Wednesday, May 31, 2017

                       आखिरी शिकार 
नीलेश तिवारी एक लेखक था! ऐसा लेखक जो अपने लेखन से मिलने वाली वाहवाही का लुत्फ नहीं उठा सका। उसकी पहली रचना ‘आवारा लेखक‘ प्रकाशित क्या हुई मानो उसकी जिंदगी को ग्रहण लग गया। अगले ही रोज वो अपने फ्लैट के बाथरूम में मरा हुआ पाया गया। फिर एक के बाद एक हत्याओं का जो सिलसिला शुरू हुआ वो तो जैसे रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था। पुलिस हैरान थी, परेशान थी! कातिल को पकड़ना तो दूर रहा, पुलिस हत्यारे का मकसद तक नहीं तलाश कर पा रही थी....!

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                                   अनदेखा खतरा

जूही मानसिंह को लगता था, कोई है जो उसकी जान लेना चाहता है। वो हर वक्त खुद को एक अनजाने अनदेखे खतरे से घिरा हुआ महसूस करती थी। उसका दावा था कि उसकी हवेली में नर-कंकाल घूमते थे! मरे हुए लोग अचानक उसके सामने आ जाते और फिर पलक झपकते ही गायब हो जाते थे। बंद कमरे में उसपर गोलियां चलाई जाती थीं, बाद में ना तो हमलावर का कुछ पता चलता, ना ही उसकी चलाई गोलियां ही बरामद होती थीं। हद तो तब हो गई जब वो एक ऐसे डाॅक्टर की प्रिस्क्राइब की हुई दवाइयां खाती पाई गई - जिस डाॅक्टर का कोई वजूद ही नहीं था। क्या पुलिस, क्या मीडिया! यहां तक कि उसके भाई को भी यकीन आ चुका था कि पिता की मौत के सदमे ने उसका दिमाग हिला दिया था! वो पागल हो गई थी। बावजूद इसके वो पुरजोर लहजे में चीख-चीख कर कह रही थी- मैं पागल नहीं हूं! सुना तुमने मैं पागल नहीं हूं.....! ऐसे में जब प्राइवेट डिटेक्टिव विक्रांत गोखले ने मामले की तह में जाने की कोशिश की, तो एक के बाद एक हैरतअंगेज, दिल दहला देने वाले वाकयात सामने आते चले गये--

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