Saturday, March 2, 2013

इच्छाधारी नागिन

इच्छाधारी नागिन


खानदान का सबसे लम्बा दौर था। वह युग पूरी उन्नति पर था, जो अकबर से आलमगीर तक फैला हुआ था। शाहजहां के शासन काल को इस दृष्टि से अधिक महत्व प्राप्त है, क्योंकि सबसे अधिक शानदार तथा यादगार निर्माण उसी दौर में हुए थे। उसके शासन काल में देश में प्रायः शान्ति थी। जनता खुशहाल थी तथ उसके बुद्धिमान व योग्य गर्वनर देश के सारे प्रदेशों में पूरी योग्यता के कथा प्रबंध संभाले हुए थे।
उसी शासन काल में कश्मीर प्रदेश का गवर्नर शाहजहां के दरबार का प्रसिद्ध अली मरदान खान था। वह बड़ी योग्यता व क्षमता का मालिक तथा बहुत अनुभवी व्यक्ति था। उसकी बुद्धिमानी का लोहा मुगल दरबार के सभी लोग मानते थे। उसने कश्मीर के गवर्नर का पदभार संभालते हुए प्रदेश को उन्नति के शिखर पर पहंुचा दिया था कि एक दिन देश का वह भाग स्वर्ग प्रतीत होने लगा। कश्मीर अब तक मुगल सम्राट की सैर व तफरीह का मुख्य केंद्र बन चुका था। देश के हर प्रांत से सम्मानित लोग यहां खिंचे चाले आते थे। गवर्नर अली मरदान का सबसे बड़ा शौक शिकार करने का था। उसे जब भी व्यस्तता से मुक्ति मिलती, तो वह अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर शिकार के उद्देश्य से जंगल की ओर निकल पड़ता और कुछ रोज सैर व तफरीह में गुजारने के बाद लौट आता।
इसी तरह वह एक दिन शिकार की खोज में अपने साथियों के संग आगे बढ़ा जा रहा था कि उसे एक हिरन नजर आया। उसने अपने साथियों को पीछे छोड़ा तथा अपना घोड़ा उस हिरन के पीछे दौड़ा दिया।
अली मरदान खान उस हिरन के पीछे ही बढ़ता चला गया। उसने हर संभव कोशिश की, परंतु शिकार किसी भी तरह उसके निशाने पर नहीं आ रहा था। कुछ दूर पीछा करने के पश्चात सहसा हिरन उसकी दृष्टि से ओझल हो गया। अली मरदान खान ने उसे बहुत खोजा, किंतु हिरन तो इस तरह से गायब हो गया था कि जैसे जमीन ने निगल लिया हो। अली मरदान खान को बड़ी मायूसी का सामना करना पड़ा। अब उसके पास वापसी के अतिरिक्त अन्य विकल्प नहीं बचा था।
वापसी पर वह अभी कुछ दूर ही चला होगा कि उसे करीब से ही कोई आहट सुनाई दी। उसने रुककर ध्यानमग्न होकर सुना तो लगा कि कोई युवती दर्दनाक स्वर में रो रही है। वह अचरज में पड़ गया कि इस घने जंगल में कौन अपने भाग्य को रो रहा है। उसने आवाज की ओर घोड़ा मोड़ दिया। वह अभी कुछ दूर ही गया था कि सामने की ओर देखकर आश्चर्यचकित रह गया।
एक अत्यंत खूबसूरत नौजवान लड़की, जिसने शहजादियों जैसा कीमती लिबास पहना हुआ था तथा बहुमूल्य आभूषण धारण किये हुए थे, एक वृक्ष तले बैठी रोए जा रही थी। अली मरदान खान ने एक नजर में ही अनुमान लगा लिया था कि वह सुन्दरी कश्मीरी नहीं है, बल्कि किसी अन्य देश की रहने वाली है। वह लड़की इतनी खूबसूरत थी कि अली मरदान खान की आंखें चकाचौंध होकर रह गईं। उसने पहले कभी इतनी सुन्दर नवयौवना नहीं देखी थी, किन्तु उसे आश्चर्य इस बात पर था कि वह हसीना जंगल में कैसे पहंुची और यहां बैठी क्यों रो रही है। आखिर वह घोड़े से उतरा और पूछने लगा, ‘‘तुम कौन हो और क्यों रो रही हो?’’
‘‘क्या बताऊं? मेरी मुसीबत का किसी के पास इलाज नहीं हैं आपको बता भी दूं तो आप क्या करेंगें?’’ लड़की निरंतर रोते हुए बोली।
‘‘ऐसे रोने से मुसीबत टल तो नहीं जाएगी।’’ अली मरदान खान ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘मुझे अपने बारे में बताओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगा। मैं इस कश्मीर प्रदेश का गवर्नर हंू।’’
‘‘ओह।’’ लड़की के मुख से निकला। फिर उसने अपनी दास्तान सुनानी शुरू की, ‘‘मैं चीन के इलाका संकियांग के बादशाह की बेटी हंू। उनके बाद मुझे ही शासन चलाना था, लेकिन भाग्य का लिखा कौन मिटा सकता है। अभी पिछले दिनों पड़ोसी देश के क्रूर शासक ने हमारे देश पर हमला कर दिया। उसके साथ घमासान लड़ाई हुई और उस लड़ाई में बादशाह मारा गया और हमें हार का सामना करना पड़ा। मैं किसी तरह जान बचाने में सफल हो गई। फिर पनाह की तलाश में छुपती-छुपाती हुई इधर आ निकली।’’
‘‘अब तुम दुश्मनों की पहंुच से बाहर हो। तुम्हे घबराने की बिल्कुल ही जरूरत नहीं है।’’ अली मरदान खान ने सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘अब तुम चीन की सीमा से निकलकर हिंदुस्तान पहंुच गई हो। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हंू कि यहां तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहंुचा सकता। मैं यहां का गवर्नर हंू।’’
‘‘मगर...मगर।’’ लड़की ने निरंतर रोते हुए कहा, ‘‘मेरे मां-बाप अब इस दुनिया में नहीं रहे। मेरा सब कुछ लुट गया, मैं अकेली जिंदा रहकर क्या करूंगी?’’
‘‘मेरे साथ चलकर मेरे महल में रहो, वहां तुम हर प्रकार से सुरक्षित रहोगी। तुम्हें हर तरह का आराम उपलब्ध हो जाएगा।’’
‘‘आप बहुत रहमदिल इंसान हैं। आपकी हमदर्दी की मैं बहुत एहसानमंद हंू।’’ लड़की ने सिर झुकाते हुए कहा, ‘‘मगर महल मंे मेरी हैसियत क्या होगी?’’
अली मरदान खान सोच में पड़ गया। उसने कुछ क्षण बाद झिझकते हुए कहा, ‘‘अगर बुरा नहीं मानो तो मेरे दिल की बात सुन लो। मुझे तुम्हें अपनी मलिका बनाने की तमन्ना है। इस तरह तुम्हारी हैसियत बुलंद हो जाएगी।’’
‘‘आपकी हमदर्दी को देखकर मैं इंकार भी नहीं कर सकती।’’ लड़की ने शर्माते हुए गर्दन झुका ली।
उसकी सहमति देखकर अली मरदान खान ने लड़की को अपने साथ घोड़े पर पीछे बिठाया और वापसी में उसने अपने मित्रों को लड़की की दर्दनाक दास्तान सुनाई तथा उसने उस लड़की से विवाह करने के निणर्य से अवगत भी कराया। सभी ने उसके फैसले पर मुबारकबाद दी।
शादी की खुशी और मौज-मस्ती के जश्न के हंगामों के खत्म होने के कुछ दिन पश्चात एक रोज अली मरदान खान की पत्नी ने उससे कहा, ‘‘मेरे सरताज! आपको पाकर मेरा दिल खुशियों से भर पड़ा है, लेकिन एक तमन्ना अभी बाकी है, अगर उसे पूरा करने का वादा करें तो कहंू?’’
‘‘अब तो मेरी जिंदगी का मकसद है कि मैं सारी उम्र तुम्हारे दामन को दुनिया भर की खुशियों से भरता रहंू। तुम मेरी दिलनशाीं महबूबा हो। एक बार कहकर तो देखो।’’ उसने जोश में कहा।
‘‘मुझे यह डल झील बहुत अच्छी लगती है। मेरा दिल करता है कि मैं इसमें अपना अक्स देखती रहंू।’’ वह चहकती हुई बोली, ‘‘मेरी तमन्ना है कि इसके किनारे मेरे लिए एक महल बनवा दें, ताकि मैं उस महल के झरोखे में बैठकर झील के पानी में अपना अक्स देखा करूं।’’
वह खुश होकर उससे बोला, ‘‘बोला, ‘‘सचमुच तुम जितनी खूबसूरत हो, उतनी ही समझदार भी हो। चलो अब खुश हो जाओ। यह तमन्ना बहुत कम वक्त में पूरी हो जाएगी।’’
वह खुश होकर उससे लिपट गई।
अगले दिन ही अली मरदान खान ने अपने कुशल निर्माणाधिकारियों से परामर्श किया तथा उन्हें आलीशान महल बनाने का आदेश दे दिया। आदेश मिलते ही तुरंत निर्माण कार्य आरम्भ हो गया।
कुछ ही समय पश्चात कठिन मेहनत व कार्यकुशलता के कारण एक बहुत ही खूबसूरत महल तैयार हो गया। सफेद पत्थरों के महल के तीन और बड़े-बड़े बगीचे लगाए गए और चौथी तरफ डल झील में उस महल का प्रतिबिम्ब दिखाई देता था, जो किसी को भी मोहित कर देने के लिए काफी था।
हर प्रकार के प्रबंध के बाद अली मरदान खान अपनी चहेती बीवी को लेकर उस महल में रहने लगा। उसकी पत्नी ने अपने शयनकक्ष के लिए वही कमरे चुने, जो झरोखों से सटे हुए थे। अली मरदान खान की मोहब्बत उसके प्रति निरंतर बढ़ रही थी। वह उसकी हर तमन्ना पूरी करता था।
वे दोनों खुश थे, किंतु यह खुशी अधिक दिन टिक नहीं सकी। अचानक ही अली मरदान खान एक विचित्र रोग का शिकार हो गया। वह एक दिन प्रातः उठा तो उसने महसूस किया कि उसकी तबीयत बोझिल है। शरीर टूट रहा है और पेट में दर्द है। उसने इस रोग पर ध्यान नहीं दिया, मगर समय गुजरने के साथ-साथ रोग बढ़ता गया। शाम को शाही हकीम बुलाया गया। शाही हकीम ने कुछ दवाएं दीं, जिनका उपयोग तुरंत आरम्भ हो गया, परन्तु पेट की पीड़ा में कोई कमी नहीं आई। अगले दिन अन्य हकीमों तथा वैद्य को बुलाया गया। उन्होंने भी अपनी-अपनी समझ के अनुसार दवाएं दीं, मगर यह विचित्र प्रकार का रोग था कि कोई भी दवा उस पर प्रभाव नहीं कर रही थी। सबने मिलकर इलाज किया, किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। रोग अपनी जगह रहा। इस रोग के कारण अब स्थिति यह हो गई कि अली मरदान खान अपने कमरे में कैद हो गया।
वह इतना कमजोर हो गया था कि वह चलने फिरने की शक्ति भी नहीं जुटा पाता था। उसकी बीवी निरंतर हर समय उसके समीप रहती थी तथा हर प्रकार से उसकी देखभाल करती थी। अली मरदान खान बिस्तर पर लेटे-लेटे तथा कमरे में बंद रहने से तंग आ गया था।
एक दिन उसने अपने महल के बगीचे में कुछ देर सैर करने की इच्छा प्रकट की। कुछ दरबारियों ने उसे सहारा दिया और उसे उठाकर सैर कराने के लिए ले गए। वह दरबारियों के सहारे धीरे-धीरे चल रहा था कि सहसा एक पेड़ के नीचे लेटे व्यक्ति पर उसकी दृष्टि पड़ी। दरबारी उस अजनबी को इस प्रकार सोया देखकर आवेश से भर उठे, लेकिन अली मरदान बहुत रहमदिल इंसान था। विशेषकर वह साधु तथा पीर फकीरों की बहुत इज्जत करता था। भले ही वह किसी धर्म का हो।
सो उसने दरबारियों से कहा, ‘‘इसे कुछ मत कहना, वह साधु मालूम पड़ता है, बल्कि इसके लिए एक पलंग लाओ, जिस पर आरामदेह बिस्तर बिछाकर बहुत धीरे से इस साधु को उस पर लिटा दो, ताकि इसको आराम की नींद आ जाए।’’
गवर्नर के आदेश का तुरंत पालन हुआ। उसको पलंग पर लिटा दिया गया। दो घंटे पश्चात जब साधु की निंद्रा टूटी तो स्वयं को नरम बिस्तर पर देखकर अचरज में पड़ गया। अभी वह समझने की कोशिश कर रहा था कि शाही नौकर ने उसके करीब आकर कहा, ‘‘आप परेशान न हों। इस समय आप कश्मीर प्रदेश के गवर्नर अली मरदान खान के खास मेहमान हैं। वह आप से मिलने के इच्छुक हैं।’’
साधु ने इधर-उधर देखकर कुछ चिंतित होते हुए कहा, ‘‘किंतु मेरा पानी का घड़ा भी सुरक्षित है?’’
‘‘आप चिंता मत करें, आपका घड़ा सुरक्षित है।’’
‘‘अच्छा, फिर ठीक है।’’ साधु को संतोष हुआ तथा वह पलंग से उतरते हुए बोला, ‘‘क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप कौन हैं और यह जगह किसकी है?’’
‘‘मैं गवर्नर साहब का खादिम प्रताप हंू और यह महल गवर्नर साहब का है।’’
कुछ देर में वह साधु अली मरदान के सामने था।
‘‘आप कौन हैं और कहां रहते हैं?’’ गवर्नर अली ने पूछा।
‘‘मैं उस गुरुदेव का साधारण शिष्य हंू, जो यहां से कुछ दूर पूर्व दिशा की पहाड़ियों में रहते हैं। वह बहुत ज्ञानी-ध्यानी व्यक्ति हैं। उनके आदेश के अनुसार मेरा कर्तव्य है कि मैं एक पवित्र तालाब से अपने गुरुदेव के लिए जल का प्रबंध करूं। वह केवल उसी स्रोत का जल पीते हैं। वह पानी लाने के लिए मैं कभी-कभी वहां से गुजरता हंू।’’
‘‘ओह ! तो इस घड़े में वही पानी है, जो आपके साथ था?’’
‘‘हां जी, पिछली बार मैं यहां से गुजरा तो यह महल नहीं था। आज इधर आया तो इसे देखकर अचरज में पड़ गया। कुछ समय सुस्ताने के लिए मैं उस वृक्ष के नीचे लेटा गया था कि मुझे नींद आ गई।’’
‘‘क्या यह मुमकिन नहीं है कि कुछ वक्त के लिए आप यहां ठहर जाएं?’’ अली मरदान खान ने प्रार्थना की।
‘‘इसके लिए मैं विवश हंू, क्योंकि सो जाने के कारण पहले ही देर हो गई है। सांझ ढलने से पहले मैं वापस नहीं पहंुचा तो गुरुदेव चिंतित होंगे।’’
‘‘आप फिर कभी इधर से गुजरें तो दर्शन अवश्य दीजिएगा, मैं आपका आभारी रहंूगा।’’
‘‘ठीक है, अगर गुरुदेव से आज्ञा मिली तो अवश्य उपस्थित हो जाऊंगा।’’
‘‘अब मुझे आज्ञा दें। मैं आपकी मेहरबानी तथा कृपया का आभारी हंू।’’
अभी साधु कमरे से बाहर निकल ही रहा था कि सहसा मरदान अली खान के पेट में पीड़ा होने लगी। उसे दौरा पड़ा और वह तड़पने लगा। साधु ने रुककर उसको मुसीबत की हालत में देखा। उसके पूछने पर उसे पता चला कि गवर्नर किसी लाइलाज रोग से पीड़ित हैं, जिसके इलाज से सारे हकीम, वैद्य परेशान हो चुके हैं। इतना मालूम करके वह सोचता हुआ वहां से चल दिया।
अपने गुरुदेव के पास पहंुचकर साधु ने गवर्नर के महल, बगीचे, अली मरदान खान की मेहरबानी तथा मुलाकात का विवरण गुरुदेव को सुनाया। अली मरदान खान की मेहरबानी तथा कृपालु दृष्टि का मुख्यतः विवरण दिया तो गुरुदेव बहुत खुश हए, मगर जब उसने गवर्नर की लाइलाज बीमारी के बारे में बताया तो गुरुदेव ने कहा, ‘‘मुझे यह सुनकर अफसोस व दुख हुआ कि इतने अच्छे व्यक्ति को ऐसे भयंकर रोग ने जकड़ लिया है। कल ही तुम मुझे उसके पास ले चलो, ताकि देखें कि हम उसके लिए क्या कर सकते हैं।’’
अगले दिन ही गुरु शिष्य गवर्नर के महल में जा पहंुचे। अली मरदान खान अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था। साधु ने उससे अपने गुरुदेव का परिचय कराया तथा उनके आने का उद्देश्य बताया। इस पर उसने खुश होकर कहा, ‘‘यह मेरी खुशकिस्मती है कि गुरुदेव के दर्शन हो गए, अगर आप बुजुर्गों के आशीर्वाद से मुझे इस बीमारी से छुटकारा मिल जाए तो उम्र भर आप लोगों का एहसानमंद रहंूगा।’’
गुरुदेव ने बिना कोई क्षण गंवाए कहा, ‘‘मुझे अपना शरीर दिखाओ।’’ गवर्नर ने अपने तन के कपड़े उतारे ही थे कि गुरुदेव की दृष्टि उसके रोगग्रस्त शरीर पर पड़ी। फिर कुछ सोचकर पूछा, ‘‘क्या आपकी शादी अभी हुई है?’’
‘‘जी हां।’’ अली मरदान खान ने कहा। इसके बाद उसने चीनी शहजादी से हुई मुलाकात और उसकी मोहब्बत में गिरफ्तार होने का हाल सुना दिया।
‘‘मुझे आपकी पत्नी पर संदेह है।’’ गुरुदेव ने कहा, ‘‘इस संदेह की पुष्टि के लिए आपको एक काम करना होगा। आप ऐसा करें कि आज रात के खाने के लिए केवल खिचड़ी पकवाएं और उसके अधिक मात्रा में नमक डलवाकर अपनी पत्नी को खिलाएं। सोने से पहले अपने शयनकक्ष से सारा पानी हटवा दें और सारे खिड़की दरवाजों को बाहर से बंद करवा दें।’’
‘‘इससे क्या होगा?’’ मरदान खान ने पूछा।
‘‘यह आपको आज ही रात पता चला जाएगा।’’ गुरुदेव ने कहा, ‘‘लेकिन ध्यान रहे कि आपकी पत्नी को शक न होने पाए कि आप जाग रहे हैं। आप केवल उसकी गतिविधियों पर नजर रखें।’’
गुरुदेव के निर्देशानुसार अली मरदान खान ने रात के खाने के लिए खिचड़ी पकवाई और उसमें अधिक मात्रा में नमक डलवाया। इसके बाद उसने अपने हाथों से खिचड़ी को बड़े चाव से पत्नी को खिलाया। शयनकक्ष में सोने से पहले उसने सारा पानी बाहर फैंक दिया था और गुप्त रूप से नौकरों को निर्देश दे दिया था कि उनके सोने के पश्चात सारे खिड़की दरवाजे बाहर से बंद कर दिए जाएं। वह सो गए तो नौकरों ने चुपके से सारे खिड़की दरवाजे बाहर से बंद कर दिए।
अली मरदान खान जाग रहा था और धड़कते दिल से आने वाले समय की प्रतीक्षा कर रहा था। मध्य रात्रि के समय गवर्नर की बीवी की आंख खुल गई। उसे तेज प्यास लग रही थी, गला चटख रहा था, क्योंकि उसने बहुत अधिक नमक की खिचड़ी खाई थी। उसने शयनकक्ष में इधर-उधर पानी खोजा, किंतु वहां जल नहीं था। उसने शयनकक्ष का दरवाजा खोलने का प्रयत्न किया तो उसमें भी असफल रही। दरवाजा बाहर से बंद था। अब तो वह बहुत झंुझलाई, कुछ देर के लिए उसने कुछ सोचा तथा इस बीच अपने पति की ओर देखती रही।
फिर उसने उसे छूकर देखा, क्या उसका पति सचमुच सोया हुआ है। हर प्रकार से संतुष्ट होकर उसने धीरे-धीरे नागिन का रूप धारण कर लिया तथा खिड़की के मार्ग से नीचे झील में अपनी प्यास बुझाने चली गई। कुछ समय के पश्चात वह वापस आई और उसने मलिका का रूप धारण कर लिया तथा धीरे से अपने पति के करीब बिस्तर पर लेट गई।
अली मरदान खान गुरुदेव के निर्देशानुसार जाग रहा था तथा आंखों के झरोखों से अपनी बीवी की सारी गतिविधियां देख रहा था। फिर वे सारे दृश्य देखकर इतना भयभीत हुआ कि सारी रात सो नहीं सका। उसको सीने पर भारी बोझ-सा महसूस हुआ था कि जिसको उसने महबूबा की तरह चाहा था, वह एक नागिन थी, जो उसकी मलिका का रूप धारण करके उसके पास ही लेटी हुई थी। उसका मन कर रहा था कि तुरंत उससे अलग होकर बीवी को शक नहीं हो, इसलिए उसने चुपचाप रात गुजार दी।
अगली सुबह अली मरदान खान ने गुरुदेव को वह सब सुना दिया, जो कुछ उसकी नजरों के सामने से गुजरा था। पूरी बात सुनने के बाद गुरुदेव ने कहा, ‘‘श्रीमान जी, मैंने यह सब अपना संदेह प्रमाणित करने के लिए कराया था। अब तो आपको विश्वास हो गया होगा कि आपकी पत्नी स्त्री नहीं है, बल्कि लामिया अर्थात नागिन है।’’
‘‘लामिया नागिन...?’’
‘‘हां।’’ गुरुदेव ने स्पष्ट करते हुए कहा।
सांपों में यह क्रिया तब शुरू होती है, जब किसी सांप पर पूरे सौ वर्ष तक किसी मनुष्य की दृष्टि नहीं पड़े तो उसके सिर पर ताज निकल आता है। वह सांपों का सम्राट बन जाता है। फिर सौ साल इसी तरह गुजर जाएं कि उस पर किसी मनुष्य की दृष्टि नहीं पड़े तो उसके सीने व कमर में पांव निकल आते हैं। उसके मंुह से आग निकलने लगती है तथा वह अपनी इच्छा का स्वामी बन जाता है।
‘‘इस स्थिति के सौ वर्ष पश्चात किसी मानव की दृष्टि उस पर नहीं पड़े तो वह सांप लामिया बन जाता है। लामिया बन जाने के बाद सांप की असीम शक्ति व प्रभुता प्राप्त हो जाती है। यहां तक कि वह अपनी इच्छा के अनुसार रूप भी बदल सकता है। यह मात्र संयोग है कि वह असीम शक्ति प्राप्त करके सुन्दर युवती का रूप धारण करना अधिक पसंद करते हैं।
‘‘उस दिन आपकी चीनी शहजादी से मुलाकात हुई थी, तो उसने हिरन का रूप धारण करके आपको अपनी ओर आकर्षित किया था तथा आपको आपके साथियों से अलग कर दिया था। इसके पश्चात चीनी शहजादी का रूप धारण करके आपको अपनी ओर आकर्षित किया तथा प्रेमिका बनकर आपकी पत्नी बन बैठी। वास्तव में यह लामिया है, एक इच्छाधारी नागिन।’’
‘‘ओह।’’ अली मरदान खान ने कहा, ‘‘मेरे साथ कितना खौफनाक हादसा हुआ है। क्या इस भयानक बला से छुटकारा हासिल करने के लिए कोई तकरीब नहीं हो सकती?’’
‘‘तरकीब है, मगर आवश्यकता इस बात की है कि योजनाबद्ध तरीके से काम लिया जाए। उसे थोड़ा भी सन्देह नहीं होना चाहिए, अगर उसे जरा भी भनक लगी तो अनर्थ होने में समय नहीं लगेगा, वह सब कुछ तबाह कर सकती है।’’
‘‘ओह! तो उसके खिलाफ कुछ भी करना तबाही को दावत देना है।’’
‘‘सम्भव तो है, परन्तु योजना के अनुसार काम किया जाए तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस बला से छुटकारा प्राप्त हो जाएगा।’’
फिर गुरुदेव ने अपनी योजना विस्तार से गवर्नर अली मरदान खान को समझाई और इसके बाद अली मरदान खान के आदेश पर योजना को गुप्त रूप से कार्यरत किया गया, जिसमें ज्वलन नहीं लगाई थी। ईंटें भी लाख की बनाई गई थीं। उस मकान मंे एक रसोई भी थी, रसोई में एक तंदूर भी बनाया गया था, जो मिट्टी से बनाया गया था तथ उसका ढकना ठोस भारी लोहे का बनाया गया था।
जब वह मकान तैयार हो गया तो दरबारी शाही हकीम ने अली मरदान खान को उसकी बीवी की उपस्थिति में परामर्श दिया कि वह स्वास्थ्य लाभ के लिए उस मकान में जाकर चालीस दिन तक रहे। उस समय उसके साथ मलिका के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं रहेगा। शाही हकीम की यह सलाह सुनकर मलिका बहुत खुश हुई। उसके लिए इससे बड़ी अन्य क्या बात हो सकती थी कि कुछ समय के लिए उसके पति एकांत में उसका बनकर रह जाएगा। वास्तव में बात यही थी कि वह चाहती ही नहीं थी कि अली मरदान खान उसके अतिरिक्त किसी अन्य से बात भी करे। अतः उसके मुख मंडल पर प्रसन्नता की आभा चमक उठी और वह खुशी-खुशी उसके साथ नये मकान में आ गई। वह बहुत खुश थी तथा बड़ी लगन से अपने पति की सेवा करती रही।
एक दिन अली मरदान खान ने उससे कहा, ‘‘मुझे शाही हकीम ने जौ के आटे की रोटी खाने को कहा है और वह रोटी तुम ही पका सकती हो।’’
‘‘मुझे खाना पकाने व तंदूर इत्यादि से सख्त नफरत है।’’ उसकी बीवी ने तुरंत कहा।
‘‘तुम देख रही हो कि मेरी बीमारी किसी के वश मंे नहीं आ रही है। इसी वजह से मेरी जान को खतरा हो गया है। तुम मेरे लिए इतना काम भी नहीं कर सकतीं? क्या तुम्हंे मुझसे मोहब्बत नहीं है?’’
‘‘आप मुझे पसंद हैं, मैंने आप से मोहब्बत की है।’’ वह प्रेम भरे स्वर में बोली।
अली मरदान खान की बीवी ने अपनी जान बचाने की कोशिश तो बहुत की थी, मगर प्यार-मोहब्बत के कसमें-वादे बीच में आ पड़े तो उसके लिए कोई चारा नहीं था।
वह रोटी पकाने के लिए रसोई में गई तो अली मरदान खान भी उसके पीछे पीछे चला आया। उसने कहा, ‘‘तुम रोटी पकाओ, मैं तुम्हारे पास ही बैठूंगा। मैं देखना चाहता हंू कि रोटी पकाते वक्त तुम कितनी खूबसूरत लगती हो।’’
अली मरदान खान की बात सुनकर उसकी बीवी की हिम्मत बढ़ गई और वह रोटी पकाने की तैयारी करने लगी। सबसे पहले उसने तंदूर में आग जलाई। कुछ ही समय में तंदूर में आग के शोले भड़कने लगे। फिर कुछ ही क्षण पश्चात वे शोले कम हुए तो कोयले लाल अंगारे बनकर दहकने लगे। अली मरदान खान को उसी पल का इंतजार था। उसने मौके का लाभ उठाया। फिर अगले ही
लम्हंे...।
सहसा उसने पूरी शक्ति के साथ उसे तंदूर में गिरा दिया तथा लोहे का भारी व मजबूत ढकना सरका कर तंदूर का मंुह बंद कर दिया, ताकि उस इच्छाधारी नागिन के बच निकलने की कोई संभावना न रहे। इस कार्य से निपट कर गुरु के निर्देशानुसार वह तत्काल बाहर की ओर लपका तथा बाहर आकर उस मकान में आग लगा दी। लाख का बना होने के कारण पूरा मकान देखते ही देखते आग में भस्म हो गया।
आग के भड़कते हुए शोलों को देखते ही गुरुदेव ने वहां पहुंचने में देर नहीं लगाई। फिर वह अली मरदान खान को बधाई देते हुए बोला, ‘‘आपने बिल्कुल ठीक किया है। मेरे निर्देश का पूरा पालन हुआ है। अब आप जाएं तथा पूरा आराम करें। कुछ दिन पश्चात मुलाकात होगी तो मैं आपको एक चीज दिखाऊंगा।’’
कुछ दिन गुजरने के बाद अली मरदान खान की गुरु से मुलाकात हुई तो वह उसे लेकर उस जगह पर गया, जहां लाख का मकान बना हुआ था तथा अब वहां सिर्फ राख का ढेर था।
गुरुदेव ने कहा, ‘‘इस राख के ढेर में आपको मणि मिलेगी।’’
अली मरदान खान ने कुछ ही देर बाद उसे राख के ढेर में चमकदार नागमणि खोज निकाली। वह हर्ष व उल्लास के कारण चिल्लाने लगा।
‘‘अरे! यह कितनी खूबसूरत और चमकीली मणि है।’’
‘‘अगर आपको यही मणि इनती पसंद आ गई है तो इसे आप ही रख लें। मैं केवल यह राख ही ले जाऊंगा।’’
इसके बाद गुरुदेव ने अपने चेले की मदद से वह राख एक गठरी में बांधी और वहां से चल दिये। कई वर्षों तक उसे मणि में छुपे भेद का पता नहीं चला तथा गुरु चेले ने उस राख का क्या किया? यह भी मालूम नहीं हो सका।
एक दिन अली मरदान खान बड़े चाव से उस नागमणि को रगड़-रगड़ कर साफ कर रहा था कि सहसा वह मणि हाथ से छिटककर पीतल के गिलास से जा टकराई। फिर अगले ही क्षण वह पीतल का गिलास, सोने के गिलास में बदल गया। अली मरदान इस चमत्कार से अचरज से भर उठा। उसने अनेक धातु की वस्तुओं पर उसका प्रयोग करके देखा तो पाया कि उसी मणि के छूते ही धातु सोना बन जाती है।
अली मरदान खान जब तक जिंदा रहा, वह मणि उसके पास ही रही। उसने अपनी विचित्र दास्तान अपने रोजनामचे में लिखी थी, जो आज भी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक ‘मासिर आलमगीरी’ में दर्ज है। औरंगजेब का दौर आरंभ हुआ तो अली मरदान खान मर चुका था। उसके महल से कई मन सोना बरामद हुआ था, मगर वह मणि नहीं मिल सकी थी, जिसका जिक्र उसने अपने रोजनामचे में किया था।

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