Wednesday, March 13, 2013

लाइलाज नहीं है ब्रेस्ट कैंसर




लाइलाज नहीं है ब्रेस्ट कैंसर


 

- पहली स्टेज में कैंसर का पता लगने पर सर्जरी की सपफलता 80 से 97 होती है। इसमें कीमोथैरेपी नहीं देनी पड़ती है।

-दूसरी स्टेज में सर्जरी की सपफलता 40 से 76 प्रतिशत रहती है।

-तीसरी स्टेज में 10 से 20 प्रतिशत

अतः हर महिला के लिए जरूरी है कि यदि उनकी बहन, मौसी या मां को ब्रेस्ट कैंसर रहा हो तो अपनी बेटी को तीस साल की उम्र ही डॉक्टर से क्लीनिकल एक्जामिनेशन कराने को कहें। ताकि कैंसर होने पर भी ब्रेस्ट को बचाया जा सके। 

ब्रेस्ट कैंसर की बात करें तो महिलाओं में पायी जाने वाली यह आम बीमारी है। हमारे देश में हर दस मिनट में एक महिला को ब्रेस्ट कैंसर के बारे में पता चलता है और भारतीय बीस महिलाओं में से एक को अपने जीवन काल में ब्रेस्ट कैंसर की त्रासदी झेलनी पड़ती है। सबसे अध्कि दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि हर तीस मिनट में एक महिला की मौत ब्रेस्ट कैंसर के कारण हो जाती है। अतः जरूरी है कि महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जागरूक जाने ताकि यदि यह बीमारी हो ही जाये तो पहली ही स्टेज में पकड़ में आ सके और समय रहते उसका इलाज हो सके। ब्रेस्ट कैंसर क्या है? इसके लक्षण क्या होते हैं? तथा इलाज क्या है? यह सब बता रहे हैं वर्तमान में नोएडा के पफोर्टीज अस्पताल से जुड़े व इससे पूर्व र्ध्मशिला कैंसर हॉस्पिटल में ओंकोलॉजी विभाग ने विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ सलाहकार रह चुके डा. मलय नन्दी।
ब्रेस्ट कैंसर क्या है?
सीध्े शब्दों में कहा जाये तो सेल्स में आया बदलाव ही कैंसर है। जब हमारे शरीर के किसी सेल में एब्नार्मिलिटी आ जाती है और वह अनियंत्रित रूप से बढ़ता ही चला जाती है और वह अनियंत्रित रूप से बढ़ता ही चला जाता है तो कैंसर कहलाता है। ब्रेस्ट कैंसर के मामले में यह अनियंत्रित सेल ब्रेस्ट में ट्यूमर या गांठ का रूप ले लेते हैं। ज्यादातर मामलों में इन गांठों में दर्द नहीं होता अतः रोग का पता जल्दी नहीं लग पाता। ये गांठें आस-पास के उफतकों को भी कैंसरग्रस्त कर देती हैं। जिससे स्तन में जख्म, आकार में वृ(ि, स्तनाग्रों से स्तर या तरल द्रव का स्त्राव शुरू हो जाता है। अंत में ब्रेस्ट को निकालना ही एकमात्रा उपाय बचता है।

ब्रेस्ट कैंसर होने के कारण-
ऐसी महिलाएं जिनके पीरियड्स जल्दी शुरू हो जाती हैं और मेनोपौज देर से होता है यानि प्रजनन लाइपफ जितनी ज्यादा होती है उतनी ही कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा जिन महिलाओं की शादी देर से होती है व बच्चे ज्यादा उम्र में पैदा होते है, जो महिलाएं बच्चों को ब्रेस्ट पफीडिंग नहीं भरती या ऐसी महिलाएं जिनके बच्चे नहीं है उनके स्तन कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। पफास्ट पफूड, पफैटी डाइट, खराब लाइपफ स्टाइल, मोटापा भी इसके मुख्य कारणों से एक है। इसके अलावा ऐसी महिलाओं को जिनकी मां या मौसी को ब्रेस्ट कैंसर हो उनकी भी अन्य महिलाओं को अपेक्षा छह प्रतिशत अध्कि संभावना रहती है ब्रेस्ट कैंसर होने की।

ब्रेस्ट कैंसर के मुख्य कारण-
1. निप्पल से स्तर पर काले अथवा भूरे रंग का डिस्चार्ज शुरू हो जाये।
2. निप्पल की आकृति में बदलाव यानि अंदर की तरपफ घसने लगे।
3. निप्पल के किनारे सख्त हो जाये।
4. स्तन में कड़ापन या छिटकती हुई सी गां महसूस हो।
5. स्तन में दर्द रहित गांठ महसूस हो या लगातार दर्द बना रहे।
6. बगलों से निकट सूजन आ जाये।

जांच कब करें-
आजकल कम उम्र में भी स्तन कैंसर हो रहा है। अतः इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं अपने स्तनों की जांच हर महीने स्वयं जरूर करें। जांच का सही तरीका डाक्टर से पूछ लेना चाहिए और यह जांच बीस वर्ष की उम्र से शुरू कर देनी चाहिए। वैसे जांच करने का सही तरीका पीरियड शुरू होने के एक सप्ताह बाद करें। यदि माहवारी अनियमित हो या बंद हो चुकी हो तो उस अवस्था में हर महीने का कोई एक दिन निश्चित कर ले और जांच करें। इसके अलावा समय-समय पर डॉक्टर से भी एक्जापिनेशन करायें।

इलाज-
डॉ. मलय नंदी कहते हैं कि जब कोई महिला स्तन संबंध्ी समस्या को लेकर आती है तो चिकित्सक सबसे पहले स्तनों का विध्वित परीक्षण करके यह देखते हैं कि क्या वाकई उसमें कुछ असामान्य बात है? पिफर कुछ टेस्ट किये जाते है जैसे मैमोग्रापफी, अल्ट्रासाउंड, बायोप्सी आदि।
मैमोग्रापफी-
यह स्पेशल एक्स-रे है जो खास तकनीक द्वारा किया जाता है। इसमें कम रेडिएशन द्वारा विभिन्न कोणों से एक्स-रे लिया जाता है। पर मैमोग्रापफी तीस साल से अध्कि उम्र पर ही की जाती है। चालीस साल की उम्र के बाद हर दूसरे साल व पचास साल के बाद हर साल ऐसी महिलाओं को मैमोग्रापफी द्वारा जांच जरूर करना चाहिए। जिनकी मां, मौसी या बहन को ब्रेस्ट कैंसर रहा हो। वैसे पैंतालिस साल के बाद हर महिला को मैमोग्रापफी अवश्य करा लेनी चाहिए।

बायोप्सी-यह कैंसर का पता लगाने की महत्वपूर्ण विध् िहै क्योंकि जरूरी नहीं कि हर गांठ कैंसर हो। गांठ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है एक तो वह जो कैंसर वाली नहीं होती इन्हें बिनाइन ट्यूमर कहते हैं। दूसरे ऐसी गांठ जो कैंसरग्रस्त होती है। इन्हें ‘मौलिग्नेट ट्यूमर’ कहते हैं। इस विध् िसे छोटे से आप्रेशन द्वारा गांठ में से एक छोटा-सा टुकड़ा निकाला जाता है और उसकी जांच की जाती है। बायोप्सी करने के बाद ही यह तय हो पाता है कि गांठ कैंसर ग्रस्त है या नहीं। बायोप्सी के लिए एक स्त्राी की उम्र तीस साल से कम नहीं होनी चाहिए।

इलाज के मुख्य तरीके-
गांठ कैंसरयुक्त होती है तो स्टेजिंग वर्कआप किया जाता है। इसके लिए भी कई परीक्षण होते हैं जिनसे यह पता लगाया जाता है कि कैंसर कहा तक पफैल गया है पिफर सर्जरी, कीमोथैरेपी, रेडियाथैरेपी की विध्यिां चिकित्सक द्वारा अपनायी जाती है। डॉ. नन्दी कहते हैं कि सर्जरी तो करनी ही पड़ती है, लेकिन जब मरीज शुरुआत में आ जाती है तो सर्जरी छोटी होती है तथा ‘ब्रेस्ट कंजर्विंग सर्जरी’ द्वारा सिपर्फ ट्यूमर व उसके आस-पास का थोड़ा-सा हिस्सा निकाला जाता है। इसमें ब्रेस्ट बच जाती है तथा पहले की तरह अपना पफंक्शन भरती है, पर यहद मरीज एडवांस स्टेज में आती है तो पूरा ब्रेस्ट तो निकालना ही पड़ता है साथ ट्रीटमेंट के बाद पफालोअप भी करनी जरूरी होता है। पांच वर्ष तक लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए। एक तरपफ की ब्रेस्ट में कैंसर होने पर दूसरी तरपफ ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।

 


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