Tuesday, July 10, 2018

                                                              चंगेज खान की मुहब्बत

उस रात बड़ी अजीब बात हुई।
रात के 12 बजे थे। चारों ओर सन्नाटा था। अपनी मेज पर मैं कहानी लिखने के लिए झुका ही था कि एक लंबे-चैड़े आदमी ने कमरे में प्रवेश किया। उसने बड़े ही अजीबो-गरीब किस्म के लबादेनुमा कपड़े पहन रखे थे। वह खरामा-खरामा चलता हुआ मेरी किताबों की अलमारी के पास बिछे सोफे पर जाकर बैठ गया और बड़ी ही बेतकल्लुफी के साथ बोला, ‘‘हैरान मत हो बरखुरदार, मैं चंगेज खान हूं। मंगोलों का सरदार चंगेज खान।’’
मैं उसे देखकर मुस्कुराया, ‘‘जरूर होंगे, मगर मेरे आका, आप अचानक कैसे तशरीफ ले आए? वह भी मुझ जैसे गरीब के गरीब-खाने पर। आपकी तलवार कहां है? फौज-फर्राटा-घोड़े वगैरह भी कहीं नजर नहीं आ रहे? क्या आप 800 साल से कब्र में लेटे-लेटे बोर हो गए थे?’’
‘‘नहीं।’’ उसने अपनी ठोढ़ी पर पूंछ जैसी लटकती अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर कर आंखें मिचमिचा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पास एक खास मकसद से आया हूं। मुझे पता चला है कि तुमने अभी-अभी एक ‘स्टोरी’ छपवाई है, जिसमें तुमने बड़ी ही बेतकल्लुफी और गैर जिम्मेदाराना तरीके से यह लिख दिया हे कि बामियान में जो मूर्तियां तोड़ी गईं, वह बिल्कुल ‘चंगेजी हरकत’ थी?’’
मैंने सकपका कर कहा, ‘‘माई-बाप! कहानियां लिखना मेरा पेशा है। रोजी-रोटी है। अगर उस लफ्ज से आपको तकलीफ पहुंची हो, तो मुझे माफ कर दें।’’
‘‘हूं।’’ चंगेज खान ने अपनी आंखें, जो उसके भारी भरकम, मगर चीमड़ चेहरे पर नन्ही-नन्ही इलायचियों सरीखी लग रही थीं, मेरे चेहरे पर गड़ाकर मुझे घूरकर हुंकार भरी। फिर बोला, ‘‘नहीं, मुझे उस लफ्ज पर उज्र नहीं। उज्र (आपत्ति) तो इस बात पर है कि दुनिया में जहां भी कहीं आफत, मुसीबत, बर्बादी या तहलका होता है, तुम जैसे लोग उसमें मेरा नाम डाल देते हो। यह अब मेरे लिए नाकाबिले बर्दाश्त होता जा रहा है। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी कहानी लिखो।’’
‘‘माई बाप।’’ मैंने थोड़ा संजीदा होकर कहा, ‘‘बेशक कहानियां लिखना मेरा पेशा है। मगर कहानियां तो उनकी लिखी जाती हैं, जिनकी जिन्दगी में थोड़ा-बहुत प्यार-मुहब्बत हो। इश्क वगैरह का किस्सा हो। आपकी लाइफ में तो सिवाय कहर और कयामत के कुछ नहीं है। मैं लिख भी दूं, तो उसे छापेगा कौन? और अगर आपकी दहशत से वह छप भी जाए, तो उसे पढ़ेंगे कौन?’’
‘‘खामोश।’’ अचानक चंगेज गरज उठा। 800 साल बाद भी चंगेज की बूढ़ी आवाज में बादलों जैसी गर्जन थी। उसने दांत किट-किट कर कहा, ‘‘हमारी कहानी लिखी भी जाएगी और पढ़ी भी जाएगी। आखिर यह क्या बकवास है कि दुनिया में जब भी जुल्म और सितम की चर्चा होती है, लोग उसमें मेरा जिक्र कर देते हैं। मैं कहता हूं कि 800 साल में यह दुनिया बिल्कुल नहीं बदली। बल्कि जो कुछ मैंने किया, आज की यह दुनिया उससे भी ज्यादा जुल्मो-सितम करती है।
मैं सिर झुकाए चुपचाप उसकी बात सुन रहा था। मेरी खामोशी से चंगेज थोड़ा नरम हुआ। बोला, ‘‘मैंने जो कुछ किया, पिछले 800 साल से कब्र में पड़े-पड़े मैं उसका प्रायश्चित कर रहा हूं। मगर इस धरती पर 800 साल में क्या नहीं हुआ?
‘‘ 2-2 विश्वयुद्ध, आणविक हथियार, रासायनिक हथियार, ये हिटलर, ये मुसोलिनी, ये स्टालिन, ये ओ डायर!’’
‘‘जो हुक्म!’’ मैंने कहा, ‘‘आप कहानी सुनाएं। मैं उसे टेप कर लेता हूं। बाद में इसे सिलसिलेवार लिख दूंगा।’’
‘‘ठीक है।’’ चंगेज ने कहा, ‘‘सुनो मेरी कहानी और दुनिया को बताओ कि चंगेज सिर्फ वहशी दर्रिदा ही नहीं, एक हंसान भी था और आज दुनिया में हजारों ऐसे इंसान हैं, जिनके भीतर दरिन्दे बसे हुए हैं।’’
‘‘जी।’’ मैंने कहा, और टेपरिकार्डर का बटन दबा दिया।
25 वर्षीय चंगेज खान ने जिस वक्त अपनी प्रेयसी और पत्नी बोर्ताई के तंबू में लगा ऊंट के चमड़े का परदा हटाया, वह बिल्कुल अकेला था। उसकी दाहिनी भुजा की अंगुलियों में फंसी तलवार से खून की बंूदें अभी तक टपक रही थी। जैसे ही बोर्ताई से चंगेज की नजरें मिलीं, उसके सारे जिस्म में वैसी ही सिहरन दौड़ गई, जैसी सिहरन बोर्ताई से पहली मुलाकात के वक्त उसके जिस्म में दौड़ी थी।
बोर्ताई तब भी वैसी थी, जैसी 4 साल पहले थी। वही रेगिस्तानी धूप में तपा चेहरा! छोटी-छोटी चमकदार आंखें! कसकर बांधा गया जूड़ा और पेड़ों की ऊन से बना लंबा-चैड़ा लबादा! गले और हाथों में पहले ढेर सारे चांदी के आभूषणों से फिसलती हुई चंगेज की आंखें बोर्ताई के नाक में पहने उस ‘नकबेसर’ पर जाकर अटक गईं, जो सोने का बना हुआ था और बोर्ताई के जिस्म का एक मात्र सोने का आभूषण था! नकबेसर हमेशा की तरह उसकी नाक के दोनों नथूनों के बीच की उपास्थि में फंसा हुआ था और उसके होंठों को ढंकता हुआ उसकी खूबसूरत ठोढ़ी तक लटक रहा था।
यूं तो सभी मंगोल स्त्रियां इस आभूषण को पहनती थीं, खुद चंगेज की मां ओएबून भी इसे पहनती थी। मगर इस आभूषण को पहनने का जो रहस्य उसे बोर्ताई ने बताया था, वह बड़ा ही अनूठा था। वह कहती थी, ‘‘यह नकबेसर होंठों का पहरेदार है। ताकि बगैर मर्जी के कोई होंठ न चूम सके।’’ फिर वह बड़ी अदा से, अपनी पतली-पतली अंगुलियों से पकड़कर, उस नकबेसर को उलटकर अपने होंठ उसकी तरफ बढ़ा देती जिसे चंगेज प्यार से चूम लेता, वह उससे अलग हो जाती और नकबेसर फिर से उसके होंठों पर ‘बैरियर’ की तरह लटकने लगता।
चंगेज रोमांचित हो उठा। उसने मुस्कुराकर बोर्ताई की ओर देखा। उसने गला खंखार कर जोर से कहा, ‘‘बोर्ताई! मैंने दुश्मनों को खत्म कर दिया है! मैं तुम्हें लेने आया हूं।’’ उसने बाएं हाथ से बोर्ताई को इशारा भी किया कि वह उसके करीब आए। लेकिन बोर्ताई उसकी ओर खामोशी से देखती रही।
चंगेज से रहा नहीं गया। वह धीरे-धीरे उसके करीब जा पहुंचा। उसने बोर्ताई की ओर मुस्कुराकर उसकी आंखों में झांका। वहां सुनापन था। चंगेज ने तलवार एक ओर फेंक दी। उसने जैसे ही बोर्ताई के नकबेसर को हाथ लगाया, उसकी आंखों से आंसुओं का दरिया बह चला। बोर्ताई ने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया और सुबकने लगी।
तभी तंबू में और लोगों के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।
‘‘तेंमुची!’’ यह चंगेज के पिता समान तुगरिल चाचा की आवाज थी, ‘‘दुल्हन को बताओ कि उंगीरा कबीले के उन सभी दुश्मनों को खत्म कर दिया गया है, जो येसूगाई के बेटे की दुल्हन को छीनकर यहां ले आए थे।’’
‘‘हां भाभी!’’ यह चंगेज खान यानी कि तेंमुची के बाल सखा जमूखा की आवाज थी, ‘‘आप बेखौफ हमारे साथ चलें। हमने आपकी राह के सबसे बड़े कांटे सिल्चर को भी मौत दे दी है।’’
सिल्चर का नाम सुनते ही बोर्ताई का सुबकना रुदन में बदल गया। वह विलाप करने लगी। कुछ भी सही, सिल्चर उसका पति था। उसके बेटे जूजी का पिता। उसने रूंधे हुए कंठ से कहा, ‘‘यह आपने क्या किया चाचा जान! मेरे बेटे के बाप को कत्ल कर दिया।’’
‘‘हां दुल्हन!’’ तुगरिल बोला, ‘‘हमारे दादा कबीले का यही उसूल है। जूजी अब तुम्हारा बेटा नहीं, उंगीरा कबीले का बेटा है। हमने अपने कबीले के उसूल के मुताबिक सिल्चर का कत्ल किया है और अब जूजी को भी कत्ल कर दिया जाएगा।’’ बोर्ताई ने तेंमुची की ओर आंसू भरी निगाहों से देखा। तेंमुची के सारे शरीर में रोमांच दौड़ गया। उसे पता नहीं था कि इन चार वर्षों में बोर्ताई एक बच्चे की मां भी बन चुकी है। एक ऐसे बच्चे की, जिसका पिता कोई और है। तेेंमुची ने सिर झुका लिया। बोला, ‘‘चाचा, मुझे थोड़ा सोचने दो। क्या जूजी को भी बेटे की तरह कबूल करना गलत है। अगर मुझे पता होता कि बोर्ताई सिल्चर के बेटे की मां बन चुकी है, तो शायद मैं इस कबीले पर हमला न करता। क्या सिर्फ बोर्ताई को ही अपने उलूस (कबीले) तक ले जाना गलत न होगा। आखिर जूजी को भी कबूल करना चाहिए।’’
तेंमुची के बाल सखा जमूखा को क्रोध आ गया। खून से सराबोर अपनी तलवार को ऊंचा उठाकर उसने कहा, ‘‘यह क्या कह रहे हो तेंमुची! दादा कबीले की आन और शान के खिलाफ बोले जा रहे हो तुम। कबीले का उसूल है कि औरत को हासिल करने के लिए उसके खाबिंद का कत्ल किया जाता है। तुम्हारे अब्बा हुजूर येसूगाई ने गलती की थी, मकीत कबीले के येके चिरादू को छोड़कर। मगर शुक्र है आसमान में बैठे ईलतेंगीरी का, जो उसने येके चिरादू को दोबारा दादा कबीले के लोगों की आंखों के सामने फटकने न दिया। जूजी हमारे दुश्मन का खून है। क्या तुम नहीं जानते कि बच्चे को कबूल करने के लिए ‘कुरिल्तई’ को बुलाना पडे़गा।’’
‘‘मैं येके चिरादू की बात नहीं कर रहा हूं।’’ सहसा तेंमुची की आंखों में खून उतर आया, ‘‘मुझे पता है कि उस नामुराद इंसान का मेरे बाप ने सात पहाड़ियों तक पीछा किया था। मगर मेरी मां ने भी किसी मकीत के बच्चे को जन्म नहीं दिया था। अगर हमने सिल्चर का कत्ल किया है, तो वह कबीले के उसूल के मुताबिक जायज है। क्योंकि सिल्चर बोर्ताई का खाबिन्द था। यह इसलिए भी जायज है, क्योंकि बोर्ताई से पहले हमारी शादी हुई थी। सिल्चर ने भी उसूलन हमें कत्ल करना चाहा था, जो उससे मुनासिब न हुआ। मगर सवाल जूजी का है। उस मासूम का क्या गुनाह है? फिर हमारे कबीले का उसूल भी है कि औरत के नाबालिग बच्चे को बेटे की तरह कबूल करना चाहिए। बेशक कुरिल्तई को बुलाना पडे़।’’
तंबू में धीरे-धीरे दादा कबीले के लोगों का हुजूम बढ़ने लगा। सबके हाथों में नंगी तलवारें थीं, जो खून से रंगी हुई थीं। लगता था जैसे उंगीरा कबीले के इस पूरे गांव को ही कत्ल कर दिया गया हो।
‘‘ठीक है, इसका फैसला कल के ‘कुरिल्तई’ (मंगोलों की पंचायत) में कर लिया जाएगा। इसी वक्त बोर्ताई को हमारे साथ हमारे उलूस (कबीले) तक चलना होगा, अपने बच्चे को छोड़कर।’’ चाचा तुगरिल ने व्यवस्था दे दी।
‘‘रहम चाचा, रहम।’’ सहसा बोर्ताई बिलख कर बोली, ‘‘आसमान में बैठे ईलेतेंगीरी के नाम पर मुझ पर तथा मेरे बेटे पर रहम करें। बेशक मैं उलूस में जाने को तैयार हूं, मगर अपने बेटे के साथ। जूजी अभी मासूम है। दो बरस का मासूम बगैर मां के कैसे रहेगा चाचा?’’ बोर्ताई सहसा अपनी जगह से चलकर चाचा तुगरिल के पास आ गई और उसने तुगरिल के पांवों के पास घुटनों के बल बैठकर अपने लबादे की झोली पसार दी।
तुगरिल का दिल पसीज गया। उसने दो पल सोचा। क्रमशः बोर्ताई और तेंमुची की आंखों में देखा। अपने पीछे खड़े दादा कबीले के लोगों पर गहरी निगाह डाली। फिर दाहिनी भुजा में पकड़ी तलवार उठाकर उसने व्यवस्था दी, ‘‘आसमान में बैठे ईलतेंगीरी के नाम पर एक दिन के लिए बोर्ताई के बेटे को जिन्दगी दी जाती है। कल के कुरिल्तई में जूजी की किस्मत का फैसला हो जाएगा। तब तक जूजी को अपनी मां के साथ रहने की इजाजत दी जाती है। लेकिन बोर्ताई को इसी वक्त दादा उलूस में चलना होगा।’’
बोर्ताई की आंखों से खुशी के आंसू बरस पडे़। ‘‘आमीन।’’ पीछे खड़े दादा कबीले के लोगों ने तलवारें लहराकर नारा लगाया और फिर सभी वापिस दादा कबीले की ओर चल पड़े। इस भीड़ में उंगीला कबीले के वे सभी बच्चे और औरतें थीं, जिनके पति और दूसरे परिवारीजन कत्ल कर दिए गए थे। गांव में आग लगा दी गई थी। उनके झोंपड़े गिरा दिए गए थे। ऊंटो के चमड़े से बने तंबू लूट लिए गए थे। घोड़े, भेड़-बकरियों को खोल लिया गया था। गांव का पूरा माल-असबाब लूट लिया गया था।
जिस समय चंगेज खान की बोर्ताई से शादी हुई थी, उसकी उम्र 9 साल थी और बोर्ताई की 6 साल। चंगेज का नाम उस वक्त तेंमुची था और उसकी पहचान सिर्फ यह थी कि वह दादा कबीले के शासक येसूगाई बहादुर का बेटा था।
येसूगाई बहादुर के बाप का नाम बरतन बहादुर था। बरतन बहादुर के पिता कुबर्लीखान दादा कबीले के शासक थे। यह कबीला आज के तुर्किस्तान और चीन के बीच फैले जेक्सार्टीज नदी के पूर्व से उत्तर तक के विशाल क्षेत्र में था। यह पूरा इलाका शुरू से ही पथरीली पहाड़ियों और पथरीले पर्वतों का विस्तार है। इसी क्षेत्र में गोबी का विशाल मरुस्थल है, जहां चंगेज खान के पूर्वज रहते थे। मंगोलों के ये कबीले दर्जनों ‘उलूसों’ अर्थात् जातीय कबीलों में विभक्त थे।
800 वर्ष पहले इनकी मुख्य जीविका मवेशी पालन, घोड़ों की नस्ल सुधारना और शिकार करना था। ये लोग खेती करना नहीं जानते थे। प्रायः ये लोग पशुओं की खालों से बने तंबुओं में रहते थे। ये तंबू गोल आकर के होते थे और इनमें ऊपर की ओर एक बड़ा-सा छेद होता था, जिसमें से धुआं निकालने का रास्ता था। ये लोग भेड़ की ऊन तथा चमड़े से बने कपड़े पहनते थे और निरंतर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करते रहते थे। एक ‘उलूस’ दूसरे ‘उलूस’ पर हमला करके पशु, मांस, शिकार तथा स्त्रियां छीन लेता था। भूख लगने पर, कई बार अन्य कोई साधन न होने पर ये अपने पशु की किसी एक ऐसी नाड़ी को काटकर वहां मंुह लगाकर खून पी लेते थे, जिसे बाद में जोड़ दिया जाता था।
निरंतर भ्रमणशील रहने तथा धूप, गर्मी में भटकते रहने के कारण इनके चेहरे चीमड़ (झुर्रियों भरे) रहते थे और स्नान न करने के कारण ये निरंतर अपनी त्वचा को खुजलाते रहते थे। विवाह के संबंध में इनकी मान्यता थी कि जब तक कोई अपना निजी ‘तबू’ न जुटा ले, उसे विवाह नहीं करना चाहिए। विवाह में ‘बहुविवाह’ मान्य था और एक पुरुष कई-कई विवाह कर सकता था। अनेक पत्नियां एक साथ रहती थीं।
किसी की पत्नी पसंद आने पर उसके पति की हत्या किए बिना उसे अपने साथ नहीं रखा जा सकता था। अस्थाई रूप से बसे गांव को ‘उर्त’ कहा जाता था और आपसी मसलेे ‘कुरिल्तई’ अर्थात् पंचायती फैसलों से निबटाए जाते थे। ‘कुरिल्तई’ को बाद में ‘मंगोल राजकुमारों की सभा’ के रूप में भी जाना गया।
मंगोल कबीलों का धार्मिक विश्वास किसी एक ‘ईश्वर’ की सत्ता में था, जिसे वह ‘ईलतेंगीरी’ कहते थे। लेकिन धर्म का कोई कर्मकांड नहीं था। उनके पास न कोई मूर्ति थी, न धार्मिक ग्रंथ। न देवालय, न पुरोहित। उनके पास कोई पौराणिक कथा नहीं थी। लिपी का ज्ञान न होने के कारण वे पढ़े-लिखे भी न थे। उनमें सामूहिक रूप से प्रार्थना करने, ईश्वर आराधना करने, भोजन करने, यहां तक कि नृत्य और गायन करने की भी संस्कृति न थी। उनकी सारी नैतिकता के नियम ‘कुरिल्तई’ द्वारा तय होते थे, जो समय≤ पर बदलते रहते थे। भेड़ की हड्डियों को जलते हुए अंगारों पर रखकर, उसमें बने निशानों को देखकर कबीले का सरदार कहीं चलने या रुकने का ‘मुहूर्त’ निकालता था।
भोजन में वे सभी प्रकार के पशु मांस, जिनमें गिलहरियां, नेवले, जंगली चूहे, सांप तक शामिल होते थे, खाते थे। अन्य खाद्य पदार्थों में पेड़ों की जड़, पत्ते, फल, छाल आदि रहते थे। मंगोल स्त्रियां इन्हें बड़े चाव से एकत्र करती थीं और मांस को भून कर खाने की प्रथा थी। मंगोल स्त्रियों का मुख्य कार्य शिकार को भूनना, फलों, जड़ों, पत्तियों को एकत्र करना, पशु का दूध दुहना, तंबुओं को गाड़ना तथा समेटना तथा प्रजनन करना था। हर तंबू में आग को निरंतर जलाए रखा जाता था, जिसे तंबू उखाड़ने के बाद एक मशाल के तौर पर साथ ले जाया जाता था।
साधारण मंगोल पुरुष एवं स्त्रियां इस प्रकार के अपर्याप्त भोजन एवं अनियमित दिनचर्या के कारण प्रायः बेडौल रहते थे। इनकी पतली बांहें, पतले पेट और कमजोर तथा चीमड़ शरीर रहते थे।
इसके बावजूद मंगोल ‘आदिम’ समाज के प्राणी न थे। उनमें जबरदस्त सैन्यकला थी। वे घुड़सवारी, तीर, तलवार, भाले चलाने में दक्ष थे। भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी सहने की उनमें अद्वितीय क्षमता थी। वे पांवों के निशान देखकर शत्रुओं का पीछा करते थे। आकाश के नक्षत्रों को देखकर दिशा का ज्ञान कर लेते थे।
दु्रतगति से पीछा करने और घात लगाकर आक्रमण करने में उनका सानी नहीं था। साधारण सी हैसियत के बावजूद वे इतने साहसी थे कि दीवारों से घिरे किलों, नगरों को उन्होंने ध्वस्त किया। अपने शत्रुओं से ही उन्होंने पत्थर के गोले फेंकने वाली तोपों को लूटा और फिर उन्हीं से उन पर आक्रमण किया।
मंगोलों का चूंकि अपना कोई निजी ‘धर्म’ या धार्मिक संगठन, पुरोहित या देवालय नहीं था, इसलिए वे तत्कालीन सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे और यह उम्मीद करते थे कि अन्य पुरोहित उनकी ‘विजय’ के लिए प्रार्थना करेंगे।
वे अन्तर्जातीय विवाह में विश्वास रखते थे। अपनी पुत्रियों को भी दूसरों को देने में उन्हें कोई ‘गुरेज’ न था।
चंगेज खान का वंश स्वयं को ‘दादा’ कबीला कहता था। जो उनके विश्वास के मुताबिक स्वर्ग में पैदा हुए ‘सलेटी भेड़िया और सफेद हिरणी’ के संयोग से पैदा ह ुए। ये पूर्वज बुर्खान पर्वत की तराई में बस गए थे। इन्हीं में से ‘बातची खां’ उनका आदि पूर्वज था, जिसकी ग्यारहवीं संतान हुआ दुआन मिगनि नाम का व्यक्ति था। मिगनि की पत्नी का नाम ‘एलन गोआ’ था, जिसके 2 पुत्र थे। मिगनी की मृत्यु के बाद उसके 3 पुत्र और हुए। दोनों वैध पुत्रों ने जब अपनी मां पर एक नौकर के साथ व्यभिचार का आरोप लगाया, तो एलन गोआ ने कहा, ‘‘तुम्हें यह मालूम नहीं है, क्योंकि प्रत्येक रात को सुनहरे रंग का एक इंसान मेरे तंबू की चमकती हुई खिड़की से आकर मेरे वक्षस्थल के संपर्क में आता था। मेरे वक्षस्थल में उसका सारा प्रकाश समा जाता था। वास्तव में मेरे तीनों पुत्र स्वर्ग के पुत्र है।’’
इसी एलन गोआ के पुत्रों में से ही चंगेज खान का प्रपितामह कुबलई खाकान था जो समस्त दादा जाति का प्रथम शासक था। कुबलई का उत्तराधिकारी ‘अन्हबई’ एक युद्ध में तातारियों के हाथों बंदी बनाकर ‘किन’ नामक सम्राट को सौंप दिया गया। ‘अन्हबई’ खाकान के 7 पुत्रों में से न था। ‘अन्हबई’ ने तातारियों से 13 बार युद्ध किया। इन्हीं युद्धों के दौरान चंगेज खान का जन्म हुआ। कहते हैं, जब चंगेज का जन्म हुआ था, वह अपने हाथों में रक्त का एक लोथड़ा पकड़े हुए था। उसके पिता येगुसाई बहादुर ने एक बंदी तातार के नाम पर चंगेज का नाम, बचपन में तेंमुची रखा था।
तेंमुची का पिता येसूगाई बहादुर, कुबलई खाकान के द्वितीय पुत्र बरतन बहादुर का पुत्र था। उसने अपने 2 भाइयों की सहायता से एक मकीत जाति के ‘येकेचिरादु’ नामक व्यक्ति की पत्नी ‘ओएलून’ का अपहरण करके विवाह कर लिया। येगूसाई ‘येके चिरादू’ की हत्या नहीं कर सका। वह भाग गया था। ओएलून के 4 पुत्र हुए-तेंमुची, खसर, खाचिऊन और तेमूलून। येगूसाई ने एक और विवाह किया था, जिससे उसें 2 पुत्र बेक्तोर और बेल्गूताई हुए। जब तंेमुची 9 वर्ष का हुआ, तो येसूगाई ने उंगीरा नामक कबीले के ‘दाई सेचेन’ नामक व्यक्ति की पुत्री ‘बोर्ताई’ से उसकी सगाई कर दी। तेंमुची को उसके भावी ससुर के घर छोड़कर जब येसूगाई वापिस आ रहा था, तो तातारियों ने येसूगाई को भोजन में विष दे दिया और वह मर गया।
चमड़े के तंबुओ से वहां जैसे पूरा नगर ही बसा हुआ था। गोलाकार तंबुओं, जिनके ऊपर एक बड़ा-सा छेद था, की संख्या हजारों में थी। एक तरफ भारी संख्या में घोड़े, भेड़, बकरियां और ऊंट बंधे हुए थे। उनके पास ही हजारों की संख्या में गाड़ियां खड़ी थीं। गाड़ियों में भारी मात्रा में पशुओं का चारा, ऊन तथा शिकार करने के सामान-औजार भरे हुए थे।
इन्हीं गोलाकार तंबुओं के बीचों बीच चमड़े का एक विशाल फर्श बिछाया गया था। यह ‘कुरिल्तई’ का दृश्य था। फर्श पर सैकड़ों की संख्या में मंगोल सरदार बैठे हुए थे, जिनके सिर मुंड़े हुए थे और जो ऊन के लबादे पहने हुए थे। सैकड़ों की संख्या में मंगोल चारों तरफ खड़े भी हुए थे। एक तरफ उनकी स्त्रियां अपने-अपने बच्चों को गोद में लिए खड़ी थीं। एक तरफ तेंमुची की मां अपनी बेटी तेमूलून के साथ स्त्रियों की भीड़ में खामोश खड़ी थी।
शाम के समय 60 वर्षीय तुगरिल जिसे ‘दादा’ कबीले के सभी लोग ‘तुगरिल चाचा’ कहते थे, उठ खड़ा हुआ। उसके आदेश से एक युवा मंगोल गड़रिए ने मिट्टी के एक बर्तन में दहकते हुए कोयले लाकर बीचोंबीच रख दिए। थोड़ी देर बाद वही गड़रिया भेड़ के कंधे की 3-4 हड्डियां वहां लेकर आया, जिसे तुगरिल ने हाथ में लेकर आकाश की ओर देखा और कुछ मंत्र बुदबुदाए। इसके बाद उसने ‘ईलतेंगीरी’ का नाम लेकर वह हड्डियां उन दहकते कोयलों के ऊपर रख दीं।
दहकते कोयलों पर हड्डियां ‘चट-चट’ की आवाज के साथ जलने लगीं। तुगरिल अपनी ठोढ़ी पर उगी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए उन्हें चटकते देखता रहा। मंगोल भीड़ शांत भाव से यह दृश्य देख रही थी। थोड़ी देर में ही, जब हड्डियां जलकर कोयला बन गईं, तो तुगरिल घुटनों के बल झुककर उन पर बने निशान देखने लगा। काफी देर तक उन निशानों का अध्ययन करने के बाद वह उठ खड़ा हुआ। भीड़ की ओर मुखातिब होकर उसने कहा, ‘‘तेंमुची वल्द येसूगाई वल्द बरतन बहादुर ‘ईलतेंगीरी’ के इस पवित्र स्थान पर हाजिर हो।’’
फर्श पर बैठा तेंमुची उठकर खड़ा हो गया और धीरे-धीरे चलकर तुगरिल की बगल में जाकर खड़ा हो गया।
तुगरिल ने दोनों हाथ आकाश में उठाकर फिर कुछ मंत्र बुदबुदाए। फिर हुक्म दिया, ‘‘ईल-तेंगीरी के हुक्म से मैं हुक्म देता हूं कि उंगीरा कबीले के दाई सेचेन की दुख्तर और भकीत कबीले के सिल्चर की बेवा बोर्ताई इस पाक ‘कुरिल्तई’ में हाजिर हो।’’
भीड़ की निगाहें बोर्ताई की ओर घूम गईं। बोर्ताई, जो मंगोल कबीले की स्त्रियों के बीच ऊन का मोटा झबला लपेटे, अपनी गोद में बच्चे को लिए खड़ी थी, सिर झुकाए धीरे-धीरे चलती हुई वहां आई और तुगरिल के दाहिनी और थोड़ा हटकर सिर झुकाकर खड़ी हो गई। उसकी गोद में अभी भी बच्चा था, जो भीड़ को देखकर रो रहा था। बच्चे के रोने की आवाज उस भारी भीड़ के सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी।
थोड़ी देर की खामोशी के बाद तुगरिल ने कहना शुरू किया, ‘ईलतेंगीरी के हुक्म से और ‘दादा’ उलूस के कायदों के मुताबिक कल दादा उलूस के बहादुर जवानों ने भकीतों के खिलाफ कूच किया। इस कूच में 20000 किरातों और दादा कबीले के बहादूरों ने हिस्सा लिया। इस पाक युद्ध में भकीतों के 300 गुनहगारों को कत्ल की सजा दी गई और उनके कब्जे से दादा उलूस की इज्जत ‘बोर्ताई’ को बाइज्जत वापिस लाया गया।’’
तुगरिल सांस लेने के लिए थोड़ी देर रूका। उसने शांत खड़े और बैठे मंगोलों पर एक निगाह डाली और फिर कहना शुरू किया, ‘‘दादा उलूस के बहादुर नौजवान तेंमुची, हमारे बचपन के दोस्त और दादा कबीले के पहले सम्राट कुबलई खाकान के वंशज येसूगाई बहादुर के बेटे हैं। येसूगाई ने आज से 16 साल पहले उंगीरा कबीले के दाई सेंचेन नामक व्यक्ति की बेटी बोर्ताई से अपने बेटे तेंमुची की शादी की थी। चूंकि येसूगाई ने भकीत कबीले की ओएलून से शादी की थी और उसके खाबिंद को जिंदा छोड़ दिया था, इसलिए भकीत इस बात से नाराज थे कि दादा कबीले के लोग भकीत कबीले के सगोत्री उंगीरा कबीले की किसी बेटी से रिश्ता करें। इसलिए उन्होंने तातारियों से कहकर पहले ही येसूगाई को खाने में जहर देकर मरवा डाला।’’
‘‘मगर येसूगाई ने ओएलून से शादी के वक्त यह क्यों नहीं देखा कि उसका खाबिंद येकेचिरादू जिन्दा है। कबीले के कानून के मुताबिक येसूगाई को या तो येकेचिरादू की मौत का इंतजार करना चाहिए था, या उसे कत्ल करना चाहिए था।’’ अचानक दादा कबीले में से ही एक बुजुर्ग मंगोल उठकर खड़ा हो गया। उसकी जोरदार तर्कपुर्ण बात सुनकर पहले से ही सन्नाटे में डूबी सभा में सन्नाटा और गहरा हो गया।
‘‘मेरे बुजुर्ग दोस्त ने बजा फरमाया।’’ तुगरिल ने उस बुजुर्ग की बात का इस्तकबाल करते हुए कहना शुरू किया, ‘‘यह सच है कि दादा उलूस के कानून के मुताबिक येसूगाई को येकेचिरादू की मौत से पहले ओएलून से शादी नहीं करनी चाहिए थी। मगर येसूगाई का दोस्त होने के नाते, मैं इस बात की गवाही देता हूं और तस्दीक करता हूं कि येसूगाई ने येकेचिरादू का सात पहाड़ियों तक पीछा किया था। मैं उसके साथ खुद था। मगर येकेचिरादू भाग गया। ऐसी हालत में ओएलून से येसूगाई की शादी जायज थी। खुद ओएलून ने इस शादी को कबूल किया था।’’
भीड़ की निगाहें ओएलून की ओर घूमीं। ओएलून ने सिर झुकाकर अपनी मौन स्वीकृति दी और वह अपनी बेटी तेमूलून के सिर पर हाथ फेरने लगी।
तुगरिल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहना शुरू किया, ‘‘लेकिन इस पुरानी रंजिश की बिना पर भकीतों ने एक और कबीले ‘ताईचू’ की मदद से येसूगाई की औलादों को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। येसूगाई की मौत के बाद ओएलून ने जड़ें खोदकर, पत्ते खाकर और खुद शिकार करके अपने 4 बेटों को पाला। मगर भकीत तेंमुची को मारने की फिराक में लगे रहे। भकीतों के डर से तेंमुची महीनों जंगल में रहा और इधर-उधर छिपता रहा। आखिरकार जब उसने अपना खुद का तंबू बना लिया और नौ घोड़े इकट्ठे कर लिए तो उसने बोर्ताई से शादी की। फिर भकीतों को क्या हक था कि वे उसके घर पर हमला करें। उसके तंबू में आग लगा दें। उसके घोड़ों, भेड़ों और ऊंटों को छीन लें और उसकी बीवी बोर्ताई को छीनकर उसकी शादी भकीत कबीले के एक दूसरे इंसान सिल्चर से कर दें?’’
सभा में बैठे सभी मंगोलों में जोश आ गया। वे चिल्लाने लगे, ‘‘सभी भकीतों को इसकी सजा मिलनी चाहिए। उनका कत्ल-ए-आम होना चाहिए।’’
‘बेशक।’’ तुगरिल ने मुट्ठियां भींच लीं, मगर फिर आकाश की ओर हाथ उठाकर उसने कुछ मंत्र बुदबुदाए और फिर खामोशी से कहना शुरू किया, ‘‘मगर ईलतेंगीरी ने मुझे हुक्म दिया कि इसमें सभी भकीतों को सजा नहीं देनी चाहिए। सजा सिर्फ गुनहगारों को मिलनी चाहिए। इसलिए मैंने और मेरे भाई जमूखा ने, जो खुशकिस्मती से तेंमुची का दोस्त है और उसे प्यार से ‘अंदास’ (सगा भाई) कहता है, ने आप लोगों की मदद से, भकीतों के खिलाफ कूच किया और बोर्ताई को उनके कब्जे से आजाद किया। ‘ईलतेंगीरी’ के हुक्म से और दादा कबीले के उसूलों के तहत बोर्ताई से दूसरी शादी करने वाले सिल्चर को कत्ल करके सजा दी गई। खिलाफत करने वाले 300 भकीतों को भी कत्ल करके सजा दी गई।’’
भीड़ में सन्नाटा अभी तक छाया हुआ था। ‘‘लेकिन अब मसला दूसरा है।’’ तुगरिल सहसा रूका, उसने खामोशी से निकट सिर झुकाए खड़ी बोर्ताई पर एक गंभीर निगाह डालकर कहना शुरू किया, ‘‘अब मसला यह है कि बोर्ताई की गोद में भकीत सिल्चर का दो साल का बच्चा है। इस बच्चे का क्या किया जाना चाहिए?’’
वही बुजुर्ग फिर से खड़ा हो गया। बोला, ‘‘बेशक, पहले इसी कबीले का उसूल था कि दुश्मन के बच्चे को भी कत्ल कर देना चाहिए। मगर हमारे ही खाकान ने इस कबीले में यह हिदायत रखी थी कि छोटे बच्चे का कोई कसूर नहीं होता। उस बच्चे को तेंमुची ही अपने बड़े बेटे की तरह पालने का वायदा इस ‘कुरिल्तई’ में करे। उसे अपना हक दने का भी वायदा करे।’’
बुजुर्ग इतना कहकर बैठ गया। कुरिल्तई में बैठे मंगोलों की निगाहें वापिस तेंमुची की ओर उठ गईं। तेंमुची के होंठ भिंचे हुए थे। क्रोध की चिंगारियां निकल रही थीं। उसने अपनी दाहिनी हथेली को मुट्ठी बनाकर बायीं हथेली पर मारा। फिर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘इतनी बड़ी ‘कुरिल्तई’ में इतनी बड़ी बेइज्जती मैंने कभी नहीं सही। आखिर मैं इस बोझ को अपने सीने में रखकर कब तक जीऊंगा कि मैं जिसे अपना ‘बेटा’ कह रहा हूं, वह मेरा नहीं, मेरे दुश्मन का बेटा है?’’
अब तक खामोश खड़ी बोर्ताई ने चैंककर तेंमुची की तरफ देखा। उसकी सूनी आंखों से सहसा आंसुओं का दरिया फूट चला। वह फिर से सुबकने लगी।
‘‘मगर’’, तेंमुची कह रहा था, ‘‘इस पूरे ‘करिल्तई’ में, आप सब लोगों की मौजूदगी में, मैं ‘ईलतंेगीरी’ की ओर दोनों हाथ उठाकर आपसे वायदा करता हूं कि मैं बोर्ताई को बेहद प्यार करता हूं। बोर्ताई सिर्फ मेरा प्यार ही नहीं, दादा उलूस की, मेरे खानदान की इज्जत भी है। मैं यह भी वायदा करता हूं कि उसके बेटे जूजी को, मैं अपने सबसे बड़े बेटे की तरह पालूंगा। उसे बड़े बेटे की इज्जत और हक दूंगा।’’
इतना कहकर तेंमुची का गला भर्रा गया। इससे ज्यादा वह बोल नहीं सका और वहां से एक तरफ धीरे-धीरे चला गया। भीड़ अवाक् होकर उसे जाता देखती रही।
‘बोर्ताई!’’ तुगरिल ने भावुक स्वर में कहा, ‘‘बोर्ताई, क्या तुम्हें भी अपने हक में कुछ कहना है? अगर तुम चाहो तो अपने बेटे को उसके बाप के रिश्तेदारों को दे सकती हो। यह ‘कुरिल्तई’ वादा करता है कि अगर तुम चाहो तो तुम्हारे बेटे को भकीतों के पास वापिस पहुंचा दिया जाएगा।’’
‘‘बोर्ताई ने आंसुओं से भीगा अपना चेहरा ऊपर उठाया। गोद में खामोश बैठे अपने अबोध शिशु को उसने चूमा, फिर उसे ‘कुरिल्तई’ के बीच में बिछे चमड़े के फर्श पर लिटा दिया। बच्चा मां की गोद छिनते ही रोने लगा। उसका रूदन पूरे ‘कुरिल्तई’ में एक हाहाकार की तरह गूंज रहा था। बच्चे के रोने की परवाह न करते हुए बोर्ताई ने अपना दुपट्टा अपने सिर पर रखा। ‘कुरिल्तई’ को दोनों हाथ जमीन से लगाकर प्रणाम किया। फिर आकाश की ओर मुंह करके दोनों हाथ उठाकर उसने कहा, ‘‘मैं बेबस बोर्ताई ‘ईलतेंगीरी’ की खिदमत में इस कुरिल्ताई के जरिए अपनी अर्ज रखना चाहती हूं कि वह मुझे मेरा कसूर बताएं कि आखिर मेरे बेटे को मुझसे जुदा क्यों किया जा रहा है?’’
कुरिल्तई में सन्नाटा छा गया। लोग अवाक् होकर देखते रह गए। बोर्ताई भीड़ में होकर जाने कहां जा रही थी।
मैं खामोश और रोमांचित होकर चंगेज खान के मुंह से उसकी कहानी सून रहा था। मैं हत्प्रभ था। मैंने अब तक सिर्फ यही सुना और पढ़ा था कि चंगेज खान जैसा दुर्दान्त और क्रूर व्यक्ति आज तक पैदा नहीं हुआ। इतिहास उसे आज तक का सबसे बड़ा ‘संहारक’ बताता आया है। चंगेज के जिम्मे अब तक  40 लाख के आसपास लोगों के कत्ल किए जाने का आरोप है।
जब मुझे मालूम पड़ा कि बोर्ताई अपने बेटे जूजी को भरे ‘कुरिल्तई’ में एकाएक छोड़कर न जाने कहां चली गई है, तो मेरे हृदय में हाहाकार मच गया था। चंगेज खान खामोशी से अपनी कहानी मुझे सुनाए जा रहा था। मेरे लिए यह किसी सदमे से कम न था। मैं नहीं समझ पाया कि अचानक ऐसा कैसे और क्यों हुआ? मैं तो भरी सभा में उसके बेटे को अपनाने, उसे सबसे बड़ा ‘बेटा’ मानने और वैसी ही इज्जत बख्शने का वायदा करके आया था। फिर वह अचानक चली क्यों गई? और फिर अपने बेटे को छोड़ क्यों गई?
मैं उस समय अपने तंबू में बैठा आंसू बहा रहा था, जब जमूखा मेरे पास यह खबर लेकर आया कि बोर्ताई जूजी को ‘कुरिल्तई’ में छोड़कर चली गई। जमूखा मेरे चाचा तुगरिल का भाई था। तुगरिल भी मेरा खास सगा ‘चाचा’ न था। मेरे पिता येसूगाई पर जब मेरे चाचा गोरखान ने हमला किया था तो तुगरिल ने मेरे पिता की मदद की थी। तभी से मैं तुगरिल को अपने पिता तुल्य ही मानता था। जमूखा बचपन में मेरे साथ खेला था, इसलिए वह मेरा दोस्त था और मैं उसे अंदास (सगा भाई) कहता था।
‘‘वह कहां गई होगी?’’ मैंने जमूखा से पूछा, तो जमूखा ने कहा, ‘‘कह नहीं सकता। शायद वह वापिस भकीतों के पास चली गई हो। मगर जिस तरह वह अकेली चल दी है, उससे मुझे शक होता है कि कहीं यह कोई चाल न हो।’’
जमूखा की बात सही भी हो सकती थी। ‘कुरिल्तई’ खत्म हो चुका था। तुगरिल ने ही जमूखा को मेरे पास भेजा था कि मैं जाकर किसी तरह बोर्ताई का पता लगाऊं, क्योंकि तुगरिल ने शुरू में यही समझा था कि बोर्ताई अपने दुख की वजह से औरतों वाले किसी तंबू में अपने बच्चे को छोड़कर चली गई होगी।
‘‘जूजी कहां है?’’ मैंने दोबारा जमूखा से पूछा, तो जमूखा ने धीरे से कहा, ‘‘उसे चाची ओएलून ने अपने पास रख लिया है। लेकिन वह लगातार रोए जा रहा है।’’
मैंने ज्यादा सोच विचार करना उचित नहीं समझा। मैं तंबू से बाहर आया। जमूखा मेरे साथ था। मैंने एक घोड़े को खोला और उस पर चढ़कर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने जमूखा से कहा, ‘‘तुम जाकर अपनी चाची ओएलून से कहो कि वह बच्चे को संभाले। मैं बोर्ताई को लेकर अभी आता हूं।’’
मैं जंगल में दौड़ पड़ा। मेरा घोड़ा जिस ‘काले जंगल’ की तरफ भाग रहा था, वह हमारे ही सगोत्री किरातों का इलाका था। पास के ही जंगलों में ताईचू रहते थे, जिनसे हमारी दुश्मनी थी। मुझे रास्ते में सिर्फ एक व्यक्ति मिला था, जिसने बोर्ताई को काले जंगल की ओर आंसू बहाते हुए जाते देखा था। मेरे लिए यह बड़े ताज्जुब की बात थी कि जिस बोर्ताई को हासिल करने के लिए मेरे कबीले के लोगों ने 300 भकीतों का कत्ल किया था, उसे यूं इस तरह रोते-बिलखते जाने दिया गया।
अभी मैंने आधा मुकाम भी पार न किया था कि मैंने एक छाया को तेजी से ओनान नदी की ओर जाते देखा। वह छाया बोर्ताई की ही थी। मैंने घोड़े को तेजी से ऐड़ लगाई। घोड़ा सरपट भाग चला। मैं रूंआसा हो उठा। यह वही नदी थी, जहां मैं एक बार भकीतों के भय से छिपकर सिर्फ सांस लेने की एक बांस की नलकी के सहारे सुबह से शाम तक पड़ा रहा था। भकीतों ने तब यही समझा था कि मैं ओनान में डूब कर मर गया था और वे चले गए थे। और आज इसी नदी में बोर्ताई अपनी जान देने जा रही थी।
मगर मैं ठीक समय पर पहुंच गया। मैंने उसके ठीक सामने अपना घोड़ा अड़ा दिया। बोर्ताई का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था। उसकी नाक में पड़ा नकबेसर उसके फड़फड़ाते होंठों पर झूल रहा था। उसने डबडबाई आंखों से मेरी तरफ देखा, फिर बोली, ‘‘मुझे मौत को गले लगाने दो खाकान! औरत की जिन्दगी में यही लिखा रहता है कि वह या तो अपने महबूब के बच्चे की मां बने, या फिर अपनी जान दे दे।’’
‘‘बेवकूफ औरत!’’ मैंने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘जिस जूजी की वजह से तुम मरना चाहती हो, उसे तुम किसके सहारे छोड़ कर जा रही हो? जुजी को उसका बाप तो नहीं मिला। मां का हक भी तुमने छीन लिया। अगर उसे मारना ही था, तो उस वक्त उसे मारने से क्यों रोका, जब तुगरिक के साथ गए लोग उसे कत्ल कर देना चाहते थे?’’
मैं घोड़े से उतर आया। बोर्ताई की आंखों में आंसू थे या नहीं, यह मैं देख नहीं सका, क्योंकि सूरज बस छिपना ही चाहता था। मगर उसकी सिसकारियों से मैंने यह अंदाजा जरूर लगाया कि वह रो रही थी। मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर मुझसे गलती कहां हुई? और बोर्ताई इस तरह जूजी को बेसहारा छोड़कर मरना क्यों चाहती थी?
‘‘आओ लौट चलो।’’ मैंने बोर्ताई का मुलायम हाथ पकड़ा, ‘‘मैंने कुरिल्तई में हजारों लोगों के सामने वायदा किया है कि मैं जूजी को अपने बड़े बेटे का हक और इज्जत दूंगा। उस दिन तुम्हारे घर भी यही बात कही थी। और आज यहां, सूरज की तरफ हाथ उठाकर ‘ईलतेंगीरी’ की गवाही में तुम्हें यही वादा देता हूं।’’
बोर्ताई की सिसकियां और तेज हो गईं।
मैंने खामोशी से उसका आंसुओं भरा चेहरा ऊपर उठाया। उसकी आंखें गीली थीं। होंठों पर झूलता नकबेसर भी आंसुओं की बूंदों से भीगा हुआ था। मैंने उसके नकबेसर को अपनी अंगुलियों से उलटकर उसके गालों पर पलट दिया। बोर्ताई ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। सूरज की बहुत क्षीण, मद्धिम रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। मैंने हौले से कहा, ‘‘बोर्ताई, आखिर तुम मरना क्यों चाहती हो?’’
‘‘तेंमुची!’’ बरसों बाद पहली बार बोर्ताई ने अपनी जुबान से मेरा नाम लिया। भर्राए गले से बोली, ‘‘मेरे खाकान, तुम नहीं जानते कि औरत का दर्द क्या होता है? तुमसे मेरी शादी हुई, तो भकीत कबीलों के लोगों ने मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहने दिया। जबकि मैं बचपन से ही तुमसे मुहब्बत करती थी। भकीतों ने जबरदस्ती मुझे तुमसे छीन लिया और सिल्चर से मेरी शादी कर दी। मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि मैं इस वाकये के बाद कितना छटपटाई। मगर मैंने इसे ‘ईलतेंगीरी’ का हुक्म समझकर बर्दाश्त किया। तुम्हें भुलाने की बहुत कोशिश की, मगर भुला न सकी। मेरी जिन्दगी खत्म हो गई थी। मगर सिल्चर ने मुझे एक मासूम बच्चे जूजी की मां बना दिया। मेरी बेबसी की कोई इन्तहा नहीं थी। उस मासूम के जरिये मैंने जीने का बहाना ढूंढा। मैंने किसी तरह खुद को इसके लिए तैयार ही किया था कि यह हादसा हुआ। तुम दोबारा से मेरी जिन्दगी में आ गए। आए भी तो इतने बड़े खून खराबे के बाद। मेरे बेटे के बाप की जिन्दगी छीनने के बाद। खाकान! जरा ठंडे दिल से सोचो, मेरी जैसी औरत इस हालत में यकायक तुम्हें कैसे अपनाती? मगर मैंने बर्दाश्त किया। एक बार फिर से इन हालातो को ‘ईलतेंगीरी’ की मरजी माना। मगर ये ‘कुरिल्तई’, सारी दुनिया के बीच अपनी इज्जत और मुहब्बत का तमाशा, यह मुझसे बर्दाश्त नहीं होता खाकान! बर्दाश्त नहीं होता!’’ इतना कहते-कहते बोर्ताई भरभरा कर रो पड़ी और रोते-रोते मेरी बांहों में ही झूल गई।
मैं तड़प कर रह गया। मैंने बेहोश बोर्ताई को होश में लाने की कोशिश करते हुए जल्दी से कहा, ‘‘होश में आओ बोर्ताई! होश में आओ। बताओ, मैं तुम्हारे लिए और क्या कर सकता हूं?’’
‘‘तुम चाहो, तो भी कुछ नहीं कर सकते खाकान!’’ बोर्ताई उसी तरह मंद स्वर में कहती जा रही थी, ‘‘कल मुझे तुमसे भकीतों ने छीना। आज तुम मुझे भकीतों से छीन लाए। कल फिर भकीत मुझे तुमसे छीनेंगे। यह सिलसिला चलता रहेगा। मैं छिनती रहूंगी। जूजी जैसे बच्चे इसी तरह मिट्टी के ढेर में दम तोड़ते रहेंगे। इससे तो बेहतर है, मैं ही जान दे दूं, ताकि कल कोई दूसरा जूजी पैदा न हो।’’
इतना कहकर बोर्ताई ने आंखें बंद कर लीं। उसकी गर्दन एक ओर मेरी बांहों में लुढ़क गई।
इसके बाद तेंमुची उर्फ चंगेज खान ने वही किया, जो वह कर सकता था। सिर्फ वही! तेंमुची यानी चंगेज खान।
सन् 1220!
यद्यपि समरकंद निकट था, किन्तु चंगेज ने पहले जनकि और नूर के मार्ग से बुखारा के विरूद्ध कूच करने का निर्णय लिया। वह एक लम्बा, तगड़ा, स्वस्थ तथा सुडौल शरीर वाला व्यक्ति था। उसकी आंखें बिल्लियों जैसी थीं और उसकी छितरी दाढ़ी के बाल जल्दी ही सफेद हो गए थे। ऊंट के चमड़े की बनी जैकेट वह हमेशा पहनता था और एक बड़ी तलवार हर वक्त उसके हाथ में रहती थी। बुखारा नगर कोक खान नामक मंगोल के अधीन था। यह व्यक्ति चंगेज खां के पास से भाग आया था और उसने सुल्तान के यहां शरण ले ली थी। कोक चंगेज की बेरहम मानसिकता से वाकिफ था। अतः उसने युद्ध करने का ही संकल्प किया, क्योंकि बगैर युद्ध के भी चंगेज उसे जीवित नहीं छोड़ने वाला था। लेकिन नागरिकों ने चंगेज के पास अपना एक धार्मिक व्यक्ति संदेश लेकर भेजा कि वह नगर में प्रवेश करे।
चंगेज जामा मस्जिद के मंच पर प्रकट हुआ। उसने खुलेआम मांग की, ‘‘मैं ईश्वर का दंड हूं। यदि तुमने भयंकर पाप न किए होते, तो ईश्वर ने मेरे समान दंड तुम्हारे विरूद्ध न भेजा होता। इस भूमि के ऊपर तुम्हारे पास जो संपत्ति है, उसे बताने की आवश्यकता नहीं है। जो कुछ भूमि के नीचे है, वह मुझे बता दो। तुम्हारा यह मुल्क निहायत बेहूदा है। प्रदेश में रातिब (चारा) तक नहीं है। हमारे घोड़ों के पेट भरने का इंतजाम करो।’’
जिस समय चंगेज खान यह कह रहा था, उस समय तक बुखारा के बड़े-बड़े नेता मंगोलों के घोड़ों की देखभाल कर रहे थे। वे संदूकें, जिनमें कुरान रखी जाया करती थीं, घोड़ों को चारा खिलाने की नांद बनाने के लिए एकत्र कर ली गई थीं। चंगेज खान ने बुखारा के 280 धनी व्यक्तियों को अपने शिविर में बुलाकर बंधवा दिया और प्रत्येक पर एक-एक मंगोल सैनिक की ड्यूटी लगा दी कि वह प्रत्येक से जितना संभव हो सके, धन वसूल करें।
किन्तु समस्या फिर भी बनी ही रही। नगर की रक्षक सेना कोक खां अपने प्राणों की आहूति देेने को कटिबद्ध थे। वे दिन-रात मंगोल सेेनाओं का सामना कर रहे थे। उन दिनों बुखारा में जामा मस्जिद और राज महल के सिवाय सभी नागरिकों के मकान लकड़ी के बने हुए थे। ईंट-पत्थरों से मकान बनाना हर किसी के बूते न था। जब चंगेज ने सुना कि कोक खां बाज नहीं आ रहा है, तो उसने नगर के मकानों को जला डालने का हुक्म दे दिया।
सारा नगर आग की लपटों से घिर कर भस्मसात् हो गया। अंत में नगर पर पूर्ण अधिकार कर लिया गया और कोक के सारे सैनिकों को मार डाला गया। गिरफ्तार किए गए युवाओं में, जो भी बालक कोड़े के दस्तों की ऊंचाई से लंबा था, मार डाला गया। तीस हजार शवों की गणना की गई। सैकड़ों बच्चों तथा स्त्रियों को दास बना लिया गया। बाकी, बुखारा के समस्त नागरिकों को मुसल्ला नामक मैदान में गणना के लिए लाया गया। युवक तथा अधेड़ आयु के लोग, जो अगले कूच, जो समरकंद की ओर था, जो सैनिक सेवा के लायक थे, चुन लिए गये। चंगेज जब वहां से चला, तो बुखारा, जो कभी एक जीता-जागता नगर था, एक धुआं देता कब्रिस्तान बन चुका था।
चंगेज ने बुखारा के बाद समरकंद का दुर्भाग्य निश्चित किया। सुल्तान ने समरकंद की हिफाजत के लिए 60000 तुर्क तथा 50000 ताजिक सैनिक नियुक्त किए थे। मगर चंगेज ने नगर को घेरने के 2 दिनों तक कोई युद्ध नहीं किया। तीसरे-चैथे दिन कुछ झड़पें हुईं। पांचवें दिन नगरवासियों ने अपना काजी और शेख-उल-इस्लाम आत्मसमर्पण के लिए भेजा। लेकिन चंगेज ‘देरी’ की वजह से नाराज था। नगर की दीवारें गिरा दी गईं और दूसरे दिन, दूसरी नमाज के वक्त तक उसने पूरे नगर पर कब्जा कर लिया। सुल्तान के 20 वरिष्ठ मंत्रियों सहित 300 सैनिकों का कत्ल कर डाला गया। 1221 की बसंत ऋतु चंगेज ने ऐसे ही गुजारी और फिर वह नकशब के हरे-भरे मैदान में चला आया।
सन् 1221!
चंगेज ने अपने सबसे छोटे पुत्र तुलुई को सदा अपने साथ रखा था। तुलुई अपना जीवन एक अभिशप्त शराबी की तरह बिताता था, लेकिन जब चंगेज ने उसे खुरासान पर हमले के लिए भेजा, तो उसने साबित कर दिया कि वह वाकई चंगेज का बेटा है। खुरासान में ऐसे लोगों की संख्या लाखों में थी, जो आत्मसमर्पण करना चाहते थे। काफी लोग भागकर मर्व नामक घाटी में भी चले गए थे। इन भागने वालों में 70000 तुर्क थे। तुलुई ने अपने पिता का अनुसरण करते हुए सभी तुर्कों की हत्या करवा दी। मर्व की घाटी में छिपे सभी निवासी स्त्रियों, पुरुषों को गणना के लिए नगर के बाहर एक मैदान में 4 दिनों तक भूखा-प्यासा रखकर उनकी गणना करने के बाद ‘कत्ल-ए-आम’ का हुक्म दे दिया गया।
प्रत्येक मंगोल सैनिक को इस आदेश का पालन लाजमी था। अतः प्रत्येक मंगोल सैनिक ने तीन सौ से चार सौ व्यक्तियों की हत्या की। सैयद नसीब ईजुद्दीन नामक एक व्यक्ति इस नरसंहार से किसी तरह भाग निकला था। उसने बाद में शवों की गणना की। फरवरी, 1221 में 13 दिनों में वह सिर्फ 13 लाख शवों की ही गणना कर पाया था। मर्व की घाटी उपजाऊ है, इसलिए यह संख्या अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है।
खुरासान का विनाश, जिसे मंगोल साहित्य में  ‘महान् विजय’ कहा जाता है, के बाद नैशापुर नामक एक अन्य नगर के विनाश का निश्चय किया गया। बहाना ढूंढना कठिन नहीं था। जिस समय तुलुई ने मर्व पर आक्रमण किया था, उसी समय चंगेज का एक दामाद, जिसका नाम तोगाचार कुर्गेन था, अपने 10000 सैनिकों के साथ नैशापुर में आया था। उसे अचानक एक वाण लगा और वह मारा गया। तुलुई का बहनोई और चंगेज का दामाद मारा जाए और नगर का सर्वनाश न हो? तोगाचार की सेना तुलुई के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। दुर्भाग्य तो तय हो गया था, केवल उसके विनाश के ‘प्रकार’ के निर्णय की प्रतीक्षा थी।
सब्जवार, जिसे बैहाक भी कहते हैं, पर तीन दिन के भीषण युद्ध के बाद, विजय प्राप्त कर ली गई। स्पष्ट कत्ले आम का आदेश दिया गया और 70000 लाशें गिनी गईं। तोगाचार सेना तुलुई के आने में बेकरार थी। इसी बेकरारी में उसने नुकान तथा कार नामक 2 नगर ध्वस्त कर डाले। 7 अप्रैल, 1221 को तुलुई नैशापुर पहुंच गया। उसने नैशापुर के सुल्तान के आत्मसमर्पण का प्रस्ताव निर्ममता से ठुकरा दिया। बुध से शनि यानी महज 4 दिनों में पूरा नगर मंगोलों ने लाशों से पाट दिया।
खूंखार चंगेज की बेटी हृदयहीन तुलुई की बहन और रक्त पिपासु तोगाचार की पत्नी तामुची ने नगर में प्रवेश किया, जहां उसके पति का वध किया गया था। नगर में चारों और जले हुए मकानों का धुंआ और लाशें थीं। तोगाचार की पत्नी के लिए बदला लेने को वहां कुछ न था। शेष नागरिकों का भी वध कर दिया गया। यहां तक कि कुत्तों और बिल्लियों को भी मार डाला गया।
नैशापुर में जीवित बचे कुल 40 कारीगरों को तुर्किस्तान ले जाया गया। सात दिन और सात रात नहर के जरिए नगर में पानी बहाया गया, ताकि वहां जौ बोया जा सके। शवों की 12 दिनों तक गणना में बच्चों तथा स्त्रियों को छोड़कर 10 लाख चालीस हजार शव वहां पाए गए। यहां पर कुछ रेत के टीले अब भी नजर आते हैं। कहा जाता है, उन्हें शवों के ढेर की वजह से वैसा बनाना पड़ा, वरना वहां ‘खेती’ नहीं हो पाती।
भेड़ों की जली हुई हड्डियों के कोयले से बने चिन्हों के आधार पर चंगेज अपने कूच का निर्णय किया करता था। इन्हीं चिन्हों ने चंगेज को भारत वर्ष होकर चीन जाने का मुहूर्त नहीं निकलने दिया। वरना उसके हाथों भारत के उत्तरी प्रांतों पंजाब तथा सिंध का तो विनाश निश्चिय था। तब भी नहीं जब जलालुद्दीन ख्वारज्म शाह ने अपना राज्य 1222 के आसपास अपने बेटे सुल्तान जलालुद्दीन मंगबरनी को सौंपा था। जलालुद्दीन ने बामियान में मंगोलों को पराजित किया था। बाद में जब चंगेज ने स्वयं कूच का ऐलान किया, तो जलालुद्दीन ने युद्ध लड़ते हुए अपना घोड़ा, मंगोलों से घिर जाने के बाद सिंध नदी में डाल दिया, ताकि भारत में शरण ले सके।
शाही छत्र अपने हाथों में लिए-लिए ही मंगबरनी ने सिंध नदी पार की। किनारे पहुंचकर उसने अपना छत्र जमीन पर गाड़ा और अकेला ही छांव में बैठा। दूसरी पार खड़े चंगेज ने यह दृश्य देखकर अपने सैनिकों से उस पर बाण नहीं चलाने का आदेश दिया और खुश होकर कहा था, ‘‘किसी भी पिता का पुत्र ऐसा ही तेजस्वी होना चाहिए।’’ बाद में मंगबरनी कुछ कुर्द लोगों द्वारा मार डाला गया था, लेकिन चंगेज ने इसके बाद भी सिंध नदी कभी पार नहीं की। यद्यपि चंगेज ने लाहौर को लूटा।
इसी समय चंगेज को बामियान के युद्ध में अपने बेटे चुगताई के बेटे के मारे जाने का समाचार मिला था। चंगेज ने प्रतिकार में अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे शीघ्रातिशीघ्र उस दुर्ग पर विजय प्राप्त कर लें और किसी भी प्राणी को, यहां तक कि कुत्ते और बिल्लियों को भी न छोड़ें। उसकी आज्ञा का पालन हुआ। गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़ डाले गए। बच्चों के सिर काट डाले गए। परकोटे, राज प्रासाद तथा सरकारी-गैर सरकारी भवन मिट्टी में मिला दिए गए।
जब चंगेज को खबर मिली कि उसके प्रदेश के शासक वंश किन का रवैया फिर से शत्रुतापूर्ण हो गया है, तो उसने अपने देश की यात्रा शुरू की। पहली बार लौटते समय समरकंद के दुर्ग में उसने दो मुस्लिम विद्वानों से वार्तालाप किया और इस्लाम धर्म में अल्लाह पर विश्वास और ‘हज’ के अलावा उसके चारांे अन्य कर्म-कांडों में अपनी सहमति दी। उसने  इमामों और काजियों पर लगे ‘कर’ हटा दिए।
चंगेज खान 1224 में स्वदेश पहुंचा। अपने अंतिम वर्ष उसने तंगूत में बिताए। तंगूत विजय से पूर्व ही रमजान, 624 हिजरी यानी अगस्त, 1227 में वह मर गया। मंगोलों की युगीन परंपरानुसार उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
चंगेज की समाधि के लिए भूमि या भवन के नीचे एक विशेष कोठरी जिसे ‘सुफ्फा’ कहा जाता है, बनाई गई। वहां सिंहासन, कालीन, बर्तन और प्रचुर मात्रा में दूसरी वस्तुएं रखी गईं। उसके हथियार तथा उसकी अन्य प्रिय वस्तुएं भी वहां रखी गईं। उसकी कुछ प्रिय पत्नियों, दासियों तथा कुछ व्यक्तियों को भी उसी कोठरी में रखा गया। इसके बाद उस स्थान को मिट्टी से भर दिया गया। इसके बाद वहां पेड़-पौधे रोप दिए गए, ताकि उस जगह का किसी को भी पता नहीं चल सके। मंगोलों की यह परंपरागत प्रणाली थी। यही कारण है कि चंगेज की समाधि का आज तक पता नहीं है। यहां तक कि उसकी मौत को भी 3 मास तक गुप्त रखा गया, ताकि उसके सैनिक तंगूत पर विजय प्राप्त कर सकें।
वह व्यक्ति जिसने इतिहास में अब तक के सबसे बड़े नरसंहार करके अपनी कीर्ति पर गर्व किया था, जो अपने शत्रुओं के सड़ते शव देखकर खुश होता था, तथा उनके कपालों से मद्यपान के प्याले बनाता था, समय आने पर कीड़े-मकोड़ों का ग्रास बना।
चंगेज खान के पुत्र-पौत्रों की संख्या 10000 से भी अधिक थी। प्रत्येक के पास पद (मुकाम), प्रदेश और सेना संपत्ति थी। स्थानीय दलों के समस्त नेता चंगेज ने मौत के घाट उतार दिए थे, उसका उत्तराधिकारी तैमूर था, जिसे इतिहास तैमूरलंग के नाम से जानता है।
सफलता की भांति कुछ भी सफल नहीं होता। समस्त स्वतंत्र और विरोधी नेताओं के सम्पूर्ण विनाश ने यह निश्चित कर दिया था कि अजम के सभी गृह युद्ध चंगेज के वंशजों और उनके अधिकारियों के बीच होंगे और उन्हीं उपायों द्वारा वे एक-दूसरे का विनाश करेंगे, जिनकी शिक्षा उन्हें चंगेज से मिली थी।
इतिहास साक्षी है, वैसा ही हुआ। आज चंगेज के वंशज कहां है? कोई नहीं जानता।
उसके बाद तेंमुची उर्फ चंगेज खान ने वही किया था, जो वह कर सकता था।
बोर्ताई को तो वह वापिस घोड़े पर बिठाकर ले आया था। कुछ दिनों बाद वह ठीक भी हो गई। मगर तेंमुची शांत नहीं बैठा। उसे बोर्ताई का कहा एक-एक शब्द याद था, ‘‘कल भकीतों ने मुझे तुमसे छीन लिया था, आज तुम भकीतों से मुझे छीन लाए। कल फिर भकीत मुझे तुमसे छीन लेंगे। तब यह सिलसिला यू हीं चलता रहेगा। तेंमुची ने बोर्ताई से और खुद से वादा किया कि वह कभी ऐसी नौबत नहीं आने देगा कि भकीत दोबारा बोर्ताई को उससे छीन सकें। उसने भकीतों को कुचलना शुरू किया। एक के बाद एक युद्ध उसने लड़े। गांव के गांव, उलूस के उलूस उसने बर्बाद किए। वह बर्बाद करता चला गया। वह उस प्रवृत्ति को खत्म कर देना चाहता था, जो बोर्ताई को वापस छीनने को उकसाती है। और इसी कोशिश में वह इस धरती का अब तक का सबसे बड़ा संहारक बन गया।
वह कहां गलत था? उसने बोर्ताई को बचाया था। जूजी को अपने सबसे बड़े बेटे होने का हक और दर्जा दिया था। बोर्ताई से उसे 4 बेटे और हुए थे। चुगताई, ओगताई, हलाकू और ओलिचिरीन। उसने बदला लेने की प्रवृत्ति का सर्वनाश करने के लिए इतिहास का सबसे बड़ा और क्रूर नरसंहार किया।
वह पिछले 800 वर्षों से आज भी अपनी अज्ञात कब्र में लेटा ‘ईलतेंगीरी’ से अपने गुनाहों के प्रायश्चित की दुआ मांग रहा है। मगर बदला लेने की प्रवृत्ति अभी तक खत्म नहीं हुई। शायद कभी होगी भी नहीं। इसीलिए चंगेज पैदा होते रहेंगे। कभी हिटलर की शक्ल में, कभी किसी और की शक्ल में। जमाने ने अपनी सूरत बदल ली है, मगर उसकी सीरत आज भी वैसी ही है।
कुछ ऐसी ही बातें कहकर चंगेज खान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापिस चला गया। मैं हैरान सा सोचता रह गया कि इस विषय पर कहानी कैसे लिखूं?