Friday, March 1, 2013

पहला प्यारद्
ये इश्क नहीं आसां
गालिब मियां ने लिखा है-
ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै।
इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है।।
ये बात उस वक्त जितनी सत्यता के ध्रातल पर खरी उतरती थी, उतनी ही आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। भले ही हम 21वीं सदी के जीव हैं लेकिन सच्चाई ये है कि आज भी हिन्दोस्तान की 70 पफीसदी जनता इश्क के खिलापफ है, यही कारण है कि दो प्यार भरे दिलों को पहले तो जुदा करने की कोशिश की जाती है और जब कामयाबी नहीं मिलती तो उन्हें अलग करने के लिए उनकी हत्या करने जैसा कदम उठाने से भी लोग नहीं हिचकते।
मैं उफपर वाले को ध्न्यवाद देती हूं कि मैं और मेरा प्रियतम, प्रेम विवाह कर समाज और परिवार से बगावत करने के बाद भी अभी तक जीवित हैं। अलबत्ता यह जीवनदान कब तक बना रहेगा इसके बारे में तो उफपर वाला ही बेहतर जानता है।
हमारी मोहब्बत की शुरूआत हुई आज से करीब 2 साल पहले जब पहली बार मैं राज से मिली, वह एक सीध सादा किंतु सुलझा हुआ युवक है। हम दोनों की मुलाकात एमए की क्लास में हुई। हम दोनों ही जॉब करते थे और इग्नू से एमए का पफार्म भर रखा था जिसकी क्लासेज के लिए हर सप्ताह रविवार के दिन हम जामिया मीलिया इस्लामिया कालेज में जाते थे।
हमारे आलावा वहां क्लास में करीब 40 स्टूडेंट और थे, मगर राज उन सब में अलग दिखाई देता था। एकदम शांत, गम्भीर, उसकी यह सादगी ही मेरे दिल में उतरती चली गई। और मैं उससे दोस्ती करने को बेकरार रहने लगी, सच पूछिये तो मरी जा रही थी, मगर वह था कि कोई भाव ही नहीं देता था।
ना ना इसका मतलब आप यह हरगिज भी ना निकालें कि मैं कोई बदसूरत सी लड़की हूं जिसकी तरपफ कोई लड़का ध्यान देना जरूरी ना समझे। उल्टा मैं बेहद खूबसूरत गठे हुए शरीर वाली युवती हूं और मुझे थोड़ी शरम आ रही है लेकिन पिफर भी बता दूं कि वहां पर राज के आलावा बाकी सभी लड़के मुझे देखकर लार टपकाते नजर आते थे। उनकी आंखों में एक भूख दिखाई देती थी, जो मुझे सख्त नापसंद थी, ऐसा नहीं था कि मैं कोई साध्ु सन्यासिनी बनने का ख्वाब देख रही थी, बल्कि मुझे हर चीज को हर काम को तरीके से करना पसंद था। मुझे भूख कैसी भी हो सख्त नापसंद थी, पिफर चाहे वह जिस्म की भूख हो या पेट की भूख! दरअसल भूखा इंसान अपनी भूख मिटाने के चक्कर में सामने वाले की भावनाओं को हमेशा आहत करता है। वह झपट्टा मारता है, टूट पड़ता है और जल्दीबाजी के चक्कर में वह यह हमेशा भूल जाता है, कि इसकी वजह से वह दूसरे को भूखा मार देता है, अपनी संतुष्टि के लिए वह कुछ देर के लिए सबकुछ भुला बैठता है। बस यही वजह है कि मुझे भूखे लोग पसंद नहीं हैं।
तो मैं राज की बात कर रही थी वह अलग था सबसे अलग, शुरू में तो वह किसी की तरपफ देखता ही नहीं था पिफर जब मैंने उससे बातचीत की पहल की तो वह ध्ीरे ध्ीरे खुलने लगा। और जल्दी ही हम क्लास के बाद लम्बी लम्बी बातें करने लगे। इस दौरान वह इतनी तन्मयता से मेरी आंखों में देखता था जैसे कोई भक्त अपने अराध्य देव की सूरत निहार रहा हो, मैं बोलती रहती और वह सुनता रहता, बीच बीच में हूं हां में संक्षिप्त जवाब देता रहता, जाने वह रोज रोज मेरी आंखों में क्या देखता था, मैं पूछना चाहती थी मगर नहीं पूछा, डर था उसके बाद वह यूं मुझे निहारना बंद ना कर दे। जबकि उसके द्वारा इस तरह देखे जाने मुझे बहुत भाता था।
खैर जल्द ही हम अच्छे दोस्त बन गये, और एक रोज जब उसने मेरा हाथ अपने हाथ में थाम कर कहा कि शबनम मुझे तुमसे प्यार हो गया है मैं सदा सदा के लिए तुम्हे अपने प्यार के बंध्न में बांध् लेना चाहता हूं, उसकी बात सुनकर मैं अवाक रह गई, मुझे उम्मीद भी नहीं थी कि वह कभी अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत जुटा पायेगा। मगर उसने यह कर दिखाया था।
जैसा की हमारे नामों से आप अंदाजा लगा चुके होंगे कि मेैं मुस्लिम थी तो वह हिन्दू, लिहाजा यह इश्क आसां नहीं था।
मैंने जब यह समस्या उसके सामने रखी तो वह हंसने लगा और बोला मेरे गम्भी स्वभाव को मेरी कमजोरी मत समझो शबनम, मैं तुम्हे दुनिया से चुरा ले जाउफंगा और तुम्हे अपनी पलकों पर बिठाकर रखूंगा, बस एक बार तुम हामी भरकर देखो।
मैं भला कैसे इंकार करती। मैंने झट उसकी मोहब्बत स्वीकार कर ली, इसके बाद हम दोनों ने अपने अपने घर में अपनी मोहब्बत का ढिंढोरा पीट डाला नतीजा वही हुआ जो होना था, कोहराम मच गया।
किंतु हम इसके लिए पहले से ही तैयार थे अतः हमने कोर्ट मैरिज कर ली।
आज हम एक खुशहाल जिन्दगी जी रहे हैं मगर अपनों से बहुत दूर, जहां हमें कोई नहीं जानता।
-शबनम


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