Thursday, February 28, 2019

10 june ki raat

थाने के सामने आॅटो से उतरकर वो सीधा डियूटी रूम में पहुंचा। जहां एक हवलदार मेज पर रखे एक खूब बड़े आकार के रोजनामचा रजिस्टर पर झुका हुआ पूरी तन्मयता से कुछ लिखने में व्यस्त था।
आहट पाकर उसने एक बार सिर उठाकर पनौती की ओर देखा, फिर अपने काम में व्यस्त हो गया।
पनौती ज्यों का त्यों बना रहा।
‘‘बैठ जा भई क्यों मेरे सिर पर खड़ा है।‘‘ हवलदार पूर्वतः कलम चलाता हुआ बोला।
‘‘मेरे पास इतना फालतू टाइम नहीं है।‘‘
‘‘तो फिर घर जा यहां क्यों खड़ा है?‘‘
‘‘ठीक है जाता हूं, मगर खबरदार जो दोबारा मुझे किसी लाश की शिनाख्त के लिए यहां आने को कहा।‘‘
कहकर वो वापिस जाने को मुड़ा, हड़बड़ाया सा हवलदार लिखना भूलकर जल्दी से बोला, ‘‘अरे रूक भाई! क्यों मेरा भेजा खराब कर रहा है।‘‘
पनौती फिरकनी की तरह वापिस उसकी दिशा में घूम गया।
‘‘किसका फोन आया था?‘‘ हवलदार ने पूछा।
‘‘मुझे नहीं मालूम! महकमा तुम्हारा है, मालूम करो और फटाफट लाश लेकर आओ ताकि मैं उसे पहचानने से इंकार करके अपने घर की राह लगूं, क्योंकि शादी वाली बात तो अभी बनती दिखाई नहीं दे रही।‘‘
‘‘किसकी शादी, क्या बोल रहा है तू?‘‘
‘‘मेरी शादी भाई!‘‘ - पनौती आह भर कर बोला - ‘‘जब वो पहुंची ही नहीं तो बात आगे कैसे बढ़ेगी? समझ गये?‘‘
‘‘नहीं भाई नहीं समझा।‘‘
‘‘कमाल है, सूरत से तो इतने गावदी नहीं लगते।‘‘
पुलिसिये ने तत्काल खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरा फिर किसी तरह जबरन खुद को जब्त करता हुआ बोला, ‘‘लाश तो मथुरा रोड के पास पड़ी है।‘‘
‘‘कमाल है मुझे तो यूं थाने पहुंचने का हुक्म दनदना दिया जैसे एक मिनट भी लेट हो गया तो लाश उठकर भाग जायेगी!‘‘ - वो तल्ख लहजे में बोला - ‘‘लेकर आओ।‘‘
‘‘लेकर आऊं!‘‘ - हवलदार हड़बड़ा सा गया - ‘‘क्या लेकर आऊं?‘‘
‘‘लाश, और क्या मैं तुम्हें चाय-काॅफी लाने को बोल रहा हूं।‘‘
‘‘लगता है सुनाई नहीं दिया तुझे, जब कि अभी-अभी बताकर हटा हूं कि लाश मथुरा रोड के पास पड़ी है।‘‘
‘‘लेकर आओ!‘‘ पनौती जिद भरे स्वर में बोला।
हवलदार को तब तक यकीन आ गया था कि उसके सामने खड़े शख्स का यकीनन कोई स्क्रू ढीला था। इसलिए उसने खुद को भड़क पड़ने से जबरन रोका और बड़े ही शांत भाव से बोला, ‘‘भाई मेरे लाश तो यहां नहीं लाई जा सकती, उसे तो स्पाॅट से पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाएगा, ऐसा ही दस्तूर है। इसलिए पुलिस डिपार्टमेंट पर एहसान कर और घटनास्थल पर जाकर एक बार उसकी सूरत देख ले, फिर भले ही जानबूझकर उसे पहचानने से इंकार कर देना।‘‘
‘‘शर्म तो आई नहीं होगी, गैरकानूनी सलाह देते हुए।‘‘
‘‘गैर कानूनी!‘‘ - हवलदार सकपकाया - ‘‘मैंने कौन सी गैरकानूनी सलाह दी है तुझे?‘‘
‘‘क्यों अभी कहकर नहीं हटे हो कि भले ही मैं जानबूझकर लाश को पहचानने से इंकार कर दूं, ये क्या गैरकानूनी सलाह नहीं है।‘‘
‘‘ठीक है भई तू जीता मैं हारा, अब दफा हो यहां से।‘‘
‘‘ठीक है मुझे वहां पहुंचाने का इंतजाम करो।‘‘
‘‘लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा।‘‘ - हवलदार का बचा खुचा धैर्य जवाब दे गया - ‘‘इस बात को भूल गया लगता है कि तूं कहां खड़ा है।‘‘
‘‘अगर ये धमकी है, तो उठकर ट्राई क्यों नहीं कर लेता।‘‘ - पनौती उसी के टोन में बोला - ‘‘तोंद वर्दी से बाहर उछलने को तैयार है तेरी, देखना कुर्सी से उठकर मेरे पास आने में ही तू पसीने से नहा जाएगा।‘‘
हवलदार हकबकाकर उसे देखने लगा। पुलिसवाले का मजाक उड़ाना क्या कोई हंसी मजाक था? तब जाकर पहली बार उसने पनौती के सूट-बूट पर गौर किया।

साला कोई मीडिया वाला तो नहीं है?‘ - उसने मन ही मन सोचा - क्या पता चलता है?‘