Saturday, March 2, 2013

कल और आज का संगम

परम्परा व आध्निकता का संगम-आज की नारी

‘दुनिया में सबसे अच्छी और खूबसूरत चीजों को देखकर या स्पर्श करके नहीं बल्कि हृदय से महसूस किया जाना चाहिए।

नारी के विषय में भी यह बात सच सि( होती है। नारी को सिपर्फ सुन्दरता की मूरत के रुप मेंही देखा जाता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से नारी की पहचान बदल गई है। आज की नारी या बीते कल की नारी की स्थिति का अवलोकन करें तो अन्तर खुद ही पता चल जाता है। लेकिन कुछ मुद्दों पर स्थिति आज भी बदली सी नहीं लगती है। पहले भी जब औरत कुछ नया करना चाहती थी वह अकेली पड़ जाती थी और आज भी स्थिति यही है। नया करने की सोचते ही समाज या परिवार शुरु में तो विरोध् प्रकट करते ही हैं। लगता है कि बस इतना ही है आज भी स्त्राी का सच। लेकिन आज की स्त्राी परंपरा व आध्ुनिकता का संगम है। उसका विस्तार बहुत परे तक है। आज की नारी अपनी महत्वकांशाओं व अपने सपनों को पंख पसार के उन्हें नया आकाश देने की ताकत रखती है।
इतना सब होते हुए भी नारी के आस्तिव पर संकट की बात आज भी सामने खड़ी है। सोच अब भी देह की पवित्राता पर ही आकर अटक जाती है। लेकिन असुरक्षित होते हुए भी साहस व सपना में कहीं कोई नहीं आने दी आज की नारी ने। रूप जरूर बदल गया है। माथे पर बड़ी-बड़ी गोल बिदियां, गहरे सिन्दूरी रंग से सजी मांग, लजीले नेत काला काजल लगाये, गुलाबी मखाते हल्कासा मुस्कुराते होंठ, दोनों हाथों में एक दूसरे से बांध्े हाथ सुन्दर सलीकेदार मुस्कुराती नारी की तस्वीर या कहें नारी की ‘गरिमापूर्ण’ छवि में ही समाज आज भी खोया है। तथा आज भी उसे ही ढुंढ़ता है। परन्तु आज की नारी वक्त की रफ्रतार से कदम से कदम मिलाती, दौड़ती, या अपनी कार या स्कूटर दौड़ाती। लम्बी जुल्पफों के स्थान पर कटे केशों को झटकते या काले चश्में के सहारे संभालते हुए, अपनी सुविधनुसार पोशाक में ;कुर्ता व जींसद्ध में ही हर तरफ जमी से आसमां तक नजर आ रही है। गालों पर शर्म की कोई लालिमा नहीं है। इतना समय ही नहीं है आप की नारी के पास वह तो कहीं जल्दी-जल्दी घर के काम निपटा कर बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती नजर आती है। तो कहीं दफ्रतर के लिए दौड़ती भागती तैयार होती नजर आती है। घर, बाहर, बच्चे, दफ्रतर सभी कुछ एक साथ संभाल रही है। पिफट नारी के पहले रुप को संजोकर रखने का समय ही किसके पास है। कहीं अपने पुरुष मित्रों से बहस करती नजर आती है। तो कहीं अपनी कार तेज रफ्रतार से दौडाते हुए जमाने को पीछे छोड़ आ रही है। हाथ में चमचे बेलन के साथ ही कार की स्टपनी भी आ गयी है। रसोई में पसीने से तर बतर होने के साथ-साथ गाड़ी के टायर बदलने में भी पसीने से लथपथ नजर आ रही है। आज की नारी। जमाना उसके इस अंदाज को आंखे पफाडे देख रहा है।
दूसरे शब्दों में कहें तो समाज में नारी अपने बलबूते पर चाहे कितनी ही आगे क्यूं ना बढ़ जाऐं, चाहे वह सानिया मिर्जा बने या सुनीता विलियम्स, समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी स्त्राी की शक्ति, योग्यता, साहस व बु(िमत्ता को अपने ही बनाये सांचे में पिफट करना चाहता है। स्त्राी का आस्तित्व आज भी समाज के माथे पर बल डाल देता है।
बदली नारी की दुनिया
आज की नारी ने अपने बलबूते पर अपनी दुनिया को ही सतरंगा बनाया है। यह सब किया है उसने शिक्षा व अपनी हिम्मत के बल पर। नारी ने यह समझ लिया है कि जब तक वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होगी तब तक वह अपनी तस्वीर नहीं बदल सकती। आज शिक्षा के बल पर ही वह सारा आकाश अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश में जुटी है तथा वे माएं भी जो खुद नहीं कुछ कर सकी हैं वे अपनी बेटियों के लिए सबकुछ जुटा देना चाहती हैं तथा बेटियों के कंध्े से कंध मिलाकर हर कदम पर उनका साथ दे रही हैं। आज की स्त्राी ने संतुलित व्यवहार कर यह दर्शा दिया है कि वह आजादी चाहती हैं लेकिन आजादी का अर्थ घर-परिवास से दूर हो जाना या अपनी संस्कृति व सभ्यता को भूलना नहीं है बल्कि आजादी का मतलब सिपर्फ इतना है कि वह अपने लिए इस पुरुष प्रधन समाज में सम्मान पाना चाहती है। आध्ुनिक स्त्री ने अंध्विश्वासों व रुढ़ियों को दरकिनार किया है। ना कि आस्था व संस्कारों को।
कमजोर कभी भी ना थी स्त्राी
पुरुष प्रधन समाज में पुरुष का एकाध्किार सदियों तक इसलिए कायम हो पाया है क्योंकि हर सपफल पुरुष के पीछे किसी ना किसी नारी का हाथ होता है। स्त्राी ने हमेशा पुरुष को समर्थ बनाने में ही सहयोग दिया। अपना सब कुछ उसने पुरुष को साम्यर्थशाली बनाने में लगा दिया लेकिन पुरुष ने हमेशा ही स्त्राी को महत्वहीन समझा वह हमेशा ही उसे ‘सुन्दर वस्तु’ के रुप दिखी तथा घर की एक अनुपयोगी बस्तु ही लगी। पुरुष कभी भी यह समझ नहीं सका कि यदि वह शक्तिशाली हो पाया तो इसका बहुत बड़ा कारण स्त्राी है क्योंकि स्त्राी ने अपनी सारी शक्ति पुरुष को ही समर्थ बनाने में उडेल दी है। कभी बेटी के रुप में कभी पत्नी के रुप में कभी मां के रुप में। आज की स्त्राी ने विद्रोही स्वर डठा दिये है। तो सिपर्फ इसलिए कि पुरुष जो उसे महत्व देना दूर की बात है उसके अस्तित्व को ही नकारा है। तभी सदियों की दबी चिंगारी लावा बनकर पफूट पड़ी है। कमजोर तो स्त्राी कभी भी नहीं थी। जब वह पुरुष को शक्तिशाली बना सकती है तो वह कैसे कमजोर हो सकती है। मां के रुप में पन्नाधय को याद करें तो अपने कर्त्तव्य के लिए उन्होंने अपने ही पुत्रा की बलि चढ़ा दी। स्त्राी के रूप में लक्ष्मीबाई को याद करें तो पुत्रा को कमर से बांध् कर ही यु( के मैदान में कूद पड़ी। अर्थात स्त्राी तो हमेशा से ही शक्ति का प्रतिबिम्ब रही है। साथ ही यह बात भी सही है कि पहले के मुकाबले आज की स्त्राी स्मिता को अध्कि खतरा है। आर्थिक, सामाजिक तथा शिक्षागत रुप से तो स्त्राी की स्थिति पहले से अधिक बेहतर है लेकिन अगर शहरी चकाचौंध से दूर गांवों में स्त्राी की स्थिति में आज का अंतर पहले से अध्कि नहीं है। गांवों में स्त्राी पूरी तरह से शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाती है। अपने संस्कारों व जडो में वह आज भी जकड़ी हुई है। चाहे स्त्राी शहरी हो या ग्रामीण निर्भय तो वह आज कहीं भी नहीं है। आए दिन अपराधें तथा बलात्कारों को देखें तो स्त्राी अभी भी अपनी देह से मुक्त नहीं हो पायी है। पुरुष आज भी अययाशी के बावजूद अपने को अपवित्रा नहीं मानता लेकिन अपनी कोई भी गलती ना होने के बावजूद स्त्राी अपने को हीन व अपवित्रा समझती है। यह बात आज हर स्त्राी हर मां को समझनी होगी कि इतनी समर्थ होने के बावजूद भी वह अपनी अस्मिता की रक्षा क्यांे नहीं कर पाती। आपने अंदर शारीरिक ताकत और अध्कि जुटाने की आवश्कता है।
स्त्राी को अपने शरीर के अलावा अपने मस्तिष्क को भी मनवाना व पहचानना होगा ताथ वह अपना भविष्य में अपना रुप गढ पाएंगा
मुश्किलोंमें संभली है हमेशा
अगर पुरुष के सामने मुश्किलें आती है। तो वह सहारा तलाशता है। लेकिन अगर स्त्राी के सामने आतीं हैं तो वह हमेशा लड़खड़ाकर खड़ी हो गई है। नारि अत्याचार व जुल्म सहकर भी खड़ी रही है। हर मोड पर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज भी स्त्राी को पिफर भी कदम-कदम बढ़ाकर अपनी मंजिल तक पहुंची है आज की नारी के तेवर कापफी हद तक बदल गये हैं। आज अपने पफैसले खुद लेने में वह सक्षम है। सही हो या गलत लेकिन खुद अपना भविष्य तराश रही है। कड़ी चुनौतियों का सामना करके इस स्थिति तक पहुची हैं स्त्राी रातोरात यहां तक नहीं पहुंची है। बहुत समय लगा है। इस पुरुष प्रधन समाज में अपनी जगह बनाने में। हम क्यों चाहते हैं कि स्त्राी का हर पफैसला सही है, वह लड़खड़ाये नहीं हर समस्या का समाधन ढूंढे, वह भी तो इंसान है, गलतियां तो उससे भी होगीं ही लेकिन उसकी गलतियों को नजरअंदाज क्यों नहीं किया जाता हैं जब पुरुष बंदिशों में जकड़ा नहीं रह सकता पिफर स्त्राी के ऊपर इतनी बंदिशें क्यों। अगर हम स्त्राी की शिक्षा व विकास में कोई बाध ना डालें तो यह परिवर्तन सिपर्फ स्त्राी को ही नहीं होगा वरन् उसका परिवर्तन हर दिशा में दिखेगा। स्त्राी के लिए अवसर तलाशना कोई आसान काम नहीं है लेकिन उसे जब भी ये मौका मिले हैं उसने अपने आपको साबित ही किया है। ध्ीरे-ध्ीरे ही सही वह अपने विकास के रास्ते खुद ही खोलती जा रही है। अब वह इंतजार करने के अवसर नहीं तलाश रही वरन उसे छीनने की ताकत रखने लगी है।
आज की पीढी मिश्रित रूप
आज की पीढी में एक मिश्रित रूप देखने को मिल रहा है। जहां आज की युवा पीढ़ी अध्कि आजाद ख्याल वाली, शिक्षित, आत्मविश्वासी व साहसी है। और विपरीत परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करने की भी हिम्मत रखती है। आवश्यकता है तो जितनी आजादी वे पा रहे हैं या अपने लिए मांग कर रहे हैं। उतनी आजादी का वे अपने व अपने समाज के विकास के लिए लाभ भी उठा पा रहे हैं। मार्डन होने का सही व व्यापक अर्थ उन्हें समझना होगा। आज भी नारी अध्किांशतः नारी की उन्नति नहीं चाहती है। अगर ऐसा होता तो ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी नारी की दशा दयनीय नहीं होती। वहां पर नारी की दशा में पिछले कई दशकों में अध्कि अंतर देखने को नहीं मिला है। वहां पर स्त्राी बहुत हिम्मती तथा मेहनती तो है परन्तु आत्मविश्वास का अभाव सर्वत्रा है शायद यह अशिक्षा के कारण है। यदि शिक्षा सही दिशा में मिले तो शुरू से ही आत्मविश्वास से परिपूर्ण संस्कार स्त्राी को मिलेगे तथा वह अपना भविष्य अपने हाथों से ही निर्मित करने की ताकत रखेगी। महिला शिक्षा संस्कार में योग, वेदांत व पारम्परिक मूल्यों का समावेश होना बहुत अध्कि आवश्यक है। अन्यथा भविष्य की नारी कमजोर होगी आजादी का सही अर्थ अपने पारम्परिक मुल्यों की अनदेखी करना नहीं है। स्त्राी का सच्चा स्वरुप उसे बेहद शक्तिशाली बनाता है। न कि कमजोर। पुरातन मूल्यों व संस्कारों के पुराने होने का अर्थ पिछड़ा होना नहीं है। जरूरत है तो सही दिशा में अपनाने की
परम्परा व आध्ुनिकता का संतुलित जीवन
आज की नारी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह परम्परा व आध्ुनिकता के मिले जुले रुप के साथ एक संतुलित जीवन को जीने की कोशिश कर रही है। नकारात्मक सोचों से जूझकर वह अगर आज अपनी उपस्थिति दर्ज करना पा रही है तो यह बिल्कुल उसके सशक्त रुप को दर्शाता है। जीवन में अपना भविष्य कैसे सुनिश्चित करनाह ै यह उसका पफैसला है तथा इसके निर्णय का अध्किार भी उसी को होना चाहिए। आध्ुनिकता व परम्परा दोनों का मिश्रण है आज की नारी इसलिए अगर कोई साड़ी पहनता है तो वह जीन्स या वेस्टर्न डेªस पहनने वाले से अध्कि संस्कारी है। यह सोच हमें अपनी बदलनी होगी। भारतीय संस्कार इतने कच्चे नहीं हैं कि अपना मूल्य हम अपनी पोशाकों के आधर पर तय करें।
भारतीय नारी की सही परिभाषा समझने के लिए संस्कार व गरिमा जैसे व्यापक अर्थ वाले शब्दों को समझने के लिए सोच भी बड़ी रखने की आवश्यकता है। आज की स्त्राी में परम्परा का मिला जुला स्वरूप ही देखने को मिला है। अपने अन्दर आत्मविश्वास के साथ हमें आगे बढ़ना है। तथा साथ ही पिछडी ग्रामीण महिलाओं को हीन दृष्टि से ना देखकर उन्हें भी शिक्षा द्वारा भविष्य की राह दिखानी है।

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