Wednesday, March 13, 2013

महिलाओं में रक्त की कमी

महिलाओं में रक्त की कमी

-डॉ. विनोद गुप्ता
भारत में रक्त की कमी एक व्यापक रोग है और इसकी सर्वाध्कि चपेट में आने वाली लड़कियों और महिलाएं हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक 40 प्रतिशत लड़कियां और 80 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं खून की कमी का शिकार होती हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार 25 से 44 वर्ष के आयु समूह में 67.2 प्रतिशत महिलाओं में यह स्थिति पाई जाती है।
लड़कियों में एनीमिया का प्रतिशत अध्कि होता है। एक प्रमुख कारण उन्हें दोयम दर्ज का मानना हैं। लड़कियों की परवरिश लड़कों के समान नहीं की जाती है और न ही उनके पोषण पर ध्यान दिया जाता है। यही कारण है कि पौष्टिक आहार के अभाव में लड़कियों में रक्त की कमी पहले से ही बनी रहती है और गर्भाधरण से प्रसव होने के बीच वह चरम सीमा पर पहुंच जाती है।
लक्षण
- जल्दी थक जाना, चक्कर आना, कमजोरी महसूस होना, भूख न लगना, कब्ज बनी रहना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, हाथ पैरों में झनझनाहट, वजन में गिरावट, सिर में भारीपन या दर्द, सांस पफूलना, हृदय की ध्ड़कन बढ़ना, पैरों में सूजन, निस्तेज आंखें, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, त्वचा में पीलापन, नाखूनों का टूटना।
खून की कमी का सबसे बड़ा कारण शरीर का रक्त किसी भी कारण से बह जाना है। किसी दुर्घटना या चोट की वजह से कापफी रक्त बह निकलने से यह स्थिति निर्मित हो सकती है। शरीर में रक्त की कमी तभी हो सकती है, जब शरीर में त्राुटिपूर्ण रक्त हो।
कोशिकाओं के नष्ट होने की गति के अध्कि होने की वजह से भी रक्ताल्पता हो जाती है। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त परिसंचरण में प्रतिदिन 45 हजार माइक्रो लीटर लाल कोशिकाएं निकल जाती है, लेकिन इनके स्थान पर नई कोशिकाएं जन्म ले लेती है, लेकिन जब रक्त परिसंचरण के दौरान निकलने वाली कोशिकाओं की तुलना में नई कोशिकाओं की संख्या कम हो, तो सारा मामला गड़बड़ा जाता है। जब हड्डी की मज्जा कोशिकाओं को रक्त परिसंचरण में पहुंचाने हेतु कमजोर हो जाए अथवा निष्प्रभावी हो जाएं तो इससे लाल कोशिकाओं का उत्पादन घट जाता है। परिणामस्वरूप शरीर में खून की कमी की स्थिति निर्मित हो जाती है। जब निरंतर रूप से लाल कोशिकाएं नष्ट होती रहें तो इसे हेमोलेटिव एनीमिया कहते हैं। ये स्थिति कई कारणों से निर्मित हो सकती है, जिनमें विष खा लेना, किसी चीज से एलर्जी होना, एक विशेष किस्म का मलेरिया होना और गलत भोजन कर लेना शामिल है। कई बार तो व्यक्ति कुछ विशेष किस्म के एनीमिया से पीड़ित हो जाता है। ऐसा तब होता जब लाल कोशिकाएं असामान्य आकार की हो या उनमें हिमोग्लोबीन की मात्रा बहुत कम हो।
कारण-
मासिक के दौरान अत्याध्कि रक्तस्राव, मासिक र्ध्म जल्दी-जल्दी होना, मासिक र्ध्म का अध्कि दिनों तक चलना, गर्भावस्था, भोजन में लौह तत्व की कमी, बार-बार दस्त लगना, बवासीर की शिकायत, पेट में कीड़े लगना, एलोपैथिक दवाओं का कुप्रभाव, बार-बार नकसीर पफूटना, कैंसर, कुपोषण, कोई दुर्घटना या चोट, त्राुटिकोर्ण रक्त, हर साल बच्चे पैदा करना
जांच एवं परीक्षण-
रक्त में हीमोग्लोबिन की जांच, मल में कीड़ों की जांच, पेट का एक्स-रे, आंतों की एंडोस्कोपी, रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या, हेमाटोक्रिट की सांद्रता।
कोई भी व्यक्ति खून की कमी का शिकार यानी एनीमिक या नहीं इसका पता लगाने के लिए हिमोग्लोबिन की जांच तो की ही जाती है, साथ ही रक्त कोशिकाओं की संख्या और हेमाटोक्रिट की सांद्रता का पता भी लगाया जाता है। यदि जांच में इन तीनों चीजों का स्तर औसत से कम निकलता है, तो यह घोषित कर दिया जाता है कि वह व्यक्ति रक्ताल्पता का शिकार है।
कोई महिला एनिमिक यानी खून की कमी का शिकार है या नहीं इसका सुनिश्चित तौर पर निर्धरण तो खून की जांच से ही किया जा सकता है, लेकिन कुछ लक्षण भी इस ओर इंगित करते हैं।
खून की कमी को साधरण सी बात मत समझिए क्योंकि यह घातक और जानलेवा भी हो सकती है। विशेषकर यदि गर्भवती महिला इसकी शिकार है तो प्रसव के दौरान उसकी मृत्यु हो सकती है। यही नहीं, उसका शिशु भी मृत अवस्था में पैदा हो सकता है। पहले से ही खून की कमी से पीड़ित महिला को यदि प्रसव के दौरान असाधरण रूप से रक्तस्राव हो जाए तो उसे बचा पाना मुश्किल हो जाता है।
परिणाम-
गर्भधरण में कठिनाई, कम वजन वाले शिशु पैदा होना, नवजात शिशु की आयु की आशंका, प्रतिरोध्क क्षमता में कमी, प्रसव के दौरान मौत।
उपचार-
भोजन में लौह तत्व की बढ़ोतरी, डॉक्टर की सलाह से आयरन एवं पफोलिक एसिड की गालियां का सेवन, खूनी बवासरी एवं नकसीर की रोकथाम से बचें, मासिक र्ध्म के दौरान अध्कि रक्तस्राव की रोकथाम,
बचाव-
एनीमिया से बचने के लिए यदि महिलाएं कुछ बातों का ध्यान रखें तो उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
एनीमिया की रोकथाम के लिए उन कारणों का नाश करना होगा, जो इसके लिए उत्तरदायी है। पेट में कीड़ों से बचाव हेतु स्वच्छता एवं सपफाई पर ध्यान दे। नाखून सदैव काटे हुए व सापफ होने चाहिए। शौच के बाद साबुन या राख से ठीक से हाथ धेएं।
जिन बीमारियों की वजह से रक्तस्राव हो, उन्हें गंभीरता से लें। खूनी बवासीर, नकसीर आदि का उचित उपचार कराएं। अनियंत्रित स्राव की स्थिति में चिकित्सक को बताना चाहिए तथा पूरा कोर्स करना चाहिए। मलेरिया से बचने हेतु मच्छरदानी लगाकर सोएं तथा मच्छरों से बचाने वाली क्रीम और अगरबत्ती का इस्तेमाल करें।
सरकार गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों को एनीमिया से बचाव हेतु आवश्यक मात्रा में लौह तत्व तथा पफोलिक एसिड की गोलियां वितरित करती है। यह निःशुल्क वितरण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, परिवार कल्याण केंद्रों, बालवाड़ियों तथा सरकारी अस्पतालों द्वारा किया जाता है।
जिन्हें खून की कमी हो, उन्हें दवाओं के साथ-साथ अपने भोजन या खान-पान पर भी ध्यान देना चाहिए। दवा की एक गोली या कैप्सूल खाने मात्रा से ही खून की कमी दूर नहीं हो जाएगी। इसलिए ऐसा भोजन करे जो लौह तत्वों से परिपूर्ण हो। हरी और पत्तेदार सब्जियों का प्रतिदिन सेवन करें। इसमें मेध्ी, पालक, बथुआ, मूली के पत्ते आदि की सब्जी लोहे की कड़ाही में बनाकर सेवन करना बहुत लाभदायक रहता है। इसके लिए टमाटर, पत्तागोभी, गाजर आदि का सेवन सलाद के रूप में करना चाहिए।
कुछ पफल लौह से भरपूर होते हैं। जैसे सेब, नाशपाती, आम, केला, पपीता, चीकू आदि। इन पफलों का सेवन करते रहना चाहिए। गाजर का रस पीना अत्यंत लाभदायक है। अनाज में दालों, मूंग, तिल और बाजरा आदि का सेवन करना चाहिए। गेहूं और चावल रक्त निर्माण में अध्कि कारगर नहीं होते।
शरीर में रक्त बनाने में लौह तत्व के अलावा प्रोटीन, विटामिन और खनिजों की आवश्यक होती है। इसलिए हमारे भोजन में प्रोटीन, विटामिन बी-12 और विटामिन ‘सी’ भी शामिल होना चाहिए। विटामिन-सी लौह तत्व को शरीर में मददगार होता है। लिहाजा इसका सेवन खूब करें। स




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