Wednesday, March 13, 2013

बलात्कारी और हत्यारे दम्पत्ति की रोंगटे खड़े कर देने वाली दास्तान

प्यार में बन गई पाप की गठरी
कारला होमोलका

पॉल बीर्नाडो और कारला होमोलका की बलात्कारी व हत्यारी जोड़ी टोरोन्टो की भोली-भाली लड़कियों को अपने जाल में पफंसाती। पॉल बलात्कार करने के बाद उनकी निर्मम हत्या कर देता। लड़कियों की कटी हुई लाशें झील में तैरती नजर आती...

 पहली ही नजर में कारला पॉल पर पिफदा हो गई थी। मिलना-जुलना बढ़ता गया और दूरियां नजदीकियों में बदल गईं। कारला का प्यार दिन पर दिन बढ़ता गया। पॉल की गहरी आंखें, गोरा रंग, आकर्षक चेहरा और अपनेपन से कारला कापफी प्रभावित थी। पॉल पेशे से करोड़पति एकाउंटेंट था। कारला पॉल के हर पल नजदीक रहना चाहती थी। इसका एक ही रास्ता था शादी। कारला ने अपनी इच्छा घरवालों को बता दी। चाय के बहाने से कारला के परिवार वालों ने पॉल को बुलाया और दोनों का उसी शाम रिश्ता भी तय हो गया। कारला के परिवार वाले उसकी पसन्द की दाद दे रहे थे। कारला पॉल को जान से ज्यादा चाहती थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया, कारला का प्यार गहरा होता गया। तभी अचानक पॉल ने अनैतिक मांग करनी शुरू कर दी। बात-बात पर कारला पर गुस्सा करना, बार-बार डांटना रोज की आदत बन गई थी। कई दिन तक तो कारला को उसके गुस्से का कारण मालूम नहीं हुआ। पर उस रात तो हद हो गई, जब पॉल ने बेझिझक बोल दिया, ‘‘कारला, मुझे तुम्हारी बहन के साथ सिपर्फ एक रात का समय चाहिए। मैं जानता हूं कि मेरे साथ तुम्हारी दूसरी शादी होगी। मैं पहले प्यार के लिए तरस गया हूं।’’
पॉल बीर्नाडो और कारला होमोलका की बलात्कारी व हत्यारी जोड़ी


कारला भला कैसे बर्दाश्त करती कि उसकी बहन उसका बिस्तर बांटे। कारला को समझाना कठिन था, पर किसी तरह पॉल ने कापफी कोशिशों के बाद उसे समझा लिया। अब क्या था। कारला पॉल के प्यार में बेबस थी और प्यार की खातिर अपनी ही बहन की इज्जत की कुर्बानी देने को तैयार थी। कारला वेटरनरी क्लीनिक में नौकरी करती थी, इसलिए उसे दवाइयों की कापफी जानकारी थी। हर समय वह यही सोच में लगी रहती कि कैसे बहला-पुफसलाकर अपनी बहन को प्रेमी के सामने पेश करे। अंत में कारला ने तय कर लिया कि अपनी बहन टैमी को बेहोश करने के लिए हैलिकान का इस्तेमाल करेगी। यहीं से उसका नैतिक पतन शुरू हो गया। वह 23 दिसम्बर की रात थी। घर में देर रात तक पार्टी चलती रही। कारला मन ही मन में अपने पति को खुश करने की जुगत में लगी थी। एक तरपफ घर में त्योहार की चमक-दमक थी, दूसरी तरपफ कारला अपने प्रेमी को क्रिसमस का तोहपफा देने की तैयारी में थी। उसने विशेष तौर पर अपनी बहन टैमी को पार्टी में बुलाया था।

प्यार भी इतना अंधा नहीं होना चाहिए कि उसे पाने के लिए इतना घृणित और अमानवीय कार्य करने को मजबूर होना पड़े। कारला ने अपनी सगी बहन को ही प्यार की हवस चढ़ा दिया था। अब चाहे वह कितना भी पछता ले, पर लौटा वक्त वापस नहीं आयेगा। उसके अपराध के नासुर उसे जिन्दगी भर टीस देते रहेंगे...

पार्टी के दौरान हर तरपफ चहल-पहल थी। कारला ने एक कोल्ड ड्रिंक में नशीली दवा मिला कर टैमी को पिलानी शुरू कर दी। दवाई का असर जल्दी ही हो गया। टैमी को चक्कर आने लगे तो वो कमरे में जाकर आराम करने लगी। कुछ ही देर बाद टैमी बेहोश पड़ी थी। परिवार के सभी सदस्य सोने चले गये थे। पॉल कारला के साथ उस कमरे में गया, जहां टैमी बेहोश पड़ी थी। वहां जाते ही उसने अपना काम शुरू कर दिया।
टैमी पलंग पर चित्त अवस्था में लेटी थी। उसके कम कपड़े भी अस्त-व्यस्त थे। पाल अपनी पैंट की बेल्ट खोलते हुए कारला बोला, ‘‘कारला, मैं तुम्हारे इस तोहपफे से बेहद खुश हूं।’’
कारला जल्दी-जल्दी टैमी के कपड़े उतारने लगी। बेलिबास टैमी के जिस्म को देख पॉल खुद पर काबू नहीं रख पाया। उसने अपने शरीर से सारे कपड़े अलग कर दिये। अगले ही क्षण उसका नंगा बदन टैमी की टांगों के बीच पहुंच गया। वासना का नशा अब पॉल की आंखों में तैर रहा था। टैमी बेसुध और लाचार पॉल के नीचे दबी पड़ी रही।
धीरे-धीरे पॉल उसके खूबसूरत और नाजुक शरीर को रौंदने लगा। टैमी की हालत की परवाह किये बिना पॉल उसकी जवानी से खेलता रहा। पिफर जोश खत्म होने के बाद वह झटपट उठ गया।
पॉल का काम खत्म होने तक कारला टैमी का मुंह बंद किये रही। कारला वहीं पर गुमसुम सी खड़ी अपनी आंखों के सामने अपनी बहन की जवानी को अपने पति हाथों लुटते हुए देखती रही और वीडियो रिकार्डिंग करती रही। पॉल अपनी इच्छा पूरी कर वहां से चला गया। देखते ही देखते टैमी को जोर-जोर से झटके आने लगे। ऐसा देख कर कारला ने पफटापफट टैमी को कपड़े पहनाये। कारला ने अपना काम बड़ी चतुराई से किया। ड्रग्स और कैमरा छुपा कर एम्बुलेंस बुलाने के लिए पफोन करने लगी। कारला के माता-पिता को जरा भी भनक नहीं हुई कि टैमी की मौत का कारण कोल्ड ड्रिंक में मिलाई हुई हैलोकान की अधिक डोज थी। और उसके साथ बेहोशी की हालत में बलात्कार भी किया गया था।
सभी को यही लगा कि टैमी की मौत अधिक उल्टी आने से दम घुटने की वजह से हुई है, न की हैलिकान की ज्यादा मात्रा पिलाने से। चुपचाप कारला और पॉल बलात्कार व हत्या के जुर्म से बच गये। कारला तो पॉल के प्यार में अभी भी पागल थी। हर समय पॉल की इच्छा पूरी करने में लगी रहती। वह अलग-अलग तरह के पोज भी करके पॉल की ख्वाहिश को पूरा करने में असमर्थ रही। अब पॉल ने पहले की तरह पिफर से कहना शुरू कर दिया, ‘‘मुझे पहले प्यार की तमन्ना है। शरीर की आग बुझाने के लिए अब एक नई लड़की की तलाश है।’’
पॉल ने कारला पर ही टैमी को मारने का आरोप लगाया कि उसी ने गलत डोज पिलाई थी। उसने चेतावनी भी दी कि अब किसी को ऐसी डोज देकर गलती दोबारा न दोहराए। उसने कालरा से पिफर किसी जवान लड़की को पफंसाने के लिए कहा। मगर कालरा अब यह सब करने से कतराने लगी। मगर उसकी एक न चली। कापफी देर तक इनकार करने के बाद कारला मान गई। उसकी अगली शिकार थी जैन, जो कि टैमी की हमशक्ल थी और उसका कापफी कुछ टैमी से मिलता था। जैसे उम्र, रंग, कद व बाल। जैन से जान पहचान बढ़ाने के बाद कारला ने उसे अपने नये मकान के मुहूर्त पर अपने घर बुलाया। उसी शाम कारला जैन को डिनर कराने के लिए बाहर ले गई। वहीं धीरे-धीरे उसने कोल्ड ड्रिंक के अन्दर हेलोकान की गोलियां मिलानी शुरु कर दीं। जिसका असर घर पहुंचने तक हो गया। घर पहुंचने पर जैन गहरी नींद में थी।
आधी रात को जब जैन बिल्कुल बेहोश थी, कारला ने पॉल को वेडिंग गिफ्रट के लिए बुलाया। जैन को देखकर पॉल बहुत खुश था कि जैन का चेहरा व जिस्म टैमी से मिलता था। पर एक डर उसके मन में था कि कहीं पिफर से कारला वही गलती न दोहरा दे, जो टैमी के समय हुई थी। हैलोकान की अधिक डोज न पिला दे। पर कारल ने तसल्ली दी, ‘‘पॉल, तुम बेपिफक्र रहो। मैंने डोज का ध्यान रखा है।’’
जल्दी से कारला ने जैन के कपड़े उतारने शुरु कर दिये। पॉल की प्यासी आंखें जैन के गोरे जिस्म पर जमी थीं, जो अब अनावृत था। जैन न तो दया की भीख के लिए गिड़गिड़ाई और न ही विरोध किया। बस बेहोश बिस्तर पर पड़ी रही। पॉल एक ही झटके में जैन पर सवार हो गया। अपने होंठोें को उसकी छातियों के बीच रगड़ते हुए कारला से बोला, ‘‘मेरा ऐसे ही जिस्म को पाने का सपना था, जो तुमने पूरा कर दिया। ओह मुझे इस हसीन पल का कब से इंतजार था... ओह... ओह।’’ पॉल जैन के गोरे जिस्म को चूमते हुए बोला। पिफर वह बेसुध पड़ी जैन के जिस्म से खेलने लगा।
कारला के भीतर नपफरत का सैलाब उमड़ रहा था, पिफर भी वह अपनी आंतरिक भावनाओं को छुपाते हुए बोली, ‘‘मुझे और कितनी देर प्यासी रखोगे?’’
कुछ ही क्षणों में झटके खाकर पॉल ढेर हो गया। पिफर हटते हुए बोला, ‘‘मुझे ऐसा आनन्द पहले कभी नहीं आया।’’
उसे रोज एक नया जिस्म चाहिए था, जिससे कि वो अपने शरीर की आग बुझा सके।
पॉल पन्द्रह वर्षीया जैन का रेप करने में सपफल रहा। कारला बिस्तर सापफ करने लगी। सुबह जैन को होश आया। पर वो रात के हादसे से अनजान थी। कारला को जैन ने बताया, ‘‘पेट में दर्द हो रहा था। शायद कल रात बाहर का खाना खाने की वजह से हुआ है।’’
कारला चुप रही।
पॉल कारला के तोहपफे से खुश होकर कारला से शादी के लिए तैयार हो गया। टैमी और जैन के साथ अपनी प्यास शांत करने के बाद कारला में पॉल की दिलचस्पी कम हो गई थी। शेर के मुंह में खून लग गया था। मगर उसकी यह ख्वाहिश सिपर्फ कारला ही पूरी कर सकती थी।
मन ही मन अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिए वह कारला से शादी करने की तैयारियों में जुट गया। राजसी तरीके से दो सपफेद घोड़ों के रथ पर ऐतिहासिक चर्च नीगारा लेक के किनारे बने हाल के अन्दर दुल्हन बनी कारला ने प्रवेश किया। शादी में शराब, कबाब और शबाब का प्रबंध किया गया था। कारला की वेडिंग डेªस से लेकर उसके हेयर स्टाइल का चुनाव पॉल ने ही किया। वैडिंग भोजन सूची से लेकर वेडिंग वेन्यू पॉल की पसंद का था। शादी में पॉल ने पैसे दिल खोल कर लगाये और कारला की इच्छा पूरी करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। कारला को एक लाख की वेडिंग डेªस गिफ्रट में देकर पॉल कापफी दूर की सोच रहा था। कारला की खुशी का पूरा ध्यान रख रहा था, जिसमें उसका अपना स्वार्थ छिपा हुआ था।
बचपन से पॉल का खिंचाव लड़कियों की तरपफ था। उसका दिमाग भी कापफी रोमांटिक था। जवानी में कदम रखते ही उसने उस पर अमल करना शुरू कर दिया। पॉल ने टोरोन्टो विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन के दौरान ही अलग-अलग लड़कियों के साथ डेटिंग पर जाना शुरू कर दिया था। कभी-कभी तो उसे डेट पर ले जाकर मारने की धुन सवार हो जाती थी। उन्हें तंग करके वो बेहद खुश होता था। वहीं 18 वर्ष की आयु से ही पॉल ने यू.एस. कनेडियन बार्डर से सिगरेट की तस्करी शुरू कर दी थी।
ग्रेजुएशन करने के बाद पॉल ने प्राइस वाटर-हाउफस में एकाउफंटेंट की नौकरी शुरू कर दी। वहां भी गर्लप्रफेंड्स का शोषण करना जारी रहा। 1987 में पॉल की अपनी सपनों की रानी से मुलाकात हुई। और जल्द ही कालरा को अपने प्यार के जाल में पफंसा लिया। उसने कारला से अपनी सभी शर्तें मंजूर करने के लिए कहा। कारला को पॉल की सभी शर्तें मंजूर थीं। दोनों ने मिलते ही शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए। कारला के मिलते ही पॉल ने अपना काम शुरू कर दिया। अब टोरोन्टो शहर से 14-18 वर्ष की लड़कियां लापता होनी शुरू हो गईं।
अब पॉल अपना शिकार नगर की बाहरी बस्तियों में ढूंढ़ने लगा। हर लड़की को पकड़ने का एक ही तरीका था। जैसे ही लड़की सामने से आती हुई बस से उतरती, पॉल धक्का मार कर उसे गिरा देता। पिफर झाड़ियों के बीचोंबीच घसीटता हुआ उसे सुनसान इलाके में ले जाता। वहां जाकर मन चाहे तरीकों से उसकी आबरू लूटता। अपनी हवस पूरी करने के बाद उसे वहीं छोड़ देता। सन 1989 में पॉल द्वारा बलात्कार का शिकार हुई लड़कियों की गिनती ग्यारह से उफपर हो गई। तब टोरोन्टो पुलिस ने लड़कियों के बयान से अपराधी का चित्रा बनाना शुरू किया। अधिकतर लड़कियों ने बताया कि बलात्कारी के साथ एक लड़की भी थी, जो लड़कियां पकड़ने में उसकी मदद कर रही थी।
डिटेक्टिव कोनस्टेबल स्टीव इरविन को टोरोन्टो मेट्रोपोलिटन पुलिस ने बलात्कारी को पकड़ने के लिए चुना। 1 मई, 1990 में सरकार ने 150,000 डॉलर का इनाम भी घोषित किया। डिटेक्टिव स्टीव ने डी.एन.ए. टेस्टों के जरिए बलात्कार का शिकार हुई लड़कियों की जांच की। रक्त जांच करते करते कई नमूने पॉल से मेल खाते थे।
परंतु पॉल के खेल जारी रहे। सिगरेट की तस्करी करने के लिए पॉल को चोरी की लाइसेंस प्लेटों की जरूरत रहती थी। जिससे उसे अमेरिकन-कनेडियन बार्डर पार करने में आसानी रहती थी। लाइसेंस प्लेटें ढूंढ़ते हुए उसकी मुलाकात लीसलि माहापफी से हुई।
14 जून, 1991 की शाम लीसलि अपनी सहेली से मिल कर घर की तरपफ लौट रही थी। रास्ते में लीसलि को पैदल चलते देखकर पॉल ने अपनी कार रोक दी। पिफर चाकू दिखा कर जबरदस्ती लीसलि को अपनी कार में धकेल लिया।
वहां से वह घर पहुंचा। घर पहुंचते ही उसने कारला को जगाया। तब दोनों ने 14 वर्षीया लीसलि को कमरे में बन्द कर दिया। पॉल ने लीसलि को बिस्तर पर पटक दिया और कारला को आदेश किया कि वह कैमरा पकड़ कर खड़ी रहे। लीसलि के कपड़े पफाड़ कर पॉल अपने कपड़े उतारने लगा।
‘‘चले जाओ यहां से।’’ लीसलि नपफरत से चिल्लाकर बोली, ‘‘मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती।’’
पलक झपकते ही पॉल ने एक बड़ा सा रूमाल निकाला और लीसलि का मुंह कसकर बांध दिया, ताकि वह आवाज न निकाल सके। दबे हुए स्वर में पॉल बोला, ‘‘थोड़ा इंतजार करो, मेरी जान।’’
पॉल अब लीसलि के सामने खड़ा था। उस खतरनाक आदमी का ध्यान अब लीसलि के अनछुए निर्वस्त्रा बदन की तरपफ था। लीसलि को अहसास हो गया था कि इस जानवर की पाशविक ताकत के आगे वह इतनी लाचार और बेबस है कि अपने बचाव में कुछ भी नहीं कर पाएगी। पिफर भी उसने भागने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रही।
पॉल अब लीसलि के जिस्म पर बोझ बना हुआ था। लीसलि उसके बोझ के नीचे दबी मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि कोई चमत्कार हो जाये, पर चमत्कार के बजाय कुछ और ही हुआ। लीसलि के खूबसूरत और नाजुक शरीर को पॉल रौंदने लगा। उसे बुरी तरह से रौंद डाला। वह बस रहम की भीख मांगती रह गई। पॉल की हैवानियत की ताकत के चलते लीसलि में अब कोई विद्रोह करने की ताकत नहीं रही थी। अगले ही पल लीसलि के मुख से एक चीख निकली। उसकी सांस थम चुकी थी। पॉल करवट बदल कर पलंग से नीचे उतर गया। लीसलि के जिस्म में कोई हरकत नहीं थी। उसका जिस्म ठंडा पड़ चुका था। पिफर पॉल ने उसके शरीर के टुकड़े कर उन्हें ठिकाने लगा दिये।
29 जून, 1991 की शाम एक पति-पत्नी जिब्सन झील के किनारे टहलने के लिए निकले। उन्होंने पाया कि लकड़ी के पफट्टों के साथ किसी अनजान लड़की की लाश लटकी हुई तैर रही थी। कुछ देर में आस-पास के मछुआरे भी इकट्ठा हो गये। गौर से देखा तो लड़की की कटी हुई टांगें थीं। तभी पुलिस भी कारवाई के लिए आ गई। जांच के बाद पांच अलग-अलग लकड़ी के पफट्टों में से कटे हुए हाथ पैर मिले। कारवाई के दौरान झील के बीचोंबीच लीसलि का जबड़ा मिला, जिससे उसके जिस्म की पहचान हुई।
लीसलि के मर्डर के बाद पॉल को अगले शिकार की तलाश थी। कई दिनों तक पॉल कारला के पीछे पड़ा रहा कि वह जैन को एक बार पिफर से बुला कर लाये। कारला पॉल के प्यार में अंधी थी। अपनी शादीशुदा जिन्दगी बचाने के लिए कारला नई-नई लड़कियों को बहला-पुफसला कर पति को खुश रखने के लिए लेकर आती। 30 नवम्बर, 1991 को 14 वर्षीया टैरी एनडरसन की लाश डलहौजी पोर्ट पर मिली। डॉक्टरी परीक्षण के बाद भी हत्यारे का सुराग नहीं मिला। इसका भी बलात्कार के बाद कत्ल पॉल ने किया था।
16 अप्रैल, 1992 को आकर्षक युवती क्रीस्टीन प्रफेंच चर्च की पार्किंग से लापता हो गई। दरअसल कारला बातों-बातों में उसे अपनी कार के नजदीक ले गई। कार के पास पहुंचते ही पॉल ने जोर-जबरदस्ती करके कार में धकेल दिया। अपने घर ले जाकर पॉल ने उसका भी वही हाल किया, जो लीसलि का किया था। क्रीस्टीन को मारना जरूरी हो गया था, क्योंकि वह सीधा पुलिस स्टेशन जाने की धमकी देने लगी थी। बलात्कार करने के बाद क्रीस्टीन के जिस्म के टुकड़े-टुकड़े करके घर के बाहर मिट्टी खोद कर गाड़ दिये।
पॉल बीर्नाडो और कारला की बलात्कारी हत्यारी जोड़ी सेंट केथरिन ने आजाद घूम रही थी। सूपरिटेन्डेंट विन्स बीवान को लीसलि महापफी केस की जिम्मेदारी सौंपी गई। ओंतारियो सरकार ने क्रीस्टीन प्रफेंच के हत्यारे की खोज में ग्रीन रिबन टास्क पफोर्स का गठन किया। दूसरी तरपफ टोरोन्टो मेट्रोपोलिटन के डिटेक्टिव कोनस्टेबल स्टीवू इरविन ने पॉल के खिलापफ सभी सबूत इकट्ठे कर लिये। सभी लाशों के रक्त नमूने पॉल के नमूनों से मेल खाते थे। उन्हें संतुष्टि थी कि अब जल्द ही पॉल उसकी गिरफ्रत में होगा।
जैसे ही स्टीव इरविन पुलिस स्टेशन पहुंचे तो क्या देखते हैं कि थाने में कारला ने पॉल के खिलापफ रिपोर्ट दर्ज कराई है। टोरोन्टो पुलिस और ग्रीन रिबन टास्क पफोर्स की जांच टीम ने कारला से चार घंटों तक पूछताछ की। पूछने पर कारला ने बताया कि उसके पति ने उसे बुरी तरह से मारा था, जिससे उसकी आंखों के पास काले निशान पड़ गये।
कारला के माता-पिता से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वह उसे अपने घर ले गये। पुलिस को पहले ही पॉल पर शक था। एक के बाद एक सबूत पॉल के खिलापफ जा रहे थे। अन्त में पफरवरी, 1993 में पॉल को गिरफ्रतार कर लिया गया। कारला ने कबूल किया कि उसका पति बलात्कारी व हत्यारा है।
छानबीन करने पर कारला के घर से कई लड़कियों से बलात्कार की वीडियो रिकार्डिंग मिली। अटार्नी जनरल जार्ज वाकर ने बताया कि मर्डर व रेप के जुर्म में कारला का भी हाथ है। यदि वह सच बताये तो उसे कम से कम 12 साल की सजा होगी, नहीं तो उम्र कैद।
कारला पहले ही पॉल के जुल्मों से सहमी हुई थी। उसने बताया, ‘‘मैंने पॉल के कहने पर लड़कियों को पफंसाया। ऐसा नहीं करने पर उसने मुझे छोड़ कर जाने की धमकी दी थी।’’
पॉल बीर्नाडो के मुकदमे की कारवाई जज पेट्रिक लीसाजे के कोर्ट रूम में मई, 1995 में शुरू की गई। मौजूदा कनेडियन कानून के मुताबिक पॉल को 25 वर्ष की कैद की सजा हुई। पॉल बीर्नाडो को दी निर्दोषों की हत्या, दो अपहरण, दो सेक्सुअल प्रहार, मृत शरीर से बलात्कार करने और सिलसिलेवार रेप करने के लिए न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया गया।
कारला को पॉल बीर्नाडो के साथ मिलकर अपराध करने के जुर्म में 12 वर्ष की सजा हुई। जेल में रहते सन् 2000 में कारला की दिमाग हालत ठीक नहीं रही। करेक्शनल सर्विस कनाडा की जुसी मेकलांग ने कारला को जोलेटी जेल से सासकाटून रिजनल मनोचिकित्सक सेंटर में ट्रांसपफर करने का आग्रह किया। सासकाटून सेंटर चारों तरपफ से इलेक्ट्रानिक तारों से घिरा हुआ है। छोटे-छोटे कमरों में ही बाथरूम और सींक लगे हुए हैं। बिस्तर जमीन पर ही बनाये गये हैं।
कारला जुलाई, 2005 को कनेडियन जेल से सजा पूरी करके रिहा हुई। पर कनेडियन सरकार अभी भी सोच में है कि क्या कारला को छोड़ देना चाहिए या नहीं? जेल से रिहा करने से पहले जज जीन बीयुलियु ने कारला की पांच मनोचिकित्सकों से जांच कराई कि क्या कारला का खुला छोड़ना चाहिए या नहीं। पिफलहाल कारला ने पॉल से तलाक ले लिया है और अपना नाम कारला से बदल कर टीले रख लिया है। कारला बताती है, ‘‘मैं आज भी अपनी बहन टैमी को याद करके बहुत रोती हूं। मैं कभी भी अपने आप को मापफ नहीं कर सकती।’’

महिलाओं में रक्त की कमी

महिलाओं में रक्त की कमी

-डॉ. विनोद गुप्ता
भारत में रक्त की कमी एक व्यापक रोग है और इसकी सर्वाध्कि चपेट में आने वाली लड़कियों और महिलाएं हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक 40 प्रतिशत लड़कियां और 80 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं खून की कमी का शिकार होती हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार 25 से 44 वर्ष के आयु समूह में 67.2 प्रतिशत महिलाओं में यह स्थिति पाई जाती है।
लड़कियों में एनीमिया का प्रतिशत अध्कि होता है। एक प्रमुख कारण उन्हें दोयम दर्ज का मानना हैं। लड़कियों की परवरिश लड़कों के समान नहीं की जाती है और न ही उनके पोषण पर ध्यान दिया जाता है। यही कारण है कि पौष्टिक आहार के अभाव में लड़कियों में रक्त की कमी पहले से ही बनी रहती है और गर्भाधरण से प्रसव होने के बीच वह चरम सीमा पर पहुंच जाती है।
लक्षण
- जल्दी थक जाना, चक्कर आना, कमजोरी महसूस होना, भूख न लगना, कब्ज बनी रहना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, हाथ पैरों में झनझनाहट, वजन में गिरावट, सिर में भारीपन या दर्द, सांस पफूलना, हृदय की ध्ड़कन बढ़ना, पैरों में सूजन, निस्तेज आंखें, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, त्वचा में पीलापन, नाखूनों का टूटना।
खून की कमी का सबसे बड़ा कारण शरीर का रक्त किसी भी कारण से बह जाना है। किसी दुर्घटना या चोट की वजह से कापफी रक्त बह निकलने से यह स्थिति निर्मित हो सकती है। शरीर में रक्त की कमी तभी हो सकती है, जब शरीर में त्राुटिपूर्ण रक्त हो।
कोशिकाओं के नष्ट होने की गति के अध्कि होने की वजह से भी रक्ताल्पता हो जाती है। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त परिसंचरण में प्रतिदिन 45 हजार माइक्रो लीटर लाल कोशिकाएं निकल जाती है, लेकिन इनके स्थान पर नई कोशिकाएं जन्म ले लेती है, लेकिन जब रक्त परिसंचरण के दौरान निकलने वाली कोशिकाओं की तुलना में नई कोशिकाओं की संख्या कम हो, तो सारा मामला गड़बड़ा जाता है। जब हड्डी की मज्जा कोशिकाओं को रक्त परिसंचरण में पहुंचाने हेतु कमजोर हो जाए अथवा निष्प्रभावी हो जाएं तो इससे लाल कोशिकाओं का उत्पादन घट जाता है। परिणामस्वरूप शरीर में खून की कमी की स्थिति निर्मित हो जाती है। जब निरंतर रूप से लाल कोशिकाएं नष्ट होती रहें तो इसे हेमोलेटिव एनीमिया कहते हैं। ये स्थिति कई कारणों से निर्मित हो सकती है, जिनमें विष खा लेना, किसी चीज से एलर्जी होना, एक विशेष किस्म का मलेरिया होना और गलत भोजन कर लेना शामिल है। कई बार तो व्यक्ति कुछ विशेष किस्म के एनीमिया से पीड़ित हो जाता है। ऐसा तब होता जब लाल कोशिकाएं असामान्य आकार की हो या उनमें हिमोग्लोबीन की मात्रा बहुत कम हो।
कारण-
मासिक के दौरान अत्याध्कि रक्तस्राव, मासिक र्ध्म जल्दी-जल्दी होना, मासिक र्ध्म का अध्कि दिनों तक चलना, गर्भावस्था, भोजन में लौह तत्व की कमी, बार-बार दस्त लगना, बवासीर की शिकायत, पेट में कीड़े लगना, एलोपैथिक दवाओं का कुप्रभाव, बार-बार नकसीर पफूटना, कैंसर, कुपोषण, कोई दुर्घटना या चोट, त्राुटिकोर्ण रक्त, हर साल बच्चे पैदा करना
जांच एवं परीक्षण-
रक्त में हीमोग्लोबिन की जांच, मल में कीड़ों की जांच, पेट का एक्स-रे, आंतों की एंडोस्कोपी, रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या, हेमाटोक्रिट की सांद्रता।
कोई भी व्यक्ति खून की कमी का शिकार यानी एनीमिक या नहीं इसका पता लगाने के लिए हिमोग्लोबिन की जांच तो की ही जाती है, साथ ही रक्त कोशिकाओं की संख्या और हेमाटोक्रिट की सांद्रता का पता भी लगाया जाता है। यदि जांच में इन तीनों चीजों का स्तर औसत से कम निकलता है, तो यह घोषित कर दिया जाता है कि वह व्यक्ति रक्ताल्पता का शिकार है।
कोई महिला एनिमिक यानी खून की कमी का शिकार है या नहीं इसका सुनिश्चित तौर पर निर्धरण तो खून की जांच से ही किया जा सकता है, लेकिन कुछ लक्षण भी इस ओर इंगित करते हैं।
खून की कमी को साधरण सी बात मत समझिए क्योंकि यह घातक और जानलेवा भी हो सकती है। विशेषकर यदि गर्भवती महिला इसकी शिकार है तो प्रसव के दौरान उसकी मृत्यु हो सकती है। यही नहीं, उसका शिशु भी मृत अवस्था में पैदा हो सकता है। पहले से ही खून की कमी से पीड़ित महिला को यदि प्रसव के दौरान असाधरण रूप से रक्तस्राव हो जाए तो उसे बचा पाना मुश्किल हो जाता है।
परिणाम-
गर्भधरण में कठिनाई, कम वजन वाले शिशु पैदा होना, नवजात शिशु की आयु की आशंका, प्रतिरोध्क क्षमता में कमी, प्रसव के दौरान मौत।
उपचार-
भोजन में लौह तत्व की बढ़ोतरी, डॉक्टर की सलाह से आयरन एवं पफोलिक एसिड की गालियां का सेवन, खूनी बवासरी एवं नकसीर की रोकथाम से बचें, मासिक र्ध्म के दौरान अध्कि रक्तस्राव की रोकथाम,
बचाव-
एनीमिया से बचने के लिए यदि महिलाएं कुछ बातों का ध्यान रखें तो उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
एनीमिया की रोकथाम के लिए उन कारणों का नाश करना होगा, जो इसके लिए उत्तरदायी है। पेट में कीड़ों से बचाव हेतु स्वच्छता एवं सपफाई पर ध्यान दे। नाखून सदैव काटे हुए व सापफ होने चाहिए। शौच के बाद साबुन या राख से ठीक से हाथ धेएं।
जिन बीमारियों की वजह से रक्तस्राव हो, उन्हें गंभीरता से लें। खूनी बवासीर, नकसीर आदि का उचित उपचार कराएं। अनियंत्रित स्राव की स्थिति में चिकित्सक को बताना चाहिए तथा पूरा कोर्स करना चाहिए। मलेरिया से बचने हेतु मच्छरदानी लगाकर सोएं तथा मच्छरों से बचाने वाली क्रीम और अगरबत्ती का इस्तेमाल करें।
सरकार गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों को एनीमिया से बचाव हेतु आवश्यक मात्रा में लौह तत्व तथा पफोलिक एसिड की गोलियां वितरित करती है। यह निःशुल्क वितरण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, परिवार कल्याण केंद्रों, बालवाड़ियों तथा सरकारी अस्पतालों द्वारा किया जाता है।
जिन्हें खून की कमी हो, उन्हें दवाओं के साथ-साथ अपने भोजन या खान-पान पर भी ध्यान देना चाहिए। दवा की एक गोली या कैप्सूल खाने मात्रा से ही खून की कमी दूर नहीं हो जाएगी। इसलिए ऐसा भोजन करे जो लौह तत्वों से परिपूर्ण हो। हरी और पत्तेदार सब्जियों का प्रतिदिन सेवन करें। इसमें मेध्ी, पालक, बथुआ, मूली के पत्ते आदि की सब्जी लोहे की कड़ाही में बनाकर सेवन करना बहुत लाभदायक रहता है। इसके लिए टमाटर, पत्तागोभी, गाजर आदि का सेवन सलाद के रूप में करना चाहिए।
कुछ पफल लौह से भरपूर होते हैं। जैसे सेब, नाशपाती, आम, केला, पपीता, चीकू आदि। इन पफलों का सेवन करते रहना चाहिए। गाजर का रस पीना अत्यंत लाभदायक है। अनाज में दालों, मूंग, तिल और बाजरा आदि का सेवन करना चाहिए। गेहूं और चावल रक्त निर्माण में अध्कि कारगर नहीं होते।
शरीर में रक्त बनाने में लौह तत्व के अलावा प्रोटीन, विटामिन और खनिजों की आवश्यक होती है। इसलिए हमारे भोजन में प्रोटीन, विटामिन बी-12 और विटामिन ‘सी’ भी शामिल होना चाहिए। विटामिन-सी लौह तत्व को शरीर में मददगार होता है। लिहाजा इसका सेवन खूब करें। स




लाइलाज नहीं है ब्रेस्ट कैंसर




लाइलाज नहीं है ब्रेस्ट कैंसर


 

- पहली स्टेज में कैंसर का पता लगने पर सर्जरी की सपफलता 80 से 97 होती है। इसमें कीमोथैरेपी नहीं देनी पड़ती है।

-दूसरी स्टेज में सर्जरी की सपफलता 40 से 76 प्रतिशत रहती है।

-तीसरी स्टेज में 10 से 20 प्रतिशत

अतः हर महिला के लिए जरूरी है कि यदि उनकी बहन, मौसी या मां को ब्रेस्ट कैंसर रहा हो तो अपनी बेटी को तीस साल की उम्र ही डॉक्टर से क्लीनिकल एक्जामिनेशन कराने को कहें। ताकि कैंसर होने पर भी ब्रेस्ट को बचाया जा सके। 

ब्रेस्ट कैंसर की बात करें तो महिलाओं में पायी जाने वाली यह आम बीमारी है। हमारे देश में हर दस मिनट में एक महिला को ब्रेस्ट कैंसर के बारे में पता चलता है और भारतीय बीस महिलाओं में से एक को अपने जीवन काल में ब्रेस्ट कैंसर की त्रासदी झेलनी पड़ती है। सबसे अध्कि दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि हर तीस मिनट में एक महिला की मौत ब्रेस्ट कैंसर के कारण हो जाती है। अतः जरूरी है कि महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जागरूक जाने ताकि यदि यह बीमारी हो ही जाये तो पहली ही स्टेज में पकड़ में आ सके और समय रहते उसका इलाज हो सके। ब्रेस्ट कैंसर क्या है? इसके लक्षण क्या होते हैं? तथा इलाज क्या है? यह सब बता रहे हैं वर्तमान में नोएडा के पफोर्टीज अस्पताल से जुड़े व इससे पूर्व र्ध्मशिला कैंसर हॉस्पिटल में ओंकोलॉजी विभाग ने विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ सलाहकार रह चुके डा. मलय नन्दी।
ब्रेस्ट कैंसर क्या है?
सीध्े शब्दों में कहा जाये तो सेल्स में आया बदलाव ही कैंसर है। जब हमारे शरीर के किसी सेल में एब्नार्मिलिटी आ जाती है और वह अनियंत्रित रूप से बढ़ता ही चला जाती है और वह अनियंत्रित रूप से बढ़ता ही चला जाता है तो कैंसर कहलाता है। ब्रेस्ट कैंसर के मामले में यह अनियंत्रित सेल ब्रेस्ट में ट्यूमर या गांठ का रूप ले लेते हैं। ज्यादातर मामलों में इन गांठों में दर्द नहीं होता अतः रोग का पता जल्दी नहीं लग पाता। ये गांठें आस-पास के उफतकों को भी कैंसरग्रस्त कर देती हैं। जिससे स्तन में जख्म, आकार में वृ(ि, स्तनाग्रों से स्तर या तरल द्रव का स्त्राव शुरू हो जाता है। अंत में ब्रेस्ट को निकालना ही एकमात्रा उपाय बचता है।

ब्रेस्ट कैंसर होने के कारण-
ऐसी महिलाएं जिनके पीरियड्स जल्दी शुरू हो जाती हैं और मेनोपौज देर से होता है यानि प्रजनन लाइपफ जितनी ज्यादा होती है उतनी ही कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा जिन महिलाओं की शादी देर से होती है व बच्चे ज्यादा उम्र में पैदा होते है, जो महिलाएं बच्चों को ब्रेस्ट पफीडिंग नहीं भरती या ऐसी महिलाएं जिनके बच्चे नहीं है उनके स्तन कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। पफास्ट पफूड, पफैटी डाइट, खराब लाइपफ स्टाइल, मोटापा भी इसके मुख्य कारणों से एक है। इसके अलावा ऐसी महिलाओं को जिनकी मां या मौसी को ब्रेस्ट कैंसर हो उनकी भी अन्य महिलाओं को अपेक्षा छह प्रतिशत अध्कि संभावना रहती है ब्रेस्ट कैंसर होने की।

ब्रेस्ट कैंसर के मुख्य कारण-
1. निप्पल से स्तर पर काले अथवा भूरे रंग का डिस्चार्ज शुरू हो जाये।
2. निप्पल की आकृति में बदलाव यानि अंदर की तरपफ घसने लगे।
3. निप्पल के किनारे सख्त हो जाये।
4. स्तन में कड़ापन या छिटकती हुई सी गां महसूस हो।
5. स्तन में दर्द रहित गांठ महसूस हो या लगातार दर्द बना रहे।
6. बगलों से निकट सूजन आ जाये।

जांच कब करें-
आजकल कम उम्र में भी स्तन कैंसर हो रहा है। अतः इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं अपने स्तनों की जांच हर महीने स्वयं जरूर करें। जांच का सही तरीका डाक्टर से पूछ लेना चाहिए और यह जांच बीस वर्ष की उम्र से शुरू कर देनी चाहिए। वैसे जांच करने का सही तरीका पीरियड शुरू होने के एक सप्ताह बाद करें। यदि माहवारी अनियमित हो या बंद हो चुकी हो तो उस अवस्था में हर महीने का कोई एक दिन निश्चित कर ले और जांच करें। इसके अलावा समय-समय पर डॉक्टर से भी एक्जापिनेशन करायें।

इलाज-
डॉ. मलय नंदी कहते हैं कि जब कोई महिला स्तन संबंध्ी समस्या को लेकर आती है तो चिकित्सक सबसे पहले स्तनों का विध्वित परीक्षण करके यह देखते हैं कि क्या वाकई उसमें कुछ असामान्य बात है? पिफर कुछ टेस्ट किये जाते है जैसे मैमोग्रापफी, अल्ट्रासाउंड, बायोप्सी आदि।
मैमोग्रापफी-
यह स्पेशल एक्स-रे है जो खास तकनीक द्वारा किया जाता है। इसमें कम रेडिएशन द्वारा विभिन्न कोणों से एक्स-रे लिया जाता है। पर मैमोग्रापफी तीस साल से अध्कि उम्र पर ही की जाती है। चालीस साल की उम्र के बाद हर दूसरे साल व पचास साल के बाद हर साल ऐसी महिलाओं को मैमोग्रापफी द्वारा जांच जरूर करना चाहिए। जिनकी मां, मौसी या बहन को ब्रेस्ट कैंसर रहा हो। वैसे पैंतालिस साल के बाद हर महिला को मैमोग्रापफी अवश्य करा लेनी चाहिए।

बायोप्सी-यह कैंसर का पता लगाने की महत्वपूर्ण विध् िहै क्योंकि जरूरी नहीं कि हर गांठ कैंसर हो। गांठ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है एक तो वह जो कैंसर वाली नहीं होती इन्हें बिनाइन ट्यूमर कहते हैं। दूसरे ऐसी गांठ जो कैंसरग्रस्त होती है। इन्हें ‘मौलिग्नेट ट्यूमर’ कहते हैं। इस विध् िसे छोटे से आप्रेशन द्वारा गांठ में से एक छोटा-सा टुकड़ा निकाला जाता है और उसकी जांच की जाती है। बायोप्सी करने के बाद ही यह तय हो पाता है कि गांठ कैंसर ग्रस्त है या नहीं। बायोप्सी के लिए एक स्त्राी की उम्र तीस साल से कम नहीं होनी चाहिए।

इलाज के मुख्य तरीके-
गांठ कैंसरयुक्त होती है तो स्टेजिंग वर्कआप किया जाता है। इसके लिए भी कई परीक्षण होते हैं जिनसे यह पता लगाया जाता है कि कैंसर कहा तक पफैल गया है पिफर सर्जरी, कीमोथैरेपी, रेडियाथैरेपी की विध्यिां चिकित्सक द्वारा अपनायी जाती है। डॉ. नन्दी कहते हैं कि सर्जरी तो करनी ही पड़ती है, लेकिन जब मरीज शुरुआत में आ जाती है तो सर्जरी छोटी होती है तथा ‘ब्रेस्ट कंजर्विंग सर्जरी’ द्वारा सिपर्फ ट्यूमर व उसके आस-पास का थोड़ा-सा हिस्सा निकाला जाता है। इसमें ब्रेस्ट बच जाती है तथा पहले की तरह अपना पफंक्शन भरती है, पर यहद मरीज एडवांस स्टेज में आती है तो पूरा ब्रेस्ट तो निकालना ही पड़ता है साथ ट्रीटमेंट के बाद पफालोअप भी करनी जरूरी होता है। पांच वर्ष तक लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए। एक तरपफ की ब्रेस्ट में कैंसर होने पर दूसरी तरपफ ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।

 


इंसान के जंगल में सांस लेते हुए बिगड़े और संवरे किरदारों का राजपफाश करता हुआ सपफेद घोड़ा

सफेद घोड़ा



 इस दुनिया में सवाब और गुनाह, रेल की दो पटरियों की मानिंद साथ-साथ चलते हैं। इस कायनात में कोई गोशा ऐसा नहीं, जहां इंसान तो मौजूद हो, लेकिन शैतान का वजूद न पाया जाता हो। इंसान सवाब व भलाई के तोहफों को सीने से लगाए और शैतान गुनाह और तबाही की पोटली को बगल में दबाए। इन्हीं दो पटरियों के दरम्यान, एक-दूसरे को मात देने का सपफर जारी रखे हुए हैं। हार-जीत का यह सिलसिला दुनिया के पहले रोज से जारी है और कयामत तक जारी रहेगा। इस रस्साकशी में शैतान को शायद इंसान बनने में जरा मुश्किल पेश आती होगी, जबकि इंसान को शैतान का रूप धरण करते हुए जरा भी मुश्किल नहीं होती।...


कुछ अर्सा पहले की बात है, मैं अपनी बेटी से मिलने आया हुआ था। इन दिनों मेरी नवासी की शादी के हंगामे जोरों पर थे और मैं भी इनमें शामिल होने आया था। एक रोज दामाद साहब शॉपिंग के लिए मुझे भी अपने साथ ले गए। हम लगभग दो घंटे तक तारीक रोड पर विभिन्न प्रकार की खरीदारी में मसरूपफ रहे।
वापसी से पहले हम एक रेस्टोरेंट में जा बैठे। हम जिस रेस्टोरेंट में बैठे थे, वह पूरी तरह भरा हुआ था, बल्कि मैंने बाहर कुछ लोगों को इस अंदाज में झांकते हुए पाया, जैसे वह कोई खाली मेज होने का इंतजार कर रहे हों। इसलिए हम जब पेट-पूजा से पफारिग हुए तो मैंने अपने दामाद से कहा, ‘‘उठो मियां, अब चलते हैं। लगता है, हमारे उठने का बड़ी शिद्दत से इंतजार किया जा रहा है।’’
मेरे दामाद ने वेटर को इशारे से अपने पास बुलाया और बिल के बारे में पूछा तो वह यतीमों जैसी सूरत बनाकर बोला, ‘‘साहब, आप क्यों मेरी रोजी पर लात मारते हो?’’
उसकी बात ने मुझे चौंकने पर मजबूर कर दिया। किसी वेटर से बिल मांगने का उसकी रोजी पर लात मारने से कोई ताल्लुक नहीं निकलता। मैंने उसकी तरपफ देखते हुए पूछा, ‘‘बेटा, यह तुमने कैसी बात कही है, हम क्यों तुम्हारी रोजी के दुश्मन होंगे?’’
उसकी उम्र अट्ठारह और बीस के दरम्यान रही होगी। वह अच्छी सेहत का मालिक एक आम-सा नौजवान था। खाने के बर्तन समेटने के बाद उसने मेरे सवाल का जवाब दिया, ‘‘बड़े साहब, सेठ ने आपसे पैसे लेने से मना किया है।’’
‘‘कौन सेठ?’’ मेरे दामाद ने अचानक पूछा।
वेटर ने काउफंटर की तरपफ इशारा किया। लगभग पचास साल की उम्र का एक शख्स काउफंटर पर बैठा हमारी जानिब ही देख रहा था। उससे नजर मिलते ही मेरे जेहन में एक ध्माका-सा हुआ। यूं महसूस हुआ, जैसे मैंने उसे पहले भी कहीं देखा हो। कहां? यह पफौरी तौर पर याद न आया। मैंने यह सोचकर सब्र कर लिया कि शायद इस सेठ को मैंने अपने दामाद के साथ कहीं देखा हो। मेरे दामाद ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘आईए अंकल, इस सेठ से भी मिल लेते हैं।’’
‘‘क्या यह तुम्हारी पहचान वाला है?’’ मैंने उठते हुए पूछा।
उसके जवाब से मुझे झटका-सा लगा, ‘‘नहीं अंकल, बिल्कुल नहीं।’’
जब हम काउफंटर के पास पहुंचे तो कहानी उल्टी हो गई। अपने लिबास से सेठ नजर आने वाला वह शख्स, हमें अपनी तरपफ बढ़ते देखकर बड़ी गर्मजोशी के साथ काउफंटर से बाहर निकल आया और हाथ बढ़ाकर मेरी ओर बढ़ा। मैंने उसकी शिष्टता और जोश को देखते हुए हाथ मिलाने के लिए हथेली आगे बढ़ा दी। मुझसे तसल्ली के साथ मिलने के बाद वह मेरे दामाद की तरपफ बढ़ा।
उससे हाथ मिलाने के बाद वह मेरी तरपफ पलटा। इस शख्स का व्यवहार हैरान कर देने वाला था। जब वह दोबारा मेरी ओर आकर्षित हुआ तो मैं अपनी उलझन दूर करने के लिए मापफी तलब लहजे में पूछ लिया, ‘‘मापफ कीजिएगा, मैंने आपको पहचाना नहीं।’’
‘‘मलिक साहब, मैंने आपको पहचान लिया है।’’ वह खुशी से बोला, ‘‘आप सपफदर साहब हैं ना?’’
‘‘हां।’’ मैं लम्बी सांस खींचकर रह गया।
‘‘मलिक साहब, मैंने आपको होटल में दाखिल होते हुए देख लिया था, लेकिन पफौरी तौर पर काउफंटर छोड़ कर आपके पास न आ सका। आप यह रश देख रहे हैं।’’
उसने रेस्टोरेंट के अंदर और बाहर मौजूद लोगों की जानिब इशारा किया। मैंने तारीपफी लहजे में कहा, ‘‘माशाल्लाह, तुम्हारा यह रेस्टोरेंट खूब चलता है।’’ पिफर पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है? अभी तक तुमने अपना परिचय नहीं कराया?’’
शायद उसने मेरे सवाल पर गौर नहीं किया। अपनी ही ध्ुन में बोलता चला गया। उसके लहजे से मैंने पफौरन अंदाजा लगा लिया, उसका ताल्लुक पंजाब के किसी इलाके से था। लेकिन बावजूद कोशिश के भी याद न कर सका कि मैंने इस शख्स को पहले कब और कहां देखा था। अपनी बात के ेेआखिर में उसने मेरी मुश्किल हल कर दी और बेहद जज्बाती लहजे में बोला,
‘‘मलिक साहब, मैंने आपको देखते ही एक नजर में पहचान लिया था। आपका चेहरा जरा-सा भी नहीं बदला। नक्शो-निगार अपनी जगह पर हैं, अलबत्ता बढ़ती हुई उम्र ने बालों में चांदी भर दी है। मैंने आपको चालीस-बयालीस साल पहले देखा था उस वक्त मेरी उम्र नौ-दस साल से ज्यादा नहीं होगी, लेकिन आपकी सूरत मेरे जेहन में नक्श होकर रह गई है। आपने हम पर इतना बड़ा एहसान किया था कि मैं आपको कभी भूल नहीं सकता। यह तो एहसान पफरामोशी वाली बात होगी ना।’’
वह एक लम्हे के लिए रुका। पिफर बोला, ‘‘मेरा नाम अल्तापफ शेख है। आपको मेरे वालिद इम्तियाज शेख के कत्ल का किस्सा तो याद होगा ना, जब उनकी लाश ढूंढ़ना एक जटिल समस्या बन गई थी और यह समस्या आपने ही हल की थी। मेरा ख्याल है, आप उस सपफेद घोड़े वाले वाक्ये को भूले नहीं होंगे?’’
मेरा जेहन लगातार इसके बारे में सोच रहा था। इसे देखकर मैंने तो यह महसूस कर लिया था, जैसे इस सूरत को पहले भी कहीं देखा हो, लेकिन यह याद नहीं आ रहा था कि वह कौन है और उसे पहले कहां देखा है। इम्तियाज शेख के कत्ल का जिक्र सुनकर वह तमाम वाक्यात मेरे जेहन में ताजा हो गए, जिनका हवाला अल्तापफ शेख दे रहा था।
वक्त कितनी तेजी से गुजरता है, कुछ पता नहीं चलता। मैंने कम से कम चालीस साल पहले अल्तापफ को देखा था। उस वक्त वह दस साल से ज्यादा नहीं था। हम कापफी देर तक अतीत के पन्ने उलटते रहे। चलते वक्त मैंने उससे पूछा, ‘‘मैं तो तुम्हें और तुम्हारी वालिदा खदीजा बेगम को तुम्हारे चाचा के सुपुर्द कर आया था। तुम इस शहर में कब से कारोबार कर रहे हो?’’
‘‘मलिक साहब, इस बेरहम दुनिया में कोई किसी का चाचा या मामा नहीं है।’’ वह एकदम उदास हो गया, ‘‘सब दौलत के तलबगार हैं, हवस के पुजारी हैं।’’
उसके लहजे की जहरीली उदासी ने मुझे बता दिया कि मैं उसकी दास्तान-ए-गम से जिस कदर वाकिपफ था, वह मुकम्मल नहीं थी। हालात की सितमजरीपफी ने उसे और भी कड़े इम्तिहान से गुजारा था। मैंने जब उससे दर्दमंद लहजे में पूछा, तो उसने कम अल्पफाज में मुझे अपनी दास्तान का दूसरा हिस्सा भी सुना दिया। उसके दुख और परेशानियों ने कदम-कदम पर उसका साथ दिया। वह बड़ी मजबूती के साथ हालात के सामने डटा रहा, आखिरकार उसके हालात बदल गए और अब वह बड़े सकून और राहत की जिन्दगी गुजार रहा था।
अल्तापफ शेख की जिन्दगी के दोनों पहलू दिलचस्पी से भरपूर हैं, लेकिन यहां मैं शुरूआती दौर का हाल बयान करूंगा, क्योंकि मैं खुद इसमें शामिल था।
मौसम-ए-बहार का आगाज हो चुका था। एक रोज मैं थाने पहुंचा तो पता चला, खदीजा बेगम नाम की कोई औरत कापफी देर से मेरा इंतजार कर रही है। मैंने उस औरत को पफौरन अपने कमरे में बुला लिया। उस वक्त साढ़े आठ बजे थे। कापफी देर से इंतजार का मतलब यही था कि वह किसी परेशानी का शिकार हो गई है।
थोड़ी ही देर बाद एक कांस्टेबल खदीजा बेगम नाम की औरत को मेरे कमरे में ले आया। उसके अंदर दाखिल होते ही कमरा जैसे रोशनियों से भर गया। वह बहुत खूबसूरत थी। उजली-उजली, चांद से मुखड़े वाली।
उसकी बड़ी-बड़ी, चमकीली पुरकशिश आंखें थीं। नाक सुतवां थी, जिस पर नन्हा-सा तिल जुगनू की तरह जगमगा रहा था। गुलाब की पंखुड़ी की मानिंद रसीले गुलाबी होंठ, चमकीले गुलाबी गालों पर हल्की-सी सुर्खी झलक रही थी। गर्दन सुराहीदार लम्बी थी। भरा-भरा सीना, जिसके उठान पर हर कोई औरत इतरा सकती थी। उसके बाल लम्बे और घने थे, जो चादर से निकलकर बदली को चिढ़ा रहे थे। उसका दरम्याना कद था, मगर तमाम गुणों के एकत्रा होने के बाद वह बला की हसीन और आकर्षक दिख रही थी।
मेरे अंदाजे के मुताबिक उसकी उम्र पच्चीस और तीस के दरम्यान रही होगी, मगर वह सोलह-सतरह से ज्यादा नहीं लग रही थी। परेशानी उसके चेहरे से झलक रही थी। मैंने एक कुर्सी की जानिब इशारा करते हुए नर्म लहजे में कहा, ‘‘बैठ जाओ बीबी।’’ वह अपनी चादर संभालते हुए बैठ गई। मैंने कहा, ‘‘मुझे बताया गया है कि तुम कापफी देर से मेरे इंतजार में बैठी हो।’’
एक लम्हा रुक कर वह बोली, ‘‘मैं आपसे ही बात करना चाहती थी। मसला मेरे खाविंद का है।’’
‘‘तुम्हारे खाविंद को क्या हुआ है?’’ मैं सीध होकर बैठ गया।
‘‘इम्तियाज रात को घर नहीं पहुंचे।’’ वह दुखी लहजे में बोली।
इम्तियाज यकीनन उसके शौहर का नाम था। मैंने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा, ‘‘वह कहां गया हुआ था? मेरा मतलब है, घर पहुंचने से तुम्हारी मुराद क्या है?’’
जवाब देने से पहले उसने अपने दुपट्टे से अपनी आंखों के नम गोशे सापफ किए। पिफर भर्राई हुई आवाज में बोली, ‘‘वह कल सुबह पफरीदाबाद गया था और यह कहकर गया था कि
वह हर सूरत में वापस आ जाएगा रात से पहले। लेकिन अभी तक...।’’
उसका गला रूंध् गया। मैंने महसूस किया, वह अंदर से बेहद दुखी औरत है। तसल्ली भले लहजे में मैंने उससे कहा, ‘‘मुमकिन है कि वह रात को वहीं रुक गया हो और आज वापस आ जाए। इसमें इतना ज्यादा पिफक्र करने वाली कौन-सी बात है?’’
खदीजानामी उस हसीना का ताल्लुक जिला लक्ष्मन सिंह से था और पफरीदाबाद नामी कस्बा वहां से लगभग आठ मील के पफासले पर स्थित था। इन दोनों कस्बों के बीच घना जंगल था, जिसके बीच में एक नहर बहती थी। यह दोनों कस्बे मेरे थाने की सीमा में आते थे।
खदीजा ने मेरे सवाल के जवाब में बताया, ‘‘यह नामुमकिन है कि इम्तियाज रात को पफरीदाबाद रुक गया हो।’’ उसकी आवाज में पिफर नमी उतर आई, ‘‘अगर ऐसा होता, तो उनका सपफेद घोड़ा वापस नहीं आता।’’
घोड़े के जिक्र पर मैं चौंक उठा, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’
वह रूंध्े हुए लहजे में बोली, ‘‘इम्तियाज जिस सपफेद घोड़े पर सवार होकर पफरीदाबाद गए थे, वह आज सुबह ही अकेला घर पहुंचा है। घोड़े की हालत को देखकर...।’’
उसने जुमला अध्ूरा छोड़ दिया। वह बाकायदा आंसूओं से रोने लगी। मैं थोड़ी देर बैठा उसे आंसू बहाते देखता रहा। उसके दिल का गुबार कापफी ध्ुल गया था। पिफर मैंने बड़ी सतर्कता के साथ कुछ सवालात किए, जिनके जवाब में उसने यह बताया कि ‘खदीजा का शौहर इम्तियाज शेख पिछली सुबह अपने सपफेद घोड़े पर सवार होकर पफरीदाबाद गया हुआ था। पफरीदाबाद में उसे इरशाद अहमद से मिलना था। इरशाद पफरीदाबाद का एक जमींदार था। खदीजा के मुताबिक इम्तियाज ने इरशाद से एक भारी रकम लेकर उसी रोज शाम तक घर वापस आना था। वह रकम इम्तियाज की थी, जो कुछ समय पहले इरशाद ने उससे उधर ली थी। इम्तियाज भी किला लक्ष्मण सिंह का एक छोटा-सा जमींदार था, लेकिन उसका दिल बहुत बड़ा था। हमपेशा दोस्तों से रकम के लेनदेन के सिलसिले में उसने कभी कंजूसी या तंगदिली से काम नहीं लिया था।
‘प्रोग्राम के मुताबिक पिछली शाम जब इम्तियाज वापस घर न आया तो खदीजा बेगम परेशान हो गई। वह देर रात तक अपने शौहर का इंतजार करती रही, लेकिन इम्तियाज या उसकी कोई अच्छी-बुरी खबर उस तक नहीं पहुंच सकी। गांव में इम्तियाज के अन्य रिश्तेदार भी बसते थे, लेकिन खदीजा की अपने ससुरालियों से नहीं बनती थी। लिहाजा उसने इम्तियाज के बारे में उनसे नहीं पूछा और न ही अपनी परेशानी की वजह बताई। आज सुबह जब इम्तियाज का जख्मी घोड़ा घर पहुंचा तो वह इस सूरतेहाल से घबरा गई। पिफर वह सीध्ी मेरे पास चली आई थी।’
उसके खामोश होने पर मैंने उससे पूछा, ‘‘घोड़े के जख्मों के हालात क्या हैं?’’
‘‘वह बुरी तरह जख्मी है थानेदार साहब।’’ उसने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘उसे किसी तेजधर हथियार से कई कट लगाए गए हैं। मुझे तो हैरत इस बात पर है कि वह इस हालत में घर कैसे पहुंचा?’’ बोलते-बोलते उसकी आवाज भीगने लगी, ‘‘जब इम्तियाज के सपफेद घोड़े का यह हश्र हुआ है तो पता नहीं, मेरे खाविंद के साथ क्या सलूक हुआ होगा?’’
किसी जख्मी घोड़े का अपने सवार के बगैर घर पहुंचना तो यही जाहिर करता है कि उसके मालिक को कोई संगीन हादसा पेश आ गया है। खदीजा की जुबानी मुझे जो हालात मालूम हुए, उनकी रौशनी में पफौरी तौर पर मैंने यही अंदाजा लगाया कि इम्तियाज पर किसी ने कातिलाना हमला किया था। इस हमले का नतीजा क्या रहा, इस बारे में कोई ठोस बात नहीं कही जा सकती थी। बहरहाल, यह बेहद चिंताजनक बात थी।
मैंने खदीजा से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें यकीन है, इम्तियाज शेख पफरीदाबाद ही गया था?’’
‘‘उसने यही बताया था।’’ उसने जवाब दिया, ‘‘इम्तियाज जब भी गांव से बाहर जाता है तो अपने प्रोग्राम के बारे में जरूर बताता है। इस सिलसिले में उसने कभी गलत बयानी से काम नहीं लिया।’’
‘‘और तुम्हें इस बात का भी यकीन है।’’ मैंने उसके चेहरे पर निगाह जमाते हुए सवाल किया, ‘‘वह पफरीदाबाद में इरशाद अहमद से एक मोटी रकम लेने गया था?’’
खदीजा ने मेरे पूछने पर सिर को हल्की-सी जुंबिश दी तो मैंने पूछा, ‘‘यह इरशाद अहमद किस किस्म का बंदा है?’’
‘‘मेरी उससे कभी मुलाकात नहीं हुई।’’ उसने बताया, ‘‘इम्तियाज उसकी तारीपफ करते थे।’’
‘‘तुम्हारा खाविंद इरशाद से कितनी रकम लेने गया था?’’ मैंने एक महत्वपूर्ण सवाल किया।
खदीजा ने जवाब देने में थोड़ी देर लगाई। पिफर बोली, ‘‘तीन हजार रुपए...?’’
‘‘ओह!’’ मैं एक लम्बी सांस खींचकर रह गया।
उस जमाने में तीन हजार रुपए बड़ी रकम शुमार होती थी। जिन दिनों सोना अस्सी-नव्वे रुपए तोला और अच्छे किस्म का गेहूं पांच रुपए मन ;चालीस किलोद्ध बिकता था, उन दिनों का तीन हजार रुपया कितनी वैल्यू रखता होगा, इसका अंदाज आप बखूबी लगा सकते हैं।
मैंने खदीजा से पूछा, ‘‘इम्तियाज की किसी से दुश्मनी वगैरा तो नहीं थी?’’
‘‘देखें जनाब।’’ वह अपनी चादर दुरूस्त करते हुए बोली, ‘‘इंसान के जहां दस दोस्त होते हैं, वहां एक-दो दुश्मन भी जरूर होते हैं... मगर आप यह बात क्यों पूछ रहे हैं?’’
मैंने उसके सवाल को नजरअंदाज करते हुए पूछा, ‘‘जख्मी घोड़ा कहां है?’’
‘‘घोड़ा घर पर ही है।’’ वह अपने सवाल को दोहराते हुए पूछने लगी, ‘‘थानेदार साहब, आपने इम्तियाज के दुश्मनों के बारे में क्यों पूछा है? कहीं खुदा ना करे...।’’
वह जुमला अध्ूरा छोड़कर मुझे तकने लगी। मैंने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘देखो खदीजा बेगम, जख्मी घोड़े का इम्तियाज बेगम के बगैर ही घर पहुंचना इस बात की तरपफ इशारा करता है कि तुम्हारा शौहर किसी संगीन हादसे का शिकार हुआ है। इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि उसकी किसी से दुश्मनी तो नहीं थी?’’
हादसे का जिक्र सुनकर उसकी परेशानी में कई गुना इजापफा हो गया। वह बिखरी हुई आवाज में बोली, ‘‘थानेदार साहब, आप डराने वाली बातें ना करें। मैं इम्तियाज के किसी ऐसे दुश्मन को नहीं जानती, जो...।’’
वह अपने शौहर को पहुंचने वाले किसी नुकसान का जिक्र करते हुए बेपनाह खौपफजदा थी, इसलिए जुमला अध्ूरा छोड़कर खामोश हो गई। मैंने उसका जेहन बनाने की खातिर कहा, ‘‘तुम पिफक्र मत करो खदीजा, मैं तुम्हारे शौहर को तलाश करने की पूरी-पूरी कोशिश करूंगा। पिफलहाल, मैं उस जख्मी घोड़े से मुलाकात करना चाहता हूं, जिस पर सवार होकर इम्तियाज कल पफरीदाबाद गया था।’’
उसने अचरज से मुझे देखा, पिफर बोली, ‘‘घोड़े से मुलाकात...?’’
लफ्रज मुलाकात ने उसके लहजे को उलझाकर रख दिया था। मैंने सापफगोई से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे घर जाकर जख्मी घोड़े का जायजा लेना चाहता हूं।’’
वह जल्दी से बोली, ‘‘ठीक है, आप आएं मेरे साथ...।’’
वह पहली बार मुस्कराई। इसके साथ ही उसके मोतियों जैसे दांत चमक उठे। मैंने बेदिली से खदीजा को बाहर बैठने को कहा और ए.एस.आई. मुराद को अपने कमरे में बुला लिया। मैं मुराद को अपने साथ खदीजा के घर ले जाना चाहता था। वह जब मेरे पास आया तो मैंने जरूरी तैयारी की हिदायत दी। थोड़ी ही देर में मुराद ने खानगी का बंदोबस्त कर दिया।
जब हम थाने से बाहर निकले तो बाहर हमारे लिए एक तांगा मौजूद था। उस तांगे का इंतजाम ए.एस.आई. मुराद ने किया था। मैं ए.एस.आई. के साथ तांगे के अगले हिस्से में सवार हो गया और खदीजा को पीछे बैठने को कहा। वह तांगे के पायदान में पैर रखते ही ठिठक गई। पिफर परेशान होकर एक तरपफ देखने लगी।
मैंने उसकी निगाह का पीछा किया और एक तांगा मेरी नजर में आ गया। खदीजा एकटक उस तांगे को देखे जा रही थी, जो विपरीत दिशा से अब हमारे करीब पहुंच चुका था। मैंने से संबोध्ति करते हुए पूछा, ‘‘खदीजा, क्या बात है? तुम तांगे में क्यों नहीं सवार हो रही हो?’’
‘‘यह लोग यहां भी पहुंच गए।’’ उसने बदस्तूर दूसरे तांगे की तरपफ देखते हुए कहा।
मैंने सवाल किया, ‘‘यह लोग कौन हैं? तुम इन्हें देखकर क्यों रुक गई हो?’’
उस तांगे में कोचवान के अलावा दो लोग सवार थे। उसने मेरे सवाल का जवाब देते हुए बताया, ‘‘यह मेरा छोटा देवर मुमताज शेख है। पता नहीं, यह यहां क्या करने आया है।’’
‘‘इसी से पूछ लेते हैं। तुम क्यों पिफक्र करती हो?’’ मैंने तसल्ली भले लहजे में कहा।
इस दौरान वह तांगा हमारे तांगे से पांच गज के पफासले पर आकर रुक गया था। खदीजा ने मुझे बताया था कि वह उसका छोटा देवर मुमताज शेख है। मैं नहीं जानता था कि इन दो लोगों में खदीजा का देवर कौन-सा है? पिफर तांगा रुकने के बाद उनमें से एक व्यक्ति नीचे उतरा और तेजी से खदीजा की तरपफ बढ़ गया। वह एक स्मार्ट जवान शख्स था। मुझे यह अंदाजा लगाने में दिक्कत महसूस नहीं हुई कि वह ही खदीजा का देवर है।
मैं भी तांगे से नीचे उतर आया, ए.एस.आई. ने मेरे कदम से कदम मिलाए। मुमताज शेख का अंदाज बता रहा था कि वह कोई अहम कदम लेकर आया है। इससे पहले कि वह खदीजा से कोई बात करता, खदीजा ने नापसंद नजरों से उसे देखा और नपफरत भले लहजे में बोली, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’
‘‘भाभी, आप भी कमाल करती हैं। किसी को साथ नहीं लिया और अकेली ही थाने चली आईं।’’ उसने शिकवा करने वाले अंदाज से कहा।
अब इस बात में किसी तरह की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रही थी कि वह स्मार्ट जवान खदीजा का ही देवर था। उसके शिकायती लहजे के जवाब में खदीजा ने जले-भुने लहजे में जवाब दिया, ‘‘तुम कौन होते हो, मुझसे सवाल-जवाब करने वाले...?’’
इस मुंह तोड़ जवाब से खिसया कर वह मुझे देखने लगा। मैंने उसे अपनी ओर आकर्षित होते देख सख्त लहजे में पूछा, ‘‘हां जवान, तुम कौन हो और इस खातून को क्यों परेशान कर रहे हो?’’
वह गड़बड़ा गया और हाथ-पैर ढीले करते हुए बोला, ‘‘जनाब, यह मेरी भाभी है। भाई इम्तियाज साहब की बीवी।’’
खदीजा सापफ अल्पफाज में मुझे बता चुकी थी, अपने ससुरालियों से उसका मेल-मिलाप नहीं था और मुमताज शेख के साथ उसका अभी का व्यवहार यही जाहिर करता था कि वह उसे सख्त नापसंद करती है। इसी झगड़े में मैंने मुमताज शेख को लताड़ डाला, ‘‘यह अगर तुम्हारी भाभी है तो पिफर...?’’
‘‘जनाब, मुझे पता चला है कि भाई साहब रात को घर नहीं पहुंचे और सुबह ही सुबह भाभी थाने पहुंच गई हैं।’’ वह अपनी बात सापफ करते हुए बोला। पिफर दोबारा खदीजा की ओर आकर्षित हो गया, ‘‘भाभी, आप ही बताओ। आखिर चक्कर क्या है?’’
मैंने महसूस कर लिया कि खदीजा अपने देवर से बात करना नहीं चाहती और मुमताज शेख का बार-बार भाभी कहना भी उसे नागवार लग रहा था। लिहाजा मैंने सीध्े ही खदीजा से कहा, ‘‘आप चुप रहें।’’ पिफर मुमताज शेख से बोला, ‘‘जवान, तुम अपनी भाभी को परेशान मत करो। वह पहले ही तुम्हारे भाई के लिए बहुत पिफक्रमंद है। अगर यह चक्कर समझना चाहते हो तो हमारे पीछे-पीछे तांगा लेकर आओ। हम इस वक्त तुम्हारे गांव ही जा रहे हैं।’’
वह उलझन भरी नजरों से खदीजा को देखने लगा। मैंने खदीजा से कहा, ‘‘खातून, आप बैठें तांगे में। मुझे थाने में और भी काम हैं।’’
खदीजा खामोशी के साथ तांगे में सवार हो गई। मैं भी ए.एस.आई. के साथ तांगे में सवार हो गया और कोचवान से तांगा आगे बढ़ाने को कहा। थोड़ी ही देर में तांगे आगे-पीछे किला लक्ष्मण सिंह की जानिब रवाना हो गए थे। मुमताज शेख अपने तांगे में मेरी हिदायत के मुताबिक हमारे पीछे आ रहा था। दोनों तांगों के दरम्यान इतना पफासला था कि हमारे दरम्यान होने वाली गुफ्रतगू दूसरे तांगे में नहीं सुनी जा सकती थी। मैंने खदीजा को सम्बोध्ति करते हुए कहा, ‘‘लगता है, तुम अपने देवर से शदीद नपफरत करती हो?’’
‘‘जिस शख्स से हमेशा नुकसान पहुंचने का खतरा रहे, उससे नपफरत ही की जा सकती है इंस्पेक्टर साहब।’’ वह जहरीले लहजे में बोली। पिफर कहा, ‘‘आपसे मेरी एक छोटी-सी दरख्वास्त है।’’
‘‘हां कहो, क्या बात है?’’ मैंने उससे पूछा।
‘‘यह नामुराद मेरे घर में कदम नहीं रखेगा।’’ वह बोली।
मैंने खदीजा से कहा, ‘‘तुम अपने घर की मालिक हो, जिसको चाहो अंदर दाखिल होने की इजाजत दे सकती हो और जिसको चाहो, बाहर ही रोक सकती हो। यह सब तुम्हारी मर्जी पर निर्भर है।’’
कुछ लम्हे खामोश रहने के बाद मैंने उससे पूछा, ‘‘खदीजा बीबी, तुम अपने देवर से इस कदर खपफा क्यों हो?’’
‘‘यह एक लम्बी चौड़ी दास्तान है जनाब।’’ वह टालने वाले अंदाज में बोली, ‘‘पिफर कभी पुफर्सत में सुनाउफंगी। पहले आप मेरे खाविंद का मसला हल कर दें।’’ एक लम्हे के अंतराल के बाद वह उदास लहजे में बोली, ‘‘बस इतना समझ लें थानेदार साहब, आज तक मुझे ससुराल वालों से कोई सुख नहीं मिला।’’
मैं खामोशी से उस दुखी औरत के बारे में सोचने लगा।
कुछ लोगों के चेहरे ऐसे होते हैं, जिन्हें देखते ही ऐसा लगता है कि वह दूसरों के जुल्मों-सितम का शिकार हैं। ऐसा हो या न हो, पिफर भी उनके चेहरों से यही जाहिर होता रहता है। इस किस्म के हमेशा के मजलूम चेहरों की बात अलग है, लेकिन खदीजा ऐसी बला की खूबसूरत और तुरहदार औरत थी कि उसे दुखी और उदास देखना बड़े दुख की बात थी। इन लम्हों में, मैं खदीजा के लिए अपने दिल में बेपनाह हमदर्दी महसूस कर रहा था।
खदीजा का घर किला लक्ष्मण सिंह के ठीक बीच में स्थित था। हमारा तांगा जिस-जिस गली से गुजरा, लोगों ने हैरत से हमें देखा। मैं और ए.एस.आई. मुराद यूनिपफार्म में थे। पुलिस की वैसे ही वहशत होती है और हम सुबह ही सुबह गांव पहुंच गए थे। मैंने महसूस किया कि जब तक हम खदीजा के घर तक पहुंचते, मुमताज शेख वाले तांगे में दो-तीन और लोग भी सवार हो गए थे।
हम घर के अंदर दाखिल होने लगे तो पिफर एक समस्या आ खड़ी हुई। मुमताज की कोशिश थी कि वह भी अंदर आएगा, लेकिन खदीजा ने इसका सख्त विरोध् किया, चुनांचा मुझे उसकी ख्वाहिश का आदर करते हुए उसे बाहर ही रोक देना पड़ा। मैंने थोड़े लफ्रजों में ए.एस.आई. को जरूरी हिदायत दीं और कहा, ‘‘मुराद, तुम इध्र ही घर के बाहर रूको और मेरी इजाजत के बगैर किसी को अंदर नहीं आने देना।’’
खदीजा के घर के सामने कई लोग जमा हो गए थे। शायद यह बात पूरे गांव को ही मालूम हो गई थी कि वहां पुलिस आई है। मैंने वहां मौजूद लोगों पर एक गहरी निगाह डाली और मेरी तजुर्बेकार नजर ने पलक झपकते ही दो आदमियों को चुन लिया। उनके नाम पफरमान अली और वहीद उल्लाह थे। वह अपने हुलिए और रख-रखाव से ठीक-ठाक दिखाई देते थे। मैंने उन्हें साथ लिया और खदीजा के घर में दाखिल हो गया।
वह एक रईस जमींदार का घर था। सेहन कापफी बड़ा था और उसमें एक पेड़ लगा था। मेरी ख्वाहिश पर खदीजा मुझे उस कमरे तक ले गई, जो इम्तियाज शेख के घोड़े के लिए आरक्षित था। वह कमरा बड़े से गेटनुमा दाखिले दरवाजे के करीब ही स्थित था। खदीजा की जुबानी मुझे यह भी मालूम हुआ कि उनके अन्य मवेशी घर के पीछे बाड़े में रहते थे, लेकिन खदीजा की जुबानी मुझे यह भी मालूम हुआ कि अन्य मवेशी को छोड़कर इम्तियाज अपने सपफेद घोड़े को हमेशा अपने घर के अंदर ही बांध्ता था कि उसके लिए एक खास कमरा भी घर में निर्मित कर रखा था।
मैंने खदीजा से पूछा, ‘‘अब तो बहार का मौसम शुरू हो चुका है। पिफजा में इतनी ठंडक बाकी नहीं रही कि जानवरों को अंदर बांध जाए। पिफर तुमने घोड़े को कमरे के अंदर क्यों रखा हुआ है?’’
‘‘आप उसकी हालत देखेंगे, तो यह बात खुद ही समझ में आ जाएगी।’’ वह सपाट लहजे में बोली।
मैंने जब सपफेद घोड़े को देखा तो खदीजा की बात वाकई मेरी समझ में आ गई। वह सपफेद रंग का एक आकर्षक और सेहतमंद घोड़ा था। उसके जख्म सपफेद रंग में कुछ ज्यादा ही स्पष्ट नजर आ रहे थे। वह इस वक्त कमरे के पफर्श पर बैठा हुआ था। उसके बदन का निचला हिस्सा जख्मों में से चूर था। उनमें से कुछ गहरे जख्म थे। मेरे अंदाजे के मुताबिक वह तेजधर कुल्हाड़ी के जख्म थे। मैंने पफरमान अली और वहीद उल्लाह की मदद से बड़ी मुश्किल से घोड़े को खड़ा किया।
घोड़े की टांगें कपकपाईं और वह किसी बपर्फीले तोदे की तरह बेबसी से पफर्श पर ढेर हो गया। इस लम्हे में मैं यह देखने में कामयाब हो गया कि बदन के अन्य हिस्सों को छोड़कर उसकी टांगें खतरनाक हद तक जख्मी थीं। बेअख्तियार मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘यह बेजुबान घर तक कैसे पहुंचा होगा?’’
‘‘इस बात की तो मुझे भी हैरत है।’’ मुझे अपने पीछे खदीजा की आवाज सुनाई दी। पिफर उस आवाज में एक दर्द सिमट आया, ‘‘पता नहीं, मेरे शौहर के साथ क्या हुआ है।’’
उस वक्त मैं सीध्े तौर पर उस मजबूर और लाचार सपफेद घेाड़े की आंखों में देख रहा था। पता नहीं, यह मेरा वहम था या हालात का असर। बहरहाल, मुझे यूं महसूस हुआ, जैसे वह घोड़ा मुझसे कुछ कहना चाहता हो। मैं कापफी देर तक एकटक उस घोड़े की आंखों में देखता रहा, लेकिन उस एहसास में कोई बदलाव नहीं आया।
काश! मुझे जानवरों की आंखों में नमूदार होने वाले भाव को पढ़ना आता, तो मैं यह जानने में कामयाब हो जाता कि वह बेजुबान मुझसे क्या कहना चाहता है। मुमकिन है कि वह अपने मालिक इम्तियाज शेख के बारे में कोई इत्तिला देना चाहता हो।
उस घोड़े के लिए मेरा दिल हमदर्दी के जज्बात से लबरेज हो गया। खासतौर पर जब मैंने उसे उठाकर खड़ा करने की कोशिश की थी और वह किसी अपाहिज शख्स की तरह कांपता-लरजता जमीन पर गिर गया था। उस दुखी मंजर ने मुझे हिला कर रख दिया था। मेरे जेहन ने मुझे उसी लम्हे पफैसला सुना दिया। मुझे पफौरन इस घोड़े को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध् करानी होगी। इस दौरान वह निरंतर रहम-तलब नजर से मुझे देखता रहा।
पांच मिनट की हंगामी पूछताछ के बाद मैं यह जानने में कामयाब हो गया कि इस इलाके में कोई जानवरों का अस्पताल नहीं है। इस जुस्तजू के नतीजे में एक नाम भी सामने आया कि जहूरी चाचा नाम का एक शख्स जानवरों का इलाज करता है। वह शख्स इस इलाके में डंगर-डॉक्टर के नाम से मशहूर है।
मैंने एक आदमी भेजकर पफौरन डंगर-डॉक्टर जहूरी चाचा को बुलवाया। जहूरी पैंतालीस-पचास साल का तंदुरूस्त और उफंचे कद का शख्स था। वह विभिन्न प्रकार की दवाईयों से भरा एक थैला भी साथ लाया था। मेरी निगरानी में उसने घोड़े का मुआयना किया। पिफर अपने काम में मसरूपफ हो गया।
मैं डंगर डॉक्टर को घोड़े की मरहम-पट्टी करते छोड़कर खदीजा के साथ घर के अंदरूनी हिस्से में आ गया। मैंने पफरमान अली और वहीद उल्लाह को भी अपने हमराह रखा। घोडे़ की हालत और गहरे जख्मों को देखते हुए मुझे यह अंदाजा कायम करने में जरा भी दिक्कत महसूस नहीं हुई कि पफरीदाबाद से किला लक्ष्मण सिंह की तरपफ आते हुए इम्तियाज शेख पर कातिलाना हमला हुआ था और ज्यादा संभावना इस बात की थी कि जब मैं इम्तियाज शेख की तलाश में निकलूंगा तो उसकी जख्म-जख्म लाश से सामना होगा। पिफर भी मैंने अपने इस अंदाजे के बारे में खदीजा को कुछ न बताया।
घर के अंदरूनी हिस्से में खदीजा के इकलौते बेटे अल्तापफ से भी मुलाकात हुई। वह सांवले रंग का पतला-दुबला लड़का था। उसकी उम्र लगभग दस साल रही होगी। अल्तापफ अपने वालिद की रहस्यमयी गुमशुदगी से बेहद परेशान था। मैं खदीजा के साथ कमरे में आ गया, जहां इम्तियाज शेख रात को सोया करता था। इम्तियाज को पेश आने वाले वाक्यात का मुझे अंदाजा हो चुका था, मगर मैं खदीजा के सामने खुलकर इसका इजहार नहीं कर सकता था।
लिहाजा उस कमरे में किसी ऐसी चीज की तलाश में लग गया, जिससे इम्तियाज के किसी दुख्मन का सुराग मिल सके, लेकिन बावजूद कोशिश के भी ऐसा कोई सिरा हाथ न आ सका। मेरे जेहन में यह बात भी मौजूद थी कि इम्तियाज एक मोटी रकम के साथ पफरीदाबाद से रवाना हुआ था। कहीं उस माल व दौलत ने तो उसे किसी मुसीबत में नहीं डाल दिया।
मैंने एक बार पिफर कुरेदकर खदीजा से इम्तियाज के किसी दुश्मन के बारे में पूछा। इस बार भी उसका जवाब नहीं में था। वह परेशान होकर बोली, ‘‘तो आपको इसके बारे में जरूर बताती। खुदा के वास्ते आप इम्तियाज को ढूंढ़ने की कोशिश करें।’’
‘‘मैं इसी कोशिश में लगा हुआ हूं खदीजा बेगम।’’ मैंने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘तुम पिफक्र ना करो। मैं बहुत जल्दी उसे तलाश करने में कामयाब हो जाउफंगा।’’
मैंने खदीजा को तसल्ली तो दे दी, लेकिन खुद मुझे अच्छा लहजा खोखला और अल्पफाज अर्थहीन महसूस हो रहे थे। थोड़ी देर के बाद मैंने उसे पफारिग कर दिया और वहां से रूखसत होने के लिए उठ खड़ा हुआ।
जब मैं उसके घर से रूखसत होने लगा तो डॉक्टर डंगर जहूरी चाचा से दोबारा मुलाकात हो गई। वह घोड़े की हंगामी मरहम-पट्टी करके पफारिग हो चुका था। जाने से पहले मैंने एक नजर उस घोड़े को देखना जरूरी समझा। पता नहीं क्यों, एक लम्हाती मुलाकात में मुझे उससे अच्छी मोहब्बत हो गई थी। जब मैं घोड़े के खास कमरे में पहुंचा तो दूसरी जानिब भी ऐसा ही मामला पाया। मुझसे निगाह मिलते ही वह कृतज्ञ नजरों से मुझे देखने लगा। मैंने तसल्ली देने के अंदाज में उसकी पीठ पर हाथ पफेरा तो वह कमजोर आवाज में हिनहिनाया। यह उसका खुशी प्रकट करने का अंदाज था।
मैंने उसकी पीठ थपकते हुए ऐसे संबोध्ति किया, जैसे वह मेरी हर बात समझ सकता है, ‘‘पिफक्र ना करो जवान, तुम बहुत जल्दी दोबारा चलने-पिफरने के लायक हो जाओगे।’’
वह पहले वाले अंदाज में ध्ीरे से हिनहिलाया और अपनी पूंछ हिलाने लगा। मैं उसे और अध्कि तसल्ली और दिलासा देकर कमरे से बाहर निकल आया।
डॉक्टर डंगर को जरूरी निर्देश दिये और खदीजा के घर से बाहर निकल आया। पिफर मैंने ए.एस.आई. की तलाश में इध्र-उध्र नजर दौड़ाई। वह अपने तांगे के करीब खड़ा मुमताज शेख के साथ बातें कर रहा था। मैं सुबक कदमों से चलते हुए उनके पास पहुंच गया। मुमताज शेख मुझे देखकर चौंका और मुझे संबोध्ति करते हुए कहा, ‘‘थानेदार साहब, यह तो बड़ी ज्यादती वाली बात है। खदीजा ने तो कुछ नहीं बताया, लेकिन अब यह बात ढकी-छुपी नहीं रही कि भाई साहब कहीं गायब हो गए हैं।’’ उसका इशारा अपने बड़े भाई इम्तियाज शेख की तरपफ था, ‘‘उनका जख्मी घोड़ा आज सुबह यहां पहुंचा है। खुदा ना करे, भाई साहब को कोई हादसा तो पेश नहीं आ गया?’’
‘‘मुमताज शेख, मैं भी तुम्हारे ही अंदाज में सोच रहा हूं।’’ मैंने कहा।
‘‘ जनाब, मेरा भाई गुम हो गया और मुझे ही इस मामले से अलग रखा जा रहा है। आपने भाभी खदीजा का अंदाज देखा है।’’ वह आक्रोश भरे लहजे में बोला, ‘‘यह ज्यादती नहीं है तो और क्या है?’’
उसका यह विरोध् जायज था। मैंने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘मुमताज शेख, मैं नहीं जानता, खदीजा से तुम्हारा क्या मतभेद है, लेकिन पिफक्र ना करो। मैं तुम्हें इम्तियाज शेख की गुमशुदगी वाले मामले से अलग नहीं रखूंगा।’’
तभी उसने चौकन्ना नजरों से खदीजा के घर के गेट की जानिब देखते हुए बोला, ‘‘मेरा ख्याल है, यहां खड़े होकर बातें करना मुनासिब नहीं। अगर खदीजा भाभी ने देख लिया तो कोई मुसीबत खड़ी कर देगी। वह पिफतना पफैलाने में बहुत माहिर है।’’
उसने अपनी भाभी के बारे में जिन ख्यालात का इजहार किया, उससे यह समझने में मुझे दुश्वारी ना हुई कि वह भी अपने दिल में उस औरत के लिए अच्छे और भलाई के जज्बात नहीं रखता था। यह बात सही थी कि उन दोनों हाथों से ताली बज रही थी, जिनमें एक हाथ खदीजा का और दूसरा मुमताज शेख का था।
मैंने उसकी आंखों में देखते हुए तरकीब पेश की, ‘‘क्या ख्याल है थाने चलें?’’
मेरे अंदाज ने उसे गड़बड़ा दिया। वह घबराहट भरे लहजे में बोला, ‘‘आप मुझे थाने क्यों लेकर जाना चाहते हैं?’’
‘‘तुम्हें थाने जाते हुए खौपफ क्यों महसूस हो रहा है? क्या तुमने कोई जुर्म किया है?’’
‘‘नहीं जनाब, मैंने कोई जुर्म नहीं किया।’’ वह जल्दी से बोला।
‘‘पिफर डरने की कोई बात नहीं, तांगे में आ जाओ।’’
थोड़ी-सी झिझक के बाद वह तांगे में सवार हो गया। थाने की जानिब तांगा बढ़ने लगा। रास्ते में, मैंने मुमताज शेख को उसके बड़े भाई इम्तियाज शेख के बारे में विस्तार से बता दिया। यह तमामतर बातें वही थीं जो खदीजा की जुबानी मुझ तक पहुंची थीं। यानी इम्तियाज का पफरीदाबाद जाना वहां के एक जमींदार इरशाद अहमद से मिलना और तीन हजार की रकम के साथ पफरीदाबाद से किला लक्ष्मण वापस आना। उसने मेरी बातें गौर से सुनीं और मेरे खामोश होने पर बोला, ‘‘मैं महसूस कर रहा हूं, भाई साहब के साथ जो भी संगीन वाक्या पेश आया है, वह पफरीदाबाद और किला लक्ष्मण सिंह के बीच पेश आया है। हमें इस इलाके का अच्छी तरह जायजा लेना चाहिए। मुझे यह राहजनी की कोई वारदात मालूम होती है? तीन हजार रुपए कोई मामूली रकम नहीं होती।’’
थाने में पहुंचकर मैंने मुमताज शेख से कहा, ‘‘गांव से दो आदमी अपने साथ लो। इध्र से मैं एक पुलिस टीम तुम्हारे साथ रवाना कर दूंगा। तुम उन सबके साथ जंगल में अपने भाई की तलाश करना।’’
‘‘मंजूर है।’’ वह सीना ठोंकते हुए बोला, ‘‘मैं अभी गया और अभी आया।’’
‘‘लेकिन यह बात तुम्हारी भाभी खदीजा को मालूम नहीं होनी चाहिए।’’ वह सिर हिलाता हुआ वापस चला गया। मैंने ए.एस.आई. मुराद से कहाµ मुराद, एक बात जेहन में रखना कि मुमताज शेख भी संदिग्ध् लोगों की लिस्ट में शामिल है। खदीजा के रवैये से जाहिर होता है, दोनों भाईयों के दरम्यान खुशवार ताल्लुकात नहीं थे। तुम्हें यह सब मैं इसलिए बता रहा हूं कि उसकी निगरानी भी तुम ही करोगे। यह टीम भी तुम्हारे सुपुर्द है, क्योंकि मैं एक कांस्टेबल के साथ पफरीदाबाद जा रहा हूं।’’
‘‘पफरीदाबाद...? वह क्यों...?’’ उसने पूछा।
‘‘इम्तियाज की तलाश के सिलसिले में इरशाद अहमद नामी एक शख्स से मुलाकात बहुत जरूरी है। मुझे मालूम है कि मैं वहां से अध्कि मालूमात हासिल करके लौटूंगा।’’
मैंने एक होशियार कांस्टेबल को साथ लिया और पिफर हम दोनों घोड़ों पर सवार होकर पफरीदाबाद की तरपफ रवाना हो गए।
इरशाद अहमद पफरीदाबाद का छोटा-सा जमींदार था। उससे लम्बी गुफ्रतगू के बाद सिपर्फ यह मालूम हुआ कि वह गुमशुदगी वाले दिन उससे तीन हजार रुपए ले गया था। उसका कोई दुश्मन तो नहीं था। हां, मंडीगंज में मसूद अली उपर्फ सूदी शाह नाम का एक दोस्त जरूर रहता है।
मैं सूदी शाह से मिला तो उसने बताया कि उस रोज उसकी इम्तियाज शेख से मुलाकात ही नहीं हुई थी। उसका मुंशी अपफजल उससे जरूर मिला था और उसने उसे तूती पहलवान के साथ वापस लौटते जरूर देखा था। तूती पहलवान इलाके भर में बदनाम शख्स था। उसके अड्डे पर शराब, जुआ और मुजरा आम बात थी।
मैं सूदी शाह की रहनुमाई में तूती पहलवान के अड्डे पर जा पहुंचा। वहां तूती पहलवान तो नहीं मिला, हां उसके एक गुर्गे मंजूरे ने शौकत नाम के एक बदमाश से मुझे मिला दिया। मैंने शौकत से सख्ती से पूछताछ की तो उसने सभी कुछ उगल दिया, जो उसे मालूम था।
शौकत नामी बदमाश तूती पहलवान का राईट-हैंड जाना जाता था। उसने बताया कि उस रोज इम्तियाज शेख को लेकर तूती पहलवान अड्डे पर आया था, मगर कुछ देर बाद वह अकेला ही वापस चला गया था। कुछ देर बाद ही तूती पहलवान भी एक घंटे के लिए गायब हो गया था।
मैं मंजूरे और शौकत को अपने साथ थाने ले आया और सूदी शाह की मदद से वहां ऐसा इंतजाम कर दिया कि जैसे ही तूती पहलवान वापस लौटता, उसे पफौरन ही ध्र लिया जाता।
ए.एस.आई. मुराद पुलिस टीम और मुमताज शेख के साथ जंगल की खाक छानकर लौट आया था। उन्हें इम्तियाज शेख का कोई सुराग हाथ नहीं लगा था। अलबत्ता मुमताज शेख ने अपनी भाभी खदीजा पर शक जरूर जाहिर किया था कि उसका अपने शौहर की गुमशुदगी में हाथ हो सकता है।
मैं जानता था कि मुमताज शेख का यह शक नपफरत का नतीजा है, जबकि खदीजा जैसी खूबसूरत हसीना बिल्कुल मासूम और पाक है। उसका इकलौता बेटा अल्तापफ भी अपनी मां की तरह मासूम और नेक था और वह भी अपने वालिद के लिए परेशान था। इम्तियाज शेख का सपफेद घोड़ा बहुत तेजी से ठीक हो रहा था और वह मुझसे बहुत घुलमिल गया था।
अगले रोज तूती पहलवान को गिरफ्रतार कर लिया गया। मैंने जब सख्ती से उससे पूछताछ की तो उसने सब कुछ उगल दिया कि उसने ही इम्तियाज शेख को जुआ खेलने के लिए उकसाया था। पहले एक-दो दांव उसे जिता दिए, पिफर उसकी तमाम रकम जुए में उसने जीत ली थी। मेरे लाख पूछने के बाद भी उसने यह इकरार नहीं किया कि उसकी गुमशुदगी में उसका कोई हाथ है।
दो दिन और उसका अगला दिन भी किसी कामयाबी के बगैर ही गुजर गया। हमने तूती पहलवान पर थर्ड डिग्री का भी इस्तेमाल किया, लेकिन उसने इम्तियाज की गुमशुदगी के सिलसिले में कोई इकरारी बयान नहीं दिया। इस सूरतेहाल ने मुझे उलझाकर रख दिया।
मैं थाने से उठा तो इम्तियाज शेख के बारे में ही सोच रहा था और नींद की आगोश में पहुंचने तक यह परेशानकुन सोच मेरे जेहन से चिपकी रही।
अगले रोज जब मैं जागा तो सुबह के आगाज के साथ ही मेरे जेहन में एक आइडिया चमका। इस आइडिए के बारे में मैंने सोचा नहीं था। बस खुद ही यह ख्याल चुपके से जेहन में उभर आया था। इस ख्याल पर अमल करना पफायदेमंद साबित हुआ था।
मैंने किसी सीनियर अपफसर से यह कहावत सुनी थी कि चोरीशुदा चीज जब किसी भी तौर पर बरामद नहीं हो रही हो तो खुद को उस चीज की जगह रखकर सोचना चाहिए। इस सिलसिले में मेरे उस सीनियर को एक घोड़े का सुराग नहीं मिल रहा था। आखिर उसने खुद को घोड़ा तसव्वुर कर लिया और यह सोचने लगा, अगर उसके साथ घोड़े वाले हालात पेश आ जाएं तो वह कहां जाएगा। इस कोशिश में उसे कामयाबी हासिल हुई और वह ‘घोड़ा’ बनकर आखिर घोड़े तक पहुंच गया।
जिस केस ने मेरा दिमाग घुमा रखा था, उसमें कोई घोड़ा तो नहीं गुम हुआ था, बल्कि घोड़े का मालिक पिछले पांच-छह रोज से गायब था। मेरे जेहन ने पफौरन ही इस आइडिए में थोड़ा-सा बदलाव किया और मैं तैयार होकर खदीजा बेगम के घर पहुंच गया। ए.एस.आई. मुराद भी मेरे हमराह था और हम घोड़ों पर सवार होकर वहां गए थे।
खदीजा ने रोज की तरह हमारा स्वागत किया। मैं उस कमरे की जानिब बढ़ गया, जिसके अंदर इम्तियाज शेख का सपफेद घोड़ा बंध हुआ था। मुझ पर नजर पड़ते ही घोड़े बड़े जोश में हिनहिनाया। उसके जख्म बड़ी हद तक ठीक हो चुके थे। इस वक्त वह अपने पांव पर खड़ा था।
उसी वक्त ए.एस.आई. ने मेरे कान में सरगोशी की, ‘‘मलिक साहब, यह घोड़ा तो आपको पहचानने लगा है।’’
मैं मुराद की बात को नजरअंदाज करके घोड़े की तरपफ बढ़ा। वह भी मेरी तरपफ लपका। अंदाज ऐसा ही था, जैसे कमरे से बाहर निकलना चाहता हो। मैंने उसकी पीठ थपकते हुए कहा, ‘‘पिफक्र ना करो जवान, मैं तुम्हारी रस्सी खोल रहा हूं। तुम मेरी रहनुमाई करोगे कि तुम्हारा मालिक किस जगह तुमसे बिछड़ा था।’’
वह शांत होकर अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से मुझे देखने लगा।
यह तो मुमकिन नहीं था कि वह इंसानी जुबान को समझ रहा हो, लेकिन उसके व्यवहार से यही जाहिर हो रहा था। बहरहाल, जो भी था, उसको नाम नहीं दिया जा सकता। शायद हमारे बीच कोई रूहानी रिश्ता कायम हो चुका था।
ए.एस.आई. मुराद को मैं अपने मंसूबे से आगाह कर चुका था। खदीजा को भी मैंने थोड़े अल्पफाज में अपने प्रोग्राम के बारे में बताया था और सपफेद घोड़े को अपने साथ ले जाने की बात की थी। वह बड़ी आसानी से मेरी बात समझ गई।
बोली, ‘‘जनाब, यह तो आपको पहली पुफर्सत में ही करना चाहिए था।’’
खदीजा से इजाजत मिलते ही हम उस घने जंगल की तरपफ रवाना हो गए, जो पफरीदाबाद और जिला लक्ष्मण सिंह के दरम्यान पाया जाता था। मैं और ए.एस.आई. मुराद अपने-अपने घोड़ों पर सवार थे, जबकि सपफेद घोड़ा बगैर किसी सवार के आगे बढ़ रहा था। जब तक हम आबादी के अंदर रहे, मैंने घोड़े की लगाम थामे रखी। जंगल की तरपफ जाने वाले रास्ते पर पहुंचते ही मैंने उसकी लगाम छोड़ दी।
पिफर बड़े दुलार से कहा, ‘‘यहां से तुम्हारा काम शुरू होता है जवान, तुम आगे-आगे चलोगे और सीध्े वहां पहंुचोगे, जहां तुम्हारे मालिक इम्तियाज शेख को कोई हादसा पेश आया था।’’
उस बेजुबान ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी और हिनहिनाकर हुक्म की तामील का यकीन दिलाया और पिफर खामोशी से एक जानिब बढ़ गया।
ए.एस.आई. ने हैरत का इजहार करते हुए कहा, ‘‘मलिक साहब, मैंने ऐसा पफरमाबरदार घोड़ा पहले कहीं नहीं देखा।’’
‘‘मैं भी जिन्दगी में पहली बार देख रहा हूं।’’ मैंने गंभीर लहजे में कहा।
वह संजीदगी से बोला, ‘‘इसकी विश्वास भरी चाल से अंदाजा होता है, यह हमें किसी मंजिल पर पहुंचाकर ही दम लेगा।’’
‘‘अल्लाह तुम्हारी जुबान मुबारक करे।’’ मैंने कहा।
‘‘हमें पहले इस घोड़े से मदद लेने का ख्याल क्यों नहीं आया?’’ उसने पूछा।
‘‘मुराद, कुदरत का कोई काम वक्त से पहले नहीं होता।’’ मैंने सोच में डूबे लहजे में कहा, ‘‘यह भी तो देखो, यह बेजुबान पहले चलने के काबिल कहां था। मुझे यूं महसूस हो रहा है, हम अपनी मंजिल के बहुत करीब हैं।’’
आध्े घंटे बाद मेरा यह यकीन सच में बदल कर सामने आ गया। उस सपफेद घोड़े ने हमें नहर के किनारे पहुंचाया और थोड़ा आगे नहर के साथ-साथ जाते हुए एक गड्ढे के पास जाकर रुक गया। हम अपने घोड़ों से नीचे उतर आए।
ए.एस.आई. ने कहा, ‘‘मलिक साहब, यह हमें कुछ बताने की कोशिश कर रहा है।’’
घोड़ा बार-बार गड्ढे की जानिब मुंह करके खास अंदाज में हिनहिना रहा था। उस गड्ढे में पानी भरा हुआ था। मेरे लिए घोड़े का बस इतना ही इशारा कापफी था। इसके बाद मुझे अपनी अकल और अध्किार के घोड़े दौड़ाने थे... और मैंने ऐसा ही किया।
मैंने पफौरन ही ए.एस.आई. को थाने भेजकर कुछ पुलिसकर्मियों को वहां बुला लिया। पिफर दोपहर तक उस गड्ढे का पानी निकालने के बाद सतह से इम्तियाज शेख लाश को बरामद कर लिया। उसके जिस्म पर अनेक गहरे जख्मों के निशान मिले। शायद यह तेजधर कुल्हाड़ियों के जख्म थे, जो उसे बड़ी बेदर्दी से उसे लगाए गए थे।
इम्तियाज शेख के लिबास से उलझी हुई सोने की एक जंजीर भी गड्ढे से बरामद हुई। मैंने वह जंजीर खदीजा को दिखाई तो उसने सापफ इंकार कर दिया। वह जंजीर इम्तियाज की नहीं थी।
इसके बाद भी मैंने उस जंजीर के मालिक की तलाश जारी रखी और आखिरकार उसके मालिक तक पहुंचने में कामयाब हो गया। यह काम करने में मुझे चार-पांच रोज लग गए थे। इस दौरान इम्तियाज शेख को सुपुर्दे-खाक किया जा चुका था।
उस जंजीर का मालिक कोई और नहीं, बल्कि मकतूल का छोटा भाई मुमताज शेख था। मैंने उसे गिरफ्रतार करके तफ्रतीश की चक्की में पीस डाला। पिफर आखिरकार उसने इकबाल-ए-जुर्म कर ही लिया।
उसने बताया था कि उसे किसी तरह तीन हजार की रकम के बारे में सुनगुन मिल गई थी। वह भाई और भाभी के व्यवहार से सख्त नाराज था। उसने जंगल के बीच में इम्तियाज शेख को लूटना चाहा। इस कार्यवाही के लिए उसने अपने दो साथियों का भी इंतजाम किया था। उन तीनों ने नकाब लगा रखी थी। उसके दोनों साथी वारदात अंजाम देने के लिए आगे-आगे थे और वह उनके पीछे-पीछे था।
इम्तियाज के पास से जब कोई रकम बरामद न हुई तो उन्होंने नाकाम होकर दरिंदगी का प्रदर्शन किया और कुल्हाड़ियों के घातक वार करके उसे जान से मार डाला। इस जालिमाना कार्यवाही में इम्तियाज शेख का सपफेद घोड़ा भी शदीद जख्मी होकर वहां से भाग गया और यही जख्मी सपफेद घोड़ा बाद में मुमताज की गिरफ्रतारी का सबब बन गया।
मैंने मुमताज शेख की निशानदेही पर उसके दूसरे साथियों को भी गिरफ्रतार करके जेल में ठूंस दिया। वह अदालत से सजा पाकर आजीवन चक्की पीसने लगे।
आखिर में मैं यह भी बताता चलूं कि अल्तापफ ने मुझे अपनी जिन्दगी के दूसरे दौर के जो हालात सुनाए, वह अपनी जगह शिक्षाप्रद थे। यह दास्तान भी मैं पिफर कभी आपकी खिदमत में पेश करूंगा, अगर जिन्दगी ने वपफा की तो...।