तलाश
-प्रशांत
्प्रशांत जी{{{।य् किसी ने पीछे से पुकारा।
मैं तत्काल उसी दिशा में पलट गया, देखा रोहित चला आ रहा है, बड़े ही तेज कदमों से लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ, मानो भगवान बामन की तरह दो ही डगों में पृथ्वी को माप लेना चाहता हो, मेरी उससे पहचान वर्षों पुरानी न होकर महज चंद दिनों पहले ही हुई थी। पहली बार हम ‘एपफ-टेक’ कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में मिले थे, तब हम दोनों ही वहां प्रोग्रामिंग वेफ कोर्स वेफ लिए पहुंचे हुए थे, आगे हमारा बैच एक ही था, जान-पहचान बढ़ती चली गई, फ्नमस्कार! लेखक महोदय।य् वह मेरे निकट पहुंच कर हांपफता हुआ बोला।
फ्नमस्कार भई।य् मैं किंचित आश्चर्य जताता हुआ बोला, फ्इधर वैफसे?य् इस पर जवाब देने की बजाय वह ठठाकर हंस पड़ा।
फ्क्या हुआ?य्
फ्अरे साहब, मैं तो हर सप्ताह यहां का पेफरा लगाता हूं, कलयुगी इंसान जो ठहरा, मगर आप...आप जैसे साधु पुरुष को इधर देखकर...यकीन जानिए मैं बहुत ही ज्यादा आश्चर्य में पड़ गया हूं। बशर्ते की अब आप ये न कह दे कि रास्ता भटक गये हैं...खैर क्या पफर्वफ पड़ता है? निश्ंिचत होकर जाइये, अब मैं तो किसी को बताने से रहा कि मैंने आपको यहां देखा था, आखिरकार चोर-चोर मौसेरे भाई, जो ठहरे, एक-दूसरे का लिहाज तो करना ही पड़ेगा।य् कहने वेफ पश्चात वह पुनः जोर-जोर से ठहावेफ लगाने लगा।
फ्क्या बात है रोहित जी, आज तो आप बड़ी उलझी-उलझी सी बातें कर रहे हैं, आपकी सभी बातें मेरे सिर वेफ ऊपर से गुजर रही हैं।य्
जवाब देने से पूर्व वह खुल कर मुस्कराये हांेठों वेफ दोनों किनारे कानों को छुते से जान पड़े, पिफर तनिक ठहर कर आंखों से मुस्वुफराते हुए बोला, फ्जनाब चोरी पकड़े जाने पर हर कोई ऐसा ही कहता है, मगर आप इत्मीनान रखिये, मैं किसी को वुफछ नहीं कहूंगा, इसलिए बेहिचक मजे मार कर आइये...।य्
फ्चोरी...।य् मैं पुनः उलझ-सा गया, फ्कहना क्या चाहते हैं आप...जरा खुलकर बताइये।य्
फ्यानी की मेरी जुुबान खुलवायें बिना नहीं मानेंगे आप।य्
फ्क्या हर्ज है, पिफर अगर भगवान ने जुबान दी है, तो खुलनी भी चाहिये। अतः बराय मेहरबानी स्पष्ट बताइये कि आप कहना क्या चाहते हैं?य्
फ्ठीक है, अगर आप नहीं मानते तो कहता हूं...सुनिए आपका दफ्रतर लाजपत नगर में है, छुट्टी का वक्त है, आप ये भी नहीं कह सकते कि दफ्रतर वेफ काम से यहां आए हैं, अब बजाए दफ्रतर से लौटकर घर जाने वेफ लिए कमला मार्वेफट की तरपफ चल पड़े। आपवेफ कदम जी.बी. रोड़ पर आ पहुंचे हैं, यह रास्ता तो किसी भी तरह आपवेफ रूट में नहीं आता और अब जबकि आप लाल बत्ती इलावेफ में दाखिल हो चुवेफ हैं, तो कोई पूजा-पाठ करने वेफ इरादे से तो आए नहीं होंगे, किसी वेश्या की आरती तो आप उतारेंगे नहीं। पिफर जाहिराना बात है कि आपको जिस्मानी प्यास यहां तक खींच लाई है। अपने हृदय वेफ सूखे मरुस्थल की प्यास शांत करने ही जा रहे होंगे आप...भई बड़े छुपे रूस्तम निकले आप।य्
फ्हे भगवान।य् मेरे मुख से आह निकल गई, फ्क्या तुम वहीं से आ रहे हो?य्
फ्लो, भला ये भी कोई पूछने वाली बात है, बताया तो था सप्ताह में एक बार इधर का पेफरा अवश्य लगाता हूं, पिफर खर्चा भी ज्यादा नहीं, हर बार तकरीबन पचास रुपये में निपट जाता है। अब मैं कोई सेठ तो हूं नहीं, जो हजारों खर्च कर ‘टॉप का माल हासिल करूं, इसलिए किसी से भी काम चला लेता हूं, पिफर सूरत देखने की जरूरत ही क्या है, जब भी वहां जाता हूं, जाने से पहले किसी सिने-अभिनेत्राी की सूरत अपने जहन में वूफट-वूफट कर भर लेता हूं...मजे मारते समय हर वक्त यही सोचता रहता हूं कि उसी अभिनेत्राी के हसीन तन के साथ ऐश कर रहा हूं सच कहता हूं बड़ा मजा आता है आप भी किसी खूबसरत बाला को दिमाग में भर लीजिए पिफर देखिए पचास रूपये के माल में भी आपको 5हजार वाला जायका ना मिल जाए तो कहना।य्
फ्लेकिन पचास रुपये...वो भला किस बात वेफ...क्या कमी है तुम्हारे अंदर?य्
फ्अरे लेखक महोदय पैसा तो उसवेफ साथ मजा करने वेफ देता हूं, बिना पैसों वेफ तो जोरू भी साथ सोने से इंकार कर देगी, वो तो पिफर वेश्या ठहरी।य्
फ्भई तुम मेरी बात समझ नहीं पाए, मेरे कहने का आशय मात्रा इतना था कि जब स्त्राी और पुरुष दोनों ही एक-दूसरे वेफ पूरक हैं, इनमें से कोई भी अवेफला रति-सुख हासिल नहीं कर सकता, पिफर बीच में पैसे की बात कहां से आ गई? यह तो आपसदारी वाला मामला हुआ, एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ से देने वाली बात हो गई। इसमें भला पैसे का क्या रोल?य्
फ्पैसा तो देना ही पड़ेगा, क्योंकि यह तो बिजनेस है उनका। इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है, किन्तु मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आज आप बाल से खाल निकालने में क्यों लगे हुए हैं। आपने ही एक कहानी में लिखा था कि वेश्यालय वह संतुष्टि स्थल है, जहां पहुंचकर बीवी से बेजार या प्रेमिका की जुदाई से छलित हृदय का कोई भी व्यक्ति तन और मन दोनों की शांति प्राप्त कर सकता है।य्
फ्लेकिन बरर्खुरदार, तुम्हें कौन-सा गम सता रहा है? प्रेमिका बिछोह या बीवी की...।य्
फ्मैं अनमैरिड हूं।य्
फ्यानी की पहली बात सही है।य्
फ्जी हां, आप अंदाजा नहीं लगा सकते...मैं उसे बेइंतहा प्यार करता हूं, पागलपन की हद तक चाहता हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी, लेकिन मेरी बदकिस्मती देखिए कि मैं आज तक उससे रूबरू नहीं हो सका।य्
फ्इकतरपफा मोहब्बत है...।य्
फ्ठीक समझा, आपने उस बेचारी ने तो ताउम्र मेरी शक्ल नहीं देखी, बस मैं ही देखता रहा हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी। अजीमोशान हूर की परी...हजारों दिलों की जीनत, सब जानते हैं, उसे किन्तु वो किसी को नहीं जानती।य्
फ्कोई नाम तो होगा उस आपफताब का।य्
फ्है न बिल्वुफल उसी की तरह उसका नाम...कैटरीना कैपफ, सिने अभिनेत्राी।य्
मैंने अपना सिर पीट लिया, दिल हुआ बाल नोंचने शुरू कर दूं, बड़ी मुश्किल से स्वयं को संयत कर पाया।
फ्कोई और नहीं मिला, तुम्हें जो उससे दिल लगा बैठे, पाने की ख्वाइश कर बैठे।य्
फ्पाने की नहीं, श्रीमान सिर्पफ चाहने की, जब दिल लगाना ही था तो भला किसी एैरी-गैरी से क्यों लगाता, आखिर में टूट जाना ही तो दिल का नसीब होता है, पिफर क्यों न हम आसमान को छूने का प्रयास करें...चांद से मोहब्बत का इजहार करते हुए पफनां हो जाए।य्
फ्भला ऐसा पागल कौन होगा?य्
फ्प्रत्यक्ष किंम् प्रमाणम्?य्
मैं हंस पड़ा।
फ्मैं जो खड़ा हूं, आपवेफ सामने पांच पिफट साढ़े दस इंच का जीता-जागता इंसान...खैर बारी आपकी है, बताइये कहां जा रहे थे आप...अगर किसी कोठे पर नहीं जा रहे थे तो?य्
फ्मैं...मैं तो बस यूं किसी नई कहानी की तलाश में भटक रहा हूं, किन्तु अब तुमसे मिलने वेफ बाद लगता है, मंजिल मिल गई या पिफर यू कह लो कि मेरे भटकाव को ही दिशा मिल गई...।य्
फ्दयानतदारी है, जो आप ऐसा सोचते हैं, वरना बन्दे ने तो अपना हाले-दिल खोल कर रख दिया आपवेफ सामने, किन्तु अब एक गुजारिश अवश्य करना चाहूंगा...जब यहां तक आ ही गये हैं, तो सामने किसी कोठे का पेफरा अवश्य लगाएं, यकीन मानिए, ये दुनिया बड़ी विस्पफोटक है, यहां एक से बढ़कर एक कहानियां छिपी हुई हैं, बस पारखी निगाह की जरूरत है, आप यकीनन सपफल होकर लौटेंगे।य्
फ्अरे नहीं भई, अब मैं कोई वुफवफर्म नहीं करना चाहता, पहले ही जाने कौन से पाप किए थे, जा ेसिर पर लेखक बनने का भूत सवार हो गया, यह लोक तो बिगाड़ ही चुका हूं, अब वहां जाकर अपना परलोक क्यों बिगाडूं?य्
फ्वुफकर्म करने को कौन कहता है, बस यूं ही टहलते हुए जाइये और लौट आइये...यकीन जानिए आपको पछताना नहीं पड़ेगा और अगर अवेफले जाने में हिचक हो रही हो तो नो-प्रॉब्लम, मैं हूं न, आपवेफ साथ चलता हूं।य्
कहने वेफ पश्चात वह वुफछ क्षण को रुका, पिफर एक लम्बी सांस खींचकर पूछ बैठा, फ्कहिये चलते हैं?य्
फ्अब आज तो संभव नहीं है, मैं उसे टालता हुआ बोला, आगे जब पुफरसत होगी तुम्हें याद कर लूंगा।य्
फ्जैसी आपकी मर्जी,य् वह अपने दोनों वंफधे उचकाता हुआ बोला, फ्तो मैं चलूं अब?य्
फ्हां भई...चलो।य्
उसवेफ जाने वेफ वुफछ समय पश्चात तक वहीं खड़ा मैं अपना अगला कदम निर्धारित करता रहा, जो इस बात का द्योत्तक था कि उसकी बातें बेअसर नहीं थी, अब मेरे समक्ष दो रास्ते थेµपहला रास्ता मुझे मेरे घर तक ले जाता था। दूसरा उन बदनाम कोठों की तरपफ...जिधर बढ़ने में मैं बार-बार हिचक रहा था, किन्तु उसी अनुपात में मेरा दिल बार-बार मुझे उस तरपफ बढ़ने वेफ लिए प्रेरित कर रहा था।
पिफर किसी विस्पफोटक कहानी वेफ मिलने की संभावित वजह ने मुझे वक्ती तौर पर लालची बना दिया, किन्तु उधर बढ़ने से पूर्व मैंने सैकड़ों बार अपने आत्मविश्वास को तौलकर देखा, पिफर दृढ़ कदमों से उस नरक वुफण्ड की तरपफ बढ़ चला। मन में कोई उत्साह न था, किन्तु मैं हतोत्साहित भी नहीं भी नहीं था, मैं पूर्ववत सामान्य बना हुआ था। अलबत्ता अपनी काया को उस तरपफ धवेफलने का कार्य मैं अवश्य कर रहा था, किन्तु ज्यों-ज्यों मैं आगे बढ़ता जा रहा हूं, मेरी दृढ़ता में कमी आती जा रही है, आते-जाते लोगों को देखकर धड़कनें बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि किसी पहचान वाले से टकरा जाने का आतंक मेरे जहन में पूरी तरह काबिज हो चका है। अगर कहीं कोई पहचान वाला मिल गया तो...इस ‘तो’ वेफ बारे में सोचने मात्रा से मैं पसीने से तर हो गया, मेरी दशा उस चोर की भांति हो रही थी जो जीवन में पहली बार चोरी करने निकला हो और पकड़े जाने वेफ भय से कांप रहा हो, किन्तु मैं रुका नहीं, पीछे मुड़कर देखने की आदत जो नहीं है, बस बढ़ता रहा नाक की सीध में, बगैर दाएं-बांए देखे।
इस दौरान कई बार कदम लड़खड़ाए, दिल में हिचक उत्पन्न हुई, किन्तु इन बातों की परवाह किए बगैर मैं आगे बढ़ता गया, दोनों तरपफ दुकानें थीं, जिनमें आने-जाने वालों का तांता लगा हुआ था, सड़क पर आदमियों से ज्यादा रिक्शे, ठेले और कारों की कतार...वुफल मिलाकर भीड़-भाड़ जरूरत से ज्यादा थी...मेरा दिमाग वुफछ इस कदर वुंफद हो गया कि वहां से गुजरने वाली हर औरत बाजारू और हर मर्द उनका ग्राहक दिखाई देने लगा, शाम कापफी घिर आई थी, वातावरण में धुंधलका पैफलता जा रहा था, ऐसे में किसी का हाथ अपने वंफधों पर स्पर्श महसूस कर मैं चौक उठा, दिमाग में खतरे का बिगुल बज उठा...यकीनन कोई पहचान वाला मिल गया, मेरे रोंगटे खड़े हो गये, मन ही मन आगंतुक वेफ संभावित प्रश्नों का जवाब तलाशते हुए, मैं उसकी तरपफ घूम गया...‘थैंक्स गॉड’...मैंने राहत की सांस ली। मेरे समक्ष निहायत गंदे कपड़ों में लिपटा एक अधेड़ व्यक्ति लगातार कचर-कचर पान चबा रहा है, जिसकी टपकती हुई लार ने होंठों से लेकर ठोड़ी तक एक लाल रेखा खींच दी थी। कपड़ों पर जगह-जगह लाल धब्बे लगे हुए थे, इन सबसे बेखबर वह लगातार जुगाली किए जा रहा था, उसवेफ शरीर से उठती हुई दुर्गन्ध ने मेरा सांस लेना दूभर कर दिया, मुझे कोफ्रत-सी महसूस होने लगी, वुफछ क्षण पश्चात उसने मुंह में भरी पीक का एक तिहाई जमीन पर थूक दिया और बाकी को निगलने वेफ पश्चात मुझे घूरने में व्यस्त हो गया, जबकि उसका एक हाथ अभी तक मेरे वंफधे पर टिका हुआ था, पकड़ पहले से अधिक मजबूत थी, जाने क्यों उसकी इस प्रतिक्रिया ने मुझे भीतर तक विचलित करवेफ रख दिया।
फ्क्या चाहिये?य् वह पफटी आवाज में बोला, इस दौरान उसवेफ मूख से निकलकर उछलते हुए पान की पीक वेफ वुफछ छींटे मेरी कमीज पर आ गिरे, मैं करता भी क्या बस कसमसा कर रह गया।
फ्अब बोलता क्यों नहीं?य् वह मुझे झकझोरता हुआ बोला, फ्हर तरह का माल है, अपने पास, सोलह से साठ तक...सबका एकदम वाजिब रेट है, जो चाहेगा मिलेगा...बोल वैफसा माल...चाहिये?य्
मालय् मैं अचकचा-सा गया, वैसा माल?य्
फ्ओय! तू माल नहीं समझता, तो पिफर इधर काहे को आया है, माल वेफ वास्ते ही आया है न...पिफर इतना बावला बन कर क्यों दिखा रहा है, मैं क्या तेरा सगे वाला हूं, जो तू साला छोकरियों की तरह शरमा रहा है? छोकरी चाहिये तो बोल, वरना पूफट यहां से, धंधे का टाइम हे, मुझे दूसरे ग्राहकों को संभालना है।य्
उसने मेरा वंफधा छोड़ दिया।
मैं झपटकर आगे बढ़ा, किन्तु तभी कमबख्त ने हाथ पकड़कर खींच लिया।
फ्जाने से पहले।य् वह पूर्ववत जुगाली करता हुआ बोला, फ्एक बात सुनता जा, पूरे जी.बी. रोड पर तेरे को भल्लू जैसा ईमानदार दल्ला नहीं मिलेगा, अगर कोई ज्यादा पैसे मांगे तो इधर वापस आना, ग्राहक भगवान होता है...मैं तेरे को अच्छा माल दिलाऊंगा...तू मेरे को नया आदमी लगता है, इसलिए बता देता हूं...इधर साली...बहन की...कोई भी रण्डी, अगर तेरे को परेशान करे तो उसे मेरा नाम बोलना...बोलना तू भल्लू का आदमी है...समझ गया?य्
मैंने तत्काल हां में सिर हिला दिया। उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और इससे पहले वह दोबारा मेरा हाथ थाम लेता, मैं तकरीबन दौड़ता हुआ वहां से बच निकला। अजीब इंसान था वह, स्वयं को दल्ला बताते वक्त यूं पफख्र महसूस कर रहा था, मानो कह रहा हो, ‘मैं इस देश का राष्ट्रपति हूं’...खासतौर पर ईमानदार दल्ला होना उसकी निगाहांें में खासा महत्व रखता जान पड़ता था....अलबत्ता वह कितना ईमानदार था, इसको मापने का मेरे पास कोई तरीका नहीं था।
वुफछ देर तक आगे बढ़ते रहने वेफ पश्चात मैंने अपनी रफ्रतार धीमी कर दी और एक तरपफ खड़ी कार वेफ बम्पर का टेक लेकर शांति से खड़ा हो, वहां का नजारा करने लगा, किन्तु वह शांति क्षणिक साबित हुई, अभी मैं चैन की दो सांस भी नहीं ले पाया था कि तभी... एक अधेड़ औरत भूत की तरह मेरे बगल में प्रकट हुई और मुझसे एकदम सटकर खड़ी हो गई, मैं बुरी तरह हड़बड़ा उठा, किन्तु इससे पहले मैं अलग हो पाता, उसने झट मेरा बाजू पकड़ लिया।
फ्चलता है क्या...?य्
कहने का अन्दाज यूं था मानो कहना चाहती हो फ्चलती है क्या खण्डाला?य्
फ्क...कहां?य् मैं एकदम से अनमिल हो उठा।
फ्अपनी अम्मा वेफ पास साले।य् वह बड़े ही सहज ढंग से बोली, फ्चल कर तो देख स्वर्ग वेफ दर्शन न करा दूं तो कहना...।य्
फ्प...पैसे...कितने...लो...।य्
फ्जो दिल करे दे देना...चल।य् उसने मेरा हाथ पकड़कर झटका दिया, मैं उसवेफ पीछे-पीछे चल पड़ा, वह बगल की गली में जा घुसी।
यह कमरा एक पुराने खंडहरनुमा मकान की पहली मंजिल पर बना मुर्गी वेफ दड़बे जैसा है, यहां रोशनी का एक मात्रा साधन, वह सौ वाट का बल्ब है, जो कमरे वेफ बाईं ओर वाली दीवार पर एक कील वेफ सहारे लटक रहा है। बल्ब की पीली रोशनी में मैंने पफौरन सिर से पांव तक उसका मुआयना कर डाला। लम्बा छरहरा बदन, काली रंगत लिए साधारण नयन-नक्श, जिसे पाउडर वेफ छिड़काव द्वारा सपेफदी देने की कोशिश की गई है, किन्तु एक निगाह देखने पर लगता था मानो किसी ने जामुन पर नमक छिड़क दिया था, ऊपर से उसवेफ शरीर से टपकता पसीना, ‘उपफ!’ मेरा मन अजीब-सी वितृष्णा से भर उठा। रही सही कसर कमरे की अन्दरूनी साज-सज्जा ने पूरी कर दी, पफर्श पर जनाना कपड़े बिखरे पड़े थे, कहीं ब्रा तो कहीं पैंण्टी तो कहीं पेटीकोट और ब्लाऊज यहां तक की खून सने रोल किये हुए कपड़े भी, वहां मौजूद थे। एक तरपफ डस्टबीननुमा टोकरी पड़ी है, जिसवेफ भीतर वुफछ इस्तेमाल किए हुए ‘निरोध’ और बाहर पैफले कपड़ों वेफ रोल जैसे वुफछ बण्डल पड़े हुए हैं। मुझे ऊबकाई-सी आने लगी, अब वहां और खड़े रह पाना मेरे बर्दाश्त वेफ बाहर था, इधर-उधर घूमती मेरी निगाह जब पुनः उस पर पड़ी तो मेरे होश उड़ गये। वह मादा जात नंगी पलंग पर चित्त पड़ी थी, न तो उसकी आंखों में कोई नशा था और न ही अधरों पर कोई प्यास थी, वह तो महज एक मशीन-सी जान पड़ी मुझे, जिसे कोई भी शुरू कर सकता था, यह मेरे लिए औरत का एकदम नया रूप था, मैंने वेश्याओं वेफ बारे में सुन रखा था, पढ़ रखा था, किन्तु रूबरू होने का यह पहला मौका था, वह पूरी तरह अहसास रहित दिखाई दे रही थी, उसवेफ साथ संभोग करना किसी लाश वेफ साथ संभोग करने जैसा ही आनन्द दे सकता है, उसवेफ नग्न शरीर को देखकर मैं शर्म से गड़ा जा रहा था, किन्तु उसकी आंखों में अभी भी कोई भाव नहीं आया था।
फ्अरे...ओय...जल्दी कर पफालतू टाइम नहीं है अपने पास।य्
फ्जल्दी करूं!य् मैं आवाज सुनकर चौंक पड़ा, फ्क्या करूं?य्
फ्तेरे मां की साले...क्या करने आया है यहां?य्
फ्मैं...मैं।य् मुझे लगा मैं रो पड़ूंगा, फ्तुम्हारा नाम क्या है?य्
फ्क्यों...शादी करेगा मुझसे?य्
फ्बताने में क्या हर्ज हैं।’ मैं उसवेफ जिस्म से निगाहें चुराने लगा।
फ्कोई हर्ज नहीं, पहले तू बता, तेरी अम्मा का क्या नाम है?य्
फ्ब...बबीता।य्
फ्मेरा नाम कविता है, रिश्ते में तेरी मौसी लगती हूं, अब पफटापफट भंभोड़ और पूफट यहां से।य्
मेरा चेहरा कनपटियों तक सूर्ख हो उठा...आसार अच्छे नहीं दिख रहे थे...मैं खून का घूंट पीकर बर्दाश्त कर गया।
फ्तुम ये सब क्यों करती हो?य्
फ्स्याले हराम वेफ पिल्ले, जो करने आया है कर और पूूफट यहां से, अभी तेरे दूसरे बापों को भी निपटाना है।य् सहमकर मैंने पुनः एक नजर उसवेफ जिस्म पर डाली, स्तनों पर घाव वेफ स्थाई निशान दिखाई दिये, निगाह वुफछ नीचे गई, तो नाभि वेफ नीचे भी एक गहरे घाव का निशान दिखाई दिया। पैरों पर चेचक वेफ दाग बने हुए थे।
मुझे पुनः ऊबकाई आने लगी।
फ्मैं...मैं जाता हूं।
फ्बिना वुफछ किए?य्
फ्हां।य्
फ्पैसे।य्
फ्किस बात वेफ?य्
फ्अबे खाली-पीली मेरा टाइम खोटा किया, दिमाग में टेंशन दिया उसवेफ पैसे। इतनी देर में कोई दूेसरा मुझे भभोड़कर जा चुका होता, भगवान बचाए तेरे जैसे नामर्द ग्राहकों से, साले घर पे बीवी के साथ भी ऐसा ही करता है क्या, अगर हां तो बच्चों से शक्ल पड़ोसियों से मिलाकर देखना कहीं मिलती तो नहीं हैय्
उसके मुंह ना लगने में ही मैंने अपनी भलाई समझी। मैंने चुपचाप उसे सौ का एक नोट पकड़ाया और गेट की तरपफ बढ़ गया।
फ्स्याला, हरामजादा।य् पीछे से उसका घृणित स्वर सुनाई दिया, फ्छक्का कहीं का...य् आक्-थू...कदाचित उसने पफर्श पर थूक दिया था, मारे अपमान वेफ मेरी आंखें भर आईं, मैं हिचकियां लेते हुए सीढ़ियां उतरने लगा।
-प्रशांत
अक्सर ऐसा होता है कि हमारा मन किसी दलदल में पंफसे हुए व्यक्ति वेफ लिए सहानुभूति से भर उठता है, क्योंकि हमें लगता है कि वह मजबूरी का मारा हुआ है, किन्तु अगर हकीकत इसवेफ विपरीत निकले तो...।
्पाने की नहीं, श्रीमान सिर्पफ चाहने की, जब दिल लगाना ही था तो भला किसी एैरी-गैरी से क्यों लगाता, आखिर में टूट जाना ही तो दिल का नसीब होता है, पिफर क्यों न हम आसमान को छूने का प्रयास करें...चांद से मोहब्बत का इजहार करते हुए पफनां हो जाए।
लम्बा छरहरा बदन, काली रंगत लिए साधारण नयन-नक्श, जिसे पाउडर वेफ छिड़काव द्वारा सपेफदी देने की कोशिश की गई है, किन्तु एक निगाह देखने पर लगता था मानो किसी ने जामुन पर नमक छिड़क दिया था, ऊपर से उसवेफ शरीर से टपकता पसीना, ‘उपफ!’ मेरा मन अजीब-सी वितृष्णा से भर उठा।्प्रशांत जी{{{।य् किसी ने पीछे से पुकारा।
मैं तत्काल उसी दिशा में पलट गया, देखा रोहित चला आ रहा है, बड़े ही तेज कदमों से लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ, मानो भगवान बामन की तरह दो ही डगों में पृथ्वी को माप लेना चाहता हो, मेरी उससे पहचान वर्षों पुरानी न होकर महज चंद दिनों पहले ही हुई थी। पहली बार हम ‘एपफ-टेक’ कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में मिले थे, तब हम दोनों ही वहां प्रोग्रामिंग वेफ कोर्स वेफ लिए पहुंचे हुए थे, आगे हमारा बैच एक ही था, जान-पहचान बढ़ती चली गई, फ्नमस्कार! लेखक महोदय।य् वह मेरे निकट पहुंच कर हांपफता हुआ बोला।
फ्नमस्कार भई।य् मैं किंचित आश्चर्य जताता हुआ बोला, फ्इधर वैफसे?य् इस पर जवाब देने की बजाय वह ठठाकर हंस पड़ा।
फ्क्या हुआ?य्
फ्अरे साहब, मैं तो हर सप्ताह यहां का पेफरा लगाता हूं, कलयुगी इंसान जो ठहरा, मगर आप...आप जैसे साधु पुरुष को इधर देखकर...यकीन जानिए मैं बहुत ही ज्यादा आश्चर्य में पड़ गया हूं। बशर्ते की अब आप ये न कह दे कि रास्ता भटक गये हैं...खैर क्या पफर्वफ पड़ता है? निश्ंिचत होकर जाइये, अब मैं तो किसी को बताने से रहा कि मैंने आपको यहां देखा था, आखिरकार चोर-चोर मौसेरे भाई, जो ठहरे, एक-दूसरे का लिहाज तो करना ही पड़ेगा।य् कहने वेफ पश्चात वह पुनः जोर-जोर से ठहावेफ लगाने लगा।
फ्क्या बात है रोहित जी, आज तो आप बड़ी उलझी-उलझी सी बातें कर रहे हैं, आपकी सभी बातें मेरे सिर वेफ ऊपर से गुजर रही हैं।य्
जवाब देने से पूर्व वह खुल कर मुस्कराये हांेठों वेफ दोनों किनारे कानों को छुते से जान पड़े, पिफर तनिक ठहर कर आंखों से मुस्वुफराते हुए बोला, फ्जनाब चोरी पकड़े जाने पर हर कोई ऐसा ही कहता है, मगर आप इत्मीनान रखिये, मैं किसी को वुफछ नहीं कहूंगा, इसलिए बेहिचक मजे मार कर आइये...।य्
फ्चोरी...।य् मैं पुनः उलझ-सा गया, फ्कहना क्या चाहते हैं आप...जरा खुलकर बताइये।य्
फ्यानी की मेरी जुुबान खुलवायें बिना नहीं मानेंगे आप।य्
फ्क्या हर्ज है, पिफर अगर भगवान ने जुबान दी है, तो खुलनी भी चाहिये। अतः बराय मेहरबानी स्पष्ट बताइये कि आप कहना क्या चाहते हैं?य्
फ्ठीक है, अगर आप नहीं मानते तो कहता हूं...सुनिए आपका दफ्रतर लाजपत नगर में है, छुट्टी का वक्त है, आप ये भी नहीं कह सकते कि दफ्रतर वेफ काम से यहां आए हैं, अब बजाए दफ्रतर से लौटकर घर जाने वेफ लिए कमला मार्वेफट की तरपफ चल पड़े। आपवेफ कदम जी.बी. रोड़ पर आ पहुंचे हैं, यह रास्ता तो किसी भी तरह आपवेफ रूट में नहीं आता और अब जबकि आप लाल बत्ती इलावेफ में दाखिल हो चुवेफ हैं, तो कोई पूजा-पाठ करने वेफ इरादे से तो आए नहीं होंगे, किसी वेश्या की आरती तो आप उतारेंगे नहीं। पिफर जाहिराना बात है कि आपको जिस्मानी प्यास यहां तक खींच लाई है। अपने हृदय वेफ सूखे मरुस्थल की प्यास शांत करने ही जा रहे होंगे आप...भई बड़े छुपे रूस्तम निकले आप।य्
फ्हे भगवान।य् मेरे मुख से आह निकल गई, फ्क्या तुम वहीं से आ रहे हो?य्
फ्लो, भला ये भी कोई पूछने वाली बात है, बताया तो था सप्ताह में एक बार इधर का पेफरा अवश्य लगाता हूं, पिफर खर्चा भी ज्यादा नहीं, हर बार तकरीबन पचास रुपये में निपट जाता है। अब मैं कोई सेठ तो हूं नहीं, जो हजारों खर्च कर ‘टॉप का माल हासिल करूं, इसलिए किसी से भी काम चला लेता हूं, पिफर सूरत देखने की जरूरत ही क्या है, जब भी वहां जाता हूं, जाने से पहले किसी सिने-अभिनेत्राी की सूरत अपने जहन में वूफट-वूफट कर भर लेता हूं...मजे मारते समय हर वक्त यही सोचता रहता हूं कि उसी अभिनेत्राी के हसीन तन के साथ ऐश कर रहा हूं सच कहता हूं बड़ा मजा आता है आप भी किसी खूबसरत बाला को दिमाग में भर लीजिए पिफर देखिए पचास रूपये के माल में भी आपको 5हजार वाला जायका ना मिल जाए तो कहना।य्
फ्लेकिन पचास रुपये...वो भला किस बात वेफ...क्या कमी है तुम्हारे अंदर?य्
फ्अरे लेखक महोदय पैसा तो उसवेफ साथ मजा करने वेफ देता हूं, बिना पैसों वेफ तो जोरू भी साथ सोने से इंकार कर देगी, वो तो पिफर वेश्या ठहरी।य्
फ्भई तुम मेरी बात समझ नहीं पाए, मेरे कहने का आशय मात्रा इतना था कि जब स्त्राी और पुरुष दोनों ही एक-दूसरे वेफ पूरक हैं, इनमें से कोई भी अवेफला रति-सुख हासिल नहीं कर सकता, पिफर बीच में पैसे की बात कहां से आ गई? यह तो आपसदारी वाला मामला हुआ, एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ से देने वाली बात हो गई। इसमें भला पैसे का क्या रोल?य्
फ्पैसा तो देना ही पड़ेगा, क्योंकि यह तो बिजनेस है उनका। इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है, किन्तु मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आज आप बाल से खाल निकालने में क्यों लगे हुए हैं। आपने ही एक कहानी में लिखा था कि वेश्यालय वह संतुष्टि स्थल है, जहां पहुंचकर बीवी से बेजार या प्रेमिका की जुदाई से छलित हृदय का कोई भी व्यक्ति तन और मन दोनों की शांति प्राप्त कर सकता है।य्
फ्लेकिन बरर्खुरदार, तुम्हें कौन-सा गम सता रहा है? प्रेमिका बिछोह या बीवी की...।य्
फ्मैं अनमैरिड हूं।य्
फ्यानी की पहली बात सही है।य्
फ्जी हां, आप अंदाजा नहीं लगा सकते...मैं उसे बेइंतहा प्यार करता हूं, पागलपन की हद तक चाहता हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी, लेकिन मेरी बदकिस्मती देखिए कि मैं आज तक उससे रूबरू नहीं हो सका।य्
फ्इकतरपफा मोहब्बत है...।य्
फ्ठीक समझा, आपने उस बेचारी ने तो ताउम्र मेरी शक्ल नहीं देखी, बस मैं ही देखता रहा हूं उसे...क्या करूं वो है ही ऐसी। अजीमोशान हूर की परी...हजारों दिलों की जीनत, सब जानते हैं, उसे किन्तु वो किसी को नहीं जानती।य्
फ्कोई नाम तो होगा उस आपफताब का।य्
फ्है न बिल्वुफल उसी की तरह उसका नाम...कैटरीना कैपफ, सिने अभिनेत्राी।य्
मैंने अपना सिर पीट लिया, दिल हुआ बाल नोंचने शुरू कर दूं, बड़ी मुश्किल से स्वयं को संयत कर पाया।
फ्कोई और नहीं मिला, तुम्हें जो उससे दिल लगा बैठे, पाने की ख्वाइश कर बैठे।य्
फ्पाने की नहीं, श्रीमान सिर्पफ चाहने की, जब दिल लगाना ही था तो भला किसी एैरी-गैरी से क्यों लगाता, आखिर में टूट जाना ही तो दिल का नसीब होता है, पिफर क्यों न हम आसमान को छूने का प्रयास करें...चांद से मोहब्बत का इजहार करते हुए पफनां हो जाए।य्
फ्भला ऐसा पागल कौन होगा?य्
फ्प्रत्यक्ष किंम् प्रमाणम्?य्
मैं हंस पड़ा।
फ्मैं जो खड़ा हूं, आपवेफ सामने पांच पिफट साढ़े दस इंच का जीता-जागता इंसान...खैर बारी आपकी है, बताइये कहां जा रहे थे आप...अगर किसी कोठे पर नहीं जा रहे थे तो?य्
फ्मैं...मैं तो बस यूं किसी नई कहानी की तलाश में भटक रहा हूं, किन्तु अब तुमसे मिलने वेफ बाद लगता है, मंजिल मिल गई या पिफर यू कह लो कि मेरे भटकाव को ही दिशा मिल गई...।य्
फ्दयानतदारी है, जो आप ऐसा सोचते हैं, वरना बन्दे ने तो अपना हाले-दिल खोल कर रख दिया आपवेफ सामने, किन्तु अब एक गुजारिश अवश्य करना चाहूंगा...जब यहां तक आ ही गये हैं, तो सामने किसी कोठे का पेफरा अवश्य लगाएं, यकीन मानिए, ये दुनिया बड़ी विस्पफोटक है, यहां एक से बढ़कर एक कहानियां छिपी हुई हैं, बस पारखी निगाह की जरूरत है, आप यकीनन सपफल होकर लौटेंगे।य्
फ्अरे नहीं भई, अब मैं कोई वुफवफर्म नहीं करना चाहता, पहले ही जाने कौन से पाप किए थे, जा ेसिर पर लेखक बनने का भूत सवार हो गया, यह लोक तो बिगाड़ ही चुका हूं, अब वहां जाकर अपना परलोक क्यों बिगाडूं?य्
फ्वुफकर्म करने को कौन कहता है, बस यूं ही टहलते हुए जाइये और लौट आइये...यकीन जानिए आपको पछताना नहीं पड़ेगा और अगर अवेफले जाने में हिचक हो रही हो तो नो-प्रॉब्लम, मैं हूं न, आपवेफ साथ चलता हूं।य्
कहने वेफ पश्चात वह वुफछ क्षण को रुका, पिफर एक लम्बी सांस खींचकर पूछ बैठा, फ्कहिये चलते हैं?य्
फ्अब आज तो संभव नहीं है, मैं उसे टालता हुआ बोला, आगे जब पुफरसत होगी तुम्हें याद कर लूंगा।य्
फ्जैसी आपकी मर्जी,य् वह अपने दोनों वंफधे उचकाता हुआ बोला, फ्तो मैं चलूं अब?य्
फ्हां भई...चलो।य्
उसवेफ जाने वेफ वुफछ समय पश्चात तक वहीं खड़ा मैं अपना अगला कदम निर्धारित करता रहा, जो इस बात का द्योत्तक था कि उसकी बातें बेअसर नहीं थी, अब मेरे समक्ष दो रास्ते थेµपहला रास्ता मुझे मेरे घर तक ले जाता था। दूसरा उन बदनाम कोठों की तरपफ...जिधर बढ़ने में मैं बार-बार हिचक रहा था, किन्तु उसी अनुपात में मेरा दिल बार-बार मुझे उस तरपफ बढ़ने वेफ लिए प्रेरित कर रहा था।
पिफर किसी विस्पफोटक कहानी वेफ मिलने की संभावित वजह ने मुझे वक्ती तौर पर लालची बना दिया, किन्तु उधर बढ़ने से पूर्व मैंने सैकड़ों बार अपने आत्मविश्वास को तौलकर देखा, पिफर दृढ़ कदमों से उस नरक वुफण्ड की तरपफ बढ़ चला। मन में कोई उत्साह न था, किन्तु मैं हतोत्साहित भी नहीं भी नहीं था, मैं पूर्ववत सामान्य बना हुआ था। अलबत्ता अपनी काया को उस तरपफ धवेफलने का कार्य मैं अवश्य कर रहा था, किन्तु ज्यों-ज्यों मैं आगे बढ़ता जा रहा हूं, मेरी दृढ़ता में कमी आती जा रही है, आते-जाते लोगों को देखकर धड़कनें बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि किसी पहचान वाले से टकरा जाने का आतंक मेरे जहन में पूरी तरह काबिज हो चका है। अगर कहीं कोई पहचान वाला मिल गया तो...इस ‘तो’ वेफ बारे में सोचने मात्रा से मैं पसीने से तर हो गया, मेरी दशा उस चोर की भांति हो रही थी जो जीवन में पहली बार चोरी करने निकला हो और पकड़े जाने वेफ भय से कांप रहा हो, किन्तु मैं रुका नहीं, पीछे मुड़कर देखने की आदत जो नहीं है, बस बढ़ता रहा नाक की सीध में, बगैर दाएं-बांए देखे।
इस दौरान कई बार कदम लड़खड़ाए, दिल में हिचक उत्पन्न हुई, किन्तु इन बातों की परवाह किए बगैर मैं आगे बढ़ता गया, दोनों तरपफ दुकानें थीं, जिनमें आने-जाने वालों का तांता लगा हुआ था, सड़क पर आदमियों से ज्यादा रिक्शे, ठेले और कारों की कतार...वुफल मिलाकर भीड़-भाड़ जरूरत से ज्यादा थी...मेरा दिमाग वुफछ इस कदर वुंफद हो गया कि वहां से गुजरने वाली हर औरत बाजारू और हर मर्द उनका ग्राहक दिखाई देने लगा, शाम कापफी घिर आई थी, वातावरण में धुंधलका पैफलता जा रहा था, ऐसे में किसी का हाथ अपने वंफधों पर स्पर्श महसूस कर मैं चौक उठा, दिमाग में खतरे का बिगुल बज उठा...यकीनन कोई पहचान वाला मिल गया, मेरे रोंगटे खड़े हो गये, मन ही मन आगंतुक वेफ संभावित प्रश्नों का जवाब तलाशते हुए, मैं उसकी तरपफ घूम गया...‘थैंक्स गॉड’...मैंने राहत की सांस ली। मेरे समक्ष निहायत गंदे कपड़ों में लिपटा एक अधेड़ व्यक्ति लगातार कचर-कचर पान चबा रहा है, जिसकी टपकती हुई लार ने होंठों से लेकर ठोड़ी तक एक लाल रेखा खींच दी थी। कपड़ों पर जगह-जगह लाल धब्बे लगे हुए थे, इन सबसे बेखबर वह लगातार जुगाली किए जा रहा था, उसवेफ शरीर से उठती हुई दुर्गन्ध ने मेरा सांस लेना दूभर कर दिया, मुझे कोफ्रत-सी महसूस होने लगी, वुफछ क्षण पश्चात उसने मुंह में भरी पीक का एक तिहाई जमीन पर थूक दिया और बाकी को निगलने वेफ पश्चात मुझे घूरने में व्यस्त हो गया, जबकि उसका एक हाथ अभी तक मेरे वंफधे पर टिका हुआ था, पकड़ पहले से अधिक मजबूत थी, जाने क्यों उसकी इस प्रतिक्रिया ने मुझे भीतर तक विचलित करवेफ रख दिया।
फ्क्या चाहिये?य् वह पफटी आवाज में बोला, इस दौरान उसवेफ मूख से निकलकर उछलते हुए पान की पीक वेफ वुफछ छींटे मेरी कमीज पर आ गिरे, मैं करता भी क्या बस कसमसा कर रह गया।
फ्अब बोलता क्यों नहीं?य् वह मुझे झकझोरता हुआ बोला, फ्हर तरह का माल है, अपने पास, सोलह से साठ तक...सबका एकदम वाजिब रेट है, जो चाहेगा मिलेगा...बोल वैफसा माल...चाहिये?य्
मालय् मैं अचकचा-सा गया, वैसा माल?य्
फ्ओय! तू माल नहीं समझता, तो पिफर इधर काहे को आया है, माल वेफ वास्ते ही आया है न...पिफर इतना बावला बन कर क्यों दिखा रहा है, मैं क्या तेरा सगे वाला हूं, जो तू साला छोकरियों की तरह शरमा रहा है? छोकरी चाहिये तो बोल, वरना पूफट यहां से, धंधे का टाइम हे, मुझे दूसरे ग्राहकों को संभालना है।य्
उसने मेरा वंफधा छोड़ दिया।
मैं झपटकर आगे बढ़ा, किन्तु तभी कमबख्त ने हाथ पकड़कर खींच लिया।
फ्जाने से पहले।य् वह पूर्ववत जुगाली करता हुआ बोला, फ्एक बात सुनता जा, पूरे जी.बी. रोड पर तेरे को भल्लू जैसा ईमानदार दल्ला नहीं मिलेगा, अगर कोई ज्यादा पैसे मांगे तो इधर वापस आना, ग्राहक भगवान होता है...मैं तेरे को अच्छा माल दिलाऊंगा...तू मेरे को नया आदमी लगता है, इसलिए बता देता हूं...इधर साली...बहन की...कोई भी रण्डी, अगर तेरे को परेशान करे तो उसे मेरा नाम बोलना...बोलना तू भल्लू का आदमी है...समझ गया?य्
मैंने तत्काल हां में सिर हिला दिया। उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और इससे पहले वह दोबारा मेरा हाथ थाम लेता, मैं तकरीबन दौड़ता हुआ वहां से बच निकला। अजीब इंसान था वह, स्वयं को दल्ला बताते वक्त यूं पफख्र महसूस कर रहा था, मानो कह रहा हो, ‘मैं इस देश का राष्ट्रपति हूं’...खासतौर पर ईमानदार दल्ला होना उसकी निगाहांें में खासा महत्व रखता जान पड़ता था....अलबत्ता वह कितना ईमानदार था, इसको मापने का मेरे पास कोई तरीका नहीं था।
वुफछ देर तक आगे बढ़ते रहने वेफ पश्चात मैंने अपनी रफ्रतार धीमी कर दी और एक तरपफ खड़ी कार वेफ बम्पर का टेक लेकर शांति से खड़ा हो, वहां का नजारा करने लगा, किन्तु वह शांति क्षणिक साबित हुई, अभी मैं चैन की दो सांस भी नहीं ले पाया था कि तभी... एक अधेड़ औरत भूत की तरह मेरे बगल में प्रकट हुई और मुझसे एकदम सटकर खड़ी हो गई, मैं बुरी तरह हड़बड़ा उठा, किन्तु इससे पहले मैं अलग हो पाता, उसने झट मेरा बाजू पकड़ लिया।
फ्चलता है क्या...?य्
कहने का अन्दाज यूं था मानो कहना चाहती हो फ्चलती है क्या खण्डाला?य्
फ्क...कहां?य् मैं एकदम से अनमिल हो उठा।
फ्अपनी अम्मा वेफ पास साले।य् वह बड़े ही सहज ढंग से बोली, फ्चल कर तो देख स्वर्ग वेफ दर्शन न करा दूं तो कहना...।य्
फ्प...पैसे...कितने...लो...।य्
फ्जो दिल करे दे देना...चल।य् उसने मेरा हाथ पकड़कर झटका दिया, मैं उसवेफ पीछे-पीछे चल पड़ा, वह बगल की गली में जा घुसी।
यह कमरा एक पुराने खंडहरनुमा मकान की पहली मंजिल पर बना मुर्गी वेफ दड़बे जैसा है, यहां रोशनी का एक मात्रा साधन, वह सौ वाट का बल्ब है, जो कमरे वेफ बाईं ओर वाली दीवार पर एक कील वेफ सहारे लटक रहा है। बल्ब की पीली रोशनी में मैंने पफौरन सिर से पांव तक उसका मुआयना कर डाला। लम्बा छरहरा बदन, काली रंगत लिए साधारण नयन-नक्श, जिसे पाउडर वेफ छिड़काव द्वारा सपेफदी देने की कोशिश की गई है, किन्तु एक निगाह देखने पर लगता था मानो किसी ने जामुन पर नमक छिड़क दिया था, ऊपर से उसवेफ शरीर से टपकता पसीना, ‘उपफ!’ मेरा मन अजीब-सी वितृष्णा से भर उठा। रही सही कसर कमरे की अन्दरूनी साज-सज्जा ने पूरी कर दी, पफर्श पर जनाना कपड़े बिखरे पड़े थे, कहीं ब्रा तो कहीं पैंण्टी तो कहीं पेटीकोट और ब्लाऊज यहां तक की खून सने रोल किये हुए कपड़े भी, वहां मौजूद थे। एक तरपफ डस्टबीननुमा टोकरी पड़ी है, जिसवेफ भीतर वुफछ इस्तेमाल किए हुए ‘निरोध’ और बाहर पैफले कपड़ों वेफ रोल जैसे वुफछ बण्डल पड़े हुए हैं। मुझे ऊबकाई-सी आने लगी, अब वहां और खड़े रह पाना मेरे बर्दाश्त वेफ बाहर था, इधर-उधर घूमती मेरी निगाह जब पुनः उस पर पड़ी तो मेरे होश उड़ गये। वह मादा जात नंगी पलंग पर चित्त पड़ी थी, न तो उसकी आंखों में कोई नशा था और न ही अधरों पर कोई प्यास थी, वह तो महज एक मशीन-सी जान पड़ी मुझे, जिसे कोई भी शुरू कर सकता था, यह मेरे लिए औरत का एकदम नया रूप था, मैंने वेश्याओं वेफ बारे में सुन रखा था, पढ़ रखा था, किन्तु रूबरू होने का यह पहला मौका था, वह पूरी तरह अहसास रहित दिखाई दे रही थी, उसवेफ साथ संभोग करना किसी लाश वेफ साथ संभोग करने जैसा ही आनन्द दे सकता है, उसवेफ नग्न शरीर को देखकर मैं शर्म से गड़ा जा रहा था, किन्तु उसकी आंखों में अभी भी कोई भाव नहीं आया था।
फ्अरे...ओय...जल्दी कर पफालतू टाइम नहीं है अपने पास।य्
फ्जल्दी करूं!य् मैं आवाज सुनकर चौंक पड़ा, फ्क्या करूं?य्
फ्तेरे मां की साले...क्या करने आया है यहां?य्
फ्मैं...मैं।य् मुझे लगा मैं रो पड़ूंगा, फ्तुम्हारा नाम क्या है?य्
फ्क्यों...शादी करेगा मुझसे?य्
फ्बताने में क्या हर्ज हैं।’ मैं उसवेफ जिस्म से निगाहें चुराने लगा।
फ्कोई हर्ज नहीं, पहले तू बता, तेरी अम्मा का क्या नाम है?य्
फ्ब...बबीता।य्
फ्मेरा नाम कविता है, रिश्ते में तेरी मौसी लगती हूं, अब पफटापफट भंभोड़ और पूफट यहां से।य्
मेरा चेहरा कनपटियों तक सूर्ख हो उठा...आसार अच्छे नहीं दिख रहे थे...मैं खून का घूंट पीकर बर्दाश्त कर गया।
फ्तुम ये सब क्यों करती हो?य्
फ्स्याले हराम वेफ पिल्ले, जो करने आया है कर और पूूफट यहां से, अभी तेरे दूसरे बापों को भी निपटाना है।य् सहमकर मैंने पुनः एक नजर उसवेफ जिस्म पर डाली, स्तनों पर घाव वेफ स्थाई निशान दिखाई दिये, निगाह वुफछ नीचे गई, तो नाभि वेफ नीचे भी एक गहरे घाव का निशान दिखाई दिया। पैरों पर चेचक वेफ दाग बने हुए थे।
मुझे पुनः ऊबकाई आने लगी।
फ्मैं...मैं जाता हूं।
फ्बिना वुफछ किए?य्
फ्हां।य्
फ्पैसे।य्
फ्किस बात वेफ?य्
फ्अबे खाली-पीली मेरा टाइम खोटा किया, दिमाग में टेंशन दिया उसवेफ पैसे। इतनी देर में कोई दूेसरा मुझे भभोड़कर जा चुका होता, भगवान बचाए तेरे जैसे नामर्द ग्राहकों से, साले घर पे बीवी के साथ भी ऐसा ही करता है क्या, अगर हां तो बच्चों से शक्ल पड़ोसियों से मिलाकर देखना कहीं मिलती तो नहीं हैय्
उसके मुंह ना लगने में ही मैंने अपनी भलाई समझी। मैंने चुपचाप उसे सौ का एक नोट पकड़ाया और गेट की तरपफ बढ़ गया।
फ्स्याला, हरामजादा।य् पीछे से उसका घृणित स्वर सुनाई दिया, फ्छक्का कहीं का...य् आक्-थू...कदाचित उसने पफर्श पर थूक दिया था, मारे अपमान वेफ मेरी आंखें भर आईं, मैं हिचकियां लेते हुए सीढ़ियां उतरने लगा।
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