Saturday, March 2, 2013

कतनी सुरक्षित हैं महिलाएं

चार भाई बहनों में सबसे छोटी मनीषा जिसकी सौम्यता व सुन्दरता की मिसाल आस पड़ोस के लोग ही नहीं बल्कि जिस कॉलेज में वह पढ़ती थी वहां के स्टुडेंट और टीचिंग स्टॉपफ सभी देते थे। ब्रेन विद ब्यूटी का आलम यह था कि उसने अपने कालेज की सबसे सूबसूरत व इंटेलिजेंट लड़की का खिताब भी जीता। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली मनीषा कॉलेज की शान मानी जाती थी। लेकिन आज वही हर दिल अजीज, खूबसूरती की मिसाल मनीषा अस्पताल के बैड पर लेटी बुरी तरह कराह रही है। उसे देखकर दोस्तों व रिश्तेदारों के आंसू हैं जो थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। जो कोई भी अस्पताल पहुंचा उसे देखकर भय से कांप उठा, चेहरा पूरा पट्टियों से ढका है हाथ और पांव बुरी तरह झुलसे हुए हैं। इस मासून ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इसे अपनी छेड़खानी का विरोध् करने की इतनी भयानक सजा मिलेगी। इस मासूम पर दौलत के नशे में अंध्े कुछ रईसजादों ने उसके ऊपर तेजाब डालकर इसे बुरी तरह झुलसा दिया... आखिर क्यों आध््रमिकता की ओर अग्रसर समाज इतना असंवेदनशील होता जा रहा है। जो महिला के अस्मत और जीवन के साथ खिलवाड़ करने में भी समाज के हैवानों के हाथ नहीं कांपते हैं-
देश के महिलाओं संबंध्ति बहुचर्चित मामले जैसे नैना साहनी हत्याकांड, जेसिका लाल मर्डर केस, आरुषि हत्याकांड, अरुणिमा केस, निठारी कांड, सौम्या रंगनाथन, शिवानी भटनागर, प्रियदर्शिनी भट्टू, रुचिका हत्याकांड, आदि महिलाओं
सरसरी दृस्टि-
घर में बच्ची का जन्म होते ही मां बाप को सबसे बड़ा डर उसकी सुरक्षा को लेकर ही होता है। इसके अतिरिक्त मां-बाप यही सोचते हैं कि बेटियां कितनी भी पढ़ लिख जाएं लेकिन आखिर बाद में तो उन्हें संभालनी घर की चूल्हा चौकी है। कुछ मां बाप सोचते हैं कि बाद में बेटी को ससुराल विदा करने के साथ-साथ अच्छा खासा दहेज भी साथ में देना पड़ेगा। शायद यही वजह है कि देश में आज भी बड़े स्तर पर कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं। समाज की ऐसी सोच बेटियों के लिए खतरनाक साबित होती है। घर में पहला लड़का होने पर खुशियों का माहौल छा जाता है। जबकि अगर पहली बेटी हो जाए तो घरवालों को उतनी खुशी नहीं होती। क्या बेटी होना गुनाह है? पहले बेटे के बाद बेटी हो तो ठीक लेकिन पहली बेटी के बाद दूसरा बेटा ही होना चाहिए।
पिफर थोड़ा बड़े होने पर जब वह स्कूल जाने लगती है तो उसकी सुरक्षा की चिन्ता की कहीं उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाए यह डर मां बाप को चैन की नींद सोने नहीं देता, स्कूल या कॉलेज जाने पर कहीं उसका किसी के साथ अपफेयर न चल जाए कहीं वह अपनी पसंद से कसी गैर जाति या र्ध्म के लड़के से विवाह करके समाज में हमारा उठना बैठना ना बंद करवा दें... समाज की ऐसी सोच ऑनर किलिंग जैसी घटनाओं को भी बढ़ा रही हैं। जहां पर बेटियों की इज्जत के नाम पर निर्मम तरीके से हत्या कर दी जाती है।
बलात्कार और यौनशोषण की घटनाएं तो महिलाओं के जीवन को तार-तार कर देती हैं। ऐसी घटना की शिकार महिला के साथ समाज ऐसा घृणित व्यवहार करता है कि मानसिक तनाव में आकर वह आत्महत्या तक कर लेती है। हॉल ही में एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे में दिल्ली के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की कई छात्राओं ने यह अपना नाम छुपाते हुए यह खुलासा किया कि परिवार के कई सदस्यों द्वारा बचपन में उनके साथ भी यौन उत्पीडन से संबंध्ति घटनाएं हो चुकी हैं। मनोवैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकारते हैं कि बचपन में बच्चों के साथ ऐसी घटनांए सारी उम्र उन्हें मानसिक रुप से परेशावन करती हैं। जिसका असर उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है, क्योंकि ऐसे मामलों में भय या शर्म से बच्चे ऐसी बातों का खुलासा नहीं कर पाते।
समय बदलने के साथ-साथ भले ही समाज में और देश में महिला सशक्तिकरण की बातें होती रहें लेकिन यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच में आज भी बदलाव नहीं आया है। यही कारण है कि ऑपिफसों में कार्यरत महिलाओं व सड़कों पर चलती महिलाओं के अलावा आज अपने ही घर में अपने रिश्तेदारों से महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।
बनना होगा मजबूत और संघर्षशील
आए दिन सड़कों पर चैन स्नैचिंग की घटनाएं हो रही है। जिनमें से सबसे अध्कि ये घटनाएं महिलाओं के साथ हो रही है। इस बात पर सर्वोदय विद्यालय में हिन्दी टीचर मध्ु का कहना है कि हमारे घरों में बचपन से ही बेटियों की मानसिकता को ऐसा बनाया जाना चाहिए कि वो अबला नहीं सबला हैं। मतलब कि मौका आने पर दुर्गा या काली बनने से भी पीछे न रहो। हमारे साथ छेड़खानी या चैन स्नेचिंग जैसी घटनाएं आसानी से इसलिए हो जाती हैं कि हम डटकर इसके लिए विरोध् व संघर्ष नहीं करते अगर बस या सड़क पर किसी महिला के साथ छेड़खानी होती है तो वहां खड़ीं अन्य महिलाओं को मिलकर इस बात का विरोध् करना चाहिए। इसके अतिरिक्त महिलाओं को अपनी सेल्पफ डिपफेंस के लिए जूडो कराटे आदि भी सीखने चाहिए ताकि उनका पर्स चोरी करने या चैन स्नेचिंग करने पर चोरी करने वाले को ऐसा करारा जवाब दिया जाए कि वह भी अगली बार किसी महिला के साथ ऐसा करने पर दस बार सोचे।
नाईट शिफ्रत करने वाली महिलाओं की सुरक्षा
देश में रात की पॉली में कार्य करने वाली महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी कई सवाल उठ खड़े हुए हैं क्योंकि पिछले वर्ष दिल्ली में रात की पॉली में काम करने वाली महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की खबरें अखबारों में छपी, इन घटनाओं के बाद दिल्ली सरकार नींद से जागी और पिफर बीपीओ कंपनियों व कैब मालिकों को सख्त दिशा निर्देश दिए गये जिसके अन्तर्गत ऐसी महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने कम्पनियों को कहा कि रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं को सुरक्षित घर छोड़ने की जिम्मेदारी कम्पनी की होगी। साथ ही रात की पाली में काम करने वाली इन महिला कर्मचारियों को घर के दरवाजे तक छोड़ना होगा आदि। पर यह बिडम्बना ही है कि जब कोई घटना घटित होती है तो तभी प्रशासन की नींद खुलती है कुछ दिन दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन होता है पिफर वही पुराने ढर्रे पर कार्य होने लगते हैं। यही कारण है कि रात में महिलाएं कभी सुरक्षित महपफूज नहीं करतीं।
देश की राजधनी दिल्ली में बढ़ती असुरक्षा
देश की राजधनी दिल्ली और दिल्ली वालों का दिल द द दिल्ली आज महिलाओं के लिए पूरी तरह असुरक्षित हो गयी है। दिल्ली में हर वर्ष लाखों की संख्या में रोजगार की तलाश में देश के अविकसित क्षेत्रों, ग्रामीण व दूर दराज के इलाकों से लोग आ रहे हैं। हाल ही में घटी कुछ घटनाओं में महिलाओं के खिलापफ बढ़ते क्राईम ग्रापफ को देखकर तो दिल्ली सरकार ने भी हाथ खड़े कर लिए हैं। आज दिल्ली की हालत यह है कि यहां महिलाएं ही नहीं मासून बच्चे जिनमें लड़के व लड़कियां दोनों शामिल हैं इनके अलावा बुजुर्ग महिलाएं भी असुरक्षा के साए में जी रही हैं। यह बात दिल्ली में घटी दो घटनाओं जिनमें एक में बच्चों को स्कूल ले जाने वाली कैब ड्राइवर ने ही एक विध्वा महिला के तीन बच्चों जिनमें दो लड़के व एक लड़की भी शामिल थे नशीला पदार्थ खिलाकर कई बार उनके साथ दुष्कर्म किया। उसने बच्चों के मन में इतना खौपफ भर दिया कि इतने समय से बच्चे मां से भी कभी कुछ न बोल पाए। मगर जब बात का खुलासा हुआ तो बहुत देर हो चुकी थी। इसके अलावा दूसरी घटना में दिल्ली के रोहिणी इलाके में 77 वर्षीय बुजुर्ग महिला के साथ एक रिक्शेवाले ने बलात्कार किया। आखिर क्यांे समाज नैतिक पतन की दलदल में ध्ंसता जा रहा है। दिल्ली की एक अन्य घटनायें एक कॉलेज की छात्रा को राह चलते कुछ लड़के कार में उठाकर ले गए और छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।
नेशनल क्राइम रिकॉड ब्यूरा की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली महिलाओं के साथ केवल बलात्कार व छेड़छाड ही नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर हत्या के केस भी दर्ज हुए हैं। दिल्ली में होने वाली हत्याओं में से एक चौथाई संख्या महिलाओं की हैं। वर्ष 2010 के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि दिल्ली में बलात्कार के 489 केस दर्ज हुए जो वाकई में एक गंभीर बात है। जिसके निदान के लिए सख्त से सख्त कदम उठाए जाने चाहिएं।
आखिर क्यों अपराध्ी ऐसा करने से खौपफ नहीं खाते हैं? अपराध्यिों के मन में पुलिस व कानून का खौपफ खत्म होता जा रहा है। और इसका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है। अपराध्ी अगर पकड़ा भी जाता है तो बड़ी आसानी से पुलिस को मोटा पैसा खिलाकर छुट जाता है। यही कारण है कि दूसरा अपराध करने के लिए उनके हौंसले बुलंद हो जातें हैं। तभी तो महिलाओं के प्रति क्राइम ग्रापफ घटने की बजाए दिन पर दिन बढता ही जा रहा है। जबकि बलात्कारी आराम से ध्ूमता पिफरता है। यही वजह है कि लोकलाज के चलते कई मामले उजागर भी नहीं हो पाते। महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने वाले अपराध्यिों को कानून द्वारा सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए।
कुछ मामलों में महिलाएं स्वयं भी दोषी
बहुत बार ऐसे भी मामले सामने आते हैं जिनमें महिलाएं अपने साथ होने वाले यौनशोषण के लिए स्वयं भी जिम्मेदार होती है। क्योंकि पश्चिमीकरण और आध्ुनिकता की दौड़ में अंध्ी कुछ युवतियों व महिलाएं अपनी स्वतंत्राता का नाजायज पफायदा उठाती है। जिसमें सबसे बड़ा दोष उनके पहनावे व आध्ुनिक सोच को गलत दिशा की ओर मोड़ने का होता है ऐसी खुलेआम ऐसी पौशाकें पहनकर घुमना जिसमें अंगप्रदर्शन बढ़चढ़ कर दिखावा हो। कुछ युवतियां तो जानबूझ कर अपनी भाव भंगिमाओं द्वारा युवकों को उनका पीछा करने के लिए उकसाती हैं। तो ऐसे मामलों में पुरुषों को ही दोष देना सही नहीं है। बल्कि परिवार के लोगों को ही लड़कियों की सुरक्षा को घ्यान में रखते हुए उनपर विश्वास तो करना चाहिए लेकिन उस विश्वास को अंध्विश्वास में परिवर्तित कर लड़कियों को संस्कारों को तिलोनलि देकर मनमानी करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए।
माना कि आज जमाना महिला सशक्तिकरण का है वह घर परिवार और ऑपिफस को संभालने की दोहरी भूमिका निभा रही है। आज ऐसा कोई भी क्षेत्रा नहीं बचा है जहां वे न पहुंच पाई है। वह हर क्षेत्र में पुरुषों को कड़ी टक्कर दे रही है। लेकिन कहीं न कहीं वे असुरक्षा के वातावरण में जी ही रही है। इसके लिए केन्द्र राज्य सरकारों को मिलकर जितना हो सके उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए साथ ही लोगों को महिलाओं के प्रति अपने नजरियों में बदलाव लाने होंगे तब स्थिति कापफी हद तक बदलेगी।

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