Friday, March 22, 2013

सब इंस्पेक्टर अजय कुमार की जुबानी

गुनाह की दहलीज

                                                       -अजय कुमार सब इंस्पेक्टर

आखिरकार उसकी नजर अपने 14 वर्षीय देवर पर ठहर गई। वह उसे गुनाह की दहलीज पर चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन जब वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ, तो उसे वहां से ढकेलकर गुनाह के कटघरे में ला खड़ा की... 


11 अक्टूबर, 2006 के दोपहर सवा बारह बजे का वक्त था। मैं थाने में आकर अपने सीट पर बैठा ही था कि तभी एक सिपाही ने आकर बताया कि एस.एच.ओ. साहब बुला रहे हैं।
जब मैं उनके केबिन में पहुंचा और उनका अभिवादन कर पूछा, ‘‘कहिए सर।’’
एस.एच.ओ. बक्शी राय ने कहा, ‘‘अजय, मुस्तपफाबाद स्थित नेहरु नगर के मकान नंबर डी-3/462 में एक महिला बलात्कार की शिकार हो गयी है। मैं चाहता हूं आप इस केस की जांच-पड़ताल करें।’’
‘‘ठीक है, सर। मैं अभी घटनास्थल पर पहुंचकर जांच शुरू करता हूं,’’ इतना कहने के बाद मैं बिना समय गंवाये तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गया। वह एक मंजिला मकान था। मैं मकान के बाहर कुछ लोगों की भीड़ इकट्ठी थी। मकान के अंदर गया। उस मकान में दो कमरे बने हुए थे। उन्हीं में से एक कमरे में एक 28-30 वर्षीया महिला रो रही थी। कुछ लोग उसके पास बैठकर उसे चुप करा रहे थे। उसकी स्थिति देखकर मैं समझ गया कि बलात्कार की शिकार यही महिला हुई होगी। मैं उसके पास पहुंचा तो वह मुझे देखते ही चीखने-चिल्लाने लगी और थोड़ी देर बाद हिचकियां लेते हुए बोली, ‘‘साहब, मैं लुट गयी, बर्बाद हो गयी। मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही। मेरी समझ में कुछ आ नहीं रहा है। मन में आता है कि जहर खाकर अपनी जान दे दूं।’’
मैंने उस महिला को समझाया, ‘‘आप शांत हो जाइए और विस्तारपूर्वक बताइए, आपके साथ यह सब कैसे हुआ और कब हुआ? यकीन मानिए, अगर आप मुझे सब कुछ सच-सच बताएंगी, तो आपको पूरा इंसापफ मिलेगा। हम आप जैसे दुःखी लोगों के मदद के लिए ही हैं।’’
‘‘साहब, मेरा नाम ताहिरा है। मेरी शादी को करीब सात साल हो चुके हैं। मेरे शौहर का नाम मोहम्मद नाजिम है। मेरी 5 वर्षीया बेटी मुस्कान है और 4 वर्षीय एक बेटा शहजान है। घर में हम पति-पत्नी तथा बच्चों के अलावा मेरे शौहर के अबू बाबर अली और मेरा 14 वर्षीय देवर परवेज रहते हैं। 10 अक्टूबर की रात को मैं रोजमर्रा के कामों को निपटाकर सो गई थी। मैंने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया था। मेरे शौहर उस दिन घर में मौजूद नहीं थे। वह किसी काम से बाहर गए हुये थे। रात के करीब बारह बजे मेरा देवर परवेज दबे पांव मेरे कमरे में आकर अंदर से दरवाजा बंद कर दिया। पिफर मेरे पास आकर वह सो गया। इस दौरान मैं गहरी नींद के आगोश में थी। मुझे परवेज के कमरे में आने का जरा-सा भी आभास नहीं था। इसका आभास मुझे तब हुआ, जब उसकी बांहें मेरे जिस्म को अपनी गिरफ्रत में लेकर वह मुझे चूमने लगा। उसकी इस हरकत से मेरी नींद टूट गई और मैंने उसका विरोध् किया, तो उसने मुझे थप्पड़ मारा और कहा कि चुपचाप लेटी रहो। अगर उठने की कोशिश की तो जान से मार दूंगा। कमरे में अंध्ेरा पफैला था, किंतु परवेज की सख्त आवाज से मैं डर गई और चुपचाप पड़ी उसे मनमानी करने दी। परवेज ने मेरे साथ बलात्कार किया। अपने को तृप्त करने के बाद उसने मुझे ध्मकी दी कि अगर मैंने किसी से कुछ कहा तो इसका अंजाम बहुत भयानक होगा।’’
थोड़ी देर ठहर कर ताहिरा ने कहा, ‘‘मैं परवेज की ध्मकियों से डरी नहीं, सुबह जब मेरे शौहर आये, तो मैंने उन्हें उनके भाई की करतूत बतायी और कहा कि थाना में रपट लिखवा दीजिए। जब मेरे शौहर ने यह सब सुना तो वह मुझे उल्टा मारने लगे और कहा कि अगर तुमने थाने में रपट लिखवाई तो अच्छा नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि इससे हमारे परिवार की बहुत बदनामी होगी। इतना कहकर वह पिफर घर से बाहर निकल गये। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, क्या न करूं। आखिर में मैंने कापफी सोचकर अपने भाइयों जाकिर और ताहिर को अपने घर बुलाया और उन्हें सारी बातें बतायीं। उन्हें तो कापफी क्रोध् आया और वे परवेज को मारने-पीटने के लिए उठे, लेकिन लोगों के समझाने पर उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को पफोन किया।’’
थोड़ी देर अपनी सांसों पर काबू पाने के लिए ताहिरा रुकी, पिफर उसने कहना शुरू किया, ‘‘मेरे शौहर मुझसे बहुत नाराज हैं। वह कहते हैं कि तुमने जानबुझकर मेरे भाई परवेज को पफंसाया है। अब आप ही बताइये, मैं क्या करूं? मेरे शौहर नाजिम को मुझ पर एतबार नहीं है। वह कहीं चले गए हैं। साहब, अब आप ही मुझे इंसापफ दिलाएं। मैं उस बलात्कारी को सख्त-से-सख्त सजा दिलवाना चाहती हूं।’’
मैंने ताहिरा का बयान लिया। मेरे साथ थाने से दो महिला कांस्टेबल भी आई थीं। मैंने उन दोनों के साथ ताहिरा को मेडिकल जांच के लिए अस्पताल भेजा। ताहिरा के जाने के बाद मैं घर की जांच-पड़ताल करने लगा और साथ ही लोगों से पूछताछ भी की। इन सभी कार्यों में लगभग चार घंटे लग गये। तब तक ताहिरा महिला कांस्टेबलों के साथ वापस आ गई। उसके साथ मेडिकल रिपोर्ट भी थी, जिसके अनुसार ताहिरा के साथ बलात्कार होने की पुष्टि की गई थी।
मैं ताहिरा को लेकर थाने आया और उसकी तहरीर पर परवेज के विरु( बलात्कार का मुकदमा कायम कर लिया।
12 अक्टूबर को मैं दो कांस्टेबलों के साथ ताहिरा के घर गया। उस वक्त उसका शौहर नाजिम घर पर मौजूद था। मुझे देखते ही वह कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया और मेरा अभिवादन करते हुए कहा, ‘‘आइए सर, बैठिए।’’
‘‘मुझे तुमसे कुछ पूछताछ करनी है, इस कारण तुम्हें मेरे साथ थाने चलना होगा।’’ इतना कहने के बाद मैंने कमरे के अंदर देखा तो पाया कि 14-15 वर्ष का एक किशोर भी वहां पर खड़ा है। मुझे देखकर वह घबरा गया। यूं ही वह किशोर मासूम लग रहा था। जब मैंने उसका परिचय नाजिम से पूछा तो उसने बताया कि वह उसका छोटा भाई परवेज है। परवेज का परिचय पाने के बाद मैंने उसे ध्यान से देखा। दुबला-पतला वह किशोर 14 वर्ष का होगा। वह देखने में बिल्कुल मासूम था। उसे देखकर कहीं से भी नहीं लगता था कि वह एक 28 वर्षीया महिला, जो गदराये जिस्म की थी, के साथ बलात्कार कर सकता था। लेकिन उस वक्त इस संदर्भ में मैं खामोश रहना ही उचित समझा और नाजिम तथा परवेज को थाने लेकर आ गया। जब मैंने नाजिम से पूछताछ की तो उसने कहा, ‘‘मैंने 10 अक्टूबर की रात को घर में नहीं था। अपने एक दोस्त की शादी में गया था।’’
नाजिम की बातों से मुझे यकीन हो गया कि नाजिम घटना वाली रात को घर में मौजूद नहीं था।
मैंने नाजिम को छोड़ दिया और परवेज को थाने में ही रोके रखा। अब मैंने परवेज से पूछताछ शुरू कर दी। उसने बताया कि वह नौंवी कक्षा का छात्रा है। उसने अपनी भाभी ताहिरा के साथ बलात्कार नहीं किया है।
मैं उससे मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ करता रहा। परवेज ने मुझे बताया कि अब से करीब आठ महीने पहले कि बात है। वह अपने अब्बू के साथ सो रहा था। उस वक्त नाजिम भाई घर में नहीं थे। रात के करीब साढ़े ग्यारह बज रहे थे। भाभी ताहिरा ने मुझे जगाया और कहा, ‘‘परवेज, जरा मेरे कमरे में चलो।’’
जब मैं वहां पहुंचा तो पाया कि मुस्कान और शहजान गहरी नींद में सो रहे थे। भाभी ने मुझे अपने करीब बैठाया और कुछ देर तक मुझसे इधर-उध्र की बातें करती रहीं। पिफर मुझे अपने पास लिटा लिया और मेरे संवेदनशील अंगों के साथ खेलने लगी। पहले तो मुझे यह सब अजीब-सा लगा, किंतु उनके छेड़छाड़ के कारण मैं उत्तेजित हो उठा और पिफर उनके साथ शारीरिक संबंध् बनाया। किसी स्त्राी के साथ मेरा यह पहला मौका था। इसमें मुझे भी कापफी मजा आया। इस कारण मैं अपनी भाभीजान की ओर आकर्षित हो गया। अब जब भी घर में भाईजान नहीं होते तो भाभीजान रात को मुझे अपने कमरे में बुला लेती और हम दोनों में संबंध् बनता। ऐसा करीब हमारे बीच आठ महीने से चल रहा था। 10 अक्टूबर की रात को भी भाभीजान से मुझ अंतरंग संबंध् बनाने के लिए कहा, लेकिन उस रात मैं उनके साथ शारीरिक संबंध् बनाने से इंकार कर दिया। दरअसल, भाभीजान से संबंध् बनाते-बनाते मैं अपराध्बोध् से ग्रसित हो गया था। मैंने किताबों में पढ़ा था कि यह सब पाप है, इस कारण मैं भाभीजान से संबंध् बनाने के लिए इंकार कर दिया। मैंने भाभी जान से कहा, ‘‘भाभीजान, खुदा के लिए आप मुझे मापफ कर दें। मुझसे जो गलती हो गई है, उसे मैं ताउम्र नहीं भूल सकूंगा।’’
मेरा इतना कहते ही भाभीजान क्रोध् से आग-बबूला हो गई और उन्होंने कहा, ‘‘जब तुमने इतने दिनों से मेरे साथ शारीरिक संबंध् बना रहा था, तो कोई अपराध्बोध् तुझे नहीं हुई, और आज नखरे कर रहा है।’’
‘‘भाभीजान, अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। इस कारण मैं अब यह पाप नहीं करूंगा।’’ मैंने कहा।
इतना सुनते ही वह गुस्से से बिपफर पड़ी। मुझे गालियां देने लगीं। मैं चुपचाप दूसरे कमरे में आकर सो गया। घर पर अब्बू और भाईजान नहीं थे। थोड़ी देर बाद भाभीजान मेरे कमरे में आयी और उन्होंने मुझसे आखिरी बार शारीरिक संबंध् बनाने के लिए मेरी खुशामद करने लगी। मैंने सोचा, चलो एक बार और सही। उस वक्त रात के बारह बज रहे थे। जब मैं तैयार हो गया, तो भाभीजान बिस्तर पर आ गई और वह मुझे बेतहाशा चूमने लगी, जिससे मैं अपने आप पर काबू नहीं रख सका और शीघ्र ही उत्तेजित होकर उनके जिस्म में समा गया।
इतनी सब बातें बताने के बाद परवेज पफूट-पफूटकर रोने लगा। जब मैंने उसे ढाढ़स बंधाया, तो उसने रोते हुए कहा, ‘‘मुझे क्या पता था कि साजिश कर वह मुझे बलात्कार के आरोप में मुझे पफंसा देंगी।’’
थोड़ी देर ठहरकर उसने कहा, ‘‘साहब, वह मुझे झुठे बलात्कार के आरोप में पफंसाना चाहती है, लेकिन हकीकत यह है कि मैंने उनके साथ बलात्कार किया ही नहीं। उन्होंने मुझे खुद शारीरिक संबंध् बनाने के लिए उकसाया था। साहब, आप मुझे बचा लीजिए, मैं जेल नहीं जाना चाहता। खुदा की कसम, मैं गुनाहगार नहीं हूं।’’
मैंने परवेज को तसल्ली दी कि मैं उचित कार्यवाही करूंगा। इसके बाद मैंने ताहिरा को थाने में बुलवाया और उससे कहा, ‘‘ताहिरा, तुम परवेज को बलात्कार के झुठे आरोप में पफंसाकर उसकी जिंदगी बर्बाद कर रही हो।’’
मेरी बात सुनकर ताहिरा ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘साहब, मैं सच कह रही हूं। परवेज ने मेरे साथ बलात्कार किया है। मैं उसे हर हालत में सजा दिलवाना चाहती हूं।’’
ताहिरा के पति नाजिम के बयान, परवेज के बयान और अन्य लोगों से पूछताछ के साथ ही ताहिरा के बातचीत करने और व्यवहार से मुझे दाल में काला नजर आने लगा। 14 वर्ष का पतला-दुबला किशोर किस प्रकार 28 वर्षीया गदराये जिस्म की तंदुरुस्त महिला के साथ जबर्दस्ती करने में सपफल हो सकता है?
मोहल्ले के लोगों से ताहिरा के चरित्रा के विषय में मुझ कुछ जानकारी मिली, जिसके अनुसार ताहिरा निप्रफोमेनिया जैसी यौन विकृति की शिकार थी। मनोविज्ञान में बताया गया है कि निप्रफोमेनिया ऐसी यौन विकृति है, जिसमें स्त्राी को प्रतिदिन 6-7 बार सहवास किये चैन नहीं मिलती और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि निप्रफोमेनिया की शिकार महिलाओं को एक पुरुष से भी संतुष्टि नहीं मिलती है।
निप्रफोमेनिया के बारे में अन्य बातें बताने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि यह एक सेक्स कुंठा है, कोई बीमारी नहीं। प्रत्येक स्त्राी के मन में ;अवचेतन मन मेंद्ध यह एक दबी हुई कुंठा रहती है कि वह अपने पति के अलावा किसी अन्य के साथ अथवा एक साथ कई पुरुषों के साथ सेक्स करे।
इस कुंठा से अर्थात् निप्रफोमेनिया की शिकार केवल महिलाएं होती हैं। कोई भी महिला इस कल्पना से ही रोमांचित हो उठती है कि उसके बिस्तर में उसकी बगल में दो या चार निर्वस्त्रा पुरुष पड़े हैं और वे सभी उसके जिस्म को मसल रहे हैं, निचोड़ रहे हैं। इस इच्छा या भावना को ‘सेक्स पफैंटेसी’ भी कहा जाता है।
90 प्रतिशत स्त्रिायां पर पुरुष से यौन इच्छा तो रखती हैं, लेकिन सामूहिक रूप से सेक्स इच्छा केवल 10 प्रतिशत महिलाएं ही पसंद करती हैं।
क्लियोपेट्रा के बारे में सभी जानते ही हैं कि वह एक रात में सौ पुरुषों से मुख मैथुन करती थी। क्लियोपेट्रा व्यक्तिगत तौर पर भी अत्यंत कामुक थी। और यही कामुकता जब अत्यध्कि बढ़ जाती है, तो ‘निप्रफोमेनिया’ का रूप ले लेती है।
रोम के सम्राट नीरो और पफैलीगुला द्वारा सामूहिक सेक्स आयोजनों के वर्णन अब तक पढ़ने को मिलते हैं। चीन के सुंग वंश की राजकुमारी शानचित एक अवसर पर एक साथ 30 पुरुषों से शारीरिक संबंध् बनाती थी।
16वीं सदी में षष्ठम् अलैक्जैंडर नामक पोप के बारे में कहा जाता है कि वह स्वयं, उसका बेटा सीजेयर बोर्जिया तथा उसकी बहन लुक्रे जिया बोर्जिया, तीनों ही इस सेक्स कुंठा के शिकार थे। पिता, पुत्रा और पुत्राी द्वारा आपस में सामूहिक व्यभिचार होता था।
भारत के पूरे पर्वतीय अंचल में यह प्रथा रही कि चार-पांच भाइयों के मध्य एक ही पत्नी होती है। वे अपने को पांडवों का वंशज बताते हैं और सभी भाइयों की एक पत्नी रात्रि में अपने पतियों के सामूहिक यौनाचार की शिकार बनती है।
यदि वह ‘पत्नी’ निप्रफोमेनिया से ग्रस्त न भी हो, तो कुछ दिनों के बाद उसकी ऐसी आदत हो जाएगी।
ताहिरा और निप्रफोमेनिया के विषय में कापफी देर तक सोचने के बाद भी मैं मजबूर था। मैं परवेज को बलात्कार के आरोप से बचाना चाहता था, क्योंकि सच्चाई मेरे सामने थी, लेकिन मेरे पास कोई सबूत नहीं था, जो परवेज के लिए ढाल साबित हो।
मेडिकल रिपोर्ट और ताहिरा के बयान के आधर पर मुझे परवेज को गिरफ्रतार करना पड़ा, क्योंकि सारे सबूत परवेज के खिलापफ थे। परवेज की आंखों में सच्चाई नजर आ रही थी। वह बार-बार अपनी गलतियों की मापफी मांग रहा था, लेकिन मैं चाहकर भी उसे बचाने में असमर्थ था।
बहरहाल, मैंने परवेज के खिलापफ अपराध् संख्या 663/2006 पर भारतीय दंड संहिता की धारा 323/376/506 के तहत मामला दर्ज कर उसे मुखर्जी नगर स्थित बाल न्यायालय में पेश किया, जहां उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
जिस चालाकी से ताहिरा ने 14 वर्षीय मासूम परवेज को बहला-पफुसला कर संबंध् बनाकर पफंसाया था, इससे तो औरत जात पर ही शर्म आती है। कुछ लोगों के अनुसार ताहिरा अपने देवर परवेज के हिस्से की संपत्ति को हड़पना चाहती थी। इसीलिए उसने उसे बलात्कार के आरोप में पफंसाया था।





पेड़ का रहस्य

 जानलेवा पेड़ का रहस्य

खुर्दा-बालूगां उड़ीसा् राष्ट्रीय राजमार्ग पर है मंगलाजोड़ी गांव। गांव से कुछ ही दूरी पर है एक सूखा पेड़। जो इस पेड़ का स्पर्श करता है, उसकी मृत्यु हो जाती है। इध्र-उध्र की बात करेगा और मुंह से निकलेगा अनवरत खून, बाद में छटपटाकर मौत की आगोश में समा जाएगा। इससे निजात पाने के लिए क्यों ना आप किसी भी डॉक्टर या ओझा-गुनी से इलाज करवा लें, लेकिन यह होकर ही रहेगा। यह न तो कोई सुनी-सुनाई बता है और न ही कोई पिफल्म की कहानी है, बल्कि यह मानना है कि मंगलाजोड़ी गांव के लोगों का। वहीं प्रशासन का कहना है कि यह महज ग्रामीणों का वहम है। इसमें कोई सच्चाई नहीं है।

खुर्दा के जिलाध्ीश का कहना है कि विगत चार-पांच माह में उस गांव के सात लोगों की मौत की बात कही जा रही है। यह किसी खास बीमारी की वजह से भी हो सकती है। इस मामले की जांच के लिए प्रशासनिक टीम के अलावा मेडिकल टीम क गठन किया गया है। मेडिकल टीम मरीजों की जांच कर बीमारी और मौत के कारणों का पता लागायेगी। जिलाध्ीश ने कहा कि जांच रिपोर्ट के बाद ऐसे मामले में कुछ कहा जा सकता है। वैसे उन्होंने भूत व पेड़ के आतंक की बात को महज बकवास बताया है।
पिछले दिनों गांव गई मेडिकल टीम को ग्रामीणों ने मरीजों को दिखाने से इंकार कर दिया। उनका कहना है कि इसका हल कोई तांत्रिक ही निकाल सकता है। पूरे मामले की तहकीकात करने पर लोगों ने बताया कि 15 पुफट का सूखा यह पेड़ अभी तक इसने क्षेत्रा के सात लोगों की जान भी ले चुका है। भय से अब तो गांव के लोगों ने उस पेड़ को दूर से भी देखना छोड़ दिया है। बच्चों ने तो उस रास्ते से होकर दिन में भी स्कूल जाना बंद कर दिया है। शाम होते ही सारा गांव पेड़ के आतंक से निस्तब्ध् हो जाता है। गांव के कई परिवार इस भय से गांव छोड़कर अपने बाल-बच्चों के साथ पलायन करने लगे हैं। इन सब के बीच पेड़ के करीब तांत्रिक अनुष्ठान जारी है।
वहीं गांव वालों ने बताया कि करीब एक साल से यह पेड़ सूख जाने के बावजूद वैसे ही खड़ा है। कुछ दिन पहले गांव के 58 वर्षीय महंत बेहेरा ने घरेलू कामकाज के लिए इस पेड़ को काटने का प्रयास किया था, मगर पेड़ को छूते ही बेहोश हो गया। उसे टांगी अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने जवाब दे दिया तो उसे राजधनी अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही उसके मुंह से कापफी खून निकलने लगा और वह मर गया। पुनः 45 साल के जननायक नामक एक महिला लकड़ी संग्रह करने के प्रयास में पेड़ को स्पर्श किया और उसकी भी उसी हालत में मौत हो गई। इसके बाद अनिल कुमार नामक एक लड़के ने खेल-खेल में पेड़ की एक डाली तोड़ दी और दूसरे दिन उसकी भी मौत हो गई। 17 साल के भवानी शंकर नामक एक लड़के ने पेड़ को छू लिया तो उसके नाक तथा मुंह से खून व उल्टी हुई और दो दिन बाद उसकी मौत हो गई। यह सिलसिला यहीं समाप्त नहीं होता है। एक दिन एक महिला अपने एक महीने के बच्चे को लेकर उसी रास्ते से जाते समय डर गई एवं घर पहुंचते ही उसका बच्चा मर गया।
इसके अलावा कुछ महीने पहले भी गांव के अन्य दो व्यक्तियों की मौत भी इसी वजह से हो गयी थी। मानस मांझी नामक एक युवक सब कुछ जानबुझकर कुछ लोगों को पेड़ के पास खड़ा होकर साहस दिखाकर पेड़ को स्पर्श किया, पिफर उसकी भी मृत्यु हो गई। उसी गांव की रश्मिता बेहेरा द्वारा गलती से पेड़ को छू देने के कारण इसे अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां कुछ पफायदा न होने के बाद वह घर में अभी मौत के साथ लड़ रही है। रश्मिता का झाड़पफूंक करने के लिए आया हुआ एक तांत्रिक खुर्दा का निशामणि जेना अपने घर लौटते समय एक ट्रक के चपेट में आ गया, उसे राजधनी अस्पताल में भर्ती कराया गया। दिन में उस पेड़ को देखने के लिए, जहां लोगों की कापफी भीड़ होती है, वहीं गांव के लोग भय से गांव छोड़ रहे हैं।
उपर्युक्त सभी घटनाओं का हवाला देकर ग्रामीण इस पेड़ के आतंक की कहानी कहने से नहीं थक रहे हैं। उनका दावा है कि इस पेड़ पर किसी भूत-प्रेत का साया है, जिसे सिपर्फ योग्य तांत्रिक ही भगा सकता है।

Thursday, March 21, 2013

वह स्टेचर पर लेटी हुई थी, उसकी आंखों में उत्सुकता थी तो कान मानों कोई विषेश बात सुनने को लालायित हों।

माया मिली न राम

वह स्टेचर पर लेटी हुई थी, उसकी आंखों में उत्सुकता थी तो कान मानों कोई विषेश बात सुनने को लालायित हों।

फ्मुबारक हो!य् लेडी डॉक्टर उसका चेकअप करने के बाद मुस्कराती हुई बोली, फ्तुम मां बनने वाली हो।य्

फ्क्या?य् यह सुनते ही वह उछल पड़ी और खुशी और आश्चर्य के लिए मिले-जुले भाव से डॉक्टर को देखने लगी।

फ्तुम मां बनने वाली हो! परन्तु अभी देर है यह सिर्पफ दूसरा ही महीना है...।य्

फ्ओ थैक्यू डॉक्टर! थैक्यू वेरी मच!य् वह डॉक्टर को क्या कहे उसकी समझ में नहीं आ रहा था, उसे इतनी खुशी मिल गई थी कि उसकी समझ में नहीं आ रहा था वह अपनी इस खुशी को इजहार किस तरह से करे। सच पूछा जाय तो ऐसा खुषी का पल उसके जीवन में कभी आया ही नहीं था, आज मानों उसकी चिरप्रतीक्षित मुराद पूरी हो गई थी।
क्लीनिक से निकल कर घर की ओर चली तो उसकी पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे।
उसका मन चाह रहा था वह सबसे पहले अपनी सास को यह खुशखबरी सुनाए, वह भी उसके मुंह पर तमाचा मारने वाले अंदाज में, सचमुच यह खबर उसकी सास के लिए तमाचे जैसी ही तो होगी। जो हमेशा उसे बांझ होने के ताने दिया करती थी।
षादी के बाद के दस वर्षों में जो उसने उसे मानसिक यात्नाएं दी हैं वह उसका बदला आज वह ले सकती है। उसके मां बनने की खबर सुनकर उसकी सास के चेहरे पर जो खुशी और पिफर अपने तानों के बारे में सोचकर पश्चाताप के भाव उभरेंगे यही उसके लिए उसकी यातनाओं का बदला होंगे। यही उसकी जीत होगी।
परन्तु पिफलहाल ऐसा सम्भव नहीं था, वह इस खबर को सुनने के बाद अपनी सास के चेहरे पर आते जाते तेजी से बदलते भावों को देखने का लुत्पफ नहीं उठा सकती थी क्योंकि उसकी सास गांव में रहती थी। जबकि वह पति के साथ षहर में रह रहीं थी।
फ्कोई बात नहीं-उसने सोचा। बाद में सही।य्
पिफलहाल वह यह बात केवल अपने पति रतन को ही बता सकती थी।
अपने बाप बनने की खबर सुनकर तो रतन खुशी से दीवाना हो जाएगा और उसे बांहों में लेकर पागलों की तरह चूमने लगेगा।
जब ससुराल वाले ताने देते थे तो उसका मन कुढ़ता था वह हीन भावना का शिकार होकर सोचने लगती थी कि सचमुच उसमें ही कोई कमी तो नहीं? ऐसे वक्त में रतन की बातें उसका ढांढ़स बंधाती थीं।
कभी-कभी इस बात को लेकर उसका ससुराल वालों से बुरी तरह झगड़ा हो जाता था उसका मन चाहता था कि वह सापफ कह दे।
फ्डाक्टर से चेकअप करा ला ेमुझ में कमी है या आपके बेटे में मामला अभी सामने आ जाएगा।य्
परन्तु वह अपने पर संयम रखते हुए होंठों से कोई बात नहीं निकालती थी।
वह सोचती।
फ्जब रतन स्वयं कहता है कि मुझमें कोई कमी नहीं है। वह स्वयं कभी इस बात पर जोर नहीं देता तो पिफर यदि मैंने ऐसी कोई बात मुंह से निकाली तो क्या उसके मन को अघात नहीं लगेगा?य्
और यदि डाक्टर ने कह दिया कि मैं सचमुच बांझ हूं तो?
वह इस विचार से ही कांप उठती थी।
कई बार तो सास ने उसे ध्मकी ही दे डाली थी, फ्कान खोलकर सुन, यदि तू इस साल मां नहीं बनी तो यह साबित हो जाएगा कि तू बांझ है मैं जूते मारकर घर से निकाल दूंगी और रतन का दूसरा विवाह कर दूंगी।य्
फ्हे भगवान अब क्या होगा? क्या अब भी तुझे मुझ पर दया नहीं आएगी, अब भी तू मेरी गोद नहीं भरेगा और हमेशा के लिए मुझे रतन के जीवन से निकाल देगा?य्
यह सोच-सोचकर उसकी रातों की नींदें हराम हो गई थीं।
कभी मन चाहता था कि इस विषय में रतन से बात करे। परन्तु वह सोचती बात करने से क्या लाभ? यह मामला उसकी बस में और हाथ में कहां है? यदि ऐसा होता तो वह तो कभी की मां बन गई होती।
घर आकर वह पलंग पर लेट गई और रतन के आने की राह देखने लगी। रतन ऑपिफस गया था। शाम से पहले उसकी ऑपिफस से आने की कोई आशा नहीं थी।
वह रतन के आने की राह देखने लगी और प्लान बनाने लगी कि किस तरह वह रतन को खुशखबरी सुनाएगी।
सोचते-सोचते अचानक उसका मन भटक गया। और आंखों के सामने नारद का चेहरा नाचने लगा। उसे अपना वह कुकृत्य नजर आने लगा जो पिछले दो महीनों से जारी था, जिसे उसने स्वयं षुरू किया था, उसने जानबूझकर अपने कदमों का बहक जाने दिया था, बच्चेे को पाने की आस और रतन को अपना बनाये रखने की चाह में उसने बहुत कुछ खोया था। नारद का विचार मस्तिष्क में आते ही वह कांप उठी और उसके भीतर से एक आवाज आईµ
फ्अब मुझे नारद से सारे संबंध तोड़ लेने चाहिए। वरना एक छोटी-सी गलती मेरा जीवन नष्ट कर देगी। यदि रतन को भनक भी लग गई कि नारद के साथ मेरे कुछ और ही संबंध हैं तो वह मुझसे न केवल घृणा करने लगेगा, बल्कि हमेशा के लिए मुझे अपने जीवन से निकाल देगा।य्
उसने यह तय तो कर लिया था वह नारद से अपने सारे संबंध तोड़ लेगी, परन्तु उसके मस्तिष्क में एक नया ही विचार उथल-पुथल मचा रहा था।
उसके पेट में जो बच्चा है वह रतन का है या नारद का है?
यह एक ऐसा प्रश्न था जिसका उत्तर कोई नहीं दे सकता था, वह भी नहीं।
अब तो यह केवल भगवान ही बता सकता है कि उससे पेट में जो बच्चा है वह रतन का है या नारद का है।
क्योंकि वह गत पांच वर्षों से यदि रतन के संपर्क में थी, तो गत दो-तीन मास से उसके नारद के साथ अनुचित शारीरिक संबंध भी थे।
नारद उसके पड़ोस में रहता था।
वह कॉलेज में पढ़ता था और उसकी रतन से अच्छी दोस्ती थी इसलिए अक्सर उनके घर आया-जाया करता था।
नारद सहज भाव से रतन से दोस्ती के नाते उनके घर आया-जाया करता था और वह भी नारद से सहज भाव से मिलती थी उससे हंसी मजाक और बातें करती रहती थी।
तीन महीने पहले तक दोनों के मन में ऐसी कोई बात नहीं थी।
नारद को ऐसा करने के लिए विवश उसके भीतर के दानव ने ही किया था। उसने ही नारद को अपने साथ अनुचित शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए विवश किया था, उसके पीछे उसका ही स्वार्थ था।
और केवल उसी स्वार्थ के लिए उसने रतन के साथ विश्वासघात और बेवपफाई करते हुए वह घिनावना कदम उठाया था।
अन्तिम बार जब वह ससुराल से आई और उसकी सास ने सापफ शब्दों में धमकी दे दी कि यदि अबकी बार भी मां नहीं बनी तो वह रतन का दूसरा विवाह कर देगी तो वह सोचने के लिए विवश हो गई।
वह रतन को खोना नहीं चाहती थी और इसलिए उसके मन में कई शैतानी विचार उठने लगे। उसने सोचा हो सकता है रतन में ही कोई कमी हो जिसके कारण वह मां नहीं बन पा रही है। यदि ऐसा है तो वह तो कभी मां बन नहीं पाएगी। रतन की मां उसका दूसरा विवाह कर देगी और मुझे हमेशा के लिए रतन के जीवन से निकाल देगी। मेरी एक न चलने देगी।
यदि मैं रतन से मां नहीं बन सकती तो दुनिया में ऐसे सैकड़ों पुरुष हैं जिनसे मैं मां बन सकती हूं। यदि मुझे रतन को नहीं खोना है तो मुझे हर हाल में मां बनना पड़ेगा, चाहे रतन से, चाहे किसी और पुरुष से। मुझे बेषक अपना चरित्रा गिराना पड़ेगा मगर मेरा ईष्वर जानता है कि ऐसा मैं विवषता में कर रही हूं ना कि अपने तन की ज्वाला षांत करने के लिए, वैसे भी भूख जैसी कोई चीज नहीं थी, वह रतन से पूर्ण संतुश्त थी। मगर बच्चे की चाह ने उसे बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था। अब उसे बच्चा चाहिए था हर हाल में हर कीमत पर।
और इसके लिए उसने नारद को चुना।
नारद बड़ा ही सुन्दर स्वस्थ युवक था,वह बीए प्रथम वर्श का छात्रा था और उनके कापफी समीप भी था इसलिए वह अपनी इच्छा नारद से ही आसानी से पूरी कर सकती थी। उसे पता था कि नारद उसे कभी गलत नजरों से नहीं देखता है।
परन्तु उसे यह भी पता था कि उसके पास एक ऐसा सुन्दर युवा शरीर है जो अच्छे अच्छों का ईमान डगमगा सकता है।
उसने नारद पर डोरे डालने शुरू कर दिए। वह नारद से पहले से अधिक खुलकर बातें और हंसी-मजाक करने लगी। बातें करते-करते वह नारद के इतने समीप चली जाती कि उसके युवा शरीर के स्पर्श से नारद के भ्ीातर आग लग जाती उसका चेहरा भावनाओं के आवेश से सुर्ख हो जाता और नारद को स्पर्श पर नियंत्राण रखना कठिन हो जाता। परन्तु वह ऐसा प्रतीत करती जैसे कुछ हुआ ही नहीं और एक बार तो वह सारी सीमाएं ही लांघ गई।
उस दिन जब रतन ऑपिफस गया हुआ था और घर में वह अकेली थी, नारद उससे मिलने के लिए घर आया।
उस समय उसने नारद के साथ ऐसा व्यवहार किया कि नारद को स्वयं पर नियंत्राण रखना कठिन हो गया।
उसका संयम का बांध टूट गया।
उस रोज सेकेण्ड के सौवें हिस्से में रीनाने अपना अगला कदम निर्धारित किया था और अपना कुर्ता उतारकर एक छोटी सी शाल ओढ़कर दरवाजे तक पहुंची और दरवाजा खोल दिया।
फ्नमस्ते भाभी।य् नारद बोला, फ्रतन भइया हैं घर पर?य्
फ्नहीं वो तो आपिफस गये है, शाम तक आयेंगे।य्
फ्ठीक है मैं जा रहा हूं शाम को आऊंगा।य्
फ्अरे ऐसे कैसे चले जाओगे चाय पीकर जाना य्
फ्नहीं भभी पिफर कभी।य्
फ्पिफर कभी नहीं, अभी, चाय पीये बिना तो मैं तुम्हे जाने नहीं दूंगी।य्
फ्ठीक है।य् नारद हंतसा हुआ बोला, फ्पिला दीजिए।य् कहकर वह भीतर आया तो रीनाने दरवाजा बंद कर दिया और उसे आकाश के कमरे में ले जाकर बिठाया। पिफर बोली, फ्तुम बैठो मैं चाय बनाकर लाती हूं।य्
ठीक इसी वक्त सोपेफ की पुश्त में निकली एक कील में रीना शाल का एक कोना पंफसा चुकी थी। अतः वह ज्योंही दरवाजे की ओर बढ़ी, कील में उलझी उसकी शाल खिंचकर उसके शरीर से अलग हो गई। रीनाने तत्काल यूं अभिनय किया जैसे वह झपटकर शॉल पकड़ लेना चाहती हो और इस कोशिश में वह नारद की गोद में जा गिरी। उसके शरीर के ऊपरी हिस्से पर मात्रा अंगिया थी जो उसके भारी और कसावदार उरोजों को छिपा पाने में नाकापफी थी।
नारद एकदम से हड़बड़ा उठा। हड़बड़ाई तो रीनाभी थी। मगर वह सिर्पफ अभिनय कर रही थी। उसने जानबूझ कर नारद की गोद से उठने में समय लगा दिया। नारद जवान था, एक औरत का अर्धनग्न शरीर उसकी गोद में पड़ा था, उसका गला खुश्क होने लगा। शरीर में एक अजीब सी सनसनी पैफल गई, दिल हुआ रीनाको उठने न दे और उसे अपनी बांहों में भरकर जीभर कर मस्ती करे। मगर ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
रीनापुनः शल लपेटकर कमरे से बाहर निकल गई और चाय बना लाई, अपना यह वार खाली जाता देख कर वह तिलमिला उठी। उसने नारद से थोड़ी देर बैठने को कहा और बाथरूम में जा घुसी और नारद कुछ क्षण पहले गुजरे हादसे को यादकर मन ही मन आनंदित हो रहा था और इस बात पर पछता भी रहा था कि क्यों नहीं उसने तभी रीना को अपनी बांहों में भींच लिया क्या पता बात बन ही जाती। और नहीं भी बनती तो रीना उस बात का किसी से जिक्र करने की स्थिति में नहीं थी। यही सोचते हुए वह चाय का घूंट भरने लगा। अभी चाय खत्म भी नहीं होने पायी थी कि उसे बाथरूम से आती रीनाकी आवाज सुनाई दी, वह कह रही थी, फ्नारद, बाहर खाट पर मेरे कपड़े पड़े हैं जरा पकड़ा देना।य्
फ्अच्छा भाभी।य्
कहता हुआ वह आंगन में आया, वहां खाट पर रीनाकी ब्रा, पैंटी और सूट रखा था। नारद ने एक बार इधर-उधर देखा, पिफर उसके कपड़ों को यूं मुट्ठी में भींचा मानो रीनाके शरीर को भींच रहा हो। कपड़े लेकर वह बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचा। दरवाजा थोड़ा सा खुला था उसमें से रीनाएक हाथ बाहर निकाले थी, उसकी नग्न टांगों की झलक भी नारद को मिली, जिससे उसकी कनपटियों में खून बज उठा। उसकी हसरतें बेकाबू हो उठीं उसने बाथरूम का दरवाजा धकेल कर पूरा खोल दिया। सामने रीनाका नग्न जिस्म दमक रहा था, नारद ने पफौरन उसे अपनी बांहों में भींच लिया।
उसने उसे बांहों में जकड़ लिया और पागलों की तरह उसे चूमने लगा।
उसने भी कोई विरोध नहीं किया और नारद को पूरा-पूरा सहयोग देने लगी।
वह भी तो यही चाहती थी।
उसके बाद यह क्रम ही आरंभ हो गया। जब रतन ऑपिफस गया होता, तब नारद कॉलेज से सीधा उसके घर आता और दोनों एक-दूसरे में खो जाते।
दो-ढाई मास तक यह क्रम चलता रहा।
वह अपने स्वार्थ के लिए सारी नैतिकता-अनैतिकता भूल गई थी।
वह तो बस मां बनना चाहती थी।
और आज मां बन गई थी।
परन्तु किसके बच्चे की मां?
रतन के बच्चे की या नारद के बच्चे की?
उसने अपना सिर झटक दिया।
वह बेचैनी से रतन की राह देख रही थी। जैसे ही रतन आया उसका मन चाहा कि वह रतन को तुरन्त वह खुशखबरी सुना दें परन्तु पिफर उसने स्वयं ही सोचा आखिर इतना भी उतावलापन किस काम का।
उस दिन उसे रतन बड़ा ही उदास और खोया-खोया नजर आया।
फ्क्या बात है?य् रतन को यूं खोया-खोया देखकर उसने पूछा, फ्आज आप कुछ परेशान-से लग रहे हैं?य्
फ्रीना! आज मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताना चाहता हूं जो मैं दस वर्षों से सीने में दबाए हुए हूं और जो मुझे भीतर ही भीतर से दीमक की तरह से खोखला किए जा रही है।य्
फ्ऐसी कौन-सी बात है, जो आपने अभी तक मुझसे छिपाई?य् उसने पूछा।
फ्हमारे विवाह को दस वर्ष हो गए, तुम अभी तक मां नहीं बन सकीं,य् रतन बोला, फ्इसके लिए तुम मां के चार साल से ताने सह रही हो। वास्तविकता तो यह है कि तुम मुझसे कभी मां नहीं बन सकती, क्योंकि मुझमें बाप बनने की योग्यता नहीं है।य्
फ्नहीं!य् यह सुनते ही उसके मन को एक आघात लगा।
फ्हां रीना!य् रतन सिर झुकाकर बोला, फ्यह दस वर्ष पहले की बात है एक दुर्घटना मैं मैंने अपनी बाप बनने की काबलियत खो दी थी, मैं लाख कोषिष करूं तुम्हे मां नहीं बना सकता।य्
फ्नहीं।य् यह सुनते ही वह चीख उठी, फ्ऐसा नहीं हो सकता। हे भगवान यह तूने क्या कर दिया।य्
वह तो सोच ही रही थी कि मां बनने के बाद उसके जीवन को सुरक्षितता मिल जाएगी। नारद के साथ वह अपने संबंध तोड़ भी देती तो किसी को पता भी नहीं चलेगा कि उनका एक रूप वह भी है।
परन्तु रतन ने जो वास्तविकता बताई थी उसने उसे तोड़ कर रख दिया था।
रतन में बाप बनने की योग्यता नहीं है। इसका मतलब उसके पेट में जो बच्चा है वह नारद का है। रतन को जब पता चलेगा कि वह मां बनने वाली है तो वह जान लेगा कि वह बदचलन, चरत्रिहीन, कलंकिनी है और उससे नपफरत करने लगेगा। भला कोई भी पति चरित्राीन पत्नी को कैसे सहन कर सकता है।
उपफ भगवान ने कैसी परीक्षा ली थी उसकी, अपना सतीत्व लुटाकर भी वह अध्ूरी ही रही। अब ना चाहते हुए भी उसे गर्भपात कराना ही होगा। सोचते हुए वह पफपफक कर रो पड़ी।

Saturday, March 16, 2013

its a love story

मुहब्बत की यूं डूबी किश्ती
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छठवीं पास करके कमलेश उन दिनों सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी। स्कूल घर से थोड़े ही दूर था मगर कमलेश अपनी संग-सहेलियों के साथ ही घर से निकलती थी। दिनों-दिन कमलेश यौवन की दहलीज पर कदम रखती जा रही थी, उसका रूप लगातार निखरता जा रहा था। एक दिन जब वह छुट्टी के बाद घर लौटी तो एक छोटा बच्चा दौड़ता हुआ उसके पास आया और उसे एक एक चिट्ठी थमा दी। इससे पहले कि कमलेश कुछ पूछती या कुछ समझने की कोशिश करती, वह बच्चा दौड़ लगाकर भाग गया। कमलेश उसे देखती रह गई उसने यहां-वहां नजर दौड़ाई मगर कोई दिखाई नहीं दिया तो कमलेश ने वह खत अपने स्कूल बैग में ही रख लिया और घर की तरफ चलने लगी। 
पिफर उसने बैग उतार कर एक जगह पर रख दिया और हाथ-मुंह धोकर भोजन करने बैठ गई। उसकी नजर जितनी बार बैग की तरपफ जाती वह मुस्करा देती। मां के साथ थोड़ी देर काम करने के बाद वह अपने कमरे में स्कूल बैग लेकर पहुंची और उसने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। अब कमलेश कमरे में बिल्कुल अकेली थी। धड़कते दिल से उसने अपना बैग खोलकर कागज का वह टुकड़ा निकाला, जिसने कई घंटों से उसे बेचैन कर रखा था। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। हाथ कांप रहे थे और पलकें झुकी थीं कि ना जाने खत मंे क्या लिखा है। पिफर भी उसने आहिस्ते-आहिस्ते खत को खोला, जिस पर कुछ इस प्रकार से लिखा था-
‘‘मेरी प्रिय कमलेश, तुम मेरा यह खत पढ़कर नाराज मत होना। तुम मेरे घर के दरवाजे से हर रोज निकलती हो, मैं तुम्हें छुप-छुपकर देखता हूं, मैं पहले उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां तुम पढ़ती हो लेकिन अब मेरी पढ़ाई छूट गई। तुम बहुत ही सुंदर हो और मैं तुम्हारा दीवाना हूं। तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो और जानती भी हो।
बहुत दिन से मैं एक बात कहना चाहता था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई। डरता था कि कहीं तुम मना ना कर दो इसलिए इस खत में लिखकर भेज रहा हूं। मैं तुमसे प्यार करता हूं और मिलना चाहता हूं। अगर तुम्हें भी मुझसे प्यार है तो कल घर से स्कूल तक के रास्ते में तुम खुले बाल करके निकलना इससे मैं समझ जाउफंगा कि तुम्हें मेरा प्यार स्वीकार है। अगर नहीं हो तो मैं हर दिन तुम्हारा दीदार करके ही जी लूंगा। तुम्हारा और सिपर्फ तुम्हारा सुभाष।’’
कमलेश खत पढ़कर खुद को आईने के सामने जाकर निहारने लगी, ‘क्या मैं सचमुच सुंदर लगती हूं,’’ उसने मन ही मन में बुदबुदाकर कहा। मगर उसके सवाल का जवाब देने के लिए कमरे में बेजान आईने के अलावा दूसरा कोई नहीं था। रात कमलेश बिस्तर पर लेटी बार-बार करवटें बदल रही थी। उसकी आंखों से नींद ऐसे गायब हो गई थी। मानो उससे ही रूठ गई हो। जैसे-तैसे रात गुजर गई। अगले दिन जब वह स्कूल गई तो उसके बाल खुले थे मगर रास्ते भर उसे कोई नहीं मिला। छुट्टी के बाद जब वह घर लौट रही थी, तो उसे लगा कि किसी ने उसे आवाज दी हो उसके कदम रुक गये। सहसा एक नौजवान उसके सामने आ गया। वह उसे पहचानती थी, वह उसी की कॉलोनी में रहने वाला सुभाष था। उसने कहा, ‘‘तुमने मेरा खत पढ़ा और मेरा प्यार स्वीकार कर लिया, अब मैं जी सकता हूं।’’
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‘‘तुम्हें तो मैं भी ना जाने कब से ढूंढ़ रही हूं। आखिर तुम कहां थे सुभाष, तुम नहीं जानते तुम्हारे जाने के बाद मेरा क्या हाल हुआ। मैं भी तुमसे ही प्यार करती हूं, मैं तुम्हें भूली नहीं हूं।’’ कमलेश के इतना कहते ही सुभाष का रोम-रोम रोमांचित हो गया। उस दिन के बाद से दोनों एक-दूसरे के करीब आते गये। उनकी दूरियां नजदीकियों बदलने लगी। वे छुप-छुप कर मिलते और प्यार भरी मीठी-मीठी बातें करते थे।
कमलेश गोशाला वाली गली, इन्द्रपुरी, पलवल की रहने वाली थी। उसके पिता का नाम दीपचंद है, जिसकी पलवल में ही ‘ए-वन’ टेलर के नाम से दर्जी की दुकान है। दीपचंद अपनी उसी दुकान से ही घर का खर्चा चला रहा था। पत्नी के अलावा दीपचंद की तीन बेटियां और दो बेटे हैं। सबसे बड़ी बेटी विमलेश की वह शादी कर चुका था। उससे छोटा एक भाई है उसका नाम सुभाष है वह भी कोई ना कोई छोटा-मोटा काम कर लेता था। कमलेश तीसरे नंबर की संतान है, उसके बाद उससे दो छोटे भाई-बहन और हैं नीलम और गुड्डू।
सुभाष सैनी भी पातली गेट, दयानंद स्कूल के पास पलवल का ही रहने वाला है। उसके पिता का नाम भगवान सिंह है। दोनों पिता-पुत्रा छोटा-मोटा काम करके घर का खर्च चला रहे थे।
समय बीत रहा था कमलेश और सुभाष सैनी की मुहब्बत भी लगातार बढ़ती जा रही थी। उन दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई। कमलेश सयानी हो गई थी। दीपचंद को उसके ब्याह की चिंता थी। कमलेश की पढ़ाई बंद हो गई थी, अब वह घर पर ही रहती थी लेकिन किसी ना किसी बहाने से वह सुभाष से जरूर मिलती या पिफर दोनों पफोन पर बातें करते।
एक दिन दीपचंद जब खाना खा रहा था कमलेश रसोई में थी। दीपचंद से पत्नी ने कमलेश के ब्याह का जिक्र किया तो वह बोला, ‘‘मुझे याद है। मैं भी कोशिश कर रहा हूं। मैंने दो-एक लोगों से चर्चा कर दी है और जल्दी ही कमलेश की शादी निपटानी है।’’
कमलेश यह सब सुन रही थी, पिता की बातों ने उसके दिल को मानो चोट पहुंचा दी। इसके बाद उसने जल्दी ही सुभाष से मिलकर उसे सारी बात बताई। सुभाष के दिल में भी मिलन की उतनी ही इच्छा थी, जितनी कमलेश के दिल में। वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था।
आखिरकार वह दिन भी आ गया जब कमलेश को देखने वाले उसके घर पर पहुंचे। कमलेश उस दिन बहुत मायूस थी। लड़के वालों ने उसे देखते ही पसंद कर लिया और उन्होंने दीपचंद से कहा, ‘‘हम जाते ही कोई अच्छा-सा मुर्हूत देखकर शादी की तारीख पक्की कर आपको बता देंगे। आप भी अपनी तरपफ से पूरी तैयारी कर लेना।’’
यह सब बातचीत हो ही रही थी कि कमलेश ने अपने पिता से कहा, ‘‘नहीं पिता जी, मुझे यह शादी मंजूर नहीं है। मैं किसी और से प्यार करती हूं और शादी भी उसी से करूंगी,’’ लड़की के मंुह से इतना सुनते ही हर कोई सन्न रह गया और उन्होंने इसे अपना अपमान समझ कर दीपचंद से कहा, ‘‘भाई साहब जब तुम्हारी लड़की किसी और को पसंद करती है तो हमारा अपमान करने के लिए आपने घर पर बुलाया था। अच्छा जो हमें पहले ही सब पता चल गया वर्ना हम तो बहुत बड़े धोखे में रहते।’’
इस पर दीपचंद जहर का घूंट पीकर रह गया और उसने मेहमानों के जाते ही कमलेश को बुरी तरह से पीटा, मगर पिफर भी कमलेश सुभाष के नाम की माला जपती रही। दीपचंद ने कमलेश को एक कमरे में बंद कर दिया और घर वालों को सख्त हिदायत दे दी कि, ‘‘ना तो यह घर से बाहर जा पाये और ना ही इसे तब तक खाना देना जब तक कि इसके दिमाग से सुभाष का भूत ना उतर जाये।’’
कमलेश उसी कमरे में पड़ी रोती-बिलखती रही मगर किसी को उसकी परवाह नहीं थी। एक दिन उसने कहा, ‘‘आप लोग जो कहोगे मैं वही करूंगी,’’ और तब उसे कमरे की कैद से आजादी मिल गई। कमलेश उसी दिन मौका पाकर घर से बाहर भाग गई और सुभाष के पास पहुंचकर उसने उसे सारी बात बता दी। तब दोनों ने तय कर लिया वे घर से कहंी दूर चले जायेंगे और ऐसा ही हुआ।
19 अप्रैल, 2006 को कमलेश और सुभाष सैनी अपने घर से भाग गये और वे दोनों भागकर बालाजी पहुंच गये। वहां उन्हेांने बालाजी के दर्शन किये और मंदिर में ही शादी कर ली। कमलेश मां से बहाना बनाकर गई थी और घर नहीं लौटी, तो दीपचंद ने सुभाष के घर पर पता लगाया लेकिन वहां पर सुभाष भी नहीं था। वह समझ गया कि कमलेश और सुभाष एक साथ हैं। उसने उसी शाम को ही पलवल थाने में सुभाष सैनी के खिलापफ बेटी के अपहरण करने का मामला दर्ज करवा दिया। पुलिस ने इस बावत अपराध क्रमांक संख्या 222/2006 पर भा.दं.सं. की धारा 363, 366 का मुकदमा दर्ज कर लिया और सभी संभावित जगहों पर छापामारी शुरू कर दी। पुलिस ने समाचार-पत्रों में ज्ञापन भी दिया। इसी बीच पलवल पुलिस को सूचना मिली कि कमलेश और सुभाष मेंहदीपुर में किराये के कमरे में रह रहे हैं और दोनों शादी भी कर ली है।
22 अप्रैल, 2006 को पलवल पुलिस उन्हें पकड़ कर ले आई। कमलेश को उसके माता-पिता के हवाले करके सुभाष को जेल भेज दिया गया। घर लाने के बाद कमलेश को घर की चार दीवारी में ही बंद कर दिया गया। कमलेश लाख कोशिशों के बावजूद भी इस बार आजाद नहीं हो पाई। वह पुलिस को सब कुछ बताना चाहती थी, लेकिन उसे मौका नहीं मिल पाया। कमलेश को सुभाष की चिंता थी क्योंकि अब वह उसका पति था। दीपचंद ने कमलेश के लिए कई लड़के देखे और बात चलाई लेकिन जो भी लड़के वाले उसे देखने आते, कमलेश सापफ शब्दों में उनसे यही कहती थी कि उसकी शादी हो चुकी है और कमलेश के इसी बर्ताव से घर वाले उसे बुरी तरह से पीटते।
दीपचंद की लाख कोशिशों के बाद भी जब कमलेश ने किसी तरह से भी बात नहीं मानी और आने वाले रिश्तों को ठुकराती रही तो दीपचंद ने अपने बहनोई कांती प्रसाद को सारी बात बताई।
उसने दीपचंद से कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगा और मै उसे समझाने की कोशिश करूंगा और अगर वो पिफर भी नहीं मानेगी तो रास्ते से हटा देंगे ताकि खानदान की नाक ना कटे।’’
कांती प्रसाद की बातें दीपचंद को सही लगी। उसने भी सोच लिया कि अगर कमलेश नहीं मानेगी तो उसे दुनिया से उठा देना ही ठीक रहेगा ताकि खानदान की नाक ना कटे।
8 जुलाई, 2006 की बात है, जब दीपचंद कमलेश को लेकर अपने बहनोई के घर पर आया और यहां पर भी उसकी बुआ ने उसके लिए कुछ रिश्ते देख रखे थे, मगर कमलेश ने उन्हें भी ठुकरा दिया और उसने कहा, ‘‘मैं मर जाउफंगी मगर सुभाष के अलावा किसी को अपना पति स्वीकार नहीं कर सकती मेरी उससे शादी हो चुकी है। तुम लोग मुझे मार डालो वही ठीक होगा।’’ अब सबकी समझ में आ चुका था कि सुभाष जिस दिन भी जेल से छूटेगा कमलेश उसके साथ ही भाग जायेगी, अतः उन्होंने तय कर लिया कि कमलेश के साथ क्या करना है।
14 अगस्त, 2006 को सुबह से लोगों की आवा-जाही हो रही थी लेकिन शक्ति नगर रेलवे ट्रैक के पास वाले एपफसीआई गोदाम के पीछे लोगों ने लाश देखी और कुछ ही क्षणों के बाद वहां भारी भीड़ जमा हो गई। किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी। सूचना मिलते ही क्षेत्राीय थाना रूपनगर से थानाध्यक्ष प्रतिमा शर्मा, अति. थानाध्यक्ष दिनेश कुमार व सब-इंस्पेक्टर अजय सोलंकी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गये। वहां करीब 18 वर्षीया युवती का शव पड़ा था। उसके तन पर एक कपड़ा भी नहीं था। पूरी तरह से नग्न शव को पुलिस ने चादर से ढका और लोगों से शव की पहचान कराई मगर उसे किसी भी प्रकार की सपफलता नहीं मिली, तो पुलिस ने शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए सब्जी मंडी मोर्चरी में भेज दिया गया।
थाने आने के बाद पुलिस ने अपराध क्रमांक संख्या 198/2006 पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 व 201-बी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। थानाध्यक्ष प्रतिमा शर्मा ने मामले की जानकारी पुलिस उपायुक्त सुनील गर्ग को दी। उपायुक्त सुनील गर्ग के निर्देशन व थानाध्यक्ष प्रतिमा शर्मा के निर्देशन पर इंस्पेक्टर दिनेश कुमार, सब-इंस्पेक्टर अजय सोलंकी, हेड कांस्टेबल ओमप्रकाश, कांस्टेबल राजेश कुमार, नंद किशोर, राकेश कुमार, जगबीर सिंह व मुकेश की पुलिस टीम का गठन कर मामले की छानबीन अति. थानाध्यक्ष दिनेश कुमार को सौंप दी।
दिनेश कुमार मामले की छानबीन में जुट गये और उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए कई जगह अपने मुखबिरों को तैनात कर दिया। पुलिस ने शव की पहचान के लिए शव की तस्वीर कई दिनों तक समाचार-पत्रा व टेलीविजन में दिखाई और प्रकाशित कराई। पुलिस की तलाश अभी चल ही रही थी कि एक दिन दिनेश कुमार को अपने मुखबिर से पता चला कि मरने वाली का नाम कमलेश है और यह पलवल की रहने वाली है। उसने पुलिस को कमलेश व उसके परिवार के बारे मंे सविस्तार जानकारी दे दी। इसके बाद पुलिस टीम कमलेश के घर पलवल पहुंची और उसके शव की पहचान होने के के बाद उसे परिजनों के हवाले कर दिया गया। लेकिन कमलेश की हत्या का राज व उसके हत्यारों से पुलिस अब भी अंजान थी।
मुखबिर द्वारा पुलिस को सूचना मिली कि प्रमोद कुमार नाम के युवक ने ही कमलेश को मौत के घाट उतारा था। सूचना मिलने के बाद पुलिस ने प्रमोद कुमार के घर पर दबिश दी और उसे वहां से गिरफ्रतार कर लिया गया। प्रमोद कुमार पुत्रा बाबू लाल को उसके घर उत्तम नगर से गिरफ्रतार कर लिया।
थाने लाये जाने के बाद पुलिस ने उससे पूछताछ की तो एक ऐसी कहानी समाने आई, जिस पर विश्वास कर पाना हर किसी के वश की बात नहीं थी। प्रमोद ने पुलिस को बताया कि उसे कमलेश को मौत के घाट उतारने के लिए उसके पिता दीपचंद व उसके पफूपफा कांती प्रसाद ने पांच हजार रुपये की सुपारी दी थी। इतना ही नहीं उसने कमलेश के बड़े भाई सुभाष उपर्फ राजू पुत्रा दीपचंद को व अपने एक अन्य साथी धमेन्द्र को भी शामिल बताया।
पुलिस टीम एक बार पिफर पलवल पहुंची और वहां से दीपचंद पुत्रा अमर कुमार व सुभाष पुत्रा दीपचंद को गिरफ्रतार करके थाने ले आई आनन-पफानन में पुलिस ने कांती प्रसाद के घर पर भी दबिश दी और उसे भी घर से ही दबोच लिया। लेकिन पुलिस टीम जब धमेन्द्र के घर पहंुची तो वह पफरार हो चुका था। पुलिस ने चारों से थाने में पूछताछ की हत्या का सारा राज खुल गया।
दीपचंद ने बताया, ‘‘मेरी बेटी मेरे काबू से बाहर हो गई थी, इस कारण उसे मारने के इरादे से दिल्ली में अपने बहनोई कांती प्रसाद के घर लेकर आया था। कांती प्रसाद ने दीपचंद को भाड़े के दो बदमाश प्रमोद कुमार और धर्मेन्द्र से मिलवाया था और उन्हें पांच हजार रुपये देने को कहा।
योजना के मुताबिक 13 जुलाई, 2006 को कमलेश को बहाने से दीपचंद, सुभाष और कांती प्रसाद ये तीनों किशनगंज रेलवे स्टेशन की तरपफ ले आये और तब धर्मेन्द्र व प्रमोद भी उनके साथ हो गये। तब कांती प्रसाद ने उन दोनों को इशारा कर दिया। वे दोनों थोड़ी दूर चलने लगे और वे रेलवे ट्रैक के बाद एपफसीआई गोदाम के पास पहुंचे ही थे। वहां अंधेरा और सन्नाटा था। तब प्रमोद ने कमलेश को मजबूती से पकड़ लिया और उसके विरोध करने पर दीपचंद और सुभाष ने मुंह दबा दिया ताकि वह शोर ना मचा सके। पिफर धर्मेन्द्र आगे बढ़ा और उसने कमलेश की गर्दन दबा दी और तब तक दबाये रहा जब तक कि उसके प्राण पखेरू उड़ ना गये। कुछ देर छटपटाने के बाद कमलेश शांत हो गई। तब सुभाष ने बेशर्मी का परिचय देते हुए अपनी ही बहन के तन के सारे कपड़े उतार दिये ताकि पुलिस इसे बलात्कार का मामला समझे। इतना ही नहीं कांती प्रसाद जो कि रिश्ते में कमलेश का पफूपफा था उसने बोतल में भरे केमिकल को कमलेश के चेहरे पर उड़ेल दिया जिसके कारण उसका चेहरा बुरी तरह से झुलस गया और वह ठीक प्रकार से पहचान में नहीं आ रहा था।’’
इस तरह दीपचंद ने सारी कहानी पुलिस के आगे बयां कर दी। अन्य आरोपियों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। कथा लिखे जाने तक पांचवा आरोपी धर्मेंद्र पफरार था।
;शेष कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित हैद्ध

Friday, March 15, 2013

रहस्य-रोमांच

बेलगाम औरत की हसरतें

 अपनी बेलगाम हसरतों के कारण सायरा ने लोक-लाज को दरकिनार कर अमर्यादित हो गई और कई पुरुषों के साथ रंगरेलियां मनाने लगी। उसके पति को उसकी यह बेवपफाई पसंद नहीं आई और उसने उसकी हत्या कर दी, किंतु मृत्यु के बाद भी सायरा की आत्मा अपनी हवस शांत करने के लिए भटकती रही...

नारंग मंडी मेरा जन्म स्थान था। हम बच्चे थे, जब हम रामदयाल हवेली के बारे में सुना करते थे कि उसमें भूतों का बसेरा है। कमसिनी के बावजूद मुझे भूतों के एहसास ने कभी खौपफजदा नहीं किया और पिफर एक वक्त ऐसा भी आया, जब मैंने उस हवेली को खरीद लिया।
मैं महानगर की घनी आबादी, शोर, गर्मी और प्रदूषण से तंग आ चुका था। उस वक्त मेरा एक स्टेज शो भी चल रहा था, जिसके एक हफ्रते में नौ शो भी हो जाते थे। उस शो ने इतनी शोहरत हासिल की कि भविष्य में भी उसके जारी रहने की संभावना थी। मेरी अनुपस्थिति में मेरा सहकर्मी उसे निर्देशित करता थी। मैं गर्मी, प्रदूषण और काम की अध्किता के कारण तंग आकर तमाम काम अपने सहकर्मी के हवाले करके स्वयं नारंग मंडी पहुंच गया था।
मुझे यहां के प्रसि( प्रोपर्टी डीलर से नारनूल रोड पर स्थित एक पुरानी हवेली के बारे में इलम हो चुका था। जब मुझे उसकी बिक्री की खबर मिली तो मैंने नारंग मंडी के एक प्रोपर्टी डीलर से संपर्क साध।
हम दरख्तों की लम्बी लाइन के अंदर से गुजरती सड़क पर सपफर कर रहे थे। अचानक कार दाएं तरपफ जाने वाली एक पतली सड़क की तरपफ मुड़ गई। दोनों तरपफ लहलहाते खेत थे, पिफर हम एक छोटी-सी नहर की पुलिया से गुजरे।
पुलिया पार करते ही कार रुकी और प्रोपर्टी डीलर ने हवेली की जानिब इशारा किया। लंबे और वीरान रास्ते के आखिर में बना एक मकान मेरे सामने था। चारों तरपफ खाली जमीन थी, जिसमें हर तरपफ लंबी-लंबी घास उगी हुई थी। अनगिनत पेड़ भी थे। इसे एक सम्पूर्ण पफार्म हाउस भी कहा जा सकता था।
तमाम हालत ऐसी थी, जैसे बरसों से यहां कोई आया ना हो और यह बात ठीक भी थी। राम लाल हवेली यकीनन किसी हिंदू की सम्पत्ति रही होगी। एक जमींदार टाइप के खानदान ने उसे अलॉट करा लिया था। वह कुछ मुद्दत से इसमें रहे और पिफर इसके भुतहा होने या अपनी निजी मजबूरी के कारण कहीं और शिफ्रट हो गए। पिफर यह हवेली सादिक चौध्री ने खरीद ली।
प्रोपर्टी डीलर ने हवेली की तरपफ इशारा किया। मैंने उसे देखते ही एक नजर में उसे खरीदने का पफैसला कर लिया।
प्रोपर्टी डीलर ने अपने सिर से कैप उतारा और गंजे सिर पर हाथ पफेरते हुए बोला, ‘‘अब इसे आंदर से चलकर देखते हैं।’’
‘‘इसकी जरूरत नहीं। बाहरी हालत से इसकी अंदरुनी हालत का बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है।’’
‘‘ठीक है। मैं जल्दी ही इसके कागजात तैयार कराउंफगा। मेरी पसंद और अंदाज का उसे अनुमान हो गया था और वह बेहद खुश था क्योंकि उसे एक भारी कमीशन मिलने की उमीद हो गई थी।’’
दस रोज बाद राम लाल हवेली और उसके साथ की जमीन मेरी सम्पत्ति थी। मैंने दर्जन भर मजदूर और कारीगर उस जगह काम करने के लिए नियुक्त कर दिए थे। हवेली के कमरों में हर तरपफ जाले लगे हुए थे। पफर्श और दीवारें मिट्टी से अटी हुई थीं। अगले दो हफ्रते उसकी सपफाई में खर्च हो गए।
हवेली की अंदरुनी सजावट के लिए शहरयार सिद्दकी को खास तौर पर मैंने महानगर से बुलाया था। नौजवान कलाकार ने जब पुरानी हवेली, उसके अंदर बनी सागवान की सीढ़ियों और प्राचीन टायलों का पफर्श देखा तो प्रभावित हुए बगैर ना रह सका। वह प्राचीन और दुलर्भ वस्तुओं का कद्रदान था।
पफौरन ही वह कमरों की नाप लेने और अपने ड्राइंग बोर्ड पर नक्शे वगैरा बनाने में व्यस्त हो गया। मेहनत और लगन से काम करना शहरयार की पिफतरत थी। इसी कारण दूर-दूर तक वह मशहूर था। शौकीन लोग उसे दूर-दूर से बुलाया करते थे। अगले हफ्रते उसे शहर में विभिन्न वस्तुओं की खरीदारी में गुजरे।
इस दौरान मैंने अपनी जायदाद पर अपने पहले वाले मेहमान देखे। मैं आसपास के इलाके का जायजा ले रहा था कि मैंने लकड़ी के पुल के नीचे दो लड़कों को बंसियों से मछलियां पकड़ते हुए देखा। जब मैंने झाड़ी में से निकल कर उन्हें आवाज दी तो वह बंसियां वहीं पफेंक कर भाग गए। वह मेरे बुलाने पर भी वापस नहीं आए। हालांकि मैं उनसे दोस्ती का इरादा रखता था और उन्हें इजाजत देना चाहता था कि वह जब चाहें यहां आकर मछलियां पकड़ सकते हैं।
एक रोज पत्राकार नसीर अहमद आ गया। वह शहर में स्थानीय अखबार का सम्पादक था। वह भी नारंग मंडी का रहने वाला था। मैं उसे बचपन से जानता था। उसे घटिया शराब पीने की आदत थी। वह अक्सर शराब पीता रहता और उसे बुरा-भला कहता रहता और अल्लाह से मापिफयां मांगता रहता। कई बार तो वह उसे इतना बुरा-भला कहता कि गालियों पर उतर आता। मैं उसकी इन पुरानी आदतों से अच्छी तरह वाकिपफ था।
हम दोनों बरामदे में पड़ी बेंत की कुर्सियों पर बैठ गए। उसने इलाके के बारे में बातें शुरू कर दीं। ऐस-ऐसे लोगों का जिक्र किया, जिन्हें मैं लगभग भूल चुका था।
मैं बहुत हैरान हुआ, जब उसने बताया कि सुहैल अख्तर कारगिल की लड़ाई में शहीद हो चुका है। वह कारगिल की पहाड़ियों पर बू पफोर्स तोपों के साथ जांबाजी से मुकाबला करता रहा था।
उसने बताया, ‘‘और वह मुश्ताक, जिसके साथ तुम स्कूल जाते थे, उसने एक दौलतमंद विध्वा से शादी कर ली थी। पिफर वह दोनों ब्रिटेन चले गए और वापस नहीं लौटे। सुना है, वहां वह दोनों एक होटल चलाते हैं।’’
‘‘मेरा ख्याल है, अगर तुम बोतल खाली कर दो तो बाकी भूले-बिसरे लोग भी तुम्हें याद आ जाएं।’’ नसीर अहमद मेरे जुमले में छुपे व्यंग्य को भांप गया।
मैं उसे रूखसत करने के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक उसने हवेली के आसपास की जमीन पर लाभदायक पौधें के उत्पादन के बारे में बातें करना शुरू कर दीं। पिफर उसने बातों का रुख मोड़ते हुए पूछा, ‘‘तुमने उसे देखा है?’’ उसने अपनी ऐनक के उफपर से मुझे घूरा।
‘‘किसकी बात कर रहे हो?’’ मेरी जिज्ञासा बढ़ी।
‘‘मैं सायरा चौध्री की बात कर रहा हूं। तुम्हें पता है, उसकी रूह हवेली में आती है।’’
‘‘मुझे नहीं मालूम’’
‘‘तुम दिमाग पर जोर दो तो सब कुछ याद आ जाएगा।’’ नसीर ने पूरे यकीन के साथ कहा, ‘‘सायरा ने सादिक चौध्री से शादी कर ली थी। वह शौहर को बहुत चाहती थी, लेकिन उसके साथ उसके अनगिनत कजन भी थे, जिन्हें वह उन्हें नाराज नहीं करती थी। उसके कजन समझते थे कि सायरा के शौहर को कुछ भी पता नहीं है। पिफर अचानक कारगिल की जंग छिड़ गई और सादिक को पफौज में बुला लिया गया।’’
जंग के दौरान सादिक चौध्री जख्मी हुआ। यु( विराम के बाद वह कई माह तक अस्पताल में भर्ती रहा। अस्पताल में उसे सायरा के बारे में मालूमात मिलती रहती थी कि उसके कई नौजवानों के साथ जिस्मानी ताल्लुकात हैं और वह रात-दिन उनके साथ गुलछर्रे उड़ा रही है।
नसीर अहमद ने एक लंबा घूंट भरा और कमीज की आस्तीन से मुंह सापफ करने के बाद बोला, ‘‘तो वह शौहर के बिस्तर पर बेलिबास लेटी थी और उस पर एक हट्टा-कट्टा नौजवान सवार था। यह सीन देखक उसका खून खौल उठा। उसकी दिल दहला देने वाली आवाज सुनकर वह नौजवान जिस्म पर चादर डालकर पफरार हो गया, जबकि सायरा भाग नहीं सकी। उसने सीढ़ियों के नीचे इस जगह ;उसने जगह की जानिब इशारा कियाद्ध सायरा पर का हमला किया, जिससे वह हलाक हो गई और अगले रोज ही उसे नापाक ही दपफन कर दिया गया। उसकी मौत को खुदकुशी जाहिर किया गया। चौधरी ने इलाके की पुलिस से सांठ-गांठ करके मामला रपफा-दपफा करा लिया।’’
वह एक लम्हे के लिए रुका। खाली बोतल की तरपफ हसरत भरी नजरों से देखा और बाहर घास पर उछाल दिया। पिफर बोला, ‘‘सादिल चौध्री ने इंतकाल का कोई शोक नहीं मनाया। वह यहां से हमेशा के लिए कहीं और चला गया।’’
‘‘कापफी अर्से तक हवेली खाली रही। पिफर सादिक चौधरी ने उसे बेचने की कोशिश की, लेकिन बिक नहीं सकी और कापफी अर्से तक इसी तरह बंद पड़ी रही।’’
कुछ देर खामोशी छाई रहीं। मैंने इस काहानी को पहली बार सुना था। मैंने उसकी बातों को महत्व नहीं दिया। एक अखबार का मामूली संपादक इस तरह की बातें करता और खबरें बनाता था।
‘‘हां, आगे कहो।’’ मैंने उसकी बातों पर यकीन ना करते हुए कहा।
उसने उंगलियों पर गिनती शुरू की, ‘‘नंबर एक, इसके बाद सायरा कई बार देखी गई इस हवेली में, हालांकि वह जिंदा नहीं थी। तुम पांचवें आदमी हो, जिसने पिछले बीस साल बाद इस हवेली को आबाद किया है। तुमसे पहले आबाद करने वालों ने कहा था कि यह हवेली भूतहा है, सिवाए एक के, जिसने कोई टिपण्णी नहीं की और खुदकुशी कर ली थी।’’
नसीर अहमद के चले जाने के बाद मैंने घास में पड़ी जॉनी वॉकर की खाली बोतल देखा तो मुझे अंदाजा हो गया कि यह पत्राकार भूतों पर इतना विश्वास क्यों करता है।
महीने के आखिर में हवेली के आसपास कृषी उद्योग के लिए काम शुरू हो गया। शहरयार महानगर से वापस आ गया। वह पर्दों और कालीन के कुछ नमूने साथ लाया था। इसके अलावा भुगतान के कुछ चेक भी साइन करवाने थे। मैंने उस रात काम करने वाले कारीगरों और शहरयार को खाना खिलाने के लिए बाहर से खाना मंगवाया।
बाद में कॉपफी के दौर के बाद सायरा का किस्सा शुरू हो गया। मैंने नसीर अहमद से सुनी कहानी सबको सुनाई। सबने दिलचस्पी ली और मुझे यकीन था कि अगले हफ्रते यह शहर भर में पफैल जाएगी, क्योंकि वह इस सिलसिले में कुछ ना कुछ जरूर छापेगा।
हवेली की सजावट का काम एक सप्ताह और होना था। पिफर भी वह अब कापफी हद तक रिहाईश के काबिल हो गई थी। मैंने अपनी पहली रात हवेली में गुजारने का इरादा कर लिया। मैं पुराने आतिशदान के करीब बैठा था और अपने असिस्टेंट की तरपफ से भेजे गए एक ड्रामे की स्क्रीप्ट का अध्ययन कर रहा था। मैं उस रोज कापफी संतुष्ट था।
बाहर दरख्तों में हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी। आतिशदान मंे लकड़ियां चटख रही थीं। माहौल बहुत रहस्यमयी होता जा रहा था। तब मुझे एहसास हुआ कि लोगों ने तन्हा घरों के बारे में इतनी कहानियां क्यों लिखी हैं। तभी चकाचौंध् रोशनी तमाम कमरे में पफैल गई।
मैं हैरत से उछल पड़ा। उस अद्भुत रोशनी ने मुझे चौकन्ना कर दिया। पिफर मैंने एक इंतहाई खौपफजदा मंजर देखा।
सपफेद लिबास में एक मनमोहक हसीना उस रोशनी में तो प्रकट हुई। उसके दिलकश होंठों पर दबी-दबी मुस्कराहट थी। बाल खुले थे और कंधें पर बिखरे हुए थे। उसकी सब्ज आंखें थी, जो बेहद चमकदार थीं।
गठीला गुलाबी जिस्म बेहद हसीन था। पारदर्शी लिबास में सीने पर सजे खूबसूरत उभार बहुत प्यारे दिख रहे थे। अगले ही पल या शायद मेरी पलक झपकाते ही वह मेरे रूबरू आकर खड़ी हो गई। मैं एक लम्हे के लिए पलकें तक झपकाना भूल गया और सम्मोहित होकर उसे देखने लगा।
वह कुछ और आगे आई और मैं बिस्तर से उठकर बैठ गया और मूर्खों की तरह उसे देखते हुए पूछा, ‘‘तुम कौन हो और यहां इस वक्त क्या कर रही हो?’’
इसके साथ ही मेरा गला खुष्क हो गया। आवाज छलक में पफंस गई और मैं आगे एक लफ्रज नहीं बोल सका। उसके दिलनशीं होंठ ध्ीरे से खुले और उनसे मध्ुर लहजे में एक जुमला बरामद हुआ, ‘‘तुम हसन कमाल हो ना’ डायरेक्टर हसन कमाल।’’
उसे मेरे नाम का कैसे इल्म हुआ, मैं समझ नहीं सका। मुझे यह भी ख्याल आया कि शायद मेरे स्टेज ड्रामे के प्रतिद्वंदियों ने मेरे खिलापफ कोई नया गेम खेला हो या पिफर शायद वह ड्रामों में काम करने की शौकीन हो।
‘‘डियर, तुमको यहां किसने भेजा है?’’ मैंने पूछा।
हसीना के चेहरे का रंग बदल गया। उसने गर्दन को जरा तिरछा करके अपनी लंबी-लंबी पलकें झपकाई, ‘‘आखिर आपका मतलब क्या है, मुझे कौन भेज सकता है? मैं खुद यहां आई हूं।’’
उसका लहजा मध्ुर और सुरीला था। मेरे दिमाग में घंटी-सी बजने लगीं। मैंने अपने पूरे कैरियर में किसी अभिनेत्राी की आवाज और लहजा इस कदर लुभाने वाला नहीं सुना था। मैंने हसीना से प्रभावित हुए बगैर ना रह सका, लेकिन हैरत की बात थी कि मैंने इससे पहले उसे कभी नहीं देखा था और न ही कोई स्थानीय लड़की ऐसी थी, जो मेरे नाम और पेशे से परिचित हो।
मैंने कहा, ‘‘तुमने ठीक कहा है। मेरा नाम हसन कमाल है और मैं डायरेक्टर भी हूं, लेकिन मैंने पहले कभी तुम्हें नहीं देखा। क्या नाम है तुम्हारा मिस?’’
‘‘नूरीन... नूरीन... यही मेरा नाम है। मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूं। तुम्हें कुछ महसूस कराना चाहती हूं । तुम्हें उस लज्जत से वाकिपफ कराना चाहती हूं, जिससे अभी तक तुम मेहरूम रहे हो।’’
वह ध्ीरे से आगे बढ़ी और अपने गुलाबी रसीले होंठ मेरे होंठों से मिला दिए। मैं उसकी इस बेबाकी पर ठगा-सा रह गया, पिफर कुछ ही लम्हे बाद उसकी आवारा हरकतों से वेताब होकर मैं उसे बेलिबास करने लगा। अगले ही पल मेरे सामने दहकता वजूद महक रहा था।
मैं उसे पलंग पर ले आया और उस पर झपट पड़ा। यह वह मदहोश लम्हे थे, जो आज से पहले मेरी जिंदगी में पहले कभी नहीं आए थे। दुनिया से बेखबर मस्तियों में डूबे बदन एक-दूसरे में इतने खोए रहे कि रात सरकने का पता ही नहीं चला। जब होश आया तो सुबह की अंजान हो रही थी।
अगली सुबह जब मैं जागा तो नूरीन मौजूद नहीं थी। मुझे पिछली रात के लम्हे याद नहीं थे। मुझे यूं महसूस हुआ था कि सारी रात किसी पिंजरे में बंद रहा हूं, जिसके चारों तरपफ नोकदार और तेजधर कीलें लगी हुई थीं।
सारा दिन खौपफ और हैरत के मिले-जुले एहसास मुझ पर छाए रहे।
दूसरी रात वह मुझे नजर नहीं आई। मैं उसके ना आने से मायूस हो गया और उसे अपना वहम, अपना ख्वाब समझने लगा। कुछ रातों अनिंद्रा की अवस्था मंे गुजरीं। तमाम रातें उसके बारे में सोचते-सोचते गुजार दीं। मैं उसे तलाश करे उससे कुछ सवाल पूछना चाहता था।
मैंने उसका जिक्र हवेली में काम करने वाले लोगों से किया, मगर वह लोग उस वजूद से अंजान थे। उस लड़की के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था। नूरीन का पता लगाने के लिए मुझे कोई मदद नहीं मिल सकी।
नूरीन पांचवीं रात को पिफर आई। उसने ध्ीरे से दरवाजा खोला। मुझे स्टडी करते देखकर वह दिलकश अंदाज में मुस्कराई और बोली, ‘‘आप मेरा इंतजार कर रहे थे क्या?’’
मैं उसके लहजे और उसकी आवाज की अपनायत और कोमलता में डूब गया।
मैंने हां में सिर हिलाया। नूरीन ने अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर जमाए। सिर को हल्की-सी जुम्बिश देकर आगे की तरपफ झुकाया, ‘‘तो जनाब, आप मेरा इंतजार क्यों कर रहे थे?’’
‘‘हां...,’’ मैंने उसे अपने अंदरूनी जज्बात से आगाह किया। वह हंसी और पिफर उसने अपना सपफेद गाउफन उतार पफेंका और हवा में तैरती हुई मेरे पास आ गई। मैं उठा और उसे अपनी बांहों में भरकर समेट लिया।
पिफर मैं उसे बिस्तर पर ले आया। कुछ लम्हे मैं उसे यूं ही देखता रहा। पिफर कई दिन से भूखे की तरह उस पर टूट पड़ा। यह वह मदहोश लम्हे थे, जब उसने मुझे भरपूर सहयोग दिया था, पिफर सुबह की पहली अंजान के साथ वह गायब हो गई।
मेरे नई हवेली की अजनबी खूबसूरत मेहमान कई रोज तक आती रही। मुझे एक-एक लम्हा कीमती लगने लगा। मैं उसके बारे में कुछ नहीं जान सका था। उससे पहली मुलाकात पर मैंने उससे पूछा था और उसके बाद मैंने कई बार भी पूछताछ की थी, लेकिन वह हर बात टाल गई थी।
पिफर कुछ रोज बाद वह अचानक गायब हो गई। मुझे उसकी शिद्दत से जरूरत महसूस हो रही थी। इसके कई कारण रहे होंगे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण शरीरिक संबंध् थे। उसकी अनुपस्थिति में मेरे लिए वक्त गुजारना मुश्किल हो रहा था। वह इंतहाई शिद्दत से मुझे अंदर से काट रही थी।
और पिफर यह तन्हाई आखिर उस वक्त दूर हुई, जब शहरयार और उसके कारिंदे कई वैगनें सामान से भरकर लाए। पफर्निचर, पेंटिंग्स, कालीन और घर की सजावट और जरूरत की हर चीज। नौजवान अंदरूनी सजावट का काम खुश होकर कर रहा था। उसकी रफ्रतार बहुत तेज थी। वह अपने कारीगरों के साथ हवेली में मसरूपफ हो गया और उन्हें निर्देश देकर अपनी मर्जी के मुताबिक काम करवाने लगा।
जुमेरात तक घर का काम पूरा हो गया। शहरयार ने तमाम कारीगरों का बाकी भुगतान करके उन्हें रुखसत कर दिया।
एक रात वह पिफर आई हांपफती हुई। उसकी आंखें अंदरुनी खुशी के कारण चमक रही थी और एक हफ्रते की अनुपस्थिति के कारण उसमें बहुत जोश पाया जाता था।
‘‘तुम्हारा वह प्यारा दोस्त कहां गया?’’ आते ही नूरीन ने पूछा।
‘‘तुम किसकी बात कर रही हो?’’
‘‘वह नौजवान, भूरी आंखों वाला।’’ अपने होंठों पर जुबान पफेरते हुए उसने कहा।
‘‘उसे जाने दो बेबी. अब मैं जो तुम्हारा हो गया हूं।’’ मैंने मुस्कराते हुए कहा।
‘‘ठीक है।’’ उसकी आंखें सुकड़ी, ‘‘लेकिन वह ध्ीमे मिजाज का है।’’ और तुम हिंसा पसंद हो। तुम्हें सताने में बहुत मजा आता है।’’
‘‘मैं हिंसावादी हूं?’’ मैंने हैरत से पूछा, ‘‘ओह माई गॉड... ऐ लड़की, क्या तुम समझती हो कि अपनी कमर पर नाखूनों के निशान मैंने खुद बनाए हैं?’’
नूरीन कुछ देर खड़ी मुझे घूरती रही, पिफर मेरे करीब आई और मेरी कमीज पीछे से उठाकर अपनी मुहब्बत के निशान तलाशने लगी।
‘‘ओह, वैरी सॉरी...’’ और पिफर उन निशानों को चूम लिया। पिफर उसने जवानी का वह खेल खेला कि मुझे पिछली रातों का मजा आज की लज्जत की तुलना में पफीका मालूम देने लगा।
उस रात जाने से पहले मैंने उसे अपने साथ शहर ले चलने को कहा ताकि वह मेरे नए शो के प्रीमियर में शिरकत कर सके।
अपने सुनहरे घने बालों को एक झटके से पीछे करते हुए उसने कहा, ‘‘ओह सॉरी, यह मुमकिन नहीं है।’’
‘‘आखिर क्यों?’’ मैंने जोर देकर पूछा।
‘‘यह कतई नामुमकिन है।’’ वह जोर से चीखी, ‘‘प्लीज मत जाओ, मैं तन्हा रह जाउफंगी।’’
पिफर वह मेरी बिस्तर पर बैठ गई। मेरी आंखों में झांकते हुए मुझसे पूछा, ‘‘सच-सच बताओ, क्या तुम मुझसे मुहब्बत करते हो। कह दो मुझसे हमेशा मुहब्बत करते रहोगे। प्लीज हसन बताओ।’’
खिड़की के शीशे में से चांदनी अंदर आ रही थी, जिसकी सपफेद रोशनी में उसके गालों पर ढलके आंसू सापफ नजर आ रहे थे। वह बहुत खूबसूरत थी। मैंने अपनी जिंदगी में उससे खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी। अचानक मैंने उसके गालों पर ढलके आंसुओं को चूम लिया।
‘‘हकीकत में मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं और करता रहूंगा।’’
अचानक वह बिस्तर से उठ खड़ी हुई, ‘‘मैंने तुमसे पहले किसी से इतनी मुहब्बत नहीं की थी हसन। मुझे तुम्हारी मुहब्बत की जरूरत है। तुम्हें मेरा यकीन करना होगा।’’
उसके जाने के बाद दरवाजा खुद बंद हो गया।
‘‘आई लव यू।’’ मैंने आहिस्ता से कहा।
और इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण बात यही थी कि मैंने दृढ़ विश्वास के साथ उसकी मुहब्बत स्वीकार और इकरार किया था।
अगली सुबह शहरयार बहुत गुस्से में था। वह कमरे में इधर-उध्र टहल रहा था।
मैंने उसकी खैरियत मालूम करने की कोशिश की, लेकिन उसने बात काटते हुए कहा, ‘‘ठीक है मिस्टर हसन कमाल, मजाक... मजाक ही होता है, लेकिन आखिर वह लड़की कौन थी?’’
‘‘कौन-सी लड़की। मैं नहीं जानता। मैंने उसके बारे में जानने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन कोई भी उसके बारे में कुछ नहीं बता सका।’’
आखिर नवयुवक कलाकार ने स्वीकार कर लिया कि मैं सच कह रहा हूं पिफर भी उसका गुस्सा अपनी जगह कायम था। जब वह कुछ पुरसकून हुआ तो मैंने कहा, ‘‘मैं कुछ रोज के लिए शहर जा रहा हूं। क्या तुम मेरे साथ चलना पसंद करोगे?’’
‘‘नहीं, यहां मुझे बहुत सारे अध्ूरे काम निपटाने हैं। मुझे कल तक अपना काम पूरा करना है। शहरयार ने कहा, ‘‘ब्रिटेन से एक मशहूर डेकोरेटर यहां भी आ रही है। वह यहां के बारे में कुछ मालूमात हासिल करना चाहती है और कुछ तस्वीरें खींचना चाहती है। मैं उसे यहां लेकर आउफंगा। तुम जल्दी लौट आओ तो बेहतर होगा।’’
मैंने उसे बताया कि अगले रोज शाम तक लौट आउफंगा। शहर पहुंचा तो सोचा कि लक्ष्मी चौक पर अपने पत्राकार दोस्त के पास कुछ देर चल कर बैठूं और उसे भी उस रहस्यमयी लड़की के बारे में बताउफं।
मेरी सारी बातें सुनकर पत्राकार नसीर ने आहिस्ता से कहा, ‘‘नूरीन नाम की लड़की उस पूरे इलाके में नहीं है, लेकिन तुम क्यों जानना चाहते हो? तुम्हें उसमें क्या दिलचस्पी है?’’
मैंने कुछ लम्हों की खामोशी के बाद ज्यादा और कुछ नहीं बताने का पफैसला कर लिया।
नसीर ने अपनी गर्दन एक तरपफ को झुका दी और पिफर कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘ठीक है। मैं उसके बारे में कुछ मालूमात करके बताउफंगा।’’
शहर जाना मेरे लिए पफायदेमंद साबित हुआ। मेरा ड्रामा-शो फ्रलॉप हो गया था। पहली बार पर्दा गिरने के पफौरन बाद ही तमाशाइयों ने गालियां देते हुऐ बाहर जाना शुरू कर दिया था। इन दिनों शहर का मौसम बहुत खराब चल रहा था। मुझे हैजा हो गया। मैंने हवेली वापस जाने का इरादा कर लिया। सोचा, जाते-जाते नसीर से मिलता चलूं। शायद उसने लड़की के बारे में कुछ पता कर लिया हो।
जब मैं कमरे में दाखिल हुआ तो वह एकदम कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
‘‘हसन कमाल,’’ वह चिल्लाया, ‘‘मुझे उस लड़की के बारे में कुछ मालूम हुआ है।’’
नसीर इस वक्त भी पी रहा था।
‘‘बहुत खूब।’’ मैंने जवाब दिया।
‘‘सुनो, यह बहुत अहम् बात है। अब मुझे बताओ कि तुमने उस लड़की का पहले कहां देखा था?’’ उसने शब्दों के बीच वक्पफा देकर इस अंदाज से पूछा, जैसे एक बच्चे से टीचर सवाल करता है।
‘‘मैंने शायद तुम्हें कुछ भी नहीं कहा था।’’
उसने मुझ पर एक निगाह डाली, ‘‘खैर कोई बात नहीं। उसने कहा और पिफर अपनी मेज की दराज से एक तस्वीर निकाली और मुझे थमा दी। उसके हाथ कांप रहे थे।
‘‘क्या यही है?’’ नसीर ने पूछा।
‘‘हां, यह उसी लड़की की तस्वीर है। इस वक्त वह यहां स्टेज पर अभिनय करने वाले लिबास में नजर आ रही है। मैंने दिल ही दिल में कहा।’’
नसीर ने मेरे चेहरे पर एक नजर डाली तो उसे जवाब मिल गया। पिफर वह खुशी से उठा और नाचने लगा, पहले एक टांग पर और पिफर दूसरी टांग पर और पिफर बोला, ‘‘मैं इसे जानता हूं। देखा मेरा कमाल आखिर हूं ना माहिर पत्राकार मानते हो ना।’’ पिफर उसने अपने दोनों हाथों की उंगलियां एक-दूसरे में पफंसाकर सिर से उफपर की ओर पिफर कमर में बल डालकर कुछ इस तरह लचकदार एक्शन बनाया कि मैं हंसे बगैर नहीं रह सका।
‘‘यह लड़की वही सायरा है। नूरीन उसका असली नाम है। ओह माई गॉड, हम कितने बेवकूपफ है।’’ पिफर वह अपनी आदत के अनुसार उल्टी-सीध्ी हांकने लगा।
‘‘तुमने उसे देखा है। इससे तुम्हें भूत-प्रेतों और रूहों के होने पर यकीन आ जाएगा।’’
उसकी हंसी अचानक गायब हो गई, जब उसने मुझे संजीदा देखा।
‘‘ओह, मापफ करना।’’ कहने के साथ ही वह दरवाजे से निकल कर प्रेस की तरपफ चला गया।’’
जब मैं नारंग मंडी पहुंचा तो आसमान पर ध्ूल-मिट्टी के बादल गहरे होते जा रहे थे। हवेली में मुझे शहरयार कहीं नजर नहीं आया। मैं सीढ़ियां चढ़कर उफपर गया। उसने काम खत्म करके अभी सामान समेटा ही था कि तूपफानी हवाएं चलने लगीं।
हवा के तेज झोंके खिड़कियों से टकराने लगे और दरख्तों की शाखों की खड़खड़ाहट और तेज बारिश की आवाज अंदर बैठे-बैठे ही सापफ सुनाई देने लगी।
हवेली की रोशनयिां कभी तेज, कभी मध्यम, कभी ध्ीमी होने लगीं थीं। अचानक रोशनियां तेज हो गईं। बाहर तूपफान की शिद्दत में अध्किता आ गईं। मैंने इतना भयानक तूपफान पहले कभी नहीं देखा था।
मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पिफर मैं हवेली से बाहर आ गया। काम करने वाले कारीगर जा चुके थे। बाहर भी अंध्ेरा था। मैंने अतिशदान में आग जला ली, रोशनी हुई तो कुछ खौपफ कम हुआ।
मैं अतिशदान के करीब बैठकर सोचने लगा कि इस मौके पर क्या किया जाए। अचानक मैंने शहरयार की घबराई हुई आवाज सुनी।
मैं सीढ़ियां की तरपफ लपका। वह पहली सीढ़ी पर झुका हुआ था। उसके हाथ रंग से भरे हुए थे। खौपफ उसके चेहरे पर सापफ झलक रहा था। आंखें बाहर की तरपफ निकली हुई थीं।
‘‘हसन।’’ उसकी आवाज में खौपफ था। उसने एक सीढ़ी पर कदम बढ़ाया, लेकिन संतुलन बना नहीं सका। अगले ही लम्हे वह लुढ़कता हुआ मेरी पास आ गिरा।
‘‘ओह, शहरयार, क्या हुआ तुम्हें?’’ तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?
‘‘वहीं थी, वह लड़की वही थी।’’ उसने चिल्लकार कहा। उसका पूरा जिस्म कांप रहा था। यूं महसूस हो रहा था जैसे बिजली का झटका लगा हो।
शहरयार ने अपने कदमों पर खड़ा होने की कोशिश की। उसने मेरी जींस को पकड़ लिया और बोला, ‘‘वह... वह पहली रात भी मेरे कमरे में आई थी और पिफर कई रात निरंतर मेरे कमरे में आती रही । वह ...’’ शहरयार की आंखें पफटी पड़ रही थी, ‘‘मैं बहुत कमजोर और बुजदिल शख्स हूं हसन । वह मुझे मारकर ही दम लेगी हसन। प्लीज मुझे यहां से जाने दो।’’
मैंने शहरयार को सहारा देकर खड़ा किया, ‘‘ठीक है, हम यहां से निकल चलेंगे, लेकिन तुम अपने हवास पर काबू रखो।’’
‘‘नहीं-नहीं, देर मत करो। अभी यहां से निकल चलो, वह उफपर मौजूद है।’’
शहरयार का खौपफ कम ना हुआ। मुझे भी नूरीन की मौजूदगी का एहसास हो रहा था।
रोशनियां दोबारा मध्यम हो गई और लगभग आध्े मिनट तक मध्यम रहने के बाद, आखिर वही हुआ, जिसका डर था। हर तरपफ अंध्ेरा छाया हुआ था।
शहरयार ने खौपफजदा लहजे में कहा, ‘‘वह आ रही है।’’
‘‘ठीक है, उसे आने दो। मैं उसे समझाने की कोशिश करूंगा। मैं बाहर खड़ी कार से अपना सामान निकाल लाउफं।’’
बाहर बिजली चमकी तो बारिश की बौछारें नजर आईं। हर तरपफ पानी था। पौध्े और पेड़ सब ध्ुल चुके थे। अचानक एक तेज झोंके की वजह से जामन का पेड़ कड़कड़ाया और एक भारी शाख मेरी कार के पिछले हिस्से पर आ गिरी। हम सिपर्फ कुछ गज के पफासले पर थे और इस हादसे का शिकार होने से सापफ-सापफ बचे थे।
मैं खुद भी खौपफजदा हो गया था। मैं पढ़ा-लिखा मॉडर्न था। हमेशा बड़े शहरों में रहा। इस इलाके में सिपर्फ स्कूल की तालीम हासिल की। इस इलाके में भूत-प्रेतों के किस्से बहुत मशहूर थे, लेकिन किसी ने उन्हें देखा नहीं था और मैं तो वेैसे भी इस अंध्विश्वास पर यकीन नहीं रखता था।
थोड़ी देर बाद एक दरख्त और टूटा और मेरी हवेली के एक कोने पर बने लकड़ी के खूबसूरत झरोके पर गिरकर उसे तबाह कर दिया।
अचानक मैंने नूरीन को देखा। वह हवेली से बाहर की तरपफ आ रही थी। मैंने सोचा कि अगर लॉन की दूसरी तरपफ चले जाएं तो उसके रास्ते से छट जाएंगे। मैं कार पोर्च में खड़ा कर हवेली की तबाही देख रहा था। लॉन में पानी भर चुका था। पौध्े उखड़ गए थे। दरख्तों की शाखें टूट-टूटकर गिर रही थीं। अचानक खिड़की के शीशे छनाके की आवाज के साथ टूटे। पिफर एक और दरख्त की शाख टूटी और नवनिर्मित नया ग्रीन हाउस तबाह हो गया। हम और ज्यादा घबरा गए।
सीढ़ियों के करीब खड़े होकर मैंने उसे आवाज दी, ‘‘नूरीन ... सायरा... तुम कहां हो। क्या तुम वाकई हवेली में मौजूद हो।’’
जवाब में सिपर्फ बारिश और तूपफान से पैदा होने वाला शोर सुनाई दिया।
मैं खुद को इस वक्त बेवकूपफ महसूस कर रहा था। उसकी मौजूदगी का यकीन कर लेने को बेचैन था। मैं दोबारा बाहरी दरवाजे की तरपफ बढ़ा कि खोलकर देखूं, शायद वह बाहर हो।
अचानक मुझे किसी के खिलखिला कर हंसने की आवाज सुनाई दी। मैंने बाहरी दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा पिफर दूसरे कमरे में जाकर पिछला दरवाजा खोलने की कोशिश की। कई दरख्तों की टहनियों और हवेली के गिरे हुए मलबे के कारण दरवाजा ना खुल सका।
अचानक मुझे ख्याल आया। कहीं हमारे बाहर जाने के रास्ते नूरीन ने बंद ना किए हों। मैं पिफर सीढ़ियों के करीब पहुंचा।
‘‘नूरीन... सायरा... प्लीज हमें बाहर जाने दो।’’
हंसी की आवाज दोबारा सुनाई दी। इस बार आवाज पहले से अध्कि बुलंद थी। हवेली की तबाही को सामने रखते हुए मुझे एहसास हुआ कि हम वाकई भूतों के चंगुल में पफंस गए हैं।
शहरयार को वहीं पफर्श पर पड़े रहने दिया और मैं आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ियां चढ़ता हुआ उफपर चला गया। मुझे बड़ी हैरत हुई कि वह कहीं भी नहीं थी।
मैं अपने बेडरूम में आकर लेट गया।
बाहर तूपफान की तबाहकारियां जारी थीं। दरख्तों के तने टूट कर गिर रहे थे। कई शाखों ने हवेली के पश्चिमी हिस्से को लगभग तबाह कर दिया था।
पिफर अचानक दरवाजा खुला। वह दरवाजे के पास खड़ी थी। गर्दन एक जानिब को झुकाए... वह बहुत घबराई हुई थी।
‘‘हैलो।’’ तूपफानी शो के कारण मैंने जरा बुलंद आवाज में उसे सम्बोध्ति किया।
सब्ज आंखों लम्हें भर के लिए सुकड़ गई। वह बोली और उसका सवाल हैरत और बेयकीनी में डूबा हुआ था।
‘‘क्या तुम इस सूरतेहाल से खौपफजदा नहीं हो?’’
मैंने नकारने के अंदाज में सिर हिलाया। खौपफ के बजाए मेरी आंखों में एक चमक थी, जो उसके आने के कारण थी। मैं अचानक उसकी तरपफ बढ़ा। बाहर हवा ने शोर मचाया। अचानक मेरी छत पर कुछ गिरा, जिसके कारण पूरी हवेली हिल गई।
मैं उसकी तरपफ और बढ़ा, उसने हाथ के इशारे से मुझे रोक दिया।
‘‘तुम उफपर क्यों आए हो?’’
‘‘तुम्हारा क्या ख्याल है, मैं किसलिए आया हूं।’’
‘‘बहरहाल, तुम बताओ।’’ उसने जरा इठलाते हुए कहा।
‘‘मैं तुम्हारी तलाश में था, क्योंकि मैं तुम्हें शिद्दत से चाहने लगा हूं।’’
किसी मासूम कमसिन बच्ची की तरपफ नूरीन ने कहा, ‘‘मैं हमेशा मुहब्बत को तरसती रही हूं। किसी ने भी मुझसे मुहब्बत नहीं की। सबने मेरे जिस्म की चाहत की है और मेरा ख्याल है, तुम भी उन्हीं में से हो।’’
‘‘तुम्हारी राय दुरुस्त नहीं है नूरीन। अब मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जान चुका हूं और मैं तुमसे कतई खौपफजदा नहीं हूं। लोगों का ख्याल है कि तुम जिंदा नहीं हो, लेकिन मेरे लिए तुम ना सिपर्फ जिंदा हो, बल्कि जवान और खूबसूरत भी हो। मैं तुम से सच्ची मुहब्बत करने लगा हूं।’’
अचानक मैंने महसूस किया कि मैं वाकई सच बोल रहा हूं। मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था।
उसने मेरी आंखों में गौर से झांका। दांतों से अपने होंठ काटते हुए अपनी आंखों में आने वाली नमी को खुष्क किया।
‘‘हसन, तुम से पहले मुझे किसी ने इतना नहीं चाहा।’’ उसने अपनी बात दोहराई।
‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं और हमेशा चाहता रहूंगा।’’ मैं उसे आगे बढ़कर अपनी बांहों में लेने की कोशिश की। वह मुझे चकमा दे गई और मुझे पीछे ध्केल दिया।
‘‘प्लीज अभी नहीं। मुझे सोचने का मौका दो’’ वह बोली।
मैंने अपने दोनों बाजू उसके कंध्े पर रख दिए। उसका जिस्म गुदाज और गर्म था।
वह पिफर बोली, ‘‘नहीं... अभी नहीं।’’
मैं हकलाया, ‘‘मगर...’’
नूरीन मुस्कराई। पिफर संजीगदी से बोली, ‘‘आओ, नीचे चलें।’’
हम दोनों एक-दूसरे की कमर में बांहें डाले नीचे आ गए। शहरयार पफर्श पर बेसुध् उसी तरह पड़ा था, जिस तरह मैं उसे छोड़ कर गया था।
मैंने कहा, ‘‘तुम ने इस गरीब को मौत को मुंह में ध्केलने से भी परहेज नहीं किया।’’
नूरीन कुछ नहीं बोली।
वह हवेली के पिछले हिस्से की तरपफ चल पड़ी और उसने पूछा, ‘‘प्लीज हसन, मुझे पिफर बताओ कि तुम क्या महसूस करते हो?’’ उसके पूछने का लहजा संजीदा था।
‘‘सायरा, मैं वाकई तुमसे मुहब्बत करता हूं और हमेशा करता रहूंगा। यह एक कभी ना झुुठलाई जाने वाली सच्चाई है।’’
उसने पलकें झपकाई और पिफर यकायक किसी पफैसले पर पहुंच गई, पिफर दरवाजें की तरपफ बढ़ते हुए बोली, ‘‘यहां आओ।’’ उसने मुझे करीब बुलाया, मैं उसके करीब चला गया।
‘‘इसे खोलो।’’
खौपफजदा होकर मैंने उसका हुक्म माना। वह दरवाजा जो हम दो मर्दों से नहीं खुल सका था, मेरे तन्हा खींचने से आसानी से खुल गया।
हवा के साथ बारिश ने मेरे चेहरे पर गोलियों जैसी बौछार कर दी और मैं अपना संतुलन नहीं संभाल सका। उसने मुझे बाहर जाकर तूपफानी हालत का जायजा लेने को कहा।
मैंने रोबोर्ट की तरह उसका हुक्म माना और जैसे ही मैं दरवाजों से बाहर निकला, दरवाजा अंदर से खुद बंद हो गया।
‘‘नूरीन, प्लीज मुझे अंदर आने दो।’’ मैं चिल्लाया।
अंदर से कोई जवाब नहीं आया।
मैं बारिश में भीगता हुआ हवेली के पीछे गया और पिछले दरवाजें से अंदर जाने की सोचने लगा, लेकिन बेसूद। तमाम दरवाजें मजबूती से बंद थे।
मैं नाकाम रहा। गहरा अंध्ेरा, गिरी हुई शाखों और दरख्तों के कारण मैं नाकाम रहा।
गहरा अंध्ेरा, गिरी हुई शाखों और दरख्तों के बड़े-बड़े तनों को पफलांगता हुआ, बाड़ों को पार करता हुआ, कीचड़ में थपथप करता हुआ आखिर मैं रोड तक आ गया और पिफर पैदल चलता हुआ नारंग मंडी स्टेशन पहुंचा, वहां से ट्रेन के द्वारा शहर पहुंचा।
मैंने नसीर को अपने दफ्रतर में काम करते हुए देखा । वह अखबार के पहले पन्ने की तैयारी कर रहा था। मोटी-मोटी हेडलाइन में नारंग मंडी में आने वाले शदीद तूपफान की तबाहकारियों को बिस्तार से बताया गया था। पूरा पन्ना इसी तरह की खबरों से भरा हुआ था।
मैंने उसे बताया कि मेरा इण्टीरियर डेकोरेटर दोस्त हवेली के अंदर बेहोश पड़ा है। डर है कि उसे अंदरुनी चोटें ना आई हों।
नसीर ने मेरी तरपफ देखा, जैसे उसे मेरी बात पर यकीन ही ना हो। उसका ख्याल था कि यह सब तूपफान बगैरा भूत-प्रेतों की कारस्तानी है।
बहरहाल, अखबार की कॉपी प्रेस में रवाना करके वह और मैं नारंग मंडी पहुंचे। पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर और एक कांस्टेबल को लेकर हम उसी वक्त हवेली पहुंचे। रात अभी बाकी थी।
नसीर ने गाड़ी को हेडलाइट में हवेली के खण्डहर पर निगाह डाली।
‘‘ओह माई गॉड।’’ इसके आगे वह कुछ नहीं बोल सका।
हवेली इसी तरह नजर आ रही थी, जैसे बरसों से उसकी देखभाल ना की गई हो। हालांकि उसके रंग-रोगन अभी पूरा हुआ था। खिड़कियों के पट टूटे हुए थे। छत का पश्चिमी हिस्सा बुरी तरह बैठ चुका था। अभी-अभी बनाए गए लॉन की जगह कीचड़ से भरा तालाब था और सामने के दरवाजे का एक पट उखड़ा हुआ था। चारों तरपफ वहशत नाच रही थी।
शहरयार का कहीं पता नहीं था। हम ने उसे पूरी हवेली के अंदर और बाहर ढूंढ़ लिया और ना इसके बाद बरसों तक उसके बारे में कुछ पता चला। इंस्पेक्टर और कांस्टेबल का ख्याल था कि वह तूपफान की चपेट में आकर कहीं दूर ना चला गया हो।
एकमात्रा शख्स मैं ही था, जो शहरयार पर बीते हुए वाक्ये के बारे में जानता था। मुमकिन है कि किसी हद तक नसीर को भी अंदाजा हो, लेकिन हम दोनों ने जुबानें बंद रखीं।
मुझे उस वक्त एक पुरानी कहावत याद आ गई, ‘‘एक शख्स की जन्नत दूसरे शख्स के लिए जहन्नुम साबित होती है।’’
इस कहावत में मुझे बहुत सच्चाई नजर आई। मैं नूरीन की मुहब्बत पाकर उसके हुस्नों-शबाब की जन्नत में बहुत खुश था। वह मेरी तन्हाइयों की साथी रही थी। वह बहुत जज्बाती, हिंसा पसंद थी, मगर मुझे भरपूर सहयोग देकर ही तृप्त होती थी।
यह मेरे और सायर नूरीन की रूह का अजीब वाक्या था। बहरहाल, सारी जिंदगी मुझे सिपर्फ एक बात का मलाल रहेगा कि मैं इस इंटीरियर डकोरेटर नौजवान दोस्त का पारिश्रमिक अदा ना कर सका और न ही सायरा उपर्फ नूरीन की रूह से मेरी मुलाकात हो सकी।
मुमकिन है, अतृत्प आत्मा को मेरी बेपनाह मुहब्बत ने तृप्त कर दिया हो।


Wednesday, March 13, 2013

बलात्कारी और हत्यारे दम्पत्ति की रोंगटे खड़े कर देने वाली दास्तान

प्यार में बन गई पाप की गठरी
कारला होमोलका

पॉल बीर्नाडो और कारला होमोलका की बलात्कारी व हत्यारी जोड़ी टोरोन्टो की भोली-भाली लड़कियों को अपने जाल में पफंसाती। पॉल बलात्कार करने के बाद उनकी निर्मम हत्या कर देता। लड़कियों की कटी हुई लाशें झील में तैरती नजर आती...

 पहली ही नजर में कारला पॉल पर पिफदा हो गई थी। मिलना-जुलना बढ़ता गया और दूरियां नजदीकियों में बदल गईं। कारला का प्यार दिन पर दिन बढ़ता गया। पॉल की गहरी आंखें, गोरा रंग, आकर्षक चेहरा और अपनेपन से कारला कापफी प्रभावित थी। पॉल पेशे से करोड़पति एकाउंटेंट था। कारला पॉल के हर पल नजदीक रहना चाहती थी। इसका एक ही रास्ता था शादी। कारला ने अपनी इच्छा घरवालों को बता दी। चाय के बहाने से कारला के परिवार वालों ने पॉल को बुलाया और दोनों का उसी शाम रिश्ता भी तय हो गया। कारला के परिवार वाले उसकी पसन्द की दाद दे रहे थे। कारला पॉल को जान से ज्यादा चाहती थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया, कारला का प्यार गहरा होता गया। तभी अचानक पॉल ने अनैतिक मांग करनी शुरू कर दी। बात-बात पर कारला पर गुस्सा करना, बार-बार डांटना रोज की आदत बन गई थी। कई दिन तक तो कारला को उसके गुस्से का कारण मालूम नहीं हुआ। पर उस रात तो हद हो गई, जब पॉल ने बेझिझक बोल दिया, ‘‘कारला, मुझे तुम्हारी बहन के साथ सिपर्फ एक रात का समय चाहिए। मैं जानता हूं कि मेरे साथ तुम्हारी दूसरी शादी होगी। मैं पहले प्यार के लिए तरस गया हूं।’’
पॉल बीर्नाडो और कारला होमोलका की बलात्कारी व हत्यारी जोड़ी


कारला भला कैसे बर्दाश्त करती कि उसकी बहन उसका बिस्तर बांटे। कारला को समझाना कठिन था, पर किसी तरह पॉल ने कापफी कोशिशों के बाद उसे समझा लिया। अब क्या था। कारला पॉल के प्यार में बेबस थी और प्यार की खातिर अपनी ही बहन की इज्जत की कुर्बानी देने को तैयार थी। कारला वेटरनरी क्लीनिक में नौकरी करती थी, इसलिए उसे दवाइयों की कापफी जानकारी थी। हर समय वह यही सोच में लगी रहती कि कैसे बहला-पुफसलाकर अपनी बहन को प्रेमी के सामने पेश करे। अंत में कारला ने तय कर लिया कि अपनी बहन टैमी को बेहोश करने के लिए हैलिकान का इस्तेमाल करेगी। यहीं से उसका नैतिक पतन शुरू हो गया। वह 23 दिसम्बर की रात थी। घर में देर रात तक पार्टी चलती रही। कारला मन ही मन में अपने पति को खुश करने की जुगत में लगी थी। एक तरपफ घर में त्योहार की चमक-दमक थी, दूसरी तरपफ कारला अपने प्रेमी को क्रिसमस का तोहपफा देने की तैयारी में थी। उसने विशेष तौर पर अपनी बहन टैमी को पार्टी में बुलाया था।

प्यार भी इतना अंधा नहीं होना चाहिए कि उसे पाने के लिए इतना घृणित और अमानवीय कार्य करने को मजबूर होना पड़े। कारला ने अपनी सगी बहन को ही प्यार की हवस चढ़ा दिया था। अब चाहे वह कितना भी पछता ले, पर लौटा वक्त वापस नहीं आयेगा। उसके अपराध के नासुर उसे जिन्दगी भर टीस देते रहेंगे...

पार्टी के दौरान हर तरपफ चहल-पहल थी। कारला ने एक कोल्ड ड्रिंक में नशीली दवा मिला कर टैमी को पिलानी शुरू कर दी। दवाई का असर जल्दी ही हो गया। टैमी को चक्कर आने लगे तो वो कमरे में जाकर आराम करने लगी। कुछ ही देर बाद टैमी बेहोश पड़ी थी। परिवार के सभी सदस्य सोने चले गये थे। पॉल कारला के साथ उस कमरे में गया, जहां टैमी बेहोश पड़ी थी। वहां जाते ही उसने अपना काम शुरू कर दिया।
टैमी पलंग पर चित्त अवस्था में लेटी थी। उसके कम कपड़े भी अस्त-व्यस्त थे। पाल अपनी पैंट की बेल्ट खोलते हुए कारला बोला, ‘‘कारला, मैं तुम्हारे इस तोहपफे से बेहद खुश हूं।’’
कारला जल्दी-जल्दी टैमी के कपड़े उतारने लगी। बेलिबास टैमी के जिस्म को देख पॉल खुद पर काबू नहीं रख पाया। उसने अपने शरीर से सारे कपड़े अलग कर दिये। अगले ही क्षण उसका नंगा बदन टैमी की टांगों के बीच पहुंच गया। वासना का नशा अब पॉल की आंखों में तैर रहा था। टैमी बेसुध और लाचार पॉल के नीचे दबी पड़ी रही।
धीरे-धीरे पॉल उसके खूबसूरत और नाजुक शरीर को रौंदने लगा। टैमी की हालत की परवाह किये बिना पॉल उसकी जवानी से खेलता रहा। पिफर जोश खत्म होने के बाद वह झटपट उठ गया।
पॉल का काम खत्म होने तक कारला टैमी का मुंह बंद किये रही। कारला वहीं पर गुमसुम सी खड़ी अपनी आंखों के सामने अपनी बहन की जवानी को अपने पति हाथों लुटते हुए देखती रही और वीडियो रिकार्डिंग करती रही। पॉल अपनी इच्छा पूरी कर वहां से चला गया। देखते ही देखते टैमी को जोर-जोर से झटके आने लगे। ऐसा देख कर कारला ने पफटापफट टैमी को कपड़े पहनाये। कारला ने अपना काम बड़ी चतुराई से किया। ड्रग्स और कैमरा छुपा कर एम्बुलेंस बुलाने के लिए पफोन करने लगी। कारला के माता-पिता को जरा भी भनक नहीं हुई कि टैमी की मौत का कारण कोल्ड ड्रिंक में मिलाई हुई हैलोकान की अधिक डोज थी। और उसके साथ बेहोशी की हालत में बलात्कार भी किया गया था।
सभी को यही लगा कि टैमी की मौत अधिक उल्टी आने से दम घुटने की वजह से हुई है, न की हैलिकान की ज्यादा मात्रा पिलाने से। चुपचाप कारला और पॉल बलात्कार व हत्या के जुर्म से बच गये। कारला तो पॉल के प्यार में अभी भी पागल थी। हर समय पॉल की इच्छा पूरी करने में लगी रहती। वह अलग-अलग तरह के पोज भी करके पॉल की ख्वाहिश को पूरा करने में असमर्थ रही। अब पॉल ने पहले की तरह पिफर से कहना शुरू कर दिया, ‘‘मुझे पहले प्यार की तमन्ना है। शरीर की आग बुझाने के लिए अब एक नई लड़की की तलाश है।’’
पॉल ने कारला पर ही टैमी को मारने का आरोप लगाया कि उसी ने गलत डोज पिलाई थी। उसने चेतावनी भी दी कि अब किसी को ऐसी डोज देकर गलती दोबारा न दोहराए। उसने कालरा से पिफर किसी जवान लड़की को पफंसाने के लिए कहा। मगर कालरा अब यह सब करने से कतराने लगी। मगर उसकी एक न चली। कापफी देर तक इनकार करने के बाद कारला मान गई। उसकी अगली शिकार थी जैन, जो कि टैमी की हमशक्ल थी और उसका कापफी कुछ टैमी से मिलता था। जैसे उम्र, रंग, कद व बाल। जैन से जान पहचान बढ़ाने के बाद कारला ने उसे अपने नये मकान के मुहूर्त पर अपने घर बुलाया। उसी शाम कारला जैन को डिनर कराने के लिए बाहर ले गई। वहीं धीरे-धीरे उसने कोल्ड ड्रिंक के अन्दर हेलोकान की गोलियां मिलानी शुरु कर दीं। जिसका असर घर पहुंचने तक हो गया। घर पहुंचने पर जैन गहरी नींद में थी।
आधी रात को जब जैन बिल्कुल बेहोश थी, कारला ने पॉल को वेडिंग गिफ्रट के लिए बुलाया। जैन को देखकर पॉल बहुत खुश था कि जैन का चेहरा व जिस्म टैमी से मिलता था। पर एक डर उसके मन में था कि कहीं पिफर से कारला वही गलती न दोहरा दे, जो टैमी के समय हुई थी। हैलोकान की अधिक डोज न पिला दे। पर कारल ने तसल्ली दी, ‘‘पॉल, तुम बेपिफक्र रहो। मैंने डोज का ध्यान रखा है।’’
जल्दी से कारला ने जैन के कपड़े उतारने शुरु कर दिये। पॉल की प्यासी आंखें जैन के गोरे जिस्म पर जमी थीं, जो अब अनावृत था। जैन न तो दया की भीख के लिए गिड़गिड़ाई और न ही विरोध किया। बस बेहोश बिस्तर पर पड़ी रही। पॉल एक ही झटके में जैन पर सवार हो गया। अपने होंठोें को उसकी छातियों के बीच रगड़ते हुए कारला से बोला, ‘‘मेरा ऐसे ही जिस्म को पाने का सपना था, जो तुमने पूरा कर दिया। ओह मुझे इस हसीन पल का कब से इंतजार था... ओह... ओह।’’ पॉल जैन के गोरे जिस्म को चूमते हुए बोला। पिफर वह बेसुध पड़ी जैन के जिस्म से खेलने लगा।
कारला के भीतर नपफरत का सैलाब उमड़ रहा था, पिफर भी वह अपनी आंतरिक भावनाओं को छुपाते हुए बोली, ‘‘मुझे और कितनी देर प्यासी रखोगे?’’
कुछ ही क्षणों में झटके खाकर पॉल ढेर हो गया। पिफर हटते हुए बोला, ‘‘मुझे ऐसा आनन्द पहले कभी नहीं आया।’’
उसे रोज एक नया जिस्म चाहिए था, जिससे कि वो अपने शरीर की आग बुझा सके।
पॉल पन्द्रह वर्षीया जैन का रेप करने में सपफल रहा। कारला बिस्तर सापफ करने लगी। सुबह जैन को होश आया। पर वो रात के हादसे से अनजान थी। कारला को जैन ने बताया, ‘‘पेट में दर्द हो रहा था। शायद कल रात बाहर का खाना खाने की वजह से हुआ है।’’
कारला चुप रही।
पॉल कारला के तोहपफे से खुश होकर कारला से शादी के लिए तैयार हो गया। टैमी और जैन के साथ अपनी प्यास शांत करने के बाद कारला में पॉल की दिलचस्पी कम हो गई थी। शेर के मुंह में खून लग गया था। मगर उसकी यह ख्वाहिश सिपर्फ कारला ही पूरी कर सकती थी।
मन ही मन अपनी इस चाहत को पूरा करने के लिए वह कारला से शादी करने की तैयारियों में जुट गया। राजसी तरीके से दो सपफेद घोड़ों के रथ पर ऐतिहासिक चर्च नीगारा लेक के किनारे बने हाल के अन्दर दुल्हन बनी कारला ने प्रवेश किया। शादी में शराब, कबाब और शबाब का प्रबंध किया गया था। कारला की वेडिंग डेªस से लेकर उसके हेयर स्टाइल का चुनाव पॉल ने ही किया। वैडिंग भोजन सूची से लेकर वेडिंग वेन्यू पॉल की पसंद का था। शादी में पॉल ने पैसे दिल खोल कर लगाये और कारला की इच्छा पूरी करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। कारला को एक लाख की वेडिंग डेªस गिफ्रट में देकर पॉल कापफी दूर की सोच रहा था। कारला की खुशी का पूरा ध्यान रख रहा था, जिसमें उसका अपना स्वार्थ छिपा हुआ था।
बचपन से पॉल का खिंचाव लड़कियों की तरपफ था। उसका दिमाग भी कापफी रोमांटिक था। जवानी में कदम रखते ही उसने उस पर अमल करना शुरू कर दिया। पॉल ने टोरोन्टो विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन के दौरान ही अलग-अलग लड़कियों के साथ डेटिंग पर जाना शुरू कर दिया था। कभी-कभी तो उसे डेट पर ले जाकर मारने की धुन सवार हो जाती थी। उन्हें तंग करके वो बेहद खुश होता था। वहीं 18 वर्ष की आयु से ही पॉल ने यू.एस. कनेडियन बार्डर से सिगरेट की तस्करी शुरू कर दी थी।
ग्रेजुएशन करने के बाद पॉल ने प्राइस वाटर-हाउफस में एकाउफंटेंट की नौकरी शुरू कर दी। वहां भी गर्लप्रफेंड्स का शोषण करना जारी रहा। 1987 में पॉल की अपनी सपनों की रानी से मुलाकात हुई। और जल्द ही कालरा को अपने प्यार के जाल में पफंसा लिया। उसने कारला से अपनी सभी शर्तें मंजूर करने के लिए कहा। कारला को पॉल की सभी शर्तें मंजूर थीं। दोनों ने मिलते ही शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए। कारला के मिलते ही पॉल ने अपना काम शुरू कर दिया। अब टोरोन्टो शहर से 14-18 वर्ष की लड़कियां लापता होनी शुरू हो गईं।
अब पॉल अपना शिकार नगर की बाहरी बस्तियों में ढूंढ़ने लगा। हर लड़की को पकड़ने का एक ही तरीका था। जैसे ही लड़की सामने से आती हुई बस से उतरती, पॉल धक्का मार कर उसे गिरा देता। पिफर झाड़ियों के बीचोंबीच घसीटता हुआ उसे सुनसान इलाके में ले जाता। वहां जाकर मन चाहे तरीकों से उसकी आबरू लूटता। अपनी हवस पूरी करने के बाद उसे वहीं छोड़ देता। सन 1989 में पॉल द्वारा बलात्कार का शिकार हुई लड़कियों की गिनती ग्यारह से उफपर हो गई। तब टोरोन्टो पुलिस ने लड़कियों के बयान से अपराधी का चित्रा बनाना शुरू किया। अधिकतर लड़कियों ने बताया कि बलात्कारी के साथ एक लड़की भी थी, जो लड़कियां पकड़ने में उसकी मदद कर रही थी।
डिटेक्टिव कोनस्टेबल स्टीव इरविन को टोरोन्टो मेट्रोपोलिटन पुलिस ने बलात्कारी को पकड़ने के लिए चुना। 1 मई, 1990 में सरकार ने 150,000 डॉलर का इनाम भी घोषित किया। डिटेक्टिव स्टीव ने डी.एन.ए. टेस्टों के जरिए बलात्कार का शिकार हुई लड़कियों की जांच की। रक्त जांच करते करते कई नमूने पॉल से मेल खाते थे।
परंतु पॉल के खेल जारी रहे। सिगरेट की तस्करी करने के लिए पॉल को चोरी की लाइसेंस प्लेटों की जरूरत रहती थी। जिससे उसे अमेरिकन-कनेडियन बार्डर पार करने में आसानी रहती थी। लाइसेंस प्लेटें ढूंढ़ते हुए उसकी मुलाकात लीसलि माहापफी से हुई।
14 जून, 1991 की शाम लीसलि अपनी सहेली से मिल कर घर की तरपफ लौट रही थी। रास्ते में लीसलि को पैदल चलते देखकर पॉल ने अपनी कार रोक दी। पिफर चाकू दिखा कर जबरदस्ती लीसलि को अपनी कार में धकेल लिया।
वहां से वह घर पहुंचा। घर पहुंचते ही उसने कारला को जगाया। तब दोनों ने 14 वर्षीया लीसलि को कमरे में बन्द कर दिया। पॉल ने लीसलि को बिस्तर पर पटक दिया और कारला को आदेश किया कि वह कैमरा पकड़ कर खड़ी रहे। लीसलि के कपड़े पफाड़ कर पॉल अपने कपड़े उतारने लगा।
‘‘चले जाओ यहां से।’’ लीसलि नपफरत से चिल्लाकर बोली, ‘‘मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती।’’
पलक झपकते ही पॉल ने एक बड़ा सा रूमाल निकाला और लीसलि का मुंह कसकर बांध दिया, ताकि वह आवाज न निकाल सके। दबे हुए स्वर में पॉल बोला, ‘‘थोड़ा इंतजार करो, मेरी जान।’’
पॉल अब लीसलि के सामने खड़ा था। उस खतरनाक आदमी का ध्यान अब लीसलि के अनछुए निर्वस्त्रा बदन की तरपफ था। लीसलि को अहसास हो गया था कि इस जानवर की पाशविक ताकत के आगे वह इतनी लाचार और बेबस है कि अपने बचाव में कुछ भी नहीं कर पाएगी। पिफर भी उसने भागने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रही।
पॉल अब लीसलि के जिस्म पर बोझ बना हुआ था। लीसलि उसके बोझ के नीचे दबी मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि कोई चमत्कार हो जाये, पर चमत्कार के बजाय कुछ और ही हुआ। लीसलि के खूबसूरत और नाजुक शरीर को पॉल रौंदने लगा। उसे बुरी तरह से रौंद डाला। वह बस रहम की भीख मांगती रह गई। पॉल की हैवानियत की ताकत के चलते लीसलि में अब कोई विद्रोह करने की ताकत नहीं रही थी। अगले ही पल लीसलि के मुख से एक चीख निकली। उसकी सांस थम चुकी थी। पॉल करवट बदल कर पलंग से नीचे उतर गया। लीसलि के जिस्म में कोई हरकत नहीं थी। उसका जिस्म ठंडा पड़ चुका था। पिफर पॉल ने उसके शरीर के टुकड़े कर उन्हें ठिकाने लगा दिये।
29 जून, 1991 की शाम एक पति-पत्नी जिब्सन झील के किनारे टहलने के लिए निकले। उन्होंने पाया कि लकड़ी के पफट्टों के साथ किसी अनजान लड़की की लाश लटकी हुई तैर रही थी। कुछ देर में आस-पास के मछुआरे भी इकट्ठा हो गये। गौर से देखा तो लड़की की कटी हुई टांगें थीं। तभी पुलिस भी कारवाई के लिए आ गई। जांच के बाद पांच अलग-अलग लकड़ी के पफट्टों में से कटे हुए हाथ पैर मिले। कारवाई के दौरान झील के बीचोंबीच लीसलि का जबड़ा मिला, जिससे उसके जिस्म की पहचान हुई।
लीसलि के मर्डर के बाद पॉल को अगले शिकार की तलाश थी। कई दिनों तक पॉल कारला के पीछे पड़ा रहा कि वह जैन को एक बार पिफर से बुला कर लाये। कारला पॉल के प्यार में अंधी थी। अपनी शादीशुदा जिन्दगी बचाने के लिए कारला नई-नई लड़कियों को बहला-पुफसला कर पति को खुश रखने के लिए लेकर आती। 30 नवम्बर, 1991 को 14 वर्षीया टैरी एनडरसन की लाश डलहौजी पोर्ट पर मिली। डॉक्टरी परीक्षण के बाद भी हत्यारे का सुराग नहीं मिला। इसका भी बलात्कार के बाद कत्ल पॉल ने किया था।
16 अप्रैल, 1992 को आकर्षक युवती क्रीस्टीन प्रफेंच चर्च की पार्किंग से लापता हो गई। दरअसल कारला बातों-बातों में उसे अपनी कार के नजदीक ले गई। कार के पास पहुंचते ही पॉल ने जोर-जबरदस्ती करके कार में धकेल दिया। अपने घर ले जाकर पॉल ने उसका भी वही हाल किया, जो लीसलि का किया था। क्रीस्टीन को मारना जरूरी हो गया था, क्योंकि वह सीधा पुलिस स्टेशन जाने की धमकी देने लगी थी। बलात्कार करने के बाद क्रीस्टीन के जिस्म के टुकड़े-टुकड़े करके घर के बाहर मिट्टी खोद कर गाड़ दिये।
पॉल बीर्नाडो और कारला की बलात्कारी हत्यारी जोड़ी सेंट केथरिन ने आजाद घूम रही थी। सूपरिटेन्डेंट विन्स बीवान को लीसलि महापफी केस की जिम्मेदारी सौंपी गई। ओंतारियो सरकार ने क्रीस्टीन प्रफेंच के हत्यारे की खोज में ग्रीन रिबन टास्क पफोर्स का गठन किया। दूसरी तरपफ टोरोन्टो मेट्रोपोलिटन के डिटेक्टिव कोनस्टेबल स्टीवू इरविन ने पॉल के खिलापफ सभी सबूत इकट्ठे कर लिये। सभी लाशों के रक्त नमूने पॉल के नमूनों से मेल खाते थे। उन्हें संतुष्टि थी कि अब जल्द ही पॉल उसकी गिरफ्रत में होगा।
जैसे ही स्टीव इरविन पुलिस स्टेशन पहुंचे तो क्या देखते हैं कि थाने में कारला ने पॉल के खिलापफ रिपोर्ट दर्ज कराई है। टोरोन्टो पुलिस और ग्रीन रिबन टास्क पफोर्स की जांच टीम ने कारला से चार घंटों तक पूछताछ की। पूछने पर कारला ने बताया कि उसके पति ने उसे बुरी तरह से मारा था, जिससे उसकी आंखों के पास काले निशान पड़ गये।
कारला के माता-पिता से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वह उसे अपने घर ले गये। पुलिस को पहले ही पॉल पर शक था। एक के बाद एक सबूत पॉल के खिलापफ जा रहे थे। अन्त में पफरवरी, 1993 में पॉल को गिरफ्रतार कर लिया गया। कारला ने कबूल किया कि उसका पति बलात्कारी व हत्यारा है।
छानबीन करने पर कारला के घर से कई लड़कियों से बलात्कार की वीडियो रिकार्डिंग मिली। अटार्नी जनरल जार्ज वाकर ने बताया कि मर्डर व रेप के जुर्म में कारला का भी हाथ है। यदि वह सच बताये तो उसे कम से कम 12 साल की सजा होगी, नहीं तो उम्र कैद।
कारला पहले ही पॉल के जुल्मों से सहमी हुई थी। उसने बताया, ‘‘मैंने पॉल के कहने पर लड़कियों को पफंसाया। ऐसा नहीं करने पर उसने मुझे छोड़ कर जाने की धमकी दी थी।’’
पॉल बीर्नाडो के मुकदमे की कारवाई जज पेट्रिक लीसाजे के कोर्ट रूम में मई, 1995 में शुरू की गई। मौजूदा कनेडियन कानून के मुताबिक पॉल को 25 वर्ष की कैद की सजा हुई। पॉल बीर्नाडो को दी निर्दोषों की हत्या, दो अपहरण, दो सेक्सुअल प्रहार, मृत शरीर से बलात्कार करने और सिलसिलेवार रेप करने के लिए न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया गया।
कारला को पॉल बीर्नाडो के साथ मिलकर अपराध करने के जुर्म में 12 वर्ष की सजा हुई। जेल में रहते सन् 2000 में कारला की दिमाग हालत ठीक नहीं रही। करेक्शनल सर्विस कनाडा की जुसी मेकलांग ने कारला को जोलेटी जेल से सासकाटून रिजनल मनोचिकित्सक सेंटर में ट्रांसपफर करने का आग्रह किया। सासकाटून सेंटर चारों तरपफ से इलेक्ट्रानिक तारों से घिरा हुआ है। छोटे-छोटे कमरों में ही बाथरूम और सींक लगे हुए हैं। बिस्तर जमीन पर ही बनाये गये हैं।
कारला जुलाई, 2005 को कनेडियन जेल से सजा पूरी करके रिहा हुई। पर कनेडियन सरकार अभी भी सोच में है कि क्या कारला को छोड़ देना चाहिए या नहीं? जेल से रिहा करने से पहले जज जीन बीयुलियु ने कारला की पांच मनोचिकित्सकों से जांच कराई कि क्या कारला का खुला छोड़ना चाहिए या नहीं। पिफलहाल कारला ने पॉल से तलाक ले लिया है और अपना नाम कारला से बदल कर टीले रख लिया है। कारला बताती है, ‘‘मैं आज भी अपनी बहन टैमी को याद करके बहुत रोती हूं। मैं कभी भी अपने आप को मापफ नहीं कर सकती।’’