Saturday, March 16, 2013

its a love story

मुहब्बत की यूं डूबी किश्ती
modling photo
छठवीं पास करके कमलेश उन दिनों सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी। स्कूल घर से थोड़े ही दूर था मगर कमलेश अपनी संग-सहेलियों के साथ ही घर से निकलती थी। दिनों-दिन कमलेश यौवन की दहलीज पर कदम रखती जा रही थी, उसका रूप लगातार निखरता जा रहा था। एक दिन जब वह छुट्टी के बाद घर लौटी तो एक छोटा बच्चा दौड़ता हुआ उसके पास आया और उसे एक एक चिट्ठी थमा दी। इससे पहले कि कमलेश कुछ पूछती या कुछ समझने की कोशिश करती, वह बच्चा दौड़ लगाकर भाग गया। कमलेश उसे देखती रह गई उसने यहां-वहां नजर दौड़ाई मगर कोई दिखाई नहीं दिया तो कमलेश ने वह खत अपने स्कूल बैग में ही रख लिया और घर की तरफ चलने लगी। 
पिफर उसने बैग उतार कर एक जगह पर रख दिया और हाथ-मुंह धोकर भोजन करने बैठ गई। उसकी नजर जितनी बार बैग की तरपफ जाती वह मुस्करा देती। मां के साथ थोड़ी देर काम करने के बाद वह अपने कमरे में स्कूल बैग लेकर पहुंची और उसने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। अब कमलेश कमरे में बिल्कुल अकेली थी। धड़कते दिल से उसने अपना बैग खोलकर कागज का वह टुकड़ा निकाला, जिसने कई घंटों से उसे बेचैन कर रखा था। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। हाथ कांप रहे थे और पलकें झुकी थीं कि ना जाने खत मंे क्या लिखा है। पिफर भी उसने आहिस्ते-आहिस्ते खत को खोला, जिस पर कुछ इस प्रकार से लिखा था-
‘‘मेरी प्रिय कमलेश, तुम मेरा यह खत पढ़कर नाराज मत होना। तुम मेरे घर के दरवाजे से हर रोज निकलती हो, मैं तुम्हें छुप-छुपकर देखता हूं, मैं पहले उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां तुम पढ़ती हो लेकिन अब मेरी पढ़ाई छूट गई। तुम बहुत ही सुंदर हो और मैं तुम्हारा दीवाना हूं। तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो और जानती भी हो।
बहुत दिन से मैं एक बात कहना चाहता था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई। डरता था कि कहीं तुम मना ना कर दो इसलिए इस खत में लिखकर भेज रहा हूं। मैं तुमसे प्यार करता हूं और मिलना चाहता हूं। अगर तुम्हें भी मुझसे प्यार है तो कल घर से स्कूल तक के रास्ते में तुम खुले बाल करके निकलना इससे मैं समझ जाउफंगा कि तुम्हें मेरा प्यार स्वीकार है। अगर नहीं हो तो मैं हर दिन तुम्हारा दीदार करके ही जी लूंगा। तुम्हारा और सिपर्फ तुम्हारा सुभाष।’’
कमलेश खत पढ़कर खुद को आईने के सामने जाकर निहारने लगी, ‘क्या मैं सचमुच सुंदर लगती हूं,’’ उसने मन ही मन में बुदबुदाकर कहा। मगर उसके सवाल का जवाब देने के लिए कमरे में बेजान आईने के अलावा दूसरा कोई नहीं था। रात कमलेश बिस्तर पर लेटी बार-बार करवटें बदल रही थी। उसकी आंखों से नींद ऐसे गायब हो गई थी। मानो उससे ही रूठ गई हो। जैसे-तैसे रात गुजर गई। अगले दिन जब वह स्कूल गई तो उसके बाल खुले थे मगर रास्ते भर उसे कोई नहीं मिला। छुट्टी के बाद जब वह घर लौट रही थी, तो उसे लगा कि किसी ने उसे आवाज दी हो उसके कदम रुक गये। सहसा एक नौजवान उसके सामने आ गया। वह उसे पहचानती थी, वह उसी की कॉलोनी में रहने वाला सुभाष था। उसने कहा, ‘‘तुमने मेरा खत पढ़ा और मेरा प्यार स्वीकार कर लिया, अब मैं जी सकता हूं।’’
modeling photo

‘‘तुम्हें तो मैं भी ना जाने कब से ढूंढ़ रही हूं। आखिर तुम कहां थे सुभाष, तुम नहीं जानते तुम्हारे जाने के बाद मेरा क्या हाल हुआ। मैं भी तुमसे ही प्यार करती हूं, मैं तुम्हें भूली नहीं हूं।’’ कमलेश के इतना कहते ही सुभाष का रोम-रोम रोमांचित हो गया। उस दिन के बाद से दोनों एक-दूसरे के करीब आते गये। उनकी दूरियां नजदीकियों बदलने लगी। वे छुप-छुप कर मिलते और प्यार भरी मीठी-मीठी बातें करते थे।
कमलेश गोशाला वाली गली, इन्द्रपुरी, पलवल की रहने वाली थी। उसके पिता का नाम दीपचंद है, जिसकी पलवल में ही ‘ए-वन’ टेलर के नाम से दर्जी की दुकान है। दीपचंद अपनी उसी दुकान से ही घर का खर्चा चला रहा था। पत्नी के अलावा दीपचंद की तीन बेटियां और दो बेटे हैं। सबसे बड़ी बेटी विमलेश की वह शादी कर चुका था। उससे छोटा एक भाई है उसका नाम सुभाष है वह भी कोई ना कोई छोटा-मोटा काम कर लेता था। कमलेश तीसरे नंबर की संतान है, उसके बाद उससे दो छोटे भाई-बहन और हैं नीलम और गुड्डू।
सुभाष सैनी भी पातली गेट, दयानंद स्कूल के पास पलवल का ही रहने वाला है। उसके पिता का नाम भगवान सिंह है। दोनों पिता-पुत्रा छोटा-मोटा काम करके घर का खर्च चला रहे थे।
समय बीत रहा था कमलेश और सुभाष सैनी की मुहब्बत भी लगातार बढ़ती जा रही थी। उन दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई। कमलेश सयानी हो गई थी। दीपचंद को उसके ब्याह की चिंता थी। कमलेश की पढ़ाई बंद हो गई थी, अब वह घर पर ही रहती थी लेकिन किसी ना किसी बहाने से वह सुभाष से जरूर मिलती या पिफर दोनों पफोन पर बातें करते।
एक दिन दीपचंद जब खाना खा रहा था कमलेश रसोई में थी। दीपचंद से पत्नी ने कमलेश के ब्याह का जिक्र किया तो वह बोला, ‘‘मुझे याद है। मैं भी कोशिश कर रहा हूं। मैंने दो-एक लोगों से चर्चा कर दी है और जल्दी ही कमलेश की शादी निपटानी है।’’
कमलेश यह सब सुन रही थी, पिता की बातों ने उसके दिल को मानो चोट पहुंचा दी। इसके बाद उसने जल्दी ही सुभाष से मिलकर उसे सारी बात बताई। सुभाष के दिल में भी मिलन की उतनी ही इच्छा थी, जितनी कमलेश के दिल में। वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था।
आखिरकार वह दिन भी आ गया जब कमलेश को देखने वाले उसके घर पर पहुंचे। कमलेश उस दिन बहुत मायूस थी। लड़के वालों ने उसे देखते ही पसंद कर लिया और उन्होंने दीपचंद से कहा, ‘‘हम जाते ही कोई अच्छा-सा मुर्हूत देखकर शादी की तारीख पक्की कर आपको बता देंगे। आप भी अपनी तरपफ से पूरी तैयारी कर लेना।’’
यह सब बातचीत हो ही रही थी कि कमलेश ने अपने पिता से कहा, ‘‘नहीं पिता जी, मुझे यह शादी मंजूर नहीं है। मैं किसी और से प्यार करती हूं और शादी भी उसी से करूंगी,’’ लड़की के मंुह से इतना सुनते ही हर कोई सन्न रह गया और उन्होंने इसे अपना अपमान समझ कर दीपचंद से कहा, ‘‘भाई साहब जब तुम्हारी लड़की किसी और को पसंद करती है तो हमारा अपमान करने के लिए आपने घर पर बुलाया था। अच्छा जो हमें पहले ही सब पता चल गया वर्ना हम तो बहुत बड़े धोखे में रहते।’’
इस पर दीपचंद जहर का घूंट पीकर रह गया और उसने मेहमानों के जाते ही कमलेश को बुरी तरह से पीटा, मगर पिफर भी कमलेश सुभाष के नाम की माला जपती रही। दीपचंद ने कमलेश को एक कमरे में बंद कर दिया और घर वालों को सख्त हिदायत दे दी कि, ‘‘ना तो यह घर से बाहर जा पाये और ना ही इसे तब तक खाना देना जब तक कि इसके दिमाग से सुभाष का भूत ना उतर जाये।’’
कमलेश उसी कमरे में पड़ी रोती-बिलखती रही मगर किसी को उसकी परवाह नहीं थी। एक दिन उसने कहा, ‘‘आप लोग जो कहोगे मैं वही करूंगी,’’ और तब उसे कमरे की कैद से आजादी मिल गई। कमलेश उसी दिन मौका पाकर घर से बाहर भाग गई और सुभाष के पास पहुंचकर उसने उसे सारी बात बता दी। तब दोनों ने तय कर लिया वे घर से कहंी दूर चले जायेंगे और ऐसा ही हुआ।
19 अप्रैल, 2006 को कमलेश और सुभाष सैनी अपने घर से भाग गये और वे दोनों भागकर बालाजी पहुंच गये। वहां उन्हेांने बालाजी के दर्शन किये और मंदिर में ही शादी कर ली। कमलेश मां से बहाना बनाकर गई थी और घर नहीं लौटी, तो दीपचंद ने सुभाष के घर पर पता लगाया लेकिन वहां पर सुभाष भी नहीं था। वह समझ गया कि कमलेश और सुभाष एक साथ हैं। उसने उसी शाम को ही पलवल थाने में सुभाष सैनी के खिलापफ बेटी के अपहरण करने का मामला दर्ज करवा दिया। पुलिस ने इस बावत अपराध क्रमांक संख्या 222/2006 पर भा.दं.सं. की धारा 363, 366 का मुकदमा दर्ज कर लिया और सभी संभावित जगहों पर छापामारी शुरू कर दी। पुलिस ने समाचार-पत्रों में ज्ञापन भी दिया। इसी बीच पलवल पुलिस को सूचना मिली कि कमलेश और सुभाष मेंहदीपुर में किराये के कमरे में रह रहे हैं और दोनों शादी भी कर ली है।
22 अप्रैल, 2006 को पलवल पुलिस उन्हें पकड़ कर ले आई। कमलेश को उसके माता-पिता के हवाले करके सुभाष को जेल भेज दिया गया। घर लाने के बाद कमलेश को घर की चार दीवारी में ही बंद कर दिया गया। कमलेश लाख कोशिशों के बावजूद भी इस बार आजाद नहीं हो पाई। वह पुलिस को सब कुछ बताना चाहती थी, लेकिन उसे मौका नहीं मिल पाया। कमलेश को सुभाष की चिंता थी क्योंकि अब वह उसका पति था। दीपचंद ने कमलेश के लिए कई लड़के देखे और बात चलाई लेकिन जो भी लड़के वाले उसे देखने आते, कमलेश सापफ शब्दों में उनसे यही कहती थी कि उसकी शादी हो चुकी है और कमलेश के इसी बर्ताव से घर वाले उसे बुरी तरह से पीटते।
दीपचंद की लाख कोशिशों के बाद भी जब कमलेश ने किसी तरह से भी बात नहीं मानी और आने वाले रिश्तों को ठुकराती रही तो दीपचंद ने अपने बहनोई कांती प्रसाद को सारी बात बताई।
उसने दीपचंद से कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगा और मै उसे समझाने की कोशिश करूंगा और अगर वो पिफर भी नहीं मानेगी तो रास्ते से हटा देंगे ताकि खानदान की नाक ना कटे।’’
कांती प्रसाद की बातें दीपचंद को सही लगी। उसने भी सोच लिया कि अगर कमलेश नहीं मानेगी तो उसे दुनिया से उठा देना ही ठीक रहेगा ताकि खानदान की नाक ना कटे।
8 जुलाई, 2006 की बात है, जब दीपचंद कमलेश को लेकर अपने बहनोई के घर पर आया और यहां पर भी उसकी बुआ ने उसके लिए कुछ रिश्ते देख रखे थे, मगर कमलेश ने उन्हें भी ठुकरा दिया और उसने कहा, ‘‘मैं मर जाउफंगी मगर सुभाष के अलावा किसी को अपना पति स्वीकार नहीं कर सकती मेरी उससे शादी हो चुकी है। तुम लोग मुझे मार डालो वही ठीक होगा।’’ अब सबकी समझ में आ चुका था कि सुभाष जिस दिन भी जेल से छूटेगा कमलेश उसके साथ ही भाग जायेगी, अतः उन्होंने तय कर लिया कि कमलेश के साथ क्या करना है।
14 अगस्त, 2006 को सुबह से लोगों की आवा-जाही हो रही थी लेकिन शक्ति नगर रेलवे ट्रैक के पास वाले एपफसीआई गोदाम के पीछे लोगों ने लाश देखी और कुछ ही क्षणों के बाद वहां भारी भीड़ जमा हो गई। किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी। सूचना मिलते ही क्षेत्राीय थाना रूपनगर से थानाध्यक्ष प्रतिमा शर्मा, अति. थानाध्यक्ष दिनेश कुमार व सब-इंस्पेक्टर अजय सोलंकी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गये। वहां करीब 18 वर्षीया युवती का शव पड़ा था। उसके तन पर एक कपड़ा भी नहीं था। पूरी तरह से नग्न शव को पुलिस ने चादर से ढका और लोगों से शव की पहचान कराई मगर उसे किसी भी प्रकार की सपफलता नहीं मिली, तो पुलिस ने शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए सब्जी मंडी मोर्चरी में भेज दिया गया।
थाने आने के बाद पुलिस ने अपराध क्रमांक संख्या 198/2006 पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 व 201-बी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। थानाध्यक्ष प्रतिमा शर्मा ने मामले की जानकारी पुलिस उपायुक्त सुनील गर्ग को दी। उपायुक्त सुनील गर्ग के निर्देशन व थानाध्यक्ष प्रतिमा शर्मा के निर्देशन पर इंस्पेक्टर दिनेश कुमार, सब-इंस्पेक्टर अजय सोलंकी, हेड कांस्टेबल ओमप्रकाश, कांस्टेबल राजेश कुमार, नंद किशोर, राकेश कुमार, जगबीर सिंह व मुकेश की पुलिस टीम का गठन कर मामले की छानबीन अति. थानाध्यक्ष दिनेश कुमार को सौंप दी।
दिनेश कुमार मामले की छानबीन में जुट गये और उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए कई जगह अपने मुखबिरों को तैनात कर दिया। पुलिस ने शव की पहचान के लिए शव की तस्वीर कई दिनों तक समाचार-पत्रा व टेलीविजन में दिखाई और प्रकाशित कराई। पुलिस की तलाश अभी चल ही रही थी कि एक दिन दिनेश कुमार को अपने मुखबिर से पता चला कि मरने वाली का नाम कमलेश है और यह पलवल की रहने वाली है। उसने पुलिस को कमलेश व उसके परिवार के बारे मंे सविस्तार जानकारी दे दी। इसके बाद पुलिस टीम कमलेश के घर पलवल पहुंची और उसके शव की पहचान होने के के बाद उसे परिजनों के हवाले कर दिया गया। लेकिन कमलेश की हत्या का राज व उसके हत्यारों से पुलिस अब भी अंजान थी।
मुखबिर द्वारा पुलिस को सूचना मिली कि प्रमोद कुमार नाम के युवक ने ही कमलेश को मौत के घाट उतारा था। सूचना मिलने के बाद पुलिस ने प्रमोद कुमार के घर पर दबिश दी और उसे वहां से गिरफ्रतार कर लिया गया। प्रमोद कुमार पुत्रा बाबू लाल को उसके घर उत्तम नगर से गिरफ्रतार कर लिया।
थाने लाये जाने के बाद पुलिस ने उससे पूछताछ की तो एक ऐसी कहानी समाने आई, जिस पर विश्वास कर पाना हर किसी के वश की बात नहीं थी। प्रमोद ने पुलिस को बताया कि उसे कमलेश को मौत के घाट उतारने के लिए उसके पिता दीपचंद व उसके पफूपफा कांती प्रसाद ने पांच हजार रुपये की सुपारी दी थी। इतना ही नहीं उसने कमलेश के बड़े भाई सुभाष उपर्फ राजू पुत्रा दीपचंद को व अपने एक अन्य साथी धमेन्द्र को भी शामिल बताया।
पुलिस टीम एक बार पिफर पलवल पहुंची और वहां से दीपचंद पुत्रा अमर कुमार व सुभाष पुत्रा दीपचंद को गिरफ्रतार करके थाने ले आई आनन-पफानन में पुलिस ने कांती प्रसाद के घर पर भी दबिश दी और उसे भी घर से ही दबोच लिया। लेकिन पुलिस टीम जब धमेन्द्र के घर पहंुची तो वह पफरार हो चुका था। पुलिस ने चारों से थाने में पूछताछ की हत्या का सारा राज खुल गया।
दीपचंद ने बताया, ‘‘मेरी बेटी मेरे काबू से बाहर हो गई थी, इस कारण उसे मारने के इरादे से दिल्ली में अपने बहनोई कांती प्रसाद के घर लेकर आया था। कांती प्रसाद ने दीपचंद को भाड़े के दो बदमाश प्रमोद कुमार और धर्मेन्द्र से मिलवाया था और उन्हें पांच हजार रुपये देने को कहा।
योजना के मुताबिक 13 जुलाई, 2006 को कमलेश को बहाने से दीपचंद, सुभाष और कांती प्रसाद ये तीनों किशनगंज रेलवे स्टेशन की तरपफ ले आये और तब धर्मेन्द्र व प्रमोद भी उनके साथ हो गये। तब कांती प्रसाद ने उन दोनों को इशारा कर दिया। वे दोनों थोड़ी दूर चलने लगे और वे रेलवे ट्रैक के बाद एपफसीआई गोदाम के पास पहुंचे ही थे। वहां अंधेरा और सन्नाटा था। तब प्रमोद ने कमलेश को मजबूती से पकड़ लिया और उसके विरोध करने पर दीपचंद और सुभाष ने मुंह दबा दिया ताकि वह शोर ना मचा सके। पिफर धर्मेन्द्र आगे बढ़ा और उसने कमलेश की गर्दन दबा दी और तब तक दबाये रहा जब तक कि उसके प्राण पखेरू उड़ ना गये। कुछ देर छटपटाने के बाद कमलेश शांत हो गई। तब सुभाष ने बेशर्मी का परिचय देते हुए अपनी ही बहन के तन के सारे कपड़े उतार दिये ताकि पुलिस इसे बलात्कार का मामला समझे। इतना ही नहीं कांती प्रसाद जो कि रिश्ते में कमलेश का पफूपफा था उसने बोतल में भरे केमिकल को कमलेश के चेहरे पर उड़ेल दिया जिसके कारण उसका चेहरा बुरी तरह से झुलस गया और वह ठीक प्रकार से पहचान में नहीं आ रहा था।’’
इस तरह दीपचंद ने सारी कहानी पुलिस के आगे बयां कर दी। अन्य आरोपियों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। कथा लिखे जाने तक पांचवा आरोपी धर्मेंद्र पफरार था।
;शेष कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित हैद्ध

No comments:

Post a Comment