Friday, March 8, 2013

रूप को नहीं समर्पण को देखिए




रूप को नहीं समर्पण को देखिए


‘हया, आज मैंने एक रेस्टोरेंट में ऐसी महिला देखी, जो थी तो 30 की लेकिन लगती थी 18 की....’ रंजन जैकेट उतारते हुए बोला तो हया खीझ गई- ‘आते ही शुरू हो गए....? 30 की औरत 18 की दिख ही नहीं सकती कितना भी कुछ कर ले। मैं तो 28 की हूं लेकिन क्या 18 की लगती हूं?’

‘तुममें वह बात कहां है... वह अपील कहां है कि तुम 18 की लगोगी...’ कहकर रंजन चुप हो गया।
हया का अच्छा-खासा मूड ऑपफ हो गया। वह मन ही मन बुदबुदाई- ‘इस आदमी का दिमाग खराब हो गया है.... बाहर की औरतें कितनी भी उम्र की क्यों न हों, इसे कमसिन और युवा ही लगती हैं.... मेरी खूबसूरती तो इसे दिखती ही नहीं..’
तभी रंजन ने टोक दिया- ‘अब किन ख्यालों में डूब गई? जाकर खाना तो ले आओ।’
‘तारीपफ करो दूसरों की बीवियों की और तुम्हारी तिमारदारी मैं करूं.....?’
‘क्या कहा तुमने...? तुम्हें सारी सुख-सुविधएं मैंने मुहैया करा रखी हैं... किस बात की कमी रखी है कि तुम मेरा कहना नहीं मानोगी?’ रंजन के माथे पर यह कहते-कहते बल पड़ गए।
‘पिफर मुझमें क्या कमी है कि तुम पराई औरतों में खूबसूरती तलाशते पिफरते हो....? तुम्हारी बातें मेरा अच्छा खासा मूड खराब कर देती हैं....’ हया की आंखों में आंसू आ गए।
‘कोई औरत मुझे अच्छी लग गई तो आकर तुमको बता दिया तो कौन-सा गुनाह कर दिया? इसमें बुरा मानने की क्या बात है?’ रंजन ने यह कहते हुए हया के कंध्े पर हाथ रख दिया।
‘कंघे से हटाओ हाथ.... झूठा प्यार दिखाने की जरूरत नहीं....’ हया ने यह कहकर अपना कंध खींच लिया।
‘तुम्हें मेरा प्यार झूठा लग रहा है?’
‘और नहीं तो क्या.... बाहर की खूबसूरती देखने का ही तो यह नतीजा है कि घर आते-जाते तुम्हें मुझसे अरुचि सी हो जाती है या पिफर मैं तुम्हें ओल्ड दिखने लगती हूं...। बिस्तर पर गलती से भी तुममें गर्माहट नाम की चीज कभी नजर आई है... ठंडे आदमी....’
‘मैं ठंडा आदमी हूं....?’ कहते-कहते रंजन के होंठ सूख गए। आंखों में गुस्सा भर गया।


ईश्वर ने सब कुछ दिया है। हया की सर्विस अच्छी है। रंजन का जॉब अच्छा है। घर में आध्ुनिक सुख-सुविधएं हैं। दोनों के पास गाड़ी है। अपना मकान है। ऐसी बात भी नहीं कि हया बदसूरत है। लेकिन पिफर भी रंजन और हया के बीच प्यार की गर्माहट नहीं है। आज अध्किांश दंपतियों का यही हाल है। सारी सुख-सुविधएं हैं, लेकिन आपस में कोई तालमेल नहीं है। ‘अपनी-अपनी डपफली अपना-अपना राग’ वाली कहावत उनके जीवन पर लागू है।
जीवन को जितना ही आसान और सुगम बनाया जा सकता है उतना ही बनाने की कोशिश होनी चाहिए, नहीं तो दांपत्य जीवन उलझ कर रह जाता है, जो बाद में सुलझाने पर भी सुलझ नहीं पाता।
पुरुष में एक अवगुण होता है। उसे हर हाल में परायी स्त्राी अच्छी लगती है। भले ही वह उसकी पत्नी से बदसूरत ही क्यों न हो। जो पुरुष चतुर और समझदार होते हैं, वे पत्नी को अपने इस अवगुण से अवगत नहीं होने देते हैं और यह कभी नहीं बताते कि पफलां औरत उन्हें अच्छी लगी या लगती है। रंजन पढ़ा-लिखा तो है पर एक समझदार पुरुष नहीं है। उसे युग-बोध् नहीं है। कहां क्या बात कहनी चाहिए, इसका ज्ञान व्यक्ति को अवश्य ही होना चाहिए। इसका बोध् न होने पर व्यक्ति का जीवन बोझ बन जाता है।
रंजन का जीवन उसके लिए बोझ ही तो बन गया है, साथ ही उसने हया के जीवन को भी नरक बना दिया है। हया ऑपिफस से आने के बाद उसके लिए किचन में जाकर खाना बनाती है। उसके लिए सजती-संवरती है। रातें हसीन होने के सपने देखती है और रंजन जब घर आता है तो उसके सारे सपने टूट जाते हैं। यह एक दिन की नहीं, बल्कि रोज की ही बात है। घर में घुसते ही रंजन शुरू हो जाता है- ‘आज मैंने एक ऐसी औरत देखी कि मेरे होश उड़ गए। बला की खूबसूरत थी। उसमें गजब की सेक्स अपील थी....’


इस तरह की बातें रंजन को इतना उत्तेजित कर देती हैं कि हया को देखकर उसमें उत्तेजना उत्पन्न ही नहीं होती और सेक्स में सारा खेल उत्तेजना का ही तो है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जो पुरुष दिनभर दूसरी औरतों को घूर-घूर कर देखते हैं.... मन ही मन उनके साथ सहवास करते हैं या आंखों से देख-देखकर उनके साथ रातें हसीन करने की कल्पना करते हैं, वे रियल लाइपफ में पत्नी को देखकर जल्दी या आसानी से उत्तेजित नहीं हो पाते हैं। उनमें यौन-ठंडापन आ जाता है और ऐसा होना स्वाभाविक है। यह सच भी है, व्यक्ति जब दिन भर में कई औरतों को ध्यान से निहारता है तब उसके मनो-मस्तिष्क में अपनी पत्नी को लेकर एक सवाल खड़ा हो जाता है कि उसकी पत्नी में इन तमाम औरतों के गुण और सौंदर्य क्यों नहीं हैं? यानी वह अपनी पत्नी में अनेक औरतों के गुण-सौंदर्य को एक साथ देखना चाहता है और जब घर पहुंचकर उसे पत्नी में ऐसा कुछ नजर नहीं आता है तो उसे पत्नी बेकार सी लगने लगती है। अनेक औरतों के गुण-सौंदर्य को किसी एक औरत में पिरोना कुदरत के हाथ में जब नहीं है तो पिफर ऐसी कल्पना व्यक्ति क्यों करता है?
यही बात तो समझने वाली है। आज अध्किांश पुरुष या पिफर स्त्रिायां भी इस मनोरोग से पीड़ित हैं। ज्यादातर घरों में यह कहते सुना जा सकता है कि मेरी तो किस्मत ही पफूट गई थी कि तुम जैसे गए गुजरे व्यक्ति से शादी हो गई। तुमसे अच्छा तो मेरी सहेली का पति है या पफलां पड़ोसन का पति है।
ऐसे शब्द दांपत्य को दीमक की तरह चाट जाते हैं। सेक्स तो दूर की बात है, दंपतियों में बातचीत भी नहीं हो पाती है। आज गुप्त रोग से पीड़ित अध्किांश स्त्राी-पुरुष इस कारण से भी हैं, जो शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार रहते हैं। उन्हें दवा की नहीं, ज्ञान की जरूरत है। वे पहले तो अपने आप को पहचानें, पिफर विवाह को समझें, इसके बाद विवाह क्यों हुआ है इस रहस्य को जानें। विवाह स्त्राी-पुरुष का होता है यौनानंद के लिए और जब तक स्त्राी-पुरुष खुशी-खुशी एक-दूसरे के करीब नहीं आते तब तक विवाह का मकसद पूरा नहीं हो पाता है। अपने विवाह को सपफल बनाने के लिए आवश्यक है कि पुरुष एक पति होने का र्ध्म निभाते हुए अपनी पत्नी को ही सर्वाध्कि अच्छा इंसान मानें। एक कर्तव्यनिष्ठ पति का ही सेक्स जीवन सुखद एवं आरोग्य होता है। पत्नी कितनी सुन्दर है इसका बोध् तब होता है जब पति का रवैया उसके प्रति याराना होता है।पत्नी कोई चीज नहीं कि घर आकर रंजन की तरह उसकी तुलना बाहर की औरतों से की जाए। वह पति का ध्यान रखती है, खाने पर उसका इंतजार करती है, बच्चों की देखभाल करती है, उसके लिए सजती-संवरती है तो क्या आप को कहीं से भी ऐसा लगता है कि एक पत्नी से अध्कि खूबसूरत कोई दूसरी औरत हो सकती है? हरगिज नहीं। चमड़ी पर मत जाइए, भावनाओं और समर्पण पर जाइए। समर्पित पत्नी से अध्कि सुन्दर कोई दूसरी औरत हो ही नहीं सकती और पत्नी ऐसी हरकतों से पति के प्रति कभी भी समर्पित नहीं हो पाती। उसे आपकी तारीपफ की नहीं प्यार और समर्पण की जरूरत होती है और यही चीजें आपको उसे हर पल देनी है।
µराजेन्द्र पाण्डेय