Friday, March 1, 2013

लघु कथाएं
सुख का आधार
लम्बे अर्से बाद चिट्ठी आई थी। जसबीर ने पलट कर पीछे देखा। प्रेषक वही था, जिसका जिक्र वह प्रायः करता ही रहता था। बचपन वेफ मित्रा परेश का पत्रा पाकर जसबीर बहुत खुश था। शीघ्रता से उसे खोला और पढ़ने लगाµ
माई डियर जसबीर!
यहां लन्दन में खूब ठाठ हैं। कारों, होटल, पार्टी-पिकनिक, वैफबरे, पॉप म्यूजिक...पैसों की यहां कोई कमी नहीं है। चाहिए वुफछ कर दिखाने वाला। देखिए न, मैंने वुफछ ही वर्षों में यहां करोड़ों का कारोबार कर लिया है। ...ओ.वेफ.! बाकी बातें अगले पत्रा में लिखूंगा।य्
जसबीर पत्रा पढ़कर गहरे ख्यालों में डूब गया था। परेश ने ठीक बारह वर्ष पहले उसवेफ सामने विदेश जाकर काम करने का प्रस्ताव रखा था। परन्तु जसबीर मातृभूमि को किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं हुआ था। आज जसबीर वेफ पास परेश की तुलना में बैंक बेलेन्स भले ही वुफछ नहीं था, परन्तु उसवेफ अपने स्नेहिल, विनयशील बाल-बच्चे थे। परिवार वेफ प्रति समर्पण भाव था। जननी-जन्म भूमि की सौंधी गंध उसकी हथेलियों से पूफटती थी। जसबीर गरीब होकर भी सम्पन्न था, जबकि परेश वेफ पास करोड़ों का बेलेन्स होने वेफ उपरान्त भी इन सबका अभाव था।
वेफयर टेकर
बंगला कापफी बड़ा था और उस बंगले में जो दफ्रतर था, वह सरकारी था। जैसा कि प्रायः होता है, उस दफ्रतर का एक वेफयर-टेकर था और उसका क्वार्टर दफ्रतर वेफ परिसर में ही था। वेफयर-टेकर था सुखपाल, उम्र कोई चालीस और विधुर था। बाल-बच्चे नहीं, अवेफला ही रहता था।
दफ्रतर का माली था दीनानाथ, उम्र साठ पार, पर उम्र सरकारी अभिलेखों में दस साल लिखी थी। पत्नी गुजर चुकी थी। एक बेटी वेफ हाथ पीले कर चुका था। दूसरी थी छमिया। वह अविवाहित थी, अभी और जीवन वेफ सत्राह बसन्त उसे निखार चुवेफ थे। दीनानाथ की दशा कापफी दयनीय थी। बीमारियों वेफ कारण वह उम्र से दस साल ज्यादा लगता था। उसी बंगले में उसका छोटा क्वार्टर था।
शनिवार छुट्टी का दिन था। शाम छह बज चुवेफ थे। सुखपाल कमरे में बैठा कोई पत्रिका पढ़ रहा था। तभी छन्न की आवाज हुई। वह उठा और देखा, खिड़की का शीशा टूटा है, कांच बिखरी है और वहां एक पत्थर भी पड़ा है। सुखपाल तेजी से खिड़की तक गया। उसे भागती हुई छमिया दिखाई दी। सुखपाल समझ गया कि खिड़की का शीशा किसने और वैफसे तोड़ा।
सुखपाल बाहर आया, तब तक छमिया अदृश्य हो चुकी थी। उसने दीनानाथ को आवाज देकर बुलाया और सारी घटना बता कर कहा, फ्छमिया को भेजो, पूछताछ करूंगा, यह सरकारी नुकसान है, भरपाई करनी ही होगी, नहीं तो पुलिस वेफस करना पड़ेगा। उसे लौटने में देर हो तो पिफक्र मत करना, आखिर में वेफयर टेकर हूं न!य्
छमिया आई, तो पहले दीनानाथ ने घुड़की पिलाई, पिफर कहा, फ्सौ रुपए का नुकसान हुआ है, तुझे ही भरना होगा, तेरे बाप की तो औकात नहीं।य्
छमिया सहम गई तो सुखपाल ने पैंतरा बदला और अपने पास खींच कर कोमल व्यवहार करने लगा।
सुखपाल ने कहा, फ्अपनी खिड़की खोल।य् छमिया उसकी निगाहों को समझ रही थी।
तभी वह आगे बढ़ा और उसकी ब्लाऊज अलग कर दी। चोली थी नहीं। बोला, फ्तेरी खिड़की वेफ शीशे तो बड़े चमकदार हैं।य् वह हाथ पेफरने लगा। छमिया निर्विरोध सहती रही। सुखपाल ने उसे बेड पर खींच गिराया और कहा, फ्खिड़की देख ली...अब दरवाजा तो खोल।य्
सुखपाल ने वही किया, जो वह चाहता था। उसे बहुत हल्का-सा बल प्रयोग करना पड़ा। छमिया, सौ रुपए कहां से देती, न उसका बाप भर सकता था, वह तो वही दे सकी थी, जो उसवेफ पास था।
छमिया पलंग पर उघाड़ी पसरी थी चुपचाप आंखें बन्द किए। सुखपाल ने दरवाजा खोल लिया था और भीतर-बाहर आ-जा रहा था। कोई अवरोध न था, वह वेफयर-टेकर जो था। दीनानाथ सारी रात छमिया की राह देखता रहा। वह भोर में लौटी।
प्रवेश वर्जना
एक स्वामी जी वन-वासियों की दशा का अध्ययन करने वनवासी क्षेत्रा में पहुंचे। वे उनवेफ हित में वुफछ करना चाहते थे।
स्वामी जी एक वनवासी वेफ झोपड़े में प्रवेश करने जा रही रहे थे कि उन्हें किसी ने आवाज देकर टोका और रोका, फ्रुकिए, आप अन्दर नहीं जा सकते।य्
फ्मैं वनवासियों की समस्याओं और उनकी दशा का अध्ययन कर सेवा-कार्य करना चाहता हूं।य् स्वामी जी ने कहा, फ्आप मुझे भीतर जाने से रोक क्यों रहे हैं?य्
वनवासी बोला, फ्मैं अपने झोपड़े में बैठा कर आपका स्वागत नहीं कर सकता। इसीलिए रोक रहा हूं।य्
फ्ऐसा क्यों, भीतर क्या समस्या है,य् पूछा स्वामी ने।
वनवासी कातर हो, कहने लगा, फ्भीतर मेरी पुत्रावधू हैं और वह निर्वस्त्रा बैठी हैं।य्
ऐसा क्यों, फ्स्वामी जी चौंक उठे।य्
वनवासी ने बताया, फ्मेरी पत्नी बाजार गई है। घर में एक ही धोती है, जो वह पहन गई है और बहू घर में नंगी है। जब मेरी स्त्राी आएगी, तो वह धोती उतार कर उसे देगी, स्वयं नग्न रहेगी।
स्वामी जी हतप्रभ! हे प्रभु, इतनी निर्धनता। वह रो पड़े।
वनवासी ने निवेदन किया, फ्आप बाहर ही बैठ कर हमसे बातें कर सकते हैं।य्
स्वामी जी वुफछ सुनने में असमर्थ थे। वे बस गहरी सोच में थे और आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी। वे जिस रास्ते से आए थे, उधर ही लौट पड़े।
भूख
वेफरल वेफ समुद्र-तटीय नगर से लगे एक गांव में रहती थी वह। नगर, गांव और उस स्त्राी का नाम न पूछिए। उनकी लाज पर आवरण रहने दें। नगर जाना-माना है, जहां सभ्य-संभ्रान्त भी रहते हैं और दबंग भी। सेक्स और भूख कहां नहीं? वहां भी है। गांव में गरीबी है। भूख वहां भी है, पर पेट की। वह स्त्राी जवान, खूबसूरत आकर्षण, ब्याहता और दो बच्चों की अम्मा। यह रहा घटनास्थल और प्रमुख पात्रा का परिचय जो कथानक वेफ आवश्यक अंग हैं।
स्त्राी मछली बेचा करती थी। गांव से शहर आती और बाजार में बैठती। उसकी आय से घर-परिवार चलता था।
एक दिन-दहाड़े बाजार से उस स्त्राी को वुफछ दबंग लोग उठा ले गए, कहां? पता न चला। अज्ञात स्थान पर उसवेफ साथ जबरदस्ती की गई। समूह में बलात्कार करने वालों ने उसवेफ अंग-प्रत्यंग की मछलियों से अपनी भूख मिटाई।
अगले दिन वह नर-पिशाचों से मुक्त हो गांव लौटी। रो-रो कर आपबीती सुनाई। बात वुफछ सभ्य लोगों तक भी पहुंची। सलाह दी गई, फ्मुंह छिपा कर घर बैठ, भली औरत-सी बनी रह चुपचाप। पुलिस थाना न जा। वुफछ दिन बाजार जाने और मछली बेचने की भी जरूरत नहीं।य्
इस तरह सलाह पर वह बिपफर गई, फ्ऊंह, घर धरी मछलियां मर जाएंगी। पेट की आग वैफसे शान्त हो। बच्चे बिलख रहे हैं।य् वह तैश में बोली।
उसने शरीर पर लगी नोच-खरोंच पर वुफछ घरेलू दवा लगाई। अंगों को रगड़-रगड़ सापफ किया। मुख में बसी दुर्गन्ध बार-बार थूक कर दूर की।
हादसे का डर दूर किया उसने। मर्दों की मर्दानगी पर लानत पेंफकी। अगले दिन बाजार पहुंच गई, मछलियां बेचते। भूल गई देह का दर्द, अपने और बच्चों वेफ पेट में भूख की आग जो थी।
ग्राहक आते रहे। वह मछलियां तौलती रही। भूखीं निगाहें गड़ती रहीं तेज अैर तेज। वह मन ही मन नामर्दों को गालियां देती रही।
विनिमय
आन्ध प्रदेश का एक कस्बा। दो परिवार थे। एक परिवार वेफ पास बकरियां अधिक थीं। एक परिवार वेफ पास लड़कियां अधिक थीं। एक वेफ लिए बकरियां बोझ। दूसरे वेफ लिए लड़कियां बोझ। बकरियों वेफ स्वामी ने सोचा, इन्हें खिलाने में बड़ा खर्च है, वुफछ को बेच दिया जाए। लड़कियों वेफ मां-बाप ने सोचा, सयानी होकर ब्याह का बोझ डालेंगी। चार में से एक को जो दस साल की है, बेच दिया जाए। जवानी की दहलीज पर है, अच्छी रकम हाथ लगेगी।
दोनों परिवारों में बात पट गई। विनिमय तय होगा। लड़की वेफ बदले चार बकरियां। चारा-घास चर कर बकरियां दूध देंगी या अच्छे दामों में यूं ही बिक जाएंगी। विनिमय हो गया। उधर से चार बकरियां आईं, इधर से लड़की चली गई। बकरी वाले परिवार ने लड़की को देखा गौर से। सोचा, बस दो-तीन साल की देर है। अच्छी कमाई उतरेगी। लड़की को बड़े प्यार से ले गए। असहाय लड़की, कातर दृष्टि से, आंसू लिए मां-बाप को देखती रह गई। मां-बाप भूरी-काली बकरियां देख प्रमुदित थे।

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