Wednesday, February 20, 2013

क्या आप महिलाओं की आजादी के खिलाफ हैं?

मर्द और औरत एक दूसरे के प्रति आज अपराध् के पर्याय बनते जा रहे हैं। औरत को पाने के लिए औरत के साथ ही अपराध् किये जा रहे हैैंं। इसी के बीच जब लिव इन रिलेशन्स, नारी अपराध् और महिलाओं की आजादी पर चर्चा गरम होती है तो हमारी पुरूषवादी मानसिकता इसका तमाम दोषारोपण महिलाओं पर करके सापफ बच निकलना चाहती है। कोई महिलाओं को कपड़े पहनने का सलीका सिखाने लगता है कोई उनके ब्वायपफ्रैंड की गिनती करने लगता है, कोई उनसे मोबाइल छीन लेने की बात करता है तो कोई गांव के लड़कों को लड़कियांे से राखी बंध्वाने की बात करता है। यहीं कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं जो अपराध् का शिकार हो रही महिला के संस्कारों को ही दोषी ठहरा देते हैं, और हैरानी तो तब होती है जब ऐसा करने वालों में महिलाएं भी शुमार होती हैं।
उफपर से तुर्रा ये देखिए साहब कि मर्द बलात्कार करे तो चाउफमीन को दोष दिया जाता है। और औरत जो शिकार बनती है उसकी नीयत और सीरत पर प्रश्न चिन्ह लगा दिये जाते हैं। काश हमारे देश के कर्ण धारों ने एक बार भी ऐसा कहा होता कि हम अपने बेटे को ऐसी शिक्षा देंगे कि वह औरत का सम्मान करे।
इतना होने के बावजूद भी हम वक्त आने पर यह जुमला बोल देते हैं कि यत्रा नारियस्तु पूज्यंते तत्रा रमंते देवता, लड़कियां मां दुर्गा का रूप होती हैं मगर सिपर्फ नवरात्राी में। महिलाओं को पुरूषों के समान अध्किार प्राप्त हैं मगर सिपर्फ कागजों में। सचमुच मेरा भारत महान है।
कितना उचित है लिव-इन रिलेशनशिप
एक ऐसा रिश्ता जिसमें दो लोग बगैर शादी के एक ही घर में और यहां तक की एक ही बेडरूम बांटते हैं। लोग आजाद हो चुके हैं, उनके विचार आध्ुनिक हो गए हैं। शादी-ब्याह को पहला दर्जा नहीं दिया जाता है, आज शादी के मायने ही बदलते जा रहे हैं। लोग इस रिश्ते को अच्छा मानते हैं। युवा पीढ़ी तो यहां तक कहती है कि तलाकशुदा जिन्दगी से सो लिव इन रिलेशनशिप अच्छा है। आज पूरे विश्व में यह आम बात है, पश्चिमी सभ्यता के लिए यह धरणा बहुत पुरानी है। कुछ देशों में तो इसे न्यायिक रूप से मान्यता प्राप्त है किन्तु भारतीय समाज में जहां पर नैतिक और पारंपरिक मूल्यों को आज भी महत्व दिया जाता है, इस रिश्ते को अभी भी अपवित्रा माना जाता है।
समय के बदलते दौर जागरूकता, शिक्षा और मुख्यता पिफल्मों और टेलीविजन के कारण युवा पीढ़ी का झुकाव इस रिश्ते की ओर बढ़ता चला जा रहा है। इसी वजह से उनकी सोच बदलती जा रही है। वह पहले लिव इन रिलेशनशिप में रहना और पिफर यदि चाहें तो शादी की सोच, पसंद करते हैं। आज जो लड़के लड़कियां भारत से दूर चले जाते हैं या यूं कहे कि उन्हें पढ़ाई के लिए अथवा नौकरी के लिए जाना पड़ जाता है, वह इस प्रकार के रिश्ते को पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें अपने देश, परिवार और रिश्तेदारों से दूर रहना पड़ता है या ऐसा कह सकते हैं कि हालात उन्हें इस प्रकार से रहने को मजबूर कर देते हैं। अपने घर से दूर उन्हें भावनात्मक सहारे के साथ-साथ पैसों के बारे में भी सोचना पड़ता है। अच्छी जिन्दगी जीने के लिए उन्हें इस प्रकार लिव इन रिलेशनशिप मंे रहना पड़ता है। वहां पर ना तो माता पिता साथ होते हैं और ना ही कोई रोक-टोक, वे बेझिझक एक साथ रहते हैं। उन्हें किसी को जवाब नहीं देना पड़ता। यहां तक कि वहां का देश भी उन्हें बढ़ावा देता है। आइये जाने कुछ और बातें लिव इन रिलेशनशिप के बारे में बिस्तार से।
लिव इन रिलेशनशिप को क्यों महत्व दें
- इसके जवाब मे रिसर्च भी बहुत हुई है। कई सर्वे किए गए तो पता चला कि इस प्रकार के रिश्ते में जो भी रहते हैं एक ना एक दिन शादी के बंध्न में अवश्य बंध्ेंगे, ज्यादा से ज्यादा पांच वर्ष तक साथ रहने के पश्चाता। इस प्रकार के रिश्ते में अध्कितर जो लोग रहते हैं जो एक दूजे से प्यार करते हैं। अध्कि से अध्कि समय साथ बिताना चाहते हैं।
एक दूसरे को समझने के लिए - एक दूसरे के साथ इसलिए भी रहते हैं जिससे एक दूसरे को अच्छी तरह से जान सकें। एक दूसरे की संगति का पता चल सके। यदि जिंदगी भर साथ रहना है तो एक दूसरे को समझना बहुत आवश्यक होता है, जब एक दूसरे को जानते ही ना हो तो एक साथ जिंदगी बिताने की सोच भी कैसे सकते हैं। इसलिये लिव इन रिलेशनशिप अच्छा रास्ता नहीं है।
क्या यह रिश्ता जिन्दगी भर साथ रहता है?µ यूं एस में हुई रिसर्च से पता चला कि 40 प्रतिशत महिलाएं इस प्रकार के रिश्ते में ज्यादा से ज्यादा 10 वर्ष तक रहकर छोड़ देती हैं। ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है जो जिन्दगी भर चले, उन्हें संतुष्टि प्राप्त नहीं होती है । भारत में केवल कुछ एक बड़े शहरों में ऐसा देखने को मिलता है किन्तु छोटे शहरों में यह अभी भी गलत माना जाता है। यह रिश्ता अध्कितर दोस्ती प्यार की ओर अग्रसर रहता हैं शादी के लिए रास्ता खोल देता है, ऐसे अनेको उदाहरण देखने को मिलते हैं, कि दो लोग किन्हीं कारणों से साथ रहने लगते हैं, यहां तक कि एक ही बेडरूम में रहने लगते हैं। ध्ीरे-ध्ीरे एक दूसरे को समझने लगते हैं और कुछ वर्षों के पश्चात शादी कर लेते हैं।
रिश्ते में दरार आ जाये तो µ एक दूसरे के साथ रहते हुए एक दूसरे की पसंद ना पसंद का भी ध्यान रखना पड़ता है। किसी वजह से यदि रिश्ते में कडवाहट आ जाये तो क्या होगा। सामान्यत भारतीय सभ्यता में इस रिश्ते की कड़ी निन्दा की जाती हैं। हालांकि शहरों की लाइपफ स्टाइल बिल्कुल भिन्न होती जा रही है। वहां पर रह रहे लोग इस रिश्ते को गलत नहीं मानते हैं ना परेशान होते हैं बल्कि वह इसे ठीक मानते हैं कि दो लोग एक साथ रहें तो खर्चा बंटता है। किसी को सहायता की आवश्यकता हो तो तुरंत मिल जाती है, अकेलापन दूर होता है। यदि एक चला भी जाए तो दूसरा रिश्ता कायम हो जाता है। हां समय अवश्य लगता है इससे उबरने में।
24 वर्षीय रीना वो पिछले कई वर्षों से लिव इन रिलेशनशिप में थी। बहुत खुश थी। मस्ती में रहती, कोई चिंता नहीं थी। अचानक वह उदास रहने लगी। पता चला वह जिसके साथ रह रही थी वह किसी बहस की छोड़कर चल दिया। क्या ऐसा शादी के बाद हो सकता है। शायद नहीं। यदि किसी से जीवन भर का साथ जुड़ गया तो आसानी से नहीं टूटता, क्या यह रिश्ते सही हैं?
क्या लिव इन रिलेशनशिप जरूरी है - यह उन लोगों के लिए जरूरी है जो शादी में विश्वास नहीं करते या वो लोग जो शादी के पवित्रा बंध्न में बंध्ने से पहले एक दूसरे की प्रवृति को समझने के लिये साथ रहते हैं। रहते रहते पता चले कि आपस में नहीं बनती, स्वभाव बिलकुल ही भिन्न है या किसी की कोई आदत पसंद नहीं आये तो आसानी से एक दूसरे की जिंदगी से अलग हो सकें। यदि लड़की कामकाजी है तो आज के बड़े शहरों में अकेले रहना मुश्किल हो जाता हे। जहां तक सुरक्षा की ज्यादा जरूरत होती है। लिव इन रिलेशनशिप में कोई डर नहीं रहता, सुरक्षा के साथ साथ पैसों में भी पफायदा मिलता है।
बड़ी उम्र के लोगों में भी लिव इन रिलेशनशिप - आज कल सीनियर सिटीजन में यानि बड़ी उम्र के स्त्राी पुरुषों में भी इस प्रकार का रिश्ता दिखाई पड़ता है। यह उन लोगों में अध्कि होता है जो किन्हीं कारणवश अकेले हो गये हों अथवा शादी ही ना की हो और पेंशन मिलती हो। दोबारा शादी के बंध्न में न बंध्ना चाहते हों क्योंकि शादी कर के उन्हें अपने पैसों को बांटने का डर रहता है। वह भी इस रिश्ते को सही मानते हैं।
इस प्रकार ये कई ऐसी बातें हैं जो लिव इन रिलेशनशिप के लिये ठीक हैं और कुछ ठीक नहीं हैं। कुछ लोग साथ रहते हैं और शादी नहीं करना चाहते हैं, किन्तु कुछेक ऐसे भी होते हैं जो आगे चलकर शादी के बंध्न में बंध्ने के लिये ही साथ रहना चाहते हैं, उनके लिये कुछ ऐसी टिप्स जिससे शादी जैसा पवित्रा रिश्ता सपफल हो सके-
जिसके साथ रहने जा रहे हैं गंभीरता पूर्वक सोचकर तय करें।
एक दूसरे को लिव इन रिलेशनशिप के बारे में जानकारी हो, सारी बातें पहले ही तय कर लें।
उम्मीदों को सीमित रखें। शादी करने या ना करने का तुरंत पैफसला ना लें।
यदि आपको उम्मीद है कि वह शादी के बाद बदल जाएगा तो उससे शादी ना करें।
जो बातें आप अविवाहित में पसंद करते हैं हो सकता है शादी के बाद पसंद ना आये। आंकलन करें।
समय तय करें कि आप कितना समय एक साथ रहें। पहले रिश्ता पक्का करें और शादी की तारिख तय करें ; यह एक रास्ता हैद्ध
एक दूसरे को लगभग छ: माह या एक वर्ष दें जिसमें आप शादी के बारे में गंभीर रूप से बात करें।
एक प्रकार के समझौते पर हस्ताक्षर करें जिसमें आपके पैसों और प्रॉपर्टी के बारे में विस्तार से हों। इस प्रकार की बातचीत रिश्ते को मजबूती प्रदान करेगी।
यदि किसी वजह से अलग होना चाहें तो मदद मिलेगी।
किसी से सलाह लें, दोनों के बारे में जाने। रिसर्च से पता चला है कि स्त्राी-पुरुष दोनों की लगभग एक जैसी शिकायतें रहती हैं, इससे सुविध होगी।
शादी करना चाहते हैं तो हर एक बात के बारे में सोचें कि यदि बदलाव आएगा तो क्या सभी कुछ एक जैसा रहेगा।
बच्चों के बारे में सोचें। एक साथ रहते हुए स्वयं की भावनाओं को रोकें। शादी किसी मजबूरी की वजह से ना करें।
आजकल यह बहुत अध्कि देखने सुनने को मिलता है। लड़का लड़की साथ रहते थे। लड़की मां बनने वाली थी उसने आत्महत्या कर ली। ऐसा हरगिज न करें।
शादी को जीवन में अहमियत दें, इससे जिन्दगी के मायने ही बदल जाते हैं। शादी के बाद बच्चे का जन्म जिंदगी में खुशियां भर देता है। परिवार स्रदृढ बनता है। यदि इन सभी बातों के बारे में आप अपने परिवार के उन सदस्यों से बात करें जो शादीशुदा है। उनके कड़वे मीठे अनुभवों को सुने, समझे। जब उनकी शादी हुई थी वह किसी कठिन दौर से गुजरे तो उन्होंने क्या किया? किस प्रकार वे उन समस्याओं से बाहर निकले आदि बातों को जानकर ही शादी का पैफसला लें। यदि आप लिव इन रिलेशनशिप में हैं और शादी करने की सोच रहे हैं तो लिव इन रिलेशन- शिप
के अच्छे और बुरे दोनों पहलू हैं। अच्छा
यह कि इसमें मजा रहता है। जब चाहे पार्टनर को छोड़ सकते हैं और दूसरे को चुन सकते
हैं। बुरा यदि किसी कारण वश बच्चों का
जन्म हो जाये तो बच्चा सबसे कठिन दौर से गुजरेगा। कभी- कभी तो मां पर इतना असर पड़ता है कि मानसिक तोर से बीमार पड़ जाती है। यदि इस रिश्ते में कड़वाहट आ गई तो कठिनाइयों का अंत नहीं होगा।
सभी पहलुओं को देखते हुए लिव इन रिलेशनशिप के बारे में पता चला कि कुछ
हद तक और कुछ समय के लिए यह रिश्ते सही होते हैं। वास्तव में इस प्रकार के रिश्तों में वह लोग अध्कि जुड़ना पसंद करते हैं जो अपनी जिम्मेवारियों से मुंह मोड़ना चाहते हैं। शादी एक जिम्मेवारी होती है। एक दूसरे को जिंदगी भर साथ निभाने की। परिवार को एक साथ लेकर चलने की। बच्चों को बड़ा करने की यहां तक कि माता-पिता का साथ निभाने की भी। यदि शादी होती है तो इस रिश्ते में जीने की आवश्यकता क्यों होती हैं?
यहां तक कि सेक्स लाइपफ भी सुरक्षित रहती है, जो जिन्दगी की जरूरत है जिसे आप अध्कि प्यार से निभाने में सपफल हो पाते हैं। बावजूद इन सभी बातों के इस रिश्ते को सही कहना या शादी को, यह बात स्वयं पर निर्भर करती है। आज की आध्ुनिकतावादी धरा में लिव इन को पूरी तरह गलत ठहराया जाना पिछड़ेपन की निशानी कही जा सकती है।
कितनी सुरक्षित हैं महिलाएं

चार भाई बहनों में सबसे छोटी मनीषा जिसकी सौम्यता व सुन्दरता की मिसाल आस पड़ोस के लोग ही नहीं बल्कि जिस कॉलेज में वह पढ़ती थी वहां के स्टुडेंट और टीचिंग स्टॉपफ सभी देते थे। ब्रेन विद ब्यूटी का आलम यह था कि उसने अपने कॅालेज की सबसे खूबसूरत व इंटेलिजेंट लड़की का खिताब भी जीता। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली मनीषा कॉलेज की शान मानी जाती थी। लेकिन आज वही हर दिल अजीज, खूबसूरती की मिसाल मनीषा अस्पताल के बैड पर लेटी बुरी तरह कराह रही है। उसे देखकर दोस्तों व रिश्तेदारों के आंसू हैं जो थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। जो कोई भी अस्पताल पहुंचा उसे देखकर भय से कांप उठा, चेहरा पूरा पट्टियों से ढका है हाथ और पांव बुरी तरह झुलसे हुए हैं। इस मासूम ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इसे अपनी छेड़खानी का विरोध् करने की इतनी भयानक सजा मिलेगी। इस दौलत के नशे में अंध्े कुछ रईसजादों ने इस मासूम के ऊपर तेजाब डालकर इसे बुरी तरह झुलसा दिया... आखिर क्यों आध्ुनिकता की ओर अग्रसर समाज इतना संवेदनहीन कैसे होता जा रहा है। जो महिला के अस्मत और जीवन के साथ खिलवाड़ करने वाले हैवान आज भी सीना तान कर खुलेआम ध्ूम रहे हैं।
देश में महिलाओं संबंध्ति बहुचर्चित मामले जिनकी खौपफनाक हत्याएं ने सभी महिला की सुरक्षा के विषय में सोचने पर विवश कर दिया था। जैसे नैना साहनी हत्याकांड, जेसिका लाल मर्डर केस, आरुषि हत्याकांड, अरुणिमा केस, निठारी कांड, सौम्या रंगनाथन, शिवानी भटनागर, प्रियदर्शिनी मट्टू, रुचिका हत्याकांड और हाल ही में सबसे ज्यादा जनाक्रोश दिखाने वाला दामिनी प्रकरण आदि।
घर में बच्ची का जन्म होते ही मां-बाप को सबसे बड़ा डर उसकी सुरक्षा को लेकर ही होता है। इसके अतिरिक्त मां-बाप यही सोचते हैं कि बेटियां कितनी भी पढ़ लिख जाएं लेकिन आखिर बाद में तो उन्हें संभालनी घर की चूल्हा चौकी है। कुछ मां-बाप सोचते हैं कि बाद में बेटी को ससुराल विदा करने के साथ-साथ अच्छा खासा दहेज भी साथ में देना पड़ेगा। शायद यही वजह है कि देश में आज भी बड़े स्तर पर कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं हो रही हैं। समाज की ऐसी सोच बेटियों के लिए खतरनाक साबित होती है। घर में पहला लड़का होने पर खुशियों का माहौल छा जाता है। जबकि अगर पहली बेटी हो जाए तो घरवालों को उतनी खुशी नहीं होती। क्या बेटी होना गुनाह है? पहले बेटे के बाद बेटी हो तो ठीक लेकिन पहली बेटी के बाद दूसरा बेटा ही होना चाहिए।
पिफर थोड़ा बड़े होने पर जब वह स्कूल जाने लगती है तो उसकी सुरक्षा की चिन्ता की कहीं उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाए यह डर मां बाप को चैन की नींद सोने नहीं देता, स्कूल या कॉलेज जाने पर कहीं उसका किसी के साथ अपफेयर न चल जाए कहीं वह अपनी पसंद से किसी गैर जाति या र्ध्म के लड़के से विवाह करके समाज में हमारा उठना बैठना ना बंद करवा दें... समाज की ऐसी सोच ऑनर किलिंग जैसी घटनाओं को भी बढ़ा रही हैं। जहां पर बेटियों की इज्जत के नाम पर निर्मम तरीके से हत्या कर दी जाती है।
बलात्कार और यौनशोषण की घटनाएं तो महिलाओं के जीवन को तार-तार कर देती हैं। ऐसी घटना की शिकार महिला के साथ समाज ऐसा घृणित व्यवहार करता है कि मानसिक तनाव में आकर वह आत्महत्या तक कर लेती है। हॉल ही में एक गैर सरकारी संस्था द्वारा कराए गए सर्वे में दिल्ली के कई छात्राओं ने अपना नाम छुपाते हुए यह खुलासा किया कि परिवार के कई सदस्यों द्वारा बचपन में उनके साथ भी यौन उत्पीड़न से संबंध्ति घटनाएं हो चुकी हैं। मनोवैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकारते हैं कि बचपन में बच्चों के साथ ऐसी घटनाएं सारी उम्र उन्हें मानसिक रुप से परेशान करती हैं। जिसका असर उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है, क्योंकि ऐसे मामलों में भय या शर्म से बच्चे ऐसी बातों का खुलासा नहीं कर पाते।
समय बदलने के साथ-साथ भले ही समाज में और देश में महिला सशक्तिकरण की बातें होती रहें लेकिन यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच में आज भी बदलाव नहीं आया है। यही कारण है कि ऑपिफसों में कार्यरत महिलाओं व सड़कों पर चलती महिलाओं के अलावा आज अपने ही घर में अपने रिश्तेदारों से महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।
पर यह बिडम्बना ही है कि जब कोई घटना घटित होती है तो तभी प्रशासन की नींद खुलती है कुछ दिन दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन होता है पिफर वही पुराने ढर्रे पर कार्य होने लगते हैं। यही कारण है कि रात में महिलाएं कभी सुरक्षित महसूस नहीं करतीं।
नेशनल क्राइम रिकॉड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में महिलाओं के साथ केवल बलात्कार व छेड़छाड ही नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर हत्या के केस भी दर्ज हुए हैं। दिल्ली में होने वाली हत्याओं में से एक चौथाई संख्या महिलाओं की हैं जो वाकई में एक गंभीर बात है। जिसके निदान के लिए सख्त से सख्त कदम उठाए जाने चाहिएं।
अपराध्यिों के मन में पुलिस व कानून का खौपफ खत्म होता जा रहा है। और इसका सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है। अपराध्ी अगर पकड़ा भी जाता है तो बड़ी आसानी से सबूतों के अभाव में छूट जाता है क्योंकि अदालत तो सबूत मांगती है या पिफर कोई रईसजादा पुलिस को मोटा पैसा खिलाकर छुट जाता है। यही कारण है कि दूसरे अपराध् करने के लिए उनके हौंसले बुलंद हो जातें हैं। तभी तो महिलाओं के प्रति क्राइम ग्रापफ घटने की बजाए दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है।
कुछ महिलायें ऐसी भी हैं जो महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के लिए उन्हीं को दाषी मानती हैं। उनका मानना है कि पश्चिमीकरण और आध्ुनिकता की दौड़ में अंध्ी कुछ युवतियों व महिलाएं अपनी स्वतंत्राता का नाजायज पफायदा उठाती है। जिसमें सबसे बड़ा दोष उनके पहनावे व आध्ुनिक सोच को गलत दिशा की ओर मोड़ने का होता है ऐसी खुलेआम ऐसी पौशाकें पहनकर घुमना जिसमें अंगप्रदर्शन बढ़चढ़ कर दिखावा हो। कुछ युवतियां तो जानबूझ कर अपनी भाव भंगिमाओं द्वारा युवकों को उनका पीछा करने के लिए उकसाती हैं। तो ऐसे मामलों में पुरुषों को ही दोष देना सही नहीं है।
मगर ये महिलाएं उन केसेज के बारे में क्या कहेंगी जिनमें आरोपियों ने कभी किसी बुजुर्ग महिला को तो कभी किसी 6 साल की बच्ची को अपनी हवस का शिकार बना डाला। इसलिए जरूरत महिलाओं को शिक्षा देने की नहीं जरूरत है इस प्रकार के पुरूषों की मानसिकता बदलने की जो उनका परिवार सबसे बेहतर कर सकता है।



 

1 comment:

  1. mahilao ki aajadi ke khilaaf nahi but maryada jaruri hai

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