Friday, March 1, 2013

पहला प्यार
मौत की आहट ने खोली मोहब्बत की राह
आप सभी की जिन्दगी में कभी ना कभी कोई ना कोई घटना ऐसी अवश्य घटित हुई होगी जिसका जिक्र आपने दूसरों से किया हो और लोगों ने उसे मनघड़ंत समझा हो। मगर आप जानते हैं कि वह घटना मनघड़ंत हरगिज भी नहीं थी। ऐसा ही मेरे साथ है मैं सच लिख रहा हूं एक ऐसा सच जिसपर शायद आप कभी भी यकीन न करें।
वह शुभ और मनहूस दिन था। 15 मार्च 2009 का, शुभ इसलिए क्योंकि इसी दिन मेरे सपनों की रानी प्रियंका मुझे मिली थी और मनहूस इसलिए क्योंकि इसी रोज मैं ऐसी मुसीबतों में पंफसता चला गया कि जान के लाले पड़ गये।
हुआ यह कि उस रोज मैं घर से सुबह 10 बजे आपिफस के लिए निकला तो उस रास्ते में जाम मिला, जिधर से मैं नियमित रूप से जाता था। मैंने तत्काल निर्णय लेते हुए गाड़ी बैक की और यू टर्न लेकर गाड़ी कच्चे रास्ते पर डाल दी। यह रास्ता एक छोटे से जंगल के बीच से गुजरता था, मगर बीस मिनट के सपफर के बाद मैं वापस पहले वाली सड़क पर पहुंच सकता था।
अभी मैं कुछ आगे ही बढ़ा था कि एक लड़की के चीखने की आवाज मुझे सुनाई पड़ी। हड़बड़ाकर मैंने कार रोक दी और चीख की दिशा जानने का प्रयास करने लगा। कुछ मिनट यूं ही गुजरे, मगर चीख दोबारा नहीं सुनाई दी।
मैंने बेमन से कंधे उचका दिये और उसे अपना भ्रम समझकर कार आगे बढ़ा दी। अभी 15-20 मीटर ही आगे बढ़ा होऊंगा कि मुझे बाईं तरपफ की झाड़ियों के पीछे एक कार की झलक मिली। मैं उसके करीब पहुंचा।
फ्एनी बॉडी हियर!य् मैं तनिक उच्च स्वर में कार के करीब पहुंचकर बोला। जवाब में सन्नाटा, मैं कार के एकदम करीब पहुंचा और खिड़की से झांककर भीतर देखने की कोशिश की और...एक खून अलूदा चेहरा दिखाई दिया, जो पिछली सीट पर निश्चेष्ट पड़ा था। जीवन के कोई चिन्ह शेष न थे पिफर भी मैंने उसकी नब्ज टटोली, नब्ज गायब थी। एक डॉक्टर होने के नाते मुझे अंदाजा लगाते देर न लगी कि उसका कत्ल कुछ मिनटों पहले ही किया गया था।
शव किसी युवती का था, जीवित अवस्था में वह यकीनन बेहद खूबसूरत रही होगी।
मैंने इध्र उध्र देखने के बाद अपना मोबाइल निकाल कर पुलिस को पफोनकर मामले की सूचना दे दी। अभी मैं पुलिस का इंतजार कर ही रहा था कि तभी तीन पहलवान जैसे लोग वहां पहुंचे और उन्होंने मुझे थाम लिया। मैंने उनके चंगुल से निकलने की कोशिश की तो उनमें से एक ने मेरे पेट में जोरदार घूंसा जड़ दिया मैं हलाल होते बकरे की तरह डकारा था। पिफर दोबारा विरोध् करने की हिम्मत मेरी नहीं हुई और मैंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। वे तीनों मुझे लेकर एक झोंपड़ेनुमा मकान में पहुंचे।
वहां मेरे अलावा दो मेहमान और थे, मगर वे दोनों लड़कियां थीं, और बुरी तरह सहमी हुई थीं। करीब आधे घंटे तक मैं उन दोनों का मनोवैज्ञानिक तौर पर इलाज करता रहा। इसके बाद कहीं जाकर मुझे पूरी स्थिति पता चली।
कहानी यह थी कि वे तीनों सहेलियां थीं। तीनों को एक टीवी सीरियल के लिए आडिशन देने पटना जाना था। सड़क पर जाम की वजह से उन तीनों ने शार्टकट अपनाया था और इस मुसीबत में पंफस गई थी। कत्ल हुई लड़की ने अपहर्ताओं का विरोध किया तो उसे गोली मार दी गई थी। वहां मौजूद दोनों युवतियों में से एक जिसका नाम प्रियंका था उसने बताया कि ये लोग किडनैपर हैं और उनके घरवालों को पिफरौती के लिए फोन कर चुके हैं।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और एक रिवॉल्वरधारी ने आकर दूसरी युवती परी को बेहिचक शूट कर दिया। मैं और प्रियंका कांप कर रह गये। मगर यह वक्त डरने और भावनाओं में बहने का नहीं था। मैंने पफौरन अपना अगला कदम निर्धारित किया और इससे पहले की परी की हत्या कर चुकने के बाद वह कमरे से बाहर निकल जाता। मैंने पीछे उस पर धावा बोल दिया और उसे अपने बाजुओं में जकड़कर पूरी ताकत से उसका सिर दीवार पर दे मारा। वह हलाल होते बकरे की तरह डकारा। मैंने पिफर, पिफर और पिफर वही प्रक्रिया दोहराई। वह निश्चेष्ट हो पफर्श पर गिर पड़ा, मैंने उसकी रिवाल्वर उठा ली और प्रियंका के साथ सावधानीपूर्वक बाहर निकल आया।
हम दोनों भागते हुए सड़क तक पहुंचे तब तक पुलिस की जिप्सी वहां पहुंच चुकी थी। आगे का काम पुलिस का था उन्होंने हमें थाने आकर स्टेटमेंट देने की कह छोड़ दिया था।
उस घटना ने मुझे और प्रियंका को कापफी करीब ला दिया। हम डेटिंग करने लगे और करीब दो साल बाद हमने शादी कर ली। प्रियंका मुझे बहुत प्यार करती है। अगर उस रोज की घटना दो कत्ल से न लिपटी होती तो मैं बेशक कहता कि वह मेरे लिए सबसे खुशनूमा दिन था।

-रोहन सिंह
पहला प्यारद्
ये इश्क नहीं आसां
गालिब मियां ने लिखा है-
ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै।
इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है।।
ये बात उस वक्त जितनी सत्यता के ध्रातल पर खरी उतरती थी, उतनी ही आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। भले ही हम 21वीं सदी के जीव हैं लेकिन सच्चाई ये है कि आज भी हिन्दोस्तान की 70 पफीसदी जनता इश्क के खिलापफ है, यही कारण है कि दो प्यार भरे दिलों को पहले तो जुदा करने की कोशिश की जाती है और जब कामयाबी नहीं मिलती तो उन्हें अलग करने के लिए उनकी हत्या करने जैसा कदम उठाने से भी लोग नहीं हिचकते।
मैं उफपर वाले को ध्न्यवाद देती हूं कि मैं और मेरा प्रियतम, प्रेम विवाह कर समाज और परिवार से बगावत करने के बाद भी अभी तक जीवित हैं। अलबत्ता यह जीवनदान कब तक बना रहेगा इसके बारे में तो उफपर वाला ही बेहतर जानता है।
हमारी मोहब्बत की शुरूआत हुई आज से करीब 2 साल पहले जब पहली बार मैं राज से मिली, वह एक सीध सादा किंतु सुलझा हुआ युवक है। हम दोनों की मुलाकात एमए की क्लास में हुई। हम दोनों ही जॉब करते थे और इग्नू से एमए का पफार्म भर रखा था जिसकी क्लासेज के लिए हर सप्ताह रविवार के दिन हम जामिया मीलिया इस्लामिया कालेज में जाते थे।
हमारे आलावा वहां क्लास में करीब 40 स्टूडेंट और थे, मगर राज उन सब में अलग दिखाई देता था। एकदम शांत, गम्भीर, उसकी यह सादगी ही मेरे दिल में उतरती चली गई। और मैं उससे दोस्ती करने को बेकरार रहने लगी, सच पूछिये तो मरी जा रही थी, मगर वह था कि कोई भाव ही नहीं देता था।
ना ना इसका मतलब आप यह हरगिज भी ना निकालें कि मैं कोई बदसूरत सी लड़की हूं जिसकी तरपफ कोई लड़का ध्यान देना जरूरी ना समझे। उल्टा मैं बेहद खूबसूरत गठे हुए शरीर वाली युवती हूं और मुझे थोड़ी शरम आ रही है लेकिन पिफर भी बता दूं कि वहां पर राज के आलावा बाकी सभी लड़के मुझे देखकर लार टपकाते नजर आते थे। उनकी आंखों में एक भूख दिखाई देती थी, जो मुझे सख्त नापसंद थी, ऐसा नहीं था कि मैं कोई साध्ु सन्यासिनी बनने का ख्वाब देख रही थी, बल्कि मुझे हर चीज को हर काम को तरीके से करना पसंद था। मुझे भूख कैसी भी हो सख्त नापसंद थी, पिफर चाहे वह जिस्म की भूख हो या पेट की भूख! दरअसल भूखा इंसान अपनी भूख मिटाने के चक्कर में सामने वाले की भावनाओं को हमेशा आहत करता है। वह झपट्टा मारता है, टूट पड़ता है और जल्दीबाजी के चक्कर में वह यह हमेशा भूल जाता है, कि इसकी वजह से वह दूसरे को भूखा मार देता है, अपनी संतुष्टि के लिए वह कुछ देर के लिए सबकुछ भुला बैठता है। बस यही वजह है कि मुझे भूखे लोग पसंद नहीं हैं।
तो मैं राज की बात कर रही थी वह अलग था सबसे अलग, शुरू में तो वह किसी की तरपफ देखता ही नहीं था पिफर जब मैंने उससे बातचीत की पहल की तो वह ध्ीरे ध्ीरे खुलने लगा। और जल्दी ही हम क्लास के बाद लम्बी लम्बी बातें करने लगे। इस दौरान वह इतनी तन्मयता से मेरी आंखों में देखता था जैसे कोई भक्त अपने अराध्य देव की सूरत निहार रहा हो, मैं बोलती रहती और वह सुनता रहता, बीच बीच में हूं हां में संक्षिप्त जवाब देता रहता, जाने वह रोज रोज मेरी आंखों में क्या देखता था, मैं पूछना चाहती थी मगर नहीं पूछा, डर था उसके बाद वह यूं मुझे निहारना बंद ना कर दे। जबकि उसके द्वारा इस तरह देखे जाने मुझे बहुत भाता था।
खैर जल्द ही हम अच्छे दोस्त बन गये, और एक रोज जब उसने मेरा हाथ अपने हाथ में थाम कर कहा कि शबनम मुझे तुमसे प्यार हो गया है मैं सदा सदा के लिए तुम्हे अपने प्यार के बंध्न में बांध् लेना चाहता हूं, उसकी बात सुनकर मैं अवाक रह गई, मुझे उम्मीद भी नहीं थी कि वह कभी अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत जुटा पायेगा। मगर उसने यह कर दिखाया था।
जैसा की हमारे नामों से आप अंदाजा लगा चुके होंगे कि मेैं मुस्लिम थी तो वह हिन्दू, लिहाजा यह इश्क आसां नहीं था।
मैंने जब यह समस्या उसके सामने रखी तो वह हंसने लगा और बोला मेरे गम्भी स्वभाव को मेरी कमजोरी मत समझो शबनम, मैं तुम्हे दुनिया से चुरा ले जाउफंगा और तुम्हे अपनी पलकों पर बिठाकर रखूंगा, बस एक बार तुम हामी भरकर देखो।
मैं भला कैसे इंकार करती। मैंने झट उसकी मोहब्बत स्वीकार कर ली, इसके बाद हम दोनों ने अपने अपने घर में अपनी मोहब्बत का ढिंढोरा पीट डाला नतीजा वही हुआ जो होना था, कोहराम मच गया।
किंतु हम इसके लिए पहले से ही तैयार थे अतः हमने कोर्ट मैरिज कर ली।
आज हम एक खुशहाल जिन्दगी जी रहे हैं मगर अपनों से बहुत दूर, जहां हमें कोई नहीं जानता।
-शबनम


लघु कथाएं
सुख का आधार
लम्बे अर्से बाद चिट्ठी आई थी। जसबीर ने पलट कर पीछे देखा। प्रेषक वही था, जिसका जिक्र वह प्रायः करता ही रहता था। बचपन वेफ मित्रा परेश का पत्रा पाकर जसबीर बहुत खुश था। शीघ्रता से उसे खोला और पढ़ने लगाµ
माई डियर जसबीर!
यहां लन्दन में खूब ठाठ हैं। कारों, होटल, पार्टी-पिकनिक, वैफबरे, पॉप म्यूजिक...पैसों की यहां कोई कमी नहीं है। चाहिए वुफछ कर दिखाने वाला। देखिए न, मैंने वुफछ ही वर्षों में यहां करोड़ों का कारोबार कर लिया है। ...ओ.वेफ.! बाकी बातें अगले पत्रा में लिखूंगा।य्
जसबीर पत्रा पढ़कर गहरे ख्यालों में डूब गया था। परेश ने ठीक बारह वर्ष पहले उसवेफ सामने विदेश जाकर काम करने का प्रस्ताव रखा था। परन्तु जसबीर मातृभूमि को किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं हुआ था। आज जसबीर वेफ पास परेश की तुलना में बैंक बेलेन्स भले ही वुफछ नहीं था, परन्तु उसवेफ अपने स्नेहिल, विनयशील बाल-बच्चे थे। परिवार वेफ प्रति समर्पण भाव था। जननी-जन्म भूमि की सौंधी गंध उसकी हथेलियों से पूफटती थी। जसबीर गरीब होकर भी सम्पन्न था, जबकि परेश वेफ पास करोड़ों का बेलेन्स होने वेफ उपरान्त भी इन सबका अभाव था।
वेफयर टेकर
बंगला कापफी बड़ा था और उस बंगले में जो दफ्रतर था, वह सरकारी था। जैसा कि प्रायः होता है, उस दफ्रतर का एक वेफयर-टेकर था और उसका क्वार्टर दफ्रतर वेफ परिसर में ही था। वेफयर-टेकर था सुखपाल, उम्र कोई चालीस और विधुर था। बाल-बच्चे नहीं, अवेफला ही रहता था।
दफ्रतर का माली था दीनानाथ, उम्र साठ पार, पर उम्र सरकारी अभिलेखों में दस साल लिखी थी। पत्नी गुजर चुकी थी। एक बेटी वेफ हाथ पीले कर चुका था। दूसरी थी छमिया। वह अविवाहित थी, अभी और जीवन वेफ सत्राह बसन्त उसे निखार चुवेफ थे। दीनानाथ की दशा कापफी दयनीय थी। बीमारियों वेफ कारण वह उम्र से दस साल ज्यादा लगता था। उसी बंगले में उसका छोटा क्वार्टर था।
शनिवार छुट्टी का दिन था। शाम छह बज चुवेफ थे। सुखपाल कमरे में बैठा कोई पत्रिका पढ़ रहा था। तभी छन्न की आवाज हुई। वह उठा और देखा, खिड़की का शीशा टूटा है, कांच बिखरी है और वहां एक पत्थर भी पड़ा है। सुखपाल तेजी से खिड़की तक गया। उसे भागती हुई छमिया दिखाई दी। सुखपाल समझ गया कि खिड़की का शीशा किसने और वैफसे तोड़ा।
सुखपाल बाहर आया, तब तक छमिया अदृश्य हो चुकी थी। उसने दीनानाथ को आवाज देकर बुलाया और सारी घटना बता कर कहा, फ्छमिया को भेजो, पूछताछ करूंगा, यह सरकारी नुकसान है, भरपाई करनी ही होगी, नहीं तो पुलिस वेफस करना पड़ेगा। उसे लौटने में देर हो तो पिफक्र मत करना, आखिर में वेफयर टेकर हूं न!य्
छमिया आई, तो पहले दीनानाथ ने घुड़की पिलाई, पिफर कहा, फ्सौ रुपए का नुकसान हुआ है, तुझे ही भरना होगा, तेरे बाप की तो औकात नहीं।य्
छमिया सहम गई तो सुखपाल ने पैंतरा बदला और अपने पास खींच कर कोमल व्यवहार करने लगा।
सुखपाल ने कहा, फ्अपनी खिड़की खोल।य् छमिया उसकी निगाहों को समझ रही थी।
तभी वह आगे बढ़ा और उसकी ब्लाऊज अलग कर दी। चोली थी नहीं। बोला, फ्तेरी खिड़की वेफ शीशे तो बड़े चमकदार हैं।य् वह हाथ पेफरने लगा। छमिया निर्विरोध सहती रही। सुखपाल ने उसे बेड पर खींच गिराया और कहा, फ्खिड़की देख ली...अब दरवाजा तो खोल।य्
सुखपाल ने वही किया, जो वह चाहता था। उसे बहुत हल्का-सा बल प्रयोग करना पड़ा। छमिया, सौ रुपए कहां से देती, न उसका बाप भर सकता था, वह तो वही दे सकी थी, जो उसवेफ पास था।
छमिया पलंग पर उघाड़ी पसरी थी चुपचाप आंखें बन्द किए। सुखपाल ने दरवाजा खोल लिया था और भीतर-बाहर आ-जा रहा था। कोई अवरोध न था, वह वेफयर-टेकर जो था। दीनानाथ सारी रात छमिया की राह देखता रहा। वह भोर में लौटी।
प्रवेश वर्जना
एक स्वामी जी वन-वासियों की दशा का अध्ययन करने वनवासी क्षेत्रा में पहुंचे। वे उनवेफ हित में वुफछ करना चाहते थे।
स्वामी जी एक वनवासी वेफ झोपड़े में प्रवेश करने जा रही रहे थे कि उन्हें किसी ने आवाज देकर टोका और रोका, फ्रुकिए, आप अन्दर नहीं जा सकते।य्
फ्मैं वनवासियों की समस्याओं और उनकी दशा का अध्ययन कर सेवा-कार्य करना चाहता हूं।य् स्वामी जी ने कहा, फ्आप मुझे भीतर जाने से रोक क्यों रहे हैं?य्
वनवासी बोला, फ्मैं अपने झोपड़े में बैठा कर आपका स्वागत नहीं कर सकता। इसीलिए रोक रहा हूं।य्
फ्ऐसा क्यों, भीतर क्या समस्या है,य् पूछा स्वामी ने।
वनवासी कातर हो, कहने लगा, फ्भीतर मेरी पुत्रावधू हैं और वह निर्वस्त्रा बैठी हैं।य्
ऐसा क्यों, फ्स्वामी जी चौंक उठे।य्
वनवासी ने बताया, फ्मेरी पत्नी बाजार गई है। घर में एक ही धोती है, जो वह पहन गई है और बहू घर में नंगी है। जब मेरी स्त्राी आएगी, तो वह धोती उतार कर उसे देगी, स्वयं नग्न रहेगी।
स्वामी जी हतप्रभ! हे प्रभु, इतनी निर्धनता। वह रो पड़े।
वनवासी ने निवेदन किया, फ्आप बाहर ही बैठ कर हमसे बातें कर सकते हैं।य्
स्वामी जी वुफछ सुनने में असमर्थ थे। वे बस गहरी सोच में थे और आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी। वे जिस रास्ते से आए थे, उधर ही लौट पड़े।
भूख
वेफरल वेफ समुद्र-तटीय नगर से लगे एक गांव में रहती थी वह। नगर, गांव और उस स्त्राी का नाम न पूछिए। उनकी लाज पर आवरण रहने दें। नगर जाना-माना है, जहां सभ्य-संभ्रान्त भी रहते हैं और दबंग भी। सेक्स और भूख कहां नहीं? वहां भी है। गांव में गरीबी है। भूख वहां भी है, पर पेट की। वह स्त्राी जवान, खूबसूरत आकर्षण, ब्याहता और दो बच्चों की अम्मा। यह रहा घटनास्थल और प्रमुख पात्रा का परिचय जो कथानक वेफ आवश्यक अंग हैं।
स्त्राी मछली बेचा करती थी। गांव से शहर आती और बाजार में बैठती। उसकी आय से घर-परिवार चलता था।
एक दिन-दहाड़े बाजार से उस स्त्राी को वुफछ दबंग लोग उठा ले गए, कहां? पता न चला। अज्ञात स्थान पर उसवेफ साथ जबरदस्ती की गई। समूह में बलात्कार करने वालों ने उसवेफ अंग-प्रत्यंग की मछलियों से अपनी भूख मिटाई।
अगले दिन वह नर-पिशाचों से मुक्त हो गांव लौटी। रो-रो कर आपबीती सुनाई। बात वुफछ सभ्य लोगों तक भी पहुंची। सलाह दी गई, फ्मुंह छिपा कर घर बैठ, भली औरत-सी बनी रह चुपचाप। पुलिस थाना न जा। वुफछ दिन बाजार जाने और मछली बेचने की भी जरूरत नहीं।य्
इस तरह सलाह पर वह बिपफर गई, फ्ऊंह, घर धरी मछलियां मर जाएंगी। पेट की आग वैफसे शान्त हो। बच्चे बिलख रहे हैं।य् वह तैश में बोली।
उसने शरीर पर लगी नोच-खरोंच पर वुफछ घरेलू दवा लगाई। अंगों को रगड़-रगड़ सापफ किया। मुख में बसी दुर्गन्ध बार-बार थूक कर दूर की।
हादसे का डर दूर किया उसने। मर्दों की मर्दानगी पर लानत पेंफकी। अगले दिन बाजार पहुंच गई, मछलियां बेचते। भूल गई देह का दर्द, अपने और बच्चों वेफ पेट में भूख की आग जो थी।
ग्राहक आते रहे। वह मछलियां तौलती रही। भूखीं निगाहें गड़ती रहीं तेज अैर तेज। वह मन ही मन नामर्दों को गालियां देती रही।
विनिमय
आन्ध प्रदेश का एक कस्बा। दो परिवार थे। एक परिवार वेफ पास बकरियां अधिक थीं। एक परिवार वेफ पास लड़कियां अधिक थीं। एक वेफ लिए बकरियां बोझ। दूसरे वेफ लिए लड़कियां बोझ। बकरियों वेफ स्वामी ने सोचा, इन्हें खिलाने में बड़ा खर्च है, वुफछ को बेच दिया जाए। लड़कियों वेफ मां-बाप ने सोचा, सयानी होकर ब्याह का बोझ डालेंगी। चार में से एक को जो दस साल की है, बेच दिया जाए। जवानी की दहलीज पर है, अच्छी रकम हाथ लगेगी।
दोनों परिवारों में बात पट गई। विनिमय तय होगा। लड़की वेफ बदले चार बकरियां। चारा-घास चर कर बकरियां दूध देंगी या अच्छे दामों में यूं ही बिक जाएंगी। विनिमय हो गया। उधर से चार बकरियां आईं, इधर से लड़की चली गई। बकरी वाले परिवार ने लड़की को देखा गौर से। सोचा, बस दो-तीन साल की देर है। अच्छी कमाई उतरेगी। लड़की को बड़े प्यार से ले गए। असहाय लड़की, कातर दृष्टि से, आंसू लिए मां-बाप को देखती रह गई। मां-बाप भूरी-काली बकरियां देख प्रमुदित थे।