Friday, March 22, 2013

पेड़ का रहस्य

 जानलेवा पेड़ का रहस्य

खुर्दा-बालूगां उड़ीसा् राष्ट्रीय राजमार्ग पर है मंगलाजोड़ी गांव। गांव से कुछ ही दूरी पर है एक सूखा पेड़। जो इस पेड़ का स्पर्श करता है, उसकी मृत्यु हो जाती है। इध्र-उध्र की बात करेगा और मुंह से निकलेगा अनवरत खून, बाद में छटपटाकर मौत की आगोश में समा जाएगा। इससे निजात पाने के लिए क्यों ना आप किसी भी डॉक्टर या ओझा-गुनी से इलाज करवा लें, लेकिन यह होकर ही रहेगा। यह न तो कोई सुनी-सुनाई बता है और न ही कोई पिफल्म की कहानी है, बल्कि यह मानना है कि मंगलाजोड़ी गांव के लोगों का। वहीं प्रशासन का कहना है कि यह महज ग्रामीणों का वहम है। इसमें कोई सच्चाई नहीं है।

खुर्दा के जिलाध्ीश का कहना है कि विगत चार-पांच माह में उस गांव के सात लोगों की मौत की बात कही जा रही है। यह किसी खास बीमारी की वजह से भी हो सकती है। इस मामले की जांच के लिए प्रशासनिक टीम के अलावा मेडिकल टीम क गठन किया गया है। मेडिकल टीम मरीजों की जांच कर बीमारी और मौत के कारणों का पता लागायेगी। जिलाध्ीश ने कहा कि जांच रिपोर्ट के बाद ऐसे मामले में कुछ कहा जा सकता है। वैसे उन्होंने भूत व पेड़ के आतंक की बात को महज बकवास बताया है।
पिछले दिनों गांव गई मेडिकल टीम को ग्रामीणों ने मरीजों को दिखाने से इंकार कर दिया। उनका कहना है कि इसका हल कोई तांत्रिक ही निकाल सकता है। पूरे मामले की तहकीकात करने पर लोगों ने बताया कि 15 पुफट का सूखा यह पेड़ अभी तक इसने क्षेत्रा के सात लोगों की जान भी ले चुका है। भय से अब तो गांव के लोगों ने उस पेड़ को दूर से भी देखना छोड़ दिया है। बच्चों ने तो उस रास्ते से होकर दिन में भी स्कूल जाना बंद कर दिया है। शाम होते ही सारा गांव पेड़ के आतंक से निस्तब्ध् हो जाता है। गांव के कई परिवार इस भय से गांव छोड़कर अपने बाल-बच्चों के साथ पलायन करने लगे हैं। इन सब के बीच पेड़ के करीब तांत्रिक अनुष्ठान जारी है।
वहीं गांव वालों ने बताया कि करीब एक साल से यह पेड़ सूख जाने के बावजूद वैसे ही खड़ा है। कुछ दिन पहले गांव के 58 वर्षीय महंत बेहेरा ने घरेलू कामकाज के लिए इस पेड़ को काटने का प्रयास किया था, मगर पेड़ को छूते ही बेहोश हो गया। उसे टांगी अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने जवाब दे दिया तो उसे राजधनी अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही उसके मुंह से कापफी खून निकलने लगा और वह मर गया। पुनः 45 साल के जननायक नामक एक महिला लकड़ी संग्रह करने के प्रयास में पेड़ को स्पर्श किया और उसकी भी उसी हालत में मौत हो गई। इसके बाद अनिल कुमार नामक एक लड़के ने खेल-खेल में पेड़ की एक डाली तोड़ दी और दूसरे दिन उसकी भी मौत हो गई। 17 साल के भवानी शंकर नामक एक लड़के ने पेड़ को छू लिया तो उसके नाक तथा मुंह से खून व उल्टी हुई और दो दिन बाद उसकी मौत हो गई। यह सिलसिला यहीं समाप्त नहीं होता है। एक दिन एक महिला अपने एक महीने के बच्चे को लेकर उसी रास्ते से जाते समय डर गई एवं घर पहुंचते ही उसका बच्चा मर गया।
इसके अलावा कुछ महीने पहले भी गांव के अन्य दो व्यक्तियों की मौत भी इसी वजह से हो गयी थी। मानस मांझी नामक एक युवक सब कुछ जानबुझकर कुछ लोगों को पेड़ के पास खड़ा होकर साहस दिखाकर पेड़ को स्पर्श किया, पिफर उसकी भी मृत्यु हो गई। उसी गांव की रश्मिता बेहेरा द्वारा गलती से पेड़ को छू देने के कारण इसे अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां कुछ पफायदा न होने के बाद वह घर में अभी मौत के साथ लड़ रही है। रश्मिता का झाड़पफूंक करने के लिए आया हुआ एक तांत्रिक खुर्दा का निशामणि जेना अपने घर लौटते समय एक ट्रक के चपेट में आ गया, उसे राजधनी अस्पताल में भर्ती कराया गया। दिन में उस पेड़ को देखने के लिए, जहां लोगों की कापफी भीड़ होती है, वहीं गांव के लोग भय से गांव छोड़ रहे हैं।
उपर्युक्त सभी घटनाओं का हवाला देकर ग्रामीण इस पेड़ के आतंक की कहानी कहने से नहीं थक रहे हैं। उनका दावा है कि इस पेड़ पर किसी भूत-प्रेत का साया है, जिसे सिपर्फ योग्य तांत्रिक ही भगा सकता है।

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