शक की चिंगारी
जिसने भी सुना, हैरान रह गया। बात ही ऐसी थी। एक दोस्त ने दूसरे का कत्ल कर दिया था। दोस्ती के लिए तिकोन का तीसरा कोण मैं था...और मैं अपने फर्ज की अदायगी के लिए पाबंद था। सो उस कत्ल की एफ.आई.आर. भी मेरी हिदायत पर दर्ज की गई और कातिल की गिरफ्तारी भी मेरे कहने पर हुई। ....
यह खबर साइमा तक भी मेरे माध्यम से टेलीफोन के जरिये पहुंची। वह मेरी बात सुनकर दंग रह गई। हैरत और सदमे से शायद वह कुछ बोल नहीं पा रही थी। कुछ लम्हे बाद वह इस झटके से उबरी और बोली, ‘‘मैं आ रही हूं।’’ कहकर उसने फोन बंद कर दिया।
आधे घंटे बाद ही साइमा मेरे दफ्तर में आ पहुंची। जाब्ते की सारी कार्यवाही में वह मेरे साथ ही रही। सदमें से उसका बुरा हाल था। वह बार-बार कह रही थी, ‘‘तारीक ऐसा नहीं कर सकता। मैं मान ही नहीं सकती।’’ वह जैसे खुद को यकीन दिला रही थी।
‘‘तुम्हारे ना मानने से हकीकत तो नहीं बदल जाएगी। जो हो चुका, उसे बदला तो नहीं जा सकता।’’ मैंने धीरे से कहा, तो साइमा ने चैंक कर मुझे देखा।
‘‘तो क्या तुम्हारे ख्याल से तारिक ऐसा कर सकता है...वह किसी को कत्ल कर सकता है...और वह भी अपने दोस्त को...? क्या तुम उसे नहीं जानते?’’ गोया उसे मेरी बात से सदमा था।
‘‘तुम जज्बाती होकर सोच रही हो। इस वक्त तुम किसी वकीत की तरह नहीं, बल्कि एक आम औरत की तरह सोच रही हो। हमें होशो-हवास को बहाल रखकर हर बात को अकल की कसौटी पर परखना है। ताकि हम तारिक की कोई मदद कर सकेें।’’ मैंने नरम लहजे में कहा।
‘‘तारिक जैसा नरम मिजाज इंसान किसी को कत्ल नहीं कर सकता।’’ वह अपनी बात पर डटी रही।
‘‘खुदा करे कि ऐसा ही हो। वह किसी बुरे अंजाम से महफूज रहे।’’ मैंने बात खत्म करते हुए कहा।
यह अजीब सूरतेहाल थी। कत्ल का मुल्जिम तारिक मेरी बीवी का कजिन था। सबा फुफेरा भाई, जबकि मकतूल मेरा और तारिक का राझा दोस्त नेमान था। कुछ अर्सा पहले इन दिनों ने एक साथ मिलकर कारोबार शुरू किया था, जो वह वादे के मुजाबिक अदा नहीं कर पा रहा था। काफी अर्से से यह झगड़ा चल रहा था और अब...यह हादसा हो गया था।
अकल इसे दो और दो चार की तरह सीधा मान रही थी, जबकि साइमा के जज्बात तारिक को बेगुनाह साबित करने पर तुले थे। तारिक की बीवी नसरीन ने साइमा को ही तारिक का वकील नियुक्त किया था। साइमा खुद भी यह केस लड़ना चाहती थी, अपनी तमाम कोशिशों के साथ।
मैं ए.एस.पी. की पोस्ट पर कार्यरत था। अपनी और डिपार्टमेंट की हद तक मैं तारिक की जितनी कर सकता था, मैंने की। पुलिस ने रिमांड के दौरान तारिक पर कोई हिंसा नहीं की। वैसे भी हिंसा की जरूरत न थी।
क्योंकि तारिक ने अपने बयान में यह स्वीकार कर लिया था कि नेमान उसी की गाड़ी से टकरा कर फुटपाथ पर गिरा था, जहां बहुत सारे पत्थर पड़े हुए थे और उन्हीं में से एक नोकदार पत्थर नेमान के दिमाग में घुस गया था, जिसने नेमान की जिन्दगी का चिराग गुल कर दिया था। अलबत्ता तारिक सख्ती से इस बात पर कायम था कि यह कत्ल नहीं, सिर्फ हादसा है।
केस अदालत में चला गया। साइमा ने इस केस के लिए अपनी रातों की नींद और दिन का चैन बर्बाद कर लिया था। लेकिन मैं नहीं जानता था कि नतीजे उसकी ख्वाहिश के प्रतिकूल होंगे। दूसरी तरफ, नेमान की बीवी सायरा ने बहुत तगड़ा वकील कर रखा था। उनका केस बहुत मजबूत था।
एक रोज साइमा घर लौटी, तो पहली बार नाउम्मीदी और मायूसी के साए उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे।
‘‘क्या नहीं।’’ उसने ठंडी सांस ली, ‘‘तारिक का केस हर पेशी पर और कमजोर हो जाता है। इन लोगों के पास गवाह बहुत मजबूत है। ‘‘वह उदासी में, बोली, हर पेशी पर नए गवाह और शहादतें ले आते हैं। जबकि हमारे पास तारिक को बचाने के लिए तारिक के बयान के सिवा कुछ भी नहीं है।’’
‘‘हां।’’ मैंने सिर हिलाया, ‘‘कौन से गवाह ला रहे हैं वह?’’
‘‘तारिक और नेमान ने मिलकर एक कारोबार शुरू किया था, जो चल ना सका। तारिक के सात-आठ लाख नेमान की तरफ निकलते थे। यह सब कागजात रिकार्ड में मौजूद हैं। नेमान ने यह रकम किश्तों में देने का वादा किया था, लेकिन उसने तीन साल में सिर्फ दो लाख रुपये अदा किये। अभी भी उसकी तरफ पांच-छह लाख निकलते थे।’’ साइमा बोलते-बोलते सांस लेने को रुकी, फिर बोली, ‘‘शायद नेमान के पास पैसे नहीं थे या कुछ और वजह थी। बहरहाल वह रकम देने में आनाकानी कर रहा था। इसी बात पर तारिक उत्तेजित हो जाता था।
‘‘एक तो दोस्त होकर नेमान ने उसे धोखा दिया था, फिर वादे के मुताबिक अदायगी नहीं कर रहा था। सो तारिक अक्सर नेमान के दफ्तर जाता और दोनों में खूब तकरार होती। नेमान के आॅफिस के बहुत से लोग इन झगड़ों के गवाह हैं। फिर सायरा ने यह भी बताया कि तारिक कई बार झगड़ा करके गया है।’’ साइमा उदासी से मुस्कराई, ‘‘सायरा की तो अब पूरी कोशिश यही है कि आज ही तारिक को फांसी पर लटकवा दे।’’
‘‘हूं।’’ मैंने अफसोस से सिर हिलाया, ‘‘लेकिन यह गवाह पक्षधर हैं। इन सबकी गवाही इतनी फायदेमंद नहीं है कि अदालत के फैसले को प्रभावित कर सके।’’ मैंने नुक्ता पेश किया।
‘‘तुम ठीक कहते हो। लेकिन जब बुरा वक्त आता है, तो इंसान हर तरफ से गिरफ्त में आ जाता है। एक सबूत ऐसा है, जो इन तमाम गवाहों पर भारी है और तारिक के लिए खासा नुकसानदेह भी।’’ साइमा सोचकर बोली।
‘‘वह क्या है?’’
‘‘तारिक ने पिछले हफ्ते आॅफीशली भी एक खत नेमान को लिखा था और अदायगी ना करने के हालत में उसे बुरे अंजाम के लिए तैयार रहने की वार्निंग दी गईथी। चूंकि यह खत उसने आॅफिशली भेजा था, इसलिए उसकी एक कापी तारिक की फाइलों में भी मिल गई। नेमान के सेक्रेटरी के पास तो खैर थी ही।’’
‘‘कमाल है...आॅफिशली धमकी...’’ मैंने गर्दन हिलाई, ‘‘मैं तारिक को इतना बेवकूफ नहीं समझता था।’’
‘‘बस जब बुरी घड़ी आती है, तो इंसान ऐसी हरकतें कर गुजरता है।’’ साइमा बहुत उदास थी।
‘‘और तारिक क्या कहता है?’’
‘‘वहीं जो पहले दिन से कह रहा है कि यह सिर्फ हादसा है। अलबत्ता एक बहुत अहम बात उसे याद आई है, अब...।’’ साइमा अचानक पुरजोश हो गई थी। उसकी आंखें दमकने लगी थीं।
‘‘कौन-सी बात?’’ मुझे भी उत्सुकता हुई।
‘‘तारिक का कहना है कि इस सारे वाकिये का एक चश्मदीद गवाह मौजूद है।’’
‘‘चश्मदीद गवाह...वह कौन?’’
‘‘यह उसे याद नहीं आ रहा था।’’ साइमा मायूसी से बोली।
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘तारिक को तो यह याद है कि जिस वक्त नेमान उसकी गाड़ी से टकरा कर फुटपाथ पर गिरा, तो वहीं इर्द-गिर्द कोई मौजूद था। तारिक उस वक्त बहुत परेशान था। उसका सारा ध्यान नेमान पर था, यानी अब चेतन रूप में उसे यह एहसास तो रहा कि वहां कोई तीसरा भी मौजूद है, मगर वह तीसरा कौन है, यह उसके दिमाग में सुरक्षित ना रह सका।’’
‘‘दरअसल, उस हादसे ने उसे दिमागी तौर पर जड़वत् कर दिया था। अब देखो ना, इतनी अहम बात आज उसे याद आई है, हालांकि यह उसके बचाव का एक अहम प्वाइंट है। हमें उस शख्स को ढूंढ़ना होगा।’’
‘‘मुमकिन है, वह कोई अजनबी हो, रास्ते से गुजरने वाला, जो हादसा देखकर कुछ लम्हों के लिए रुका हो और फिर वहां से गायब हो गया हो, ताकि पुलिस या कोई और उसे इस केस में जोड़़ ना सके। अगर ऐसा है, तो उस शख्स का मिलना बहुत मुश्किल होगा। वह भला क्यों खुद को थाने-कचहरी के झंझट में फंसाएगा।’’
‘‘हां, यह भी मुमकिन है।’’ साइमा मेरी बात से सहमत थी। अब वह उठ कर टहलने लगी थी। व्यग्रता और परेशानी उसके हर अंदाज से स्पष्ट थी। मैं निरंतर उसको गौर से देख रहा था। बहुत-सी बातें जो अनकही और अनसुनी थीं, और जिन्हें मैं चाहने के बावजूद साइमा से पूछ न सका था, आज पूछे बगैर मेरी समझ में आ रही थी। अफवाहों की पुष्टि हो रही थी और अंदाजों की तसदीक।
‘‘मेरा ख्याल है कि हमें उस शख्स की तलाश के लिए अखबार में इश्तहार दे देना चाहिए। उसने हम स्पष्ट करेंगे कि उसे कोई पेरशानी नहीं उठानी पड़ेगी। सिर्फ दो-तीन बार उसे गवाह के तौर पर पेश होना पड़ेगा। उसकी पूरी हिफाजत की जाएगी और अगर वह चाहे, तो उसे इस बात का मुआवजा भी दिया जाएगा। क्या ख्याल है?’’ वह इस बार दूर की कौड़ी लाई थी।
‘‘आइडिया तो अच्छा है। हो सकता है कि इस तरह वह शख्स लालच के तहत ही गवाही देने को तैयार हो जाए।’’
‘‘खुदा करे कि ऐसा ही हो।’’ साइमा ने सच्चे दिल से कहा।
‘‘खैर, सब ठीक हो जाएगा। चलो...तुम खाना निकालो।’’ मैंने उसका हाथ थामकर डाइनिंग रूम की तरफ ले जाना चाहा।
‘‘नहीं खावर, प्लीज...। आप खा लें। मुझे भूख नहीं है। वैसे भी मुझे स्टडी करनी है।’’ वह हाथ छुड़ाकर तेजी से स्टडीरूम की तरफ बढ़ गई। मैं खामोश खड़ा उसे जाता देखता रहा।
चार वर्षीया जिन्दगी मेें भला यह कब हुआ था कि रात का खाना मैंने अकेले खाया हो। दिनभर तो दोनों व्यस्त रहते थे। लिहाजा खाने का समय भी अलग था। लेकिन रात के खाने पर हम दोनों एक-दूसरे का इंतजार जरूर करते...मैं भी तभी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद रात के खाने के वक्त जरूर पहुंच जाता।
‘‘अम्मा...अम्मा...।’’ मैंने जोर से आवाज दी।
‘‘जी, साहब जी।’’ अम्मा मेरी आवाज पर दौड़ती हुई आईं, ‘‘खाना लगा दिया है जी मैंने...आप लोग चलकर खा लें, वरना ठंडा हो जाएगा...।’’
‘‘खाना उठा लें...हम दोनों को भूूख नहीं है।’’ फिर मैं अम्मा को हैरान-परेशान छोड़कर बेडरूम में आ गया।
बिस्तर पर अधलेटा होकर मैंने अपने बराबर में खाली जगह पर नजर डाली। आज पहली बार नहीं, बल्कि इस दौरान में न जाने कितनी रातों से मैं बेडरूम में अकेला ही सोता था। वह रात-रात भर जागकर कानून की किताबों में सिर खपाती। फिर जल्दी से जल्दी सुबह आॅफिस चली जाती। फिर उसकी वापसी रात गए ही होती।
उसे अब तो यह भी याद नहीं था कि वह एक बीवी है और उसका एक शौहर भी है, जो अकेला बेडरूम में पड़ा करवटें बदलता रहता है। मैंने सोचा। मुझे यूं लग रहा था, जैसे दिन-प्रतिदिन हम दोनों एक-दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं। कोई है जो साइमा को मुझसे दूर कर रहा है। वह मुझसे बिछड़ने वाली है। वह खूबसूरत लम्हा मेरी नजरों में जुगनू बनकर चमका, जब मैंने साइमा को पहली बार देखा था।
तारिक, मैं और नेमान...दोस्ती का यह त्रिकोण बहुत जानदार था। हम गहरे दोस्त थे। स्कूल और काॅलेज की सतह तक तो हम साथ ही रहे। फिर आगे बढ़े, तो जिन्दगी की राहें अलग-अलग हो गईं। तारिक एम.बी.ए. कर रहा था, तो नेमान ने अपने लिए एकाउंटिंग का डिपार्टमेंट चुन लिया।
मैं अपने मां-बाप की आंखों में बसे ख्वाब को असली शक्ल देने के लिए सिविल सर्विस में आ गया। मुकाबले के इम्तिहान में अच्छी पोजीशन लेकर पुलिस का विभाग ज्वाइन कर लिया। कुछ साल दूसरे शहरों में गुजारे।
फिर मेरी पोस्टिंग अपने शहर में हो गई। मेरे शहर से दूर रहने के दौरान ही नेमान और तारिक ने मिलजुल कर बिजनेस किया। फिर अलग हो गए। यह बातें मुझे तारिक ने मेरे वापस आने के बाद बताईं।
मेरे घरवाले मेरी शादी के लिए बेचैन थे और हर अच्छी लड़की को मेरी बीवी के रूप में देखने लग जाते थे, लेकिन शादी के लिए मेरा नजरिया कुछ और था। मैं अपनी पसंद की लड़की से शादी करना चाहता था।
ऐसी लड़की, जो मेरे दिल को छू जाए, जिसे देखकर मुझे यूं लगे कि अब उसके बिना गुजारा नहीं हो सकता। लेकिन ऐसी लड़की अब तक मुझे नहीं मिल सकी थी।
फिर एक बेकरारी-सी हो रही थी कि वह कौन है? अता-पता क्या होगा? ऐसा न हो कि जमाने की भीड़ में उसे खो बैठूं। मैं बेचैन-सा हो गया, किससे पूछूं और कैसे पूछूं?
मसला यह था कि लड़कियों के मामले में मैं बेहद शर्मीला था कि एक अजनबी लड़की से परिचय प्राप्त कर लेता। हालांकि यह कोई मुश्किल काम नहीं था।
मेरे ओहदे और विभाग को देखकर मुश्किल से ही कोई मेरे मिजाज के बारे में यकीन करता, लेकिन यह हकीकत थी। मैं ऐसा ही था। लड़कियों से दूर भागने वाला। शायद इसलिए मेरी जिन्दगी में कोई लड़की नहीं आई थी।
और यह मेरी ख्वाहिश भी थी कि जो मेरी बीवी बने, उसकी जिन्दगी पर भी किसी और की परछाई तक न पड़ी हो।
मैं इन सोचों में उलझ रहा था कि तारिक मेरे करीब आ गया।
‘‘अकेले ही खड़े हो?’’
‘‘तो और क्या करू? बहुत बोरियत हो रही है। नेमान भी आ जाता, तो अच्छा होता...कुछ गपशप ही रहती।’’ मैंने कहा।
‘‘नेमान आएगा? और वह भी मेरे घर के फंक्शन में।’’ तारिक व्यंग्यात्मक अंदाज में बोला।
‘‘क्यों? तुमने इंवाइट तो किया था?’’
‘‘हां...लेकिन वह मेरे सामने आने की हिम्मत कहां से लाएगा।’’ तारिक उत्तेजित हो गया।
‘‘कम आॅन यार, गुस्सा थूक दो...आखिर हम एक-दूसरे के दोस्त हैं। भूल जाओ, जो कुछ हुआ...।’’ मैंने समझाया।
‘‘चलो छोड़ो इन बातों को।’’ तारिक ने सिर झटका, ‘‘आओ, मैं तुम्हें कुछ और लोगों से मिलवाता हूं, ताकि तुम बोर ना हो।’’ वह मुझे लेकर आगे बढ़ा।
मेरा दिल धड़क उठा। वह उसी तरफ जा रहा था, जिधर ‘वह’ अपने जलवे बिखेर रही थी। काश! तारिक उसी के पास जाए...मैंने दुआ की, जो फौरन ही कबूल हो गई। तारिक उसी के पास जाकर रूका।
‘‘इनसे मिलो, यह मेरी कजिन है साइमा...और यह हैं शुजाअत...यह दोनों साथ ही काम करते हैं।’’ फिर उसने मेरा परिचय करवाया, ‘‘यह मेरे दोस्त ए.सी.पी. खावर जमाल...कई साल बाद यह वापस अपने शहर लौटे है। आजकल इनकी पोस्टिंग यहीं है।’’
‘‘बहुत खुशी हुई है आप सबसे मिलकर...।’’ मैंने मुस्कराते हुए कहा।
अब भी मेरी नजरों का केन्द्र साइमा ही थी। वह भी मेरी नजरों की बेकरारी महसूस कर चुकी थी, इसलिए उसके चेहरे का रंग बदल रहा था।
‘‘हमें भी...।’’ शुजाअत ने गर्मजोशी से हाथ लिया।
‘‘अच्छा भई, आप लोग गपशप करें। मैं जरा कुछ और महमानों को देख लूं। और हां, आप लोगों की जिम्मेदारी है, यह बोर ना हो पाए।’’ तारिक ने कहा।
‘‘आप फिक्र ना करें। अब खावर साहब हमारी जिम्मेदारी हैं।’’ शुजाअत बोला।
शुजाअत बेतकल्लुफ इंसान था। दुनिया जहां की बातें ही ले बैठा। फिल्म पत्रकारी, सियासत, वकालत, हर विषय घसीट लेता और अपनी बातों से खुद ही खुश होता। उसकी किसी हास्यपूर्ण बात पर अगर हम मुस्करा रहे होते, तो वह ऊंचा कहकहा लगा रहा होता।
साइमा के होंठों पर दिलकश मुस्कराहट होती। साइमा को जब मैं दूर से देख रहा था, तो वह बहुत हंस-बोल रही थी, लेकिन अब मेरी मौजूदगी से खामोश थी।
‘‘मिस साइमा।’’ मैंने उसे मुखातिब किया, ‘‘आप यूं ही खामोश रहती हैं या मेरी वजह से कुछ तकल्लुफ हो रहा है?’’
‘‘साइमा और खामोशी।’’ शुजाअत हंसा, ‘‘दो परस्पर विरोधी बातें हैं। इस वक्त तो यह आपको देखकर पोज कर रही है।’’
‘‘वैसे यह ठीक कह रहे हैं।’’ मिसेज शुजाअत बोलीं, ‘‘साइमा को कम बोलने वाली समझने की गलती मत कीजिएगा। इसे ऐसी समझने वाला हमेशा पछताता है। इसकी जुबान की तेजी देखनी हो, तो अदालत में देखें। कैंची की मिसाल भी पीछे रह जाएगी।’’ वह भी अपने मियां से कम नहीं थी।
साइमा ने गुस्सैली नजरों से दोनों को घूरा, ‘‘अगर आप लोग इसी तरह मुझे गुफ्तगू का विषय बनाए रखेंगे, तो मैं जा रही हूं यहां से...।’’ उसने धमकी दी।
‘‘अरे नहीं प्लीज...।’’ मैं बेअख्तियार बोल उठा और फिर अपने अंदाज पर खुद ही शर्मिंदा हो गया। मिसेज शुजाअत ने अर्थपूर्ण नजरों से शैहर को देखा और दोनों मुस्करा दिये। यह गनीमत थी कि दोनों कुछ बोले नहीं।
साइमा से यह मुलाकात मंजिल की राह का मील का पत्थर साबित हुई। उसने पहली ही मुलाकात में मुझे जीत लिया था और निहायत शान से मेरे दिल में विराजमान हो चुकी थी। फिर एक रोज सोच-समझ कर मैंने झिझकते हुए तारिक से जिक्र कर ही दिया।
तारिक जैसे खिल ही उठा, ‘‘यार, तू यकीन कर। कई बार मैं तुझसे यह कहते-कहते रूक गया कि तेरे लिए लड़़की मैं ढूंढ़ता हूं। दरअसल यार, आजकल अच्छे लड़कों का अकाल पड़ा हुआ है। खानदान में ढेरों लड़कियां पढ़ लिख कर अच्छे रिश्तों के इंतजार में उम्र गंवा रही है और फिर तुझ जैसा हीरा इंसान अगर मेरा रिश्तेदार बन जाए, तो दोस्ती का रिश्ता और भी मजबूत हो जाएगा।’’
फिर वह चैंका, ‘‘उस रोज फंक्शन में तो मेरे खानदान की बेशुमार लड़कियां मौजूद थीं। तू किस लड़की की बात कर रहा है?’’
‘‘उन सबको भला मैं कैसे जानूंगा। मैं तो उस लड़की की बात कर रहा हूं, जिससे तूने खुद ही मिलवाया था, साइमा।’’
‘‘ओह, तो तुम साइमा की बात कर रहे हो।’’ वह मायूसी से बोला, ‘‘यह जरा अलग ही केस हैै।’’
‘‘क्या मतलब?’’ मेरा दिल डूब-सा गया, ‘‘क्या वह कहीं एंगेज है?’’ मैंने डरते-डरते पूछा।
‘‘अरे नहीं।’’ तारिक हंस दिया, ‘‘ऐसी बात नहीं है। वह कहीं एंगेज तो नहीं है, लेकिन उसे राजी करना बहुत बड़ा मसला है। वह एक सिरफिरी लड़की है। अगर तुम पसंद आ गए, तो बात दूसरी है, वरना उसे जबरदस्ती किसी बात के लिए मजबमर नहीं किया जाएगा।’’
‘‘क्यों...अब ऐसी भी क्या बात है?’’
‘‘भई उसे कैसे राजी किया जाए?’’ तारिक बेबसी से बोला, ‘‘उसके पास हर दलील का तर्क होता है। वह खुद अपनी दलीलों से अच्छे-अच्छों के कल-पुर्जे बिखेर देती है।’’
‘‘लेकिन, तुम उससे बात तो करो। हो सकता है कि उसे कोई एतराज नहीं हो।’’ मैंने उम्मीद की डोर बांधे रखी।
‘‘नहीं बाबा, मैं उससे बात करने का खतरा मोल नहीं ले सकता। यह काम तुम खुद करो।’’
‘‘मैं...वह कैसे?’’ मैं घबरा गया, ‘‘देख, एक ही मुलाकात के बाद यह सब कहना मुनासिब तो नहीं लगता था।’’ मैंने जान छुड़ाई। मैं उस मुंहफट के मुंह लगने के ख्याल से बौखला गया था। ‘‘यार, बात यह है कि मैंने कभी किसी लड़की से इस तरह बात नहीं की है। फिर वह इतनी बोल्ड है, डर रहता है कि कहीं बेइज्जत ना कर दे।’’
‘‘कमाल है यार...इतना डरता है, तो फिर साइमा जैसी लड़की के साथ गुजारा कैसे करेगा। मर्द बन मर्द।’’ तारिक ने मुझे डांटा। फिर कुछ सोचकर वह बोला, ‘‘ऐसा करते हैं कि मैं उसे किसी बहाने तेरे आॅफिस ले आता हूं। शायद तेरे ठाट-बांट देखकर ही जरा रौब आ जाए। फिर मैं यहां लाकर किसी काम के बहाने एकाध घंटे के लिए गायब हो जाऊंगा। मौका देखकर तुम उससे बात कर लेना। क्या ख्याल है।’’ तारिक ने पूरा मंसूबा बना लिया।
‘‘ठीक है।’’ मैं भी राजी हो गया। रातभर मैं लफ्जों को तरतीब देता रहा कि किन उल्फाज में अपना मतलब बयान करूंगा। पहले एक जुमला सोचता, फिर उसे खुद ही रद्द कर देता। कोई शब्द मुझे उसकी शान में मुनासिब नहीं लगता। हर ख्याल उसकी शख्सियत के आगे छोटा था। मैं पूरी रात सोचता रहा और रद्द करता रहा। इसी तरतीब और बेतरतीबी में रात बीत गई।
सुबह तैयार होकर मैंने आईने में खुद को हर कोण से देखा और आश्वस्त होकर आॅफिस पहुंच गया। साफ-सुथरे आॅफिस की और सफाई करवाई और एकाग्रचित होकर नजरें दरवाजे पर जमाए बैठा रहा।
करीब ग्यारह बजे मेरे पी.ए. ने बताया कि मेरे गेस्ट आए हैं। मैंने फौरन अंदर भेजने को कहा और फाइलों पर झुक गया। आखिर व्यस्तता भी तो जाहिर करनी थी।
कुछ लम्हों बाद दरवाजा खुला और तारिक अंदर आया। मैंने उसके पीछे खोजी नजरों से देखा, मगर वहां कोई नहीं था। मैंने सवालिया नजरों से तारिक को देखा।
‘‘अब क्या बैठने के लिए भी नहीं कहोगे।’’ तारिक खुद ही बैठ गया।
‘‘हां...हां, क्यों नहीं, लेकिन...।’’ मैंने जुमला अधूरा छोड़ दिया। तारिक के चेहरे पर छाई संजीदगी ने मुझे परेशान कर दिया था। शायद मैं ही साइमा के एकतरफा प्यार में गिरफ्तार हो चुका था और शायद उस मंजिल में दाखिल हो गया था, जहां महबूब से जुदाई नाकाबिले-बर्दाश्त हो जाती है।
‘‘क्या हुआ?’’ मैंने तारिक से पूछा। तारिक ने खामोश नजरों से मुझे देखा, लेकिन कुछ बोला नहीं।
‘‘क्या हुआ आखिर, तुम बोलते क्यों नहीं हो...और साइमा कहां है?’’
‘‘वह नहीं आई।’’ वह धीरे से बोला।
‘‘क्यों...क्यों नहीं आई...और क्या तुमने उसे बता दिया था कि तुम उसे यहां ला रहे, मुझसे मिलवाने?
‘‘हां खावर, मैं उसे यहां क्यों ला रहा हूं। मैंने तुम्हारी ख्वाहिशों से उसे आगाह कर दिया था।’’
‘‘फिर?’’ मैं बेचैनी से बोला, ‘‘क्या कहा उसने?’’
‘‘उसने इंकार कर दिया।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘यह मत पूछो।’’ तारिक ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया।
मैं समझ गया कि वह नाकाम हो चुका है, साइमा को राजी करने में। और अब मुझसे शर्मिंदा है।
‘‘तारिक, प्लीज। मुझे तफसील से बताओ। मैं सब कुछ सुन लूंगा। मुझसे कुछ मत छुपाओ। बड़ा हौसला है मुझमें।’’ मैं जज्बाती हो गया।
‘‘तो फिर सुनो।’’ वह बोला, ‘‘साइमा का कहना है कि...।’’ तारिक रूक-सा गया। वह विराम क्षण मुझे मुक्ति दिवस के इंतजार से ज्यादा दीर्घ महसूस हुआ।
‘‘साइमा का कहना है कि वह यहां आकर क्या करेगी। उसूली तौर पर तुम्हें उसके घर जाना चाहिए सेहरा बांधकर।’’
‘‘क्या बकता है बे?’’ तारिक के आखिरी शब्दों ने मुझे उछलने पर मजबूर कर दिया, ‘‘क्या कह रहे हो तुम?’’
‘‘मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं।’’ अब तारिक मुस्करा रहा हूं।’’ अब तारिक मुस्करा रहा था, ‘‘खुदा जाने तू कैसा पुलिसवाला है। पूरी बात सुने बगैर ही थोबड़ा लटका कर बैठ गया। तेरी जगह कोई और होता, तो कहता कि अच्छा, इंकार कर दिया है, कोई बात नहीं। मैं पूरी फैमिली को उठवा लूंगा।’’ तारिक ने मेरी नकल उतारी, ‘‘लेकिन तू तो बहुत फिसड्डी है, बुजदिल कहीं का।’’
‘‘यार कहीं तू झूठ तो नहीं बोल रहा है।’’ मैंने तारिक के व्यंग्य को नजरअंदाज कर दिया। वह मुझे जोश दिलाने की पूरी कोशिश कर रहा था, जबकि किसी भी किस्म की सूरतेहाल में होश का दामन थामे रखना हमारी ट्रेनिंग का हिस्सा है।
‘‘नहीं यार, मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं।’’ तारिक संजीदा हो गया, ‘‘मैंने उसे तुम्हारी ख्वाहिश से आगाह किया, तो वह शरमा गई। इतनी बोल्ड और चर्ब जुबान लड़की को शरमाते देखना भी अजीब तजुर्बा है। बहरहाल, यह इस बात का सबूत है कि तुमने बोल्ड और चर्ब जुबान लड़की को शरमाते देखना भी अजीब तजुर्बा है। बहरहाल, यह इस बात का सबूत है कि तुमने एक ही मुलाकात में उसे बेहद प्रभावित कर दिया था।
तो मेरे दोस्त, बहुत-बहुत मुबारक। साइमा मुझे बहुत अजीज है...और तुम भी...तुम दोनों को साथ देखना और खुश देखना मेरी आरजू है। अच्छा, अब जल्दी से चाय मंगवाओ।’’
‘‘चाय भी आ जाएगी। पहले मैं तुमसे तो निपट लूं। इतनी संजीदगी से ड्रामा कर रहे थे।’’ मैंने पेपरवेट उठाकर उसे मारा, जिसे हंसते हुए उसने कैच कर लिया।
बाद के सारे पड़ाव तारिक की वजह से आसान हो गए। साइमा के घरवालों के नजदीक यही बहुत था कि मैं तारिक का दोस्त था और उसका वोट मेरे साथ था।
दूसरी तरफ मेरे घरवालों को भी कोई एतराज नहीं था। वह पहले ही कह चुके थे कि चाहे अपनी पसंद से करो, मगर शादी करो जरूर और वैसे भी साइमा उनको बहुत पसंद आई थी।
सभी की दुआओं से यह काम मुकम्मल हुआ और वह सलोनी शाम भी मेरी जिन्दगी में आई, जब साइमा मेरी बनकर मेरे पहलू में आ बैठी।
निकाह के बाद मुझे स्टेज पर साइमा के साथ बैठा दिया गया। औरतों और लड़कियों का हुजूम था। कैमरों की फ्लैश लाइट्स की चकाचैंध हो रही थी। मूवी अलग बन रही थी और खुदा जाने कौन-कौन-सी अहमकाना रस्में अदा की जा रही थीं। मैं निहायत उकताहट और बेजारी के आलम में बैठा था।
अचानक एक सरगोशी मेरे कानों से टकराई। मैं एकाग्रचित हो गया। मेरे पीछे ‘खड़ी कुछ औरतें सरगोशियों में तबसरे कर रही थीं। विषय साइमा ही थी।
‘‘सुनो, यह साइमा का तारिक से ही रिश्ता हुआ था ना बचपन में। याद है ना तुम्हें?’’
‘‘क्या नहीं...तारिक की अम्मी ने तो निहायत धूमधाम से मांगनी की रस्म अदा की थी। भतीजी पर तो जान देती थीं वह...।’’
अब मैं पूरी तरह उनकी बातों पर कान लगाए हुए था। साइमा, उसकी दोस्त, शोर, हंगामा, सब कुछ पीछे रह गया था। मेरी संज्ञाएं कानों में ढल रही थीं।
‘‘तो फिर साइमा की शादी तारिक से क्यों नहीं हुई। यह रिश्ता क्यों खत्म हो गया।’’
‘‘खुदा जाने असली वजह क्या है। लेकिन मैंने साइमा की अम्मी से पूछा था। वह तो कुछ और ही बताती हैं।’’
‘‘अच्छा, वह क्या कहती है?’’
‘‘बस, गोलमोल-सा जवाब दिया। कहने लगीं कि बहन जमाना बदल गया है। अब बच्चों की मर्जी पर चलना पड़ता है, लेकिन मुझे लगता है कि वह कुछ छुपा रही थीं। दाल में कुछ काला जरूर है। खैर हमें क्या?’’
‘‘और क्या...हमें क्या मतलब? वह तो साइमा को देखकर याद आ गया कि मरहूमा (स्वर्गीय) ने बड़ी मुहब्बत से साइमा को मांगा था। वैसे सुना तो यह है कि यह रिश्ता तारिक ने ही तय करवाया था, आखिर दोस्त है उसका।’’
‘‘कुर्बानी का बकरा दोस्त को ही बनाया जा सकता है और कौन बनेगा इस जमाने में।’’ दोनों ने दबे-दबे अंदाज में कहकहा लगाया और वहां से चल दीं।
वह दोनों तो वहां से चल दीं या शायद उनकी पिटारी में बातें खत्म हो गई थीं, लेकिन मेरी जिन्दगी की पुरसकून सतह पर शक और बदगुमानी के भारी-भरकम पत्थर आ गिरे। मैं सकते की हालत में रह गया। साइमा का तारिक से रिश्ता हुआ था।
तारिक ने तो कभी जिक्र तक नहीं किया और अगर ऐसा था, तो शादी क्यों नहीं हो सकी। वह दोनों फस्र्ट कजिन थे। उनके रास्ते में कोई रुकावट नहीं थी, फिर...?
तारिक का हर अंदाज गवाह था कि उस रिश्ते पर वह बेहद खुश था और...। साइमा भी हंसी-खुशी मुझसे शादी करने के लिए तैयार हो गई थी, तो फिर...? मुझे उस औरत का अगला जुमला याद आया, ‘‘कुर्बानी का बकरा...।’’ मेरी रगों में खून तेजी से गर्दिश करने लगा।
‘‘क्या मतलब है इस बात का?’’ मैं खुद से उलझता रहा।
‘‘भाईजान, कहां खो गए हैं आप?’’ मेरी छोटी बहन ने मुझे चैंका दिया।
‘‘आं...क्या...?’’ मैंने उसे देखा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘चले, रूखसती का वक्त हो गया है।’’
साइमा की सहेलियों ने उसे वहां से उठा लिया और फिर मैं भी उसके साथ धीरे-धीरे कदम उठाने लगा। मेरी बहनें मेरे दोनों तरफ चल रही थीं। कैमरे और मूवी के लाइटों से आंखें चुंधिया रही थीं।
मैं उन औरतों की गुफ्तगू से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह अल्फाज जहरीले बिच्छुओं की तरह मेरे दिमाग से चिपक गए। मेरे दिलो-दिमाग तनावग्रस्त थे।
खुद पर काबू पाने और सब कुछ दिमाग से झटक देने में मुझे बहुत देर लगी। मेरी ट्रेनिंग मेरे बहुत काम आई।
साइमा के रवैये ने भी मेरे दिमाग में से शक की गर्द को साफ करने में मदद की, लेकिन इसके बावजूद उन महकते लम्हों में एक कसक-सी मेरे साथ रही। साइमा को दिलकश वजूद और मासूम चेहरे पर किसी जुर्म या गुनाह के निशान तक नहीं थे। उसका अंदाज इस बात का गवाह था। उसका वजूद खुद में गवाही था कि उसकी जिन्दगी में मुझसे पहले कोई नहीं आया था, लेकिन फिर भी वह सब क्या था। वह औरतें क्या कह रही थीं। यहां आकर मेरा जेहन अटक जाता था।
साइमा की और मेरी पारिवारिक जिन्दगी बहुत से लोगों के लिए काबिले-रश्क थी। साइमा भी बहुत खुश और संतुष्ट थी, लेकिन मेरे अंदर बेचैनी और व्यग्रता करवटें बदल रही थीं।
शादी की रात को शक का बीज बोया गया था, वह मेरे न चाहने के बावजूद सिर उठा रहा था। अपनी जड़ें मजबूत कर रहा था। मैं सब कुछ भुला देना चाहता था और भूल जाना चाहता था, लेकिन फिर कोई न कोई बात ऐसी हो जाती थी जो फिर से सब कुछ ताजा कर देती।
साइमा की कोई एक बात या तो काई ऐसी हरकत मुझे तीव्र यातना में ग्रस्त कर देती। मैं खुद को नजरअंदाज होता महसूस करता।
मुझे ऐसा महसूस होता, जैसे साइमा के लिए मुझसे ज्यादा तारिक की अहमियत थी। वह दोनों एक-दूसरे का इतना ख्याल रखते कि मैं हैरान रह जाता। हमारी शादी के साल भर बाद तारिक की शादी हो गई। लेकिन इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा। साइमा अब भी तारिक के लिए अहम थी, उसकी बीवी से ज्यादा तारिक साइमा के लिए पहली जरूरत था। मैं तो शायद बस यूं ही बीच में आ गया था।
दिन-प्रतिदिन मुझे तारिक से नफरत होती चली गई। हैरत की बात यह थी कि मुझे साइमा से मुहब्बत थी। मैं उसे किसी कीमत पर खोना भी नहीं चाहता था। उसकी सारी बेवफाई और धोखेवाजी के बावजूद। अजीब प्रतिकूल जिन्दगी गुजार रहा था मैं।
तारिक से दिली नफरत के बावजूद मुझे दुनियादारी के तकाजे निभाने पड़ते। वह आता तो उसकी खिले माथे से अवभगत भी करनी पड़ती। दुनिया वालों की नजर में दुश्मन से भी बदतर। कई बार तीव्र क्रोध मुझे अपनी लपेट में ले लेता कि वह दोनों मिलकर किस तरह मुझे बेवकूफ बना रहे हैं।
एक रोज अपने मां-बाप की इकलौती औलाद साइमा मायके से जब लौटी, तो उसके हाथ में बहुत सारे पुराने एलबम थे। यह उसकी शादी से पहले की तस्वीरें थीं। वह बड़े उत्साह से मुझे एक-एक तस्वीर दिखाने लगी। लहू की गर्दिश मेरी रगों में तेज होने लगी। ज्यादातर तस्वीरों में तारिक और साइमा साथ-साथ थे। साइमा मेरे एहसासें से बेखबर होकर हर तस्वीर के बारे में मुझे बता रही थी और मैं अंदर से घुल रहा था।
बस, इन्हीं दिनों नेमान के कत्ल के जुर्म में तारिक जेल चला गया। साइमा को पूरा यकीन था कि तारिक किसी का कत्ल नहीं कर सकता, इसलिए वह खुलकर अदालत में उसकी वकालत कर रही थी। जबकि वह अच्छी तरह जानती थी कि वह तारिक को बचा नहीं पाएगी, क्योंकि तारिक का इकबालिया बयान ही उसे फांसी के फंदे तक पहुंचा रहा था। इस केस में कोई पेचीदगी, कोई उलझाव नहीं था, जिसका फायदा बचाव वकील यानी साइमा उठा सके।
यह सीधा-सादा दो जमा दो चार वाला केस था। तारिक का इकबाली बयान मौजूद था। गवाह और कत्ल का सबब भी मौजूद था। सिर्फ और सिर्फ एक गवाह ऐसा था या कम से कम अदालत में तारिक को शक का फायदा दे सकता था, लेकिन वह अब तक सामने नहीं आया था।
फिर एक रोज साइमा घर लौटी, तो बहुत दुःखी थी। वजह साफ थी कि दुःखी होने का सबब सिर्फ और सिर्फ तारिक था। मैं फट पड़ा, ‘‘मैं तुम्हारे दुःख को समझ रहा हूं। तारिक तुम्हारा फुफेरा भाई ही नहीं, वरन का मंगेतर भी है। तुम्हारा रिश्ता बहुत गहरा है।’’ वह फटी-फटी नजरों से मुझे देख रही थी। मैंने अपनी बात जारी रखी, ‘‘और वह तारिक...उस फ्राॅडी ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया। अपनी मंगेतर के साथ पहले खूब गुलछर्रे उड़ाए, फिर जब दिल भर गया तो अपनी बला मेरे सिर मढ़ दी।’’ मैं बोलता ही चला गया, ‘‘मैं भी हैरान था कि मेरे प्रपोज करते ही सब क्यों तैयार हो गए। झटपट क्यों सारा मामला निपटा दिया गया।
‘‘तुम नहीं जानतीं इन गुजरे चार सालों में मैं बर्दाश्त की किन-किन मंजिलों से गुजरा हूं। यह मैं ही जानता हूं। मैं अपने घर में और यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकता। तुम...तुम खुद को मेरी तरफ से आजाद समझो...तारिक के लिए। अब अगर वह मर जाए, तो उसकी कब्र पर तुम मुजाविर बन जाना, जिन्दगी भर के लिए...। किसी एक से तो वफा कर लो...अहदनिभा लो।’’
मैंने निर्दयता से कहा और फिर उसके चेहरे को गौर से देखा। उसका चेहरा पसीने से सराबोर हो गया था। उसके चेहरे पर बिखरी जर्दी साफ नजर आ रही थी। वह रोते-रोते उसी वक्त अपनी मां के घर चली गई।
दूसरी सुबह मैं अपने स्वाभिमान, खुद्दारी और सारे लड़ाई-झगड़े को पीठ पीछे डालकर साइमा के घर चल दिया। मैंने सोच लिया था कि अगर साइमा के अब्बू-अम्मी ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप किया, तो मैं भी कोई लगी-लिपटी नहीं रखूंगा। सब कुछ साफ-साफ बता दूंगा।
मगर वहां मामला ही दूसरा था। सब तारिक के सदमे से निढाल थे। साइमा कोर्ट चली गई थी, आज तारिक की किस्मत का फैसला होना था। साइमा की अम्मी ने मुझे अपने पास बैठा लिया। मैंने चुभते लहजे में कहा, ‘‘लगता है कि आप सभी को तारिक से बेहद प्यार है?’’
‘‘क्यों नहीं होगा, आखिर वह मेरा बेटा ही तो है। साइमा का भाई...।’’ साइमा की मां ने बेहद गमगीन लहजे में कहा, ‘‘क्या तुम्हें साइमा ने कुछ नहीं बताया?’’
मेरी गर्दन नहीं में हिल गई। ‘‘साइमा ने शायद तुम्हें बताया नहीं। साइमा जब पैदा हुई थी, तो उसकी फूफी यानी तारिक की अम्मी ने उसे तारिक के लिए मांग लिया था। वह अपने भाई को बहुत चाहती थीं। साइमा उनकी इकलौती भतीजी थी, सो उस पर भी वह हजार जान फिदा थीं। मैंने और साइमा के अब्बू ने उन्हें बहुत मना किया था कि अभी बच्चे छोटे हें। मंगनी वगैरा रहने दो, मगर उस दीवानी को सब्र कहा था। उसने बड़ी धूमधाम से मंगनी की रस्म अदा की थी।’’ वह बोलते-बोलते रूक गईं। कुछ लम्हों के बाद फिर बोली, ‘‘लेकिन खुदा के कामों में किसी का दखल नहीं है। वह जो चाहता है, वही होता है। साइमा जब साल भर की हो गई, तो मैं शदीद बीमार हो गई। मेरी बीमारी के दौरान साइमा की देखभाल ठीक तरह से नहीं हुई, लिहाजा वह भी बीमार पड़ गई। उसकी जान के लाले पड़ गए। ऊपर का दूध उसे और बीमार कर रहा था। साइमा की फूफी यानी तारिक की मां ने साइमा की जान बचाने के लिए अपना दूध पिला दिया। उन दिनों तारिक की छोटी बहन नोशी पैदा हुई थी। बहरहाल, साइमा की जिन्दगी तो बच गई, मगर वह मंगनी अपने-आप खत्म हो गई और एक गहरा और अनमिट रिश्ता वजूद में आ गया।’’
‘‘ओह मेरे खुदाया...।’’ मुझे लगा कि जैसे मैं आंधियों की जद में आ गया हूं। यह कैसा रहस्योद्घाटन था। मैं कांप उठा।
‘‘हमने लोगों ने शर्मिंदगी से बचने के लिए खामोशी ओढ़ ली। बच्चे जब बड़े हुए, तो हमने कह दिया कि बच्चों की मर्जी नहीं है। साथ ही हमने दोनों को बता दिया कि उनके बीच कौन-सा रिश्ता है। वह दोनों एक-दूसरे को सगे भाई-बहन से बढ़कर चाहते हैं।’’ वह फफककर रो दीं।
मैं उनको रोता छोड़कर तेजी से बाहर दौड़ा। कुछ लम्हों बाद मेरी गाड़ी तेजी से दौड़ रही थी। मुझे देर तो हो गई थी, लेकिन खुदा का शुक्र है कि बहुत देर नहीं हुई थी। अभी केस की जारी थी।
मैंने फिल्मी स्टाइल में सही टाइम में कोर्ट में कदम रखा और उस कहानी का रूख बदल दिया।
मैंने गवाही के लिए कटहरे में आकर हलफ उठाया। इससे पहले मैं अपने महकमे के शिनाख्ती कागजात दिखा चुका था।
‘‘योअर आॅनर। मैं खुदा को हाजिर-नाजिर जानकर कहता हूं कि यह कत्ल नहीं, बल्कि एक हादसा है और मैं इस हादसे का चश्मदीद गवाह हूं।’’ मेरे इस बयान से अदालत में हलचल मच गई। साइमा ने चैंक कर मुझे देखा। तारिक की धुंधलाई हुई नजरों में चमक आ गई। उसका चेहरा कमजोर और जर्द हो रहा था।
‘‘योअर आॅनर, इस हादसे का चश्मदीद गवाह मैं हूं।’’ फिर मैंने तफ्सील बताई, ‘‘यह सब आपको पता ही है कि नेमान और तारिक के दरम्यान कारोबारी रंजिश थी। नेमान तारिक का छहः सात लाख रुपये का कर्जदार था। तारिक ने अब उसे धमकियां देनी शुरू की थीं, लेकिन इन धमकियों से उसकी मुराद कानूनी चाराजोई थी। नेमान इस कर्ज की अदायगी के लिए बहुत-सा वक्त चाहता था, लेकिन तारिक उसकी वादा-खिलाफियों से तंग आकर और वक्त देने को तैयार ना था। उस रोज नेमान ने खासतौर पर मुझे बुलाया था, ताकि मैं दोनों के दरम्यान सुलह करवा दूं। तारिक को मेरे आने के बारे में कुछ पता नहीं था।
‘‘नेमान का घर गली के आखिरी सिरे पर था। नेमान से मिलकर मुझे कहीं और भी जाना था, लिहाजा हम वहीं बाहर टहलकर तारिक का इंतजार करने लगे। बातें करते हुए हम सड़क पर आ गए थे। तारिक हमारी उम्मीद के खिलाफ विरोधी दिशा से आ गया। उसकी गाड़ी की आवाज और हाॅर्न पर हम चैंक कर मुड़े। तारिक ने भी अचानक हमें सामने देखकर हाॅर्न दिया और ब्रेक लगाया, लेकिन ब्रेक लगते-लगते भी नेमान गाड़ी की जद में आ चुका था। वह टकराया और उछलकर दूर जा गिरा। फुटपाथ के किनारे पर बेशुमार पत्थर पड़े थे। एक नोकीला पत्थर उसके सिर में धंस गया और यूं उसने मौके पर दम तोड़ दिया।
‘‘तारिक यह देखकर बौखला गया। उसकी नजर शायद मुझ पर नहीं पड़ी थी या शायद घबराहट में मुझे ना देख सका था। वह गाड़ी से उतरा। नेमान को हिलाया-डुलाया। सिर से बहते खून ने उसके होशो-हवास उड़ा दिए थे। होश तो मेरे भी गुम हो चूके थे।
‘‘वह खौफ और घबराहट के आलम में गाड़ी में बैठा। इससे पहले कि मैं उसे रोकता, वह गाड़ी स्टार्ट करके तेजी से चला गया। मैं दौड़ा और नेमान के करीब आया, मगर वह मर चुका था। मैंने उसे अपनी गाड़ी में डाला और अस्पताल ले गया, जबकि रास्ते ही में मैंने वायरलेस कर संबंधित थाने को हिदायत कर दी थी कि वह तारिक को गिरफ्तार कर लें।’’
मेरा बयान कोई शक-सुबहा नहीं छोड़ता था। यह तारीक के बयान की तसदीक थी। मेरे बयान के बाद जज साहब ने कहा, ‘‘लेकिन ए.सी.पी. खावर जमाल, इतने अर्से तक सच्चाई को छुपाकर आपने जो कोताही और कानूनी शिकनी की है, उसका अहसास है आपको। अपकी इस लापरवाही से एक बेगुनाह मौत का कसूर वार माना जाता।’’
‘‘इसके लिए मैं शर्मिंदा हूं जनाब।’’ मैंने सिर झुका कर कहा।
‘‘यह आपकी इस तरह की पहली गलती थी। आपके ओहदे और बेदाग कैरियर को मद्देनजर रखते हुए यह अदालत आपको इस वार्निंग के साथ छोड़ रही है कि इस तरह की गलती और कोताही आईंदा ना होने पाए।’’
फिर जज साहब बचाव वकील साइमा से सम्बोधित हुए, ‘‘चूंकि यह अदालत मान चुकी है कि यह कत्ल नहीं, इत्तेफाकी हादसा था, इसलिए यह अदालत तारिक को बाइज्जत बरी करती है।’’
फिर यह केस खत्म हो गया। तारिक रिहा हो गया। इस तरह का बेगुनाह इंसान अपने नाकरदा जुर्म की सजा पाने से बच गया। यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी, मगर इससे बढ़कर एक और बात थी। मेरी मुहब्बत मुझे वापस मिल गई थी, वरना मैं तो अपने ही शको-शुब्हा की चिंगारी से अपने घर को आग लगा चुका था और अपनी मुहब्बत को तो दफना ही चुका था। ऐन वक्त पर खुदा ने मुझे सही राह दिखाई और मैं तबाही और बर्बादी से बच गया।
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