जब महबूब करे बेवफाई का गुनाह
जीवन में कब क्या हो जाय इसका अंदाजा लगा पाना सहज नहीं होता यह कथा एक युवती की मोहब्बत और उसके प्रेमी की बेवफाई की दास्तान है। उसने मोहब्बत की और प्रेमी पर अपना मन और तन लुटा दिया मगर प्रेमी की बेवफाई पर जब उसकी मोहब्बत नफरत में बदली तो उसने प्रेमी को.......
सुनीता बेहद खूबसूरत युवती थी, इतनी खूबसूरत कि उसे देखने वाला हर शख्स पहली ही नजर में उस पर फिदा हो उठता था। गली मोहल्ले का हर युवक उसके आगे प्रेम प्रदर्शन करने को बेकरार था। सुनीता का पूरा नाम सुनीता दत्ता था, वह गोरखपुर कोतवाली क्षेत्र में एक कालोनी में किराए पर रह रही थी। यहां रहकर वह पीजी की पढ़ाई कर रही थी। वैसे वह रहने वाली दूर दराज के किसी गांव की थी। उसके पिता रतन कुमार एक किसान थे। जबकि मां गांव की प्रधान हैं। घर की आर्थिक स्थिति साधारण है मगर कोई कमी उनके परिवार में नहीं है। सुनीता उन दोनों की इकलौती औलाद थी जिसे वह अपने पलकों पर बैठाये रहते थे।
बहरहाल जहां वह रह रही थी वहां शायद ही कोई ऐसा युवक हो, जिस पर उसकी खूबसूरती का जादू न चला हो, शायद ही कोई ऐसा हो जो उससे दोस्ती करने को लालायित न हो। मगर सुनीता को तो जैसे उन मनचले युवकों के बारे में सोचने तक की फुर्सत नहीं थी, वह तो बस अपने आप में ही मग्न रहने वाली युवती थी, अलबत्ता अपनी खूबसूरती पर उसे नाज था, वह जानती थी कि वह बेहद खूबसूरत है इतनी खूबसूरत कि जिस युवक की तरफ नजर भरकर देख ले, वही उसका दीवाना हो जाये। मगर अभी तक उसे कोई युवक पसंद नहीं आया था, वह अपने सपनों के राजकुमार के इंतजार में पलवेंफ बिछाए बैठी थी। ऊपर से वह अपनी पढ़ाई में इतना व्यस्त थी कि इन सब फालतू बातों के बारे में सोचने की उसके पास फुर्सत ही नहीं थी। वह तो बस अपने आप में जिए जा रही थी। अगर अपने परिजनों के बाद उसे किसी से प्यार था तो वह थी किताबें। मगर ऐसा कब तक चलता कभी ना कभी तो उसकी जिन्दगी में बदलाव आना ही था।
करीब दो वर्ष पहले उसकी मुलाकात अनिल कुमार से हुई थी। अनिल कुंवारा था और टेलीफोन विभाग में कार्यरत था। सुनीता की उससे पहली मुलाकात दफ्तर में ही हुई थी, जहां वह नया कनैक्सन अप्लाई करने गई थी। पहली ही नजर में सुनीता उसे दिल दे बैठी। उधर अनिल भी उसे देखते ही उसपर फिदा हो चुका था। उस पहली मुलाकात में दोनों के बीच कोई संवाद शुरू नहीं हो सका, मगर सुनीता वहां से लौटकर भी अनिल को बिसार नहीं पाई थी।
उस रात वह अनिल के बारे में ही सोचती रही थी। अगले रोज जब वह अपने कालेज पहुंची तो वहां भी उसने अपनी एक खास दोस्त रीना से उस युवक का जिक्र किया। रीना यह सुनकर हैरान रह गई कि लड़कों से दूर भागने वाली सुनीता को कोई लड़का पसंद आ गया है वह उत्सुकतावश बोली, ”नाम क्या है उसका?“
”मालूम नहीं।“
”एड्रेस पूछा था।“
”नहीं यार तू तो क्लास लेने लगी मेरी।“
”अरे फिर क्या बात हुई तुम दोनों के बीच?“
”बात कहां हुई यार बस देख भर लिया एक दूसरे को इसके बाद मैं वापस लौट आई।“
”और तू कहती है कि उससे तुझे मोहब्बत हो गई है।“
”हां यार कितनी बार कहूं।“
”तू पागल हो गयी है।“
”बताने के लिए थैंक्स“
”अरे मेरी लाडो कम से कम उसका नाम-पता तो पूछ लिया होगा, या कोई कांटेक्ट नम्बर ही ले लिया होता, अब कहां ढूंढती फिरेगी उसे?“
”अब क्या तूने मुझे सचमुच पागल समझ लिया है।“
”साफ साफ बोल ना।“
”उसे ढ़ूढने की जरूरत नहीं पड़ेगी“
”क्यों?“
”सोच क्यों?“
”अरे क्या पहेलियां बुझा रही है?“
”ढूंढने की क्या जरूरत है वह टेलिफोन विभाग में है नौकरी छोड़कर थोड़े ही भाग जाएगा।“
”इसलिए निश्चिंत है।“
”ठीक समझा“
”तू उसे फोन करेगी?“
”नहीं“
”क्यों“
”क्योंकि मेरा नया नम्बर वही तो लगवायेगा। जाहिर है उस हालत में मेरे नये टेलिफोन का नम्बर भी तो उसके पास होगा अगर उसके दिल में भी कुछ होगा तो मुझे फोन जरूर करेगा वरना तू कौन मैं खामखाह।“
”फिर तो बेटा तू गई काम से तेरा तो अब भगवान ही मालिक है।“ जवाब में सुनीता खिलखिलाकर हंस पड़ी।
”अरे जब प्यार है तो बोल दे“
”उसने इंकार कर दिया तो इंसल्ट हो जाएगी“
”तू इतनी हसीन है कि तुझे तो कोई फिल्मी हीरो भी ना नहीं कर सकता“
”तारीफ के लिए थैंक्स मगर मैं फोन नहीं करने वाली।“
उस दिन तो बात आई-गई हो गयी, मगर सुनीता अनिल को अपने दिल से नहीं निकाल सकी, वह सोते-जागते, उठते-बैठते अनिल के ख्यालों में गुम रहने लगी। घर से बाहर निकलती तो उसकी निगाहें इधर-उधर अनिल को तलाशती रहतीं। अनिल से हुई उस पहली मुलाकात के बाद से वह खोई-खोई सी, उदास सी रहने लगी थी, अब उसे बेसब्री से इंतजार था। अनिल से अगली मुलाकात होने का ताकि वह अपना हाले दिल बयान कर पाती, इसी मुलाकात के इंतजार में दिन पर दिन बीतते चले गये। उसके घर में फोन लग गया मगर लगाने कोई और आया था। फिर उसने सोचा क्या पता वह उसे फोन ही कर ले। इस इंतजार में जब फोन की घंटी बजती तो वह लपक कर चोगा उठाती मगर अनिल का फोन नहीं आया।
पहली मुलाकात के करीब दो सप्ताह बाद, एक दिन उसी मार्केट में उसे अनिल दिखाई दे गया, अनिल को देखते ही उसके दिल के तार झनझना उठे, चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई, उसका दिल हुआ दौड़कर अनिल के सीने से लग जाये, उसे कसकर अपनी बांहों में भींच ले, मगर नारी सुलभ लज्जावश वह ऐसा नहीं कर सकी। अब तक अनिल की भी निगाह उस पर पड़ चुकी थी। वह धड़कते दिल से बस सुनीता को ही घूरे जा रहा था।
कुछ पलों तक यह घूरने का सिलसिला चलता रहा, फिर अनिल सुनीता के पास आया और बेहद मीठे लहजे में झिझकता हुआ बोला, ”माफ कीजिए क्या मैं आपसे दो-चार बातें कर सकता हूं?“
”जी हां कीजिए, क्या बात करना चाहते हैं?“
”सामने रेस्टोरेंट में चलकर एक-एक कप काॅफी पीते हैं वहीं बातें भी हो जाएंगी।“
”अच्छा आइडिया है चलिए।“
दोनों कुछ कदमों की दूरी पर स्थित रेस्टोरेंट में दाखिल हो गये।
उस दिन दोनों ने एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया। दोनों में दोस्ती हुई तो फोन पर बात करने का सिलसिला शुरू हो गया। सुनीता के मोबाइल पर अनिल केफोन काल्स आने लगे, दोनों कई-कई घंटे बात करते, मगर फिर भी दिल नहीं भरता तो बाहर मुलाकात का वक्त तय कर लेते। लिहाजा मुलाकातों का सिलसिला भी चल निकला। ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान अनिल ने सुनीता को बांहों में भरकर उसके होंठों को चूम लिया, ”अब ये दूरियां बर्दाश्त नहीं होती जान। तुमसे एक पल भी अलग रहने को दिल नहीं करता।“
”मेरा भी कुछ यही हाल है, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए“ सुनीता मुस्कराई।
”तुमने तो मेरे दिल की बात छीन ली, बस कुछ पैसे जोड़ लूं फिर तुम्हे सदा सदा के लिए अपना बना लूंगा।“
प्रेमी की बात सुनकर सुनीता खुश हो गई।
अगले ही महीने सुनीता का जन्म दिन था। उस रोज सुनीता ने पहली बार अनिल को अपने किराए के कमरे पर बुलाया, जहां वह अपने मां-बाप से दूर रह कर पीजी कर रही थी। खास बात यह रही कि उसने अनिल के सिवाय किसी को भी अपने जन्मदिन पर आमंत्रित नहीं किया। यहां तक कि उसने अपनी खास दोस्त रीना को भी नहीं बुलाया।
तन्हा कमरे में दो जवां दिल और रोकने-टोकने वाला भी कोई नहीं था, ऐसे में मन भटकते कितनी देर लगती है। फिर अनिल तो खेला-खाया इंसान था। जाने कितनी कलियों का रस चूस चुका था। सुनीता के साथ भी उसने मोहब्बत का यह खेल इसीलिए खेला था, ताकि उसके हसीन जिस्म का रसपान कर सके। वह सुनीता से मिलने के बाद से ही ऐसे किसी मौके की तलाश में था। आज वह मौका उसे हासिल था इस सुअवसर को हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था, लिहाजा उसने सुनीता को अपन बांहों में भींचकर प्यार करना शुरू कर दिया। अनिल के हाथों का स्पर्श उसे मदहोश किए दे रहा था और जब उसे लगने लगा कि वह बहक जायेगी तो उसने अनिल को स्वयं से दूर कर देना चाहा, मगर कामयाब नहीं हो सकी, तब फुसफुसाती हुई बोली, ”अनिल प्लीज ये सब ठीक नहीं है।“
”मुझे रोको मत जानम आज मैं तुम्हारे इस संगमरमरी हुस्न को पूरी तरह पा लेना चाहता हूं।“
”नहीं अनिल प्लीज यह सब शादी के बाद ही अच्छा लगता है।“ कहकर सुनीता ने एक बार फिर उसे स्वयं से दूर कर देना चाहा, मगर कामयाब न हो सकी, उल्टा अनिल उसकी टाॅप उतारता हुआ बोला, ”शादी तो तुम्हें मुझसे ही करनी है, फिर क्या फर्क पड़ता है।“ इतना कहकर अनिल ने उसकी जींस भी उतार फेंकी।
”उफ! बेशर्म“
”वो तो पैदाइशी हूं“
”हटो भी“
”नहीं हटता“
”यह पाप है“
”सब पुराने जमाने की बातें हैं जानम आज तो मामला लिव इन का है।“
”मगर मैं ऐसा नहीं कर सकती“
”क्यों?“
”डर लगता है“
”किस बात का?“
”सुनों अगर कुछ उल्टा सीधा हो गया तो?“
”नहीं होगा और हो गया तो मैं हूं न! प्लीज मुझे अब और मत रोको“
सुनीता प्रेमी को नाराज नहीं करना चाहती थी, फिर उसे यकीन था कि अनिल उससे ही शादी करेगा, ऊपर से वह स्वयं भी उत्तेजित हो चुकी थी लिहाजा उसने अपनी मौन स्वीकृति दे दी।
एक बार दोनों के बीच अवैध रिश्ता कायम हुआ तो अनिल अक्सर सुनीता के जिस्म का लुत्फ उठाने लगा। सुनीता भी उसे अपना भावी पति मानते हुए अपना सर्वस्व समर्पित कर देती थी और उस दिन का इंतजार करती, जब दूल्हा बना अनिल उसके दरवाजे पर बारात लेकर आता, वह नहीं जानती थी कि अनिल से शादी के बारे में सोचना सिर्फ एक हसीन स्वप्न है जो नींद खुलते ही बिखर जाना था। अब तक वह सपनों की दुनिया में जीने की अभ्यस्त हो चुकी थी। लिहाजा अक्सर अनिल को लेकर अपने भावी जीवन के सपने बुनती रहती थी।
वक्त यूं ही तेजी से गुजरता गया और दोनों की पहली मुलाकात हुए करीब एक वर्ष बीत गया। इस गुजरे वक्त में जाने कितनी बार अनिल सुनीता के जिस्म का आनंद उठा चुका था और शादी की बात किसी ना किसी बहाने टाल जाता था। सुनीता को उस पर या उसके प्यार पर कोई शक नहीं था, मगर वह उससे शादी करके अपना जहां बसाने के लिए बेकरार थी। वह चाहती थी कि अनिल हामी भर दे तो वह भी अपने मां-बाप से शादी की इजाजत ले ले। मगर अनिल उसे लगातार टाले जा रहा था।
इसकी कई वजह थी, अनिल एक ऐसा भंवरा था जो कली का रस चूस कर उड़ जाने में विश्वास रखता था। जबकि सुनीता तो उसके पीछे ही पड़ गई थी। दूसरी वजह थी अरेंज मैरिज करने से मिलने वाला मोटा दहेज, जबकि सुनीता से शादी की सूरत में उसे फूटी कौड़ी भी मिलने वाली नहीं थी। ऊपर से आजकल उसकी जिन्दगी में श्यामा नाम की एक अन्य लड़की आ गयी थी जो सुनीता से खूबसूरत तो न थी मगर उसकी स्टाइल अनिल के दिल में खलबली मचा जाती थी। नतीजा ये हुआ कि अनिल उससे नजदीकियां बढ़ाने लगा और एक रोज उसे सीसे में उतारने में कामयाब हो गया। फिर क्या था पहले दोस्ती फिर प्यार और उसके बाद बिस्तर पर वह श्यामा के साथ कबड्डी खेलने लगा। दोनों के अवैध रिश्ते निर्बाध गति से चल पड़े।
मगर ऐसा आखिर कब तक चलता, हमेशा यही होता कि सुनीता शादी की बात करती और अनिल टाल जाता, इसी तरह करीब डेढ़ साल गुजर गया, मगर अनिल ने सुनीता से शादी की दिशा मंे कोई कदम नहीं उठाया था। बस झूठे आश्वासनों से उसे बहलाने की कोशिश करता आया था।
मगर अब सुनीता को उसका यह टाल-मटौल वाला रवैया अखरने लगा था, वह चाहती थी कि अनिल उसे कोई निश्चित तारीख बता दे कि फलां तारीख या फलां साल में वह उससे शादी कर लेगा, जबकि ऐसा अनिल का कोई इरादा नहीं था।
सुनीता जैसी जाने कितनी उसकी जिन्दगी में आईं और चली गईं। वह क्या सबसे शादी करता फिरता? लिहाजा सुनीता को भी वह सिर्फ इस्तेमाल कर रहा था, तब-तक जब-तक कि उसकी शादी की जिद चरम पर नहीं पहुंच जाती।
उधर सुनीता अब बेहद उदास रहने लगी थी, वह आफिस में भी बैठे-बैठे आंसू बहाने लगती थी, मगर अपना दर्द किसी से बयान नहीं करती थी, कहती भी क्या, क्या बताती वह दूसरों से कि जिसे अपने मन का मीत माना, वह अपना सबकुछ समर्पित कर चुकी थी, वह शादी से दूर भाग रहा थी, नहीं ऐसा भला वह किसी से कैसे कह सकती थी। लिहाजा दिल ही दिल में घुटती रहती, छिप-छिपकर तन्हाई में आंसू बहाती रहती, उसकी सेहत भी निरंतर गिरती जा रही थी।
रीना से जब उसकी निरंतर बदरंग होती यह हालत नहीं देखी गई तो एक दिन जिद करके वह सुनीता को अपने घर ले गई और वहां एकांत कमरे में बैठकर उससे कुरेद-कुरेद कर सारी बातें पूछती चली गई। सुनीता ने भी उसकी हमदर्दी पायी तो मोटे-मोटे आंसुओं के साथ अपना सारा गम उड़ेल कर रख दिया, सुनकर रीना भौंचक्की रह गई, ”कितनी बेवकूफ है तू इतने दिनों से वह तुझे इस्तेमाल किए जा रहा है, तेरे को उसने मौज-मस्ती का साधन समझ रखा है और तुझे इतनी सी बात समझ में नहीं आई, तू अब भी उससे रिश्ता कायम किए हुए है, जूते मार ऐसे आदमी के मुंह पर दुनिया में क्या एक वही लड़का रह गया है?“
”मैं उसके बिना नहीं रह सकती।“ कहकर सुनीता फक-फक कर रो पड़ी।
”अरे तो क्या अपनी जिन्दगी बर्बाद कर लेगी तू।“
”पता नहीं, मैं क्या करूंगी।“
”मेरी बात सुन उसे भुला दे“
”उसे भूलना मेरे वश की बात कहां“
”देख उससे और अच्छे लड़के इस दुनिया में हैं उन्हें ट्राई कर सब गम भूल जायेगी“
”मैं उसे किसी और का होता नहीं देख सकती“
”उसने किसी और से शादी कर ली तो“
”जान ले लूंगी उसकी“
”अरे पागल हो गयी है अपने को काबू में कर“
”हां हां मैं पागल हो गई हूं।“ कहकर वह फूट-फूट कर रो पड़ी।
बात यहां तक भी सीमित होती तो शायद सुनीता बर्दाश्त कर जाती, मगर इसी दौरान उसे खबर मिली कि अनिल का किसी अन्य लड़की के साथ रिश्ता तय हो गया है। अनिल किसी और का हो जायेगा, यह जानकर सुनीता बौखला उठी, उस दिन वह खून के आंसू रोयी थी और आंसूओं की हरेक बूंद के साथ अनिल के लिए उसके मन में तेजाब भरता चला गया। मोहब्बत नफरत में परिवर्तित होती गई। इतिहास गवाह है कि जब-जब मोहब्बत नफरत में बदली है एक तूफान आया है ऐसा भयंकर तूफान जो अपने साथ जाने कितनों की खुशियां उड़ा ले गया। सुनीता ने मन ही मन क्रूरता की सारी सीमाओं का उल्लंघन कर एक भयानक पैफसला कर डाला।
घटना वाली सुबह उसने फोन करके अनिल को अपने घर बुलाया और बातों के दौरान जब अनिल बेड पर लेट गया तो उसने प्यार-स्नेह भरी बातें करते हुए मजाक ही मजाक में उसके दोनों हाथ पलंग से ऊपर की तरफ बांध दिये और दोनों पैरों को नीचे की तरफ बांध दिया, इसके बाद किचन से एक तेज धार वाली छुरी उठा लाई और प्रेमी के गले पर फिराने लगी। अनिल हलाल होते बकरे की तरह डकारा, साथ ही उसके चेहरे पर गहन आश्चर्य के भाव थे, वह तो सुनीता की हरकतों को महज मजाक समझ रहा था उसने तो कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि फूल सी कोमल और मासूम दिखने वाली सुनीता उसके साथ इतनी बर्बरता के साथ पेश आ सकती है। दर्द की अधिकता से चीखता-चिल्लाता रहा और सुनीता धीरे धीरे उसका गला रेतती रही, पहले अनिल बेहोश हुआ फिर मौत के मुंह में समा गया। सुनीता ने फोन करके पुलिस को बुला लिया। सुनीता की करतूत देखकर पुलिस कर्मी भी भौंचक्के रह गये, अनिल को तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां डाक्टर्स ने उसे मृत घोषित कर दिया। सुनीता को अपने किए पर तनिक भी पछतावा नहीं है। यह ओपन एण्ड शट केस था। पुलिस ने अगले रोज उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।
घटना की सूचना पाकर सुनीता के मां बाप भी आ गये। वे पूरे घटनाक्रम पर आश्चर्यचकित हैं। वे यकीन नहीं कर पा रहे कि उनकी भोली-भाली बेटी किसी का कत्ल भी कर सकती है। बहरहाल वे सुनीता की जमानत के प्रयास में लगे हुए हैं।
समाप्त
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