Thursday, March 21, 2013

वह स्टेचर पर लेटी हुई थी, उसकी आंखों में उत्सुकता थी तो कान मानों कोई विषेश बात सुनने को लालायित हों।

माया मिली न राम

वह स्टेचर पर लेटी हुई थी, उसकी आंखों में उत्सुकता थी तो कान मानों कोई विषेश बात सुनने को लालायित हों।

फ्मुबारक हो!य् लेडी डॉक्टर उसका चेकअप करने के बाद मुस्कराती हुई बोली, फ्तुम मां बनने वाली हो।य्

फ्क्या?य् यह सुनते ही वह उछल पड़ी और खुशी और आश्चर्य के लिए मिले-जुले भाव से डॉक्टर को देखने लगी।

फ्तुम मां बनने वाली हो! परन्तु अभी देर है यह सिर्पफ दूसरा ही महीना है...।य्

फ्ओ थैक्यू डॉक्टर! थैक्यू वेरी मच!य् वह डॉक्टर को क्या कहे उसकी समझ में नहीं आ रहा था, उसे इतनी खुशी मिल गई थी कि उसकी समझ में नहीं आ रहा था वह अपनी इस खुशी को इजहार किस तरह से करे। सच पूछा जाय तो ऐसा खुषी का पल उसके जीवन में कभी आया ही नहीं था, आज मानों उसकी चिरप्रतीक्षित मुराद पूरी हो गई थी।
क्लीनिक से निकल कर घर की ओर चली तो उसकी पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे।
उसका मन चाह रहा था वह सबसे पहले अपनी सास को यह खुशखबरी सुनाए, वह भी उसके मुंह पर तमाचा मारने वाले अंदाज में, सचमुच यह खबर उसकी सास के लिए तमाचे जैसी ही तो होगी। जो हमेशा उसे बांझ होने के ताने दिया करती थी।
षादी के बाद के दस वर्षों में जो उसने उसे मानसिक यात्नाएं दी हैं वह उसका बदला आज वह ले सकती है। उसके मां बनने की खबर सुनकर उसकी सास के चेहरे पर जो खुशी और पिफर अपने तानों के बारे में सोचकर पश्चाताप के भाव उभरेंगे यही उसके लिए उसकी यातनाओं का बदला होंगे। यही उसकी जीत होगी।
परन्तु पिफलहाल ऐसा सम्भव नहीं था, वह इस खबर को सुनने के बाद अपनी सास के चेहरे पर आते जाते तेजी से बदलते भावों को देखने का लुत्पफ नहीं उठा सकती थी क्योंकि उसकी सास गांव में रहती थी। जबकि वह पति के साथ षहर में रह रहीं थी।
फ्कोई बात नहीं-उसने सोचा। बाद में सही।य्
पिफलहाल वह यह बात केवल अपने पति रतन को ही बता सकती थी।
अपने बाप बनने की खबर सुनकर तो रतन खुशी से दीवाना हो जाएगा और उसे बांहों में लेकर पागलों की तरह चूमने लगेगा।
जब ससुराल वाले ताने देते थे तो उसका मन कुढ़ता था वह हीन भावना का शिकार होकर सोचने लगती थी कि सचमुच उसमें ही कोई कमी तो नहीं? ऐसे वक्त में रतन की बातें उसका ढांढ़स बंधाती थीं।
कभी-कभी इस बात को लेकर उसका ससुराल वालों से बुरी तरह झगड़ा हो जाता था उसका मन चाहता था कि वह सापफ कह दे।
फ्डाक्टर से चेकअप करा ला ेमुझ में कमी है या आपके बेटे में मामला अभी सामने आ जाएगा।य्
परन्तु वह अपने पर संयम रखते हुए होंठों से कोई बात नहीं निकालती थी।
वह सोचती।
फ्जब रतन स्वयं कहता है कि मुझमें कोई कमी नहीं है। वह स्वयं कभी इस बात पर जोर नहीं देता तो पिफर यदि मैंने ऐसी कोई बात मुंह से निकाली तो क्या उसके मन को अघात नहीं लगेगा?य्
और यदि डाक्टर ने कह दिया कि मैं सचमुच बांझ हूं तो?
वह इस विचार से ही कांप उठती थी।
कई बार तो सास ने उसे ध्मकी ही दे डाली थी, फ्कान खोलकर सुन, यदि तू इस साल मां नहीं बनी तो यह साबित हो जाएगा कि तू बांझ है मैं जूते मारकर घर से निकाल दूंगी और रतन का दूसरा विवाह कर दूंगी।य्
फ्हे भगवान अब क्या होगा? क्या अब भी तुझे मुझ पर दया नहीं आएगी, अब भी तू मेरी गोद नहीं भरेगा और हमेशा के लिए मुझे रतन के जीवन से निकाल देगा?य्
यह सोच-सोचकर उसकी रातों की नींदें हराम हो गई थीं।
कभी मन चाहता था कि इस विषय में रतन से बात करे। परन्तु वह सोचती बात करने से क्या लाभ? यह मामला उसकी बस में और हाथ में कहां है? यदि ऐसा होता तो वह तो कभी की मां बन गई होती।
घर आकर वह पलंग पर लेट गई और रतन के आने की राह देखने लगी। रतन ऑपिफस गया था। शाम से पहले उसकी ऑपिफस से आने की कोई आशा नहीं थी।
वह रतन के आने की राह देखने लगी और प्लान बनाने लगी कि किस तरह वह रतन को खुशखबरी सुनाएगी।
सोचते-सोचते अचानक उसका मन भटक गया। और आंखों के सामने नारद का चेहरा नाचने लगा। उसे अपना वह कुकृत्य नजर आने लगा जो पिछले दो महीनों से जारी था, जिसे उसने स्वयं षुरू किया था, उसने जानबूझकर अपने कदमों का बहक जाने दिया था, बच्चेे को पाने की आस और रतन को अपना बनाये रखने की चाह में उसने बहुत कुछ खोया था। नारद का विचार मस्तिष्क में आते ही वह कांप उठी और उसके भीतर से एक आवाज आईµ
फ्अब मुझे नारद से सारे संबंध तोड़ लेने चाहिए। वरना एक छोटी-सी गलती मेरा जीवन नष्ट कर देगी। यदि रतन को भनक भी लग गई कि नारद के साथ मेरे कुछ और ही संबंध हैं तो वह मुझसे न केवल घृणा करने लगेगा, बल्कि हमेशा के लिए मुझे अपने जीवन से निकाल देगा।य्
उसने यह तय तो कर लिया था वह नारद से अपने सारे संबंध तोड़ लेगी, परन्तु उसके मस्तिष्क में एक नया ही विचार उथल-पुथल मचा रहा था।
उसके पेट में जो बच्चा है वह रतन का है या नारद का है?
यह एक ऐसा प्रश्न था जिसका उत्तर कोई नहीं दे सकता था, वह भी नहीं।
अब तो यह केवल भगवान ही बता सकता है कि उससे पेट में जो बच्चा है वह रतन का है या नारद का है।
क्योंकि वह गत पांच वर्षों से यदि रतन के संपर्क में थी, तो गत दो-तीन मास से उसके नारद के साथ अनुचित शारीरिक संबंध भी थे।
नारद उसके पड़ोस में रहता था।
वह कॉलेज में पढ़ता था और उसकी रतन से अच्छी दोस्ती थी इसलिए अक्सर उनके घर आया-जाया करता था।
नारद सहज भाव से रतन से दोस्ती के नाते उनके घर आया-जाया करता था और वह भी नारद से सहज भाव से मिलती थी उससे हंसी मजाक और बातें करती रहती थी।
तीन महीने पहले तक दोनों के मन में ऐसी कोई बात नहीं थी।
नारद को ऐसा करने के लिए विवश उसके भीतर के दानव ने ही किया था। उसने ही नारद को अपने साथ अनुचित शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए विवश किया था, उसके पीछे उसका ही स्वार्थ था।
और केवल उसी स्वार्थ के लिए उसने रतन के साथ विश्वासघात और बेवपफाई करते हुए वह घिनावना कदम उठाया था।
अन्तिम बार जब वह ससुराल से आई और उसकी सास ने सापफ शब्दों में धमकी दे दी कि यदि अबकी बार भी मां नहीं बनी तो वह रतन का दूसरा विवाह कर देगी तो वह सोचने के लिए विवश हो गई।
वह रतन को खोना नहीं चाहती थी और इसलिए उसके मन में कई शैतानी विचार उठने लगे। उसने सोचा हो सकता है रतन में ही कोई कमी हो जिसके कारण वह मां नहीं बन पा रही है। यदि ऐसा है तो वह तो कभी मां बन नहीं पाएगी। रतन की मां उसका दूसरा विवाह कर देगी और मुझे हमेशा के लिए रतन के जीवन से निकाल देगी। मेरी एक न चलने देगी।
यदि मैं रतन से मां नहीं बन सकती तो दुनिया में ऐसे सैकड़ों पुरुष हैं जिनसे मैं मां बन सकती हूं। यदि मुझे रतन को नहीं खोना है तो मुझे हर हाल में मां बनना पड़ेगा, चाहे रतन से, चाहे किसी और पुरुष से। मुझे बेषक अपना चरित्रा गिराना पड़ेगा मगर मेरा ईष्वर जानता है कि ऐसा मैं विवषता में कर रही हूं ना कि अपने तन की ज्वाला षांत करने के लिए, वैसे भी भूख जैसी कोई चीज नहीं थी, वह रतन से पूर्ण संतुश्त थी। मगर बच्चे की चाह ने उसे बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था। अब उसे बच्चा चाहिए था हर हाल में हर कीमत पर।
और इसके लिए उसने नारद को चुना।
नारद बड़ा ही सुन्दर स्वस्थ युवक था,वह बीए प्रथम वर्श का छात्रा था और उनके कापफी समीप भी था इसलिए वह अपनी इच्छा नारद से ही आसानी से पूरी कर सकती थी। उसे पता था कि नारद उसे कभी गलत नजरों से नहीं देखता है।
परन्तु उसे यह भी पता था कि उसके पास एक ऐसा सुन्दर युवा शरीर है जो अच्छे अच्छों का ईमान डगमगा सकता है।
उसने नारद पर डोरे डालने शुरू कर दिए। वह नारद से पहले से अधिक खुलकर बातें और हंसी-मजाक करने लगी। बातें करते-करते वह नारद के इतने समीप चली जाती कि उसके युवा शरीर के स्पर्श से नारद के भ्ीातर आग लग जाती उसका चेहरा भावनाओं के आवेश से सुर्ख हो जाता और नारद को स्पर्श पर नियंत्राण रखना कठिन हो जाता। परन्तु वह ऐसा प्रतीत करती जैसे कुछ हुआ ही नहीं और एक बार तो वह सारी सीमाएं ही लांघ गई।
उस दिन जब रतन ऑपिफस गया हुआ था और घर में वह अकेली थी, नारद उससे मिलने के लिए घर आया।
उस समय उसने नारद के साथ ऐसा व्यवहार किया कि नारद को स्वयं पर नियंत्राण रखना कठिन हो गया।
उसका संयम का बांध टूट गया।
उस रोज सेकेण्ड के सौवें हिस्से में रीनाने अपना अगला कदम निर्धारित किया था और अपना कुर्ता उतारकर एक छोटी सी शाल ओढ़कर दरवाजे तक पहुंची और दरवाजा खोल दिया।
फ्नमस्ते भाभी।य् नारद बोला, फ्रतन भइया हैं घर पर?य्
फ्नहीं वो तो आपिफस गये है, शाम तक आयेंगे।य्
फ्ठीक है मैं जा रहा हूं शाम को आऊंगा।य्
फ्अरे ऐसे कैसे चले जाओगे चाय पीकर जाना य्
फ्नहीं भभी पिफर कभी।य्
फ्पिफर कभी नहीं, अभी, चाय पीये बिना तो मैं तुम्हे जाने नहीं दूंगी।य्
फ्ठीक है।य् नारद हंतसा हुआ बोला, फ्पिला दीजिए।य् कहकर वह भीतर आया तो रीनाने दरवाजा बंद कर दिया और उसे आकाश के कमरे में ले जाकर बिठाया। पिफर बोली, फ्तुम बैठो मैं चाय बनाकर लाती हूं।य्
ठीक इसी वक्त सोपेफ की पुश्त में निकली एक कील में रीना शाल का एक कोना पंफसा चुकी थी। अतः वह ज्योंही दरवाजे की ओर बढ़ी, कील में उलझी उसकी शाल खिंचकर उसके शरीर से अलग हो गई। रीनाने तत्काल यूं अभिनय किया जैसे वह झपटकर शॉल पकड़ लेना चाहती हो और इस कोशिश में वह नारद की गोद में जा गिरी। उसके शरीर के ऊपरी हिस्से पर मात्रा अंगिया थी जो उसके भारी और कसावदार उरोजों को छिपा पाने में नाकापफी थी।
नारद एकदम से हड़बड़ा उठा। हड़बड़ाई तो रीनाभी थी। मगर वह सिर्पफ अभिनय कर रही थी। उसने जानबूझ कर नारद की गोद से उठने में समय लगा दिया। नारद जवान था, एक औरत का अर्धनग्न शरीर उसकी गोद में पड़ा था, उसका गला खुश्क होने लगा। शरीर में एक अजीब सी सनसनी पैफल गई, दिल हुआ रीनाको उठने न दे और उसे अपनी बांहों में भरकर जीभर कर मस्ती करे। मगर ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
रीनापुनः शल लपेटकर कमरे से बाहर निकल गई और चाय बना लाई, अपना यह वार खाली जाता देख कर वह तिलमिला उठी। उसने नारद से थोड़ी देर बैठने को कहा और बाथरूम में जा घुसी और नारद कुछ क्षण पहले गुजरे हादसे को यादकर मन ही मन आनंदित हो रहा था और इस बात पर पछता भी रहा था कि क्यों नहीं उसने तभी रीना को अपनी बांहों में भींच लिया क्या पता बात बन ही जाती। और नहीं भी बनती तो रीना उस बात का किसी से जिक्र करने की स्थिति में नहीं थी। यही सोचते हुए वह चाय का घूंट भरने लगा। अभी चाय खत्म भी नहीं होने पायी थी कि उसे बाथरूम से आती रीनाकी आवाज सुनाई दी, वह कह रही थी, फ्नारद, बाहर खाट पर मेरे कपड़े पड़े हैं जरा पकड़ा देना।य्
फ्अच्छा भाभी।य्
कहता हुआ वह आंगन में आया, वहां खाट पर रीनाकी ब्रा, पैंटी और सूट रखा था। नारद ने एक बार इधर-उधर देखा, पिफर उसके कपड़ों को यूं मुट्ठी में भींचा मानो रीनाके शरीर को भींच रहा हो। कपड़े लेकर वह बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचा। दरवाजा थोड़ा सा खुला था उसमें से रीनाएक हाथ बाहर निकाले थी, उसकी नग्न टांगों की झलक भी नारद को मिली, जिससे उसकी कनपटियों में खून बज उठा। उसकी हसरतें बेकाबू हो उठीं उसने बाथरूम का दरवाजा धकेल कर पूरा खोल दिया। सामने रीनाका नग्न जिस्म दमक रहा था, नारद ने पफौरन उसे अपनी बांहों में भींच लिया।
उसने उसे बांहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा।
उसने भी कोई विरोध नहीं किया और नारद को पूरा-पूरा सहयोग देने लगी।
वह भी तो यही चाहती थी।
उसके बाद यह क्रम ही आरंभ हो गया। जब रतन ऑपिफस गया होता, तब नारद कॉलेज से सीधा उसके घर आता और दोनों एक-दूसरे में खो जाते।
दो-ढाई मास तक यह क्रम चलता रहा।
वह अपने स्वार्थ के लिए सारी नैतिकता-अनैतिकता भूल गई थी।
वह तो बस मां बनना चाहती थी।
और आज मां बन गई थी।
परन्तु किसके बच्चे की मां?
रतन के बच्चे की या नारद के बच्चे की?
उसने अपना सिर झटक दिया।
वह बेचैनी से रतन की राह देख रही थी। जैसे ही रतन आया उसका मन चाहा कि वह रतन को तुरन्त वह खुशखबरी सुना दें परन्तु पिफर उसने स्वयं ही सोचा आखिर इतना भी उतावलापन किस काम का।
उस दिन उसे रतन बड़ा ही उदास और खोया-खोया नजर आया।
फ्क्या बात है?य् रतन को यूं खोया-खोया देखकर उसने पूछा, फ्आज आप कुछ परेशान-से लग रहे हैं?य्
फ्रीना! आज मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताना चाहता हूं जो मैं दस वर्षों से सीने में दबाए हुए हूं और जो मुझे भीतर ही भीतर से दीमक की तरह से खोखला किए जा रही है।य्
फ्ऐसी कौन-सी बात है, जो आपने अभी तक मुझसे छिपाई?य् उसने पूछा।
फ्हमारे विवाह को दस वर्ष हो गए, तुम अभी तक मां नहीं बन सकीं,य् रतन बोला, फ्इसके लिए तुम मां के चार साल से ताने सह रही हो। वास्तविकता तो यह है कि तुम मुझसे कभी मां नहीं बन सकती, क्योंकि मुझमें बाप बनने की योग्यता नहीं है।य्
फ्नहीं!य् यह सुनते ही उसके मन को एक आघात लगा।
फ्हां रीना!य् रतन सिर झुकाकर बोला, फ्यह दस वर्ष पहले की बात है एक दुर्घटना मैं मैंने अपनी बाप बनने की काबलियत खो दी थी, मैं लाख कोषिष करूं तुम्हे मां नहीं बना सकता।य्
फ्नहीं।य् यह सुनते ही वह चीख उठी, फ्ऐसा नहीं हो सकता। हे भगवान यह तूने क्या कर दिया।य्
वह तो सोच ही रही थी कि मां बनने के बाद उसके जीवन को सुरक्षितता मिल जाएगी। नारद के साथ वह अपने संबंध तोड़ भी देती तो किसी को पता भी नहीं चलेगा कि उनका एक रूप वह भी है।
परन्तु रतन ने जो वास्तविकता बताई थी उसने उसे तोड़ कर रख दिया था।
रतन में बाप बनने की योग्यता नहीं है। इसका मतलब उसके पेट में जो बच्चा है वह नारद का है। रतन को जब पता चलेगा कि वह मां बनने वाली है तो वह जान लेगा कि वह बदचलन, चरत्रिहीन, कलंकिनी है और उससे नपफरत करने लगेगा। भला कोई भी पति चरित्राीन पत्नी को कैसे सहन कर सकता है।
उपफ भगवान ने कैसी परीक्षा ली थी उसकी, अपना सतीत्व लुटाकर भी वह अध्ूरी ही रही। अब ना चाहते हुए भी उसे गर्भपात कराना ही होगा। सोचते हुए वह पफपफक कर रो पड़ी।