Thursday, April 11, 2013

एक से बढ़कर एक हैरतअंगेज खबरें

88 शादियां 64 तलाक


विवाह बंध्न एक भावनात्मक नाजुक बंध्न होता, लेकिन आपसी समझदारी के अभाव में जब दांपत्य संबंध् दरकने लगते हैं तो नौबत तलाक तक जा पहुंचती है। तलाक की पृष्ठभूमि में कई व्यक्तिगत, आर्थिक और सामाजिक कारण हो सकते हैं, किंतु आज आपको ऐसे महारथियों से मिलाने जा रहे हैं, जिन्होंने महज अपनी सनक की वजह से तलाक लिया। कुछ दिनों पूर्व नीस ;प्रफांसद्ध की 99 वर्षीय वृ( महिला ने अखबार में वैवाहिक विज्ञापन कॉलम में विज्ञापन छपवायाः जरूरत है अध्कि से 22 वर्षीय एक सुंदर, स्वस्थ और सलोने नौजवान की। मैं अब तक 64 तलाक ले चुकी हूं।
उड़ीसा के ओराली गांव का 62 वर्षीय उदयनाथ दखीराम अब तक 88 विवाह कर चुका है। उदयनाथ की 59 पत्नियां उसे विवाह के कुछ समय बाद ही तलाक दे चुकी हैं। 14 पत्नियांे की मौत हो गई और 10 उसे छोड़कर भाग गई।
प्राग के तीस वर्षी कार्ल लुन्माक ने शादी के सिपर्फ 90 मिनट बाद अपनी पत्नी से तलाक लेने की दरख्वास्त अदालत में दायर कर दी। उसने तलाक लेने का कारण बताया कि उसकी पत्नी विवाह के समय एक खूबसूरत नौजवान को टकटकी बांध्े घूर रही थी। अदालत ने कार्ल की अर्जी मंजूर करते हुए उसे शादी से मुक्त कर दिया। सिडनी ;ऑस्ट्रेलियाद्ध के 40 वर्षीय पिफन हेरिस ने अदालत के सामने इंसापफ की गुहार करते हुए कहा कि उसकी पत्नी उसके कंध्े पर खड़े होकर लकड़ी से बेडरूम का पंखा घुमाती है। इससे उसे बहुत तकलीपफ होती है। न्यायालय ने हेरिस की पीड़ा को समझते हुए उसका तलाक की अर्जी स्वीकार कर ली।
न्यूयॉर्क की एक महिला ने अपने शौहर को इसलिए तलाक दे दिया कि उसके पति ने अपने पालतू तोते को रटा रखा थाµफ्भूतनी जल्दी उठ।य्
जूझोनाईता नार्वे की रहने वाली एक चालीस वर्षीय महिला है। उसने अपने पति को उसके गंजेपन के आधर पर तलाक दे दिया। उसने अदालत में कहा कि शादी के समय उसका पति गंजा नहीं था। पति ने भी अदालत में दरख्वास्त की कि हमंे तलाक दे दिया जाए क्योंकि मैं अपनी पत्नी से तंग आ चुका हूं। वह मेरे गंजे सिर से बहुत चिढ़ती है तथा जब-तब मेरी गंजी खोपड़ी पर चपत लगाती रहती है। अदालत ने तलाक मंजूर कर लिया।
लॉस एंजेलिस की एक अदालत ने एलविन आकमेन की तलाक की अर्जी इसलिए स्वीकार कर ली क्योंकि उसके लेखक पति ने अपनी पुस्तक ‘आत्महत्या के सैकड़ों तरीके’ की भूमिका में लिखा था कि इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा उसे अपनी पत्नी से मिली है। लॉस एंजेलिस में 31 अगस्त 1985 को एक बहुत ही मंहगा तलाक हुआ। अमेरिका के सर्वाध्कि मशहूर टीवी स्टार जेमिनी केरसन ने अपनी पत्नी को तलाक दिया। उसकी एवज में उसने अपनी पत्नी को 22 लाख डॉलर नकद, तीन माकन, दो कारें तथा स्टॉक के आध्े शेयर अदा किए।

दरवाजा के बाहर बैठो

मध्य अप्रफीका के कबीलों में तलाक के लिए बड़ा विचित्रा तरीका प्रचलित है। यादि किसी को पत्नी से तलाक लेना होता है तो वह उसके अपने दरवाजे से बाहर बिठा देता है। एक निश्चित समयावध् िके बाद उनमें तलाक मान लिया जाता है।
साइबेरिया में किसी भी व्यक्ति को पत्नी से तलाक लेने के लिए एक सर्वाध्कि समारोह में पत्नी के चेहरे का नकाब पफाड़ना होता है। मध्य-पूर्व अप्रफीका में यदि पति पत्नी की मांग पर उसे नए वस्त्रा सिलवा कर न दे तो वह तलाक मांग सकती है।
मलाया के सुदूर जंगली इलाकों में रहने वाले कबीलों की एक अत्यंत अश्लील परंपरा प्रचलित है। यदि किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी को तलाक देना है तो वह पूरे कबीले के लोगों को इकट्ठा करके दावत देता है। इस दावत के दौरान लोग नाचते-गाते हैं। इस समारोह पति सार्वजनिक रूप से पत्नी को निर्वस्त्रा कर देता है। समारोह के दौरान वह स्त्राी नग्न रहती है। इस बीच यदि कोई अन्य युवक उससे शादी करने को इच्छुक हो तो वह उसे वस्त्रा देता है।

डाइवोर्स चाहिए, भाला पफेंको

अमेरिका में रेड इंडियन कबीलों में विवाह के वक्त लकड़ियों का एक छोटा-सा गट्ठर नवविवाहित युगल को दिया जाता है, जिसे वे अपने सुखद वैवाहिक जीवन के प्रतीक के रूप में संभाल कर रखते हैं, लेकिन जब उस गट्ठर की लकड़ियों को तोड़ दिया जाता है तो इसे विवाह विच्छेद के रूप में माना जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के कुछ कबीलों में तलाक प्राप्त करने की शर्त के रूप में पति को निशानेबाजी की परीक्षा देनी होती है। यदि पत्नी पति से तलाक लेना चाहती है तो उसे एक वृक्ष के सहारे खड़ा कर दिया जाता है। पति उससे चालीस कदम दूरी पर खड़ा होकर उसकी ओर भाला पफेंकता है। पत्नी को अपने बचाव में इध्र-उध्र हटने का अध्किार होता है, किंतु वह भाग नहीं सकती। पति को दस मौके दिए जाते हैं। यदि इस दौरान भाला पत्नी को नहीं लगता है तो वह युवती अपने पति को छोड़कर अन्यत्रा विवाह करने के लिए स्वतंत्रा होती है।
बर्मा के शान कबीले में पत्नी को तलाक के संबंध् में पति से कहीं ज्यादा अध्किार प्राप्त हैं। यहां पत्नी अपने शराबी पति को घर से निकाल सकती है, उसकी संपत्ति हड़प सकती है। वह किसी अन्य व्यक्ति से विवाह करने के लिए भी स्वतंत्रा रहती है।

15 बच्चेµ इसे कहते हैं भरा पूरा परिवार

क्लॉडिना और डेविड की शादी 28 साल पहले हुई थी। उनके 15 बच्चे हैं। 8 लड़कियां और 7 लड़के। चार काम कर रहे हैं, तीन कॉलेज में हैं, 7 स्कूल में और आखिरी ने अभी जून में ही स्कूल जाना शुरू किया है। सबसे बड़ी सुजाना 26 की है और सबसे छोटी जूलिया 4 साल की। कोई भी जुड़वां नही है। सब नॉर्मल डिलीवरी से हुई हैं, स्वस्थ हैं।
डेविड 3 साल पहले बंगलूरू से मुंबई चले गए। वह नयापन चाहते थे और इसके लिए उन्हें अपने रहने की जगह बदलनी थी। वह सेंट जेवियर कॉलेज मुम्बई में लेक्चरर थे। क्लॉडिना वहां स्टूडेंट थीं। डेविड क्लॉडिना के भाई के भी दोस्त थे। वह भाई से मिलने घर आने लगे। ध्ीरे-ध्ीरे वह तब भी घर आने लगे जब क्लॉडिना का भाई घर पर नहीं होता था। दोनों में प्यार हुआ और पिफर 1985 में शादी। अगले ही साल बच्ची पैदा हो गई। इसके बाद एक के बाद एक कर 15 बच्चे हुए। हालांकि वह यह बताते बताते यह कहना नहीं भूलते कि दोनों का प्यार कभी कम नहीं हुआ। सभी बच्चे नॉर्मल डिलीवरी से हुए। अब क्लॉडिना जानती हैं कि मीनोपॉज की वजह से अब इन्हें और बच्चे नहीं होंगे।
इतने बच्चे क्यों?
इस सवाल का जवाब देते हुए डेविड कहते हैं कि बच्चे तो भगवान का तोहपफा होते हैं। उन्हें मना कैसे किया जा सकता है। उनका परिवार भी मानता है कि जितने ज्यादा बच्चे होंगे, उतना ही प्यार और हंसी बढ़ेगी। इसमें पसंद न करने जैसा क्या है। डेविड शिक्षा विशेषज्ञ हैं और उनकी पत्नी होममेकर बनने से पहले स्पीच थैरेपिस्ट थीं। यह परिवार दो किराए के फ्रलैटों मंे रहता है। दो बेडरूम का फ्रलैट लड़कियांे के लिए है और तीन बेडरूम का फ्रलैट लड़कों के लिए। बेड पफोल्ड हो जाते हैं जिससे स्पेस बचता है। कॉमन किचन, डाइनिंग हॉल और एक टेलिविजन लड़कियों वाले सेक्शन में है। दंपती सुबह 5 बजे उठता है। क्लॉडिना सबके लिए लंचबॉक्स पैक करती है। सब बच्चों का नहाने का टाइम बांट दिया गया है। घर के काम में बच्चे भी मां की मदद करते हैं।

बेबी एक, मदर तीन

केटी को अर्ली एज में ही पता चल गया था कि वह कभी भी मां नहीं बन सकती है। एक बार जब किसी समस्या के चलते वह अस्पताल गई तो जांच में पता चला कि उसे एक खास तरह की जेनेटिक प्रॉब्लम है, जिसकी वजह से उसका रिप्रोडक्टिव ऑर्गन प्रभावित हुआ है, और वह मां नहीं बन सकती। केटी किसी भी तरह पैरेंट्स बनना चाहते थे। 31 साल की केटी के जीवन में उस समय खुशी का कोई ठिकाना नहीं रह गया, जब उसकी छोटी बहन लूसी ने अपनी बड़ी बहन के लिए अपने एग्स देने का पफैसला किया। छोटी बहन ने अपने एग्स दिए तो केटी की बड़ी बहन जेमी ने सरोगेट मदर बनना तय किया। अपनी बहनों की हेल्प से आज केटी मां बन गई है।
ब्रिटेन के एसेक्स में रहने वाले हस्बैंड-वाइपफ डेविड और कैटी का कहना है कि वे कापफी निराश हो जाते थे, जब अपने बेबी के बारे में सोचते थे। अचानक केटी को याद आया कि जब उसे बताया गया था कि वह मां नही बन सकती तो उसकी छोटी बहन लूसी ने उससे कुछ वादा किया था। दरअसल लूसी ने उसे अपने एग्स देने का वादा किया था। केटी ने लूसी को उसके वादे के बारे में याद दिलाया, तो वह तुरंत तैयार हो गई। लेकिन इसके बाद समस्या थी कि सरोगेसी के लिए कौन तैयार होगा। दरअसल लूसी व उसका बॉयप्रफैंड नहीं चाहते थे कि पहली प्रेग्नेंसी के बाद बेबी उनके पास न रहे। पिफलहाल यह समस्या दर हो गई, जब केटी की बड़ी बहन जेमी सरोगेसी के लिए तैयार हो गई। जेमी को पहले से तीन बच्चे हैं। लूसी के एग्स को डेविड के स्पर्म से पफर्टिलाइज किया गया, जिसके बाद उसे जेमी के भू्रण में रोपित किया गया। कुछ दिन के बाद जांच में पता चला कि जेमी के भ्रूण में बेबी का डेवलपमेंट कापफी अच्छे से हो रहा है। आज डेविड और केटी एक बेबी गर्ल के हैप्पी पफादर और मदर हैं। केटी का कहना है कि मेरी बहनों ने मुझे जो गिफ्रट दिया है, उससे शानदार कुछ नहीं हो सकता है। कहने को हम बेबी के पफादर और मदर हैं, लेकिन मेरा मानना है कि इस बेबी की तन मदर हैं।

दुनिया का सबसे छोटा टीचर, लंबाई 3 पफुट

आजाद सिंह की उम्र 22 साल हो चुकी है, लेकिन उसकी लंबाई महज 3 पफुट है। जब वह 5 साल का था, तभी उसकी लंबाई बढ़नी बंद हो गई। उसे एक खास तरह का जेनेटिक डिसआर्डर है, जिसकी वजह से उसकी लंबाई नहीं बढ़ी। स्कूल के दौरान साथी बच्चों द्वारा तमाम कमंेट और अन्य दिक्कतें झेलने के बाद भी आजाद ने अपनी पढ़ाई पूरी की। उसने कम्प्यूटर कोर्स में खास योग्यता बटोरी और आज कम्प्यूटर टीचर बन गया है। आजाद हरियाणा में गुड़गांव के एक स्कूल में बच्चों को कम्प्यूटर पढ़ाता है। वह आज दुनिया का सबसे कम कद वाला टीचर है।
आजाद सिंह के स्टूडेंट जो उससे उम्र में कापफी छोटे हैं, लंबाई में उससे उफंचे है। वह अपने स्टूडेंट के बीच सबसे नाटे कद का है। आजाद की लंबाई इतनी कम है कि उसे ब्लैक बोर्ड तक पहुंचने के लिए टेबल का सहारा लेना पड़ता है। आजाद कपडे़ भी बच्चों वाले ही पहनता है, जिसे बच्चे 6-7 साल की उम्र में पहनते हैं। आजाद का कहना है कि वह जब स्कूल में पढ़ता था तो अपने नाटे कद के लिए उसे साथी बच्चों से कापफी कुछ सुनना पड़ता था। उससे तो यहां तक कहा जाता था कि बचकर रहना, नहीं तो सर्कस वाले उठा कर ले जाएंगे।
इसके बावजूद उसने पढ़ लिख कर एक मुकाम हासिल किया। आजाद का कहना है कि वह खुश है कि आज वह खुद से कुछ कर सका। आजाद की मां का कहना है कि मेरे बेटे ने आखिरकार खुशियां पा ही लीं। वह आज टीचर है और बच्चों को कम्प्यूटर पढ़ाता है। आजाद की दो छोटी बहने हैं। 19 साल की एक बहन को भी वही डिसऑर्डर है, जो आजाद को है। 15 साल की दूसरी बहन उसकी स्कूल में पढ़ती है, जहा आजाद टीचर है।

116 वां सावन देखूंगी।

जापान की मिसाओ ओकावा ने हाल ही में अपना 115वां जन्मदिन मनाया गिनीज बुक ऑपफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने उन्हें सबसे बुजुर्ग महिला का खिताब दिया है। खिताब लेने के बाद उन्होंने कहा कि अगले साल मैं 116वां सावन देखूंगी।

106 साल की उम्र में स्कूल चले हम

हौंसले बुलंद हों तो उम्र पर सब कुछ भारी पड़़ता है। जरा सोचिए, 106 साल की उम्र में व्यक्ति अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव में होता है। लेकिन अमेरिका में एक व्यक्ति ने 106 साल की उम्र में डिप्लोमा हासिल किया है। प्रफेड बटलर पांच बच्चों का पिता भी है। अमेरिकी मूल का यह व्यक्ति सेकण्ड वर्ल्ड वॉर में अमेरिकी सेना का हिस्सा रहने के साथ-साथ जल विभाग में भी काम कर चुका है। एक समय मां और अपने पांच भाई बहनों को संभालने के लिए उसने स्कूल छोड़ दिया था। लेकिन इस बात का हमेशा मलाल रहा। इस शख्स ने शिक्षा के महत्व को समझा और अपने बच्चों और पोता-पोती में पढ़ाई लिखाई को लेकर रुझान पैदा किया। मेसाचुसेट्स में प्रफेड बटलर को ऑनरेरी डिप्लोमा दिया गया।

तरबूज के साइज का पुखराज, कीमत 5 करोड़

दुनिया का सबसे पुखराज नीलामी के लिए तैयार है। 57500 कैरेट के इस पुखराज की कीमत करीब 5 करोड़ रुपए है। देखने में यह राशि रत्न एक तरबूज के साइज का है। इसकी नीलामी इसी हफ्रते ब्रिटेन में वेस्टर्न स्टार द्वारा की जाएगी। जितना बड़ा यह रत्न है उतनी ही बढ़ी इसकी कहानी भी है।
यह टेओडेरा नाम की रत्न ब्राजील में पाया गया। इंडिया में इसे तराशा गया। इसके बाद इसे रीगन रैनी जेम डीलर को दे दिया गया। रत्न विशेषज्ञ जैपफ नेचका का कहना है कि यह है तो पुखराज लेकिन इसमें कितना पफीसदी पुखराज यह देखना पड़ेगा।

चट्टान पीती है सिगरेट

सिगरेट न पीने की चेतावनी तो आपने सामने आया है। जी हां चीन में एक चट्टान का टुकड़ा मिनटों में पूरी सिगरेट खत्म कर देता है। इस चट्टान को देखकर लोग हैरान हो जाते हैं। यह चट्टान का टुकड़ा जिस कलेक्टर के पास है उसने इसे डिस्प्ले के लिए रखा है और चाव से लोगों को हैरान होन पर मजबूर करता है। चीन के पफजियान प्रांत के रहने वाले लाउफ योनशी को लगभग ढाई किलो की चट्टान का यह टुकड़ा शंग्यू पहाड़ों पर मिला था। चट्टान में छेद देख कर उसने खेल खेल में ही सिगरेट लगा दी। पिफर क्या था, अमूमन नेचुरली 6 मिनट में खत्म होने वाली सिगरेट 5 मिनट से भी कम समय में खत्म हो गई। कई बार ट्राई करने पर लाउफ को इस बात का भरोसा हो गया कि हो न हो यह चट्टान कुछ चमत्कार कर रही है और सिगरेट पी रही है। इस चट्टान की एक खास बात यह है कि यह दिखती भी है इंसान की शक्ल की तरह। इसे देखने वाले भी हैरान रह जाते हैं कि आखिर कोई चट्टान कैसे सिगरेट पी सकती है। अब देखना है चट्टानांे के लिए सिगरेट न पीने की एजवाइजरी कब जारी होती है।

तोते ने अपनी जान देकर निभाई वपफादारी

ब्रिटेन में एक तोते ने घर में आग लगने पर अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने मालिक की जान बचाई। जी हां, यह बात बिल्कुल सही है। अपने मालिक को बचाने में तोते को अपनी जान से हाथ धेना पड़ा। साउथ वेल्स के लानेली स्थित घर के बेडरूम में जब आग लगी थी तो तोते का मालिक बाथरूम में था। पहले तोते ने चिल्ला-चिल्ला कर मालिक को बताने की कोशिश, लेकिन मालिक बाथरूम में तोते की आवाज सुन नहीं सका तब तोता जान की परवाह किए बिना बेडरूम चला गया और जोर से चिल्लाकर उन्हें अलर्ट करने लगा, मालिक किसी तरह बचकर बाहर आ गया, लेकिन तोता समय पर बाहर नहीं निकल पाया और जलकर मर गया।

इंसान के पफेस वाला डॉगी?

आपने सुना ही होगा कि दुनिया में एक ही शक्ल के दो इंसान होते हैं, लेकिन यहां तो उल्टा हो गया। अमेरिकी प्रांत केंटुकी में इंसान से मिलती-जुलती शक्ल वाला यह डॉगी लोगों को कापफी पसंद है और इसका नाम टॉनिक रखा गया है। और तो और टॉनिक के लिए उसका होम स्वीट होम सर्च किया जा रहा है। टॉनिक को बचाने वाले एनिमल वेलपफेयर टीम के सदस्य ने कहा कि टॉनिक को देखने पर लगता है कि कोई स्वीट बॉय आपकी आंखों में झांक रहा हो। टॉनिक की स्वीट सी स्माइल अहसास दिलाती है कि वह एक इंसान है, न की डॉगी।
ग्रुप के सदस्य ने बताया कि टॉनिक बहुत शांत और समझदार है। टॉनिक को और कुत्तों के साथ रखा जाता है और उसकी पूरी देखभाल की जाती है। टॉनिक सबसे बहुत घुल-मिल गया है। पर टॉनिक सबको बहुत पसंद है। पसंद क्यों न हो वो स्पेशल जो है। बताया गया है कि टॉनिक की बॉडी में मेडिकल जांच के लिए एक माइव्रफोचिप डाल दी गई है। टॉनिक को गोद लेने की पफीस 250 डॉलर है और और मालिक को खुद ही इस डॉगी को लेने आना होगा। लगता है कि टॉनिक को जल्द ही अपना घर मिल जाएगा।

13 करोड़ कर दिए दान

चीन के बिजनेस मैन टाइकून वू रूईबाओ ने इतनी बड़ी ध्नराशि देकर एक रिकॉर्ड बनाया। जी हां ये बिल्कुल सही है। और तो और 5 डिब्बे भरकर सोना, पोर्श मर्सिडीज बेंज कंपनी और प्रॉपर्टी भी शामिल है। क्यों हैै न मजे की बात। इतना ही नहीं, वू ने अपनी प्यारी बेटी के बैंक खाते में 17 करोड़ 72 लाख रु. और कंपनी के 50 लाख शेयर जमा कराए हैं। शेयरों की कीमत 88 करोड़ रुपए है, इस बात पर रिकॉर्ड तो बनता ही है। इतने दहेज के साथ-साथ तोहपफों की कसर भी नहीं छोड़ी वू ने। बेटी को तोहपफे में कुआंगजाउ स्थित रिटेल स्टोर, ओलिंपिक विला और वांडा मैंशन शामिल है। रूईबाओ की बेटी ने अपने बचपन के दोस्त जू से शादी की है।
जू एक सिविल सर्वेंट है। शादी का समारोह 8 दिन तक चल रहा है। एक सबसे बड़ी बात कि वू का दिल सबसे बड़ा है। बेटी की हैप्पी लाइपफ के लिए वू ने 13 करोड़ 28 लाख रुपए दान भी किए हैं। इससे सापफ पता चलता है कि बाप का दिल कितना बड़ा है।

एक पफैमिली 40 साल से चांद पर!

अगर हम कहें कि एक परिवार 40 साल से चांद पर है, तो आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन एक तरह से यह सच है। दरअसल, अंतरिक्ष यात्राी चार्ल्स ड्यूक ने 1972 में चांद की यात्रा के दौरान अपनी पत्नी और बच्चों की एक तस्वीर चांद पर छोड़ दी थी। इसके पीछे लिखा है, ध्रती से आए अंतरिक्ष यात्राी चार्ल्स ड्यूक के परिवार की तस्वीर। अब तो आप समझ गए न कि कैसे यह परिवार 40 साल से चांद पर मौजूद है।
चार्ल्स अपोलो 16 मिशन के दौरान चांद पर गए थे। पफैमिली पोर्टेट के साथ-साथ उन्होंने अपने पैरों के निशान भी चांद पर छोड़े थे। उन्होंने लून रोविंग वीकल से चांद के रहस्यों को करीब से जाना था। इस तस्वीर के बारे में प्रोजेक्ट अपोलो इमेज आर्काइव के दौरान जानकारी दी गई। अपोलो 16 युनाइटेड स्टेट अपोलो स्पेस प्रोग्राम का यह 10 मानव आधरित मिशन था। 23 अप्रैल को शुरू हुई इस यात्रा में कमांडर जॉन यंग के अलावा लूनर मॉड्यूल पायलेट चार्ल्स ड्यूक और कमांड मॉड्यूल पायलेट केन मेटिंगले शामिल थे। केनेडी स्पेस सेंट फ्रलोरेडा से 16 अप्रैल की लाँच हुए इस अंतरिक्ष यान का मिशन 11 दिन में पूरा हुआ था। 36 की उम्र में इस तरह की यात्रा में शामिल होने वाले चार्ल्स दसवें और सबसे कम उम्र के अंतरिक्ष यात्राी बन गए थे। इन लोगों ने चांद पर कुल तनी दिन बिताए थे। 95 किलाग्राम के सैंपल ये अपने साथ लाए थे।

वह ममेरी बहन की शादी में शामिल होने के लिए घर से निकली और जा पफंसी एक अजीबो गरीब परिस्थिति में जिसने उसकी जिन्दगी को ना सिपर्फ बदल डाला बल्कि बर्बाद कर डाला।

गहरी साजिश

-जयप्रकाश

वह ममेरी बहन की शादी में शामिल होने के लिए घर से निकली और जा पफंसी एक अजीबो गरीब परिस्थिति में जिसने उसकी जिन्दगी को ना सिपर्फ बदल डाला बल्कि बर्बाद कर डाला।


संध्या उस छोटे शहर के छोटे से स्टेशन पर उतरी। तब सुबह के पांच बजे थे। जाड़े के दिन थे और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। वातावरण में हल्का कोहरा भी छाया हुआ था।
ठंड से बचने के लिए संध्या ने अपने कोट के कॉलर खड़े किए और उसके अगल-बगल के जेबों में अपने दोनों हाथ डालकर स्टेशन से बाहर आई।
संध्या लगभग बीस वर्षीय, गौर वर्ण की एक खूबसूरत युवती थी। लम्बा कद, कजरारी आंखें और कसा हुआ सुगठित बदन। स्वभाव से वह मिलनसार और चंचल थी। कानपुर शहर में रहने के कारण वह खुले स्वभाव की थी और जल्द ही किसी से घुल मिल जाती थी। उसने अभी-अभी ग्रुेजुएशन किया था और किसी अच्छी नौकरी की तलाश में थी। संध्या के मां-बाप पढ़े-लिखे और खुले विचार के लोग थे और उन्होंने अपनी संतानों को अपना मनपसंद जीवन जीने की आजादी दी थी।
संध्या के पापा-सतीश श्री वास्तव एक सरकारी बैंक में मैनेजर थे। संध्या अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी थी, सो वह अपने मां-बाप और भाइयों की लाडली थी।
इस छोटे से शहर में उसके मामा का घर था और आज से पांचवें दिन उनकी बेटी की शादी थी। संध्या इसी शादी में शरीक होने यहां आई थी। वह तो अपने मां-बाप के साथ ही यहां आने वाली थी परंतु बैंक में एक आवश्यक काम निकल आने के कारण उसके पापा नहीं आ पाए थे। वो तीन दिन बाद उसकी मां के साथ आने वाले थे सो संध्या यहां अकेली ही चली आई थी ।
स्टेशन से निकलकर संध्या ने किसी सवारी की तलाश में अपनी निगाहें चारों ओर दौड़ाई पर उसे कोई सवारी नजर न आई। सवारी की तलाश में कुछ आगे बढ़ी। सड़क के किनारे एक मोड़ पर उसे एक रिक्शा दिखाई पड़ा। संध्या रिक्शा के करीब आई तब उसे रिक्शा के सीट पर चादर लपेटे सिमटकर बैठा रिक्शा वाला नजर आया। उसने अपने पूरे बदन यहां तक कि चेहरे के अधिकांश भाग पर भी चादर लपेट रखा था जिससे उसके चेहरे का अध्किांश भाग छिप गया था।
‘‘ओ रिक्शा वाले। गांध्ी नगर चलोगे?’’ संध्या ने उसके करीब पहुंचकर पूछा। रिक्शा वाले ने नजर उठाकर उसकी ओर देखा पिफर बोला, ‘‘जी।’’ कहने के बाद वह सवारी सीट से उतरकर चालक सीट पर जा बैठा।
संध्या रिक्शे पर बैठी। उसके बैठते ही रिक्शे वाले ने रिक्शा आगे बढ़ा दिया।
ठंड से बचने के लिए संध्या अपने आप में सिमटी नजरें झुकाए रिक्शे में बैठी थी।
लगभग पन्द्रह मिनट के बाद उसने अपनी नजरें उठाई तो उसके दिमाग को झटका लगा। पलभर तो वह अपने आस-पास के वातावरण का अवलोकन करती रही पिफर बोली, ‘‘ओ रिक्शा वाले। यह तुम मुझे कहां ले जा रहे हो, यह रास्ता तो गांध्ी नगर को नहीं जाता।’’
‘‘मैडम। आप देख रही हैं कितनी कड़ाके की ठंड है, सो मैंने मंजिल पर पहुंचने के लिए शार्टकट रास्ता अपनाया है।’’
‘‘ओह...!’’ संध्या के मुंह से निकाला पिफर सड़क की ओर देखने लगी।
परंतु जब आध घंटा बीत गया और वह अपनी मंजिल पर नहीं पहुंची तो उसके चेहरे पर बल पड़ गए। किसी अनिष्ट की अशंका से उसका दिल लरजा और वह कठोर स्वर में बोली, ‘‘रिक्शा रोको...।’’
परंतु रिक्शा वाले ने रिक्शा नहीं रोका, ऐसा लगा जैसे उसने संध्या की आवाज सुनी ही नहीं। ‘‘तुमने सुना नहीं, मैंने क्या कहा?’’ संध्या चिल्लाई, ‘‘रिक्शा रोको।’’
बदले में रिक्शा वाले ने पलटकर उसे देखा पिफर उसके मुंह से भेड़िए सी आवाज उभरी, ‘‘ऐ लड़की। अगर अपनी सलामती चाहती हो तो चुपचाप बैठी रहो वर्ना तेरी गर्दन काटकर यही किसी गटर में डाल दूंगा।’’ कहते हुए उसने अपने कपड़ों में से निकालकर लम्बे पफल का चाकू संध्या के सम्पूर्ण बदन में भय और आतंक की एक तेज लहर दौड़ गई। सुनसान सड़क, एक अकेली लड़की और ऊपर से चाकू धरी रिक्शा चालक जिसने उसकी गर्दन काटने की ध्मकी दी थी। संध्या की हिम्मत न हुई कि वह एक भी शब्द आगे बोले। वह भयभीत सी रिक्शे पर बैठी रही।
रिक्शा लगभग चालीस मिनट तक विभिन्न सड़कों पर दौड़ता रहा पिफर एक दो मंजिली इमारत के सामने आकर रूका। रिक्शा वाला रिक्शा से उतरा पिफर उसी भेड़िए सी आवाज में बोला, ‘‘नीचे उतरो।’’
संध्या चुपचाप रिक्शे से उतर गई।
थोड़ी देर बाद संध्या उस दो मंजिली इमारत के एक बड़े से कमरे में पड़ी कुर्सी पर बैठी थी। उसने चोर निगाहों से कमरे का निरीक्षण किया तो वह उसे किसी डॉक्टर के चैम्बर जैसा लगा। एक ओर ऊंचे पुश्त की एक कुर्सी पड़ी थी और उसके सामने पड़ी मेज पर डॉक्टरी उपयोग में आने वाले कुछ उपकरण रखे हुए थे। एक ओर एक वैसा बेंच पड़ा हुआ था जिस पर लिटाकर डॉक्टर रोगी का चेकअप करते हैं। अभी संध्या कमरे का निरीक्षण कर ही रही थी कि कमरे में बना दूसरा दरवाजा खुला और उसमें से एक प्रभावशाली व्यक्त्वि का लगभग पचपन वर्षीय एक व्यक्ति कमरे में दाखिल हुआ। एक नजर देखकर ही कोई भी कह सकता था कि वह डॉक्टर है।
नपे-तुले कदमों से आगे बढ़कर वह ऊंची पुश्तवाली कुर्सी पर बैठा पिफर संध्या पर एक नजर डालने के बाद उस तथा कथित रिक्शे वाले को देखा। बदले में वह बोला, ‘‘आपका नया पेशेंट।’’
‘‘ठीक है।’’ डॉक्टर के प्रभावकारी व्यक्तित्व के अनुरूप उसकी आवाज भी भारी और रोबदार थी, ‘‘अब तुम जा सकते हो।’’
बदले में वह तथा कथित रिक्शा वाला कमरे से निकल गया। डॉक्टर पलभर तक उसे जाते हुए देखता रहा पिफर, संध्या के चेहरे पर अपनी नजरें गड़ा दी। संध्या को ऐसा लगा मानो उसकी नजरें उसके चेहरे पर घूूम रही हैं। वह असमंजस पूर्ण नजरों से डॉक्टर को देखती रही पिफर बोली, ‘‘यह क्या गोरख ध्ंध है। मुझे इस तरह जबर्दस्ती यहां क्यों लाया गया है?’’
‘‘तुम बीमार हो इसलिए।’’
‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ संध्या हौले से चीखी, ‘‘मैं बीमार नहीं हूं।’’
‘‘तुम बीमार हो और अब मैं तुम्हारा इलाज करूंगा।’’ डॉक्टर बपर्फ के समान सर्द स्वर में बोला पिफर अपनी कुर्सी से उठने का उपक्रम करने लगा।
संध्या को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह इस अजीबो गरीब स्थिति से बुरी तरह घबरा उठी थी। जब तक वह अपनी बौखलाहट पर काबू पाए, डॉक्टर उसके सामने आ खड़ा हुआ था। उसके बिल्कुल सामने आकर उसने अपनी आंखें संध्या की आंखों में डाल दी। थोड़ी देर के बाद संध्या को ऐसा लग रहा था जैसे वह उसकी ओर सम्मोहित होती जा रही है। उसने अपनी आंखें नीचे करनी चाही पर कर न सकी। तभी उसे अपनी बांह में किसी चीज के चूभने का अहसास हुआ। अगले ही पल उसकी पलकें बोझिल होने लगी। पांच मिनट के बाद वह अपनी कुर्सी पर बेहोश पड़ी थी।
संध्या को जब होश आया तो उसने अपने-आपको एक सुसज्जित कमरे में गद्देदार बिद्दावन पर लेटे हुए पाया। इस समय उसका सर भारी-भारी था और बदन में बेहद कमजोरी महसूस हो रही थी। उसने अपने दिमाग पर जोर दिया और जानना चाहा कि वह यहां कैसे आई। परंतु उसके दिमाग में ध्ुंध्ली स्मृतियों के सिवा और कुछ न उभरा। उस ध्ूंधली स्मृति में एक रिक्शा, एक प्रभावशाली व्यक्ति और एक सुईसा चूभने का अहसास उभरा पिफर सब कुछ अंध्ेरे में डूबता चला गया।
‘‘गुडमा²नग मैम...।’’ तभी उसके कानों से एक नारी स्वर टकराया। उसने पलटकर देखा तो उसके सामने लगभग चालीस वर्षीय एक औरत हाथ में चाय का प्याला लिए खड़ी दिखलाई पड़ी।
‘‘मारिया मैम, चाय।’’ उसने प्याला उसकी ओर बढ़ाया। पर उसने प्याला थामने का कोई उपक्रम नहीं किया।
‘‘मारिया कौन?’’ उसने उलझी-उलझी नजरों से उस औरत को देखा।
‘‘आप।’’ उसने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।
‘‘मैं...?’’ संध्या के मंुह से आश्चर्य चकित स्वर उभरा।
‘‘पर यह नाम तो मेरे लिए बिल्कुल नया है। मैंने यह नाम इसके पहले कभी नहीं सुना। मेरा नाम तो...?’’ कहते-कहते संध्या रूकी। उसने अपने दिमाग पर जोर दिया परंतु उसे उसका नाम याद नहीं आया।
‘‘मैम! यही तो बीमारी है आपको।’’ वह औरत सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोली, ‘‘डॉक्टरों का कहना है कि आपको विस्मृति की बीमारी है और आप अपने को ही भूलने लगी हैं। सच तो यह है कि आपको आए दिन बेहोशी के दौरे पड़ते है और इसी कारण आपकी स्मरण शक्ति कमजोर पड़ गई है। अबकि बार तो आप पूरे पांच दिन बाद होश में आई हैं।’’
‘‘पांच दिन बाद...?’’
‘‘हां, पांच दिन बाद।’’
‘‘मैं कौन हूं।’’ कुछ देर सोच मग्न रहने के बाद संध्या ने पूछा।
‘‘मारिया-एक शातिर अपराध्ी।’’
‘‘क्या कह रही हो तुम...।’’
‘‘मैं बिल्कुल ठीक कह रही हूं। यकीन नहीं तो यह देखिए।’’ उसने बिछावन से थोड़ी दूर रखे आलमारी से एक अखबार उठाकर उसके सामने रखा। मारिया बिछावन पर उठ बैठी पिफर उसने अपने सामने पड़ा अखबार उठाकर देखा। अखबार पुराना था जिसमें उसकी तस्वीर के साथ एक खबर छपी थी जिसके अनुसार उसने अपने तीन साथियों के साथ मिलकर एक बैंक को लूटा था। इस खबर ने संध्या को उद्विग्न कर दिया। उसके दिमाग में ऐसी कोई बात नहीं उभर रही थी जिससे यह मालूम हो कि उसने कोई ऐसा काम किया है पर यह औरत...।’’
‘‘तुम कौन हो?’’ संध्या ने अपने सामने खड़ी औरत से पूछा।
‘‘आपकी काम वाली बाई-सोना।’’
‘‘यह घर?’’
‘‘आपका ही है।’’
‘‘हे ईश्वर...!’’ संध्या ने अपना सर थाम लिया, ‘‘पिफर मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा है?’’
‘‘मैंने कहा न, आपको विस्मृति की बीमारी है।’’ वह औरत कोमल स्वर में बोली, ‘‘पर आप प्रिफक न करें, आप जल्द ही ठीक हो जायेंगी।’’
संध्या खामोश उस औरत को देखती रही।
‘‘मैम! आपकी चाय तो ठंडी हो गई। मैं पिफर से गर्म करके लाती हूं।’’ कहने के बाद वह औरत कमरे से निकल गई।
‘‘डॉक्टर! आप कहां तक अपने काम में कामयाब हुए?’’ उस दोहरे बदन के सूट-बूटधरी व्यक्ति ने अपने सामने बैठे डॉक्टर से पूछा।
‘‘मैं अपने मंजिल के करीब पहुंचने वाला हूं।’’ डॉक्टर बोला, ‘‘वह लड़की अपना बीता कल बहुत हद तक भूल चुकी है। मेेरी दवाइयों के प्रभावतले उसका ब्रेनवाश हो चुका है और अब वह अपने आपको शातिर अपराध्ी-मारिया समझने लगी है।’’
‘गुड।’ वह व्यक्ति बोला, ‘‘आप जल्द से जल्द अपना काम पूरा कीजिए क्योंकि आपकी कामयाबी पर ही हमारी योजना की कामयाबी निर्भर है।’’
‘‘मैं समझ रहा हूं।’’ डॉक्टर बोला, ‘‘बस समझ लीजिए कि हम मंजिल के बिल्कुल करीब है।’’
इध्र संध्या के मां-बाप जब उसके मामा के घर पहुंचे और उन्हें मालूम हुआ कि संध्या अब तक वहां नहीं पहुंची तो वह बेचैन हो उठे। उनसे यह जानकर कि संध्या उनसे तीन दिन पहले ही घर से यहां के लिए निकल चुकी है, उसके मामा-मामी भी प्रिफक मंद हो उठे। उन्होंने हर संभावित जगह संध्या की तालाश की और थकहार कर उसकी रिपोर्ट पुलिस में लिखवा दी।
छः महिने बीत चुके थे। इस बीच संध्या पूरी तरह मारिया के रूप में बदल चुकी थी। उसके दिमाग में यह बात कुट-कुटकर भर दी गई थी कि वह मारिया है-एक शातिर अपराध्ी।
वह एक वर्गाकार कमरा था जिसके बीचोबीच एक गोलाकार मेज पड़ी हुई थी। इस गोलाकार मेज के चारों ओर चार कुखसयां पड़ी थीं जिनमें एक पर मदन खुराना, दूसरे पर संध्या और अन्य दो पर दो और व्यक्ति बैठे थे। इनमें से एक ठिगने कद का, जिसका नाम-सचदेव था, तथा दूसरों पर एक लम्बे कद का जिसका नाम-बलदेव था-विराजमान थे। ये दोनों मदन खुराना के आदमी थे। इस समय मेज पर एक बड़ा सा मैप पफैला हुआ था जिस पर एक कोठी का नक्श बना हुआ था।
‘‘यह वह कोठी है जिसमें तुम्हारा शिकार रहता है।’’ मदन खुराना ने संध्या को समझाना शुरू किया, ‘‘मारिया तुम्हारा शिकार जिसका नाम आकाश वर्मा है, कानपुर के एक मशहूर बिजनेसमैन-बलराज वर्मा का इकलौता और लाडला बेटा है। इस बलराज वर्मा के पास करोड़ों की दौलत है और इकलौता बेटा होने के कारण आकाश वर्मा की इस दौलत तक सहज ही पहुंच है। तुम्हें इसी आकाश वर्मा के करीब पहुंचना है, इतना करीब कि वह तुम पर अंध्विश्वास करने लगे। मारिया तुम खूबसूरत हो, जवान हो और तुम्हारे पास सांचे में ढ़ला उत्तेजक बदन है जो सहज ही किसी मर्द को दीवाना बना सकता है। आकाश वर्मा को अपने रूप जाल में पफांसो, उसके माध्यम से उसके करोड़ों की दौलत के पास पहुंचों और मौका मिलते ही इस दौलत को लेकर पफूूर्र हो जाओ। मारिया! तुम ऐसा काम पहले भी कर चुकी हो और मुझे आशा है कि तुम इस काम को भी सपफलता पूर्वक कर सकती हो।’’
संध्या के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे। उसे याद नहीं आ रहा था कि उसने ऐसा कोई काम कब किया है।’’
‘‘क्या बात है, तुम खामोश क्यों हो।’’ संध्या को उलझन में पफंसा देखकर मदन खुराना बोला।
‘‘बौस! मुझे यह याद नहीं आ रहा है कि मैंने कब यह किया है।’’
‘‘छः माह पहले ही।’’ मदन-खुराना विश्वास भरे स्वर में बोला, ‘‘यह बात और है कि अपनी बीमारी के कारण तुम्हें पिछली कई बातें याद नहीं रही। खैर तुम्हें इस बारे में अध्कि टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। मैं जैसा कह रहा हूं, तुम बस वैसा ही करती जाओ। वैसे हमेशा की तरह बलदेव और सचदेव तुम्हारे साथ रहेंगे जो सदा तुम्हारी हर सहायता को तैयार रहेंगें।’’
संध्या ने बारी-बारी से उनको देखा तो उनके होंठों पर मित्रातापूर्ण मुस्कान नाच उठी।
संध्या को कानपुर में रहते पन्द्रह दिन बीत गए थे। इस बीच उसने आकाश वर्मा और उसकी कोठी को कई बार देखा-भाला था। अपने तथा बलदेव और सचदेव के प्रयासों के द्वारा संध्या को आकाश वर्मा के बारे में जो जानकारी मिली थी, उसके अनुसार आकाश वर्मा स्वस्थ कद काठी और दिल पफेक किस्म का एक मस्तमौला नौजवान था। वह बी.ए. का छात्रा था परंतु कॉलेज उसके लिए पढ़ाई का केन्द्र नहीं अपितु मौज-मेले का स्थान था जहां वह अपने दोस्तों और खूबसूरत लड़कियों के साथ मौज-मस्ती करता था। अपने दोस्तों और खूबसूरत लड़कियों पर वह दिल खोलकर पैसे खर्च करता था। इस शाहखर्ची के कारण लड़के तो लड़के लड़कियां भी उसकी ओर सहज ही खीची चली आती थीं।
उसकी इन विशेषताओं के आलोक में संध्या को विश्वास हो गया कि वह सहज ही उसे अपने रूप जाल में पफांस लेगी। उसका यह विश्वास आगे चलकर बिल्कुल सच साबित हुआ। एक गिफ्रट कार्नर में वह ड्रामाई अंदाज में उससे टकराई और उसकी चकाचौंध् कर देने वाली खूबसूरती और जवानी आकाश वर्मा के दिल पर बिजली बनकर गिरी। उसने उसकी ओर तुरंत दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया। संध्या तो यही चाहती थी। उसने बड़ी गर्मजोशी से उसकी दोस्ती कबूल कर ली। पिफर क्या था, आकाश वर्मा किसी परवाने की तरह उसके इर्द-गिर्द मंडराने लगा। ऐसे में जब एक शाम वह अपनी कोठी में अकेला था तो संध्या उसके बुलावे पर उसके पास पहुंच गई। उसे देखते ही आकाश वर्मा ने बांहों में भर लिया पिफर उसे चुमता-सहलाता चला गया।
‘‘बड़े बेसब्रे हो रहे हो।’’ संध्या उसे कातिल निगाहों से देखती हुई बोली।
‘‘तुम्हारे हुस्नो शबाव ने मुझे पागल कर दिया है।’’ आकाश उसके जवान जिस्म को बांहों में समेटे हुए बोला।
‘‘मैं भी कम बेकरार नहीं हूं।’’ संध्या बोली, उसकी इस बात ने आकाश का रहा-सहा सब्र भी तोड़ डाला। वह उसे बांहों में समेटे कमरे में आया। पिफर उसके हाथ उसके कपड़ों पर पिफसलने लगे। थोड़ी देर बाद उसने संध्या को पूरी तरह कपड़ों से मुक्त कर दिया। ऐसे में जब उसका शोला बदन प्राकृतिक रूप से उसके सामने आया तो वह बेकाबू हो उठा। वह खुद कपड़ो से मुक्त हुआ पिफर संध्या को गोद में उठाकर बिछावन पर डाल दिया। अगले ही पल उसने संध्या के नग्न जिस्म को अपने कठोर जिस्म से पूरी तरह ढाप लिया था। दो जवान जिस्म जब एक दूसरे से टकराए तो कामनाओं की चिन्गारियां छिटकने लगीं। कमरे का तापमान अचानक बढ़ चला और उनके तेज सांसों के शोर से कमरा गूंजने लगा। जब यह शोर थमा तो दोनों एक-दूसरे की बांहों में निढ़ाल पड़े थे।
थोड़ी देर बाद संध्या उसे नशीली आंखों से देखती हुई बोली, ‘‘आकाश! तुम मुझे कितना प्यार करते हो?’’
‘‘उतना, जितना किसी ने किसी को न किया होगा।’’ आकाश दीवानों की तरह बोला।
‘‘सच...!’’
‘‘बिल्कुल।’’
‘‘पिफर मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’
‘‘मैं तुम पर अपनी सारी दौलत लुटा सकता हूं।’’
‘‘दौलत तो तुम्हारे बाप की है।’’
‘‘मेरे बाप की दौलत मेरी ही दौलत है क्योंकि मैं उनका अकेला वारिस हूं।’’
‘‘पर दौलत अभी तुम्हारे पास तो नहीं?’’
‘‘मेरे पास ही है।’’ संध्या केे जवान जिस्म के आकर्षक में आनंद डुबे आकाश ने कहा पिफर कमरे में रखे गोदरेज की आलमारी की ओर देखा।
‘‘उस आलमारी को देख रही हो, उसमें करोड़ों की दौलत बंद है और उसकी चाभी यह रही।’’ कहने के साथ ही आकाश ने बिद्दावन पर पड़ा गद्दा उठाया और अंदर से चाभी निकालकर संध्या को दिखलायी। चाभी देख संध्या की आंखों में एक तीव्र चमक जागी और उसने मदहोश नजरों से आकाश को देखते हुए कहा, ‘‘आकाश! मेरे लिए तो तुम सबसे बड़ी दौलत हो। अभी थोड़ी देर पहले तुमने मुझे जो अलौकिक सुख दिया है, उसने मुझे तुम्हारा कायल बना दिया है। ‘‘कहते हुए मारिया ने उत्तेजक ढ़ग से अपने रसीले होंठों पर जबान पफेरी। बदले में आकाश ने चाभी को यथा स्थान रखा और संध्या को दोबारा बांहों में समेट लिया। एक बार पिफर कमरे में उनकी तेज सांसों का स्वर गूंजने लगा।
जब यह शोर थमा तो आकाश बेसुध् सा बिछावन पर पड़ा था। थोड़ी देर बाद वह गहरी नींद में सो रहा था।
उसके सोते ही संध्या उठी। उसने अपने कपड़े पहने पिफर उसमें बने एक विशेष स्थान को थपथपाया। इसके बाद वह कमरे में रखी चमड़े की थैली उठा लाई पिफर ध्ीरे से बिछावन के करीब आकर गद्दा ध्ीरे से उठाया और वहां से चाभी निकाल ली। चाभी लेकर वह आलमारी की ओर बढ़ी। इस समय वह शिकार पर निकले किसी चीते सी चौकन्नी थी। उसने बड़ी सावधनी से आलमारी खोली और उसके पल्ले खीचे। ऐसा होते ही एक हल्की आवाज हुई और संध्या की आंखें आश्चर्य से पफटती चली गई। आलमारी के खाने हजार और पांच सौ के नोटों से की गड्डियों से भरे हुए थे। संध्या पलभर तक आश्चर्य चकित उन गड्डियों को देखती रही पिफर उन्हें चमड़े के थैले में भरने लगी। थैला, आलमारी में रखे नोटों से ठसाठस भर गया। बड़ी मुश्किल से संध्या ने उसका चेन बंद किया और पिफर उसे कंध्े पर लद कर पलटी। ऐसा करते ही उसकी आंखें आश्चर्य से पफटती चली गई। जिस आकाश को वह गहरी नींद में सोया समझ रही थी, वह दरवाजे के पास चाक-चौबंद खड़ा था। वह कई पल तक संध्या को घूरता रहा पिफर नपफरत पूर्ण स्वर में बोला, ‘‘तो यह है तेरा असली रूप। मुझे शक तो तभी हुआ था जब तुमने दौलत की बात की। अब सच्चाई पूरी नग्न होकर मेरी आंखों के सामने आ गई। अगर अपनी खैर चाहती हो तो थैला नीचे रखो और कमरे से निकल जाओ। कोई और होता तो मैं उसे तत्काल पुलिस के हवाले कर देता लेकिन कुछ दिनों के लिए ही सही, मैंने तुम्हें अपनी दिल की गहराइयों से प्यार किया था, इसलिए तुम्हें छोड़ रहा हूं। काश! मैं जानता होता कि इतने खूबसूरत चेहरे के पीछे इतना घिनौना वजूद छुपा हुआ है।’’
‘‘आकाश, मेरा रास्ता छोड़ो वर्ना...।’’ संध्या कठोर स्वर में बोली।
‘‘वर्ना क्या करोगी तुम...?’’
‘‘मैं तुम्हें गोली मार दूंगी।’’ कहते हुए संध्या ने अपने कपड़ों से पिस्तौल निकाल ली। उसके हाथ में पिस्तौल देखकर आकाश पलभर को चौंका पिफर बोला, ‘‘तुम्हारी हिम्मत नहीं होगी, मुझे गोली मारने की।’’
और जवाब में संध्या ने उसे गोली मार दी। गोली आकाश के सीने में लगी और उसकी मर्मांतक चीखों से कमरा दहल उठा। वह अपना सीना थामे झुका पिफर झुकता चला गया। थोड़ी देर के बाद उसका जिस्म निष्क्रीय पफर्श पर पड़ा और उसके सीने से निकलने वाले खून से पफर्श रंगता जा रहा था। मारिया पलभर तक दरवाजे के पास पड़े आकाश के निर्जीव शरीर को देखती रही पिफर आगे बढ़ उसके निर्जीव शरीर को लौथती हुई दरवाजा खोल कमरे से बाहर निकल गई। परंतु वह जैसे ही कोठी के मेन गेट से बाहर निकली कई व्यक्ति...उसकी ओर दौड़े और इसके पहले कि संध्या कुछ समझ सके, उन्होंने उसे दबोच लिया। संध्या के हाथ में थमी पिस्तौल उसके कंध्े से लटका बैग और कमरे में पड़ी आकाश की लाश सारी कहानी आप ही कह रही थी। लोगों ने तत्काल पुलिस को इसकी सूचना दी तो पुलिस ने आकर पिस्तौल, रुपयों से भरी थैली और लाश के साथ मारिया को भी अपने कब्जे में कर लिया।
दूसरे दिन शहर के प्रायः सभी अखबार इस लोमहर्षक हत्याकांड की खबरो से भरे पड़े थे। सभी अखबारों में छपी खबरों का आशय यह था कि मारिया नामक एक सुन्दरी ने नगर के करोड़पति बिजनेस मैन के इकलौते बेटे को अपने रूप जाल में पफांसा और उसकी सारी दौलत लेकर पफरार होने लगी। ऐसे में जब बिजनेसमैन के बेटे ने उसका विरोध् किया तो उसने उसे गोली मार दी। परंतु भागते वक्त वह लोगों के हाथों पकड़ी गई जिन्होंने उसे पुलिस के हवाले कर दिया। अब पुलिस उससे गहराई से पूछताछ कर रही है।
परंतु इस हादसे का सबसे दुखद और हाहाकारी क्षण तब आया। जब संध्या के घरवालों ने अखबार में छपी उसकी तस्वीर और उससे संबंध्ति खबर पढ़ी। कई पल तक उन्हें इस खबर पर यकीन ही नहीं हुआ और जब विश्वास हुआ तो उस थाने की ओर भागे जिसमें संख्या कैद थी। वहां जब उन्होंने तथा कथित मारिया को देखा तो यह देख उनके छक्के छुट गए कि वह सचमुच उनकी संध्या ही है। उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उनकी वह मासूम और भोली-भाली संध्या, कभी यूं एक लुटेरी और हत्यारी के रूप में उनके सामने आयेगी। जब इन सारी तथ्यों का पता उस थाने के थानाध्यक्ष को लगा तो वह भी हतभ्रम रह गया। हत्यारी अपना नाम मारिया बतला रही थी परंतु शहर का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति जो यहां के एक बैंक में शाखा प्रबंध्क था, उसका नाम संध्या बतला रही थी और उसे अपनी बेटी कह रहा था।’’
‘‘क्या बात कर रहे हैं आप?’’ बैंक प्रबंधक जिसे थानाध्यक्ष पहचानता था, आश्चर्य चकित स्वर में बोला, ‘‘आप कह रहे है कि वह आपकी बेटी है जबकि वह अपना नाम मारिया बतला रही है।’’
‘‘जी नहीं इंस्पेक्टर! वह शत-प्रतिशत मेरी बेटी-संध्या है जो छः महीने पहले लापता हो गई थी। उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट उस शहर के कोतवाली में लिखवाई गई थी जहां से वह लापता हुई थी। जहां तक उसका हमारी बेटी संध्या होने का सवाल है तो हम इस संबंध् में आपके सामने अकाट्य सबूत पेश कर सकते हैं।’’
‘‘कैसे सबूत?’’
‘‘उसका पफोटो एलबम और उसके स्कूल और कॉलेज के सर्टीपिफकेटस।’’
‘‘ठीक है पेश कीजिए।’’
थोड़ी देर बाद ये सारे सबूत इंस्पेक्टर के सामने मेज पर पड़े थे और इन्हें देखने के बाद उसे मानना पड़ा था कि तथा कथित मारिया वास्तव में संध्या ही है।
‘‘पर श्रीवास्तव साहब! आपकी बेटी इतनी शातिर अपराध्ी कैसे बनी।’’
‘‘इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता। जो कुछ हुआ है उन छः महीनों में हुआ है जिसमें वह गायब थी।’’
‘‘क्या आपकी बेटी ¯हसक स्वभाव की लड़की थी?’’
‘‘बिल्कुल नहीं, वह तो बड़ी मासूम और भोली-भाली लड़की थी।’’
‘‘तो पिफर...?’’ कहते-कहते अचानक इंस्पेक्टर चौंका। यह बात उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंध्ी कि इतने बड़े हादसे को अंजाम देने के बाद भी युवती के चेहरे पर कोई भय, कोई खौपफ के चिह्न नहीं थे। वह पुलिस के हर सवाल का जवाब यूं दे रही थी मानो उसका वजूद किसी के प्रभाव में हो। उसने तत्काल मारिया का सामना उसके परिवार वालों से कराया परंतु उसकी आंखों में पहचान का कोई भाव न उभरा। श्रीवास्तव और उसकी पत्नी के द्वारा बार-बार बेटी कहे जाने के बावजूद उसके चेहरे पर ऐसा कोई भाव न उभरा जैसे वह उन्हें जानती हो।
‘‘अजीब गोरख ध्ंध है।’’ इंस्पेक्टर अपना माथा मलता हुआ बोला, ‘‘लगता है मारिया की जांच किसी मनोचिकित्सक से करवानी होगी ताकि उसकी मानसिक स्थिति का सही-सही पता चल सके।’’ कहने के बाद उसने मारिया को हवालात में भेज दिया।
मनोचिकित्सकों के एक टीम ने मारिया की जांच करने के बाद बतलाया कि वह कुछ ऐसी दवाओं के प्रभाव में है जिसके तहत इन्सान अपना अतीत भूल जाता है और ऐसे में एक तरह से उसका ब्रेनवाश हो जाता था। इस परिस्थिति में इन्सान वही करता है जिसके लिए उसे नए ढंग से तैयार किया जाता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण वे पिफदाईन हैं, जो अपनी जान देकर भी अपने आका के हुक्म का पालन करते हैं। डॉॅक्टरों का कहना था कि मारिया इस स्थिति से बाहर आ सकती है बशर्त्ते उसका इलाज किया जाये। डॉक्टरों की सलाह पर मारिया को पुलिस सुरक्षा में अस्पताल में भर्ती किया गया।
‘‘हैलो।’’
‘‘कौन?’’
‘‘मैं बलदेव।’’
‘‘हां, बलदेव बोलो।’’
‘बॉस! सब गड़बड़ हो गया।’’
‘‘क्या?’’ उध्र से मदन खुराना का आश्चर्य चकित स्वर उभरा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मारिया पकड़ी गई।’’
‘‘पकड़ी गई पर कैसे?’’
‘‘वह आकाश वर्मा के घर से करोड़ों की दौलत लूट कर पफरार होने ही वाली थी कि आकाश दीवार बनकर उसके रास्ते में आ गया। मारिया ने उसे गोली मार दी और उसकी कोठी से बाहर भागी। परंतु गोली की आवाज सुन कोठी की ओर दौड़ने वाले लोगों ने उसे पकड़ लिया और उसे पुलिस के हवाले कर दिया।
‘‘ओह...!’’ उध्र से मदन खुराना का अपफसोस जनक स्वर उभरा, ‘‘अब वह कहां है?’’
‘‘अस्पताल।’’
‘‘क्या बक रहे हो। वह अस्पताल कैसे पहुंच गई जबकि लोगों ने उसे पुलिस के हवाले किया था।’’
‘‘बॉस! न जाने कैसे अखबार में छपे समाचार को पढ़कर कानपुर के ही रहने वाले उसके मां-बाप थाने पहुंच गए और उन्होंने पर्याप्त सबूतों के साथ यह दावा किया कि मारिया वास्तव में उसकी बेटी-संध्या है और उसके इस दावे के आलोक में पुलिस ने मारिया की डॉक्टरी जांच करवाई तो यह सच्चाई सामने आ गई कि किसी दवा के प्रभाव में मारिया विस्मृति की अवस्था में है सो पुलिस ने उसे अस्पताल में भर्ती करवा दिया।’’
‘‘यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई। अगर मारिया विस्मृति की अवस्था से बाहर आ गई तो वह सारी हकीकत पुलिस को बतला देगी जो हम सबके लिए खतरानाक साबित होगी।’’
‘‘हमारे लिए क्या आदेश है बॉस?’’
‘‘इसके पहले कि मारिया विस्मृति की स्थिति से बाहर आए, उसे सदा के लिए मौत की नींद सुला दो।’’
‘‘पर वह पुलिस की सुरक्षा में है?’’
‘‘तो हमारे सोर्सेज भी कम नहीं। आखिर हम इतना खतरनाक गैंग यूं ही नहीं चलाते हैं। मैं पफोन कर दूंगा, तुम्हें इस संबंध् आवश्यक सहायता मिल जायेगी।’’
‘‘यह बॉस।’’ और दूसरे दिन मारिया अपने बेड पर मृत गई। पैसांे के भूखे भेड़ियों ने एक मासूम को न सिपर्फ हत्यारी बनाया बल्कि उसे मौत की गोद में भी सुला दिया। अब सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस के हाथ इन पैसों के भूखे भेड़ियों की गर्दन तक पहुंच पायेंगे?

खबरें जरा हट के

खबरें जरा हट के

 बेटी के प्यार में निकला दीवाला

उसने अपनी बेटी को वह सब कुछ दिया जो उसे खुश कर सकता था। और एक दिन ऐसा आया कि इस शाही खर्चे ने भारतीय मूल के एक अमेरिकी का दीवाला निकाल दिया। ब्रिटेन में इंडियन मूल के बिजनेसमैन हर्बी पनेसर ने 2009 में अपनी बेटी की 16 वीं सालगिरह में ऐसी पार्टी दी कि एमटीवी ने उसे अपने प्रोग्राम में पफीचर किया। अपनी बेटी आयशा की पार्टी पर पनेसर ने 25 लाख रुपये से ज्यादा खर्च किए। खर्चे का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पार्टी में टी.वी. जगत की कई बड़ी हस्तियों ने हिस्सा लिया और हॉलीवुड की बड़ी स्टार निकोल किडमैन ने पर्सनल वीडियो मैसेज से उसे विश किया। खर्चों की पफेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। पनेसर ने अपनी बेटी को 1 लाख रुपये का मोबाइल, 34 हजार रुपये का चश्मा और 20 लाख रुपये से महंगी कार के साथ एक डिजाइनर बैग गिफ्रट किया था। अपनी बेटी का कोई भी सपना पनेसर ने अध्ूरा नहीं होने दिया। मॉड¯लग से लेकर ब्यूटी कांटेस्ट तक हर जगह पापा ने अपनी बेटी आयशा की हसरत पूरी की। आयशा ने अमेरिका और ब्रिटेन दोनों जगह के टीन ब्यूटी कांस्टेस्ट जीते और ब्यूटी मैगजीन के कवर पर भी पफीचर हुई लेकिन शायद तब उन्हें यह नहीं पता था कि इन हसरतों को पूरा करने में पिता के कितने पैसे खर्च हो रहे हैं। इस समय पनेसर ने दीवालिया घोषित करने के लिए अपील की है। पनेसर ने इस संकट से उबरने के लिए नई इंश्योरेंस कंपनी खोलने की कोशिश की लेकिन कोर्ट ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया है और ऐसा कुछ भी करने पर सजा भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा। अब उन पर जेल जाने का संकट है और वह अपने 4 करोड़ भी ज्यादा के घर से भी हाथ धे सकते हैं।

 किशोरी ने शौचालय में शिशु को जन्म दिया

तारपेई एक 14 वर्षीय ताइवानी छात्रा ने स्कूल के शौचालय में बच्चे को जन्म दिया जबकि स्कूल की शिक्षिकाओं को छात्रा के गर्भवती होने का अनुमान तक नहीं लग पाया था। पुलिस ने बताया कि लड़की को कक्षा के दौरान पेट में दर्द की शिकायत होने पर स्कूल के अस्पताल में ले जाया गया, नर्स के कहने पर वह शौचालय में गई जहां उसने बच्चे को जन्म दिया। स्कूल के अध्किारियों ने बताया कि उन्हें यह विश्वास नहीं हो रहा कि लड़की गर्भवती थी क्योंकि उसका वजन कापफी कम था।

 क्लम हुईं निर्वस्त्रा...

लंदन, सौंदर्य प्रसाध्न कंपनी के विज्ञापन के लिए सुपरमाडल हायदी क्लम निर्वस्त्रा हो गई। 38 वर्षीय मॉडल विज्ञापन में बिल्कुल निर्वस्त्रा हो गई, लेकिन उनका शरीर रंगा हुआ था। क्लम ने ट्वीट किया है, ‘‘एस्टर सेलिब्रे¯टग कलर के लिए मैंने एक और अनूठा पफोटो शूट किया है।’’ ‘प्रोजेक्ट रनवे’ की होस्ट रह चुकी क्लम इससे पहले एल्यूर पत्रिका के लिए बेपरदा हो चुकी हैं। सील के साथ सात वर्ष तक शादी के बंध्न में रहने के बाद इस जोड़ी के बीच जनवरी में दरार पैदा हो गई थी।

 बेटी के ध्ुएं ने उड़ाए मडोना के होश

पॉप क्वीन मडोना अपनी बेटी लॉर्डेस को लेकर परेशान हैं। कुछ दिन पहले ही वह न्यूयॉर्क में स्मो¯कग करती पकड़ी गई थी। शोबिजस्पाई के अनुसार मडोना इतने गुस्से में हैं, कि उन्होंने अपनी बेटी की पहली प्रस्तुति भी रद्द कर दी है।
हाल ही में एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें न्यूयार्क में दोस्तों के साथ 15 साल की लॉर्डेस ध्ुआं उड़ा रही थी। मडोना ने सख्त लहजे में लॉर्डेस से कहा है कि वह मंच पर उनका साथ देने के बजाय पढ़ाई पर ही ध्यान दे। उन्होंने यह भी कहा है कि बिटिया की इस करतूत से उन्हें सख्त अपफसोस हुआ है, और इससे वह कापफी दुखी हैं।

 भैंस है शादी की गवाह

अमेरिका, टेक्सास के रोनाल्ड और शेरॉन ने अपनी शादी में भैंस को बेस्टमैन बनाया। वहां शादी पर बेस्टमैन के लिए आमतौर पर अपने खास दोस्त को ही चुनते हैं। लेकिन रोनाल्ड का मानना था कि उसकी भैंस के अलावा यह जगह कोई नहीं ले सकता। भैंस ने ही उसकी पत्नी शेरॉन के साथ शादी की तमाम रस्में और पफॉरमैलिटीज पूरी की। शादी इसी 19 पफरवरी को थी। अब पति, पत्नी और उनकी भैंस हैप्पी पफैमिली हैं।

 डबल का धेखा, जुड़वा ने भाई की गर्लप्रफेंड चुराई

इसे जुड़वा होने का धेखा कहें या अपना प्यार पाने की चाहत, एक जुड़वा भाई ने अपने भाई की गर्लप्रफेंड को धेखे से अपना बना लिया। यही नहीं, उन्होंने शादी की 60वीं एनिवखसरी मनाई। कहानी ब्रिटेन के छोटे से टाउन में रहने वाले दो जुड़वा भाइयों रोनाल्ड और राल्पफ इवांस की है। दरअसल करीब 63 साल पहले मैनचेस्ट के एक टाउन में रहने वाले राल्पफ की मुलाकात जून नाम की लड़की से हुई। राल्पफ का दिल जून पर आ गया लेकिन दिक्कत तब आई, जब उसने देखा कि जून उसके जुड़वा भाई रोनाल्ड के साथ डेट कर रही है। इसी के बाद उसने एक अजीब सी योजना बनाई। उसने अपने भाई से झूठ बोला कि जून उसके साथ दोबारा डेट पर नहीं जाना चाहती है। रोनाल्ड को अपने भाई की बात पर यकीन भी हो गया। इसके बाद राल्पफ, जून के पास रोनाल्ड बनकर ही गया।
जून भी जुड़वा होने के नाते जान नहीं पाई कि वह राल्पफ है या रोनाल्ड। तीन साल बाद राल्पफ ने जून से शादी भी कर ली। उधर रोनाल्ड ने भी अपनी पफैमिली बसा ली। आज राल्पफ अपनी 60वीं मैरिज एनिवखसरी मना रहा है। राल्पफ का कहना है कि शादी के बाद कभी-कभी जून को शक होता था। इसलिए उसने जून से सारी बात बता दी, लेकिन जून को कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि रोनाल्ड अपनी पफैमिली के साथ बहुत खुश था। जून का कहना है कि वह राल्पफ के साथ बेहद खुश है।

सबसे सेक्सी ड्रग मापिफया

स्विम सूट मॉडल और एक समय एक पत्रिका द्वारा विश्व की सबसे सेक्सी महिला का खिताब पाने वाली सुपर मॉडल सीमोन पफैरो ड्रग्स तस्करों की बॉस निकली। ऑस्ट्रेलिया की इस 37 साल की मॉडल को पुलिस न रेड डालकर गोल्ड कोस्ट से पकड़ा। उस पर आरोप है कि वह अपने अपार्टमेंट में ही एक गिरोह चलाती है, और उसके ड्रग्स तस्करी का नेटवर्क दूसरे देशों तक पफैला हुआ है। वह कुछ दिन पहले भी करीब 75 लाख रुपये की बेल पर छूटने के बाद से पफरार चल रही थी।
जब उसे पकड़ा गया तो उसके पास से क्रिस्टल पफॉर्म में नशीली चीजें बरामद की गई। जब उसे सिडनी एयरपोर्ट पर लाया गया तो वह रो पड़ी। उसने कहा कि वह कुछ दिनों से इसलिए गायब चल रही थी क्योंकि उसे अपने मर्डर होने का डर था। पुलिस का कहना है कि वह कम से कम 19 नामों से यह काम करती है। पुलिस ने बताया कि सीमोन ने तस्करी का अलग ही तरीका ढूंढ निकाला था। वह ड्रग्स को बाथ प्रोडक्ट में छुपाकर रखती थी। यह खरीदने वाले उसे या तो कैश में देते थे या एक बैंक में उसके अकाउंट में पैसे ट्रासंपफर कर दिए जाते थे।

 बेटी का बुरा हाल करवाया, दो बार उम्र कैद

अमेरिका में क्लाइटोन में एक जज ने मिसौरी की एक महिला को दो बार उम्र कैद की सजा सुनाई है। हालांकि इस महिला के वकीलों ने उसकी मानसिक हालत ठीक न होने की दलील देकर उसे सिपर्फ सुधर गृह में रखने की अपील की थी। पर कोर्ट ने इस अपील को ठुकरा दिया। 22 साल की तीसा वैनवाल्रेह पर आरोप था कि उसने अपने ऑनलाइन प्रफेंड के साथ मिलकर अपनी 5 महीने की बच्ची के साथ सेक्स संबंध् बनवाए।
अब बच्ची तीन साल की है पर अब भी वह किसी को भी अपने पास पाती है तो डर जाती है। तीसा 49 साल के केनेथ केल से 2010 में ऑनलाइन मिली थी। दोनों एक साथ कई होटलों में जाते थे और वहां यह कुकृत्य किया। डॉक्टर जब बीमार बच्ची का जांच कर रहे थे तब जब यह कांड उजागर हुआ। पिफर इन्हें पकड़ा गया और इनके पास से चाइल्ड पोर्नोग्रापफी के कई टेप मिले। केल को भी साढ़े 37 साल की सजा सुनाई गई।

इंटरनेट पर चै¯टग, डे¯टग ¯जदगी कर देंगे तबाह

ब्रिटेन की एक लड़की की कहानी ने चै¯टग और सोशल नेटव²कग की एक ऐसी दास्तां बयां की कि वेस्ट के एडवांस कल्चर में भी लोग चौंक गए। कहानी 24 साल की लड़की बेकी की है, जो 15 साल की उम्र में लो सेल्पफ एस्टीम की शिकार थी और इससे उबरने के लिए उसने सोशल नेटव²कग साइट और चैं¯टग का सहारा लिया और ध्ीरे-ध्ीरे वहां मौजूद अपने साथियों के इतनी करीब हो गई कि उनसे साथ शारीरिक संबंध् भी बना लिए। बेकी का कहना है कि रात होते ही वह 7 से भी अध्कि चैट साइट पर लॉग इन कर लेती थी और लोगों से करीबी बढ़ाना शुरू देती थी।
हैरानी की बात यह है कि वह पढ़ाई में भी बेहतर है और अच्छे ग्रेड्स भी लाती है। अपनी पहली डेट के बारे में वह बताती है कि जब 6 महीने की चैं¯टग के बाद वह लड़के से मिलने पहुंची तो वह 24 साल की जगह 40 साल से भी अध्कि निकला और बदसूरत भी था, लेकिन उसने उसके साथ संबंध् बनाए। इस तरह से शुरू हुआ सिलसिला चल पड़ा और कुछ दिनों की बातों के बाद ही उसने और लोगों से मिलना और संबंध् बनाना शुरू किया। इस दौरान वह कई ऐसे लोगों से संपर्क में भी आई जिन्होंने कार ही में उसके साथ पिफजिकल रिलेशन बनाए और सड़क पर छोड़ दिया। लेकिन आदत से मजबूर बेकी ने संबंध् बनाने नहीं बंद किए। पहले तो बेकी ने अपनी इस लत और परेशानी के बारे में किसी से नहीं बताया लेकिन बाद में उसने अपने दोस्तों से यह बात शेयर की। चै¯टग से कम उम्र के लोगों को गलत रास्ते पर जाने की कई रिपोर्ट आती रही हैं। हाल ही में एक 14 साल के लड़के को इसलिए गिरफ्रतार किया गया था। क्योंकि उसने अपनी टीन एज गर्लप्रफेंड के साथ अश्लील वीडियो पफेसबुक पर शेयर कर दिया था।

 खुद ही बन गया मॉम, हो सकती है 25 साल की जेल

अपनी मृत मां के कपड़े पहन कर छह साल तक 1 लाख 15 हजार डॉलर का चूना लगाने के बाद अब वह पुलिस के हत्थे चढ़ा है।
न्यूयॉर्क का थॉमस प्रूशिक पारकिन मां की मौत के बाद हर महीने विग पहन, नेल पॉलिश लगा, हैवी मेकअप करके अपनी मां का वेश बदल लेता था। उसकी की तरह स्कापर्फ बांध्ता था। उसकी पफेवरेट लाल रंग की डेªस पहन हाथ में बेंत लेकर उसका मंथली बेनिपिफट लेने जाता था। ताकि मां को मिलने वाली सब्सिडी का पफायदा उठा सके।
53 साल का थॉमस प्रूशिका पारकिन इस तरह छह साल तक सरकार को चूना लगाता रहा। इस तरह उसने सरकार से 1 लाख 15 हजार डॉलर वसूल कर लिए।
हर बार अपने एक साथी मिल्टन रिमोलो को अपना भतीजा बना कर ले जाता था।
प्रूशिक ने अंतिम संस्कार करने वाले डायरेक्टर को मां की मौत का गलत सोशल नबंर, डेट ऑपफ बर्थ दी थी ताकि उसकी मृत मां पंजीकृत न हो सके और वह इसका पफायदा उठा सके।
प्रूशिक की मां की सितम्बर 2003 में मौत हो गई थी। उनका मंथली बेनिपिफट का भुगतान जून 2009 तक ही किया गया था।
2009 में प्रूशिक को चोरी और जालसाजी के आरोप में गिरफ्रतार किया गया था। प्रूशिक ने बताया था कि जब उसकी मां अपनी आखिरी सांसें गिन रही थी। तभी से उसने उनका वेष धरण करना शुरू कर दिया था। अगर अपराध् साबित होता है कि तो उसे 25 साल जेल की सजा हो सकती है। उसके 44 साल के साथ रिमोलो को 1 साल की जेल हुई है।




अवैध् व्यापार का अर्थ वेश्यावृत्ति नहीं है।

अवैध् व्यापार बनाम वेश्यावृत्ति

अवैध् व्यापार का अर्थ वेश्यावृत्ति नहीं है। ये दोनों शब्द पर्यायवाची नहीं हैं। अवैध् व्यापार को समझने के लिए इसे वेश्यावृत्ति से अलग कर देखना होगा। मौजूदा कानून, अवैध् व्यापार निरोध्क अध्निियम 1956 ;आई टी पी एद्ध के अनुसार वेश्यावृत्ति एक अपराध् हो जाता हैं, जब व्यक्ति का व्यावसायिक शोषण किया जाता है। यदि किसी स्त्रा या बच्चे का यौन शोषण होता है। और इससे किसी व्यक्ति को लाभ पहुंचता है तो यह व्यवसायिक यौन-शोषण बन जाता है जो वैध्निक रूप से दंडनीय अपराध् है जिसमें सभी शोषकों के खिलापफ सदोषता आरोपित होती है। अवैध् व्यापार वह प्रक्रिया है जिसमें व्यवसायिक यौन शोषण हेतु किसी व्यक्ति की नियुक्ति, अनुबंध्न, क्रय किया जाता है अथवा उसे भाड़े पर रखा जाता है। इस प्रकार अवैध् व्यापार एक प्रक्रिया है और व्यावसायिक यौन शोषण उसका परिणाम। व्यावसायिक यौन शोषण में ‘मांग’ के कारण अवैध् व्यापार की उत्पत्ति होती है, उसे बढ़ावा मिलता है और उसे कायम रखा जाता है। यह एक धृणित और अनैतिक चक्र है। अवैध् व्यापार दूसरे प्रकार के अनैतिक ध्ंधों जैसे प्रोर्नोग्रापिफक सामग्रियों का निर्माण, यौन पर्यटन, बारों एवं मसाज पार्लरों इत्यादि के रूप में यौन-शोषण अथवा यौन दुर्व्यवहार युक्त या इससे रहित शोषण आधरित श्रम का जरिया भी बनता है।


आई.टी.पी.ए में केवल व्यावसायिक यौन-शोषण हेतु अवैध् व्यापार पर विचार किया जाता है। यह आवश्यक नहीं कि व्यावसायिक क्रियाकलाप वेश्यालय में हों, बल्कि यह आवासीय स्थलो, वाहनों इत्यादि में भी हो सकता है। अतरू आई.टी.पी.ए के अंतर्गत कार्यरत पुलिस अध्किारी के पास ऐसी सभी परिस्थितियों में, जिसमें अवैध् व्यापार के कारण मसाज पार्लरों, बारों, टूरिस्ट सर्किटों, एस्कहर्ट सेवाओं, दोस्ती क्लबों इत्यादि सहित किसी भी रूप में व्यावसायिक यौन शोषण होता है अथवा होने की संभावना रहती है, कार्रवाई करने का अध्किार होता है।
मानव अवैध् व्यापार, अपराधें का अपराध् है। यह अपराधे का टोकरा है। इस टोकरे में भगा ले जाने का कार्य, अपहरण, अवैध् निरोध्न, अवैध् बंदीकरण, आपराध्कि संत्रास, चोट, गंभीर चोट, यौन प्रहार, लज्जा हरण, बलत्कार, अप्राकृतिक दुर्व्यवहार, मनुष्यो की खरीद बिक्री, दासता, आपराध्कि षडयंत्रा, अपराध् के लिए अवप्रेरण इत्यादि अपराध् पाये जाते हैं। इस प्रकार, विभिन्न समयो तथा स्थानों पर रहने वाले अनेक प्रकार के अपराध् और अपराध्ी मिलकर अवैध् व्यापार के संगठित अपराध् की रचना करते हैं। कई प्रकार के मानवाध्किार हनन के मामले जैसे निजता का उल्लंघन, न्याय नहीं मिलना, न्याय तक पहुंच नहीं होना, मौलिक अध्किारों तथा गरिमा का हनन इत्यादि शोषण के अन्य पहलू हैं। अतरू इसमें कोई संदेह नहीं कि अवैध् व्यापार एक संगठित अपराध् है।
अवैध् व्यापार करने वाले और अन्य शोषणकर्ता अवैध् व्यापार एक संगठित अपराध् है। अनेक व्यक्ति विभिन्न स्थानों जैसे नियुक्ति स्थल, पारगमन स्थल, शोषण स्थल पर रहकर अपनी करतूतों को अंजाम दे सकते हैं। इस प्रकार शोषणकर्ताओं की सूची में निम्नलिखित शामिल हैं।
वेश्यालय का प्रभारी तथा वेश्यालय अथवा अंतिम शोषण स्थल के अन्य शोषणकर्ता
वेश्यालय की संचालिका अथवा डांस बार, मसाज पार्लर या ऐसे अन्य स्थलों जहां शोषण को अंजाम दिया जाता है, के संचालक।
ऐसे स्थलों के प्रबंध्क तथा अन्य पात्रा। ऐसे होटल जो शोषण के लिए प्रयुक्त होते हैं, को चलाने वाले लोग। इनमें शामिल हैं वहां के कर्मचारी, चौकीदार, ड्राइवर इत्यादि ;3.1द्ध तथा ऐसे व्यक्ति जो उस स्थल को वेश्यालय के रूप में प्रयुक्त होने की अनुमति देते हैं ;3.2द्ध, ऐसे व्यक्ति जो वेश्यालय अथवा अन्य शोषण स्थलों पर पीड़ित को रोककर रखते हैं 6 तथा वे लोग जो सार्वजनिक स्थलों को वेश्यावृत्ति हेतु प्रयुक्त होने की अनुमति देते हैं ;7.2द्ध।
ट्रैपिफक की हुई महिला का ‘ग्राहक’ निस्संदेह एक शोषणकर्ता होता है। ऐसा व्यक्ति वह होता है जिसके कारण मांग पैदा होती है और व्यावसायिक यौन-शोषण होता है। अतरू, ऐसा व्यक्ति आई.टी.पी.ए तथा अन्य कानूनों के अंतर्गत दोषी होता है
वित्त प्रदातारू ऐसे सभी व्यक्ति जो अवैध् व्यापार की विभिन्न प्रक्रियाओं हेतु ध्न उपलब्ध् कराते हैं, इस अपराध् के अंग होते हैं। इसमें वे शामिल हो सकते हैं जिन्होंने भर्ती, परिवहन, ठहरने, रहने के प्रबंध्न हेतु ध्न मुहैया कराया हो तथा वे भी शामिल हैं जो वेश्यालयों में ध्न उधर देने या लेने का ध्ंध करते हैं।
अपराध्-सहकारीरू ऐसे सभी व्यक्ति जो शोषण अथवा अवैध् व्यापार की किसी भी प्रक्रिया में सहयोगी होते हैं अथवा समर्थन देते हैं, आई.टी.पी.ए के अंतर्गत दोषी होते हैं ;सेक्शन 3,4,5,6,7,9द्ध।, इसे आई.पी.सी के अपराध् अवप्रेरण से संबंध्ति अध्याय ट के साथ पढ़ेंद्ध।
ऐसे व्यक्ति जो व्यावसायिक यौन-शोषण से प्राप्त आय पर गुजारा करते हैं, कोई भी व्यक्ति जो जानते-बूझते हुए पूर्ण या आंशिक रूप से वेश्यावृत्ति से अर्जित ध्न पर जीता है, दोषी है ;4द्ध। इसमें शामिल हैं वे सभी व्यक्ति जो शोषण से अर्जित अवैध् लाभ के भागीदार होते हैं। ऐसे वित्त प्रदाता जो वेश्यालय ;या ऐसे होटलद्ध से प्राप्त ध्न उधर देते हैं तथा ऐसे ध्न से व्यवसाय करते हैं, इस सेक्शन के अध्ीन दोषी हैं। होटल चलाने वाले ऐसे लोग जो लड़कियों के शोषण से ध्न अर्जित करते हैं, निःसंदेह सेक्शन 4, आई.टी.पी.ए के तहत दोषी हैं।
खुपिफया सूचना देनेवाला, भर्ती करनेवाला, विक्रेता, खरीदार, ठेकेदार, दलाल अथवा कोई भी व्यक्ति जो उनके लिए कार्य करता हो।
परिवहनकर्त्ता, आश्रयदाता तथा ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसने शरण प्रदान किया हो, वे भी रैकेट के अंग होते हैं।
सभी षड्कारीरू लगभग सभी अवैध् व्यापार स्थितियों में अनेक व्यक्ति शोषण के विभिन्न चरणों में षडयंत्रा में शामिल होते हैं। वे सभी षडयंत्रा रचने के दोषी होते हैं। यदि कई लोगों ने मिलकर योजना बनाई हो और उसके बाद उसे अमल में लाया गया हो, तो षडयंत्रा से जुड़ा कानून लागू होता है ;120द्ध। आई.टी.पी.ए के अनुसार जिन्होंने किसी परिसर को वेश्यालय के रूप में प्रयुक्त करने की योजना बनाई हो ;3द्ध अथवा जो शोषण से प्राप्त आय पर जीते हों ;4द्ध चाहे आंशिक रूप से ही क्यों न हो, अथवा वे जो व्यक्ति को वेश्यावृत्ति हेतु खरीदते हैं या प्रलोभन देते हैं अथवा लाते हैं, ;5द्ध वे सभी षडयंत्राकारी हैं।
बाल व्यापारफरवरी 1998 में, 200 बांग्लादेशी बच्चे तथा महिलाएं विभिन्न भारतीय शरणार्थी शिविरों से स्वदेश वापसी का इंतजार कर रहे थे। ;ऊंट दौड़ में सवार बनाए जाने के लिए तस्करी किए जा रहे लड़के, भारत में छुड़ाए गए, मसेपहसव.बवउ, 19 पफरवरी 1998द्ध थाईलैंड एवं पिफलिपींस सहित भारत में सेक्स-व्यापार केन्द्रों में 13 लाख बच्चे हैं। ये बच्चे गरीब इलाकों से होते हैं तथा तुलनात्मक रूप से अमीर क्षेत्रों में अवैध् तरीके से भेजे जाते हैं।
सीमा पार अवैध् तरीके से भेजने में भारत, भेजने वाला, प्राप्त करने तथा पारगमन का देश है। बांग्लादेश एवं नेपाल से बच्चे प्राप्त करना तथा महिलाओं एवं बच्चों को मध्य-पूर्वी देशों में भेजना रोजमर्रा की बात है। कार्यकारी निदेशक, इन्द्राणी सिन्हा, वैश्वीकरण एवं मानव अध्किार पर शोध्
भारत एवं पाकिस्तान 16 वर्ष से कम आयु के दक्षिण एशिया में तस्करी किए गए बच्चों के लिए मुख्य गंतव्य हैं। ;मसाको ऐजिमा, दक्षिण, एशिया से बाल वेश्यावृत्ति के विरु( एकजुट होने का आग्रह, राइटर्स, 19 जून 1998द्ध।
1996 में बड़े छापों के दौरान बम्बई के वेश्यागृहों से छुड़ाई गई वेश्यावृत्ति में ध्केली गई 484 लड़कियों में से 40 प्रतिशत से अध्कि नेपाल से थीं। मसाको ऐजिमा, दक्षिण एशिया से बाल वेश्यावृत्ति के विरु( एकजुट होने का आग्रह, राइटर्स, 19 जून 1998द्ध।
भारत में कर्नाटक, आन्ध््र प्रदेश, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु वेश्यावृत्ति में महिलाओं को झोंकने के लिए हाई सप्लाय जोन माने जाते हैं। बीजापुर, बेलगाम एवं कोल्हापुर आम जिले हैं जहां से महिलाएं, नियोजित तस्करी से संजाल के अंतर्गत बड़े शहरों को जाती हैं। केन्द्रीय कल्याण मंडल, मीना मेनन, अज्ञात चेहरेद्ध
महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के सीमावर्ती जिले, जो ‘देवदासी क्षेत्रा’ के रूप में जाने जाते हैं, में अवैध् व्यापार के तंत्रा विभिन्न स्तरों पर कार्य करते हैं। यहां की महिलाएं वेश्यावृत्ति में इसलिए हैं कि या तो पतियों द्वारा त्याग दी गई हैं, या उन्हें पफुसलाकर अथवा धेखे से अवैध् तरीके से लाया गया है। कई देवदासियां हैं जिन्हें देवी येल्लम्मा के लिए वेश्यावृत्ति को समर्पित किया गया है। कर्नाटक के एक वेश्यालय में, सभी 15 लड़कियां देवदासी हैं। ;मीना मेनन, अज्ञात चेहरेद्ध।
यदि हजारों नहीं, तो सैकड़ों बांग्लादेशी महिलाएं एवं बच्चे विदेशी बन्दीगृहों, जेलों, आश्रयों एवं निगरानी गृहों में बन्द हैं तथा स्वदेश वापसी का इंतजार कर रहे हैं। कइयों को वर्षों से बन्द रखा गया है। भारत में 26 महिलाएं, 27 लड़कियां, 71 लड़के एवं अज्ञात लिंग के 13 बच्चे लिलुआ आश्रय, कलकत्ताय निर्मल छाया बालगृह, दिल्लीय लड़कों के लिए प्रयास निगरानी गृह, दिल्लीय तिहाड़ जेल, दिल्लीय उदवम कलंगेर, बंगलोरय उमर खेड़घी, बंगलोरय किसलय, पश्चिम बंगालय कूचबिहार, पश्चिम बंगाल एवं बहरामपुर, पश्चिम बंगाल में रखे गए हैं। ;बांग्लादेश राष्ट्रीय महिला वकील संघ की पफौजिया करीम पिफरोज एवं सलमा अली, बांग्लादेश देश शोध्पत्रारू कानून एवं विधनद्ध भारत से हमेशा महिलाएं एवं बच्चे मध्य पूर्व देशों में भेजे जाते हैं। भारत, पाकिस्तान एवं मध्य पूर्व में वेश्यावृत्ति तथा घरेलू कार्यों वाली लड़कियों को प्रताडित किया जाता है, कैद जैसी स्थिति में रखा जाता है, सेक्स सम्बन्ध्ी दुर्व्यवहार तथा बलात्कार किया जाता है। की कार्यकारी निदेशक, इन्द्राणी सिन्हा, वैश्वीकरण एवं मानव अध्किार पर शोध् बम्बई में 9 वर्ष आयु जितने छोटे बच्चों को 60,000 रुपयों या 2,000 यूएस डलर्स में नीलामी में अरबों द्वारा भारतीयों से खरीदा जाता है, जो यह मानते हैं कि एक अक्षत के साथ सोने से गनोरिया तथा सिपिफलिस की बीमारियां ठीक हो जाती हैं। आइ फ्रिडमैन, भारत के लिए शमर्रू सेक्स की दासता एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार एड्स महामारी की ओर बढ़ा रहे हैं।
भारत के वेश्यालयों में 160,000 नेपाली महिलाएं हैं। की कार्यकारी निदेशक, इन्द्राणी सिन्हा, वैश्वीकरण एवं मानव अध्किार पर शोध्।
बम्बई में वेश्यावृत्ति में लिप्त लगभग 50,000 या आध्ी संख्या में महिलाएं नेपाल से लाई जाती हैं। आइ फ्रिडमैन, भारत के लिए शमर्रू सेक्स की दासता एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार एड्स महामारी की ओर बढ़ा रहे हैं, नेशन, 8 अप्रैल 1996
भारत के वेश्यालयों में 100,000 से 160,000 के बीच नेपाली महिलाएं तथा लड़कियां हैं, 35 प्रतिशत शादी के झूठे वादे या अच्छी नौकरी के झांसे में लाई गई थीं। ;राध्किा कुमारस्वामी, महिल्लओं के प्रति हिंसा पर यूएन की रिपोर्ट, गुस्तावो कैपडेविला, 2 अप्रैल 1997।
प्रतिदिन लगभग 5,000-7,000 नेपाली भारत लाई जाती हैं। भारत के वेश्यालयों में 100,000-160,000 नेपाली लड़कियों से वेश्यावृत्ति कराई जाती है। लगभग 45,000 नेपाली लड़कियां बम्बई के वेश्यालयों में हैं तथा 40,000 कलकत्ता में। नेपाल में महिलाओं के समूह, ‘ट्रैपिफकिंग इन विमेन एण्ड चिल्ड्रनरू द केसेस बांग्लादेश, चच. 8 एवं 9, 1995।
बम्बई तथा पाकिस्तान के लिए अवैध् कारोबारियों के लिए कलकत्ता महत्वपूर्ण पारगमन केन्द्रों में से एक है। बांग्लादेश से 99ः महिलाएं जमीनी रास्तों के जरिए बांग्लादेश तथा भारत के सीमांत क्षेत्रों, जैसे जेसोर, सतखिरा एवं राजशाही से अवैध् तरीके से लायी जाती हैं। ट्रैपिफकिंग इन विमेन एण्ड चिल्ड्रनरू द केसेस बांग्लादेश, चच. 8 एवं 9, 1995।
भारत में आश्रयस्थलों में 200 बांग्लादेशी महिलाएं एवं बच्चे हैं जिन्हें अवैध् तरीके से लाया गया है तथा जो स्वदेश वापसी का इंतजार कर रहे हैं।
भारत में वार्षिक रूप से अवैध् तरीके से लायी जा रही नेपाली लड़कियों की औसत आयु पिछले दशक में 14-16 वर्ष से गिरकर 10-14 वर्ष हो गई है। एशिया पैसिपिफक, ट्रैपिफकिंग इन विमेन एण्ड प्रक्स्टिटशन इन द एशिया पैसिपिफक।
बम्बई में एक वेश्यालय में सिपर्फ नेपाली महिलाएं हैं, जिन्हें लोग उनकी सुनहरी चमड़घी तथा नर्म स्वभाव के कारण खरीदते हैं। आइ फ्रिडमैन, भारत के लिए शमर्रू सेक्स की दासता एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार एड्स महामारी की ओर बढ़ा रहे हैं, द नेशन, 8 अप्रैल 1996।
भारत में 2.5ः वेश्याएं नेपाली हैं तथा 2.7ः बांग्लादेशी। देवदासी सिस्टम कंटिन्यूज टो लेजिटिमाइज प्रक्स्टिटडूशनरू द देवदासी ट्रैडिशन एण्ड प्रक्स्टिटडूशन, 4 दिसम्बर 1997।
कुछ भारतीय पुरुष यह मानते हैं कि स्काल्प-एग्जिमा से प्रभावित वेश्याओं के साथ सेक्स करने से भाग्यवृ(ि होती है। पस बेबीज नामक दशा के नवजात शिशुओं को उनके माता-पिता द्वारा वेश्यालयों को ऊंचे दामों पर बेचा जाता है। आइ फ्रिडमैन, भारत के लिए शमर्रू सेक्स की दासता एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार एड्स महामारी की ओर बढ़ा रहे हैं, द नेशन, 8 अप्रैल 1996।
एक ध्नाढड हाई स्कूल में सर्वक्षण किए गए छात्रों में से 70ः नियोजित अपराध् में करियर बनाने की इच्छा रखते हैं, तथा इसके लिए अच्छे ध्न तथा मौजमस्ती को कारण बताते हैं। सर्वेक्षण किए गए छात्रा आइ फ्रिडमैन, भारत के लिए शमर्रू सेक्स की दासता एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार एड्स महामारी की ओर बढ़ा रहे हैं, द नेशन, 8 अप्रैल 1996।

Tuesday, April 2, 2013

मैं क्या तेरा सगे वाला हूं, जो तू साला छोकरियों की तरह शरमा रहा है?

तलाश
-प्रशांत

अक्सर ऐसा होता है कि हमारा मन किसी दलदल में पंफसे हुए व्यक्ति वेफ लिए सहानुभूति से भर उठता है, क्योंकि हमें लगता है कि वह मजबूरी का मारा हुआ है, किन्तु अगर हकीकत इसवेफ विपरीत निकले तो...।

पाने की नहीं, श्रीमान सिर्पफ चाहने की, जब दिल लगाना ही था तो भला किसी एैरी-गैरी से क्यों लगाता, आखिर में टूट जाना ही तो दिल का नसीब होता है, पिफर क्यों न हम आसमान को छूने का प्रयास करें...चांद से मोहब्बत का इजहार करते हुए पफनां हो जाए।

लम्बा छरहरा बदन, काली रंगत लिए साधारण नयन-नक्श, जिसे पाउडर वेफ छिड़काव द्वारा सपेफदी देने की कोशिश की गई है, किन्तु एक निगाह देखने पर लगता था मानो किसी ने जामुन पर नमक छिड़क दिया था, ऊपर से उसवेफ शरीर से टपकता पसीना, ‘उपफ!’ मेरा मन अजीब-सी वितृष्णा से भर उठा।
्प्रशांत जी{{{।य् किसी ने पीछे से पुकारा।
मैं तत्काल उसी दिशा में पलट गया, देखा रोहित चला आ रहा है, बड़े ही तेज कदमों से लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ, मानो भगवान बामन की तरह दो ही डगों में पृथ्वी को माप लेना चाहता हो, मेरी उससे पहचान वर्षों पुरानी न होकर महज चंद दिनों पहले ही हुई थी। पहली बार हम ‘एपफ-टेक’ कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में मिले थे, तब हम दोनों ही वहां प्रोग्रामिंग वेफ कोर्स वेफ लिए पहुंचे हुए थे, आगे हमारा बैच एक ही था, जान-पहचान बढ़ती चली गई, फ्नमस्कार! लेखक महोदय।य् वह मेरे निकट पहुंच कर हांपफता हुआ बोला।
फ्नमस्कार भई।य् मैं किंचित आश्चर्य जताता हुआ बोला, फ्इधर वैफसे?य् इस पर जवाब देने की बजाय वह ठठाकर हंस पड़ा।
फ्क्या हुआ?य्
फ्अरे साहब, मैं तो हर सप्ताह यहां का पेफरा लगाता हूं, कलयुगी इंसान जो ठहरा, मगर आप...आप जैसे साधु पुरुष को इधर देखकर...यकीन जानिए मैं बहुत ही ज्यादा आश्चर्य में पड़ गया हूं। बशर्ते की अब आप ये न कह दे कि रास्ता भटक गये हैं...खैर क्या पफर्वफ पड़ता है? निश्ंिचत होकर जाइये, अब मैं तो किसी को बताने से रहा कि मैंने आपको यहां देखा था, आखिरकार चोर-चोर मौसेरे भाई, जो ठहरे, एक-दूसरे का लिहाज तो करना ही पड़ेगा।य् कहने वेफ पश्चात वह पुनः जोर-जोर से ठहावेफ लगाने लगा।
फ्क्या बात है रोहित जी, आज तो आप बड़ी उलझी-उलझी सी बातें कर रहे हैं, आपकी सभी बातें मेरे सिर वेफ ऊपर से गुजर रही हैं।य्
जवाब देने से पूर्व वह खुल कर मुस्कराये हांेठों वेफ दोनों किनारे कानों को छुते से जान पड़े, पिफर तनिक ठहर कर आंखों से मुस्वुफराते हुए बोला, फ्जनाब चोरी पकड़े जाने पर हर कोई ऐसा ही कहता है, मगर आप इत्मीनान रखिये, मैं किसी को वुफछ नहीं कहूंगा, इसलिए बेहिचक मजे मार कर आइये...।य्
फ्चोरी...।य् मैं पुनः उलझ-सा गया, फ्कहना क्या चाहते हैं आप...जरा खुलकर बताइये।य्
फ्यानी की मेरी जुुबान खुलवायें बिना नहीं मानेंगे आप।य्
फ्क्या हर्ज है, पिफर अगर भगवान ने जुबान दी है, तो खुलनी भी चाहिये। अतः बराय मेहरबानी स्पष्ट बताइये कि आप कहना क्या चाहते हैं?य्
फ्ठीक है, अगर आप नहीं मानते तो कहता हूं...सुनिए आपका दफ्रतर लाजपत नगर में है, छुट्टी का वक्त है, आप ये भी नहीं कह सकते कि दफ्रतर वेफ काम से यहां आए हैं, अब बजाए दफ्रतर से लौटकर घर जाने वेफ लिए कमला मार्वेफट की तरपफ चल पड़े। आपवेफ कदम जी.बी. रोड़ पर आ पहुंचे हैं, यह रास्ता तो किसी भी तरह आपवेफ रूट में नहीं आता और अब जबकि आप लाल बत्ती इलावेफ में दाखिल हो चुवेफ हैं, तो कोई पूजा-पाठ करने वेफ इरादे से तो आए नहीं होंगे, किसी वेश्या की आरती तो आप उतारेंगे नहीं। पिफर जाहिराना बात है कि आपको जिस्मानी प्यास यहां तक खींच लाई है। अपने हृदय वेफ सूखे मरुस्थल की प्यास शांत करने ही जा रहे होंगे आप...भई बड़े छुपे रूस्तम निकले आप।य्
फ्हे भगवान।य् मेरे मुख से आह निकल गई, फ्क्या तुम वहीं से आ रहे हो?य्
फ्लो, भला ये भी कोई पूछने वाली बात है, बताया तो था सप्ताह में एक बार इधर का पेफरा अवश्य लगाता हूं, पिफर खर्चा भी ज्यादा नहीं, हर बार तकरीबन पचास रुपये में निपट जाता है। अब मैं कोई सेठ तो हूं नहीं, जो हजारों खर्च कर ‘टॉप का माल हासिल करूं, इसलिए किसी से भी काम चला लेता हूं, पिफर सूरत देखने की जरूरत ही क्या है, जब भी वहां जाता हूं, जाने से पहले किसी सिने-अभिनेत्राी की सूरत अपने जहन में वूफट-वूफट कर भर लेता हूं...मजे मारते समय हर वक्त यही सोचता रहता हूं कि उसी अभिनेत्राी के हसीन तन के साथ ऐश कर रहा हूं सच कहता हूं बड़ा मजा आता है आप भी किसी खूबसरत बाला को दिमाग में भर लीजिए पिफर देखिए पचास रूपये के माल में भी आपको 5हजार वाला जायका ना मिल जाए तो कहना।य्
फ्लेकिन पचास रुपये...वो भला किस बात वेफ...क्या कमी है तुम्हारे अंदर?य्
फ्अरे लेखक महोदय पैसा तो उसवेफ साथ मजा करने वेफ देता हूं, बिना पैसों वेफ तो जोरू भी साथ सोने से इंकार कर देगी, वो तो पिफर वेश्या ठहरी।य्
फ्भई तुम मेरी बात समझ नहीं पाए, मेरे कहने का आशय मात्रा इतना था कि जब स्त्राी और पुरुष दोनों ही एक-दूसरे वेफ पूरक हैं, इनमें से कोई भी अवेफला रति-सुख हासिल नहीं कर सकता, पिफर बीच में पैसे की बात कहां से आ गई? यह तो आपसदारी वाला मामला हुआ, एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ से देने वाली बात हो गई। इसमें भला पैसे का क्या रोल?य्
फ्पैसा तो देना ही पड़ेगा, क्योंकि यह तो बिजनेस है उनका। इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है, किन्तु मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आज आप बाल से खाल निकालने में क्यों लगे हुए हैं। आपने ही एक कहानी में लिखा था कि वेश्यालय वह संतुष्टि स्थल है, जहां पहुंचकर बीवी से बेजार या प्रेमिका की जुदाई से छलित हृदय का कोई भी व्यक्ति तन और मन दोनों की शांति प्राप्त कर सकता है।य्
फ्लेकिन बरर्खुरदार, तुम्हें कौन-सा गम सता रहा है? प्रेमिका बिछोह या बीवी की...।य्
फ्मैं अनमैरिड हूं।य्
फ्यानी की पहली बात सही है।य्
फ्जी हां, आप अंदाजा नहीं लगा सकते...मैं उसे बेइंतहा प्यार करता हूं, पागलपन की हद तक चाहता हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी, लेकिन मेरी बदकिस्मती देखिए कि मैं आज तक उससे रूबरू नहीं हो सका।य्
फ्इकतरपफा मोहब्बत है...।य्
फ्ठीक समझा, आपने उस बेचारी ने तो ताउम्र मेरी शक्ल नहीं देखी, बस मैं ही देखता रहा हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी। अजीमोशान हूर की परी...हजारों दिलों की जीनत, सब जानते हैं, उसे किन्तु वो किसी को नहीं जानती।य्
फ्कोई नाम तो होगा उस आपफताब का।य्
फ्है न बिल्वुफल उसी की तरह उसका नाम...कैटरीना कैपफ, सिने अभिनेत्राी।य्
मैंने अपना सिर पीट लिया, दिल हुआ बाल नोंचने शुरू कर दूं, बड़ी मुश्किल से स्वयं को संयत कर पाया।
फ्कोई और नहीं मिला, तुम्हें जो उससे दिल लगा बैठे, पाने की ख्वाइश कर बैठे।य्
फ्पाने की नहीं, श्रीमान सिर्पफ चाहने की, जब दिल लगाना ही था तो भला किसी एैरी-गैरी से क्यों लगाता, आखिर में टूट जाना ही तो दिल का नसीब होता है, पिफर क्यों न हम आसमान को छूने का प्रयास करें...चांद से मोहब्बत का इजहार करते हुए पफनां हो जाए।य्
फ्भला ऐसा पागल कौन होगा?य्
फ्प्रत्यक्ष किंम् प्रमाणम्?य्
मैं हंस पड़ा।
फ्मैं जो खड़ा हूं, आपवेफ सामने पांच पिफट साढ़े दस इंच का जीता-जागता इंसान...खैर बारी आपकी है, बताइये कहां जा रहे थे आप...अगर किसी कोठे पर नहीं जा रहे थे तो?य्
फ्मैं...मैं तो बस यूं किसी नई कहानी की तलाश में भटक रहा हूं, किन्तु अब तुमसे मिलने वेफ बाद लगता है, मंजिल मिल गई या पिफर यू कह लो कि मेरे भटकाव को ही दिशा मिल गई...।य्
फ्दयानतदारी है, जो आप ऐसा सोचते हैं, वरना बन्दे ने तो अपना हाले-दिल खोल कर रख दिया आपवेफ सामने, किन्तु अब एक गुजारिश अवश्य करना चाहूंगा...जब यहां तक आ ही गये हैं, तो सामने किसी कोठे का पेफरा अवश्य लगाएं, यकीन मानिए, ये दुनिया बड़ी विस्पफोटक है, यहां एक से बढ़कर एक कहानियां छिपी हुई हैं, बस पारखी निगाह की जरूरत है, आप यकीनन सपफल होकर लौटेंगे।य्
फ्अरे नहीं भई, अब मैं कोई वुफवफर्म नहीं करना चाहता, पहले ही जाने कौन से पाप किए थे, जा ेसिर पर लेखक बनने का भूत सवार हो गया, यह लोक तो बिगाड़ ही चुका हूं, अब वहां जाकर अपना परलोक क्यों बिगाडूं?य्
फ्वुफकर्म करने को कौन कहता है, बस यूं ही टहलते हुए जाइये और लौट आइये...यकीन जानिए आपको पछताना नहीं पड़ेगा और अगर अवेफले जाने में हिचक हो रही हो तो नो-प्रॉब्लम, मैं हूं न, आपवेफ साथ चलता हूं।य्
कहने वेफ पश्चात वह वुफछ क्षण को रुका, पिफर एक लम्बी सांस खींचकर पूछ बैठा, फ्कहिये चलते हैं?य्
फ्अब आज तो संभव नहीं है, मैं उसे टालता हुआ बोला, आगे जब पुफरसत होगी तुम्हें याद कर लूंगा।य्
फ्जैसी आपकी मर्जी,य् वह अपने दोनों वंफधे उचकाता हुआ बोला, फ्तो मैं चलूं अब?य्
फ्हां भई...चलो।य्
उसवेफ जाने वेफ वुफछ समय पश्चात तक वहीं खड़ा मैं अपना अगला कदम निर्धारित करता रहा, जो इस बात का द्योत्तक था कि उसकी बातें बेअसर नहीं थी, अब मेरे समक्ष दो रास्ते थेµपहला रास्ता मुझे मेरे घर तक ले जाता था। दूसरा उन बदनाम कोठों की तरपफ...जिधर बढ़ने में मैं बार-बार हिचक रहा था, किन्तु उसी अनुपात में मेरा दिल बार-बार मुझे उस तरपफ बढ़ने वेफ लिए प्रेरित कर रहा था।
पिफर किसी विस्पफोटक कहानी वेफ मिलने की संभावित वजह ने मुझे वक्ती तौर पर लालची बना दिया, किन्तु उधर बढ़ने से पूर्व मैंने सैकड़ों बार अपने आत्मविश्वास को तौलकर देखा, पिफर दृढ़ कदमों से उस नरक वुफण्ड की तरपफ बढ़ चला। मन में कोई उत्साह न था, किन्तु मैं हतोत्साहित भी नहीं भी नहीं था, मैं पूर्ववत सामान्य बना हुआ था। अलबत्ता अपनी काया को उस तरपफ धवेफलने का कार्य मैं अवश्य कर रहा था, किन्तु ज्यों-ज्यों मैं आगे बढ़ता जा रहा हूं, मेरी दृढ़ता में कमी आती जा रही है, आते-जाते लोगों को देखकर धड़कनें बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि किसी पहचान वाले से टकरा जाने का आतंक मेरे जहन में पूरी तरह काबिज हो चका है। अगर कहीं कोई पहचान वाला मिल गया तो...इस ‘तो’ वेफ बारे में सोचने मात्रा से मैं पसीने से तर हो गया, मेरी दशा उस चोर की भांति हो रही थी जो जीवन में पहली बार चोरी करने निकला हो और पकड़े जाने वेफ भय से कांप रहा हो, किन्तु मैं रुका नहीं, पीछे मुड़कर देखने की आदत जो नहीं है, बस बढ़ता रहा नाक की सीध में, बगैर दाएं-बांए देखे।
इस दौरान कई बार कदम लड़खड़ाए, दिल में हिचक उत्पन्न हुई, किन्तु इन बातों की परवाह किए बगैर मैं आगे बढ़ता गया, दोनों तरपफ दुकानें थीं, जिनमें आने-जाने वालों का तांता लगा हुआ था, सड़क पर आदमियों से ज्यादा रिक्शे, ठेले और कारों की कतार...वुफल मिलाकर भीड़-भाड़ जरूरत से ज्यादा थी...मेरा दिमाग वुफछ इस कदर वुंफद हो गया कि वहां से गुजरने वाली हर औरत बाजारू और हर मर्द उनका ग्राहक दिखाई देने लगा, शाम कापफी घिर आई थी, वातावरण में धुंधलका पैफलता जा रहा था, ऐसे में किसी का हाथ अपने वंफधों पर स्पर्श महसूस कर मैं चौक उठा, दिमाग में खतरे का बिगुल बज उठा...यकीनन कोई पहचान वाला मिल गया, मेरे रोंगटे खड़े हो गये, मन ही मन आगंतुक वेफ संभावित प्रश्नों का जवाब तलाशते हुए, मैं उसकी तरपफ घूम गया...‘थैंक्स गॉड’...मैंने राहत की सांस ली। मेरे समक्ष निहायत गंदे कपड़ों में लिपटा एक अधेड़ व्यक्ति लगातार कचर-कचर पान चबा रहा है, जिसकी टपकती हुई लार ने होंठों से लेकर ठोड़ी तक एक लाल रेखा खींच दी थी। कपड़ों पर जगह-जगह लाल धब्बे लगे हुए थे, इन सबसे बेखबर वह लगातार जुगाली किए जा रहा था, उसवेफ शरीर से उठती हुई दुर्गन्ध ने मेरा सांस लेना दूभर कर दिया, मुझे कोफ्रत-सी महसूस होने लगी, वुफछ क्षण पश्चात उसने मुंह में भरी पीक का एक तिहाई जमीन पर थूक दिया और बाकी को निगलने वेफ पश्चात मुझे घूरने में व्यस्त हो गया, जबकि उसका एक हाथ अभी तक मेरे वंफधे पर टिका हुआ था, पकड़ पहले से अधिक मजबूत थी, जाने क्यों उसकी इस प्रतिक्रिया ने मुझे भीतर तक विचलित करवेफ रख दिया।
फ्क्या चाहिये?य् वह पफटी आवाज में बोला, इस दौरान उसवेफ मूख से निकलकर उछलते हुए पान की पीक वेफ वुफछ छींटे मेरी कमीज पर आ गिरे, मैं करता भी क्या बस कसमसा कर रह गया।
फ्अब बोलता क्यों नहीं?य् वह मुझे झकझोरता हुआ बोला, फ्हर तरह का माल है, अपने पास, सोलह से साठ तक...सबका एकदम वाजिब रेट है, जो चाहेगा मिलेगा...बोल वैफसा माल...चाहिये?य्
मालय् मैं अचकचा-सा गया, वैसा माल?य्
फ्ओय! तू माल नहीं समझता, तो पिफर इधर काहे को आया है, माल वेफ वास्ते ही आया है न...पिफर इतना बावला बन कर क्यों दिखा रहा है, मैं क्या तेरा सगे वाला हूं, जो तू साला छोकरियों की तरह शरमा रहा है? छोकरी चाहिये तो बोल, वरना पूफट यहां से, धंधे का टाइम हे, मुझे दूसरे ग्राहकों को संभालना है।य्
उसने मेरा वंफधा छोड़ दिया।
मैं झपटकर आगे बढ़ा, किन्तु तभी कमबख्त ने हाथ पकड़कर खींच लिया।
फ्जाने से पहले।य् वह पूर्ववत जुगाली करता हुआ बोला, फ्एक बात सुनता जा, पूरे जी.बी. रोड पर तेरे को भल्लू जैसा ईमानदार दल्ला नहीं मिलेगा, अगर कोई ज्यादा पैसे मांगे तो इधर वापस आना, ग्राहक भगवान होता है...मैं तेरे को अच्छा माल दिलाऊंगा...तू मेरे को नया आदमी लगता है, इसलिए बता देता हूं...इधर साली...बहन की...कोई भी रण्डी, अगर तेरे को परेशान करे तो उसे मेरा नाम बोलना...बोलना तू भल्लू का आदमी है...समझ गया?य्
मैंने तत्काल हां में सिर हिला दिया। उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और इससे पहले वह दोबारा मेरा हाथ थाम लेता, मैं तकरीबन दौड़ता हुआ वहां से बच निकला। अजीब इंसान था वह, स्वयं को दल्ला बताते वक्त यूं पफख्र महसूस कर रहा था, मानो कह रहा हो, ‘मैं इस देश का राष्ट्रपति हूं’...खासतौर पर ईमानदार दल्ला होना उसकी निगाहांें में खासा महत्व रखता जान पड़ता था....अलबत्ता वह कितना ईमानदार था, इसको मापने का मेरे पास कोई तरीका नहीं था।
वुफछ देर तक आगे बढ़ते रहने वेफ पश्चात मैंने अपनी रफ्रतार धीमी कर दी और एक तरपफ खड़ी कार वेफ बम्पर का टेक लेकर शांति से खड़ा हो, वहां का नजारा करने लगा, किन्तु वह शांति क्षणिक साबित हुई, अभी मैं चैन की दो सांस भी नहीं ले पाया था कि तभी... एक अधेड़ औरत भूत की तरह मेरे बगल में प्रकट हुई और मुझसे एकदम सटकर खड़ी हो गई, मैं बुरी तरह हड़बड़ा उठा, किन्तु इससे पहले मैं अलग हो पाता, उसने झट मेरा बाजू पकड़ लिया।
फ्चलता है क्या...?य्
कहने का अन्दाज यूं था मानो कहना चाहती हो फ्चलती है क्या खण्डाला?य्
फ्क...कहां?य् मैं एकदम से अनमिल हो उठा।
फ्अपनी अम्मा वेफ पास साले।य् वह बड़े ही सहज ढंग से बोली, फ्चल कर तो देख स्वर्ग वेफ दर्शन न करा दूं तो कहना...।य्
फ्प...पैसे...कितने...लो...।य्
फ्जो दिल करे दे देना...चल।य् उसने मेरा हाथ पकड़कर झटका दिया, मैं उसवेफ पीछे-पीछे चल पड़ा, वह बगल की गली में जा घुसी।
यह कमरा एक पुराने खंडहरनुमा मकान की पहली मंजिल पर बना मुर्गी वेफ दड़बे जैसा है, यहां रोशनी का एक मात्रा साधन, वह सौ वाट का बल्ब है, जो कमरे वेफ बाईं ओर वाली दीवार पर एक कील वेफ सहारे लटक रहा है। बल्ब की पीली रोशनी में मैंने पफौरन सिर से पांव तक उसका मुआयना कर डाला। लम्बा छरहरा बदन, काली रंगत लिए साधारण नयन-नक्श, जिसे पाउडर वेफ छिड़काव द्वारा सपेफदी देने की कोशिश की गई है, किन्तु एक निगाह देखने पर लगता था मानो किसी ने जामुन पर नमक छिड़क दिया था, ऊपर से उसवेफ शरीर से टपकता पसीना, ‘उपफ!’ मेरा मन अजीब-सी वितृष्णा से भर उठा। रही सही कसर कमरे की अन्दरूनी साज-सज्जा ने पूरी कर दी, पफर्श पर जनाना कपड़े बिखरे पड़े थे, कहीं ब्रा तो कहीं पैंण्टी तो कहीं पेटीकोट और ब्लाऊज यहां तक की खून सने रोल किये हुए कपड़े भी, वहां मौजूद थे। एक तरपफ डस्टबीननुमा टोकरी पड़ी है, जिसवेफ भीतर वुफछ इस्तेमाल किए हुए ‘निरोध’ और बाहर पैफले कपड़ों वेफ रोल जैसे वुफछ बण्डल पड़े हुए हैं। मुझे ऊबकाई-सी आने लगी, अब वहां और खड़े रह पाना मेरे बर्दाश्त वेफ बाहर था, इधर-उधर घूमती मेरी निगाह जब पुनः उस पर पड़ी तो मेरे होश उड़ गये। वह मादा जात नंगी पलंग पर चित्त पड़ी थी, न तो उसकी आंखों में कोई नशा था और न ही अधरों पर कोई प्यास थी, वह तो महज एक मशीन-सी जान पड़ी मुझे, जिसे कोई भी शुरू कर सकता था, यह मेरे लिए औरत का एकदम नया रूप था, मैंने वेश्याओं वेफ बारे में सुन रखा था, पढ़ रखा था, किन्तु रूबरू होने का यह पहला मौका था, वह पूरी तरह अहसास रहित दिखाई दे रही थी, उसवेफ साथ संभोग करना किसी लाश वेफ साथ संभोग करने जैसा ही आनन्द दे सकता है, उसवेफ नग्न शरीर को देखकर मैं शर्म से गड़ा जा रहा था, किन्तु उसकी आंखों में अभी भी कोई भाव नहीं आया था।
फ्अरे...ओय...जल्दी कर पफालतू टाइम नहीं है अपने पास।य्
फ्जल्दी करूं!य् मैं आवाज सुनकर चौंक पड़ा, फ्क्या करूं?य्
फ्तेरे मां की साले...क्या करने आया है यहां?य्
फ्मैं...मैं।य् मुझे लगा मैं रो पड़ूंगा, फ्तुम्हारा नाम क्या है?य्
फ्क्यों...शादी करेगा मुझसे?य्
फ्बताने में क्या हर्ज हैं।’ मैं उसवेफ जिस्म से निगाहें चुराने लगा।
फ्कोई हर्ज नहीं, पहले तू बता, तेरी अम्मा का क्या नाम है?य्
फ्ब...बबीता।य्
फ्मेरा नाम कविता है, रिश्ते में तेरी मौसी लगती हूं, अब पफटापफट भंभोड़ और पूफट यहां से।य्
मेरा चेहरा कनपटियों तक सूर्ख हो उठा...आसार अच्छे नहीं दिख रहे थे...मैं खून का घूंट पीकर बर्दाश्त कर गया।
फ्तुम ये सब क्यों करती हो?य्
फ्स्याले हराम वेफ पिल्ले, जो करने आया है कर और पूूफट यहां से, अभी तेरे दूसरे बापों को भी निपटाना है।य् सहमकर मैंने पुनः एक नजर उसवेफ जिस्म पर डाली, स्तनों पर घाव वेफ स्थाई निशान दिखाई दिये, निगाह वुफछ नीचे गई, तो नाभि वेफ नीचे भी एक गहरे घाव का निशान दिखाई दिया। पैरों पर चेचक वेफ दाग बने हुए थे।
मुझे पुनः ऊबकाई आने लगी।
फ्मैं...मैं जाता हूं।
फ्बिना वुफछ किए?य्
फ्हां।य्
फ्पैसे।य्
फ्किस बात वेफ?य्
फ्अबे खाली-पीली मेरा टाइम खोटा किया, दिमाग में टेंशन दिया उसवेफ पैसे। इतनी देर में कोई दूेसरा मुझे भभोड़कर जा चुका होता, भगवान बचाए तेरे जैसे नामर्द ग्राहकों से, साले घर पे बीवी के साथ भी ऐसा ही करता है क्या, अगर हां तो बच्चों से शक्ल पड़ोसियों से मिलाकर देखना कहीं मिलती तो नहीं हैय्
उसके मुंह ना लगने में ही मैंने अपनी भलाई समझी। मैंने चुपचाप उसे सौ का एक नोट पकड़ाया और गेट की तरपफ बढ़ गया।
फ्स्याला, हरामजादा।य् पीछे से उसका घृणित स्वर सुनाई दिया, फ्छक्का कहीं का...य् आक्-थू...कदाचित उसने पफर्श पर थूक दिया था, मारे अपमान वेफ मेरी आंखें भर आईं, मैं हिचकियां लेते हुए सीढ़ियां उतरने लगा।


Monday, April 1, 2013

एक शाम रेडलाइट एरिया में

जी.बी. रोड की एक शाम

इधर-उधर घूमती मेरी निगाह जब दोबारा उस पर गई तो मेरे होश उड़ गये। वह जन्मजात नंगी पलंग पर चित्त पड़ी थी। तो उसकी आंखों में कोई नशा था और ही अधरों पर कोई प्यास थी। वह तो महज एक मशीन-सी जान पड़ी मुझे, जिसे कोई भी शुरू कर सकता था और शुरू करके बंद कर सकता था।

वो एक हसीन शाम थी! अभी-अभी बारिश होकर हटी थी! लिहाजा मौसम अचानक ही खुशगवार हो उठा था। दफ्तर से बाहर निकल कर मैं पैदल ही दिल्ली गेट की ओर बढ़ चला। बात तकरीबन बारह साल पुरानी है। उन दिनों मैं दरियागंज में अंसारी रोड पर एक पब्लिशर के यहां बतौर सह-संपादक कार्यरत था। मैं अपने मालिकान से कोई खास खुश नहीं थी, अलबत्ता तन्ख्वाह अच्छी थी, इसलिए मैं उन्हें खामोशी से झेल रहा था।
                आज की तरह उन दिनों भी मेरा एक ही शगल हुआ करता था - शब्दों के साथ खेलना! फर्क सिर्फ इतना था कि तब की-बोर्ड की बजाय हाथ में कलम और सामने पेपर हुआ करता था।
                बहरहाल मैं मौसम की अचानक हुई मेहरबानी का लुत्फ उठाता हुआ पैदल, बिना मंजिल को लक्ष्य किए आगे बढ़ता जा रहा था। मन में तरह तरह के ख्यालात आते और चले जाते! मुझे महसूस हो रहा था जैसे कोई नई कहानी जहन में आकार लेने को मचल रही है, बस तस्वीर का रूख साफ नहीं हो पा रहा था। लिहाजा मैं चलता जा रहा था, ख्यालों में उलझा हुआ। यूं चलता हुआ मैं कहां से कहां जा पहुंचा था इसका एहसास मुझे तब हुआ जब अचानक ही किसी ने मेरा नाम लेकर पुकारा-
‘‘प्रशांत जी!‘‘ मैं तत्काल आवाज की दिशा में पलट गया, देखा रोहित चला रहा था। बड़े ही तेज कदमों से लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ। मानो भगवान बामन की तरह दो ही डगों में पृथ्वी को माप लेना चाहता हो। वो मेरा दोस्त तो नहीं था फिर भी हम दोनों में ठीक-ठाक बनती थी। उससे मेरी जान-पहचान भी कोई खास पुरानी नहीं थी। महज छह महीने पहले हम प्रगति मैदान के बुक फेयर में मिले थे। बस वहीं से बात-चीत का सिलसिला शुरू हो गया था। जो कि आज तक जारी था। हम दोनों को करीब लाने में जिस बात का अहम योगदान था वो ये कि उसे पढ़ने का बहुत शौक था और मुझे लिखने का! ये जुदा बात थी कि वो सिर्फ वही किताबें पढ़ता था जो उसे मुफ्त में हासिल हो जाती थीं। खरीदकर ना पढ़ने की तो जैसे उसने कसम उठा रखी थी। लिहाजा आप समझ ही गये होंगे कि वो भी ऐन दिल्ली वाले टाइप का ही था। आसान शब्दों में कहें तो मुफ्तखोरा था, मुफ्त की हर चीज उसे पसंद थी, भले ही जहर ही क्यों ना मिल रहा हो।
‘‘हल्लो!‘‘ -वह मेरे करीब पहुंच कर हांफता हुआ बोला,‘‘कैसे हो?‘‘
‘‘एकदम मस्त! तुम सुनाओ, आज इधर कहां निकल आए।‘‘
जवाब देने की बजाय वह ठठाकर हंस पड़ा।
‘‘क्या हुआ भई कोई जोक सुना दिया क्या मैंने?‘‘
‘‘नहीं यार! वो बात ये है कि मैं तो हफ्ते यहां का फेरा लगा ही लेता हूं! कलयुगी इंसान जो ठहरा, मगर तुम जैसे साधु पुरूष को यहां देखकर मुझे हैरानी हो रही है। तुम्हारा यहां क्या काम? बस अब ये मत कह देना कि रास्ता भटक कर इधर निकले।‘‘
‘‘क्या कहना चाहते हो भई?‘‘ उसकी बात सुनकर मैं तनिक उलझ सा गया।
‘‘कुछ नहीं छोड़ो! निश्ंिचत होकर जाओ, अब मैं तो किसी को बताने से रहा कि मैंने तुम्हें यहां देखा था, आखिरकार चोर-चोर मौसेरे भाई जो ठहरे, एक-दूसरे का लिहाज तो करना ही पड़ता है।‘‘ कहने के पश्चात वह पुनः जोर-जोर से ठहाके लगाने लगा।
‘‘क्या बात है यार! आज तो तुम बड़ी उलझी-उलझी सी बातें कर रहे हो। तुम्हारी तमाम बातें मेरे सिर के ऊपर से गुजर रही हैं।‘‘
जवाब देने से पूर्व वह खुल कर मुस्कराया हांेठों के दोनों किनारे कानों को छूते से जान पड़े। फिर तनिक ठहर कर आंखों से मुस्कुराते हुए बोला, ‘‘चोरी पकड़े जाने पर हर कोई ऐसा ही कहता है। मगर इत्मीनान रखो, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा, इसलिए बेहिचक मजे मार आओ...‘‘
‘‘चोरी...मजे....!‘‘ मन में कुछ उलझ-सा गया, ‘‘कहना क्या चाहते हो...जरा खुलकर बताओ।‘‘
‘‘यानी की मेरी जुुबान खुलवाये बिना नहीं मानोगे!‘‘
‘‘क्या हर्ज है, भगवान ने जुबान दी है, तो खुलनी भी चाहिये। बराय मेहरबानी साफ-साफ बताओ कहना क्या चाहते हो?‘‘
‘‘ठीक है, अग नहीं मानते तो कहता हूं...सुनो तुम्हारा दफ्तर अंसारी रोड पर है! छुट्टी का वक्त है, लिहाजा तुम ये भी नहीं कह सकते कि दफ्तर के काम से यहां आए हो। अब बजाए दफ्तर से लौटकर घर जाने के तुम्हारे कदम जी.बी. रोड़ पर आन पहुंचे हैं तो क्या मतलब निकालूं इसका। यह रास्ता तो किसी भी तरह तुम्हारे रूट में नहीं आता।‘‘
डसकी बात सुनकर मैं हकबका सा गया! अब जाकर मुझे याद आया कि मैं विचारों के भंवर में फंसा हुआ, रेडलाइट एरिया में दाखिल हो चुका था।
‘‘और अब जबकि तुम इधर ही गये हो तो!‘‘ वह कह रहा था, ‘‘कोई पूजा-पाठ करने के इरादे से तो आए नहीं होंगे। किसी हुस्नवाली की आरती तो तुम उतारोगे नहीं। फिर जाहिराना बात है कि जिस्मानी प्यास यहां तक खींच लाई है तुम्हे! अपने जिस्म के सूखे मरुस्थल की प्यास शांत करने ही जा रहे होंगे ...भई मान गये, बड़े छुपे रूस्तम निकले तुम!‘‘
                ‘‘हे भगवान।‘‘ मेरे मुख से आह निकल गई, ‘‘क्या तुम किसी कोठे से रहे हो?‘‘
                ‘‘लो, भला ये भी कोई पूछने वाली बात है! बताया तो था सप्ताह में एक बार इधर का फेरा जरूर लगाता हूं। फिर खर्चा भी ज्यादा नहीं, हर बार तकरीबन दो सौ रुपये में निपट जाता है। अब मैं कोई सेठ तो हूं नहीं, जो हजारों खर्च करटॉप का मालहासिल करूं। इसलिए किसी से भी काम चला लेता हूं। फिर सूरत देखने की जरूरत ही क्या है! जब भी वहां जाता हूं, जाने से पहले किसी माॅडल या अभिनेत्री की सूरत अपने जहन में कूट-कूट कर भर लेता हूं...मजे मारते समय हर वक्त यही सोचता रहता हूं कि उसी हसीना के साथ ऐश कर रहा हूं। सच कहता हूं बड़ा मजा आता है इस ट्रिक में। दो सौ रूपये में पांच हजार वाला मजा मिल जाता है।‘‘
                ‘‘लेकिन दो सौ रुपये... वो भला किस बात के!...क्या कमी है तुम्हारे अंदर?‘‘
                ‘‘हद करते हो यार! पैसा तो उसके साथ मजा करने के देता हूं, बिना पैसों के तो जोरू भी साथ सोने से इंकार कर देगी, वो तो फिर धंधे वाली ठहरी।‘‘
                ‘‘तुम मेरी बात समझ नहीं पाए, मेरे कहने का मतलब ये है कि जब स्त्री और पुरुष दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं, इनमें से कोई भी अकेला रति-सुख हासिल नहीं कर सकता। फिर बीच में पैसे की बात कहां से गई? यह तो आपसदारी वाला मामला हुआ, एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ से देने वाली बात हो गई! इसमें भला पैसे का क्या रोल?‘‘
‘‘रोल है! क्योंकि वो रति सुख हासिल करने के लिए नहीं बैठी यहां बल्कि रति सुख देने के लिए बैठी हैं, वो मजे नहीं मारतीं बल्कि मजे कराती हैं, इसलिए पैसा देना पड़ता है।‘‘
‘‘मगर...!‘‘
‘‘पैसा तो देना ही पड़ेगा!‘‘ वो मेरी बात काट कर बोला, ‘‘क्योंकि ये तो बिजनेस है उनका। इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है। किन्तु मेरी समझ में ये नहीं रहा कि आज तुम बाल की खाल निकालने में क्यों लगे हुए हो! तुम्हारी ही कहानीवेश्यालयकी एक पंक्ति सुनाता हूं तुम्हे, तुमने लिखा था, ‘‘वेश्यालय वह संतुष्टि स्थल है, जहां पहुंचकर बीवी से बेजार या प्रेमिका की बेवफाई से आहत कोई भी व्यक्ति तन और मन दोनों की शांति प्राप्त कर सकता है।‘‘
‘‘मुझ याद हैं वो लाइनें मगर तुम भूल रहे हो कि वो कहानी नहीं थी बल्कि हास्य व्यंग्य था। और फिर तुम्हें कौन-सा गम सता रहा है? प्रेमिका की बेवफाई या फिर बीवी से ऊब गये हो!‘‘
‘‘मैं अनमैरिड हूं।‘‘
‘‘यानी की पहली बात सही है।‘‘
‘‘ठीक समझे, मगर बेवफाई जैसी कोई बात नहीं है! बस उसे मेरा प्यार कबूल नहीं है। मेरी एक भी चिट्ठी का जवाब नहीं दिया उसने।‘‘
‘‘चिट्ठी! मैं तनिक चैंका, ‘‘मोबाइल के जमाने में किसी को चिट्ठी लिखोगे तो जवाब क्या खाक मिलेगा! आज की नब्बे फीसदी जनरेशन ने तो कभी चिट्ठी की शक्ल ही नहीं देखी होगी और तुम अपनी प्रेमिका को चिट्ठियां लिखते हो, कमाल के आदमी हो भई तुम।‘‘
‘‘मेरे पास उसका कोई कांटेक्ट नंबर नहीं है भई!‘‘ वो बेबसी से बोला।
‘‘तो पता करो, आशिक तो जाने क्या-क्या कर गुजरते हैं और एक तुम हो कि अपनी महबूबा का नंबर तक नहीं मालूम तुम्हें, लानत है तुमपर! वैसे प्यार सचमुच करते हो उससे, या बस वक्ती जनून है, जैसा कि आजकल हर दूसरे मर्द के भीतर देखने को मिल जाता है।‘‘
‘‘ऐसा कहकर तुम मेरी मोहब्बत की तौहीन कर रहे हो! तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकते...मैं उसे कितना प्यार करता हूं। पागलपन की हद तक चाहता हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी, लेकिन मेरी बदकिस्मती देखो कि मैं आज तक उससे रूबरू नहीं हो सका।‘‘
‘‘कमाल है यार! कभी उससे मिले नहीं फिर भी उसकी मोहब्बत का दम भर रहे हो।‘‘
‘‘ठीक समझे, उस बेचारी ने तो ताउम्र मेरी शक्ल नहीं देखी। बस मैं ही देखता रहता हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी! अजीमोशान हूर की परी...हजारों दिलों की जीनत, सब जानते हैं उसे किन्तु वो किसी को नहीं जानती।‘‘
‘‘कोई नाम भी तो होगा उस आफताब का।‘‘
‘‘है बिल्कुल उसी की तरह उसका नाम...कैटरीना कैफ।‘‘
मैंने अपना सिर पीट लिया, दिल हुआ बाल नोंचने शुरू कर दूं, बड़ी मुश्किल से स्वयं को संयत कर पाया।
‘‘कोई और नहीं मिला तुम्हें जो उससे दिल लगा बैठे, पाने की ख्वाहिश कर बैठे।‘‘
‘‘पाने की नहीं, सिर्फ चाहने की, जब दिल लगाना ही था तो भला किसी एैरी-गैरी से क्यों लगाता। आखिर में टूट जाना ही तो दिल का नसीब होता है। फिर क्यों हम आसमान को छूने का प्रयास करें...चांद से मोहब्बत का इजहार करते हुए फनां हो जाए।‘‘
‘‘भला ऐसा पागल कौन होगा?‘‘
‘‘मैं जो खड़ा हूं, तुम्हारे सामने पांच फिट साढ़े दस इंच का जीता-जागता इंसान...खैर बारी तुम्हारी है, बताओ कहां जा रहे थे ....अगर किसी कोठे पर नहीं जा रहे थे तो?‘‘
‘‘मैं...मैं तो बस यूं किसी नई कहानी की तलाश में भटक रहा था, गलती से इधर निकला, किन्तु अब तुमसे मिलने के बाद लगता है मंजिल मिल गई या फिर यूं कह लो कि मेरे भटकाव को सही दिशा मिल गई...‘‘
‘‘दयानतदारी है, जो तुम ऐसा सोचते हैं, वरना बन्दे ने तो बस अपना हाले-दिल खोल कर रखा था तुम्हारे सामने। और फिर जब यहां तक ही गये हो तो सामने किसी कोठे का फेरा लगा ही लो, यकीन मानो यहां की दुनिया बड़ी विस्फोटक है, यहां एक से बढ़कर एक कहानियां छिपी हुई हैं। बस जरूरत है पारखी निगाहों की! जो कि बेशक तुम्हारे पास है।‘‘
‘‘अरे नहीं भई, अब इस उम्र में मैं कोई कुकर्म नहीं करना चाहता। पहले ही जाने कौन से पाप किए थे, जो सिर पर लेखक बनने का भूत सवार हो गया। यह लोक तो बिगाड़ ही चुका हूं, अब वहां जाकर अपना परलोक क्यों बिगाडूं?‘‘
‘‘कुकर्म करने को कौन कहता है, बस यूं ही टहलते हुए जाओ और लौट आओ...यकीन जानो तुम्हे पछताना नहीं पड़ेगा और अगर अकेले जाने में हिचक हो रही हो तो नो-प्रॉब्लम, मैं हूं , तुम्हारेे साथ चलता हूं किसी वेश्या का इंटरव्यू लेकर आते हैं।‘‘
कहने के पश्चात वह कुछ क्षण को रुका, फिर एक लम्बी सांस खींचकर पूछ बैठा, ‘‘बोलो चलते हो?‘‘
‘‘अब आज तो संभव नहीं है!‘‘ मैं उसे टालता हुआ बोला, ‘‘आगे जब फुरसत होगी तुम्हें याद कर लूंगा।‘‘
‘‘जैसी तुम्हारी मर्जी‘‘ वह अपने दोनों कंधे उचकाता हुआ बोला, ‘‘तो मैं चलूं अब?‘‘
‘‘हां भई...जाओ।‘‘
उसके जाने के कुछ समय पश्चात तक वहीं खड़ा मैं अपना अगला कदम निर्धारित करता रहा। जो इस बात का द्योत्तक था कि उसकी बातें बेअसर नहीं गई थीं। अब मेरे सामने दो रास्ते थे-पहला रास्ता मुझे मेरे घर तक ले जाता था। दूसरा उन बदनाम कोठों की तरफ...जिधर बढ़ने से मैं बार-बार हिचक रहा था! किन्तु उसी अनुपात में मेरा दिल बार-बार मुझे उस तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था।
ऐसे ही थोडे कहा गया है कि जब नाश मनुष्य पर छाता है पहले विवके मर जाता है।
कुछ देर को ही सही, समझ लीजिए विवेक से मेरा नाता टूट चुका था।
पता नहीं किसी विस्फोटक कहानी के मिलने की संभावना ने मुझे वक्ती तौर पर लालची बना दिया था या फिर मैं सचुमुच किसी हुस्न वाली के हुस्न में डूबने को बेकरार हो चुका था! ईमानदारी से कहता हूं, मुझे नहीं मालूम की उपरोक्त कौन सी बात थी जो मुझे उस तरफ बढ़ने को प्रेरित करने लगी थी।
अलबत्ता आगे बढ़ने से पूर्व मैंने सैकड़ों बार अपने आत्मविश्वास को तौलकर देखा, फिर दृढ़ कदमों से उन बदनाम गलियों की तरफ बढ़ चला। मैं कोई सफाई नहीं दे रहा, हकीकत तो ये है कि इस वक्त मेरे मन की हालत ऐन वैसी ही थी जैसा कि हर उस व्यक्ति की होती होगी जो पहली बार किसी कोठे पर मौज-मस्ती के इरादे से गया होगा।
आखिर हर व्यक्ति के पास खुद को सही ठहराने की कोई ना कोई वजह तो होती ही है।
बहरहाल मेरे कदम उस ओर बढ़े जा रहे थे।
मन में कोई उत्साह था, किन्तु मैं हतोत्साहित भी नहीं भी नहीं था। कुछ दूर आगे जाते ही मेरी हालत ये हो गयी कि मुझे खुद को उधर की ओर धकेलना पड़ रहा था। ज्यों-ज्यों मैं आगे बढ़ता जा रहा हूं, मेरी दृढ़ता में कमी आती जा रही थी। आते-जाते लोगों को देखकर धड़कनें बढ़ती जा रही थीं। क्योंकि किसी पहचान वाले से टकरा जाने का आतंक मेरे जहन पर पूरी तरह काबिज हो चुका था। अगर कहीं कोई पहचान वाला मिल गया तो...इसतोके बारे में सोचने मात्र से मैं पसीने से तर हो गया। मेरी दशा उस चोर की भांति हो रही थी जो जीवन में पहली बार चोरी करने निकला हो और पकड़े जाने के भय से कांप रहा हो, किन्तु मैं रुका नहीं, पीछे मुड़कर देखने की आदत जो नहीं थी। बस बढ़ता रहा नाक की सीध में, बगैर दाएं-बांए देखे।
इस दौरान कई बार कदम लड़खड़ाए, दिल में हिचक उत्पन्न हुई! किन्तु इन बातों की परवाह किए बगैर मैं आगे बढ़ता गया। दोनों तरफ दुकानें थीं, जिनमें आने-जाने वालों का तांता लगा हुआ था। सड़क पर आदमियों से ज्यादा रिक्शे, ठेले और कारों की कतार...कुल मिलाकर भीड़-भाड़ जरूरत से ज्यादा थी...मेरा दिमाग कुछ इस कदर कुंद हो गया कि वहां से गुजरने वाली हर औरत बाजारू और हर मर्द उसका ग्राहक दिखाई देने लगा। अब तक शाम काफी घिर आई थी। वातावरण में धुंधलका फैलता जा रहा था। ऐसे में किसी का हाथ का स्पर्श अपने कंधों पर महसूस कर मैं बौखला सा गया। दिमाग में खतरे का बिगुल बज उठा...यकीनन कोई पहचान वाला मिल गया! मेरे रोंगटे खड़े हो गये। मन ही मन आगंतुक के संभावित प्रश्नों का जवाब तलाशते हुए, मैं उसकी तरफ घूम गया...!
थैंक्स गॉड’...मैंने राहत की सांस ली।
मेरे सामने निहायत गंदे कपड़ों में लिपटा एक अधेड़ व्यक्ति लगातार कचर-कचर पान चबा रहा था। जिसकी टपकती हुई लार ने होंठों से लेकर ठोड़ी तक एक लाल रेखा खींच दी थी। कपड़ों पर जगह-जगह लाल और काले धब्बे लगे हुए थे। इन सबसे बेखबर वह लगातार जुगाली किए जा रहा था। उसके शरीर से उठती हुई दुर्गन्ध ने पलभर में मेरा सांस लेना दूभर कर दिया, मुझे कोफ्त-सी महसूस होने लगी। फिर उसने मुंह में भरी पीक का एक तिहाई जमीन पर थूक दिया और बाकी को निगलने के पश्चात मुझे घूरने में व्यस्त हो गया, जबकि उसका एक हाथ अभी तक मेरे कंधे पर टिका हुआ था। पकड़ पहले से अधिक मजबूत थी, जाने क्यों उसकी इस प्रतिक्रिया ने मुझे भीतर तक विचलित करके रख दिया।
क्या चाहिये?‘ वह फटी आवाज में बोला, इस दौरान उसके मुख से निकलकर उछलते हुए पान की पीक के कुछ छींटे मेरी कमीज पर गिरे, मैं करता भी क्या बस कसमसा कर रह गया।
अब बोलता क्यों नहीं?‘ वह मुझे झकझोरता हुआ बोला, ‘हर तरह का माल है अपने पास, सोलह से साठ तक...सबका एकदम वाजिब रेट है, जो चाहेगा मिलेगा...बोल कैसा माल...चाहिये?‘‘
मालमैं अचकचा-सा गया, ‘‘कैसा माल?‘‘
ओय! तू माल नहीं समझता, तो फिर इधर क्या करने आया है! माल के वास्ते ही आया है ...फिर इतना भोला बन कर क्यों दिखा रहा है। मैं क्या तेरा सगे वाला हूं, जो तू साला छोकरियों की तरह शरमा रहा है? छोकरी चाहिये तो बोल, वरना फूट यहां से, धंधे का टाइम है, मुझे दूसरे ग्राहकों को भी संभालना है।‘‘
कहकर उसने मेरा कंधा छोड़ दिया।
मैं झपटकर आगे की ओर बढ़ा, किन्तु तभी कमबख्त ने हाथ पकड़कर वापिस खींच लिया।
जाने से पहले।वह पूर्ववत् जुगाली करता हुआ बोला, ‘एक बात सुनता जा, पूरे जी.बी. रोड पर तेरे को भल्लू जैसा ईमानदार दल्ला नहीं मिलेगा। अगर कोई ज्यादा पैसे मांगे तो इधर वापस आना, ग्राहक भगवान होता है...मैं तेरे को अच्छा माल दिलाऊंगा! तू मेरे को नया आदमी लगता है, इसलिए बता देता हूं...इधर साली...बहन की...कोई भी रण्डी, अगर तेरे को परेशान करे तो उसे मेरा नाम बोलना...बोलना तू भल्लू का आदमी है...समझ गया?‘‘
मैंने तत्काल सिर हिलाकर हामी भर दी। उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और इससे पहले वह दोबारा मेरा हाथ थाम लेता, मैं तकरीबन दौड़ता हुआ वहां से बच निकला। अजीब इंसान था वह, स्वयं को दल्ला बताते वक्त यूं फख्र महसूस कर रहा था, मानो कह रहा हो, ‘मैं इस देश का राष्ट्रपति हूं’...खासतौर पर ईमानदार दल्ला होना उसकी निगाहांें में खासा महत्व रखता जान पड़ता था....अलबत्ता वह कितना ईमानदार था, इसको मापने का मेरे पास कोई पैमाना नहीं था।
कुछ देर तक आगे बढ़ते रहने के पश्चात मैंने अपनी रफ्तार धीमी कर दी और एक तरफ खड़ी एक कार के बोनट की टेक लेकर दिल की बढी हुई धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करता हुआ वहां का नजारा करने लगा। किन्तु वह कोशिश भी क्षणिक साबित हुई, अभी मैं चैन की दो सांस भी नहीं ले पाया था कि तभी... एक अधेड़ औरत भूत की तरह मेरे बगल में प्रकट हुई और मुझसे एकदम सटकर खड़ी हो गई। मैं बुरी तरह हड़बड़ा उठा, किन्तु इससे पहले मैं अलग हो पाता, उसने झट मेरा बाजू पकड़ लिया।
चलेगा।‘‘
...कहां?‘ मैं एकदम से बौखला उठा।
अपनी अम्मा के पास स्साले।वह बड़े ही सहज ढंग से बोली, ‘चल के देख स्वर्ग के दर्शन ना करा दूं तो कहना...‘‘
...पैसे...कितने...लो...
जो दिल करे दे देना...चल।उसने मेरा हाथ पकड़कर झटका दिया, मैं उसके पीछे-पीछे चल पड़ा, वह बगल की गली में जा घुसी।
मुझे लेकर वो एक ऐसे कमरे में पहुंची जो एक पुराने मकान की पहली मंजिल पर बना मुर्गी के दड़बे से तनिक ही बढ़ा रहा होगा। आज के जमाने में भी उस कमरे में सौ वाॅट का बल्ब जल रहा था, जो कमरे के बाईं ओर वाली दीवार पर एक कील के सहारे लटक रहा है। बल्ब की पीली रोशनी में मैंने फौरन सिर से पांव तक उसका मुआयना कर डाला।
लम्बा छरहरा बदन, काली रंगत लिए साधारण नयन-नक्श, जिसे पाउडर के छिड़काव द्वारा सफेदी देने की कोशिश की गई थी। एक निगाह देखने पर लगता था मानो किसी ने जामुन पर नमक छिड़क दिया था। ऊपर से उसके शरीर से टपकता पसीना, ‘उफ!’ मेरा मन अजीब-सी वितृष्णा से भर उठा। रही सही कसर कमरे की अन्दरूनी साज-सज्जा ने पूरी कर दी। फर्श पर जनाना अंडर गारमेंट बिखरे पड़े थे, मालूम नहीं ये उसकी लापरवाही का नतीजा था या इसके जरिये वो ग्राहक को कोई स्पेशल ट्रीटमेंट देती थी। पास ही कूडे़ जैसा ढेर लगा था जहां इस्तेमाल किए हुए कंडोम पड़े थे।
मुझे ऊबकाई-सी आने लगी, अब वहां और खड़े रह पाना मेरे बर्दाश्त के बाहर था। इधर-उधर घूमती मेरी निगाह जब दोबारा उस पर गई तो मेरे होश उड़ गये। वह जन्मजात नंगी पलंग पर चित्त पड़ी थी। तो उसकी आंखों में कोई नशा था और ही अधरों पर कोई प्यास थी। वह तो महज एक मशीन-सी जान पड़ी मुझे, जिसे कोई भी शुरू कर सकता था और शुरू करके बंद कर सकता था।
यह मेरे लिए औरत का एकदम नया रूप था। मैंने वेश्याओं के बारे में सुन रखा था, पढ़ रखा था, किन्तु रूबरू होने का यह पहला मौका था। वह पूरी तरह अहसास रहित दिखाई दे रही थी, उसके साथ संभोग करना और किसी की लाश को भभोड़ना एक जैसा ही आनन्द दे सकता था।
उसके नग्न शरीर को देखकर मैं शर्म से गड़ा जा रहा था, किन्तु उसकी आंखों में अभी भी कोई भाव नहीं आया था।
अरे...ओय...जल्दी कर फालतू टाइम नहीं है अपने पास।‘‘
जल्दी करूं!‘ मैं आवाज सुनकर चैंक पड़ा, ‘क्या करूं?‘‘
तेरे मां की साले...क्या करने आया है यहां?‘‘
मैं...मैं।मुझे लगा मैं रो पड़ूंगा, ‘तुम्हारा नाम क्या है?‘‘
क्यों...राशनकार्ड बनवाना है?‘‘
बताने में क्या हर्ज हैं।मैं उसके जिस्म से निगाहें चुराने लगा।
कोई हर्ज नहीं, पहले तू बता, तेरी अम्मा का क्या नाम है?‘‘
...बबीता।‘‘ मैं रोआंसे स्वर में बोला।
मेरा नाम सबिता है, पहचाना नहीं मेरे लाल! रिश्ते में तेरी मौसी लगती हूं, अब फटाफट भंभोड़ और फूट यहां से।‘‘
मेरा चेहरा कनपटियों तक सूर्ख हो उठा...आसार अच्छे नहीं दिख रहे थे...मैं खून का घूंट पीकर बर्दाश्त कर गया। तभी वहां आने का अपना मकसद फिर से जहन पर काबिज हो आया। मुझे उसके अतीत में झांकना था। उसकी जिंदगी की किताब को पढ़ना था। और पढ़कर उसे पूरी दुनियां के सामने लाना था।
तुम ये सब क्यों करती हो‘‘ मैं तनिक हिचकिचाता हुआ बोला।
स्साले हराम के पिल्ले, जो करने आया है कर और फूट यहां से, अभी तेरे दूसरे बापों को भी निपटाना है।सहमकर मैंने पुनः एक नजर उसके जिस्म पर डाली, स्तनों पर घाव के स्थाई निशान दिखाई दिये, निगाह कुछ नीचे गई, तो नाभि के नीचे भी एक गहरे घाव का निशान दिखाई दिया। पैरों पर चेचक के दाग बने हुए थे। कुल मिलाकर खुदा ने बदसूरती से उसे जी खोलकर नवाजा था।
मैंने एक बार पुनः उसके जिस्म का मुआयना कर डाला और फिर खुद से प्रश्न किया कि क्या मैं उस औरत के साथ हमबिस्तर हो सकता था।
मुझे फिर से ऊबकाई सी गयी।
मैं...मैं जाता हूं।मैं सहमें स्वर में बोला, डर था कहीं वो फिर अपनी गंदी जुबान के वार करना ना शुरू कर दे।
बिना कुछ किए?‘‘
हां।‘‘
पैसे।‘‘
किस बात के?‘‘
अबे खाली-पीली मेरा टाइम खोटा किया, दिमाग में टेंशन दिया उसके पैसे। इतनी देर में मैं तेरे तीन बापों को निपटा चुकी होती। भगवान बचाए तेरे जैसे नामर्द ग्राहकों से! साले घर पे बीवी के साथ भी ऐसा ही करता है क्या? अगर हां तो बच्चे जरूर पड़ोसियों पर गये होंगे, शक्ल मिलाकर देखना।‘‘
कहकर वो बड़े ही कुत्सित ढंग से हंसी।
उसके मुंह ना लगने में ही मैंने अपनी भलाई समझी। मैंने चुपचाप उसे सौ के दो नोट पकड़ाये और गेट की तरफ बढ़ गया।
                ‘स्याला, नामर्द।पीछे से उसका घृणित स्वर सुनाई दिया, ‘छक्का कहीं का...‘ ...थू...कदाचित उसने फर्श पर थूक दिया था, मारे अपमान के मेरी आंखें भर आईं, मैं हौल-हौले सिसकते हुए सीढ़ियां उतरने लगा।


!! समाप्त !!