पहला प्यार
मौत की आहट ने खोली मोहब्बत की राह
आप सभी की जिन्दगी में कभी ना कभी कोई ना कोई घटना ऐसी अवश्य घटित हुई होगी जिसका जिक्र आपने दूसरों से किया हो और लोगों ने उसे मनघड़ंत समझा हो। मगर आप जानते हैं कि वह घटना मनघड़ंत हरगिज भी नहीं थी। ऐसा ही मेरे साथ है मैं सच लिख रहा हूं एक ऐसा सच जिसपर शायद आप कभी भी यकीन न करें।
वह शुभ और मनहूस दिन था। 15 मार्च 2009 का, शुभ इसलिए क्योंकि इसी दिन मेरे सपनों की रानी प्रियंका मुझे मिली थी और मनहूस इसलिए क्योंकि इसी रोज मैं ऐसी मुसीबतों में पंफसता चला गया कि जान के लाले पड़ गये।
हुआ यह कि उस रोज मैं घर से सुबह 10 बजे आपिफस के लिए निकला तो उस रास्ते में जाम मिला, जिधर से मैं नियमित रूप से जाता था। मैंने तत्काल निर्णय लेते हुए गाड़ी बैक की और यू टर्न लेकर गाड़ी कच्चे रास्ते पर डाल दी। यह रास्ता एक छोटे से जंगल के बीच से गुजरता था, मगर बीस मिनट के सपफर के बाद मैं वापस पहले वाली सड़क पर पहुंच सकता था।
अभी मैं कुछ आगे ही बढ़ा था कि एक लड़की के चीखने की आवाज मुझे सुनाई पड़ी। हड़बड़ाकर मैंने कार रोक दी और चीख की दिशा जानने का प्रयास करने लगा। कुछ मिनट यूं ही गुजरे, मगर चीख दोबारा नहीं सुनाई दी।
मैंने बेमन से कंधे उचका दिये और उसे अपना भ्रम समझकर कार आगे बढ़ा दी। अभी 15-20 मीटर ही आगे बढ़ा होऊंगा कि मुझे बाईं तरपफ की झाड़ियों के पीछे एक कार की झलक मिली। मैं उसके करीब पहुंचा।
फ्एनी बॉडी हियर!य् मैं तनिक उच्च स्वर में कार के करीब पहुंचकर बोला। जवाब में सन्नाटा, मैं कार के एकदम करीब पहुंचा और खिड़की से झांककर भीतर देखने की कोशिश की और...एक खून अलूदा चेहरा दिखाई दिया, जो पिछली सीट पर निश्चेष्ट पड़ा था। जीवन के कोई चिन्ह शेष न थे पिफर भी मैंने उसकी नब्ज टटोली, नब्ज गायब थी। एक डॉक्टर होने के नाते मुझे अंदाजा लगाते देर न लगी कि उसका कत्ल कुछ मिनटों पहले ही किया गया था।
शव किसी युवती का था, जीवित अवस्था में वह यकीनन बेहद खूबसूरत रही होगी।
मैंने इध्र उध्र देखने के बाद अपना मोबाइल निकाल कर पुलिस को पफोनकर मामले की सूचना दे दी। अभी मैं पुलिस का इंतजार कर ही रहा था कि तभी तीन पहलवान जैसे लोग वहां पहुंचे और उन्होंने मुझे थाम लिया। मैंने उनके चंगुल से निकलने की कोशिश की तो उनमें से एक ने मेरे पेट में जोरदार घूंसा जड़ दिया मैं हलाल होते बकरे की तरह डकारा था। पिफर दोबारा विरोध् करने की हिम्मत मेरी नहीं हुई और मैंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। वे तीनों मुझे लेकर एक झोंपड़ेनुमा मकान में पहुंचे।
वहां मेरे अलावा दो मेहमान और थे, मगर वे दोनों लड़कियां थीं, और बुरी तरह सहमी हुई थीं। करीब आधे घंटे तक मैं उन दोनों का मनोवैज्ञानिक तौर पर इलाज करता रहा। इसके बाद कहीं जाकर मुझे पूरी स्थिति पता चली।
कहानी यह थी कि वे तीनों सहेलियां थीं। तीनों को एक टीवी सीरियल के लिए आडिशन देने पटना जाना था। सड़क पर जाम की वजह से उन तीनों ने शार्टकट अपनाया था और इस मुसीबत में पंफस गई थी। कत्ल हुई लड़की ने अपहर्ताओं का विरोध किया तो उसे गोली मार दी गई थी। वहां मौजूद दोनों युवतियों में से एक जिसका नाम प्रियंका था उसने बताया कि ये लोग किडनैपर हैं और उनके घरवालों को पिफरौती के लिए फोन कर चुके हैं।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और एक रिवॉल्वरधारी ने आकर दूसरी युवती परी को बेहिचक शूट कर दिया। मैं और प्रियंका कांप कर रह गये। मगर यह वक्त डरने और भावनाओं में बहने का नहीं था। मैंने पफौरन अपना अगला कदम निर्धारित किया और इससे पहले की परी की हत्या कर चुकने के बाद वह कमरे से बाहर निकल जाता। मैंने पीछे उस पर धावा बोल दिया और उसे अपने बाजुओं में जकड़कर पूरी ताकत से उसका सिर दीवार पर दे मारा। वह हलाल होते बकरे की तरह डकारा। मैंने पिफर, पिफर और पिफर वही प्रक्रिया दोहराई। वह निश्चेष्ट हो पफर्श पर गिर पड़ा, मैंने उसकी रिवाल्वर उठा ली और प्रियंका के साथ सावधानीपूर्वक बाहर निकल आया।
हम दोनों भागते हुए सड़क तक पहुंचे तब तक पुलिस की जिप्सी वहां पहुंच चुकी थी। आगे का काम पुलिस का था उन्होंने हमें थाने आकर स्टेटमेंट देने की कह छोड़ दिया था।
उस घटना ने मुझे और प्रियंका को कापफी करीब ला दिया। हम डेटिंग करने लगे और करीब दो साल बाद हमने शादी कर ली। प्रियंका मुझे बहुत प्यार करती है। अगर उस रोज की घटना दो कत्ल से न लिपटी होती तो मैं बेशक कहता कि वह मेरे लिए सबसे खुशनूमा दिन था।
-रोहन सिंह
मौत की आहट ने खोली मोहब्बत की राह
आप सभी की जिन्दगी में कभी ना कभी कोई ना कोई घटना ऐसी अवश्य घटित हुई होगी जिसका जिक्र आपने दूसरों से किया हो और लोगों ने उसे मनघड़ंत समझा हो। मगर आप जानते हैं कि वह घटना मनघड़ंत हरगिज भी नहीं थी। ऐसा ही मेरे साथ है मैं सच लिख रहा हूं एक ऐसा सच जिसपर शायद आप कभी भी यकीन न करें।
वह शुभ और मनहूस दिन था। 15 मार्च 2009 का, शुभ इसलिए क्योंकि इसी दिन मेरे सपनों की रानी प्रियंका मुझे मिली थी और मनहूस इसलिए क्योंकि इसी रोज मैं ऐसी मुसीबतों में पंफसता चला गया कि जान के लाले पड़ गये।
हुआ यह कि उस रोज मैं घर से सुबह 10 बजे आपिफस के लिए निकला तो उस रास्ते में जाम मिला, जिधर से मैं नियमित रूप से जाता था। मैंने तत्काल निर्णय लेते हुए गाड़ी बैक की और यू टर्न लेकर गाड़ी कच्चे रास्ते पर डाल दी। यह रास्ता एक छोटे से जंगल के बीच से गुजरता था, मगर बीस मिनट के सपफर के बाद मैं वापस पहले वाली सड़क पर पहुंच सकता था।
अभी मैं कुछ आगे ही बढ़ा था कि एक लड़की के चीखने की आवाज मुझे सुनाई पड़ी। हड़बड़ाकर मैंने कार रोक दी और चीख की दिशा जानने का प्रयास करने लगा। कुछ मिनट यूं ही गुजरे, मगर चीख दोबारा नहीं सुनाई दी।
मैंने बेमन से कंधे उचका दिये और उसे अपना भ्रम समझकर कार आगे बढ़ा दी। अभी 15-20 मीटर ही आगे बढ़ा होऊंगा कि मुझे बाईं तरपफ की झाड़ियों के पीछे एक कार की झलक मिली। मैं उसके करीब पहुंचा।
फ्एनी बॉडी हियर!य् मैं तनिक उच्च स्वर में कार के करीब पहुंचकर बोला। जवाब में सन्नाटा, मैं कार के एकदम करीब पहुंचा और खिड़की से झांककर भीतर देखने की कोशिश की और...एक खून अलूदा चेहरा दिखाई दिया, जो पिछली सीट पर निश्चेष्ट पड़ा था। जीवन के कोई चिन्ह शेष न थे पिफर भी मैंने उसकी नब्ज टटोली, नब्ज गायब थी। एक डॉक्टर होने के नाते मुझे अंदाजा लगाते देर न लगी कि उसका कत्ल कुछ मिनटों पहले ही किया गया था।
शव किसी युवती का था, जीवित अवस्था में वह यकीनन बेहद खूबसूरत रही होगी।
मैंने इध्र उध्र देखने के बाद अपना मोबाइल निकाल कर पुलिस को पफोनकर मामले की सूचना दे दी। अभी मैं पुलिस का इंतजार कर ही रहा था कि तभी तीन पहलवान जैसे लोग वहां पहुंचे और उन्होंने मुझे थाम लिया। मैंने उनके चंगुल से निकलने की कोशिश की तो उनमें से एक ने मेरे पेट में जोरदार घूंसा जड़ दिया मैं हलाल होते बकरे की तरह डकारा था। पिफर दोबारा विरोध् करने की हिम्मत मेरी नहीं हुई और मैंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। वे तीनों मुझे लेकर एक झोंपड़ेनुमा मकान में पहुंचे।
वहां मेरे अलावा दो मेहमान और थे, मगर वे दोनों लड़कियां थीं, और बुरी तरह सहमी हुई थीं। करीब आधे घंटे तक मैं उन दोनों का मनोवैज्ञानिक तौर पर इलाज करता रहा। इसके बाद कहीं जाकर मुझे पूरी स्थिति पता चली।
कहानी यह थी कि वे तीनों सहेलियां थीं। तीनों को एक टीवी सीरियल के लिए आडिशन देने पटना जाना था। सड़क पर जाम की वजह से उन तीनों ने शार्टकट अपनाया था और इस मुसीबत में पंफस गई थी। कत्ल हुई लड़की ने अपहर्ताओं का विरोध किया तो उसे गोली मार दी गई थी। वहां मौजूद दोनों युवतियों में से एक जिसका नाम प्रियंका था उसने बताया कि ये लोग किडनैपर हैं और उनके घरवालों को पिफरौती के लिए फोन कर चुके हैं।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और एक रिवॉल्वरधारी ने आकर दूसरी युवती परी को बेहिचक शूट कर दिया। मैं और प्रियंका कांप कर रह गये। मगर यह वक्त डरने और भावनाओं में बहने का नहीं था। मैंने पफौरन अपना अगला कदम निर्धारित किया और इससे पहले की परी की हत्या कर चुकने के बाद वह कमरे से बाहर निकल जाता। मैंने पीछे उस पर धावा बोल दिया और उसे अपने बाजुओं में जकड़कर पूरी ताकत से उसका सिर दीवार पर दे मारा। वह हलाल होते बकरे की तरह डकारा। मैंने पिफर, पिफर और पिफर वही प्रक्रिया दोहराई। वह निश्चेष्ट हो पफर्श पर गिर पड़ा, मैंने उसकी रिवाल्वर उठा ली और प्रियंका के साथ सावधानीपूर्वक बाहर निकल आया।
हम दोनों भागते हुए सड़क तक पहुंचे तब तक पुलिस की जिप्सी वहां पहुंच चुकी थी। आगे का काम पुलिस का था उन्होंने हमें थाने आकर स्टेटमेंट देने की कह छोड़ दिया था।
उस घटना ने मुझे और प्रियंका को कापफी करीब ला दिया। हम डेटिंग करने लगे और करीब दो साल बाद हमने शादी कर ली। प्रियंका मुझे बहुत प्यार करती है। अगर उस रोज की घटना दो कत्ल से न लिपटी होती तो मैं बेशक कहता कि वह मेरे लिए सबसे खुशनूमा दिन था।
-रोहन सिंह