेखे खतरे से घिरा हुआ महसूस करती थी। उसका दावा था कि उसकी हवेली में नर-कंकाल घूमते थे! मरे हुए लोग अचानक उसके सामने आ जाते और फिर पलक झपकते ही गायब हो जाते थे। बंद कमरे में उसपर गोलियां चलाई जाती थीं, बाद में ना तो हमलावर का कुछ पता चलता, ना ही उसकी चलाई गोलियां ही बरामद होती थीं।